History
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Sambhavami Yuge-Yuge
“भारतीय योद्धाओं ने सुनिश्चित हार के खतरे को देखते हुए भी खूँखार आक्रांताओं का मुकाबला पूरी वीरता और साहस से किया। आक्रमणकारियों को कदम-कदम पर संघर्ष का सामना करना पड़ा। अनेक मौकों पर उनकी शर्मनाक पराजय भी हुई। इतिहास के बड़े-बड़े कालखंड ऐसे थे, जिनमें विदेशी आक्रांताओं को पराजय मिली। ये कालखंड साधारण नहीं, तीन सौ साल तक लंबे हैं। भारत में अनेक हिस्से ऐसे हैं, जिनमें आक्रांता कभी प्रवेश नहीं कर पाए।
हर आक्रमणकारी को भारत पर आक्रमण की कीमत चुकानी पड़ी। बीच में ऐसे काल भी आए, जब विदेशी आक्रांताओं को कुछ सफलता मिली। किंतु जैसे ही मौका मिला, कोई-न-कोई वीर उठकर खड़ा हो गया। किसी-न-किसी क्षेत्र के आम लोगों ने विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष किया और उसे पराजित किया या इतना नुकसान तो जरूर पहुँचाया कि आक्रांता को भारतीय इच्छाओं का आदर करना पड़ा। भारतीय संस्कृति को जीवित रहने की ऊर्जा हमारे जिन पूर्वजों के बलिदानों से प्राप्त हुई है, यह पुस्तक उन पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का छोटा सा प्रयास है।”
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English Books, Voice of India, इतिहास, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य
Samkatha
Selected papers of the International Seminar on Buddhist Narratives, organized by Dept. of Pali, Pune Univ., 24-26th Feb. 2016. Includes papers from S.S. Bahulkar, Peter Skilling, Lata Mahesh Deokar, Johannes Schneider and others. Co. published with Aditya Prakashan.
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Samrat Prithviraj Chauhan
सम्राट पृृथ्वीराज चौहान : भारतीय अन्तिम हिन्दू सम्राट भारतेश्वर पृथ्वीराज चौहान के जीवन-वृत्त पर प्रकाश डालने वाले पृथ्वीराज रासो और पृथ्वीराज विजय दो काव्य ग्रंथ उपलब्ध है। इतिहास के अध्येताओं ने पृथ्वीराज रासो की तो तिथि की असंगति के कारण उसे भट्ट भणन्त की संज्ञा देकर दूर फेंक दिया और पृथ्वीराज विजय का सम्यक् अध्ययन मनन नहीं किया गया। इस प्रकार भारतीय और विदेशी विद्वानों ने पृथ्वीराज के साथ न्याय नहीं किया और वह इतिहास के पटल पर एक उपेक्षित चरित्र बनकर रह गया। वस्तुतः सम्राट पृथ्वीराज एक महामानव, उत्कृट योद्धा, कुशल सेनानायक और बहुभाषा तथा कलाओं का मर्मज्ञ विद्वान था। ऐसे पुरुष का सही परिप्रेक्ष्य में अध्ययन और मूल्यांकन इतिहास के विद्वानों के लिए उपेक्षित है। हमने उनके उक्त गुणों की ओर विद्वानों के लिए ‘भारतेश्वर पृथ्वीराज’ नामक इस पुस्तक में विचार किया है।
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Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Sanasdeeya Pranali
Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Sanasdeeya Pranali
हमारे 99 फीसदी विधायक अल्पमत निर्वाचकों द्वारा चुने जाते हैं, उनमें से कई डाले गए वोटों का महज 15-20 फीसदी वोट पाकर निर्वाचित हो जाते हैं—यह आबादी का बमुश्किल 4-6 फीसदी बैठता
है। तो हमारी संसदीय प्रणाली कितनी प्रतिनिधि प्रणाली है?
