Nonfiction Books
Showing 1153–1176 of 1463 results
-
Garuda Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sarasvati Sabhyata: Pracheen Bharatiya Itihaas Mein Ek Mahatvapoorna Parivartan
Garuda Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSarasvati Sabhyata: Pracheen Bharatiya Itihaas Mein Ek Mahatvapoorna Parivartan
हड़प्पा निवासी कौन थे? वे आज के भारतीय से किस तरह संबंधित थे? क्या कभी कोई आर्य आक्रमण हुआ भी? ‘सरस्वती सभ्यता: प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन’ नामक यह पुस्तक सैटेलाइट चित्रों, भौगोलिक विज्ञान, पुरातत्व सर्वेक्षण, पुरालेखों, डीएनए शोधों और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में हुए नए शोधों और स्पष्टीकरणों को सामने लाती है। प्राचीन भारतीय इतिहास से जुड़े ये शोध अंग्रेजों के समय में उपलब्ध नहीं थे। जिसके कारण 19वी शताब्दी में सरस्वती नदी घाटी के बारे में कई तथ्य सामने नहीं आ पाए। आज से लगभग पांच से छह हजार साल पहले, महान सरस्वती नदी अपने पूर्ण प्रवाह में वेगवान रूप से विद्यमान थी। यह भारतीय सभ्यता का केंद्र बिंदु थी। जिस सिंधु घाटी सभ्यता की हमेशा बात की जाती है, वह लगभग 60 से 80 प्रतिशत सरस्वती नदी के तटों पर बसी थी, न की सिंधु नदी घाटी के तटों पर। भारतीय इतिहास के अध्ययन में सरस्वती नदी का सूख जाना बहुत बड़ा घटनाक्रम रहा है जिसके कारण प्राचीन भारतीयों को पलायन करना पड़ा। नए साक्ष्यों की मौजूदगी के साथ अब वह समय आ गया है, जब भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण पहलूओं को ठीक से समझा जा सके। यह पुस्तक प्रामाणिक भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए नए द्वार खोलती है।
SKU: n/a -
Aryan Books International, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
SARASWATI BAH RAHI HAI : सरस्वती बह रही है
-10%Aryan Books International, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSARASWATI BAH RAHI HAI : सरस्वती बह रही है
सरस्वती बह रही है: भारतीय संस्कृति का निरंतर प्रवाह
यह पुस्तक प्राचीन भारत की दो प्रमुख परस्पर विरोधी मान्यताओं पर विचार करती है।
प्रथम-कुछ भारतीय और अधिकांश पाश्चात्य विद्वानों की मान्यता है कि ऋग्वैदिक सरस्वती नदी अफ़ग़ानिस्तान की हेलमण्ड नदी है। लेखक ने ऋग्वेद के पूरे साक्ष्यों का विश्लेषण किया और यह दिखाने का प्रयास किया है कि पूर्वोक्त मान्यता सर्वथा निराधार है। ये मान्यताएँ ऋग्वैदिक साक्ष्यों के विपरीत जाती हैं। दूसरी ओर ऋग्वेद की ही भौगोलिक सामग्रियाँ स्पष्ट करती हैं कि ऋग्वैदिक सरस्वती और दूसरी कोई नहीं, आज की सरस्वती-घग्गर नदी है और यह दोनों साथ मिल कर हरियाणा और पंजाब से होकर बहती थीं। यद्यपि अब यह सिरसा के पास सूख गयी हैं और इसका सूखा क्षेत्र कहीं कहीं तक़रीबन 8 किलोमीटर चैड़ा है। अन्ततः यह नदी अरब सागर में जाकर मिलती थी।
दूसरा-आर्यो ने भारतवर्ष पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप हड़प्पा सभ्यता का अस्तित्व मिट गया। लेखक का कहना है कि ऐसे किसी आक्रमण के होने के कोई संकेत नहीं मिलते। हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता एक ही सिक्के के दो पक्ष हैं। यदि आप 4500 वर्ष पूर्व के हड़प्पा के आवासों मे जाएँ तो यह देख कर आश्चर्यचकित न हों कि स्त्री अपनी माँग मे सिंदूर भर रही है। हरियाणा-राजस्थान के किसान पूर्व की भाँति आज भी अपने खेत जोतते हैं। योगासन, जो आज पाश्चात्य देशों ने भी अपनायें हैं, वह भी हड़प्पा वासियों की ही देन हैं और यदि आप नमस्ते से अभिवादन करना चाहते हैं तो हड़प्पावासी प्रसन्न होकर हाथ जोड़ नमस्ते करते मिल जाएँगे। अतः भारत की आत्मा सदैव जीवित रही है और जीवित रहेगी।SKU: n/a -
