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Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
1857 Ka Swatantraya Samar
-10%Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)1857 Ka Swatantraya Samar
Vinayak Damodar Savarkar
वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंत:करणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् 1857 का यथार्थ क्या है? क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था? योजना का स्वरूप क्या था? क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा? भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘1857 का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!SKU: n/a -
Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Aadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
-10%Hindi Books, Rajkamal Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांAadi Shankaracharya Jeevan Aur Darshan (PB)
अपने अनुयायियों को मृत और आचार्य शंकर के शिष्यों और भक्तों को सुरक्षित देखकर क्रकच क्रोध से आगबबूला हो गया। उसी अवस्था में वह यतीन्द्र शंकर के समक्ष उपस्थित होकर कहने लगा, ‘‘हे नास्तिक, अब मेरी शक्ति का प्रभाव देखो। तुमने तो दुष्कर्म किये हैं, उनका फल भोगो।’’ इतना कहकर वह हाथ में मनुष्य की खोपड़ी लेकर आँख मूँदकर ध्यानमुद्रा में खड़ा हो गया। वह भैरव-तंत्र का प्रकाण्ड पंडित था। उसकी इस क्रिया के प्रभाव से रिक्त खोपड़ी मदिरा से भर गई। उसने आधी पी ली और पुनः ध्यानमुद्रा में स्थित हुआ। इतने में ही क्रकच के सम्मुख नरमुण्डों की माला पहने, हाथ में त्रिशूल लिये, विकट अट्टहास और गर्जन करते हुए, आग की लपट के समान लाल-लाल जटावाले महाकापाली भैरव प्रकट हो गये।
क्रकच ने अपने इष्टदेव को देखकर प्रसन्न भाव से प्रार्थना की, ‘‘हे भगवन्, आपके भक्तों से द्रोह रखने वाले इस शंकर को अपनी दृष्टिमात्र से भस्म कर दीजिए।’’ क्रकच की प्रार्थना सुनकर महाकापाली ने उत्तर दिया, ‘‘अरे दुष्ट, शंकर तो मेरे अवतार हैं। इनका वध करके, क्या मैं अपना ही वध करूँ? क्या तुम मेरे शरीर से द्रोह करते हो?’’ ऐसा कहकर भैरव महाकापाली ने क्रोध से क्रकच का सिर अपने त्रिशूल से काट दिया।SKU: n/a -
Hindi Books, Suggested Books, Vani Prakashan, रामायण/रामकथा
Abhyuday Set Of 2 (Hindi, Narendra Kohali)
-15%Hindi Books, Suggested Books, Vani Prakashan, रामायण/रामकथाAbhyuday Set Of 2 (Hindi, Narendra Kohali)
अभ्युदय – 1
‘अभ्युदय’ रामकथा पर आधृत हिन्दी का पहला और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। ‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
‘अभ्युदय’ प्रख्यात कथा पर आधृत अवश्य है; किन्तु यह सर्वथा मौलिक उपन्यास है, जिसमें न कुछ अलौकिक है, न अतिप्राकृतिक। यह आपके जीवन और समाज का दर्पण है। पिछले पच्चीस वर्षों में इस कृति ने भारतीय साहित्य में अपना जो स्थान बनाया है, हमें पूर्ण विश्वास है कि वह क्रमशः स्फीत होता जाएगा, और बहुत शीघ्र ही ‘अभ्युदय’ कालजयी क्लासिक के रूप में अपना वास्तविक महत्त्व तथा गौरव प्राप्त कर लेगा।अभ्युदय – 2
‘अभ्युदय’ रामकथा पर आधृत हिन्दी का पहला और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। ‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
