जयपुर राज्य का इतिहास (सचित्र) : जयपुर राजस्थान का अग्रणी राज्य था। लगभग एक हजार वर्षों तक भारत की राजनीति में इसका दखल रहा। इस वंश के प्रद्युम्नदेव (पजून) ने पृथ्वीराज का साथ दिया तो पृथ्वीराज बाबर के विरूद्ध राणा सांगा के साथ थे। मुगल साम्राज्य के निर्माण में मानसिंह जी का योगदान तो विश्व विश्रुत है। इस वंश की उपलब्धियाँ केवल सैन्य जगत तक ही सीमित नहीं थी वरन् विज्ञान और कला के क्षेत्र में भी जयपुर के राजाओं और राजनेताओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सवाई जयसिंह खगोलविद् थे, ज्योतिष यन्त्रालयों का निर्माण करवाया, उनके पौत्र म. प्रतापसिंह कवि व गायक थे, तो म. रामसिंह द्वितीय प्रसिद्ध छायाकार। जयपुर की पांडित्य परम्परा पर तो एक अलग पुस्तक लिखी जा सकती है। स्वतंत्रता के पश्चात् जयपुर राज्य का विलय राजस्थान राज्य में हुआ और सवाई जयसिंह की राजधानी, राजस्थान की राजधानी बनी। आज इसकी गणना विश्व के सुन्दर नगरों में होती है। यह पुस्तक आंबेर में कछवाहों के आगमन से लेकर राजधानी के जयपुर आने और भारतीय गणराज्य में इसके विलय होने तक का दस्तावेज है, जिसे श्रीमति चन्द्रमणि जी ने रोचक भाषा में प्रस्तुत किया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagdish Chandra Basu
जगदीश चंद्र बसु—दिलीप कुलकर्णी30 नवंबर, 1858 को बंगाल में जनमे 23 नवंबर, 1937 डॉ. (सर) जगदीश च्रंद बसु भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातत्त्व का गहरा ज्ञान था। ये पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकशिकी पर कार्य किया। साथ ही ये भारत के पहले वैज्ञानिक शोधकर्ता थे। इन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। ये विज्ञानकथाएँ भी लिखते थे और इन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है।
इन्होंने बेतार के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग करना शुरू किया। लेकिन अपनी खोजों से व्यावसायिक लाभ उठाने की जगह इन्होंने इन्हें सार्वजनिक रुप से प्रकाशित कर दिया ताकि अन्य शोधकर्त्ता इनपर आगे काम कर सकें। इसके बाद इन्होंने वनस्पति जीवविद्या में अनेक खोजें की। इन्होंने एक यंत्र क्रेस्कोग्राफ का अविष्कार किया और इससे विभिन्न उत्तेजकों के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया। इस तरह से इन्होंने सिद्ध किया कि वनस्पतियों और पशुओं के ऊतकों में काफी समानता है। ये पेटेंट प्रक्रिया के बहुत विरुद्ध थे और मित्रों के कहने पर इन्होंने एक पेटेंट के लिए आवेदन किया।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jaiprakash Tum Laut Aao
संविधान बनाने का काम हमने मुख्य रूप से देश के सर्वोच्च विधि-वेत्ताओं के सिर पर डाल दिया था। उनमें से बहुतेरों ने शायद ही कभी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। शायद यह सोचा गया कि संविधान बनाने का काम कानून के निष्णातों का है। यूँ देखा जाए तो हर महान् क्रांति के बाद नया संविधान क्रांतिकारियों ने स्वयं बनाया है। कानून के निष्णात लोग तो मात्र उसे योग्य परिभाषा देने में मदद करते रहे हैं, लेकिन हमारे यहाँ तो संविधान बनाने में मुख्य हाथ इन कानून-निष्णातों का ही रहा है। परिणाम यह हुआ कि स्वाधीनता आंदोलन के दरम्यान हमने जिन भावनाओं और आदर्शों की कल्पना की थी, संविधान को उनकी हवा तक का स्पर्श नहीं हुआ।’’
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jalianwala Kand Ka Sach
