Paperback
Showing 1153–1176 of 1545 results
-
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sahitya Ka Aatm-Satya
हिन्दी के अग्रणी रचनाकार के साथ-साथ देश के समकालीन श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों में गिने जानेवाले निर्मल वर्मा ने जहाँ हिन्दी को एक नयी कथाभाषा दी है वहीं एक नवीन चिन्तन भाषा के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनका साहित्य और चिन्तन न केवल उत्तर-औपनिवेशिक समाज में कुछ बहुत मौलिक प्रश्न और चिन्ताएँ उठाता है, बल्कि एक लेखक की गहरी बौद्धिक और आध्यामिक विकलता को भी व्यक्त करता है। अपने पाठकों को भारतीय परम्परा और पश्चिम की चुनौतियों के द्वन्द्व की नयी समझ भी देता है। इतिहास और स्मृति निर्मल वर्मा के प्रिय प्रत्यय हैं। उनके चिन्तन में इतिहास के ठोस और विशिष्ट अनुभव हैं। वे सवाल उठाते हैं कि यदि हम वैचारिक रूप से स्वयं अपनी भाषा में सोचने, सृजन करने की सामर्थ्य नहीं जुटा पाते तो हमारी राजनैतिक स्वतन्त्रता का क्या मूल्य रह जाएगा? निर्मलजी के निबन्धों के चिन्तन के केन्द्र में मात्रा साहित्य ही नहीं है बल्कि, उसमें उत्तर-औपनिवेशिक भारतीय समाज, उसका नैतिक-सांस्कृतिक विघटन और मनुष्य का आध्यात्मिक मूल स्वरूप, भारतीय संस्कृति का बहुकेन्द्रित सत्य आदि महत्त्वपूर्ण सवाल समाहित हैं जो पाठकों के रचनात्मक चिन्तन को एक नया आयाम देते हैं।
SKU: n/a -
Literature & Fiction, Vani Prakashan
Sairandhri
नरेन्द्र कोहली
पाण्डवों का अज्ञातवास महाभारत कथा का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और मार्मिक स्थल है । कहा जाये कि यह एक वर्ष ही उनकी असली परीक्षा का काल था । जब उन्हें अपना नैसर्गिक रूप त्याग कर अलग और हीनतर रूप धारण करने पड़ते हैं । सवाल उठता है दुर्योधन की गिध्द-दृष्टि से पाण्डव कैसे बचे रह सकें ? अपने अज्ञातवास के लिए पाण्डवों ने विराट नगर को ही क्यों चुना ? पाण्डवों के शत्रुओं में प्रछन्न मित्र कहाँ थे ? और मित्रों में प्रछन्न शत्रु कहाँ पनप रहे थे ? बदली हुई भूमिकाओं से तालमेल बैठाना पाण्डवों के लिए कितना सुकर या दुष्कर था ? अनेक प्रश्न हैं जो इस प्रसंग में उठते हैं । लेकिन पाण्डवों से भी ज्यादा मार्मिक है द्रौपदी का रूपान्तरण । पाण्डवों को तो किसी-न किसी रूप में भेष बदलने का वरदान मिला हुआ था या उनमें यह गुण स्वाभाविक रूप से मौजूद था। अर्जुन को अगर उर्वशी का श्राप था तो युधिष्ठिर को द्यूत प्रिय होने के नाते कंक बनने में सुविधा थी । भीम वैसे ही भोजन भट्ट और मल्ल विद्या में पारंगत थे। समस्या तो द्रौपदी की थी, जो न केवल सुन्दरी होने के नाते सबके आकर्षण का केंद्र थी बल्कि जिसने कभी सेवा-टहल का काम नहीं किया था। सुदेष्णा जैसी रानियाँ तो उसकी सेवा-टहल करने के योग्य थीं । ऐसी स्थिति में उस एक वर्ष को सैरंध्री बनकर काटना द्रौपदी के लिए कैसी अग्नि परीक्षा रही होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है । द्रौपदी के सौन्दर्य को लेकर सुदेष्णा का भय और विराट की आशंका या फिर वृहन्नला और द्रौपदी की अपनी-अपनी व्यथाएँ । उपन्यासकार नरेन्द्र कोहली ने इस उपन्यास में की । इसके साथ-साथ अनेक प्रश्नों को छुआ है, इन सबको नरेन्द्र कोहली ने अपनी सुपरिचित शैली में बड़ी सफलता से चित्रित किया है ।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Samajik Kranti Ki Vahak : Savitribai Phule
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSamajik Kranti Ki Vahak : Savitribai Phule