‘अभ्युदय’ प्रख्यात कथा पर आधृत अवश्य है; किन्तु यह सर्वथा मौलिक उपन्यास है, जिसमें न कुछ अलौकिक है, न अतिप्राकृतिक। यह आपके जीवन और समाज का दर्पण है। पिछले पच्चीस वर्षों में इस कृति ने भारतीय साहित्य में अपना जो स्थान बनाया है, हमें पूर्ण विश्वास है कि वह क्रमशः स्फीत होता जाएगा, और बहुत शीघ्र ही ‘अभ्युदय’ कालजयी क्लासिक के रूप में अपना वास्तविक महत्त्व तथा गौरव प्राप्त कर लेगा।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास
Bharat Ka Sangharsh: 1920-42
“1857 की क्रांति के बाद गोरों को समझ आ गया कि वे केवल बर्बर बल प्रयोग के आधार पर लंबे समय तक भारत में नहीं टिक पाएँगे, इसलिए उन्होंने देश को निहत्था करना शुरू कर दिया। हमारे पूर्वजों की दूसरी सबसे बड़ी मूर्खता और गलती यह रही कि उन्होंने अंग्रेजों की इस करतूत को सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया। अगर उन्होंने अपने हथियार इतनी आसानी से नहीं सौंपे होते तो 1857 के बाद से भारत का इतिहास संभवत: आज के इतिहास से भिन्न होता।
भारत में युवा पीढ़ी पिछले 20 सालों के अनुभव से यह सीख चुकी है कि सविनय अवज्ञा आंदोलन एक विदेशी प्रशासन को बंधक बना सकता है या पंगु तो कर सकता है, लेकिन बिना भौतिक बल के यह उसे उखाड़कर नहीं फेंक सकता या निष्कासित नहीं कर सकता। एक अंतिम चरण आएगा, जब सक्रिय प्रतिरोध सशस्त्र क्रांति में विकसित हो जाएगा, तब भारत में ब्रिटिश शासन का अंत होगा।
—इसी पुस्तक से
यह पुस्तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख राजनीतिक अध्ययन है, जिसमें उनकी स्वयं अपनी एक प्रमुख भूमिका थी। यह पुस्तक असहयोग और खिलाफत आंदोलनों के घुमड़ते बादलों से लेकर तूफान का रूप लेनेवाले ‘भारत छोड़ो’ तथा आजाद हिंद आंदोलनों तक का विशद और विश्लेषणात्मक विमर्श उपलब्ध कराती है।
नेताजी की दूरदर्शिता, चिंतन और राष्ट्रीय भाव को रेखांकित करती एक पठनीय कृति।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास
Bharat Ke Pratapi Samrat (PB)
Maj (Dr.) Parshuram Gupt
“पुराणों में दिग्विजयी सम्राटों के अनेक प्रमाण देखे जा सकते हैं। विभिन्न रूपों में आज भी उनके जीवित प्रमाण भारत सहित विश्वभर में बिखरे पड़े हैं। इनकी गौरव गाथाएँ जन-सामान्य की आस्था के केंद्र हैं, जो पग-पग पर उनका मार्गदर्शन भी करती हैं।इस पुस्तक में भगवान बुद्ध के बाद के उन विशिष्ट भारतीय सम्राटों की चर्चा की गई है, जिनकी गौरव-गाथाओं ने काल के कपाल पर अनेक गरिमामय अभिलेख अंकित किए हैं। उनकी दिग्विजयी सेनाओं ने भारत की सीमाओं के बाहर जाकर भी विजय के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन विजयों में धम्म विजय महत्त्वपूर्ण है। सम्राट् अशोक और कनिष्क जैसे सम्राटों ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई। विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य,समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, हर्षवर्धन, बप्पा रावल, ललितादित्य, मिहिर भोज, महाराणा प्रताप, महाराणा साँगा, परमार भोज, अनंगपाल, राजेंद्र चोल प्रथम, हेमचंद्र विक्रमादित्य व सम्राट् कृष्णदेव राय की अपनी-अपनी गौरव गाथाएँ हैं।इन्होंने जहाँ अपने भुजबल से संपूर्ण भारतवर्ष को एकता के सूत्र में बाँधने काप्रयास किया, वहीं इनके घोड़ों के टापों की धमक पेकिंग से लेकर गांधार तक अनुभव की गई। सम्राट् राजेंद्र चोल प्रथम के नौसैनिक बेड़े श्रीलंका से लेकर दक्षिण पूर्व एशियाके कई भागों तक पहुँचे और वहाँ भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक बने।
भारत के प्रतापी सम्राटों के शौर्य, प्रराक्रम, प्रजावत्सलता, सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों का दिग्दर्शन करवाकर गौरवबोध जाग्रत करनेवाली प्रेरक पुस्तक।”