जलियाँवाला बाग में हुआ नर-संहार इतिहास का अटूट अंग है। उस दिन हजारों निःशस्त्र भारतीयों का नृशंस रक्तपात हुआ। उसके बाद मार्शल लॉ आरोपित हुआ। यदि जलियाँवाला बाग कांड फाँसी के सदृश था तो उसके बाद का अध्याय कालापानी से कम नहीं था। वह कुकांड भारत के आधुनिक इतिहास का एक ऐसा प्रकरण है, जिसे सरलता से भुलाया नहीं जा सकता, भूलना भी नहीं चाहिए। कालापानी की तरह इसकी याद भी हमारी एक दुखनेवाली नस को निरंतर दबाती है। जलियाँवाला बाग नर-संहार तो एक विरला ही दुःख है।
यद्यपि इस विषय पर अंग्रेजी में थोड़ा-बहुत लिखा गया है; परंतु हिंदी व प्रांतीय भाषाओं के लेखकों का ध्यान इस कांड से संबद्ध प्रकरणों अथवा उनके विवेचन की ओर शायद ही गया हो। किंतु हिंदी में पहली बार यह काम किया गया है। अंग्रेजों ने इस नर-संहार की घटना पर परदा डालने के जी-तोड़ प्रयत्न किए। और इसमें वे पूर्णतया असफल भी नहीं रहे। कालांतर में जो थोड़ा-बहुत लिखा गया, वह अंग्रेजी कलम से था। कई तथ्यों का पता स्वतंत्रता के दशकों पश्चात् लगा।
उन्हीं तथ्यों को इस पुस्तक में समग्रता के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। पाठकगण इसमें दी गई अनेक उत्पीड़क एवं रोमांचकारी घटनाओं तथा विवरणों को चाव से पढ़कर उनमें निहित मर्म को विचारोत्पादक पाएँगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jammu-Kashmir Sach to Yahi Hai
ये कहानियाँ इतिहास नहीं हैं, बावजूद इसके इन कहानियों को ऐतिहासिक दस्तावेज कहा जा सकता है, क्योंकि इनका आधार हमारे देश के इतिहास का सत्य है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के सत्तर साल बाद भी जम्मू-कश्मीर की सरकारें कानून की आड़ में राज्य के उपेक्षितों पर जिस तरह अत्याचार व अनाचार करती रही हैं, वह दिल दहलानेवाला है। ये कहानियाँ जम्मू-कश्मीर में सत्तर सालों की सरकारी मनमानी का कच्चा चिट्ठा पाठक के सामने प्रस्तुत करती हैं।
पिछली चार पीढि़यों के दर्द की गाथा है ‘सच तो यही है’। कहानियों की दुनिया में पहली बार इस विषय पर, सत्य घटनाओं को आधार बनाकर कहानियाँ बुनने का प्रयास किया गया है। कहानियाँ पठनीय तो हैं ही, हर मन को उद्वेलित करने वाली भी हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jammu-Kashmir Se Sakshatkar
जम्मू-कश्मीर समस्या को लेकर पिछले छः दशकों में अनेक भाषाओं में ढेरों साहित्य लिखा गया है। इन ग्रंथों में कश्मीर समस्या का विश्लेषण अलग-अलग दृष्टिकोणों से किया गया। विदेशी विद्वानों के लिए यह समस्या विशुद्ध रूप से वैधानिक व तकनीकी है, जब कि भारत के लिए कश्मीर समस्या नहीं है, बल्कि विदेशी साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा छोड़ा गया वह घाव है, जो अभी तक भरने का नाम नहीं ले रहा। जिन लोगों के हाथ में मरहम-पट्टी का काम था, उनकी लगाई गई मरहम ने घाव को खराब करने का काम किया, न कि ठीक करने का।
दुर्भाग्य से अभी तक कश्मीर को लेकर जो लिखा गया है, वह अकादमिक अध्ययन ज्यादा है, स्थानीय लोगों की संवेदनाओं का परिचायक कम। विदेशी विद्वानों द्वारा लिखे ग्रंथों की स्थिति वही है, जो संस्कृत न जानने वाले किसी विद्वान द्वारा वेदों पर विश्लेषणात्मक ग्रंथ लिखना और बाद में उसे सर्वाधिक प्रामाणिक घोषित करना। यह प्रयास इन दोनों कोटियों से भिन्न है।