Garuda Prakashan, Literature & Fiction, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sardar Patel: The Supreme Architrect In Unification of India (Volume 1)
Garuda Prakashan, Literature & Fiction, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSardar Patel: The Supreme Architrect In Unification of India (Volume 1)
India’s independence from the British on August 15, 1947, was preceded by its partition on religious lines having a murky history of dangerous antics and shenanigans of the likes of Muslim League, Jinnah and others; supported, either by accident or design, by Congress and its leadership. That Nehru failed miserably to control the situation, in which there was bloodshed, communal hatred, brutalization of women and loss of India’s territory, is a well-known story. The question is what would have been the status of India’s political borders had, say, Nehru been in charge of ‘unifying’ India – that is bringing together more than 500 princely states within the Indian union? We could well have been left to wishful thinking – “Had Sardar been the in-charge of the department handling unification of princely states within the Indian union”. This book, a well-researched document, takes the reader step-by-step on how Sardar went after the task; and how diligently he completed them. Of course, the story of Hyderabad and Junagarh is slightly more well-known. But do you know how Chhattisgarh and Orissa (now Odisha), or even Lunavada (in Gujarat), Deccan States and so many others were included in the Indian union? Do we today ever realise that these states were ‘not part of independent India’? That is why we say it is not only a book for history enthusiasts but all students, who ought to know the real political map of our country when it became independent.
SKU: n/a -
Garuda Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sardar Patel: The Supreme Architrect In Unification of India (Volume 2)
Garuda Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSardar Patel: The Supreme Architrect In Unification of India (Volume 2)
How many of us really know how the issues related to North-Eastern states were handled? Or, for that matter, what was Privy Purse for the princely states? Why Sardar was worried that they were attempts not to grant them Constitutional status (Indira Gandhi got it abolished in the early 1970s)? Further, this book sheds special light on how the Hyderabad episode was handled. Coming from a former Judge, also the author of “Nehru’s Himalayan Blunders”, the book provides to-the-point arguments based on official documents, a large number of which have been quoted verbatim. For those who wanted to know anything about the humongous effort of Sardar in unifying India, be it a student or a researcher or just anyone wanting to more about one’s own country, this book is a real eye-opener. We all know that India has existed thousands and thousands of years before 1947. But, had Sardar been the king of yesteryears, he could well have been known as the ‘chakravartin’, who brought entire India under one umbrella – that is the Indian union. Read this book know how he achieved that feat – democratically.
SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sarjana Path Ke Sahyatri
निर्मल वर्मा निश्चय ही हिन्दी के उन रचनाकारों में आते हैं जिन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से अपना आत्मीय, जादुई और निराला संसार रचा है। उन्होंने समय-समय पर अपने प्रिय लेखकों-कलाकारों पर लिखा है। इन लेखों में उन्होंने ‘आलोचन की लगी-बँधी खूँटी से अपने को छुड़ाकर’ आत्मीय प्रतिक्रियाओं के प्रवाह में स्वयं को बहने दिया है। भाषा के नैतिक और आध्यात्मिक आयामों को विकसित करती उनकी ये आत्मीय और पारदर्शी गद्य रचनाएँ मूर्धन्य व्यक्तियों के आलोक और अँधेरे को जिस सजीवता के साथ प्रकट करती हैं वह दुर्लभ साधना और अनिवार्य जिज्ञासा से ही अर्जित की जा सकती हैं। इस पुस्तक में देश के लगभग तमाम महत्त्वपूर्ण रचनाकारों- प्रेमचन्द, महादेवी वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, रेणु, मुक्तिबोध, भीष्म साहनी, धर्मवीर भारती, मलयज और चित्रकारों-कलाकारों- हुसेन, रामकुमार, स्वामीनाथन पर तो आलेख हैं ही बोर्ख़ेज, नायपाल, नाबोकोव, राब्बग्रिये और लैक्सनेस पर भी बेहद संजीदगी और तरल संवेदना से लैस रचनाएँ संकलित हैं। निश्चय ही पाठकों को यह पुस्तक निर्मलजी की अन्य पुस्तकों की तरह बेहद पठनीय और मननीय लगेगी। kapot Books, NIRMAL VERMA BOOKS, story, Vani Prakashan Books
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Sarthi
डॉ यशिका का यह प्रथम काव्य-संग्रह है। उनके दीर्घ अनुभवों ने अल्प समय में उन्हें शब्दों पर सटीक पकड़ बनाना सिखा दिया है।
उनकी अदालतों में भले ही कुछ फैसले साक्ष्यों के आधार पर दिए गए हों, लेकिन उनके मन की अदालत ने सदैव न्याय ही किया है। वादी-प्रतिवादी के सम्मुख उनकी रचनाएँ जैसे एक न्यायाधीश के रूप में सामने खड़ी हो गई हैं। कठोर निर्णय लेते हुए भी उनका कोमल हृदय भीतर से कितना पसीजा है, यह उनकी कविताओं को पढ़कर ही समझा जा सकता है। शब्दों पर गहरी पकड़, उर्दू अल्फाजों का सटीक प्रयोग उन्हें अपने समकालीन रचनाकारों से बहुत अलग, बहुत आगे ले गया है। ईश्वर उनकी लेखनी से सदैव न्याय ही प्रवाहित कराए। इसी प्रार्थना के साथ यह विश्वास भी है कि उनकी कविताएँ लोगों को एक नया उजियारा देने में सहायक सिद्ध होंगी। उनके शब्दों से पाठकों को नया हौसला मिलेगा। उनके शब्द सहारा बनेंगे उन लोगों का, जिन्हें अपनी उम्मीदों के दामन को समय की आँधियों में बचाना मुश्किल हो रहा है।
SKU: n/a -
Aryan Books International, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Sati: Evangelicals, Baptist Missionaries, and the Changing Colonial Discourse
-10%Aryan Books International, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासSati: Evangelicals, Baptist Missionaries, and the Changing Colonial Discourse
Meenakshi is a meticulous professional historian, she quotes all the relevant sources, with descriptions of Sati from the ancient through the medieval to the modern period. She adds the full text of the relevant British and Republican laws and of Lord Wiliam Bentinck’s Minute on Sati (1829), that led to the prohibition on Sati. This book makes the whole array of primary sources readily accessible, so from now on, it will be an indispensible reference for all debates on Sati.
