ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Aaj Bhi Khare Hain Talab
आज भी खरे हैं तालाब : विश्वभर में बुद्धिजीव निरन्तर दोहरा रहे हैं कि तृतीय विश्वयुद्ध पानी के कारण होगा। राजस्थान में वर्षा का औसत अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है इसलिए जल-संग्रहण के अनेक उपाय परम्परागत रूप से किये जा रहे हैं। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लेखक अनुपम मिश्र ने गहराई से राजस्थान के परम्परागत जल संग्रहण के उपायों का विवेचन किया है। प्रस्तुत ग्रंथ में राजस्थान के विभिन्न तालाबों का शोधपरक विवरण प्रस्तुत किया है। अनुपम मिश्र के लेखन की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि उन्होंने सुदूर अंचलों में स्थित तालाबों का सूक्ष्मता से अध्ययन कर उनकी समस्त विशेषताओं को प्रकट करते हुए रोचक शैली में विवरण प्रस्तुत किया है। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ की सार्थकता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक अल्प अवधि में ही इसकी लगभग एक लाख प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। निःसंदेह राजस्थान के जल स्रोतों से संबंधित यह पुस्तक इस दिशा में शोध करने वाले विषयों के साथ ही जल-संग्रहण संबंधी चेतना जागृत करने वालों के लिए भी अत्यन्त ही उपयोगी एवं लाभप्रद सिद्ध होगी।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Aitihasik Kalkram mein Gurjar
ऐतिहासिक कालक्रम में गुर्जर : भारतीय संस्कृति को लम्बे समय तक विदेशी आक्रांताओं के आघातों से सुरक्षित रखने का दायित्व गुर्जर शासकों ने बखूवी निभाया है। इस वीर जाति ने प्रागैतिहासिक काल से आज तक अपने शौर्य से भारतीय संस्कृति को अक्षुण बनाये रखने हेतु हर कालखण्ड में महती भूमिका निभाई है। समय के थपेड़ो में कतिपय गुर्जर समूह इस्लाम या अन्य धर्मावलम्बी बनें, परन्तु वहाँ भी इन्होनें अपनी संस्कृति व स्वरुप को नही छोड़ा।
इस वीर जाति की शौर्य गाथाओं के मूल से इनकी उत्पति एवं विकास, कालान्तर में राजनैतिक पतन तक की तत्व तथा विवेचना करने का प्रयास इस पुस्तक में संकलित आलेखों में किया गया है।
यह पुस्तक सुधि पाठकों की उत्कंठा को पूर्ण करने का प्रयास है, जो इतिहास में भ्रान्तियों से मुक्त इतिहास के अध्ययन की जिज्ञासा रखते हैं। पुस्तक में प्रकाशित आलेख, प्रस्तुतकर्ता विद्वानों का स्वयं का शोध प्रयत्न है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Architecture of Rajasthan
This book is about the historic city of Jaipur, the pink city of India. It is a unique city designed and established by Sawai Jai Singh II in 1727 A.D. The grandeur blueprint of this walled city has largely remained unchanged until now, even after 293 years. Despite various ups and downs, the city continued to flourish as a trade and religious center till mid 20th century.
Jai-Nagar, stamped as the World Heritage City by UNSECO, was fabricated in a blooming and charming architectural style, which is unique in many senses. It is a testimony of the intellect of Sawai Jai Singh and his successors. It is their inherent passion for art and architecture that unfolds into the magnificent buildings of this walled city.
