Prabhat Prakashan Books
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sambhaji Maharaj (Hindi Translation of Life and Death of Sambhaji)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहासSambhaji Maharaj (Hindi Translation of Life and Death of Sambhaji)
संभाजी महाराज की नजर महादजी की ओर जाती है। यह सही बातें कहने और करने का समय है। अभी वे जो करेंगे, वह उनके देश की नियति बदल देगा। वे मराठी में कहते हैं, ”महादजी, आबा साहिब ने हर सैनिक के जीवन का सम्मान किया। वे चाहते थे कि हम बेवजह शहादत से बचें और जीवित रहें, ताकि हम स्वराज के लिए, मराठा राष्ट्र के लिए एक और लड़ाई लड़ सकें, लेकिन उन्होंने कभी भी मराठा राष्ट्र के बदले में जीवन को गले नहीं लगाया होता।
संभाजी महाराज फर्श पर एक ढेर की तरह गिर जाते हैं। वे जानते हैं कि कुछ ही दिनों में उनकी आँखें निकाल ली जाएँगी। लेकिन औरंगजेब बस इतना ही कर सकता है। संभाजी महाराज मराठों के दिलों में एक आग जला जाएँगे और वे दावानल में बदल जाएँगे, जो औरंगजेब के सपनों को जलाकर राख कर देंगे। युद्ध चलता रहेगा लेकिन वह कभी दक्कन नहीं जीत पाएगा।
—इसी पुस्तक सेछत्रपति शिवाजी महाराज के उतने ही प्रतापी पुत्र संभाजी महाराज के शौर्य और पराक्रम की यशोगाथा बताती अनुपम कृति। आक्रांताओं के दाँत खट्टे कर मराठा स्वाभिमान को जाग्रत करने में संभाजी महाराज के योगदान को रेखांकित करनेवाली कृति। हर भारतीय के राष्ट्रभाव को जाग्रत करनेवाली पठनीय कृति।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Sambhavami Yuge-Yuge
“भारतीय योद्धाओं ने सुनिश्चित हार के खतरे को देखते हुए भी खूँखार आक्रांताओं का मुकाबला पूरी वीरता और साहस से किया। आक्रमणकारियों को कदम-कदम पर संघर्ष का सामना करना पड़ा। अनेक मौकों पर उनकी शर्मनाक पराजय भी हुई। इतिहास के बड़े-बड़े कालखंड ऐसे थे, जिनमें विदेशी आक्रांताओं को पराजय मिली। ये कालखंड साधारण नहीं, तीन सौ साल तक लंबे हैं। भारत में अनेक हिस्से ऐसे हैं, जिनमें आक्रांता कभी प्रवेश नहीं कर पाए।
हर आक्रमणकारी को भारत पर आक्रमण की कीमत चुकानी पड़ी। बीच में ऐसे काल भी आए, जब विदेशी आक्रांताओं को कुछ सफलता मिली। किंतु जैसे ही मौका मिला, कोई-न-कोई वीर उठकर खड़ा हो गया। किसी-न-किसी क्षेत्र के आम लोगों ने विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष किया और उसे पराजित किया या इतना नुकसान तो जरूर पहुँचाया कि आक्रांता को भारतीय इच्छाओं का आदर करना पड़ा। भारतीय संस्कृति को जीवित रहने की ऊर्जा हमारे जिन पूर्वजों के बलिदानों से प्राप्त हुई है, यह पुस्तक उन पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का छोटा सा प्रयास है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Samyavad Ka Sach
प्रस्तुत ग्रंथ में भारत के प्रमुख नेताओं—महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, डॉ. अंबेडकर, श्री जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया, श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरुजी’ तथा पं. दीनदयाल उपाध्याय— के साम्यवाद से संबद्ध विचारों का गहराई से विश्लेषण किया गया है। वस्तुतः इन भारतीय जन-नेताओं ने साम्यवाद की दोगली नीतियों तथा व्यवहार को बेनकाब किया है।
देश के जागरूक एवं राष्ट्र-प्रेमी पाठकों के लिए यह एक संग्रहणीय ग्रंथ है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Sanasdeeya Pranali
Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Sanasdeeya Pranali
हमारे 99 फीसदी विधायक अल्पमत निर्वाचकों द्वारा चुने जाते हैं, उनमें से कई डाले गए वोटों का महज 15-20 फीसदी वोट पाकर निर्वाचित हो जाते हैं—यह आबादी का बमुश्किल 4-6 फीसदी बैठता
है। तो हमारी संसदीय प्रणाली कितनी प्रतिनिधि प्रणाली है?
