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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jungnama(HB)
इतिहास साक्षी है कि भारत ने विदेशी आक्रांताओं से भारत का गौरव कभी भी ध्वस्त नहीं होने दिया, किंतु इस प्रयास में जाने कितने वीर सपूतों की बलि चढ़ानी पड़ी। राष्ट्र हेतु जिन वीरों ने अपना जीवन होम किया उनका स्मरण करना, उनकी कीर्तिगाथा को भावी पीढि़यों तक ले जाना राष्ट्र का कर्तव्य है। उन वीरों की शौर्यगाथा को सभी भारतीय भाषाओं ने और लोकभाषाओं ने स्वर दिया।
इसी गौरवशाली परंपरा में अवध के एक अनमोल रत्न चहलारी नरेश राजा बलभद्र सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जिस वीरता के साथ युद्ध किया, उसकी प्रशंसा विदेशी इतिहासकारों ने भी की है। उनकी कीर्ति का बखान इस ‘जंगनामा’ में किया गया है।
‘गदर के फूल’ के लेखक श्री अमृतलाल नागर को अवधी लोकभाषा में रचित ‘जंगनामा’ की यह हस्तलिखित पांडुलिपि मिली थी।
उनके यशस्वी पुत्र डॉ. शरद नागर ने पं. श्री उदय शंकर शास्त्री द्वारा संपादित, भारतीय साहित्य पत्रिका में प्रकाशित इस दुर्लभ पांडुलिपि के सरल भावांतर और संपादन का दायित्व डॉ. विद्या विंदु सिंह को दिया, जो इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है।
इसे प्रकाशित कराकर हुतात्मा पूर्वजों के ऋण से आंशिक निष्कृति का यह प्रयास किया जा रहा है। उस अभिनव अभिमन्यु की स्मृति जन-जन में राष्ट्र प्रेम की चेतना जगाती रहे, यही शुभकामना है।SKU: n/a -
Rupa Publications India, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
JUSTICE FOR THE JUDGE: AN AUTOBIOGRAPHY
Clear-eyed, inspiring and incisive, this is the story of a man of consummate ambition, who made a significant and lasting mark on India’s judicial landscape.
The Supreme Court of India has witnessed a succession of larger-than-life chief justices in its seven-decade history. But it has never seen the likes of Chief Justice Ranjan Gogoi. Fiery yet charming, and simultaneously principled and pragmatic, Gogoi is a fascinating man of contrasts who has intrigued observers across the political and social spectrum.
Now, for the first time, Gogoi tells the dramatic story of his life in fascinating detail in Justice for the Judge. He traces his journey from Dibrugarh in Assam to the highest court of the land through people, landmark cases and his own judicial ambition, and reveals the lessons he learnt along the way about the country’s legal system.
Never one to shy away from contentious issues, Gogoi provides a no-holds-barred account of the extraordinary events that characterized his tenure in the apex court—the ‘infamous’ press conference prior to his elevation as the most powerful judge in the land, unsubstantiated allegations of sexual harassment and the impact of tabloid journalism.
He also takes readers through the important meetings, intense interactions and private confrontation that preceded the landmark verdicts authored by him—Rafale and the contempt proceeding initiated against Mr Rahul Gandhi, Sabarimala, NRC and Ayodhya.
Justice for the Judge is also a definitive insider’s account that fills a large gap in our understanding of the drama and majesty of the nation’s highest court.SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
JYOTISH VIGYAN
ज्योतिष के तीन हिस्से हैं।
एक, जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के बीच में एक परिधि है–सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल, जो बिलकुल गहरा है, अनिवार्य, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो ऑल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है।
ओशोSKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Kachnar
महंत ने कहा- ‘सुमंतपुरी, तुमने एक बार मुझसे प्रश्न किया था कि मै र्द्वजन्म में कौन था।… आज उस प्रश्न का उत्तर देने का समय आ गया है।
.. .सुमंतपुरी, तुम उस जन्म में राजा थे, यह बात मैं पहले बतला चुका हूँ।’ सुमंतपुरी- ‘मैं कहाँ का राजा था, महाराज ‘
महंत-‘तुम सुमंतपुरी, र्द्वजन्म में इसी धामोनी के राजा थे।’
सुमंतपुरी- ‘धामोनी का!’