इसमें प्रख्यात समाजधर्मी श्री इंद्रेश कुमार द्वारा कश्मीर समस्या को लेकर अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों और विचार गोष्ठियों में जो विचार व्यक्त किए, उनका संकलन है। लगभग दो दशक तक जम्मू, लद्दाख और कश्मीर में रहने के कारण लेखक की सभी वर्गों के लोगों—डोगरों, लद्दाखियों, शिया समाज, कश्मीरी पंडितों, कश्मीरी मुसलमानों, गुज्जरों, बकरवालों से सजीव संवाद रचना हुई। इस कालखंड में पूरा क्षेत्र, विशेषकर कश्मीर घाटी का क्षेत्र पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। अभिव्यक्ति का अवसर मिला। कश्मीर की त्रासदी को उन्होंने दूर से नहीं देखा, बल्कि नज़दीक से अनुभव किया है। इस पूरे प्रकरण में उनकी भूमिका द्रष्टा की नहीं, बल्कि भोक्ता की रही है। इस पूरी समस्या में एक पक्ष जम्मू, लद्दाख और कश्मीर के लोगों का भी है, जिसे अभी तक विद्वानों द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा है। इस पक्ष का पक्ष रखने की बलवती इच्छा इस ग्रंथ की पृष्ठभूमि मानी जा सकती है। आतंकवाद से लड़ते हुए जिन राष्ट्रवादियों ने शहादत दे दी, उसका चलते-चलते मीडिया में कहीं उल्लेख हो गया तो अलग बात है, अन्यथा उन्हें भुला दिया गया। सरकार की दृष्टि में इस क्षेत्र के लोगों की यह लड़ाई है ही अप्रासंगिक!
जम्मू-कश्मीर की विषम-विपरीत परिस्थितियों का तथ्यपरक एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन और विश्लेषण का निकष है यह पुस्तक जो वहाँ की सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर विहंगम दृष्टि देगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Janambhoomi-Matribhoomi
बँगला में सुविख्यात यह उपन्यास उन लोगों की व्यथा-कथा है, जिनकी जन्मभूमि तो विदेश है, लेकिन मातृभूमि भारत है। वहाँ जनमे बच्चों की समस्याएँ कुछ अलग हैं। अपनी जड़ों से उखड़कर विदेश में जा बसे बच्चों के सामने एक ओर तो विदेशों का स्थूल आकर्षण, वहाँ का वातावरण, वहाँ की संस्कृति व परंपराएँ उन पर अपना प्रभाव डाल रही हैं, दूसरी ओर उन्हें अपने माता-पिता से यह शिक्षा मिलती है कि उनका देश भारत है। वहाँ की संस्कृति ही उनकी अपनी संस्कृति है।
अमेरिका और भारत—दोनों देशों की पृष्ठभूमि समेटे इस उपन्यास के सभी चरित्र बेहद सजीव और वास्तविक लगते हैं।
विभिन्न मानवीय संबंधों की उलझनों का विश्लेषण। मानव चरित्र के उन तंतुओं पर प्रकाश, उन पर करारा आघात, जो जिंदगी के ताने-बाने को जटिल बनाते हैं। अत्यंत रोचक एवं पठनीय उपन्यास।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Janiye Sangh Ko
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिकसांस्कृतिक राष्ट्रवादी संगठन है। देश में जब भी आपदा आई है, इस संगठन ने उल्लेखनीय कार्य किया है। जीवन के हर क्षेत्र में इस संगठन की उपस्थिति ध्यानाकर्षण करनेवाली है। इसी कारण सबको ऐसे विलक्षण संगठन को जाननेसमझने की आकांक्षा रहती है।
इस विश्वव्यापी संगठन की शुरुआत सन् 1925 में विजयादशमी के दिन हुई और इसको साकार किया डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने, जिनका बोया बीज आज एक विशाल वटवृक्ष बन गया है। शिक्षा, सेवा, चिकित्सा, विज्ञान, विद्यार्थी, मजदूर, अधिवक्ता, राजनीति आदि समाज के प्रमुख क्षेत्रों में इसकी सार्थक उपस्थिति है।
संघ की ऊर्जा का मूल स्रोत हैं ‘दैनिक शाखा’। प्रस्तुत पुस्तक में बड़े ही संक्षेप में यह बताया गया है कि संघ का सूत्रपात कब हुआ, इसका स्वरूप कैसा है, शाखा क्या है, भगवा ध्वज का क्या महत्त्व है, प्रचारक कौन बनते हैं, इसके विभिन्न शिविरों की संकल्पना क्या है, संघ की प्रार्थना का महत्त्व और उसका अर्थ क्या है आदि। संघ के सरसंघचालकों से संबंधित रोचक व तथ्यात्मक जानकारी भी इस पुस्तक में दी गई है।