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Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Bharat Mein Parchalit Secularvad
Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Bharat Mein Parchalit Secularvad
Dr. Shankar Sharan is an acknowledged expert on Communism. He was an Assistant Professor at NCERT and held a position at the National Book Trust. He’s the author of acclaimed Hindi books including Jihadi Atankwad Samyavad ke sau Apradh and Sahitya aur Rajniti.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
BHARATIYA SAMVIDHAN : ANAKAHI KAHANI
-20%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रBHARATIYA SAMVIDHAN : ANAKAHI KAHANI
यह पुस्तक भारतीय संविधान के ऐतिहासिक सच, तथ्य, कथ्य और यथार्थ की कौतूहलता का सजीव चित्रण करती है। संविधान की कल्पना, अवधारणा और उसका उलझा इतिहास इसमें समाहित है। घटनाएँ इतिहास नहीं होतीं, उसके नायक इतिहास बनाते हैं। 1920 से महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन की मुख्यधारा का नेतृत्व किया। उन्होंने ही स्वराज्य को पुनर्परिभाषित किया। फिर संविधान की कल्पना को शब्दों में उतारा। इस तरह संविधान की अवधारणा का जो विकास हुआ, उसके राजनीतिक नायक महात्मा गांधी हैं। वे संविधान सभा के गठन, उसे विघटित होने से बचाने और सत्ता हस्तांतरण की हर प्रक्रिया में अत्यंत सतर्क हैं। उन्होंने हर मोड़ पर कांग्रेस को बौद्धिक, विधिक, राजनीतिक और नैतिक मार्गदर्शन दिया। संविधान के इतिहास से पता नहीं क्यों, इसे ओझल किया गया है। ग्रेनविल ऑस्टिन ने जो स्थापना दी, उसके विपरीत इस पुस्तक में महात्मा गांधी की नेतृत्वकारी भूमिका का प्रामाणिक विवरण है। पंडित नेहरू बड़बोले नेता थे। खंडित चित्त से उनका व्यक्तित्व विरोधाभासी था। संविधान के इतिहास में वह दिखता है। इस पुस्तक में उसके तथ्य हैं कि कैसे उन्हें अपने कहे से बार-बार अनेक कदम पीछे हटना पड़ा जब 1945 से 1947 के दौरान ब्रिटिश सरकार से समझौते हो रहे थे। सरदार पटेल ने मुस्लिम सदस्यों को सहमत कराकर पृथक् निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कराया, जिससे संविधान सांप्रदायिकता से मुक्त हो सका। इसे कितने लोग जानते हैं! डॉ. भीमराव आंबेडकर ने उद्देशिका में बंधुता का समावेश कराया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा का भरोसा उन झंझावातों में भी विचलित होने नहीं दिया। संविधान की नींव में जो पत्थर लगे उन्हें बेनेगल नरसिंह राव ने लगाया, जिस पर इमारत बनी। उस इतिहास में एक पन्ना ‘राजद्रोह धाराओं की वापसी’ का भी है, जिसे असंवैधानिक संविधान संशोधन कहना उचित होगा। पंडित नेहरू ने यह कराया। यह अनकही कहानी भी इसमें आ गई है।
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Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatvarsh Ka Brihad Itihas (A Set of Two Books)
-10%Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharatvarsh Ka Brihad Itihas (A Set of Two Books)
पुस्तक का नाम – भारतवर्ष का बृहद इतिहास
लेखक – पंडित भगवद्दत्त जी
भारतीयों का एक प्राचीन ,गौरवशाली इतिहास रहा है | इस इतिहास का संकलन प्राचीन शास्त्रों ,शिलालेखो , सिक्को , विदेशी यात्रियों के वृतान्तो पर है | इनके दुरपयोग और दुर्विश्लेष्ण से अनेको इतिहासकारो ने भारतीय इतिहास ,भारतीय ऋषियों ,महापुरुषो पर मिथ्यारोप किये और काल गणना को अशुद्ध निकाला | भारत का इतिहास अर्वाचीन सिद्ध करने की कोशिस की |
