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Vani Prakashan
Hindi Reetikavya Ka Vikas Aur Maharaja Mansingh ‘Dwijdev’ Ki Kavya Sadhna
ब्रजभाषा मुक्तक परम्परा के अद्वितीय कवि मानसिंह ‘द्विजदेव’ को उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक चरण के एक प्रमुख रीतिमुक्त कवि के रूप में मान्यता हासिल है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल समेत अनेक विद्वानों ने इन्हें रीतिकाल के शृंगारी कवियों की परम्परा में रीतिमुक्त कविता का अन्तिम प्रसिद्ध कवि माना है। भाषा की प्रांजलता, बखान की सजीवता और भाव-व्यंजना की सूक्ष्मता के साथ द्विजदेव की कविता छप्पय, दोहा, सवैया, घनाक्षरी आदि विभिन्न छन्दों के माध्यम से प्रेम के अनन्य सनातनी प्रतीक राधा-माधव को अपनी कविता का विषय बनाती है। ऐसे भावमयी अलौकिक वर्णन के साथ द्विजदेव भक्ति में संयोग और विरह का अछोर निर्मित करते हैं। इस अध्ययनपरक ग्रन्थ को, ऐसे महाकवि के सन्दर्भ में रचा गया है, जिन्हें समकालीन अर्थों में देखने, समझने की नयी दृष्टि मिलती है। द्विजदेव की शृंगारिक कविता को काव्य-रसिकों के बीच पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से प्रणीत यह मनोहारी शोध रीतिकाल को समग्रता में देखने की कोशिश है। इस अध्ययन की गम्भीर अर्थ भंगिमा पूर्वज कवियों के प्रति लेखिका का साहित्यिक अर्थों में कृतज्ञता ज्ञापन है।
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Religious & Spiritual Literature, Vani Prakashan, इतिहास और संस्कृति
Atharvved Ka Madhu
अथर्ववेद की मधु अभीप्सा गहरी है। यह सम्पूर्ण विश्व को मधुमय बनाना चाहती है। सारी दुनिया में मधु अभिलाषा का ऐसा ग्रन्थ नहीं है। कवि अथर्वा वनस्पतियों में भी माधुर्य देखते हैं। कहते हैं, “हमारे सामने ऊपर चढ़ने वाली एकलता है। इसका नाम मधुक है। यह मधुरता के साथ पैदा हुई है। हम इसे मधुरता के साथ खोदते हैं। कहते हैं कि आप स्वभाव से ही मधुरता सम्पन्न हैं। हमें भी मधुर बनायें।” स्वभाव की मधुरता वाणी में भी प्रकट होती है। प्रार्थना है कि हमारी जिह्वा के मूल व अग्र भाग में मधुरता रहे। आप हमारे मन, शरीर व कर्म में विद्यमान रहें। हम माधुर्य सम्पन्न बने रहें। यहाँ तक प्रत्यक्ष स्वयं के लिए मधुप्यास है। आगे कहते हैं, “हमारा निकट जाना मधुर हो। दूर की यात्रा मधुर हो। वाणी में मधु हो। हमको सबकी प्रीति मिले।” जीवन की प्रत्येक गतिविधि में मधुरता की कामना अथर्ववेद का सन्देश है।
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Vani Prakashan, उपन्यास
Shikhandi
पितामह ने बड़े उत्साह से कहा, “तुम लोग जानते ही हो कि तुम्हारी सेना में मेरे वध के लिए कौन सबसे अधिक उत्कण्ठित है।” “शिखण्डी।” सारे पाण्डव सहमत थे। पितामह हँस पड़े, “अम्बा ने ही पुनर्जन्म लिया है। वह अन्तिम बार विदा होते हुए कह गयी थी कि वह उस जन्म में मेरी हत्या न कर पायी तो दूसरा जन्म लेगी। लगता है शिखण्डी के रूप में आयी है, नहीं तो मुझसे क्या इतनी शत्रुता है शिखण्डी की। पता नहीं यह उनकी शत्रुता है या प्यार है। प्रेम नहीं मिला तो शत्रुता पाल ली। कौन जाने लोहा-चुम्बक एक-दूसरे के शत्रु होते हैं या मित्र। किन्तु वे एक-दूसरे की ओर आकृष्ट अवश्य होते हैं। शिखण्डी मेरी ओर खिंच रहा है।… शिखण्डी या शिखण्डिनी।…” पितामह हँसे, “शिखण्डी को अनेक लोग आरम्भ में स्त्री ही मानते रहे हैं। मैं आज भी उसे स्त्री रूप ही मानता हूँ। लगता है कि कुछ देय है मेरी ओर। अम्बा को उसका देय नहीं दे पाया। शिखण्डिनी को दूँगा। उसकी कामना पूरी करूँगा। उसे कामनापूर्ति का वर देता हूँ।” “पर वह अम्बा नहीं है तात! वह शिखण्डी है, द्रुपद का पुत्र । महारथी शिखण्डी। वह शस्त्रधारी योद्धा है। वह आपका वध कर देगा।” भीम के मुख से जैसे अकस्मात ही निकला। “जानता हूँ।” भीष्म बोले, “तभी तो उसे कामनापूर्ति का वर दे रहा हूँ।” “यह तो आत्मवध है पितामह!” कृष्ण बोले। “नहीं! यह तो मेरी मुक्ति है वासुदेव ! स्वैच्छिक मुक्ति! मेरे पिता ने मुझे यही वर दिया था।” वे जैसे किसी और लोक से बोल रहे थे, “मैं जब कुरुवंश का नाश रोक नहीं सकता, तो इस जीवन रूपी बन्धन में बँधे रहने का प्रयोजन क्या है। मैं स्वेच्छा से मुक्त हो रहा हूँ।