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Satrangi Sanskriti
सतरंगी संस्कृति (राजस्थानी निबंध संग्रै)
accordingly ‘सतरंगी संस्कृति’ सिरैनाम वाळो ओ निबंध संग्रै सुधी समालोचक संग्राम सिंह सोढा रै ऊंडै अनुभव, गहन चिंतन, सतत स्वाध्याय अर सोझीवान दीठ सूं गूंथीज्योड़ो इसो गुण – गजरो जिणमें न्यारी-न्यारी भांत रा 13 निकेवळा सुमनां री सोरम सुधी – पाठक रै अंतस में आणंद उपजावै। आपरी मायड़ भाषा सं अणहद हेत राखणियां कवि, निबंधकार अर समालोचक श्री सोढा बडी खामचाई सूं भाषा, साहित्य, संस्कृति, लोक, परंपरा, विकास, वैभव अर अणगिण उदाहरणां सूं आपरी बात नै पुख्ताऊ अंजाम देवै। Satrangi Sanskriti
निबंध-संग्रै री विषै सामग्री इण बात री साख भरै कै रचनाकार आपरै लोक अर साहित्य री वाचिक परंपरा सूं गैरो जुड़ाव राखै। निबंधकार आपरी हरेक थापना नैं किणी न किणी, लोकप्रसिद्ध कैबत या दूहै सूं प्रमाणित करै। श्री सोढा आछी तरियां जाणै कै राजस्थानी साहित्यकारां उत्कृष्ट रै अभिनंदन अर निकृष्ट रै निंदण री आखड़ी पाळी है। इण साहित्य रौ प्रयोजन अकदम साफ रैयो है कै जको स्वतंत्रता से पुजारी है, स्वाभिमानी है, नीति- न्याय रो पखधर है, अनीति अर अन्याय रो विरोधी धरम रो रखवाळो है, उणरी सोभा सवाई हुणी चाईजै।
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास
Satya Ke Sath Mere Prayog- Mahatma Gandhi
सत्य के साथ मेरे प्रयोग मैं जो प्रकरण लिखने वाला हूँ, इनमें यदि पाठकों को अभिमान का भास हो, तो उन्हें अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि मेरे शोध में खामी है और मेरी झाँकियाँ मृगजल के समान हैं। मेरे समान अनेकों का क्षय चाहे हो, पर सत्य की जय हो। अल्पात्मा को मापने के लिए हम सत्य का गज कभी छोटा न करें।
मैं चाहता हूँ कि मेरे लेखों को कोई प्रमाणभूत न समझे। यही मेरी विनती है। मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि उनमें बताए गए प्रयोगों को दृष्टांत रूप मानकर सब अपने-अपने प्रयोग यथाशक्ति और यथामति करें। मुझे विश्वास है कि इस संकुचित क्षेत्र में आत्मकथा के मेरे लेखों से बहुत कुछ मिल सकेगा; क्योंकि कहने योग्य एक भी बात मैं छिपाऊँगा नहीं। मुझे आशा है कि मैं अपने दोषों का खयाल पाठकों को पूरी तरह दे सकूँगा। मुझे सत्य के शास्त्रीय प्रयोगों का वर्णन करना है। मैं कितना भला हूँ, इसका वर्णन करने की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है। जिस गज से स्वयं मैं अपने को मापना चाहता हूँ और जिसका उपयोग हम सबको अपने-अपने विषय में करना चाहिए।
—मोहनदास करमचंद गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग हम सबको अपने आपको आँकने, मापने और अपने विकारों को दूर कर सत्य पर डटे रहने की प्रेरणा देती है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Satyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
-5%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्यSatyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
सन् 1925 में श्री गोविन्दराम जी ने अनेक विषेषताओं से युक्त सत्यार्थ प्रकाष का प्रथम संस्करण ऋषि जन्म शताब्दी के अवसर पर कलकत्ता से प्रकाषित किया था।
उसके पष्चात सन् 1962 में पं. भगवद्दत्त जी रिसर्च स्कॉलर ने उपयोगी शब्द सूचियों, प्रमाण सूचियों परिषिष्ठों आदि अनेक विषेषताओं के साथ सत्यार्थ प्रकाष का सम्पादन किया।
पं. भगवद्दत्त जी द्वारा सम्पादित इस सत्यार्थ प्रकाष में पाठकों की सुविधा, जिज्ञासा की शांति एवम् शोध में लगे व्यक्तियों के लिए अनेक विषिष्टताएं उपलब्ध हैं।
इस संस्करण में ऋषि की मूल प्रति से भी मिलान का यथासम्भव प्रयास किया है, तथा अनेक अषुद्धियों को भी सुधारा गया है। सभी पैराग्राफों पर क्रमांक देना इसकी एक अनूठी विषेषता है।