पंडित भगवद्दत्त जी ने अथक प्रयास और अनेको स्थानों के भ्रमण ,अनेको पांडुलिपियों के अध्ययन से भारतवर्ष का बृहद इतिहास नाम पुस्तक लिखी इसके प्रथम भाग में –
प्रथम अध्याय में – इतिहास आदि उन्नीस शब्दों का यथार्थ अर्थ प्रदर्शित किया है | जिससे ज्ञात होगा कि भारत में प्राचीन काल से इतिहास का सम्मान था |
द्वितीय अध्याय में – ब्रह्मा ,नारद ,उशना आदि के काव्यो द्वारा भारत में इतिहास का असाधारण आदर दिखाया है | प्राचीन काल में इतिहास ग्रंथो की विपुलता का परिचय इस अध्याय में मिलेगा | पाश्चात्य लोगो ने तिथि निर्धारण में जो मनमानी कल्पनाये की है उनका आभास भी यहा मिलेगा |
तृतीय अध्याय में – इतिहास के विकृति के कारण पर प्रकाश डाला है |
चतुर्थ अध्याय में – भारतीय इतिहास के स्त्रोत निर्देशित है |
पंचम अध्याय में – प्राचीन वंशावलियो की सत्यता प्रमाणिक की गयी है |
षष्ठ अध्याय में – दीर्घजीवी पुरुष कौन थे ? मानव ऋषि देव आयु का रहस्य खोला गया है |
सप्तम अध्याय में – पुरातन काल मान का संक्षिप्त वर्णन है | सतयुग ,द्वापर,त्रेता कलियुग आदि युगों की शंकाओं का समाधान है |
अष्टम अध्याय में – ब्राह्मण ग्रन्थ और इतिहास का मतैक्य प्रदर्शित किया है |
नवम अध्याय में – वैदिक ग्रंथो एवं महाभारत के रचनाक्रम का स्पष्टीकरण है |
दशम अध्याय में – भारतीय इतिहास को संसार इतिहास की तालिका सिद्ध किया है | कालडिया ,मिश्र ,ईरान ,आदि देशो ने भारत से क्या क्या सीखा यह सब बताया है |
एकादश अध्याय में – भारतीय इतिहास की तिथि गणना के मूलाधार स्तम्भों का उलेख है | विंटर्निटज , जवाहरलाल नेहरु , बट श्रीकृष्ण घोष आदि की कल्पनाओं को अपास्त किया है |
द्वादश अध्याय में –“मिथ “ शब्द पर विचार किया है | पाश्चात्य इतिहासकार द्वारा मिथ बताये जाने वाले इतिहास की वास्तविकता दिखलाई है |
द्वितीय भाग में –
प्रथम अध्याय में – जलपल्लवन की घटना का उलेख किया है |
द्वितीय अध्याय में – पार्थिव उत्पति का क्रम दर्शाया है |
तृतीय अध्याय में – उद्भिज सृष्टि का प्रदुर्भाव बताया है |
चतुर्थ अध्याय में – स्वाम्भुव मन्वन्तर , ब्रह्मा आदि और सतयुग पर प्रकाश डाला है |
पंचम अध्याय में – आदियुग ,स्वाम्भुव मनु उनका राजपाठ ,मनुस्मृति आदि विषयों पर लिखा है |
षष्टम अध्याय में – पितृयुग ,मानुष नामकरण , सप्त ऋषियों की उत्पति को बताया है |
सप्तम अध्याय में – जम्बूदीप का वर्षविभाग ,भारतवर्ष ,भारत की प्रजा ,भारत का विस्तार दर्शाया है |
अष्टम अध्याय में – चाक्षुष मन्वन्तर और वेन पुत्र राजा पृथु का इतिहास बताया है |
नवम अध्याय में – सतयुग के अंत में असुरो का प्रभाव ,देवयुग ,बारह आदित्यो का परिचय .आदि विषय पर लेखन किया है |
दशम अध्याय में – दक्ष प्रजापति का जीवन वृंत लिखा है |
एकादश अध्याय में –मनु की सन्तान और भारतीय राजवंशो का विस्तार बताया है |
द्वादश अध्याय में – ऐल वंश का परिचय ,विस्तार दिया है |
त्र्योदश अध्याय में – इक्ष्वाकु से ककुत्स्थ तक वंश परिचय है |
चतुर्दश अध्याय में- ऐल पुरुरवा से पुरु तक के वंश का इतिहास है |
पंचदश अध्याय में – बृहस्पति और उशना के काव्यो का परिचय और उनमे इतिहास सामग्री का उलेख दिखाया है |
षोडश अध्याय में – कोसल जनपद अंतर्गत अनेना से मान्धाता तक वंशो का राजकाल बताया है |
सप्तदश अध्याय में –जनमजेय से मतिनार पर्यन्त तक राजाओं की वंशावली तथा ऐतिहासिकता को बताया है |