लोकसभा में 39 पार्टियों के साथ, 14 पार्टियों से मिलकर बनी सरकार के साथ, क्या यह प्रणाली मजबूत, संशक्त और प्रभावी सरकारें प्रदान कर रही हैं, जिसकी हमारे देश को जरूरत है? क्या यह प्रणाली ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सत्ता सौंप रही है, जिनके पास मंत्रालयों को चलाने की, विधायी प्रस्तावों का आकलन करने की, वैकल्पिक नीतियों का मूल्यांकन करने की क्षमता, समर्पण और निष्ठा है? या यह खराब-से-खराब लोगों को विधायिका और सरकार में ला रही है? जब वे सत्ता में होते हैं तो क्या यह उन्हें लोगों का भला करने के लिए प्रेरित करती है, या यह उन्हें कहती है कि कार्य-प्रदर्शन मायने नहीं रखता है, कि ‘गठबंधनों’ को बनाए रखना कार्य-प्रदर्शन का स्थानापन्न है? क्या यह प्रतिरोधी और बाधा खड़ी करनेवाली राजनीति को अपरिहार्य नहीं बनाती है?
इससे पहले कि हम यह निष्कर्ष निकालें कि इस प्रणाली का समय पूरा हो गया है, शासन का कितना पूजन हो, ताकि हमें लगे कि हमें अवश्य ही विकल्प तैयार करना चाहिए?
वह विकल्प क्या हो सकता है?
तब क्या होता है, जब ये विधायक ‘संप्रभुता’ का दावा करते हैं और उसे अपना बना लेते हैं? न्यायपालिका ने जो बाँध खड़ा किया है—कि संविधान के आधारभूत ढाँचे को बदला नहीं जा सकता— राजनीतिक वर्ग के खिलाफ एक आवश्यक सुरक्षा नहीं है? लेकिन क्या कोई वैकल्पिक प्रणाली तैयार की जा सकती है, जो इस आवश्यक बाँध को तोड़ेगी नहीं, उसका उल्लंघन नहीं करेगी? उस विकल्प का मार्ग कौन प्रशस्त करेगा? उसकी अगुवाई कौन करेगा? इस झुलसानेवाली समालोचना में अरुण शौरी इन सवालों और अन्य मुद्दों को उठाते हैं। हमारे वक्त के लिए अनिवार्य। हमारे देश की दृढता के लिए आवश्यक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Jeevan Shaili (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanatan Jeevan Shaili (PB)
“1967 में मेडिकल कॉलेज में मेरे द्वितीय वर्ष के दौरान सनातन में मेरी रुचि जर्मन
सार्शनिक आर्थर शोपेनहावर की एक पंक्ति से शुरू हुई। मैंने शिवमूर्ति को देखा और जन पाया, इसका जिक्र मेरी इसी किताब में है ।पश्चिमी विचारों के प्रभाव में मैं भी मूर्तिपूजा को एक रूढ़िवादी मानसिकता मानता था।
मुझे लगा कि हजारों साल से चली आ रही ये मान्यताएँ जिन्हें लोगों ने अंधविश्वास कहकर खारिज कर दिया है, निरर्थक तो नहीं हो सकतीं, जैसे
मंगलवार को बाल न कटवाना, हनुमान की नाराजगी से डरना या शनिदेव के कोप से बचने के लिए शनिवार को लोहा न खरीदना ।मैं यह सब सोचने लगा । ऐसा लगता है कि ये रीति-रिवाज नाइयों और लोहारों को एक दिन की छुट्टी देने के लिए बनाए गए थे। मार्च महीने में जब घर में शीतला माता की पूजा के लिए बासी भोजन की व्यवस्था देखी तो लगा कि समाज को यह संदेश दिया जा रहा था कि गरमियाँ शुरू होते ही बासी भोजन खाना बंद कर दें।फिर तो मैं सनातन की यात्रा पर निकल पड़ा। मैंने अंधविश्वास कहे ही जाने वाली मान्यताओं पर लोगों से अपने विचार साझा किए और चर्चाओं में शामिल हुआ, लोगों से सकारात्मक
प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे विचार सौ प्रतिशत सही हैं, लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि चिकित्सा ज्ञान में मेरी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि ने निश्चित रूप से मुझे सनातन प्रथाओं को समझने में सक्षम बनाया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan
Sanjeevani
लीलाभूमिरियं विभोः भगवतो यद् दृश्यरूपं जगद्,
यस्मिन्नाप्तसुधीभिरार्षभुवनेविज्ञाननीतिप्रियैः।
सिद्धान्ताः नियमास्तथा च कृतयो
निर्धारिताश्श्रयसे,
श्रेष्ठान् तान् कवितायतिः मुनिनिभः प्रस्तौति भूयो ‘रविः’।।