सामाजिक एकता, शिक्षा और महिला सशक्तीकरण के लिए अपना जीवन समर्पित कर देनेवाली महान् विभूति सावित्रीबाई फुले ने भारत में स्त्री शिक्षा का सूत्रपात करके मिसाल कायम की। वे भारत की प्रथम दलित महिला अध्यापिका व प्रधानाचार्या, कवयित्री और समाजसेविका थीं, जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना रहा। 3 जनवरी,1831 को सतारा (महाराष्ट्र) के नायगाँव के एक दलित परिवार में जन्म लेनेवाली सावित्रीबाई फुले को ही पहले किसान स्कूल की स्थापना करने का श्रेय जाता है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के साथ उन्हें समाज में सही स्थान दिलवाने, विधवा विवाह करवाने, छुआछूत को मिटाने और कन्या शिशु की हत्या को रोकने हेतु प्रभावी पहल करते हुए उल्लेखनीय कार्य किए। अछूत और दलित समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए उन्होंने दलित लड़कियों को शिक्षित करने की मुहिम स्वयं स्कूल खोलकर सफल शुरुआत की और एक साल के अंदर अलग-अलग स्थान पर पाँच स्कूल खोल दिए। इस कार्य में उनका भरपूर सहयोग उनके क्रांतिकारी पति ज्योतिबा फुले ने दिया। प्लेग से ग्रसित बच्चों की सेवा करते हुए प्लेग से सावित्रीबाई की मृत्यु हो गई थी।नारी का वर्तमान जीवन, शिक्षित, सभ्य और पुरुष के कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने का स्वरूप सावित्रीबाई के अनवरत संघर्षों और प्रयासों का ही सुपरिणाम है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक चेतना के संघर्ष को समर्पित कर दिया। भारत की महान् नारी सावित्रीबाई फुले के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से पाठकों को परिचित कराती उत्कृष्ट पुस्तक।”SKU: n/a -
Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Samay Aur Sanskriti
परम्परा की अनिवार्य महत्ता और उसके राजनीतिकरण से होने वाले विनाश को पहचान कर ही हम वास्तविक भारतीयता को जान सकते हैं। इसके लिए समस्त सामाजिक बोध से युक्त इतिहास-दृष्टि की जरूरत है क्योंकि अन्तर्द्वन्द्व और विरोधाभास हिन्दू-अस्मिता के सबसे बड़े शत्रु हैं। दूसरी तरफ समाज के चारित्रिक ह्रास के कारक रूप में संक्रमणशील समाज के सम्मुख परिवर्तन की छद्म आधुनिकता और धर्म के दुरुपयोग के घातक ख़तरे मौजूद हैं। पश्चिम के दायित्वहीन भोगवादी मनुष्य की नकल करने वाले समाज में संचार के माध्यमों की भूमिका सांस्कृतिक विकास में सहायक न रहकर नकारात्मक हो गयी है। ऐसे में बुद्धिजीवी वर्ग की समकालीन भूमिका और भी जरूरी तथा मुश्किल हो गयी है। श्यामाचरण दुबे का समाज-चिन्तन इस अर्थ में विशिष्ट है कि वे कोरे सिद्धान्तों की पड़ताल और जड़ हो चुके अकादमिक निष्कर्षों के पिष्ट-प्रेषण में व्यर्थ नहीं होता। इसीलिए उनका चिन्तन उन तथ्यों को पहचानने की समझ देता है जिन्हें जीवन जीने के क्रम में महसूस किया जाता है लेकिन उन्हें शब्द देने का काम अपेक्षाकृत जटिल होता है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sambhaji Maharaj (Hindi Translation of Life and Death of Sambhaji)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहासSambhaji Maharaj (Hindi Translation of Life and Death of Sambhaji)
संभाजी महाराज की नजर महादजी की ओर जाती है। यह सही बातें कहने और करने का समय है। अभी वे जो करेंगे, वह उनके देश की नियति बदल देगा। वे मराठी में कहते हैं, ”महादजी, आबा साहिब ने हर सैनिक के जीवन का सम्मान किया। वे चाहते थे कि हम बेवजह शहादत से बचें और जीवित रहें, ताकि हम स्वराज के लिए, मराठा राष्ट्र के लिए एक और लड़ाई लड़ सकें, लेकिन उन्होंने कभी भी मराठा राष्ट्र के बदले में जीवन को गले नहीं लगाया होता।