कचनार- ‘धामोनी के?’
महंत- ‘हो धामोनी के। मेरी बात में कोई संदेह नहीं।’
कचनार- ‘तो महाराज, अंत- पुरीजी का शरीर किसी और का है और आत्मा किसी और की है? कृपा करके समझाइए। मैं बहुत भ्रम में पड़ गई हूँ।
-एक जन्म में तीन जन्मों के स्मरण की ऐसी अनूठी, पर ऐतिहासिक कथा, जिससे चिकित्सा शास्त्र के अच्छे-अच्छे विद्वान् भी चकरा गए।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, कहानियां
Kahawati Kathayen (Kahawaton ke sath Kathayen)
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, कहानियांKahawati Kathayen (Kahawaton ke sath Kathayen)
कहावती कथाएँ (कहावतों के साथ कथाएँ) : कहावतों के महत्त्व के सम्बन्ध में अनेक बातें कही जा सकती है। यह पिछली पीढ़ियों के अनमोल अनुभवों का भण्डार है। कहावतें भाषा का श्रृंगार है, इनके प्रयोग से भाषा में सजीवता का संचार होता है। कहावतें झूठ नहीं बोलती, वे मानव के अनुभव की सन्तान है। कहावतें और मुहावरे लोगों की सम्पूर्ण सामाजिक और ऐतिहासिक अनुभूतियों के संक्षिप्त रूप है। ईसा मसीह, गौतम बुद्ध और सुविख्यात दार्शनिक अरस्तू कहावतों के प्रभाव को स्वीकार कर इनका बहुलता से प्रयोग करते थे।
प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक श्री विजयदान देथा जी राजस्थानी साहित्य और संस्कृति के विद्वान थे और उनका यह अद्वितीय शोध ग्रन्थ अथक परिश्रम तथा गहन गम्भीर सोच का प्रतिफल है, जो भावी पीढ़ियों के लिये उपयोगी बना ही रहेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ कहावतों के संकलन मात्र तक सीमित नहीं है। श्री विजयदान देथा ने राजस्थानी कहावतों की समाजशास्त्रीय, सांस्कृतिक साहित्यिक तथा भाषागत सारगर्भित विवेचना की है तथा कहावत से सम्बन्धित कथा का विवरण भी प्रस्तुत किया है। श्री विजयदान देथा ने कहावतों का रूपात्मक और विषयानुार वर्गीकरण कर अपने शोध ग्रन्थ को स्थाई महत्त्व प्रदान कर दिया है।SKU: n/a -
Hindi Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Kailash Manasarovar Teerthayatra: Bhaaratey Marg
-15%Hindi Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Kailash Manasarovar Teerthayatra: Bhaaratey Marg
Since times immemorial, Indian renunciates have been going on pilgrimage to Mount Kailash and Lake Manasarovar. This trek is considered one of the most difficult pilgrimage treks in the world. Merit thus accumulated by undertaking pilgrimage during the year of the Water Horse is considered to be multiplied manifold. In the pre-1959 period, the pilgrimage to Kailash and Manasarovar used to mainly attract sadhus from India. The general public mostly avoided this pilgrimage due to the harsh climate, tough terrain, and lawlessness in the region. However, pilgrimage in present times is largely undertaken by lay people. Not only the governments of India and China but also various local organizations on both sides of the border take interest in this exercise. As a result of this, many changes of far reaching consequences are taking place in the Himalayas. The author has made an attempt in this book to examine the history of the Indian tradition of pilgrimage to Kailash and Manasarovar; the perils and difficulties involved in this pilgrimage; the social, religious, geo-political, and economic factors on both sides of the Sino-Indian border that have affected, and have been affected in turn by this pilgrimage. pp. x + 146 ; Copiously Illustrated ; Bibliography ; Index.SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kala Pani (HB)
काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। काला पानी की विभीषिका, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अत: उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखे वर्णन का-सा पठन-सुख देता है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का वर्णन है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे। काला पानी के कैदियों पर कैसे-कैसे नृशंस अत्याचार एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार किए जाते थे, उनका तथ वहाँ की नारकीय स्थितियों का इसमें त्रासद वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्र भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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Vani Prakashan, कहानियां
KALJAYEE SUR : PANDIT BHIMSEN JOSHI
पंडित भीमसेन जोशी की संगीत यात्रा को बताती ये पुस्तक कई रौचक तथ्य हमारे सामने पेश करती है। भारतीय सिनेमा दुनिया में गीत संगीत एवं नृत्य की प्रधानता के कारण एक अलग पहचान रखती है| इसके नीव में ही संगीत रही है| मूक दौर में भी भारतीय सिनेमा संगीत से अलग नहीं था| जब बोलना शुरू किया तो यह विधा मुखर रूप से विस्तार लिया| सांगीतिक रोचकता और रौनकता प्रदान करने में सलिल चौधरी, सी रामचंद्रन, मदन मोहन, नौशाद जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है| हालाँकि आज के फ़िल्मी संगीत में वह तासीर नहीं बची है, जिस संगीत से भारतीय सिनेमा की पहचान थी| गीत संगीत एवं नृत्य भारतीय सिनेमा की पहली पहचान है|
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kaljayi Yoddha Chhatrasal Bundela
Om Parkash Pahujaडॉ. ओम प्रकाश पाहूजा ने भारत के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रों से विभिन्न उपाधियाँ प्राप्त कीं—हिंदू महाविद्यालय, सोनीपत से स्नातक; होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर से स्नातकोत्तर तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के भौतिकी तथा खगोल-भौतिकी विभाग से विद्या-वाचस्पति की उपाधि।
सन् 1972 से 2007 तक राजधानी महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) के भौतिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग में अध्यापन कार्य करते रहे। इससे पूर्व हिंदू महाविद्यालय, सोनीपत में छह वर्षों तक भौतिकी के प्राध्यापक रहे।
अध्यापन तथा सामाजिक कार्य इनके जीवन का उद्देश्य है। इनका सामाजिक जीवन स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद तथा महर्षि अरविंद जैसे दिव्य पुरुषों तथा दार्शनिकों से प्रेरित है। अध्यापन काल में नाभिकीय-भौतिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा कंप्यूटर के मौलिक सिद्धांत आदि उनके रुचिकर विषय रहे हैं।
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Gita Press, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kalyan Annual Number, Hindu-Sanskriti-Ank
यह विशेषांक भारतीय संस्कृतिके विभिन्न पक्षों – हिन्दू-धर्म, दर्शन, आचार-विचार, संस्कार, रीति-रिवाज पर्व-उत्सव, कला-संस्कृति और आदर्शोंपर प्रकाश डालनेवाला तथ्यपूर्ण बृहद् (सचित्र) दिग्दर्शन है। भारतीय संस्कृतिके उपासकों, अनुसन्धानकर्ताओं और जिज्ञासुओंके लिये यह अवश्य पठनीय तथा उपयोगी दिशा-निर्देशक है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Kanharde Prabandh Mein Sanskriti Aur Samaj