यह दृश्यमान संसार व्यापक परमात्मा का क्रीड़ास्थल है। ऋषियों की इस भूमि में विज्ञान एवं नीति?विद्या के विशेषज्ञ पवित्र मनीषियों ने मानव-कल्याण के लिए जिन सिद्धांतों एवं नियमों का प्रवर्तन किया था, उन्हीं श्रेष्ठ आदर्श सिद्धांतों को मुनितुल्य कविश्रेष्ठ डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ‘रवि’ ने पुनः राष्ट्र भाषा में प्रस्तुत किया है। जो स्तुत्य है।
उनकी प्रसिद्ध कविता—
‘कोई चलता पगचिह्नों पर, कोई पग चिह्न बनाता है।
पगचिह्न बनाने वाला ही दुनिया में पूजा जाता है।’
वास्तव में उन्होंने हर क्षेत्र में पगचिह्न ही बनाए हैं। प्रस्तुत ‘संजीवनी’ ग्रंथ भी दरकते मानव मूल्यों को पुनः स्थापित और संपोषित करके, पगचिह्न बनाने का काम करेगा, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। दरकते मानव-मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का प्रयास निश्चित रूप से वंदनीय और प्रशंसनीय है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanskriti Se Nikalati Rahen
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanskriti Se Nikalati Rahen
हमारा देश अनेक धर्मों एवं जातियों में विभक्त है और सैकड़ों पंथ अपने-अपने दृष्टिकोण से समाज को सुदृढ़ बनाने में प्रयासरत हैं। पर आज भी हमारा समाज अनेक कुरीतियों से ग्रस्त है और आएदिन मनुष्य लालचवश तंत्र-मंत्र एवं तांत्रिकों के चक्कर में फँसकर धन-हानि क्या, प्राण-हानि तक कर डालता है। बाह्य सुख-सुविधाएँ अधिक-से-अधिक प्राप्त करने की जैसे होड़ लगी हुई है। इन सबके बीच व्यक्ति अपने आपको, अपनी अंतश्चेतना को बिलकुल भुला बैठा है। वह एक यांत्रिक प्राणी बनकर केवल भौतिक साधनों की अंधी दौड़ में दौड़ लगा रहा है।
संस्कृति से निकलती राहेंहमारे प्राचीन वाङ्मय और धर्म-दर्शन से नि:सृत ज्ञान की अजस्र धारा में हमारा प्रवेश कराती है। यह हमारे मनीषियों, संत-महात्माओं और महापुरुषों के वचनों में उच्चारित हमारी गौरवपूर्ण संस्कृति से हमारा परिचय कराती हुई आत्मिक चेतना, जीवन-मूल्य और सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों का मार्ग प्रशस्त करती है।
भारतीय धर्म-दर्शन-संस्कृति की गौरवशाली परंपरा के आधार पर जीवन का सन्मार्ग प्रशस्त करनेवाली रोचक व ज्ञानवर्धक पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskritik Rashtravad Ke Agradoot Pt. Deendayal Upadhyaya
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskritik Rashtravad Ke Agradoot Pt. Deendayal Upadhyaya
“पं दीनदयाल उपाध्याय बीसवीं शताब्दी को अपने विलक्षण व्यक्तित्व, अपरिमेय कर्तृत्व एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण से प्रभावित करनेवाले युगद्रष्टा ऋषि, महर्षि एवं ब्रह्मर्षि थे। उपाध्यायजी के पुरुषार्थी जीवन की सबसे बड़ी पहचान है गत्यात्मकता। वे अपने जीवन में कभी कहीं रुके नहीं, झुके नहीं। यही कारण है कि समस्त प्रतिकूलताओं के बीच भी उन्होंने अपने लक्ष्य के दीप को सुरक्षित रखते हुए उदभासित किया। उन्होंने राष्ट्र-प्रेम को सर्वोच्च स्थान देने के साथ-साथ, शिक्षा, साहित्य, शोध, सेवा, संगठन, संस्कृति, साधना सभी के साथ जीवन-मूल्यों को तलाशा, उन्हें जीवन-शैली से जोड़ा।
इस पुस्तक में पंडितजी को एक ऐसे राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिन्होंने न केवल स्वयं भारत को भारत के दृष्टिकोण से जानने-समझने-देखने की दृष्टि विकसित की, अपितु दूसरों को भी वैसी ही संदृष्टि प्रदान की। भारत की चिति एवं प्रकृति के मौलिक एवं सूक्ष्म द्रष्टा थे ‘पं. दीनदयाल उपाध्यायजी, जिन्होंने सही अर्थों में व्यष्टि एवं समष्टि के चिरंतन सत्य एवं सदियों के अनुभव का साक्षात्कार कर, एक ऐसे उदबोध को प्रवृत्त किया, जिसका स्पंदन भारत की माटी में समाहित है।
