अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
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Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
A set of 26 books by Mahatma Anand Swami
इस सैट में सम्मिलित है-प्यारा ऋषि, अमृत पान, आनन्द गायत्री कथा, भगवान शंकर और दयानन्द, वैदिक सत्यनारायण कथा, उपनिषदों का सन्देश, मानव और मानवता, यह धन किसका है, दो रास्ते, तत्त्वज्ञान, प्रभु भक्ति, सुखी गृहस्थ, एक ही रास्ता, मानव जीवन गाथा, भक्त और भगवान, घोर घने जंगल में, प्रभु मिलन की राह, बोध कथाएँ, दंुनिया में रहना किस तरह, प्रभु दर्शन, महामन्त्र, त्यागमयी देवियाँ, माँ(गायत्री मन्त्र की महिमा), यज्ञ-प्रसाद, हरिद्वार का प्रसाद, महात्मा आनन्द स्वमी(जीवनी)
इन 26 पुस्तकों में स्वामी जी की आनन्द रस धारा का रसास्वादन कीजिए एवं सुख-सन्तोष दूसरों को भी बाँटिये।
सात पुस्तकें अंग्रेजी में भी उपलब्ध।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, अन्य कथेतर साहित्य
Athato Dharm Jigyasaa
धर्म के यथार्थ स्वरूप का दार्शनिक विवेचन-साधारण तौर पर लोगों के बीच धर्म या तो विवाद का विषय रहा है या फिर परंपरा का, जबकि यह चिंतन व विचार-विमर्श का विषय होना चाहिए। समाज में धर्म के विषय में फैली भ्रांतियों और असमंजस की स्थिति का निराकरण एवं इसके यथार्थ स्वरूप का उद्घाटन आवश्यक है। जिसकी चर्चा इस पुस्तक में तथ्य परक एवं तार्किक ढंग से की गई है।
इस पुस्तक में भौतिक तथ्यों एवं आंकड़ों का उल्लेख करके विषय को अधिक रोचक एवं प्रामाणिक बनाया गया है। धर्म ईश्वरोक्त है अर्थात् ईश्वर के द्वारा मनुष्य मात्र के लिए निर्धारित आचरण संबंधी निर्देश ही धर्म कहलाता है। प्रस्तुत पुस्तक में इस सिद्धांत का सफलता पूर्वक प्रतिपादन किया गया है।
‘धर्म का स्वरूप‘ इस पुस्तक का मुख्य अध्याय है। जिसके अंतर्गत धर्म के सूक्ष्म तत्व की विस्तृत व्याख्या की गई है। विशेष तौर पर अहिंसा, सत्य और विद्या जैसे विषयों की व्याख्या काफी रोचक और ज्ञानवर्धक है। धर्म के नाम से प्रचलित छः मुख्य संप्रदाय यह समूह (ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, नास्तिक, बौद्ध, यहूदी) का संक्षेप विवरण ‘धर्माभास‘ नामक अध्याय में दिया गया है।
ताकि पाठकों को इनके बारे में साधारण तथ्य मालूम हो सकें। यह पुस्तक बुद्धिजीवी और तार्किक पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। निःसंदेह इस उच्चकोटि की पुस्तक रचना के लिए लेखक को मेरा साधुवाद और इसकी सफलता हेतु बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
– डॉ. वागीष आचार्य, गुरुकुल एटाSKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, रामायण/रामकथा
Bhushundi Ramayan : Kathavastu tatha Sameeksha
Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, रामायण/रामकथाBhushundi Ramayan : Kathavastu tatha Sameeksha
भुशुण्डि-रामायण की चर्चा शताब्दियों से रसिक सम्प्रदाय के आचार्यों, रामचरितमानस के टीकाकारों तथा अध्यात्म-रामायण एवं रामचरितमानस के प्रमुख स्रोतों के अनुसन्धाताओं की कृतियों में निरन्तर होती आयी है। किन्तु ग्रन्थ के अप्राप्त होने से उसकी वास्तविकता या मूल तत्त्व की छान-बीन संभव नहीं हो सकी थी। प्रस्तुत ग्रन्थ का सम्पादन उपयुक्त चार प्रतियों के आधार पर किया गया है। इसमें चार खण्ड हैं—पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण जिनकी श्लोक संख्या छत्तीस हजार है। इस प्रकार इसका रूप वाल्मीकि रामायण से ड्योढ़ा बड़ा है। संस्कृत से अनभिज्ञ रामायण-साहित्य के अनुसंधाताओं के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ के मूल तत्त्वों का ग्रहण इसकी भूमिका सीमा में ही संभवना पाठकों की सुविधा के लिए अपनी हिन्दी प्रस्तावना के साथ ही सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ० राघवन् का अंग्रेजी आमुख भी दे दिया है।