दैनंदिन जीवन में राष्ट्रवाद, देशभक्ति, आदर्श जीवनमूल्य और समर्पित भाव से ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मूलमंत्र को अभिसिंचित कर राष्ट्रनिर्माण के लिए प्रतिबद्ध संगठन की व्यावहारिक हैंडबुक है यह पुस्तक जो आमजन में संघ को लेकर प्रचारित भ्रांतियों को दूर करने में सहायक होगी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jati Bhaskar
जाति भास्कर : हमारे देश में वर्ण, जाति, गोत्र, अवटंक, शाखा-प्रशाखादि की मान्यताएं बहुत पुराने समय से रही हैं। प्रत्येक समुदाय में इस तरह की मान्यताएं विदेशी अध्येताओं के लिए बहुत रोचक विषय रही। वर्ण और जाति का विचार कब जागा, स्पष्ट कहा नहीं जा सकता, लेकिन 1847 में रौथ ने आर्य और आर्येतर समाजों के सम्बन्ध में जिस विचार को रखा तो वैदिक सन्दर्भों को टटोला जाने लगा और ज्ञात हुआ कि आर्यों के देवता इन्द्र दासों के विजेता रहे। इन्द्र ने दस्युओं का विनाश किया और आर्यवर्ण की सुरक्षा की। वर्ण की रक्षा का भाव बहुत बाद में गीता जैसे ग्रंथ में भी आता है। आरम्भ में आर्यों का समुदाय आधारित जीवन था और गण, सभा, समिति सहित विदथ जैसी सामुदायिक संस्थाएं होती थीं, जिनके माध्यम से यज्ञादि कार्यों पर विचार होता और पशुधन आदि की चिंता को अभिव्यक्त किया जाता था। प्रारम्भिक पुराणकाल में समाज में चतुर्वर्ग की व्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है। जातियों का वर्गीकरण कठिन है और फिर जातियों के उद्भव और विकास को पहचान पाना भी बड़ा जटिल है। आक्रमणों के बावजूद अविच्छिन्नता व टिके रहना भारतीयों का जातीय गुण रहा, पवित्रता व अपवित्रता जैसे भाव और उनका अनुकरण व्यवहार्य रहा, कुलों के अन्दर ही सर्वप्रकारेण व्यवहार रुचिकर रहा, पेशों का पक्ष और श्रम की बुनियाद अक्षुण्ण रही- ऐसे कई कारण हैं जिनके फलतः जातियों का अस्तित्व बना रहा। हालांकि विदेशी अध्येताओं ने जहाँ विदेशियों के सम्मिश्रण सम्बन्धी मत दिए हैं, वहीं भारतीयों ने अपने ढंग से यहाँ की जातिगत पहचान को स्थिरीकृत करने का प्रयास किया है। विश्वास सबके अपने-अपने हैं। न जाने कितनी सदियाँ गुजरी और अभी और गुजरेगी।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Jaysingh Gunvarnanam
जयसिंहगुणवर्णनम् (महाकवि रणछोड़भट्ट प्रणीतं) : महाराणा श्रीजयसिंह गुणवर्णनम् जिसका अन्य नाम जयप्रशस्ति अथवा जयसमन्द प्रशस्ति भी है, मूलतः मेवाड़ के गुहिल राजवंश और उसके गौरवशाली पक्षों का देवभाषा में काव्यब।। प्रतिनिधि ग्रन्थ है। यह महाराणा श्रीजयसिंह (विक्रम संवत् 1737-1755 तद्नुसार सन् 1680-1698ई.) के कृत्तित्व और व्यक्तित्व पर केन्द्रित है और इसमें तत्कालीन दिल्ली और दक्षिण अभियान के सन्दर्भ भी यत्किंचित् रूप में द्रष्टव्य है। इसमें मेवाड़ के भूगोल, युद्ध-यात्राओं सहित सांस्कृतिक परम्पराओं के अन्तर्गत दान-पुण्य, तीर्थाटन तथा स्नान, महल, उद्यान, सरोवर आदि के निर्माण कार्यों एवं उन पर हुए व्यय का प्रामाणिक विवरण भी उपलब्ध होता है। इसी प्रकार मेवाड़ के बाँसवाड़ा, देवलिया-प्रतापगढ़, डूँगरपुर, सिरोही, जैसलमेर, बूँदी आदि के साथ सम्बन्धों की सूचनाएँ भी मिलती हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में पाठ के निर्धारण में दोनों पाण्डुलिपियों का प्रयोग किया गया है और सावधानी से मिलान के साथ-साथ जहाँ पाठभेद लगा, वहाँ टिप्पणियाँ दी गई हैं। संस्कृत कहीं-कहीं त्रुटिपूर्ण लगीं और कहीं-कहीं पाठ भी त्रुटित मिला। इस कारण यथामति