यह कृति “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अग्रदूत : पं. दीनदयाल उपाध्याय ‘ पंडितजी के विचार पाथेय को जन-जन तक पहुँचाने में निमित्त बनेगी और भारतीय संस्कृति के बिंब, जन-संस्कृति के रूप में वैश्विक धरातल पर नई चेतना को स्फूर्त करेगी; ऐसा दृढ़ विश्वास है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sanskritik Utthan Ka Marg
आज समाज में जीवन-मूल्य, नैतिकता, पारस्परिकता, परोपकार आदि लुप्तप्राय हो रहे हैं। समसामयिक विषयों पर लिखे गए ये लेख-घटनाएँ-प्रसंग ज्ञानवर्धक हैं। यह सामग्री पाठकों को संस्कारित करेगी और उनमें समाज के प्रति कर्तव्यभाव जाग्रत् करेगी, ऐसा विश्वास है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ का मूलमंत्र हृदयंगम कर अगर हर भारतीय अपना सकारात्मक योगदान करेगा तो निश्चित रूप से भारत पुनः शीर्ष पर पहुँच सकेगा, यह पुस्तक इसी संदेश को प्रसारित करने का उपक्रम है। समाज-जागृति की दिशा में यह सामग्री अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है और सामाजिक क्षेत्र में यह भावी पीढि़यों के लिए एक दर्पण का काम करेगी।
आज की प्रजातंत्रीय व्यवस्था में व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता परम आवश्यक है। ये लेख इस दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। इस पुस्तक में महापुरुषों के जीवन से जुड़ी जिन घटनाओं का उल्लेख है, वे पाठक के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में अपना विशेष महत्त्व रखती हैं। इसकी विषयवस्तु पाठकों में अध्ययन के प्रति उत्कंठा पैदा करेगी। इन लेखों का प्रकाशन लोगों में पठन के प्रति रुचि जाग्रत् करेगा और उन्हें सुसंस्कृत बनाएगा।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Ravidas Ratnawali
संत रविदास का जन्म वाराणसी के निकट मंडूर नामक गाँव में संवत् 1433 को माघ पूर्णिमा के दिन माना जाता है। उनके विभिन्न नाम हैं—रविदास, रैदास, रादास, रुद्रदास, सईदास, रयिदास, रोहीदास, रोहिदास, रूहदास, रमादास, रामदास, हरिदास। इनमें से रविदास तथा रैदास दो नाम तो ऐसे हैं, जो दोनों ही उनकी रचनाओं में उपलब्ध होते हैं।
बचपन से ही उनकी रुचि प्रभु-भक्ति और साधु-संतों की ओर हो गई थी। बड़ा होने पर उन्होंने चर्मकार का अपना पैतृक काम अपना लिया। जूता गाँठते हुए वे प्रभु भजन में लीन हो जाते। जो कुछ कमाते, उसे साधु-संतों पर खर्च कर देते।
रविदास ने उस समय के प्रसिद्ध भक्त गुरु रामानंद से दीक्षा ली। उन्होंने ऊँच-नीच के मत का खंडन किया। वे अत्यंत विनीत और उदार विचारों के थे। उनकी भक्ति उच्च दर्जे की थी। वे कठौती में ही गंगाजी के दर्शन कर लिया करते थे।
‘संत रैदास की वाणी’ में 87 पद तथा 3 साखियों का संकलन ‘रैदास’ के नाम से हुआ है, जिनमें से लगभग सभी में ‘रैदास’ नाम की छाप भी मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक में संत रविदास के आध्यात्मिक जीवन, उनकी रचनाओं, उनके जप-तप और समाज-उद्धार के लिए किए गए कार्यों का सीधी-सरल भाषा में विवेचन किया गया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Santon Ke Prerak Prasang
हमारा देश संत-महात्माओं एवं ऋषि-मुनियों का देश है। उनकी सांसारिक पदार्थों में आसक्ति नहीं होती। वे सिर्फ जीने भर के लिए जरूरी चीजों का सीमित मात्रा में उपभोग करते हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ से संत का कोई प्रयोजन नहीं है। ऐसा सात्त्विक तपस्वी जीवन सबके लिए अनुकरणीय होता है।
संत का जीवन जीना साधारण मानव के बस की बात नहीं है। संत-जीवन में बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जो लोग आदर्श गृहस्थ धर्म को निभाते हैं, वे धन्य हैं। जो लोग मेहनत से, उचित साधनों से आजीविका अर्जित करते हैं, व्यवहार-कुशल हैं, परहितकारी हैं, खुद जीते हैं और दूसरों को जीने देते हैं, ऐसे मानव भी किसी संत से कम नहीं हैं।