कान्हड़दे प्रबंध में संस्कृति और समाज : कवि पद्मनाभ कृत ‘कान्हड़दे प्रबंध’ राजस्थानी भाषा एवं साहित्य का एक गौरव ग्रंथ है। प्रस्तुत प्रबंध-काव्य में कवि की काव्य-प्रतिभा तथा पांडित्य के दर्शन तो होते ही हैं, इसके अतिरिक्त इसमें अपने युग का जीवंत व मनोरम चित्रण भी हुआ है। वस्तुतः ‘कान्हड़दे प्रबंध’ कथानायक के स्वाभिमान तथा स्वदेश-प्रेम का एक बेजोड़ नमूना है। इसके रचनाकार ने मानवीय संबंधों व संवेदनाओं को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है। इसमें कवि पद्मनाभ ने काव्योचित स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए इतिहास और कल्पना के योग से एक सुन्दर प्रबंध की योजना करने में सफलता प्राप्त की है। यद्यपि इस प्रबंध काव्य पर साहित्यिक दृष्टि से अभी तक कोई शोध कार्य सम्पन्न नहीं हुआ है, तथापि कतिपय शोध पत्रिकाओं में इसकी भाषिक संरचना पर एकाध फुटकर लेख अवश्य प्रकाशित हुए हैं। यही कारण है कि मैंने ‘कान्हड़दे प्रबंध में संस्कृति और समाज’ विषय पर शोध कार्य करने का मानस बनाया और उसी का यह सुफल इस पुस्तक के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है।
प्रस्तुत ग्रंथ को आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है। इन अध्यायों में कवि पद्मनाभ और कान्हड़दे का परिचय, कान्हड़दे प्रबंध के प्रबंध तत्वों का मूल्यांकन एवं उनके काव्य रूप की समीक्षा, आलोच्य काव्य-ग्रंथ की छंद एवं अलंकार- योजना की विवेचना, ‘कान्हड़दे प्रबंध’ का भाषा शास्त्रीय अनुशीलन, कान्हड़दे प्रबंध में वर्णित समाज के स्वरूप, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक-जीवन, सामाजिक संस्थाओं तथा सांस्कृतिक उपादानों के सम्यक विवेचन, रचना के उद्देश्य एवं जीवन-संदेश आदि समाहित है।
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रंथ प्रत्येक इतिहासकार, शोधार्थी एवं पाठकगणों हेतु उपयोगी साबित होगा।
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Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास
Kargil
पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में ‘कारगिल’ सबसे कठिन और ताज़ा युद्ध है। जब पाकिस्तान ने धोखे से, चोरी-छिपे, कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों के एक बड़े हिस्से पर अपनी चैकियां बना ली थीं, तब कैसे भारत की थलसेना के वीर जवानों और हमारी वायुसेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को वहाँ से खदेड़ा, पूरी तरह परास्त किया और फिर से सारी भूमि पर अपना तिरंगा फहराया। युद्धों के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व विजय है। इस पुस्तक का विशेष प्रकरण है, पाकिस्तान के डिक्टेटर परवेज़ मुशर्रफ की हाल ही में प्रकाशित हुई पुस्तक ‘इन द लाइन आफ फायर’ में किये गये झूठे दावों का मुँहतोड़ उत्तर, जो इस पुस्तक के लेखक जनरल वी.पी. मलिक ने दिया है, पूरे प्रमाणों के साथ। भारत -पाक संबंधों और काश्मीर की समस्या को समझने के लिए यह पुस्तक एक आवश्यक दस्तावेज़ है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kargil (HB)
कारगिल युद्ध की बीसवीं वर्षगाँठ पर इसके वीर सैनिकों की कहानियों के जरिए बेहद ठंडे युद्धक्षेत्र का दोबारा अनुभव कीजिए।
असहाय पैराट्रूपर के एक समूह ने अपनी ही पोजीशन पर बोफोर्स गनों से फायर करने को क्यों कहा?
पालमपुर का एक वृद्ध व्यक्ति अपने शहीद फौजी बेटे को न्याय दिलाने के लिए आखिर क्यों लड़ रहा है?
एक शहीद जवान का पिता हर साल एक कश्मीरी युवती के घर क्यों जाता है?