सुधारने और पाठ की पूर्ति का प्रयास भी किया गया है लेकिन मूलपाठ को यथावत् रखने का प्रयास प्राथमिकता से किया गया है। इसके आरम्भिक श्लोकों की पूर्ति राजप्रशस्ति के पाठ के आधार पर की गई है। इसी प्रकार ग्रन्थ के अन्त में माहात्म्य की पूर्ति के लिए भी राजप्रशस्ति का सहारा लिया गया है। यही नहीं, जहाँ कहीं पाठ खण्डित, त्रुटित मिला, उसकी पूर्ति के लिए राजप्रशस्ति सहित अमरकाव्यम्, जयावापी प्रशस्ति आदि की भी मदद ली गई है। दानादि विषयक श्लोकों के संशोधन के लिए हमने मत्स्यपुराण, हेमाद्रि कृत चतुर्व्वर्ग चिन्तामणि के दानखण्ड, बल्लालसेन के दानसागर, नीलकण्ठ दैवज्ञ के दानमयूख आदि को आधार बनाया है। यथास्थान इसकी सूचना भी दी गई है।
‘जयसिंह गुणवर्णनम्’ की रचना उसी प्रशस्तिकार रणछोड़ भट्ट ने की, जिसने राजप्रशस्ति की रचना की थी। यह ग्रन्थ सम्भवतः महाराणा के निधन, वर्ष विक्रम संवत् 1756 तक पूरा हो गया था। हालांकि उसने संवत् 1744 में जयसमन्द के उत्सर्ग और महाराणा के नौका विहार के बाद की कोई घटना नहीं लिखी है। इससे लगता है कि उक्त 12 वर्षों में कोई उल्लेखनीय प्रसंग सामने नहीं आया हो। एक प्रकार से यह ग्रन्थ रणछोड़ भट्ट का आत्म परिचय भी लिए हुए है। महाराणा राजसिंह के काल की तरह ही जयसिंह के शासनकाल में भी उसका सम्मान बना रहा। वैसे महाराणा अमरसिंह के विषय में उसने ‘अमरकाव्यम्’ अथवा ‘अमरकाव्यं वंशावलीग्रन्थ’ ग्रन्थ लिखा है लेकिन वह उसके प्रारम्भिक काल का ही परिचायक प्रतीत होता है। इस ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि अमरकाव्यम् उसने पहले लिख दिया था और उसको आगे लिखना चाहता था लेकिन उसका निधन हो जाने से अधूरा रह गया हो। अमरकाव्यम् के आरम्भ में ग्रन्थकार ने अमरसिंह के प्रति आशीष की याचना इस प्रकार की है-
सिर पर गंगा जैसी नदी को धारण करने वाले, पार्वती को अपने अंग में स्थान देने वाले, हरिण के प्रसंग में हाथ में परशु एवं क्षुरिका धारण करने वाले नटराज भगवान् एकलिंग श्रेष्ठ अमरसिंह को अपनी वाणी एवं मंगल प्रदान करते हुए रक्षा करें – शिरसि विधृतगंग शैलजातांगसंग करपरशुवरण्डाभिः कुरंगप्रसंग। अवतु स नटरंग स्वं गदः संददान प्रवरममरसिंहं मंगलान्येकलिंग।। (अमरकाव्यम् 1, 10)जयसिंहगुणवर्णनम् मूलतः महाराणा जयसिंह के जीवन चरित्र पर आधारित ग्रन्थ है। ओझा जयसमन्द की प्रतिष्ठा तिथि को लेकर आश्वस्त नहीं थे। इसी कारण लिखा कि इस तालाब की प्रशस्ति की रचना भी की गई थी, परन्तु वह खुदवाई नहीं गई, जिससे उक्त तालाब के विषय में अधिक हाल मालूम नहीं हो सका। हमें विश्वस्त रूप से उस प्रशस्ति की मूललिपि का पता लगा, परन्तु बहुत उद्योग करने पर भी वह मिल न सकी। (ओझा पृष्ठ 594)
इस ग्रन्थ के प्रकाश में आने से मेवाड़ और मुगल साम्राज्य सहित पड़ौसी तथा दूरस्थ कुमाऊँ, श्रीनगर जैसी रियासतों के साथ सम्बन्धों के विषय में जानकारी तो सामने आएगी ही, महाराणा जयसिंह के विषय में अनेक नई जानकारियाँ और सांस्कृतिक, धार्मिक तथा आर्थिक सूचनाएँ भी उजागर होंगी। यह युद्ध और शान्तिकालीन मेवाड़ की सूचनाओं के स्रोत के रूप में भी पहचाना जाएगा।
हमारा मानना है कि जयसिंह के विषय में पर्याप्त स्रोतों के अभाव में ऐसा सोचा और लिखा गया। प्रस्तुत स्रोत निश्चित ही ऐसी दृष्टि और स्थापनाओं का परिमार्जित करेगा।
इस ग्रन्थ को लुप्त सिद्ध किया गया है। हमने दो पाण्डुलिपियों के आधार पर पहली बार इसका सम्पादन और अनुवाद किया है। विद्वानों और अध्येताओं की सम्मति की सदैव प्रतीक्षा रहेगी।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास
JEET KA JADU
जीत एक सुखद और आनंददायक एहसास है। जीवन की सार्थकता जीतने में ही है। सृष्टि का वैज्ञानिक स्वरूप जीत के फॉर्मूले पर आधारित है। इसलिए जीत एक सहज, सत्य और स्वाभाविक प्रक्रिया है।
जीत के लिए न तो किसी आपाधापी की आवश्यकता है और न ही किसी झूठ के सहारे की। हमारा जन्म ही जीत की शुरुआत है।
हमारा जन्म जीतने के लिए ही हुआ है। कोई भी आदमी कभी हारता नहीं है, बस जीत का प्रतिशत कम या ज्यादा होता है।
जीत का लक्ष्य सच्चे आनंद को पाना है। हमारे द्वारा तय किया गया जीवन-लक्ष्य हमें सच्चे आनंद की ओर ले जाता है। इसलिए किसी मृग-मरीचिका में फँसे बगैर हमें सहज-सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। हमारा चल पड़ना ही जीत का उद्घोष है। कुछ करें या न करें, पर अपने लक्ष्य से यदि हम प्रेम कर लें तो जीत जाएँगे। जीवन की इस छोटी अवधि में हम सिर्फ प्रेम करें तो भी कम ही है, फिर घृणा के लिए समय कहाँ है? हम अपने कृत्यों के फल से कभी वंचित नहीं रह सकते। हमारे हर कर्म का फल निश्चित है।
जीत यानी जीवन की सफलता के गुरुमंत्र बताती अत्यंत प्रेरणाप्रद पठनीय कृति।SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
JEEVAN KI KHOJ
प्यास
जीवन क्या है? उस जीवन के प्रति प्यास तभी पैदा हो सकती है, जब हमें यह स्पष्ट बोध हो जाए, हमारी चेतना इस बात को ग्रहण कर ले कि जिसे हम जीवन जान रहे हैं, वह जीवन नहीं है। जीवन को जीवन मान कर कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन की तरफ कैसे जाएगा? जीवन जब मृत्यु की भांति दिखाई पड़ता है, तो अचानक हमारे भीतर कोई प्यास, जो जन्म-जन्म से सोई हुई है, जाग कर खड़ी हो जाती है। हम दूसरे आदमी हो जाते हैं। आप वही हैं, जो आपकी प्यास है। अगर आपकी प्यास धन के लिए है, मकान के लिए है, अगर आपकी प्यास पद के लिए है, तो आप वही हैं, उसी कोटि के व्यक्ति हैं। अगर आपकी प्यास जीवन के लिए है, तो आप दूसरे व्यक्ति हो जाएंगे। आपका पुनर्जन्म हो जाएगा। ओशोSKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
JEEVAN RAHASHYA
इस पुस्तक का पहला प्रश्न ‘लोभ’ से शुरू होता है जिसके उत्तर में ओशो कहते हैं कि साधना के मार्ग पर ‘लोभ’ जैसे शब्द का प्रवेश ही वर्जित है क्योंकि यहीं पर बुनियादी भूल होने का डर है।
फिर तनाव की परिभाषा करते हुए ओशो कहते हैं : सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है और जिस वक्त आपने कहा, कहीं नहीं जाना तो मन के अस्तित्व की सारी आधारशिला हट गई।
फिर क्रोध, भीतर के खालीपन, भय इत्यादी विषयों पर चर्चा करते हुए ओशो प्रेम व सरलता—इन दो गुणों के अर्जन में ही जीवन की सार्थकता बताते हैं।SKU: n/a -
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Jhansi Ki Rani
रानी ने घोड़े की लगाम अपने दाँतों में थामी और दोनों हाथों से तलवार चलाकर अपना मार्ग बनाना आरंभ कर दिया। रानी की दुहत्थु तलवारें आगे का मार्ग साफ करती चली जा रही थीं। रानी के साथ केवल चार सरदार और उनकी तलवारें रह गईं। रानी ने देशमुख की सहायता के लिए सुंदर को इशारा किया और स्वयं संगीनबरदारों को दोनों हाथों की तलवारों से खटाखट साफ करके आगे बढ़ने लगीं। एक संगीनबरदार की हूल रानी के सीने के नीचे पड़ी। उन्होंने उसी समय तलवार से उस संगीनबनदार को खतम किया। हूल करारी थी, परंतु आँतें बच गईं।
रानी ने सोचा, स्वराज्य की नींव बनने जा रही हूँ। रानी के खून बह निकला।
—इसी उपन्यास से
अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित इस उपन्यास में बाबू वृंदावनलाल वर्मा ने तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का ऐसा सजीव चित्रण किया है मानो पूरा घटनाक्रम हमारी आँखों के सामने हो रहा हो। झाँसी की रानी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। रानी स्वराज्य के लिए लड़ीं, स्वराज्य के लिए मरीं और स्वराज्य की नींव का पत्थर बनीं।
अद्भुत, प्रेरणाप्रद, पठनीय ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति!SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jhansi Ki Rani Laxmibai (Hindi)
इस पुसतक में रानी लक्ष्मीबाई के महान् व्यक्तित्व के अनेक देखे-अनदेखे पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है और उनकी प्रसिद्धि पर नए कोण से दृष्टिकोण किया गया है। रानी लक्ष्मीबाई नारी सशक्तीकरण का अद्भुत उदाहरण थीं। उनके जीवन को समर्पित इस पुस्तक से आधुनिक भारतीय पारी को नैतिक और मानसिक बल मिलना चाहिए। इसमें समेटे गए रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के तमाम पहलुओं का यदि पूरी तरह नहीं तो कुछ हद तक अपने जीवन में उतारने की हमें कोशिश करनी चाहिए, जिससे कि हमारा जीवन भी सार्थक हो सके। रानी लक्ष्मीबाई का जीवनकाल यद्यपि छोटा रहा; लेकिन वह आज भी हमे प्रेरणा देता है और आगे आनेवाली पीढि़यों को भी प्रेरणा देता रहेगा। ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी’ को इस पुस्तक के माध्यम से विनम्र श्रद्धांजलि।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
JHONPADI WALE AUR ANYA KAHANIYAN
प्रमुख रोमानियाई कथाकार मिहाइल सादौवेन्यू द्वारा लिखित झोंपड़ी वाले तथा अन्य कहानियाँ बीसवीं सदी के आरंभ के रोमानियाई ग्रामीणों के जीवन पर आधारित है। इनमें यूरोप की उत्कट गरीबी का चित्रण है और ग्रामीणों के भोले-भाले स्वभाव का। कल-कारखानों के आने से पहले साधारण मनुष्य का जीवन भले कठिन था लेकिन कितना कलुष-रहित, इसका सटीक अंकन इन कथाओं में है। निर्मल वर्मा ने प्राग में रहते हुए इन रोमानियाई कहानियों का अनुवाद किया था। पहली बार ये साहित्य अकादमी के प्रकाशन से सन् 1966 में सामने आईं थीं।
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Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Jihadi Aatankwad
कट्टरता और इस्लाम के नाम पर आज आतंक चारों ओर फैल रहा है, जिसमें हज़ारों निरपराध, असहाय, स्त्री-पुरुषों को गोलियों का शिकार होना पड़ रहा है और जिसे रोकने के लिए अनेक देशों के सम्मिलित प्रयास भी पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसी समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह पुस्तक सामयिक भी है और महत्त्वपूर्ण भी।
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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास
JINNAH HELPED HINDUS AND OTHER REFLECTIONS
The cocktail of subjects touched upon in Jinnah helped Hindus and Other Reflections may surprise some readers by their diversity. From a young boy questioning why with a galaxy of freedom fighters, we have Gandhi’s portrait on all our currency notes, especially when money was his last concern to how Jinnah actually helped Hindus. Why Germany’s Chancellor Angela Merkel, who welcomed Muslim migrants with open arms, is today offering them 3000 Euros as a return package? Many of