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Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Buddha Aur Unaki Shiksha (Prashnottari) [PB]
Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, संतों का जीवन चरित व वाणियांBuddha Aur Unaki Shiksha (Prashnottari) [PB]
भगवान बुद्ध की शिक्षा अत्यन्त सरल है। यह प्रकृति के शाश्वत नियम पर आधारित सार्वकालिक, सार्वजनिक, सार्वभौमिक मानव मात्र के उत्थान व कल्याण के लिए एक मार्ग है। इसे धर्मविशेष कहकर संकुचित करना अनुचित है। जो भी ‘आर्य अष्टांगिक’ मार्ग पर चलेगा, अपना उत्थान कर लेगा। यह शिक्षा नैतिकता और अध्यात्म से ओतप्रोत है। इसमें न कोई कर्मकाण्ड है, न कोई आडम्बर। सहज, सीधा मार्ग है। जो इस पर चलेगा, उसे प्रतिफल तत्काल मिलता है, यही इसकी विशेषता है। चाहे कोई बुद्धिजीवी हो या कोई अनपढ़ गँवार हो, सबके लिए यह सुगम मार्ग है। कोई चल कर तो देखे। इसीलिए लोग अब इस दिशा की ओर मुड़ने लगे हैं। जीवन छोटा है, समय का नितान्त अभाव है, सामने पुस्तकों के जंगल पड़े हैं। बुद्ध के विचार कैसे जाने जायँ? हेनरी यस.आल्काट की यह पुस्तक ‘गागर में सागर’ की उक्ति को चरितार्थ करती है। इस छोटी-सी पुस्तक में चमत्कार ही चमत्कार हैं जिसमें बुद्ध भगवान् द्वारा बतलाये गये उच्च और आदर्श विचारों को प्रारम्भ में समझने तथा अनुभव करने के लिए मुख्य रूप से बौद्ध इतिहास, नियम व दर्शन का संक्षिप्त, पर पूर्ण मौलिक ज्ञान कराने का प्रमुख उद्देश्य ध्यान में रखा गया, जिससे उसे विस्तार से समझने में आसानी हो सके। वर्तमान संस्करण में बहुत से नये प्रश्न और उत्तर जोड़े गये हैं और तथ्यों को 5 वर्गों में बाँट दिया गया है -यथा : (1) बुद्ध का जीवन, (2) उनके नियम, (3) संघ, विहार के नियम, (4) बुद्धधर्म का संक्षिप्त इतिहास, इसकी परिषद् व प्रसार (5) विज्ञान से बुद्धधर्म का समाधान। इससे, इस छोटी-सी पुस्तक का महत्व काफी बढ़ जाता है और सर्वसाधारण व बौद्ध-शिक्षालयों में उपयोग के लिए यह और भी सार्थक बन जाती है। समय के तीव्र प्रवाह के साथ विचारों में भी उतनी ही गति से परिवर्तन होना स्वाभाविक है। गतिशील जीवन-शैली व सामूहिक सोच ने हमें सकल विश्व को एक इकाई के रूप में पहचान करने को विवश कर दिया है। विश्व के विभिन्न धर्म जहाँ एक-दूसरे से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए छिद्रान्वेषण में लग जाया करते हैं, वहीं अब किसी सार्वभौमिक , सार्वलौकिक सार्वजनीन व सर्वदेशीय धर्म की तलाश होने लगी। बुभुक्षाभरी जिज्ञासा ने थियोसाफिकल सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष (स्व.) हेनरी यस. आल्काट का ध्यान ‘भगवान बुद्ध’ के विचारों की ओर आकर्षित किया। उन्होंने बुद्ध-धर्म व उनके विचारों में वह सब कुछ पाया, जिसकी आवश्यकता आज के विश्व की थी। धर्म केवल जानने के लिए नहीं, प्रत्युत धारण करने के लिए होता है। यह जीवन जीने की वास्तविक कला सिखाता है। अर्थ, काम, मोक्ष का प्रदाता है। इसीलिए 1881 में उन्होंने अंग्रेजी में यह पुस्तक लिखी थी। यह पुस्तक प्रश्नोत्तरी के रूप में अपनी विशेषताओं के कारण थोड़े ही समय में इतनी लोकप्रिय हो गयी कि यह अगणित संस्करणों के साथ यूरोप तथा विश्व की अनेक भाषाओं में प्रकाशित होने लगी। कुछ देशों ने तो इसे विद्यालयों की पाठ्य-पुस्तक के रूप में भी स्वीकृत कर दिया। पर हिन्दी में अब तक इसका अनुवाद न होना वस्तुत: एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू था। अत: सबके कल्याण हेतु हिन्द-भाषी लोगों के लिए इसका हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। धर्म की इतनी संक्षिप्त पर पूर्ण, सरल, सटीक, स्पष्ट तथा उपयोगी व्याख्या कदाचित् ही कहीं मिले।