लोकसभा में 39 पार्टियों के साथ, 14 पार्टियों से मिलकर बनी सरकार के साथ, क्या यह प्रणाली मजबूत, संशक्त और प्रभावी सरकारें प्रदान कर रही हैं, जिसकी हमारे देश को जरूरत है? क्या यह प्रणाली ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सत्ता सौंप रही है, जिनके पास मंत्रालयों को चलाने की, विधायी प्रस्तावों का आकलन करने की, वैकल्पिक नीतियों का मूल्यांकन करने की क्षमता, समर्पण और निष्ठा है? या यह खराब-से-खराब लोगों को विधायिका और सरकार में ला रही है? जब वे सत्ता में होते हैं तो क्या यह उन्हें लोगों का भला करने के लिए प्रेरित करती है, या यह उन्हें कहती है कि कार्य-प्रदर्शन मायने नहीं रखता है, कि ‘गठबंधनों’ को बनाए रखना कार्य-प्रदर्शन का स्थानापन्न है? क्या यह प्रतिरोधी और बाधा खड़ी करनेवाली राजनीति को अपरिहार्य नहीं बनाती है?
इससे पहले कि हम यह निष्कर्ष निकालें कि इस प्रणाली का समय पूरा हो गया है, शासन का कितना पूजन हो, ताकि हमें लगे कि हमें अवश्य ही विकल्प तैयार करना चाहिए?
वह विकल्प क्या हो सकता है?
तब क्या होता है, जब ये विधायक ‘संप्रभुता’ का दावा करते हैं और उसे अपना बना लेते हैं? न्यायपालिका ने जो बाँध खड़ा किया है—कि संविधान के आधारभूत ढाँचे को बदला नहीं जा सकता— राजनीतिक वर्ग के खिलाफ एक आवश्यक सुरक्षा नहीं है? लेकिन क्या कोई वैकल्पिक प्रणाली तैयार की जा सकती है, जो इस आवश्यक बाँध को तोड़ेगी नहीं, उसका उल्लंघन नहीं करेगी? उस विकल्प का मार्ग कौन प्रशस्त करेगा? उसकी अगुवाई कौन करेगा? इस झुलसानेवाली समालोचना में अरुण शौरी इन सवालों और अन्य मुद्दों को उठाते हैं। हमारे वक्त के लिए अनिवार्य। हमारे देश की दृढता के लिए आवश्यक।SKU: n/a -
Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Dharma
इस पुस्तक का उद्देश्य हिन्दू धार्मिक और नैतिक प्रशिक्षण को पश्चिमी शिक्षा के साथ संयोजित करने के साथ-साथ वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुकूल करना है। इस पुस्तक को उन सभी सिद्धांतों से पृथक रखा गया है, जिन पर विभिन्न मान्यता प्राप्त रूढ़िवादी विचारधाराओं के बीच में विवाद या मतभेद हैं। इस पुस्तक के माध्यम से सुधि पाठक स्वयं के व्यक्तित्व में सनातन धर्म और सत्यप्रियता, सत्यवादिता, पवित्रता, कर्त्तव्यपरायणता, आत्मनिर्भरता, सत्यनिष्ठा, धर्माचरण, सौम्यता तथा संतुलन जैसी सार्वभौमिक नैतिकता की नींव को सुदृढ़ कर सकते हैं। इस पुस्तक के तीन भागों: “बुनियादी धार्मिक विचार”, “सामान्य हिन्दू धार्मिक आचार और संस्कार” तथा “नैतिक शिक्षा” पर विस्तृत चर्चा की गई है। इस पुस्तक में एक अस्तित्व, कई अस्तित्व, पुनर्जन्म, कर्म, यज्ञ के साथ-साथ संस्कार, श्रद्धा, एवं नैतिकता के विभिन्न आयामों पर सरल भाषा में गूढ़ चर्चा की गई है।
यह पुस्तक हर सुधि पाठक के मन में सही सोच की दृढ़ नींव रखने में और उन्हें स्वयं को मातृभूमि के प्रति पवित्र, नैतिक, कर्तव्यनिष्ठ एवं उपयोगी नागरिक के रूप में आकार देने में उपयोगी सिद्ध होगी।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Jeevan Shaili (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanatan Jeevan Shaili (PB)
“1967 में मेडिकल कॉलेज में मेरे द्वितीय वर्ष के दौरान सनातन में मेरी रुचि जर्मन
सार्शनिक आर्थर शोपेनहावर की एक पंक्ति से शुरू हुई। मैंने शिवमूर्ति को देखा और जन पाया, इसका जिक्र मेरी इसी किताब में है ।पश्चिमी विचारों के प्रभाव में मैं भी मूर्तिपूजा को एक रूढ़िवादी मानसिकता मानता था।
मुझे लगा कि हजारों साल से चली आ रही ये मान्यताएँ जिन्हें लोगों ने अंधविश्वास कहकर खारिज कर दिया है, निरर्थक तो नहीं हो सकतीं, जैसे