अष्टादश अध्याय में- चक्रवती शशबिंदु ,मरुत का वर्णन किया है |
एकोनविंश अध्याय में – आनवकुल ,पुरातन पंजाब का स्वरूप बताया है |
विशतित अध्याय में – ऋग्वेद सम्बन्धित लेख
एकविशतितं अध्याय में – मतिनारपुत्र तंसु से अजमीढ पर्यन्त ,चक्रवती भरत , चक्रवती सुहोत्र का इतिहास है |
द्वाविश अध्याय में – पुरुकुत्स से हरिश्चंद पर्यन्त इतिहास है |
त्रयोविश अध्याय में – यादव वंशज हैहय अर्जुन के बारे में है |
चतुर्विश अध्याय में – रोहित से श्री रामचन्द्र पर्यन्त इतिहास है | त्रेता द्वापर संधि का क्रम और इतिहास दर्शाया है |
पंचविशति अध्याय में – त्रेता के अंत की घटनाओं का उलेख है वाल्मीक आदि मुनियों का जीवनवृंत ,रचनाओं का उलेख किया है |
षडविशति अध्याय में – अजमीढ पुत्र ऋक्ष से कुरुपर्यन्त इतिहास है |
सप्तविशति अध्याय में – रामपुत्र कुश से भारतयुद्ध पर्यन्त इतिहास है |
अष्टाविशति अध्याय में – कुरु से भारतयुद्ध पर्यन्त वृतातं और कुरुसालव युद्ध का दर्शन कराया है |
ऊनत्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध से लगभग सौ वर्ष पूर्व आर्यदेश की स्थिति का उलेख है |
त्रिशत अध्याय में – विचित्रवीर्य से भारत युद्ध पर्यन्त इतिहास का लेखा जोखा है |
एकत्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध कालीन भारत देश, उदीच्य देश , मध्यदेश , प्राच्य जनपद , विन्ध्य जनपद ,दक्षिण जनपद आदि जनपदों का विस्तार की जानकारी दी हुई है |
द्वात्रिशत अध्याय में – भारत युद्ध का काल लगभग ३००० विक्रम पूर्व सिद्ध किया है |
त्रियस्त्रियशत अध्याय में – भारतयुध्द के आसपास लिखे वांगमयो का परिचय है |
चतुस्त्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध के पश्चात से आर्षकाल तक के अंत तक का ऐतिहासिक वृत्तांत लिखा है |
पंचत्रिशत अध्याय में – युद्धिष्टर के राजपाठ का उलेख है |
षटत्रिशत अध्याय में – चौबीस इक्ष्वाकु राजाओ का वर्णन है |
सप्तत्रिशत अध्याय में – दीर्घ सत्र से गौतम बुद्ध पर्यन्त इतिहास है |
अष्टात्रिशत अध्याय में – गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी आदि के काल और जीवनी का उलेख है |
नवत्रिशत अध्याय में – अवन्ति के राजवंश का उलेख किया है |
चत्वारिशत अध्याय में – वत्सराज उदयन के राजवंश का वर्णन है |
एकचत्वारिशत अध्याय में – बुद्ध से नन्दवंश तक का इतिहास है |
द्विचत्वारिशत अध्याय में –तत्कालीन अन्य राजवंशो का परिचय दिया है |
त्रिचत्वारिशत अध्याय में – नन्द राज्य का दिग्दर्शन कराया है |
चुतुश्चत्वारिशत अध्याय में –मौर्य वंश के उद्गम और राज्य का उलेख किया है |
पंचचत्वारिशत अध्याय में – शुंग राज्य वंश का उलेख है |
षटचत्वारिशत अध्याय में –यवन राज्य आक्रमण आदि समस्याओ का वर्णन है |
सप्तचत्वारिशत अध्याय में – काण्व साम्राज्य का वर्णन किया है |
अष्टचत्वारिशत अध्याय में – आंध्र साम्राज्य और उनके राजाओं का उलेख किया है |
नवचत्वारिशत अध्याय में – विक्रामादित्य प्रथम का राजवंश बताया है |
पंचाशत अध्याय में – आन्ध्रपुरीन्द्रसेन के साम्राज्य का वर्णन है |
एकपंचाशत अध्याय में – अभी तक वर्णित राज्यवंशो का कुल काल निर्धारण किया गया है |
द्विपंचाशत अध्याय में – अभीर , शक , यवन ,तुषार आदि जातियों का इतिहास लिखा है |
त्रिपंचाशत अध्याय में – गुप्त काल का काल निर्धारित किया है |
चतु पंचाशत अध्याय में – गुप्त राजकाल की अवधि बताई है |
पंचपञ्चाशत अध्याय में – गुप्त साम्राज्य का विस्तार ,वंशावली का वर्णन है |
प्रस्तुत पुस्तक इतिहास के शोधार्थियों और इतिहास विशेषज्ञों को नई दिशा प्रदान करेगी |