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Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Dharam ka Yatharth Swaroop
Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासDharam ka Yatharth Swaroop
भारतवर्ष मंे आज भी धार्मिक एवं जातिगत मतभेद विकट रूप में विद्यमान हैं। उपर्युक्त परिस्थितियों को सुनकर और देखकर लेखक के हृदय में एक विचार प्रस्फुटित हुआ कि क्यों न एक ऐसी पुस्तक का निर्माण किया जाए, जिसमें विभिन्न पन्थों के मूल सिद्धान्तों का परिचय और उसका उद्देश्य समाहित हो।
अतः चार महीने का अवकाश लेकर लेखक ने विभिन्न सम्प्रदायों की लगभग दो सौ पचास पुस्तकों का अध्ययन किया और उन विषयों के अधिकारिक विद्वानों से परस्पर विचार-विमर्श भी किया। तदुपरान्त यह समझ में आया कि सभी पन्थ अपने मूलरूप में परस्पर अत्यधिक साम्यता रखते हैं। सभी के मार्ग भले ही क्यों न पृथक्-पृथक् हों परन्तु सभी का लक्ष्य एक ही है।
ऋग्वेद के अनुसार ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति‘। अर्थात् सत्य एक ही है, जिसे विद्वान् विभिन्न प्रकार से व्याख्यायित करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न सम्प्रदायों के मूल सिद्धान्तों का उसी रूप में वर्णन किया गया है जिस रूप में वे सिद्धान्त उस पन्थ में विद्यमान हैं। निष्कर्ष में सभी पन्थों के सिद्धान्तों में विद्यमान पारस्परिक साम्यता का विवेचन किया गया है। आशा है कि जेखक का यह छोटा-सा प्रयास समाज में धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वासों तथा वैमनस्य को दूर करेगा तथा भिन्न-भिन्न पन्थों के अनुयायियों के मध्य सौहार्द, परस्पर प्रेम को उत्पन्न करने में अपना सहयोग प्रदान करेगा और महिलाओं का यथोचित सम्मान एवं गरिमा प्रदान करने के लिए इस विकसित समाज को प्रेरित करेगा।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Ganga Gyan Sagar in four volumes
पूज्य. प० गंगाप्रसाद जी उपाध्याय के साहित्य, लेखों तथा व्याख्यानों को संग्रहीत व सम्पादित करके हमने ‘गंगा ज्ञान सागर‘ नामक ग्रंथमाला (चार भागों मंे) के नाम से धर्मप्रेमी स्वाध्यायशील जनता के सामने श्रद्धा-भक्ति से भेंट किया। आर्यसमाज के इतिहास में यह सबसे बड़ी और सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थमाला है। यह इस ग्रन्थमाला का तृतीय संस्करण है। देश की प्रादेशिक भाषाओं में भी इसका पूरा व आंशिक अनुवाद निरन्तर छपता जा रहा है।
हमने अपने विद्यार्थी जीवन में ही उपाध्याय जी के लेखों, ट्रैक्टों व पुस्तकों को सुरक्षित करने का यज्ञ आरम्भ कर दिया। योजनाबद्ध ढंग से उर्दू, अंग्रेजी में प्रकाशित लेखों पुस्तकों का अनुवाद अत्यन्त श्रद्धा-भक्ति से किया। एक ही विषय पर लिखे गये मौलिक लेखों व तर्कों का मिलान करके आवश्यक, ज्ञानवर्द्धक व पठनीय पाद टिप्पणयाँ देकर इस ग्रन्थ माला की गरिमा बढ़ाने के लिये बहुत लम्बे समय तक हमने श्रम किया। यह ज्ञान राशि पूज्य उपाध्याय जी के 65 वर्ष की सतत् साधना व तपस्या का फल है।
गंगा-ज्ञान सागर के प्रत्येक भाग को इस प्रकार से संग्रहीत व सम्पादित किया गया है कि प्रत्येकभाग अपने आप में एक ‘पूर्ण ग्रन्थ‘ है। हमारे सामने एक योजना थी कि प्रत्येक भाग में सब मूलभूत वैदिक सिद्धान्त आ जायें, यह इस ग्रन्थ माला की सबसे बड़ी विषेषता है। संगठन व इतिहास विषय में भी बहुत सामग्री दी है। बड़े-बड़े विद्वानों व युवा पीढ़ी द्वारा प्रशंसित इस ग्रन्थ माला में क्या नहीं है? बहुत सी सामग्री जो सर्वत्र लोप या अप्राप्य हो चुकी थी-हमने अपने भण्डार से निकाल कर साहित्य पिता का स्मरण करवा दिया है। इतनी सूक्तियाँ व वचन सुधा किसी ग्रन्थ माला में नहीं देखी होंगी। अजय जी को सहयोग करके आर्य जन धर्मलाभ प्राप्त करें। ऋषि ऋण चुका कर यश के भागीदार बनें। -प्रा. राजेन्द्र ‘जिज्ञासु‘SKU: n/a