‘कारगिल’ पर लिखी यह पुस्तक आपको ऐसे दुर्गम पर्वत शिखरों पर ले जाती है, जहाँ भारतीय सेना ने कुछ रक्तरंजित लड़ाइयाँ लड़ीं। इस युद्ध को लड़नेवाले जवानों और शहीदों के परिवारवालों से साक्षात्कार के बाद रचना बिष्ट रावत ने अदम्य मानवीय साहस दिखानेवाली ये कहानियाँ लिखी हैं, जिनका सरोकार केवल वर्दीधारियों से नहीं, बल्कि उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करनेवाले लोगों से भी है। अप्रतिम साहस की कहानियाँ सुनाती यह पुस्तक हमारे लिए अपने प्राणों की आहुति देनेवाले 527 युवा बहादुरों के अलावा उन शूरवीरों को भी एक श्रद्धांजलि है, जो इस आहुति को देने के लिए तैयार बैठे थे।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kargil Ke Paramvir Captain Vikram Batra
‘मैं या तो जीत का भारतीय तिरंगा लहराकर लौटूँगा या उसमें लिपटा हुआ आऊँगा, पर इतना निश्चित है कि मैं आऊँगा जरूर।’
कैप्टन बत्रा ने अपने साथी को यह कहकर किनारे धकेल दिया कि तुम्हें अपने परिवार की देखभाल करनी है और अपने सीने पर गोलियाँ झेल गए। कैप्टन बत्रा 7 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में अपने देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। बेहद कठिन चुनौतियों और दुर्गम इलाके के बावजूद, विक्रम ने असाधारण व्यक्तिगत वीरता तथा नेतृत्व का परिचय देते हुए पॉइंट 5140 और 4875 पर फिर से कब्जा जमाया। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। विक्रम मात्र 24 वर्ष के थे।
‘कारगिल के परमवीर : कैप्टन विक्रम बत्रा’ में उनके पिताजी जी.एल. बत्रा ने अपने बेटे के जीवन की प्रेरणाप्रद घटनाओं का वर्णन किया है और उनकी यादों को फिर से ताजा किया है। उन्होंने आनेवाली पीढि़यों में जोश भरने और वर्दी धारण करनेवाले पुरुषों के कठोर जीवन का उल्लेख भी किया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kargil Ki Ankahi Kahani
कारगिल, 1999 पाकिस्तानी सैनिकों की पूरी-की-पूरी दो ब्रिगेड भारतीय इलाके में घुस आई और भारतीय सेना को कानो-कान खबर मिलने तक अपनी मोर्चाबंदी कर ली। भारतीय सेना के आला अफसरों ने चेतावनियों की अनदेखी की और खतरे के साथ ही घुसपैठियों की संख्या को तब तक कम बताते रहे जब तक कि बहुत देर नहीं हो गई। पैदल सैनिकों को आधे-अधूरे नक्शों, कपड़ों, हथियारों के साथ आगे धकेल दिया गया, जबकि उन्हें न तो यह जानकारी थी कि दुश्मनों की संख्या कितनी है या उनके हथियार कितनी ताकत रखते हैं! वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार, परमवीर चक्र विजेता, कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता श्री जी.एल. बत्रा के लिखे पूर्वकथन के साथ, यह कारगिल की सच्ची कहानी है। डायरी के प्रारूप में लिखी यह पुस्तक, पहली बार उन घटनाओं का सच्चा, विस्तृत तथा विशिष्ट वर्णन करती है, जिनके कारण आक्रमण किया गया; साथ ही घुसपैठियों के कब्जे से चोटियों को छुड़ाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में भारतीय वीरों की शूरवीरता को भी रेखांकित करती है।
मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति देनेवाले जाँबाज भारतीय सैनिकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है यह पुस्तक।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Karna Ki Atmakatha (HB)
-15%Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासKarna Ki Atmakatha (HB)