The book will explore the palaces, Havelis, temples, gardens, kharkhanas, bawaris, streets, mohallas, etc. of the walled city, along with the forts in its vicinity. It is an attempt to bring forward the Rajput architectural features, and also highlight the impact of Mughal architecture. In fact, in Jaipur, the regional art and architectural traditions of Rajputs perfectly blended with the Mughal architectural traditions and emerged as the Dhoondhari style of architecture.SKU: n/a -
Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Awadh Ki Tharu Janjati : Sanskar Evam Kala
‘आदिवासी थारू जनजाति’ भारत-नेपाल सीमा के दोनों तरफ़ तराई क्षेत्र में घने जंगलों के बीच निवास करती है जो कि भारत की प्रमुख जनजातियों में से उत्तर भारत की एक प्रमुख जनजाति है। उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के तीन ज़िलों लखीमपुर खीरी, बहराइच व गोण्डा में थारू जनजाति निवास करती है। जहाँ अवध क्षेत्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का जन्म स्थान पावन धाम प्राचीन धार्मिक धर्म नगरी है और मेरा परम सौभाग्य है कि मेरा जन्म अवध के अयोध्या में हुआ है। वहीं अवध क्षेत्र की एक विशेषता रही है। थारू जनजाति का आवासित होना उनकी समृद्धि, संस्कृति व लोक परम्परा से युक्त उनका इतिहास गौरवशाली होना इनकी कला और संस्कृति का हमारी लोक संस्कृति के साथ घनिष्ठ सम्पर्क है। थारू जनजाति की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, लोक कला अपने आप में लालित्यपूर्ण विधा है। इसका प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक विस्तार है लेकिन कतिपय कारणों से यह अभी तक समृद्ध कला प्रकाश में नहीं आयी है। इनकी संस्कृति, सभ्यता अभी तक पूरे अवध और उसके बाहर भी प्रकाश में नहीं आयी है और ना ही प्रचार-प्रसार हुआ है। मेरा लक्ष्य है कि थारू जनजाति की लोक कला संस्कृति और लोक जीवन पद्धति जो कि हमारे अवध का एक गौरवशाली अंग है, इस पुस्तक के माध्यम से जन सामान्य में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। थारू जनजाति एक जनजाति ही नहीं एक लोक परम्परा है, इसको एक जाति के रूप में जब हम देखते हैं, तो पाते हैं कि इन्होंने हमारी एक विरासत को सँभाल कर रखा है जो अभी तक बची हुई और सुरक्षित है। इस संस्कृति, कला और परम्परा को नयी पीढ़ी तक पहुँचाने, सुरक्षित रखने के उद्देश्य से यह सर्वेक्षण का कार्य किया गया है।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Baneda Sangrahalaya ke Dastawej – Vol. 4
प्रो. के.एस. गुप्ता ने बनेड़ा दस्तावेजों के 1758 ई. से 1818 ई. तक तीन भाग पूर्व में प्रकाशित किए है, जिनका इतिहास जगत में अच्छा स्वागत हुआ है। इन दस्तावेजों के आधार पर प्रसिद्ध इतिहासवेत्ताओं की अनेक मान्यताओं का पुनर्वलोकन की आवश्यकता प्रतीत हुई।
विश्वास है कि दस्तावेजों का चतुर्थ भाग भी भारतीय इतिहास में नई मान्यतायें स्थापित करेगा। 1857 की क्रान्ति सम्बंधित दस्तावेजों में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं का दिग्दर्शन होता है। विशेषतः क्रान्ति की समाप्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने जिस अमानुषिकता का परिचय दिया उसका विवरण इस ग्रन्थ की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
