वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
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Arsh Sahitya Prachar Trust, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-English and Transliteration (8 Vols)
Arsh Sahitya Prachar Trust, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिA Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-English and Transliteration (8 Vols)
The Word “Veda” mean knowledge par-excellence, Sacred wisdom first revealed to the four great Rashes—Agni, Vayu Aditya and Angira at the beginning of creation. The Vedas are called Sruti, means the sounds heard by sages in yogic unity with supreme parbrahmn.
Vedas are the purest expression of spiritual idealism of our philosophy, sanatan – immortal and timeless. The ancient sages those were blessed stupendous memory; they preserved this sacred knowledge in their memory with proper accentuation and passed on to the successive generations through oral teachings with utmost care and accuracy. Later when the Sanskrit script writing was developed the great sages compiled the Vedic Wisdom into four Holy Scriptures; the Rig-Veda, the Yajur-veda, Sam-Veda and Atharva-veda. The Vedas are considered to be divine revelation which has been handed down to humanity as a necessary guidance in order to live in peace and harmony on earth. Vedic literature is the proud possession of mankind since the beginning of human history.SKU: n/a -
Vani Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Atharvved Ka Madhu
अथर्ववेद की मधु अभीप्सा गहरी है। यह सम्पूर्ण विश्व को मधुमय बनाना चाहती है। सारी दुनिया में मधु अभिलाषा का ऐसा ग्रन्थ नहीं है। कवि अथर्वा वनस्पतियों में भी माधुर्य देखते हैं। कहते हैं, “हमारे सामने ऊपर चढ़ने वाली एकलता है। इसका नाम मधुक है। यह मधुरता के साथ पैदा हुई है। हम इसे मधुरता के साथ खोदते हैं। कहते हैं कि आप स्वभाव से ही मधुरता सम्पन्न हैं। हमें भी मधुर बनायें।” स्वभाव की मधुरता वाणी में भी प्रकट होती है। प्रार्थना है कि हमारी जिह्वा के मूल व अग्र भाग में मधुरता रहे। आप हमारे मन, शरीर व कर्म में विद्यमान रहें। हम माधुर्य सम्पन्न बने रहें। यहाँ तक प्रत्यक्ष स्वयं के लिए मधुप्यास है। आगे कहते हैं, “हमारा निकट जाना मधुर हो। दूर की यात्रा मधुर हो। वाणी में मधु हो। हमको सबकी प्रीति मिले।” जीवन की प्रत्येक गतिविधि में मधुरता की कामना अथर्ववेद का सन्देश है।
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Ekadashopnishad
धारावाहिक हिंदी में, मूल तथा शब्दार्थ सहित (ग्यारह उपनिषदों की सरल व्याख्या)-आर्य संस्कृति के प्राण उपनिषद हैं। उपनिषदों के अनेक अनुवाद हुए हैं, परंतु प्रस्तुत अनुवाद सब अनुवाद से विशेषता रखता है।
इस अनुवाद में हिंदी को प्रधानता दी गई है। कोई पाठक यदि केवल हिंदी भाग पढ़ जाए तो भी उसे सरलता से उपनिषद्-ज्ञान स्पष्ट हो जाएगा। पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यही है की अनुवाद में विषय को खोलकर रख दिया गया है।
साधारण पढ़े-लिखे लोगों तथा संस्कृत के अगाध पंडितों, दोनों के लिए यह नवीन ढंग का ग्रंथ है। यही इस अनुवाद की मौलिकता है। पुस्तक को रोचक बनाने के लिए स्थान-स्थान पर चित्र भी दिए गए हैं।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti (Chapter II) Tattva-Bodhini