प्रस्तुत पुस्तक का प्रत्येक दृष्टांत जीवन के बारे में स्पष्ट दृष्टि देता हुआ अमूल्य संदेश देता है। इस आपाधापी भरे युग में जो व्यक्ति सत्संगों का लाभ नहीं उठा पाते, उन्हें इस पुस्तक के द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
संतों के प्रेरणाप्रद जीवन का सार यदि हम जीवन में उतारें तो सुख-संतोष से परिपूर्ण होगा हमारा जीवन।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Saral Gita
‘गीता’ संसार का एक महानतम ग्रंथ है। इसे हिंदू धर्म के सीमित दायरे में बाँधकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि संसार की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है और संसार के करोड़ों-अरबों लोग इसमें बताए गए जीवन-दर्शन का अनुसरण कर सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं।
‘गीता’ एक ऐसा ग्रंथ है, जो विलक्षण रहस्यों से भरा हुआ है। इसे आप जितनी बार पढ़ेंगे उतनी ही बार आपको नए-नए अर्थ, नए-नए भाव और नए-नए तर्क निकलते प्रतीत होंगे।
भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद से उपजा यह ग्रंथ द्वापर युग से आज तक अनेक संत-महात्माओं का मार्गदर्शन करता आ रहा है। अनेक साधारण लोग इसकी शिक्षाओं पर चलकर महान् बने हैं। मीरा, सूर, चैतन्य से लेकर महात्मा गांधी तक भगवद्गीता से जीवन-शक्ति ग्रहण करते रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में गीता के उपदेशों को सरल व सुगम शब्दों में प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि यह बड़ों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी उपयोगी बन सके। इसमें ‘गीता’ के अठारह अध्याय और सात सौ श्लोकों के शब्दार्थ के स्थान पर भावार्थ को प्रमुखता दी गई है, ताकि जनसामान्य भी इनके भावों और शिक्षाओं को सहजता से ग्रहण कर सकें।
प्रस्तुत है कर्तव्य, न्याय, सदाचार, पारस्परिक संबंध, अध्यात्म, वैराग्य, मोह-विरक्ति एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करनेवाली सरल गीता।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Sarthi
डॉ यशिका का यह प्रथम काव्य-संग्रह है। उनके दीर्घ अनुभवों ने अल्प समय में उन्हें शब्दों पर सटीक पकड़ बनाना सिखा दिया है।
उनकी अदालतों में भले ही कुछ फैसले साक्ष्यों के आधार पर दिए गए हों, लेकिन उनके मन की अदालत ने सदैव न्याय ही किया है। वादी-प्रतिवादी के सम्मुख उनकी रचनाएँ जैसे एक न्यायाधीश के रूप में सामने खड़ी हो गई हैं। कठोर निर्णय लेते हुए भी उनका कोमल हृदय भीतर से कितना पसीजा है, यह उनकी कविताओं को पढ़कर ही समझा जा सकता है। शब्दों पर गहरी पकड़, उर्दू अल्फाजों का सटीक प्रयोग उन्हें अपने समकालीन रचनाकारों से बहुत अलग, बहुत आगे ले गया है। ईश्वर उनकी लेखनी से सदैव न्याय ही प्रवाहित कराए। इसी प्रार्थना के साथ यह विश्वास भी है कि उनकी कविताएँ लोगों को एक नया उजियारा देने में सहायक सिद्ध होंगी। उनके शब्दों से पाठकों को नया हौसला मिलेगा। उनके शब्द सहारा बनेंगे उन लोगों का, जिन्हें अपनी उम्मीदों के दामन को समय की आँधियों में बचाना मुश्किल हो रहा है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sarvagunakar Shrimant Shankardev
भारतभूमि संतों, महात्माओं एवं सिद्ध पुरुषों की लीलाभूमि रही है। उन्होंने दिव्य ईश्वरीय चेतना का साक्षात्कार कर सृष्टि के कल्याण के निमित्त सदाचरण एवं मानवीय आदर्शों का उपदेश दिया। भारतीय संस्कृति का निर्माण ऐसे ही दिव्य पुरुषों के उच्चादर्शों एवं आप्त वचनों का फल है। ऐसे आध्यात्मिक सिद्धपुरुषों का उद्भव प्रत्येक देशकाल में होता रहा है। भारतभूमि के असम प्रांत में 15वीं सदी में जनमे श्रीमंत शंकरदेव ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपनी सुकीर्ति से पूरे पूर्वोत्तर के सांस्कृतिक परिदृश्य में अपने एक शरणिया नामधर्म के द्वारा अभूतपूर्व आलोडऩ एवं जनजागरण पैदा किया।