मुझे विश्वास है कि मेवाड़ राजस्थान ही नहीं अपितु भारतीय इतिहास लेखन में ये दस्तावेज आधारभूत स्रोत के रूप में प्रतिष्ठापित होंगे।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bauddha Kapalika Sadhana Aura Sahitya
हिन्दी के आदिकालीन साहित्य और भक्तिकालीन साहित्य की भूमिका प्रस्तुत करनेवाली बौद्ध सिद्धों की अपभ्रंश रचनाओं का अध्ययन केवल हिन्दी ही नहीं सम्पूर्ण समकालीन साहित्य, किंबहुना तत्कालीन समग्र धर्मदार्शनिक एवं साधनात्मक जीवन के अध्ययन के लिए उपयोगी है; क्योंकि तंत्रदर्शन एवं साधना का अति व्यापक एवं गंभीर प्रभाव सर्वत्र दिखाई पड़ता है। इसी दृष्टि से बहुत पहले १९५८ में तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य की रचना की गई थी। यह ग्रन्थ उस अध्ययन के एक पक्ष का विस्तार है। बहुत पहले आचार्य डॉ० हजारीप्रसाद जी द्विवेदी ने अपने ग्रंथ ‘नाथ सम्प्रदाय’ में जालंधर पाद और कान्हुपा के कापालिक साधन और ‘बामारग’ की चर्चा नाथ सम्प्रदाय के परिप्रेक्ष्य में ही की थी। दूसरे उस समय बौद्धों के कापालिक साधन और दर्शन से सम्बन्धित किसी शास्त्रीय ग्रन्थ की सहायता नहीं ली गई थी। अत: बौद्धों के कापालिक तत्त्वों, साधनों, दार्शनिक सिद्धान्तों की मीमांसा भी नहीं हो पाई। यहाँ तक कि श्री स्नेलग्रोव ने हेवज्रतंत्र और उसकी टीका हेवज्रपंजिका का संपादन करके भी उसके कापालिक तत्त्वों का विस्तृत विवेचन नहीं किया और न एक पृथक् बौद्ध साधनाधारा के रूप में इसे प्रस्तुत ही किया। यह ग्रंथ बौद्ध साधना और साहित्य के अनेक अछूते, विस्मृत, तिरस्कृत और महत्त्वपूर्ण सूत्रों को एकत्रित कर उनका व्यवस्थापन करते हुए बौद्धों के कापालिकतत्त्व का स्वरूप प्रस्तुत करता है। सामान्यतया केवल शैवों में ही कापालिकों की स्थिति माननेवालों को इस ग्रंथ से नया प्रकाश, नई सूचनाएँ एवं भारतीय कापालिक साधना का एक नया स्वरूप देखने को मिलेगा। कापालिक साधना के विषय में फैली अनेक भ्रांतियों का निराकरण भी होगा, इसमें संदेह नहीं।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bharat Darshan (HB)
-15%Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBharat Darshan (HB)
विश्व में अपने वैभव के लिए ख्यातिप्राप्त किसी भी राष्ट्र के उस वैभव की प्राप्ति के लिए किए हुए प्रयत्नों का अध्ययन ऐसे वैभव की चाह रखनेवाले सभी राष्ट्रों को बहुत बोधप्रद होता ही है। ऐसे उपलब्ध सभी अध्ययन (एक बोध) निरपवाद रूप से प्रदान करते हैं कि राष्ट्र की वैभवप्राप्ति, राष्ट्र के भाग्योदय की शिल्पकार सदा ही उस राष्ट्र की सामान्य प्रजा होती है। राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन, विचार एवं तत्त्वज्ञान, राजतंत्र और नेतागण, मान्यताएँ आदि बातें केवल सहायक ही होती हैं, जबकि सामान्य जनमानस का पुरुषार्थ ही राष्ट्र के भाग्योदय का प्रमुख माध्यम होता है।
स्व की जागृति के बिना व्यक्ति और समाज के पुरुषार्थ का उदय नहीं हो सकता है। हमें अपने राष्ट्र का भूगोल, प्राकृतिक संसाधन, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विशेषताएँ, गौरवशाली इतिहास एवं पूर्वजों के पुरुषार्थ-समर्पण आदि का वास्तविक ज्ञान होने से ही व्यक्ति एवं समाज को विरासत में मिले संसाधन एवं क्षमताएँ वर्तमान स्थिति की कारण बनीं। अपने गुणों की परंपराओं को जानने से ही राष्ट्र के भाग्योदय का पथ तथा दृढ़तापूर्वक उस पथ पर चलकर ध्येय प्राप्त करने का संकल्प, विजिगीषा वृत्ति तथा आत्मविश्वास एवं संबल प्राप्त होता है।
‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में देवस्तुति, नम्र निवेदन, भौगोलिक स्थिति, पुण्य स्थलों का स्मरण, प्राचीन वाङ्मय, धार्मिक पंथ एवं दर्शन, उन्नत विज्ञान, प्राचीन परंपराएँ, भुवनकोश एवं वैदिक-कालीन, रामायणकालीन, महाभारतकालीन विश्व रचना एवं संस्कृति, भारतवर्ष के दिग्विजयी राजाओं एवं राज्यों का विस्तार, संघर्षकालीन इतिहास, ध्येय समर्पित पूर्वजों का स्मरण, वर्तमान भौगोलिक परिदृश्य एवं राजनीतिक राजव्यवस्था, साथ ही अविस्मरणीय उपलब्धियाँ एवं पुनः संकल्प आदि का इस ‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में समीचीन रूप से विवेचन उपलब्ध है।
भारत की प्राचीन एवं अर्वाचीन गौरवशाली परंपराओं एवं वैज्ञानिक स्वप्रमाण तथ्यों का यह सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादक ग्रंथ है। वस्तुतः भारत राष्ट्र को समझना है तो ‘भारत दर्शन’ का अध्ययन करना ही होगा।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bharat Darshan (PB)
-15%Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBharat Darshan (PB)
विश्व में अपने वैभव के लिए ख्यातिप्राप्त किसी भी राष्ट्र के उस वैभव की प्राप्ति के लिए किए हुए प्रयत्नों का अध्ययन ऐसे वैभव की चाह रखनेवाले सभी राष्ट्रों को बहुत बोधप्रद होता ही है। ऐसे उपलब्ध सभी अध्ययन (एक बोध) निरपवाद रूप से प्रदान करते हैं कि राष्ट्र की वैभवप्राप्ति, राष्ट्र के भाग्योदय की शिल्पकार सदा ही उस राष्ट्र की सामान्य प्रजा होती है। राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन, विचार एवं तत्त्वज्ञान, राजतंत्र और नेतागण, मान्यताएँ आदि बातें केवल सहायक ही होती हैं, जबकि सामान्य जनमानस का पुरुषार्थ ही राष्ट्र के भाग्योदय का प्रमुख माध्यम होता है।
स्व की जागृति के बिना व्यक्ति और समाज के पुरुषार्थ का उदय नहीं हो सकता है। हमें अपने राष्ट्र का भूगोल, प्राकृतिक संसाधन, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विशेषताएँ, गौरवशाली इतिहास एवं पूर्वजों के पुरुषार्थ-समर्पण आदि का वास्तविक ज्ञान होने से ही व्यक्ति एवं समाज को विरासत में मिले संसाधन एवं क्षमताएँ वर्तमान स्थिति की कारण बनीं। अपने गुणों की परंपराओं को जानने से ही राष्ट्र के भाग्योदय का पथ तथा दृढ़तापूर्वक उस पथ पर चलकर ध्येय प्राप्त करने का संकल्प, विजिगीषा वृत्ति तथा आत्मविश्वास एवं संबल प्राप्त होता है।
‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में देवस्तुति, नम्र निवेदन, भौगोलिक स्थिति, पुण्य स्थलों का स्मरण, प्राचीन वाङ्मय, धार्मिक पंथ एवं दर्शन, उन्नत विज्ञान, प्राचीन परंपराएँ, भुवनकोश एवं वैदिक-कालीन, रामायणकालीन, महाभारतकालीन विश्व रचना एवं संस्कृति, भारतवर्ष के दिग्विजयी राजाओं एवं राज्यों का विस्तार, संघर्षकालीन इतिहास, ध्येय समर्पित पूर्वजों का स्मरण, वर्तमान भौगोलिक परिदृश्य एवं राजनीतिक राजव्यवस्था, साथ ही अविस्मरणीय उपलब्धियाँ एवं पुनः संकल्प आदि का इस ‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में समीचीन रूप से विवेचन उपलब्ध है।
भारत की प्राचीन एवं अर्वाचीन गौरवशाली परंपराओं एवं वैज्ञानिक स्वप्रमाण तथ्यों का यह सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादक ग्रंथ है। वस्तुतः भारत राष्ट्र को समझना है तो ‘भारत दर्शन’ का अध्ययन करना ही होगा।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Ke Poorva Kalik Sikke