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Nonfiction Books, Vani Prakashan
Meera Vs Meera
‘Meera Vs Meera’ is a translation of a wellreceived book ‘Pachrang Chola Pahar Sakhi Ri’ in Hindi. For centuries, the masses regarded Meera’s poetry as a medium of expression of their feelings and emotions. Meera’s poetry, though interpreted in multiple ways has dwarfed, weakened and gulfed her persona. The religious discourses and narratives festered with her religious aspect, whereas the European historians during the colonial period in India focussed on elements of love, romance and mystery in Meera’s life. The Marxist critics and neo-feminist activists highlighted Meera’s narratives related to her courage and self-determination, which she exhibited during her times. In this process the human aspects of Meera were completely side-lined which is far more evident from her poetry. Meera is a feudal, rebel, devotee, poet and much more. She led an eventful human life. She never felt alienated or free from womanly passions and was the creation of the society she lived in. Meera believed ‘Soney kaat na lagey’ (Gold never rusts…). In ‘Meera Vs Meera’ an attempt is made to conserve the ‘real self ’ of Meera, left over by the multiple interpretations through the centuries.
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Vani Prakashan
Pachrang Chola Pahar Sakhi Ri
मीरां की कविता को सदियों तक लोक ने अपने सुख-दुःख और भावनाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम की तरह बरता इसलिए यह धीरे-धीरे ऐसी हो गयी कि सभी को उसमें अपने लिए जगह और गुंजाइश नजर आने लगी और इससे साँचों-खाँचों में काट-बाँट कर अपनी-अपनी मीरांएँ गढ़ने का सिलसिला शुरू हो गया। धार्मिक आख्यानकार केवल उसकी भक्ति पर ठहर गये, जबकि उपनिवेशकालीन इतिहासकारों ने उसके जीवन को अपने हिसाब से प्रेम, रोमांस और रहस्य का आख्यान बना दिया। वामपन्थियों ने केवल उसकी सत्ता से नाराजगी और विद्रोह को देखा, तो स्त्री विमर्शकारों ने अपने को केवल उसके साहस और स्वेच्छाचार तक सीमित कर लिया। इस उठापटक और अपनी-अपनी मीरां गढ़ने की कवायद में मीरां का वह स्त्री अनुभव और संघर्ष अनदेखा रह गया जो उसकी कविता में बहुत मुखर है और जिसके संकेत उससे सम्बन्धित आख्यानों, लोक स्मृतियों और इतिहास में भी मौजूद हैं। ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ में मीरां के छवि निर्माण की प्रक्रियाओं को समझने के साथ विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध उसके स्त्री अनुभव और संघर्ष के संकेतों की पहचान और विस्तार का प्रयास है। मीरां इतिहास, आख्यान, लोक और कविता में से किसी एक में नहीं है-वह इन सभी में है, इसलिए उसकी खोज और पहचान में यहाँ इन सभी ने गवाही दी है। मीरां का स्वर हाशिए का नहीं, उसके अपने जीवन्त और गतिशील समाज का सामान्य स्वर है। यह वह समाज है जो मीरां को होने के लिए जगह तो देता ही है, उसको सदियों तक अपनी स्मृति और सिर-माथे पर भी रखता है।
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Religious & Spiritual Literature, Vani Prakashan, इतिहास और संस्कृति, ऐतिहासिक नगर व सभ्यता
Rigveda : Parichaya
Religious & Spiritual Literature, Vani Prakashan, इतिहास और संस्कृति, ऐतिहासिक नगर व सभ्यताRigveda : Parichaya