(श्रीकुल्लूकभट्ट प्रणीत ‘मन्वर्थ मुक्तावलीÓ तथा मेधातिथि प्रणीत अनुभाष्य सहित) भारत एक धर्मप्राण देश है। इस धर्म का प्रतिपादक मनुस्मृति एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसकी लोकप्रियता ही इसकी उपयोगिता को प्रकट करती है। हमारे प्राचीनकाल के महॢष अपने गम्भीर चिन्तन एवं गहन अनुशीलन के लिए विख्यात रहे हैं। महॢष मनु उसी शृंखला में एक कड़ी है जिनकी सुप्रसिद्ध कृति है—मनुस्मृति। आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य अपना आध्यात्मिक एवं नैतिक बल खो चुका है। उसके चरित्र-बल का ह्रïास हो चुका है और वह अपने सामाजिक एवं राष्ट्रीय कत्र्तव्यों के प्रति प्रमादग्रस्त हो गया है। अत: मानव को सच्चे अर्थ में मनुष्य की कोटि में लाने के लिए, उसे सदाचार-बल का सम्बल देने के लिए, सामाजिक कत्र्तव्यों के प्रति जागरूक बनाने के लिए, मातृ-पितृ एवं आचार्य के प्रति अपने दायित्वों का बोध कराने के लिए, आत्मस्वरूप से परिचित कराकर मोक्ष लाभ के लिए, पुरुषार्थ चतुष्ट्य का सम्पादन कराने के लिए, पातकों से मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं आत्मस्वरूप से परिचित होने के लिए, मानसिक सुख-शान्ति के लिए एक आदर्श मानव-समाज एवं राज्य की स्थापना के लिए आज मनुस्मृति जैसे ग्रन्थ के परिशीलन की महती अपेक्षा है।
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rajrishi Manu aur unki Manusmiri
राजर्षि मनु और उनकी मनुस्मृति
राजर्षि मनु भारतीय सास्ंकृतिक गगन में हमारे दीपस्तम्भ हैं। भारतीय समाज का ढाँचा उन्हीं के अमर बीजमन्त्रों पर टिका हुआ है। उनकी विचारधारा गुण-कर्म-योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्व पर आधारित है।
विषय के विषेषज्ञ अनेक वैदिक विद्वानों के लेख इसमें ऐसे संकलित हैं जैसे किसी हार में मोतियाँ पिरोई होती हैं। इन विद्वानों के मनु और मनुस्मृति-सम्बन्धी चिन्तन से पाठक लाभान्वित हो सकेंगे।
यह पुस्तक मनु और मनुस्मृति-विषयक भ्रान्तियों को दूर करने में सहायक सिद्ध होगी तथा उन भ्रान्तियों के विस्तार को रोकेगी।
एक ही स्थान पर, एक विषय पर, अनेक विचारकों के विचार एकत्र मिलना कठिन होता है। सबको सब पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पातीं, अतः अध्ययन-मनन में पाठकों को सुविधा-लाभ होगा।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Smritiyon Mein Rajneeti Aur Arthashastra
स्मृतियां वेदों की व्याख्या हैं, अत: हिन्दू-जनमानस में इन्हें वेदों जैसी ही प्रतिष्ठा प्राप्त है। आचार, व्यवहार और प्रायश्चित खण्डों में विभक्त स्मृतियाँ हिन्दू-जीवन के आचार-शास्त्र के रूप में समादृत रहीं हैं। स्मृतियों के आचार-पक्ष पर तो शोध और स्वतंत्र पुस्तकों के रूप में पर्याप्त कार्य विद्वानों ने सम्पन्न किया है, पर व्यवहारपक्ष पर, जिसका सम्बन्ध विशेषत: राजनीति और अर्थशास्त्र से है, अभी तक कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया गया है। जबकि स्मृतियों में निरूपित राजनीतिक, आर्थिक-सिद्धान्त हजारों वर्ष तक भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के मेरुदण्ड रहे हैं। यही नहीं, इन सिद्धान्तों को यत्किंचित परिवर्तन-संशोधन के साथ वर्तमान युग में अपनाना श्रेयस्कर ही नहीं, अपितु भारतीयता को पृथक पहचान के लिए आवश्यक भी है।
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Upanishad Ek Saral Parichaya
भारतीय चिन्तन में ही नहीं, मानव-चिन्तन में उपनिषदों का चिन्तन उल्लेखनीय स्थान रखता है। उपनिषदें भारतीयों और आर्यों के आध्यात्मिक चिन्तन की विश्वसनीय स्रोत हैं। आधुनिक विचारक भी उपनिषदों को भारत का सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक साहित्य स्वीकार करते हैं। मुक्तक उपनिषद् में 108 उपनिषदों का उल्लेख है।
मुख्य प्रामाणिक सर्वसम्मत 11 उपनिषदें कही जाती हैं। इन प्रसिद्ध उपनिषदों में सर्वाधिक विख्यात ‘ईशोपनिषद्‘ यजुर्वेद का अन्तिम 40वाँ अध्याय है। इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण का अन्तिम भाग ही बृहदारण्यक उपनिषद् है, इसमें अद्भुत वन-संस्कृति का नमूना देखने को मिलता है। ये प्रधान उपनिषदें हैं-(1) ईश, (2) केन, (3) कठ, (4) प्रश्न, (5) मुण्डक, (6) माण्डूक्य, (7) तैत्तिरीय, (8) ऐतरेय, (9) छान्दोग्य, (10) बृहदारण्यक (11) श्वेताश्वतर। आइए, ग्यारह उपनिषदों का सरल परिचय प्राप्त करें।SKU: n/a