भारत के पूर्व-कालिक इतिहास-निरूपण के निमित्त सिक्कों का सर्वाधिक महत्त्व है। इन सिक्कों पर अंकित आलेखों के माध्यम से अज्ञात तथ्य प्रकाश में आये और संदिग्ध समझे जाने वाले तथ्यों की पुष्टिï भी हुई। इस प्रकार सिक्कों के माध्यम से प्राप्त जानकारी से इतिहास का प्रामाणिक स्वरूप प्रकाश में आया। भारत में अन्तर्राष्टï्रीय ख्याति के मुद्राशास्त्री डॉ० परमेश्वरीलाल गुप्त ने इस ग्रन्थ में पूर्वकालीन (आरम् भ से 12वीं शती ई०) सिक्कों का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। सिक्कों के माध्यम से तत्कालीन इतिहास की जानकारी किस प्रकार होती है, इसका विस्तृत विवेचन पुस्तक में किया गया है। इतिहास तथा पूर्व-कालिक सिक्कों के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक में सिक्कों के अनेक चित्र सम्मिलित किये गए हैं।
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Gram
भारत के ग्राम समुदायों में तेजी से सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। सन 1947 में स्वतन्त्रता मिलने के बाद से आधुनिकीकरण की दिशा में देश ने महत्त्वपूर्ण चरण उठाये हैं: बहु-उद्देशीय नदी-घाटी योजनाएँ, कृषि को यंत्रीकृत करने की योजनाएँ और नये उद्योगों को विकसित करने के कार्यक्रम सम्बन्धी कई राष्ट्रीय योजनाएँ कार्यान्वित हुईं जिन्होंने कुछ ही दशाब्दियों में ग्रामीण भारत का स्वरूप बदल दिया। भारतीय ग्राम समुदायों के परम्परागत जीवन और उनमें दीख पड़ने वाली सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्तियों का अध्ययन न केवल समाज के अध्येताओं के लिए, वरन् योजनाकारों, प्रशासकों और उन सबके लिए जिनकी मानव कल्याण और सामाजिक परिवर्तन में रुचि है, महत्त्व का है। यह पुस्तक एक भारतीय ग्राम की सामाजिक संरचना और जीवन-विधि का वर्णन प्रस्तुत करती है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bharatiya Rahasyavad
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रBharatiya Rahasyavad
प्रो० राधेश्याम दूबे मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के अध्येता हैं। भक्तिकालीन कवियों की रचनाओं का अध्ययन करते समय लेखक ने भारतीय रहस्यवाद को ध्यान में रखा है। वस्तुत: भारतीय अध्यात्मविद्या अथवा ब्रह्मïविद्या ही भारतीय रहस्यवाद है। प्राचीन भारतीय वाङ्मय में रहस्यवाद के अर्थ में अध्यात्मविद्या, ब्रह्मïविद्या, उपनिषद्, गुह्यïविद्या, गुह्यïमार्ग आदि शब्दों के प्रयोग मिलते हैं। योग, भक्ति, कर्म और ज्ञान – ये भारतीय अध्यात्मसाधन के प्रधान उपाय हैं। अत: साधन की दृष्टि से विचार करते हुए लेखक ने भारतीय रहस्यवाद को चार भेदों में विभक्त कर (जैसे-योगपरक, रहस्यवाद, भक्तिपरक रहस्यवाद, ज्ञानपरक, रहस्यवाद, कर्मपरक रहस्यवाद) उनकी व्याख्या की है। भारतीय रहस्यवाद का विकासात्मक स्वरूप प्रस्तुत करते हुए विद्वान लेखक ने उसके तात्त्विक स्वरूप की विवेचना की है। इस प्रकार इस ग्रन्थ के अध्ययन द्वारा रहस्यवाद अथवा भारतीय रहस्यवाद के सन्दर्भ में हिन्दी के पाठकों के मन में जो भ्रम की स्थिति बनी रहती है, वह दूर हो जाती है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Rashtravad : Swaroop Aur Vikas