घोर निराशाजनक परिदृश्य में असम में श्रीमंत शंकरदेव का आविर्भाव हुआ। पूरा देश उस समय भक्ति आंदोलन की उदार एवं पावन रसधारा से आप्लावित हो रहा था। संपूर्ण भारतवर्ष एक सांस्कृतिक प्राणवत्ता की धड़कन से स्पंदित था। श्रीमंत शंकरदेव ने अपनी सुदीर्घ साधना, विराट प्रतिभा एवं प्रगाढ़ जनसंपर्क से युगीन संकट की प्रकृति एवं दिशा को समझ लिया। समाधान सूत्र के रूप में उन्होंने वैष्णववाद की परंपरागत अवधारणाओं में नवीन तत्त्वों एवं मान्यताओं का अभिनिवेश किया।
श्रीमंत शंकरदेव मात्र एक आध्यात्मिक गुरु ही नहीं थे, वरन एक श्रेष्ठ कवि, साहित्यकार, चित्रकार, नाटय व्यक्तित्व, उद्यमकर्ता, संगठक और सच्चे अर्थों में एक जननायक थे।”
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Satya Ke Sath Mere Prayog- Mahatma Gandhi
सत्य के साथ मेरे प्रयोग मैं जो प्रकरण लिखने वाला हूँ, इनमें यदि पाठकों को अभिमान का भास हो, तो उन्हें अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि मेरे शोध में खामी है और मेरी झाँकियाँ मृगजल के समान हैं। मेरे समान अनेकों का क्षय चाहे हो, पर सत्य की जय हो। अल्पात्मा को मापने के लिए हम सत्य का गज कभी छोटा न करें।
मैं चाहता हूँ कि मेरे लेखों को कोई प्रमाणभूत न समझे। यही मेरी विनती है। मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि उनमें बताए गए प्रयोगों को दृष्टांत रूप मानकर सब अपने-अपने प्रयोग यथाशक्ति और यथामति करें। मुझे विश्वास है कि इस संकुचित क्षेत्र में आत्मकथा के मेरे लेखों से बहुत कुछ मिल सकेगा; क्योंकि कहने योग्य एक भी बात मैं छिपाऊँगा नहीं। मुझे आशा है कि मैं अपने दोषों का खयाल पाठकों को पूरी तरह दे सकूँगा। मुझे सत्य के शास्त्रीय प्रयोगों का वर्णन करना है। मैं कितना भला हूँ, इसका वर्णन करने की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है। जिस गज से स्वयं मैं अपने को मापना चाहता हूँ और जिसका उपयोग हम सबको अपने-अपने विषय में करना चाहिए।
—मोहनदास करमचंद गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग हम सबको अपने आपको आँकने, मापने और अपने विकारों को दूर कर सत्य पर डटे रहने की प्रेरणा देती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Savarkar : Vichar Ki Prasangikta (PB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSavarkar : Vichar Ki Prasangikta (PB)
स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर (1883-1966) बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी महान् स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सुधारक, लेखक, कवि, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वीर सावरकर के सामाजिक और धार्मिक सुधारों के विचार, आधुनिक सोच, वैज्ञानिक और तकनीकी साधनों को अपनाना इत्यादि बातें 21वीं सदी में भी प्रासंगिक हैं।
‘सावरकर: विचार की प्रासंगिकता’ के रूप में वीर सावरकर के दूरदर्शी ज्ञान के 25 अमूल्य मोती डॉ. अशोक मोडक के गहन अध्ययन एवं शोध का परिणाम हैं।
पच्चीस अध्यायों में सावरकर के अपने उद्धरण, लेखक की विशेषज्ञ टिप्पणियाँ और वरिष्ठ राजनीतिज्ञों, समाज-सुधारकों, बुद्धिजीवियों की लगभग 60 सहायक टिप्पणियाँ 21वीं सदी के नए भारत के लिए सावरकर के निम्नलिखित दूरदर्शी संदेशों की प्रासंगिकता को दर्शाती हैं—
- एकता द्वारा एक मजबूत सामंजस्यपूर्ण सामाजिक ताने-बाने का निर्माण।
- हिंदुत्व के माध्यम से संपूर्ण हिंदू जाति को आत्मसात् करना।
- भारत की संपूर्ण सुरक्षा के लिए सशक्त विदेश नीतियाँ।
- मानवजाति के संपूर्ण सुख के लिए श्रेष्ठ भारत।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Savarkar Samagra (Set of Ten Vols.)