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatvarsh Ka Itihas
-5%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharatvarsh Ka Itihas
भारत की सर्वप्रथम सभ्यता तो वैदिक सभ्यता ही थी, जिससे भारतवर्ष का इतिहास प्रारम्भ होता है। भारतीय इतिहास के प्रथम स्रोत भी वैदिक ग्रन्थ ही हैं, जैसे वेदों की वे शाखाएँ जिनमें ब्राह्मण-पाठ सम्मिलित हैं, ब्राह्मण ग्रन्थ, कल्प सूत्र, आरण्यक और उपनिषद् ग्रन्थ!
भारत युद्ध-काल के सहस्रों वर्ष पूर्व की अनेक ऐतिहासिक घटनाएँ वर्णित हैं। भारतीय वाङ्मय में स्थान-स्थान पर इतिहास की घटनाओं का वर्णन भरा पड़ा है, लेखक ने उन घटनाओं को क्रमबद्ध करने का संक्षिप्त प्रयास किया है। भारतीय इतिहास को बहुत विकृत कर दिया गया है। सत्य को असत्य प्रदर्शित किया जाता है और असत्य को सत्य बनाने का यत्न किया गया।
इसके भयंकर दुष्परिणाम हुए-भारतीय अपना भूत ही भूल गए वे इन मिथ्या कल्पनाओं को ही सत्य समझने लगे। लेखक ने अपने अध्ययन काल में ही निश्चय कर लिया था कि वह अपना सारा जीवन भारतीय संस्कृति और इतिहास के पाठ तथा स्पष्टीकरण में लगाएंगे। आशा है इतिहास के लेखक और पाठक उनके इस परिश्रम से लाभान्वित होंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Bharatvarsh Ka Sanshipt Itihaas
Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Bharatvarsh Ka Sanshipt Itihaas
भारतवर्ष का संक्षिप्त इतिहास
रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन आरम्भ किया तो उनको ज्ञान का अथाह सागर देख उसी में रम गये। वेद, उपनिषद् तथा दर्शन शास्त्रों की विवेचना एवं अध्ययन अत्यन्त सरल भाषा में प्रस्तुत कराना गुरुदत्त की ही विशेषता है।
मनीषि स्व० श्री गुरुदत्त ने इस ग्रन्थ की रचना लगभग सन् 1979-80 में की। इसकी पाण्डुलिपि को पढ़ने से तथा उनके जीवनकाल में उनसे परस्पर वार्तालाप करने से यह आभास मिलता था कि वे भारतीय स्रोतों के आधार पर भारत वर्ष का प्रामाणिक इतिहास लिखना चाहते थे। पाश्चात्य इतिहास-लेखकों की पक्षपातपूर्ण एवं संकुचित दृष्टि से लिखे गए इतिहास की सदा उन्होंने भर्त्सना की। वे बार-बार यही कहा करते थे कि ‘‘भारतवर्ष का प्रामाणिक इतिहास लिखा जाना चाहिए।’’
अन्यान्य ग्रंन्थों की रचना करते हुए उन्होंने इतिहास पर भी लेखनी चलानी आरम्भ की और मनु आरम्भ कर राम जन्म तक का ही वे यह प्रामाणिक इतिहास लिख पाए थे कि काल के कराल हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया।SKU: n/a -
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Chhaha Swarnim Pristha (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Chhaha Swarnim Pristha (PB)
भारतीय वाड.मय में सावरकर साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता, अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्ट करने का आग्रह रखनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने इस ग्रंथ में भारतीय इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली है। विद्वानों में सावरकर लिखित इतिहास जितना प्रामाणिक और निष्पक्ष माना गया है उतना अन्य लेखकों का नहीं। प्रस्तुत ग्रंथ ‘छह स्वर्णिम पृष्ठ’ में हिंदू राष्ट्र के इतिहास का प्रथम स्वर्णिम पृष्ठ है यवन-विजेता सम्राट् चंद्रगुप्त की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ, यवनांतक सम्राट् पुष्यमित्र की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ भारतीय इतिहास का द्वितीय स्वर्णिम