विषय-सूची 1. सम्पादकीय : कृष्णदत्त द्विवेदी / 2. भारतीय राष्ट्रीयता का विकास और भारतीय संविधान : प्रोफेसर आर० के० मिश्र / 3. भारतीय राष्ट्रवाद का स्वरूप : डॉ० पीताम्बर दत्त कौशिक / 4. राष्ट्रवाद : सम् प्रत्ययात्मक विश्लेषण : डॉ० श्यामधर ङ्क्षसह / 5. राष्ट्रवाद की वैचारिकी एवं भारतीय राष्ट्रवाद -समाज ऐतिहासिक विश्लेषण : डॉ० जयकान्त तिवारी / 6. परिवर्तन के परिवेश में राष्ट्रीय चरित्र की समस्या : डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव एवं० डॉ० प्रदीप कुमार ङ्क्षसह / 7. शिक्षा राष्ट्रीयता और महामना मालवीय : डॉ० कृष्णदत्त तिवारी / 8. साम्प्रदायिकता – भारतीय राष्ट्रवाद का कटु पक्ष : डॉ० जे० एन० ङ्क्षसह एवं डॉ० आनन्द प्रकाश ङ्क्षसह / 9. भारतीय राष्ट्रवाद : निर्माण प्रक्रिया एवं समस्याएँ -शिवदत्त त्रिपाठी / 10. भारतीय राष्ट्रवाद एवं अस्मिता के संकट की चुनौतिया : डॉ० पी० एन० पाण्डेय / 11. राष्ट्रीय निर्माण और भारतीयकरण-संकल्पना : डॉ० जनार्दन उपाध्याय 12. भारतीय राष्ट्रवाद -अध्ययन दृष्टिकोण और प्रवृत्तियाँ : राधेश्याम त्रिपाठी / 13. सुभाषचन्द्र बोस और उग्र राष्ट्रवाद : डॉ० कौशल किशोर मिश्र / 14. भारतीय राष्ट्रवाद -कुछ विचारणीय तथ्य : डॉ० शिव बहादुर ङ्क्षसह / 15. राष्ट्रमण्डल में नेहरू का भारत : डॉ० शेफाली बनर्जी / 16. भारत में उपराष्ट्रवादी आन्दोलन : डॉ० अरविन्द कुमार जोशी
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Rajasthani Granthagar, अन्य कथा साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhartiya Sangeet Ke Puratattvik Sandarbh
Rajasthani Granthagar, अन्य कथा साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBhartiya Sangeet Ke Puratattvik Sandarbh
भारतीय संगीत के पुरातात्विक संदर्भ : वैदिक संहिताओं, पौराणिक-तांत्रिक व बौद्ध-जैनाचार्यों की परंपराओं, राज्याश्रय, मंदिर तथा मठ एवं संगीताचार्यों के मत-मतान्तर से बने विभिन्न सम्प्रदायों के माध्यम से संगीत के शास्त्र और प्रायोगिक पक्ष के क्रमिक विकास के इतिहास को जानने के लिये भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली की सीनीयर फैलोशिप के अन्तर्गत अभिलेखीय एवं साहित्य-संदर्भों की अन्वेषणा के फलस्वरूप उपलब्ध हुए महत्वपूर्ण संदर्भों की इस पुस्तक में प्रस्तुत की गयी चर्चा भारतीय संगीत का बृहत् इतिहास लिखने के लिये भूमिका सिद्ध होगी। शास्त्र ग्रंथों की रचना, सम्प्रदायों का आविष्कार, श्रुति-मूर्छना-गमक एवं रागों के बदलते स्वरूप, सप्तक की स्थापना, प्रबंध और आलापी, जनाश्रयी लोककलाओं, व्यावसायिक और अव्यावसायिक साधना आदि विभिन्न आयामों के अध्ययन के लिये यह चर्चा आधारशिला होगी। वर्तमान हिन्दुस्तानी संगीत, किसी विदेशी परंपरा का मुखापेक्षी न होकर अपनी ही पूर्व-परंपरा का अधुनातन विकसित रूप है, यह जानने के लिये प्रयास उपयोगी होगा।
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Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhartiya Sanskriti ka Pravah
Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhartiya Sanskriti ka Pravah
लेखक ने इस पुस्तक में भारत की संस्कृति के जीवन की गाथा सुनाने का यत्न किया है। भारत युग-युगांतरों के परिवर्तनों, क्रांतियों और तूफानों में से निकलकर आज भी उसी संस्कृति का वेष धारण किए विरोधी शक्तियों की चुनौतियों का उत्तर दे रहा है।
यद्यपि सदियों से काल चक्र हमारा शत्रु रहा है, तो भी हमारी हस्ती नहीं मिटी। इसकी तह में कोई बात है, वह बात क्या है? लेखक ने इन प्रश्नों का उत्तर देने का यत्न किया है।
यदि अतीत का अनुभव भविष्य का सूचक हो सकता है तो हमें आशा रखनी चाहिए की भविष्य में जो भी अंधड़ आयेंगे वह हमारी संस्कृति की हस्ती को न मिटा सकेंगे।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhojraj
धाराधीश राजा भोज भारतीय ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संस्कृति और इतिहास के मानदण्ड हैं। उन्होंने तलवार के क्षेत्र में कभी समझौता नहीं किया, पर लेखनी के क्षेत्र में सदा समन्वय का मार्ग स्वीकार किया। अपने 55 वर्ष 7 मास 3 दिन के शासन काल में वे वीरता और विद्वत्ता के प्रमाण बन गये। साहित्य, ज्योतिष, आयुर्वेद, कोश, व्याकरण, राजनीति, धर्मशास्त्र, शिल्प, दर्शन, विज्ञान, रसायन आदि अपने युग के प्राय: सभी ज्ञात विषयों पर भोज ने साधिकार जो अनेक ग्रन्थ रचे उनमें से 80 से अधिक के नाम ज्ञात हैं। इनमें से प्राय: आधे ग्रन्थ सुलभ भी हैं। उनमें से उनकी कतिपय पुस्तकें ही प्रकाशित और उनमें से भी बहुत कम सुलभ हैं। राजा भोज के ताम्रपत्र, शिलालेख, भवन, मन्दिर, मूर्तियाँ आदि पुरा प्रमाण प्राप्त होते हैं। भारतीय परमपरा में विक्रमादित्य के बाद राजा भोज का ही सर्वाधिक स्मरण किया जाता है। राजा भोज न केवल स्वयं विद्वान अपितु विद्वानों के आश्रयदाता भी थे। इतिहास-पुरुष होने पर भी वे अपनी अपार लोकप्रियता के कारण मिथक पुरुष हो गये। भारतीय परमपरा के ऐसे शलाका पुरुष का प्रामाणिक परिचय इस भोजराज ग्रन्थ में संक्षेप में दिया जा रहा है। हिन्दी में यह पहली पुस्तक है जिसमें साहित्य और संस्कृति के प्रकाश स्त?भ राजा भोज को पूरी तरह से पहचानने की कोशिश की गयी है। वाग्देवी के आराधक तथा असि और मसि के धनी भोज को समझने के लिए यह ग्रन्थ सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Buddhakaleen Samajik Arthik Jeevan
प्राचीन भारत के इतिहास में महात्मा बुद्ध का उदय सामाजिक तथा धार्मिक परिवर्तन का काल था। पालि, त्रिपिटक बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों में बुद्ध काल के सामाजिक, आॢथक, धाॢमक जीवन का विस्तृत विवरण है। सुत्तपिटक में बुद्ध के प्रवचनों का संग्रह है। इस पुस्तक में सुत्तपिटक के आधार पर तत्कालीन भौगोलिक परिवेश, ग्रामीण तथा नगरीय जीवन, भवन, व्यवसाय-वाणिज्य, कृषि एवं पशुपालन आदि का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। बुद्ध के समय बौद्ध धर्म मुख्यत: उत्तर भारत के पूर्वी भाग में प्रचलित था। बुद्ध ने उत्तर भारत के लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, राजगीर, (राजगृह), सांकश्य (संकिस्मा), वैशाली, श्रावस्ती आदि स्थानों की यात्राएँ कीं, उपदेश दिए। वे सभी त्रिपिटक में संगृहीत हुए। इन ग्रन्थों में तत्कालीन ग्रामीण और नगरीय जीवन, उनके भवन, उनके निर्माण की कला, उनके निर्माण में लगे लोग, उनके उपकरण, उनके वस्त्र, आभूषण, उनके व्यवसाय, उनके आहार-विहार, बौद्ध भिक्षुओं की दिनचर्या आदि का विस्तृत विवरण है, जिसकी झलक आज भी देखने को मिलती है।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chanakya Aur Chandragupt
चाणक्य और चन्द्रगुप्त ऐसे नाम हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास और राजनीति का वर्णन अधूरा है। भारत में तो चाणक्य नीति को ही वास्तविक राजनीति माना जाता है और मगध नरेश के महामंत्री कौटिल्य की कूटनीति जगप्रसिद्ध है। चाणक्य ने मगध के राजदरबार में हुए अपमान के कारण नंदवंश का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की, और षड्यंत्र रच कर मगध नरेश धनानन्द एवं उसके आठ पुत्रों की हत्या कराने के पश्चात चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र के सिंहासन पर विराजमान करा दिया। हरिनारायण आप्टे ने अपने इस उपन्यास में इतिहास के इस काल का दर्शन कराते हुए चाणक्य और चन्द्रगुप्त के बारे में कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये हैं जिनसे इस पुस्तक की रोचकता बढ़ी है।