-17%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSavarkar Samagra (Set of Ten Vols.)
‘सावरकर’ शब्द साहस, शौर्य, पराक्रम और राष्ट्रभक्ति का पर्याय है। क्रांतिकारी इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित स्वातंत्र्यवीर सावरकर का समूचा व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों से संपन्न था । मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता व अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्ट करने का आग्रह करनेवाले महान् द्रष्टा; ‘ गीता ‘ के कर्मयोग सिद्धांत को अपने जीवन में आचरित करनेवाले अद्भुत कर्मचोगी; अनादि- अनंत परमात्मा का प्राणमय प्रस्कुरण स्वयं के अंदर सदैव अनुभव करते हुए अंदमान जेल की यातनाओं को धैर्यपूर्वक सहनेवाले महान् दार्शनिक, अपने तेजस्वी विचारों से सहस्रों श्रोताओं को झकझोर देने और उन्हें सम्मोहित करनेवाले अद्भुत वक्ता तथा कविता, उपन्यास, कहानी, चरित्र, आत्मकथा, इतिहास, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में उच्च कोटि के साहित्य की रचना करनेवाले प्रतिभाशाली साहित्यकार थे स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ।
स्वतंत्रता-संग्राम एवं समाज-सुधार जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कार्य करनेवाला व्यक्ति उच्च कोटि का साहित्यकार भी हो, यह अपवाद है- और इस अपवाद के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वीर सावरकर ।
भारतीय वाड्मय में उनके साहित्य का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है; किंतु वह अधिकांश मराठी में उपलब्ध होने के कारण इस महान् साहित्यकार के अप्रतिम योगदान के बारे में अन्य भारतीय भाषाओं के पाठक अधिक परिचित नहीं हैं ।
वीर सावरकर के चिर प्रतीक्षित समग्र साहित्य का प्रकाशन हिंदी जगत् के लिए गौरव की बात है ।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, कहानियां
Seengawale Gadhe
“प्रेम जनमेजय से मिलकर, बात कर, कभी नहीं लगता कि ये व्यंग्य विधा की राह के पहुँचे हुए मुसाफिर हैं। ऐसा ही श्रीलाल शुक्लजी के साथ था। वे कभी बातचीत में व्यंग्य नामक हथियार का इस्तेमाल नहीं करते थे। ये ऐसे व्यंग्य-गुरु हैं, जो अपनी तिरछी नजर पर मृदुता, मस्ती और मितभाषिता का चश्मा लगाए रहते हैं।
कुछ लोगों का खयाल है कि व्यंग्य लेखक एक किस्म के कार्टूनकार होते हैं, जिन्हें सारी दुनिया आँकी-बाँकी दिखाई देती है। एकदम गलत धारणा है यह। जैसे कविता, कहानी, उपन्यास नाटक और निबंध, साहित्य की विधाएँ हैं, वैसे ही व्यंग्य तथा हास्य, व्यंग्य की विधाएँ हैं। कमजोर हाथों में पडक़र ये विद्रूप और फूहड़ हँसी-ठट्ठा का रूप लेती होंगी, लेकिन प्रेम जनमेजय उन इलाकों में जाते ही नहीं हैं। वे हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल की परंपरा में व्यंग्य विधा में संलग्न हैं। उनके लिए व्यंग्य एक गंभीर कार्य और चिंतन है, जिससे वे समाज की विसंगतियों और समय के अंतर्विरोधों पर रोशनी डाल सकें। परिवर्तन काल सुविधा के साथ-साथ सक्रांति काल भी लाता है।
प्रेम जनमेजय ने बहुत समझदारी और गहन अध्ययन से अपनी साहित्य-विधा चुनी है। व्यंग्य विधा पर चाहे जितना हमला किया जाए, सब जानते हैं कि बिना व्यंग्य-विनोद के कोई भी रचना पठनीय नहीं हो सकती। प्रेमजी में एक कथातत्त्व समानांतर चलता है। इसी कथा-जाल में वे धीरे से अपना काम कर जाते हैं।
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Prabhat Prakashan, कहानियां
Selected Stories of Premchand
Premchand, the undisputed master short story writer has written many short stories and novels. To introduce the master craftsman to the English reader these short stories have been selected for this volume. Each story is a classic in itself. A Pair of two Oxen, The Chess Players, Secret Treasure, Jamai Babu, Game of Tip Cat, The Spell, Idgah and The Tall Talker are all nonpareil of the great writer. The stories have survived the long spell of time and are still the most cherished stories of the reader. Quite a few stories have been selected by various film producers for successful films like The Chess Players as Shatranj Ke Khilari. The stories speak volumes about the economic, social and political conditions of the era.