मंगलवार को बाल न कटवाना, हनुमान की नाराजगी से डरना या शनिदेव के कोप से बचने के लिए शनिवार को लोहा न खरीदना ।मैं यह सब सोचने लगा । ऐसा लगता है कि ये रीति-रिवाज नाइयों और लोहारों को एक दिन की छुट्टी देने के लिए बनाए गए थे। मार्च महीने में जब घर में शीतला माता की पूजा के लिए बासी भोजन की व्यवस्था देखी तो लगा कि समाज को यह संदेश दिया जा रहा था कि गरमियाँ शुरू होते ही बासी भोजन खाना बंद कर दें।फिर तो मैं सनातन की यात्रा पर निकल पड़ा। मैंने अंधविश्वास कहे ही जाने वाली मान्यताओं पर लोगों से अपने विचार साझा किए और चर्चाओं में शामिल हुआ, लोगों से सकारात्मक
प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे विचार सौ प्रतिशत सही हैं, लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि चिकित्सा ज्ञान में मेरी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि ने निश्चित रूप से मुझे सनातन प्रथाओं को समझने में सक्षम बनाया है।
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Garuda Prakashan, Hindi Books, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Par Var
- इस पुस्तक में जातिवाद से संबंधित तमाम भ्रांतियों को स्पष्ट किया गया है। इसमें दर्शाया गया है कि सुनियोजित षड्यंत्र के तहत न केवल भारत में जातिवाद का बीज बोया गयाबल्कि उसे पल्लवित और पोषित करने के लिए विदेशी आक्रांताओं द्वारा हर संभव कदम उठाए गए। इस पुस्तक में स्पष्ट किया गया है कि प्राचीन भारतीय समाज में जातिवाद नहीं बल्कि वर्ण व्यवस्था थी, जिस पर आज के अर्थशास्त्र का सिद्धांत “डिवीजन ऑफ लेबर” आधारित है।
यह पुस्तक भारत के बाहर से आये आक्रमणकारियों द्वारा सनातन धर्म और उसके अनुयायियों के खिलाफ किए गए अत्याचारों पर भी प्रकाश डालता है।
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Hindi Books, Kapot Prakashan, Sandeep Deo Books, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sandeep Deo Hindi Collection Book
-15%Hindi Books, Kapot Prakashan, Sandeep Deo Books, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSandeep Deo Hindi Collection Book
- Kahani Communisto Ki: Khand 1 (1917-1964)
- Hamare Shri Guruji – Hindi (PB)
- Sajish Ki Kahani Tathyo Ki Zubani (Hindi, Sandeep Deo)
- Swami Ramdev Ek Yogi Ek Yodha
- Shri Guruji : Prerak Vichar (Hindi)
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Vani Prakashan, इतिहास
Sangam Ki Reti Par Chalees Din
The capability of reading and other personal skills get improves on reading this book Sangam Ki Reti Par Chalees Din by Dhananjai Chopra.This book is available in HINDI with high quality printing.Books from Culture category surely gives you the best reading experience.
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English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskrit Non-Translatables
-10%English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskrit Non-Translatables
Sanskrit Non-Translatable is a path-breaking and audacious attempt at Sanskritizing the English language and enriching it with powerful Sanskrit words. It continues the original and innovative idea of non- translatability of Sanskrit, first introduced in the book, Being Different. For English readers, this should be the starting point of the movement to resist the digestion of Sanskrit into English, by introducing loanwords into their English vocabulary without translation.