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Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Ke Management Sootra
Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रChanakya Ke Management Sootra
चाणक्य कूटनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अर्थशास्त्री भी थे। उनके ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में एक राज्य के आदर्श अर्थतंत्र का विशद विवरण है और उसी में राजशाही के संविधान की रूपरेखा भी है। शायद विश्व में चाणक्य का ‘अर्थशास्त्र’ विधि-विधानपूर्वक लिखा गया राज्य का पहला संविधान है।
चाणक्य ने राजनीति को अर्थ दिया, कूटनीति का समावेश किया, दाँव-पेंच के गुर सिखाए, समाज को एक दिशा दिखाई तथा नागरिकों को आचार-संहिता दी। टुकड़ों में बँटे देश को एक विशाल साम्राज्य बनाया तथा सिकंदर के विश्व-विजय के सपने को भारत में ही दफना दिया और एक साधारण व्यक्ति को राह से उठाकर मगध का सम्राट् बनाकर देश की समृद्धि में श्रीवृद्धि की।
चाणक्य विश्व के प्रथम मैनेजमेंट गुरु थे। उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में कुशल प्रबंधन का रास्ता दिखाया। उनके बताए सूत्रों और जीवन-मंत्रों के आधार पर आज भी कैसे अपने जीवन का सही प्रबंधन करके हम सफल हो सकते हैं, इसी बात को इस पुस्तक के जरिए बताने का प्रयास किया गया है। शासन, राज्य, परिवार, समाज, वित्त, सुरक्षा—सभी विषयों पर प्रस्तुत हैं महान् आचार्य चाणक्य के मैनेजमेंट सूत्र, जो आपकोे जीवन के संघर्षों से जूझने की शक्ति प्रदान करेंगे।
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Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Neeti (Eng)
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Chanakya was an Indian teacher, philosopher and royal advisor. He managed the first Maurya emperor Chandragupta’s rise to power at a young age. He is widely credited for having played an important role in the establishment of the Maurya Empire, which was the first empire in archaeologically recorded history to rule most of the Indian subcontinent.Chanakya is traditionally identified as Kautilya or Vishnu Gupta, who authored the ancient Indian poltical treatise called Arthasastra. As such, he is considered as the pioneer of the field of economics and political science in India, and his work is thought of as an important precursor to Classical Economics.Chanakya Neeti is a treatise on the ideal way of life, and shows Chanakya’s deep study of the Indian way of life. Chanakya also developed Neeti-Sutras (aphorisms—pithy sentences) that tell people how they should behave. Of these well-known 455 sutras, about 216 refer to rajaneeti (the do,s and don’ts of running a kingdom). Apparently, Chanakya used these sutras to groom Chandragupta and other selected disciples in the art of ruling a kingdom.
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