‘यही तो विडंबना है कि तू सूर्यपुत्र होकर भी स्वयं को सूतपुत्र समझता है, राधेय समझता है; किंतु तू है वास्तव में कौंतेय। तेरी मां कुंती है।” इतना कहकर वह रहस्यमय हंसी हंसने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कुछ संकेतों और कुछ शब्दों के माध्यम से मेरे जन्म की कथा बताई।
”मुझे विस्वास नहीं होता, माधव!” मैंने कहा। ”मैं समझ रहा था कि तुम विस्वास नहीं कसेगे। किंतु यह भलीभाति जानी कि कृष्ण राजनीतिक हो सकता है, पर अविश्वस्त नहीं। ”उसने अपनी मायत्वी हँसी में घोलकर एक रहस्यमय पहेली मुझे पिलानी चाही, चो सरलता से मेरे गले के नीचे उतर नहीं रही थी। वह अपने प्रभावी स्वर में बोलता गया, ”तुम कुंतीपुत्र हो। यह उतना ही सत्य है जितना यह कहना कि इस समय दिन है, जितना यह कहना कि मनुष्य मरणधर्मा है, जितना यह कहना कि विजय अन्याय की नहीं बल्कि न्याय की होती है।”
”तो क्या मैं क्षत्रिय हूँ?” एक संशय मेरे मन में अँगड़ाई लेने लगा, ‘आचार्य परशुराम ने भी तो कहा था कि भगवान् भूल नहीं कर सकता। तू कहीं-न- कहीं मूल में क्षत्रिय है। जब लोगों ने सूतपुत्र कहकर मेरा अपमान क्यों किया?’ मेरा मनस्ताप मुखरित हुआ, ”जब मैं कुंतीपुत्र था तो संसार ने मुझे सूतपुत्र कहकर मेरी भर्त्सना क्यों की?”
”यह तुम संसार से पूछो। ”हँसते हुए कृष्ण ने उत्तर दिया।
”और जब संसार मेरी भर्त्सना कर रहा था तब कुंती ने उसका विरोध क्यों नहीं किया?”SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Karwat
प्रेमचन्द के बाद विश्व प्रसिद्ध श्रेष्ठ उपन्यासकारों में श्री अमृतलाल नागर का एक विशिष्ट स्थान है। उनके अन्य उपन्यास ‘मानस का हंस’, ‘खंजन नयन’, ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’, ‘बूंद और समुद्र’, ‘बिखरे तिनके’, ‘सेठ बांकेमल’, ‘भूख’, ‘सात घूंघट वाला मुखड़ा’ तथा ‘अमृत और विष’ हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं, जिनमें मानव-जीवन की सजीव अभिव्यक्ति अत्यन्त रोचक शैली में हुई है।
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Hindi Books, Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
-10%Hindi Books, Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिKashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
काशी उस सभ्यता की सदा से परिपोषक रही है, जिसे हम भारतीय सभ्यता कहते हैं और जिसके बनाने में अनेक मत-मतान्तरों और विचारधाराओं का सहयोग रहा है। यही नहीं, धर्म, शिक्षा और व्यापार से वाराणसी का घना सम्बन्ध होने के कारण इस नगरी का इतिहास केवल राजनीतिक इतिहास न होकर एक ऐसी संस्कृति का इतिहास है जिसमें भारतीयता का पूरा दर्शन होता है। लेखक ने इतिहास और संस्कृति सम्बन्धी बिखरी हुई सामग्री को जोड़कर इस इतिहास का निखरा स्वरूप खड़ा किया है। रोचक सामग्री का भी प्रचुर उपयोग करके नगर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। लेखक की दृष्टि में इतिहास केवल शुष्क घटनाओं का निर्जीव ढाँचा नहीं है, उसमें हम समाज की प्रक्रियाओं तथा धाॢमक अभिव्यक्तियों का भी पूर्णरूप से दर्शन कर सकते हैं। अपने विषय की एकमात्र कृति तो यह है ही। तृतीय संस्करण में काशी के 18वीं-19वीं शताब्दी के अत्यन्त दुर्लभ चित्र सम्मिलित किये गये हैं।
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