The book presents a thorough mechanism of the Process of digestion and examines the loss of adhikara for Sanskrit because of translating its core ideas into English. The movement launched by this book will resist this and stop the Programs that to Sanskrit into a dead language by translation all its treasures to render it redundant Discuss fifty-four non-transaxle groins genres that are being commonly m translated. It empowers English speak with the knowledge and arguments to introduce these San. words into early speech with confidence. Every lover of India’ Sanskrit will benefit from the book and become a cultural amba door propagating it rough routine communication.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sanskritik Utthan Ka Marg
आज समाज में जीवन-मूल्य, नैतिकता, पारस्परिकता, परोपकार आदि लुप्तप्राय हो रहे हैं। समसामयिक विषयों पर लिखे गए ये लेख-घटनाएँ-प्रसंग ज्ञानवर्धक हैं। यह सामग्री पाठकों को संस्कारित करेगी और उनमें समाज के प्रति कर्तव्यभाव जाग्रत् करेगी, ऐसा विश्वास है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ का मूलमंत्र हृदयंगम कर अगर हर भारतीय अपना सकारात्मक योगदान करेगा तो निश्चित रूप से भारत पुनः शीर्ष पर पहुँच सकेगा, यह पुस्तक इसी संदेश को प्रसारित करने का उपक्रम है। समाज-जागृति की दिशा में यह सामग्री अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है और सामाजिक क्षेत्र में यह भावी पीढि़यों के लिए एक दर्पण का काम करेगी।
आज की प्रजातंत्रीय व्यवस्था में व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता परम आवश्यक है। ये लेख इस दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। इस पुस्तक में महापुरुषों के जीवन से जुड़ी जिन घटनाओं का उल्लेख है, वे पाठक के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में अपना विशेष महत्त्व रखती हैं। इसकी विषयवस्तु पाठकों में अध्ययन के प्रति उत्कंठा पैदा करेगी। इन लेखों का प्रकाशन लोगों में पठन के प्रति रुचि जाग्रत् करेगा और उन्हें सुसंस्कृत बनाएगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Sukhramdas
संत सुखरामदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व : जिसने सत् रूपी परमतत्त्व को अनुभूति कर ली एवं जो अपने लौकिक स्वरूप तथा व्यक्तित्व से ऊपर उठकर उस परमात्मा से तद्गूप हो गया है, ऐसा आदर्श एवं मर्यादामय व्यक्ति संत कहलाने का अधिकारी है। राजस्थान प्रदेश में ऐसे महापुरुषों एवं संतों की समृद्ध परम्परा है। ऐसे संतों की दृष्टि में परमात्मत्तत्व एवं जीवतत्त्व अविच्छेद्य है। अपनी वृत्ति को बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी करने में सक्षम ऐसे राजस्थानी संतों की परम्परा में स्वनामधन्य संत श्री सुखरामदास जी नाम आदर के साथ लिया जाता है। डॉ. वीणा जाजड़ा ने अनथक परिश्रम करके संत श्री की कीर्तिस्तंभ कृति ‘अणभैवाणी’ का इस शोध ग्रंथ में विशद् सर्वांगीण एवं सम्यक् विवेचन किया है। डॉ. जाजड़ा ने इस ग्रंथ में यह सोदाहरण प्रमाणित किया है कि संत शिरोमणि सुखरामदासजी सामाजिक सरोकारों के लब्ध प्रतिष्ठ संत कवि हैं। आपने युगीन एवं समसामयिक सामाजिक धार्मिक विद्रूपताओं एवं विसंगतियों का काव्य के माध्यम से विरोध कर कबीर को भांति अपना समाज सुधारक का दायित्व-निर्वाह किया है। संत सुखरामदास जी ने बाह्याडंबरों को हेय ठहराकर स्वानुभूति एवं सदाचार की श्रेष्ठता पर बल दिया। आपके प्रदेय को राजस्थानी और हिन्दी साहित्य में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
भविष्य में संत-साहित्य पर शोध-कार्य करने वाले अनुसंधित्सुओं के लिए यह ग्रंथ मार्गदर्शक स्वरूप सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Garuda Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sarasvati Sabhyata: Pracheen Bharatiya Itihaas Mein Ek Mahatvapoorna Parivartan
Garuda Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSarasvati Sabhyata: Pracheen Bharatiya Itihaas Mein Ek Mahatvapoorna Parivartan