इन सब विषेषताओं के लिए पं. भगवद्दत्त जी, पं. जयदेव विद्यालंकार, पं. रामचन्द्र देहलवी, पं. वीरसेन वेदश्रमी, स्वामी जगदीष्वरानन्द तथा पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी के प्रति हम आभार प्रकट करते हैं।
पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने कहा था कि ‘‘मैंने सत्यार्थ प्रकाष को 18 बार पढ़ा है, जितनी बार भी मैंने इसे पढ़ा, मुझे प्रत्येक बार नया-नया ज्ञान प्रकाष मिला है
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Savarkar : Vichar Ki Prasangikta (PB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSavarkar : Vichar Ki Prasangikta (PB)
स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर (1883-1966) बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी महान् स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सुधारक, लेखक, कवि, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वीर सावरकर के सामाजिक और धार्मिक सुधारों के विचार, आधुनिक सोच, वैज्ञानिक और तकनीकी साधनों को अपनाना इत्यादि बातें 21वीं सदी में भी प्रासंगिक हैं।
‘सावरकर: विचार की प्रासंगिकता’ के रूप में वीर सावरकर के दूरदर्शी ज्ञान के 25 अमूल्य मोती डॉ. अशोक मोडक के गहन अध्ययन एवं शोध का परिणाम हैं।
पच्चीस अध्यायों में सावरकर के अपने उद्धरण, लेखक की विशेषज्ञ टिप्पणियाँ और वरिष्ठ राजनीतिज्ञों, समाज-सुधारकों, बुद्धिजीवियों की लगभग 60 सहायक टिप्पणियाँ 21वीं सदी के नए भारत के लिए सावरकर के निम्नलिखित दूरदर्शी संदेशों की प्रासंगिकता को दर्शाती हैं—
- एकता द्वारा एक मजबूत सामंजस्यपूर्ण सामाजिक ताने-बाने का निर्माण।
- हिंदुत्व के माध्यम से संपूर्ण हिंदू जाति को आत्मसात् करना।
- भारत की संपूर्ण सुरक्षा के लिए सशक्त विदेश नीतियाँ।
- मानवजाति के संपूर्ण सुख के लिए श्रेष्ठ भारत।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Savarkar Samagra (Set of Ten Vols.)
-17%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSavarkar Samagra (Set of Ten Vols.)
‘सावरकर’ शब्द साहस, शौर्य, पराक्रम और राष्ट्रभक्ति का पर्याय है। क्रांतिकारी इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित स्वातंत्र्यवीर सावरकर का समूचा व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों से संपन्न था । मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता व अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्ट करने का आग्रह करनेवाले महान् द्रष्टा; ‘ गीता ‘ के कर्मयोग सिद्धांत को अपने जीवन में आचरित करनेवाले अद्भुत कर्मचोगी; अनादि- अनंत परमात्मा का प्राणमय प्रस्कुरण स्वयं के अंदर सदैव अनुभव करते हुए अंदमान जेल की यातनाओं को धैर्यपूर्वक सहनेवाले महान् दार्शनिक, अपने तेजस्वी विचारों से सहस्रों श्रोताओं को झकझोर देने और उन्हें सम्मोहित करनेवाले अद्भुत वक्ता तथा कविता, उपन्यास, कहानी, चरित्र, आत्मकथा, इतिहास, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में उच्च कोटि के साहित्य की रचना करनेवाले प्रतिभाशाली साहित्यकार थे स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ।
स्वतंत्रता-संग्राम एवं समाज-सुधार जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कार्य करनेवाला व्यक्ति उच्च कोटि का साहित्यकार भी हो, यह अपवाद है- और इस अपवाद के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वीर सावरकर ।
भारतीय वाड्मय में उनके साहित्य का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है; किंतु वह अधिकांश मराठी में उपलब्ध होने के कारण इस महान् साहित्यकार के अप्रतिम योगदान के बारे में अन्य भारतीय भाषाओं के पाठक अधिक परिचित नहीं हैं ।
वीर सावरकर के चिर प्रतीक्षित समग्र साहित्य का प्रकाशन हिंदी जगत् के लिए गौरव की बात है ।SKU: n/a