ऋग्वेद आदिम मानव सभ्यता के बाद का विकास है। लेकिन इसमें तत्कालीन सभ्यता के पहले के भी संकेत हैं। ऋग्वेद में इतिहास है, ऋग्वेद इतिहास है। प्राचीनतम काव्य है। प्राचीनतम दर्शन है। प्राचीनतम विज्ञान है। इसमें प्राचीनतम कला और रस-लालित्य है। प्राचीनतम सौन्दर्यबोध भी है। अतिरिक्त जिज्ञासा है। सुख आनन्द की प्यास है। ऋग्वेद में भरापूरा इहलोकवाद है और आध्यात्मिक लोकतन्त्र भी है। भारत के आस्तिक मन में यह ईश्वरीय वाणी है और अपौरुषेय है। वेद वचन अकाट्य कहे जाते हैं। अन्य विश्वासों की तरह यहाँ ईश्वर के अविश्वासी नास्तिक नहीं हैं। नास्तिक-आस्तिक के भेद वेद विश्वासअविश्वास से जुड़े हैं। जो वेद वचनों के निन्दक हैं, वे नास्तिक हैं। वेद वचनों को स्वीकार करने वाले आस्तिक हैं। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति और दर्शन का आदि स्रोत है। विश्व मानवता का प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख है। प्रायः इसे रहस्यपूर्ण भी बताया जाता है। इसके इतिहास पक्ष की चर्चा कम होती है। इसका मूल कारण इतिहास की यूरोपीय दृष्टि है। भारत में इतिहास संकलन की पद्धति यूरोप से भिन्न है। स्थापित यूरोपीय दृष्टि से भिन्न दृष्टि काल मार्क्स ने भी अपनायी थी। इस दृष्टि से ऋग्वेद का विवेचन भारतीय मार्क्सवादी विद्वानों ने भी किया है। ऋग्वेद साढ़े दस हज़ार मन्त्रों वाला विशालकाय ग्रन्थ है। आधुनिक अन्तर्ताना-इंटरनेट तकनीकी से बेशक इसकी सुलभता आसान हुई है लेकिन इसका सम्पूर्ण अध्ययन परिश्रम साध्य है।
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Vani Prakashan, अन्य कथा साहित्य, इतिहास और संस्कृति, ऐतिहासिक उपन्यास
Patna Khoya Hua Shahar
अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले बुद्ध ने पाटलिपुत्र की महानता की भविष्यवाणी की थी। कालान्तर में पाटलिपुत्र मगध, नन्द, मौर्य, शुंग, गुप्त और पाल साम्राज्यों की राजधानी बनी। पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात प्राचीन पटना की स्थापना 490 ईसा पूर्व में मगध सम्राट अजातशत्रु ने की थी। गंगा किनारे बसा पटना दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में से एक है जिनका एक क्रमबद्ध इतिहास रहा है। मौर्य काल में पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया था। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था। मौर्यों के वक़्त से ही विदेशी पर्यटक पटना आते रहे। मध्यकाल में विदेशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई। यह वह वक़्त था जब पटना की शोहरत देश की सरहदों को लाँघ विदेशों तक पहुँच गयी थी। यह मुग़ल काल का स्वर्णिम युग था। पटना उत्पादन और व्यापार के केन्द्र के रूप में देश में ही नहीं विदेशों में भी जाना जाने लगा। 17वीं सदी में पटना की शोहरत हिन्दुस्तान के ऐसे शहर के रूप में हो गयी थी, जिसके व्यापारिक सम्बन्ध यूरोप, एशिया और अफ्रीका जैसे महादेशों के साथ थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी और ब्रिटिश इण्डिया में पटना और उसके आसपास के इलाकों में शोरा, अफीम, पॉटरी, चावल, सूती और रेशमी कपड़े, दरी और कालीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था। पटना के दीघा फार्म में तैयार उत्पादों की जबरदस्त माँग लन्दन के आभिजात्य लोगों के बीच थी। विदेशी पर्यटक और यात्री कौतूहल के साथ पटना आते। उनके संस्मरणों में तत्कालीन पटना सजीव हो उठता है। इस पुस्तक में उनके संस्मरण और कई अन्य रोचक जानकारियाँ मिलेंगी।
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
DELHI RIOTS: Conspiracy Unravelled
Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)DELHI RIOTS: Conspiracy Unravelled
The Truth of Delhi Riots is Unearthing Gradually
“As per our plan, on February 24 we called several people and told them how stones, petrol bombs and acid bottles are to be thrown. I shifted my family to another place. At about 1.30 p.m. in the afternoon on February 24 we began pelting stones.”