पृष्ठ, सम्राट् विक्रमादित्य की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ इतिहास का तृतीय स्वर्णिम पृष्ठ है। हूणांतक राजा यशोधर्मा के पराक्रम से उद्दीप्त पृष्ठ इतिहास का चतुर्थ स्वर्णिम पृष्ठ, मुसलिम शासकों के साथ निरंतर चलते संघर्ष और उसमें मराठों द्वारा मुसलिम सत्ता के अंत को हिंदू इतिहास का प स्वर्णिम पृष्ठ कह सकते हैं और अंतिम स्वर्णिम पृष्ठ है अंग्रेजी सत्ता को उखाड़कर स्वातंत्र्य प्राप्त करना। विश्वास है, क्रांतिवीर सावरकर के पूर्व ग्रंथों की भाँति इस ग्रंथ का भी भरपूर स्वागत होगा। सुधी पाठक भारतीय इतिहास का सम्यक् रूप में अध्ययन कर इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं और घटनाओं से परिचित होंगे।.
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Akshaya Prakashan, English Books, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)
Cultural Astronomy and Cosmic Order
-14%Akshaya Prakashan, English Books, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)Cultural Astronomy and Cosmic Order
This book presents an appraisal of cultural astronomy and cosmic order among sacred cities of India, illustrated with Khajuraho, Gaya, Vindhyachal, Varanasi, and Chitrakut. The book explains a fresh writ of integrity, harmony, cultural astronomical reflections, and is profusely illustrated with designs and figures of which Rana Singh is a master craftsman. – Prof. John McKim Malville, APSC, University of Colorado, Boulder, U.S.A. The book is helpful in our understanding of the visions of the cosmos underlying sacred cities of India. The book provides insights that will be useful in anthropology, archaeoastronomy, geography, and religious studies. -Padmashree’ Prof. Subhash Kak, Oklahoma State University, Stillwater, U.S.A. The author extends the study of sacred environments as embodied in geography, religious architecture, cityscapes, and ritual. This book opens valuable new areas of investigation and is destined to become a major work in the field.— Prof. Nicholas Campion, Director SCSCC, The University of Wales, Lampeter, U.K. From astronomy to mythology, Rana Singh explores the very essence of Indian worldview/ cosmology articulated in its material culture and provides further evidence defining the role of sky-watching within this ancient culture. – Prof. Stanislaw Iwaniszewski, National School of Anthropology & History, Mexico City. This ground-breaking work radically transforms our understanding of Indian ethnoastronomy and religious culture. Prof. Audrius Beinorius, Director, Centre of Oriental Studies, Vilnius University, Lithuania The book has expanded the horizon of geography interfaced with astronomy and landscape architecture, making a new path to cosmic understanding. Prof. R. B. Singh, Secretary-General IGU, University of Delhi, India. Prof. Rana P.B. Singh (b. 15-12-1950), MA, PhD, FJF & FIFSS (Japan), FAAI (Italy), FACLA (Korea), ‘Ganga- Ratna’, & ‘Koshal-Ratna’, has been Professor of Cultural Landscapes & Heritage Studies, and Head of the D
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