the essays ask truly relevant questions. According to the author the Babri Masjid should be called Babri maqbarah since it is not a masjid. How acute is the threat of Islamisation of Europe? What is the future of minorities in Pakistan? Why did Jinnah call the Aligarh Muslim University the ‘arsenal of Pakistan’? Prafull Goradia also analyses why Indians still prefer sarkari jobs over others and what the causes of the failure of State Capitalism are. In the essay ‘Cricket in Need of a Revolution’ the author is critical of the fact that India has only one competitive international cricket team. Almost the same players play Test matches, One-dayers as well as twenty-20s. Why? We overstrain these players and might even be risking the quality of their game. Every reader will find something of interest in this collection of essays.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Jodhpur Rajya Ki Khajana Bahi
जोधपुर राज्य की खजाना बही
महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय Jodhpur Rajya Khajaana Bahi
मारवाड़ के पुरालेखीय स्रोतों में ‘जोधपुर राज्य की खजाना बही’ का विशेष महत्त्व रहा है। खजाना बही में मुख्य रूप से राजकोष से विभिन्न मदों पर खर्च हुई राशि का विवरण समाहित है। in fact बही में जोधपुर राजपरिवार के साथ ही दूसरे विभिन्न राज्यों, प्रशासनिक अधिकारियों, ठिकानेदारों, सरदारों, सेवकों के अलावा सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजन एवं मान्यताओं, दूसरे राज्यों के साथ आपसी सम्बन्धों, न्याय प्रणाली के साथ ही विभिन्न कपड़ों, आभूषणों, सीख दस्तूर, नजराना दस्तूर, कारज दस्तूर, पडला व बत्तीसी दस्तूर का सविस्तार विवरण दिया गया मिलता है। Jodhpur Rajya Khajaana Bahi
जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) से सम्बन्धित यह खजाना बही वि.सं. 1940 से till वि.सं. 1951 तक की है। इस खजाना बही में महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) के 11 वर्षों के प्रशासनिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजघराने से जुड़े विभिन्न पक्षों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं।
जोधपुर के महाराजा तखतसिंह के पश्चात् महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) during वि.सं. 1929 की फाल्गुन सुदि 3 (ई.स. 1873 की 1 मार्च) को जोधपुर के उत्तराधिकारी बने थे। वे बड़े गुणी, दानी, शान्त, सरल और प्रजा प्रिय शासक थे। इनके छोटे भाई महाराज प्रतापसिंह बड़े विवेकशील और न्यायप्रिय थे। इन्होंने शिक्षा के कई द्वार खोले और समाज सुधार के क्षेत्र में अपनी महत्ती भूमिका निभाई। महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) के समय में ये मुसाहिबआला (प्रधानमंत्री) थे। वि.सं. 1930 (ई.स. 1873) में महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) ने सर्वप्रथम राज्य के कुशल प्रबन्ध और प्रजा के सुभीते के लिये ‘खास महकमा’ कायम किया और मुंशी फैजुल्ला खाँ को अपना मंत्री बनाया था।
also खजाना बही में मुख्य रूप से दीवान की फड़द, टकसाल विभाग, खासा-खजाना पर रुक्का, कपड़े के कोठार की फड़द, महकमे खास की फड़द, जरजरखाना की फड़द, जवाहरखाना की फड़द, खासा खजाना की फड़द के अन्तर्गत विभिन्न विवरण संजोया गया है।
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