हड़प्पा निवासी कौन थे? वे आज के भारतीय से किस तरह संबंधित थे? क्या कभी कोई आर्य आक्रमण हुआ भी? ‘सरस्वती सभ्यता: प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन’ नामक यह पुस्तक सैटेलाइट चित्रों, भौगोलिक विज्ञान, पुरातत्व सर्वेक्षण, पुरालेखों, डीएनए शोधों और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में हुए नए शोधों और स्पष्टीकरणों को सामने लाती है। प्राचीन भारतीय इतिहास से जुड़े ये शोध अंग्रेजों के समय में उपलब्ध नहीं थे। जिसके कारण 19वी शताब्दी में सरस्वती नदी घाटी के बारे में कई तथ्य सामने नहीं आ पाए। आज से लगभग पांच से छह हजार साल पहले, महान सरस्वती नदी अपने पूर्ण प्रवाह में वेगवान रूप से विद्यमान थी। यह भारतीय सभ्यता का केंद्र बिंदु थी। जिस सिंधु घाटी सभ्यता की हमेशा बात की जाती है, वह लगभग 60 से 80 प्रतिशत सरस्वती नदी के तटों पर बसी थी, न की सिंधु नदी घाटी के तटों पर। भारतीय इतिहास के अध्ययन में सरस्वती नदी का सूख जाना बहुत बड़ा घटनाक्रम रहा है जिसके कारण प्राचीन भारतीयों को पलायन करना पड़ा। नए साक्ष्यों की मौजूदगी के साथ अब वह समय आ गया है, जब भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण पहलूओं को ठीक से समझा जा सके। यह पुस्तक प्रामाणिक भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए नए द्वार खोलती है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Satrangi Sanskriti
सतरंगी संस्कृति (राजस्थानी निबंध संग्रै)
accordingly ‘सतरंगी संस्कृति’ सिरैनाम वाळो ओ निबंध संग्रै सुधी समालोचक संग्राम सिंह सोढा रै ऊंडै अनुभव, गहन चिंतन, सतत स्वाध्याय अर सोझीवान दीठ सूं गूंथीज्योड़ो इसो गुण – गजरो जिणमें न्यारी-न्यारी भांत रा 13 निकेवळा सुमनां री सोरम सुधी – पाठक रै अंतस में आणंद उपजावै। आपरी मायड़ भाषा सं अणहद हेत राखणियां कवि, निबंधकार अर समालोचक श्री सोढा बडी खामचाई सूं भाषा, साहित्य, संस्कृति, लोक, परंपरा, विकास, वैभव अर अणगिण उदाहरणां सूं आपरी बात नै पुख्ताऊ अंजाम देवै। Satrangi Sanskriti
निबंध-संग्रै री विषै सामग्री इण बात री साख भरै कै रचनाकार आपरै लोक अर साहित्य री वाचिक परंपरा सूं गैरो जुड़ाव राखै। निबंधकार आपरी हरेक थापना नैं किणी न किणी, लोकप्रसिद्ध कैबत या दूहै सूं प्रमाणित करै। श्री सोढा आछी तरियां जाणै कै राजस्थानी साहित्यकारां उत्कृष्ट रै अभिनंदन अर निकृष्ट रै निंदण री आखड़ी पाळी है। इण साहित्य रौ प्रयोजन अकदम साफ रैयो है कै जको स्वतंत्रता से पुजारी है, स्वाभिमानी है, नीति- न्याय रो पखधर है, अनीति अर अन्याय रो विरोधी धरम रो रखवाळो है, उणरी सोभा सवाई हुणी चाईजै।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Satya Ke Sath Mere Prayog- Mahatma Gandhi
सत्य के साथ मेरे प्रयोग मैं जो प्रकरण लिखने वाला हूँ, इनमें यदि पाठकों को अभिमान का भास हो, तो उन्हें अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि मेरे शोध में खामी है और मेरी झाँकियाँ मृगजल के समान हैं। मेरे समान अनेकों का क्षय चाहे हो, पर सत्य की जय हो। अल्पात्मा को मापने के लिए हम सत्य का गज कभी छोटा न करें।
मैं चाहता हूँ कि मेरे लेखों को कोई प्रमाणभूत न समझे। यही मेरी विनती है। मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि उनमें बताए गए प्रयोगों को दृष्टांत रूप मानकर सब अपने-अपने प्रयोग यथाशक्ति और यथामति करें। मुझे विश्वास है कि इस संकुचित क्षेत्र में आत्मकथा के मेरे लेखों से बहुत कुछ मिल सकेगा; क्योंकि कहने योग्य एक भी बात मैं छिपाऊँगा नहीं। मुझे आशा है कि मैं अपने दोषों का खयाल पाठकों को पूरी तरह दे सकूँगा। मुझे सत्य के शास्त्रीय प्रयोगों का वर्णन करना है। मैं कितना भला हूँ, इसका वर्णन करने की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है। जिस गज से स्वयं मैं अपने को मापना चाहता हूँ और जिसका उपयोग हम सबको अपने-अपने विषय में करना चाहिए।
—मोहनदास करमचंद गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग हम सबको अपने आपको आँकने, मापने और अपने विकारों को दूर कर सत्य पर डटे रहने की प्रेरणा देती है।SKU: n/a