Only those who are not familiar with the real face of the Aam Aadmi Party will be surprised or shocked by the above statements made by the now expelled counsellor Tahir Hussain. The Aam Aadmi Party used its network of people associated with mosques and madarsas and relied on leaders such as Tahir Hussain and Amanat Ulla Khan to bag the Muslim votes in Delhi. In return for the votes, it seems that the party gave the license to a specific community to consign north east Delhi to flames.
Now that the chargesheet has been finalised by the Delhi Police about the riots that took place in East Delhi, it will be a fallacy to disassociate the riots that took place in places such as Jafrabad, Maujpur, Babarpur, Gokul Puri, Karawal Nagar, Bhajanpura, Yamuna Vihar from the violence that took place during the anti-CAA protests.
The violence that occurred during the anti-CAA protests in places such as Shaheen Bagh, Jamia Nagar, Seelampur were actually the precursor to a big riot.
The riot that took place in the north-east parts of Delhi during US President Donald Trump’s visit from February 23-26, 2020. For the violence that was orchestrated during these riots, the work of collecting empty bottles, stones and storing these on rooftops of houses had begun on February 4. Many people of the Muslim community had filled petrol in their vehicles so that this fuel could later be used for making petrol bombs. In many Muslim families, pamphlets about such riots were distributed with instructions on how to deal with Hindus. It is not rocket science to understand that the Muslim community was already prepared for the riots that broke out in north-east Delhi. Hindus did not get a chance to get their act together. Slowly the conspiracy behind the riots is unraveling and the lies perpetrated by the Communist ecosystem are falling flat.SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Delhi Dange : Sazish ka Khulasa
Prabhat Prakashan, इतिहास और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रDelhi Dange : Sazish ka Khulasa
सामने आ रहा है, दिल्ली दंगों का सच : धीरे-धीरे
‘अपनी योजना के तहत 24 फरवरी को हमने कई लोगों को बुलाया और उन्हें बताया कि कैसे पत्थर, पेट्रोल बम और एसिड बोतल फेंकने हैं। मैंने अपने परिवार को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया। 24 फरवरी, 2020 को दोपहर करीब 1.30 बजे हमने पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।’
आम आदमी पार्टी से निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन के इस बयान को सुनकर वे लोग चौंक सकते हैं जो आम आदमी पार्टी के चरित्र से परीचित नहीं हो। आम आदमी पार्टी ने मसजिदों और मदरसों के अपने अच्छे नेटवर्क और ताहिर हुसैन अमानतुल्ला खान जैसे नेताओं के दम पर ही पूरी दिल्ली के एकएक मुसलमान का वोट हासिल कर लिया था। जिसके बदले में मानों उत्तरपूर्वी दिल्ली को आग में झोंक देने का लाइसेंस समुदाय विशेष को दे दिया था।
अब जब उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों पर चार्जशीट दिल्ली पुलिस तैयार कर चुकी है। उसके बाद 23 फरवरी को मौजपुर से भड़के हिंदू विरोधी दंगों को याद करते हुए, जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, गोकुलपुरी, करावल नगर, भजनपुरा, यमुना विहार में आग की तरह फैली उस हिंसा को सी.ए.ए. के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा से अलग करके देखना भूल होगी। शाहीन बाग, जामिया नगर, सीलमपुर में सी.ए.ए. के विरोध में फैलाई गई हिंसा, वास्तव में बड़े दंगे का पूर्वाभ्यास ही थी। जिस बड़े दंगे को उत्तरपूर्वी दिल्ली में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आगमन पर 23-26 फरवरी, 2020 तक अंजाम दिया गया।
इस हिंसा के लिए 4 फरवरी से ही कई घरों में कबाड़ी से शराब और कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतलें, पत्थर लेकर छत पर इकट्ठा करना शुरू कर दिया गया था। मुस्लिम समुदाय ने अपनी गाडि़यों में फुल पेट्रोल, डीजल भरकर रख लिया था ताकि बोतलों में पेट्रोल डीजल भरकर बम की तरह उसे वक्त आने पर इस्तेमाल किया जा सके।
मुस्लिम परिवारों में ऐसे परचे दंगों से पहले बाँट दिए गए जिसमें दंगों की स्थिति में हिंदूओं से निपटने की तरकीब लिखी गई थी। इन सारी बातों को देखने के बाद यह समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में होनेवाले दंगों के लिए यमुना पार का मुस्लिम समुदाय पहले से तैयार था। जबकि हिंदूओं को इससे सँभलने का बिलकुल मौका नहीं मिला।
अब धीरे-धीरे दिल्ली दंगों की साजिश का सच सामने आ रहा है, जिसकी वजह से वामपंथी इको सिस्टम का झूठ चल नहीं पा रहा।SKU: n/a