While presenting the English version no compromise has been made with the quality and original flavour of the stories. So the esteemed reader will feel the same magnetic pull in each of the selected stories as in the original by the writer.SKU: n/a -
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Senapati Tatya Tope
जिन दिनों श्रीमती रंजना चितले वीर तात्या टोपे के संदर्भ तलाश रही थीं, तब यह प्रश्न मेरे मन में बार-बार आया कि इन्होंने शोधात्मक लेखन के लिए तात्या टोपे को ही क्यों चुना? जब मैंने रंजनाजी के परिवार के बारे में जाना तो मुझे पता चला कि इनके परिवार का तात्या टोपे और तात्या टोपे की जीवनधारा से पीढि़यों का नाता है। रंजनाजी के पूर्वज तेलंगाना के मूल निवासी थे। अन्य लोगों के साथ इनके पूर्वजों को
भी छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू पदपादशाही के सशक्तीकरण के काम में लगाया था। उन्हें सात पीढ़ी पहले पाँच गाँव की जागीर देकर पीलूखेड़ी में बसाया गया था। पारिवारिक वृत्तांत के अनुसार 1857 की क्रांति के अमर नायक नाना साहब पेशवा ने अपने जीवन की अंतिम साँस इसी स्थान पर ली थी। वहाँ उनकी समाधि बनी है। इसी परिवार ने अंतिम समय में उनकी देखभाल की थी। सिपाही बहादुर सरकार के क्रांतिकारी आंदोलन में इस परिवार ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और 1857 की क्रांति के सेनानियों को पीलूखेड़ी के शास्त्री परिवार से रोटियाँ बनकर जाती थीं। इसी शास्त्री परिवार में जन्मी हैं रंजना, जो विवाह के बाद चितले हो गईं। मुझे लगता है, ऐसी ही प्रज्ञा स्मृति से रंजनाजी वीर तात्या टोपे के व्यक्तित्व अन्वेषण में लग गईं। इस पुस्तक में उन्होंने वे तथ्य जुटाए हैं, जो तात्या टोपे से संबंधित अन्य विवरणों में या तो मिलते नहीं या सर्वदा उपेक्षित रहे।
—डॉ. सुरेश मिश्र
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Sentinel of The Himalayas: Colonel Chewang Rinchen
“This book entails how a child of the mountain becomes the timeless sentinel, gaurding the frontiers all his life and becoming an eternal name of summits etched with Indian Army’s spirit. With all our combined ability and might, we have endeavored to articulate the remarkable life journey of Colonel Chhewang Rinchen, MVC, and Bar, SM, the distinguished veteran of the Indian Army who faced four wars with pride since India’s independence. Through meticulous research and heartfelt storytelling, we have portrayed Colonel Rinchen’s selfless deeds through anecdotes not only as fearless warrior but also as compassionate leader who consistently prioritized the well-being of their fellow soldiers and community.
His exceptional courage and unwavering piousness towards his duty were exemplified by his dual Mahar Vir Chakra and numerous other honours. Apparently, it also solidifies his place as one of India’s most celebrated military heroes. The narrative is a tribute to Colonel Rinchen’s enduring legacy—a testament to his indomitable spirit, glorious sacrifices, and persistent commitment to serve the nation. After three and a half years of dedicated effort, we are proud to share the inspirational story with you all, hoping it will serve as a beacon of courage and integrity for generations to come.”
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