संभाजी महाराज फर्श पर एक ढेर की तरह गिर जाते हैं। वे जानते हैं कि कुछ ही दिनों में उनकी आँखें निकाल ली जाएँगी। लेकिन औरंगजेब बस इतना ही कर सकता है। संभाजी महाराज मराठों के दिलों में एक आग जला जाएँगे और वे दावानल में बदल जाएँगे, जो औरंगजेब के सपनों को जलाकर राख कर देंगे। युद्ध चलता रहेगा लेकिन वह कभी दक्कन नहीं जीत पाएगा।
—इसी पुस्तक सेछत्रपति शिवाजी महाराज के उतने ही प्रतापी पुत्र संभाजी महाराज के शौर्य और पराक्रम की यशोगाथा बताती अनुपम कृति। आक्रांताओं के दाँत खट्टे कर मराठा स्वाभिमान को जाग्रत करने में संभाजी महाराज के योगदान को रेखांकित करनेवाली कृति। हर भारतीय के राष्ट्रभाव को जाग्रत करनेवाली पठनीय कृति।”
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Sambhavami Yuge-Yuge
“भारतीय योद्धाओं ने सुनिश्चित हार के खतरे को देखते हुए भी खूँखार आक्रांताओं का मुकाबला पूरी वीरता और साहस से किया। आक्रमणकारियों को कदम-कदम पर संघर्ष का सामना करना पड़ा। अनेक मौकों पर उनकी शर्मनाक पराजय भी हुई। इतिहास के बड़े-बड़े कालखंड ऐसे थे, जिनमें विदेशी आक्रांताओं को पराजय मिली। ये कालखंड साधारण नहीं, तीन सौ साल तक लंबे हैं। भारत में अनेक हिस्से ऐसे हैं, जिनमें आक्रांता कभी प्रवेश नहीं कर पाए।
हर आक्रमणकारी को भारत पर आक्रमण की कीमत चुकानी पड़ी। बीच में ऐसे काल भी आए, जब विदेशी आक्रांताओं को कुछ सफलता मिली। किंतु जैसे ही मौका मिला, कोई-न-कोई वीर उठकर खड़ा हो गया। किसी-न-किसी क्षेत्र के आम लोगों ने विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष किया और उसे पराजित किया या इतना नुकसान तो जरूर पहुँचाया कि आक्रांता को भारतीय इच्छाओं का आदर करना पड़ा। भारतीय संस्कृति को जीवित रहने की ऊर्जा हमारे जिन पूर्वजों के बलिदानों से प्राप्त हुई है, यह पुस्तक उन पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का छोटा सा प्रयास है।”
SKU: n/a -
Hindi Books, Manoj Publication, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sampoorn Chankya Neethi
चाणक्य जैसे चमत्कारी व्यक्तित्व की नीति का वर्णन करने से पहले अगर उसकी जीवनी पढ़ लिया जाए, तो उसकी नीति को समझना आसान हो जाएगा। इसीलिए इस पुस्तक में चाणक्य की जीवनी पहले दिया गया है। यह ग्रंथ नहीं, बल्कि संपूर्ण सांसारिक जीवन के अनुभवों का सार है। आज भी यह उतना ही प्रासंगिक है, जितना 2000 साल पहले। जीवन को आसान बनाने वाली चाणक्य की नीति जीवन के सभी प्रश्नों का समुचित उत्तर भी प्रदान करती है।.
SKU: n/a -
Vani Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
SAMPOORNA CHANAKYA NEETI EVAM CHANAKYA SOOTRA
Vani Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSAMPOORNA CHANAKYA NEETI EVAM CHANAKYA SOOTRA
‘चाणक्य नीति’ आचार्य चाणक्य के विश्वविश्रुत ग्रन्थ ‘कौटिलीय अर्थशास्त्र’ का संक्षिप्त संस्करण है, जिसमें धर्म, समाज तथा राजनीति के गूढ़ तत्त्वों को अत्यन्त सरल शैली में प्रस्तुत किया गया है । इस ग्रन्थ का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धर्मशास्त्रों में निरूपित सभी करणीय-अकरणीय कर्मों की जानकारी प्राप्त करके सत्कर्मों का अनुष्ठान कर सकता है । एक पद्य में तो यह भी कहा गया है – येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रतिपद्यते । अर्थात इसे जानने वाला व्यक्ति राजनीति का पूर्ण विद्वान बन जाता है । संस्कृत भाषा में लिखा गया यह ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें लोकव्यवहार, धर्म तथा राजनीति से सम्बन्धित ऐसी अनेक शिक्षाप्रद व उपयोगी जानकारी का समावेश हैं, जिसे जानकर कोई भी व्यक्ति, जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है ।
SKU: n/a -
Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Dharma
इस पुस्तक का उद्देश्य हिन्दू धार्मिक और नैतिक प्रशिक्षण को पश्चिमी शिक्षा के साथ संयोजित करने के साथ-साथ वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुकूल करना है। इस पुस्तक को उन सभी सिद्धांतों से पृथक रखा गया है, जिन पर विभिन्न मान्यता प्राप्त रूढ़िवादी विचारधाराओं के बीच में विवाद या मतभेद हैं। इस पुस्तक के माध्यम से सुधि पाठक स्वयं के व्यक्तित्व में सनातन धर्म और सत्यप्रियता, सत्यवादिता, पवित्रता, कर्त्तव्यपरायणता, आत्मनिर्भरता, सत्यनिष्ठा, धर्माचरण, सौम्यता तथा संतुलन जैसी सार्वभौमिक नैतिकता की नींव को सुदृढ़ कर सकते हैं। इस पुस्तक के तीन भागों: “बुनियादी धार्मिक विचार”, “सामान्य हिन्दू धार्मिक आचार और संस्कार” तथा “नैतिक शिक्षा” पर विस्तृत चर्चा की गई है। इस पुस्तक में एक अस्तित्व, कई अस्तित्व, पुनर्जन्म, कर्म, यज्ञ के साथ-साथ संस्कार, श्रद्धा, एवं नैतिकता के विभिन्न आयामों पर सरल भाषा में गूढ़ चर्चा की गई है।
यह पुस्तक हर सुधि पाठक के मन में सही सोच की दृढ़ नींव रखने में और उन्हें स्वयं को मातृभूमि के प्रति पवित्र, नैतिक, कर्तव्यनिष्ठ एवं उपयोगी नागरिक के रूप में आकार देने में उपयोगी सिद्ध होगी।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Jeevan Shaili (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanatan Jeevan Shaili (PB)
“1967 में मेडिकल कॉलेज में मेरे द्वितीय वर्ष के दौरान सनातन में मेरी रुचि जर्मन
सार्शनिक आर्थर शोपेनहावर की एक पंक्ति से शुरू हुई। मैंने शिवमूर्ति को देखा और जन पाया, इसका जिक्र मेरी इसी किताब में है ।पश्चिमी विचारों के प्रभाव में मैं भी मूर्तिपूजा को एक रूढ़िवादी मानसिकता मानता था।
मुझे लगा कि हजारों साल से चली आ रही ये मान्यताएँ जिन्हें लोगों ने अंधविश्वास कहकर खारिज कर दिया है, निरर्थक तो नहीं हो सकतीं, जैसे
मंगलवार को बाल न कटवाना, हनुमान की नाराजगी से डरना या शनिदेव के कोप से बचने के लिए शनिवार को लोहा न खरीदना ।मैं यह सब सोचने लगा । ऐसा लगता है कि ये रीति-रिवाज नाइयों और लोहारों को एक दिन की छुट्टी देने के लिए बनाए गए थे। मार्च महीने में जब घर में शीतला माता की पूजा के लिए बासी भोजन की व्यवस्था देखी तो लगा कि समाज को यह संदेश दिया जा रहा था कि गरमियाँ शुरू होते ही बासी भोजन खाना बंद कर दें।फिर तो मैं सनातन की यात्रा पर निकल पड़ा। मैंने अंधविश्वास कहे ही जाने वाली मान्यताओं पर लोगों से अपने विचार साझा किए और चर्चाओं में शामिल हुआ, लोगों से सकारात्मक
प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे विचार सौ प्रतिशत सही हैं, लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि चिकित्सा ज्ञान में मेरी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि ने निश्चित रूप से मुझे सनातन प्रथाओं को समझने में सक्षम बनाया है।
SKU: n/a -
Garuda Prakashan, Hindi Books, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Par Var
- इस पुस्तक में जातिवाद से संबंधित तमाम भ्रांतियों को स्पष्ट किया गया है। इसमें दर्शाया गया है कि सुनियोजित षड्यंत्र के तहत न केवल भारत में जातिवाद का बीज बोया गयाबल्कि उसे पल्लवित और पोषित करने के लिए विदेशी आक्रांताओं द्वारा हर संभव कदम उठाए गए। इस पुस्तक में स्पष्ट किया गया है कि प्राचीन भारतीय समाज में जातिवाद नहीं बल्कि वर्ण व्यवस्था थी, जिस पर आज के अर्थशास्त्र का सिद्धांत “डिवीजन ऑफ लेबर” आधारित है।
यह पुस्तक भारत के बाहर से आये आक्रमणकारियों द्वारा सनातन धर्म और उसके अनुयायियों के खिलाफ किए गए अत्याचारों पर भी प्रकाश डालता है।
SKU: n/a