Sardar Vallabh Bhai Patel (Sachitra)
सरदार वल्लभ भाई पटेल (सचित्र)
Rs.75.00
Sardar Vallabh Bhai Patel (Sachitra)
सरदार वल्लभ भाई पटेल (सचित्र)
Weight | .80 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
Author : Priti Prabha Goyal
Language : Hindi
Edition : 2016
ISBN : 9788192447216
Publisher : RG GROUP
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सुभाषचंद्र बोस की ‘भारत की खोज’; जवाहरलाल नेहरू की तुलना में उनके जीवन में काफी पहले ही हो गई; यानी उन दिनों वे अपनी किशोरावस्था में ही थे। वर्ष 1912 में पंद्रह वर्षीय सुभाष ने अपनी माँ से पूछा था; ‘स्वार्थ के इस युग में भारत माता के कितने निस्स्वार्थ सपूत हैं; जो अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर इस आंदोलन में हिस्सा ले सकते हैं? माँ; क्या तुम्हारा यह बेटा अभी तैयार है?’’ 1921 में भारतीय सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर वह आजादी की लड़ाई में कूदने ही वाले थे कि उन्होंने अपने बड़े भाई शरत को पत्र लिखा; ‘‘केवल बलिदान और कष्ट की भूमि पर ही हम अपने राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।’’ दिसंबर 1937 में बोस ने अपनी आत्मकथा के दस अध्याय लिखे; जिसमें 1921 तक की अपनी जीवन का वर्णन किया था और ‘माई फेथ-फिलॉसोफिकल’ शीर्षक का एक चिंतनशील अध्याय भी था। सदैव ऐसा नहीं होता कि जीवन के बाद के समय में लिखे संस्मरणों को शुरुआती; बचपन के दिनों की प्राथमिक स्रोत की सामग्री के साथ पढ़ा जाए।
बोस के बचपन; किशोरावस्था व युवावस्था के दिनों के सत्तर पत्रों का एक आकर्षक संग्रह इस आत्मकथा को समृद्ध बनाता है। इस प्रकार यह ऐसी सामग्री उपलब्ध कराता है; जिसकी सहायता से उन धार्मिक; सांस्कृतिक; नैतिक; बौद्धिक तथा राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है; जिनसे भारत के इस सर्वप्रथम क्रांतिधर्मी राष्ट्रवादी के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण हुआ।
स्वामी विवेकानंद नवजागरण के पुरोधा थे। उनका चमत्कृत कर देनेवाला व्यक्तित्व, उनकी वाक्शैली और उनके ज्ञान ने भारतीय अध्यात्म एवं मानव-दर्शन को नए आयाम दिए। मोक्ष की आकांक्षा से गृह-त्याग करनेवाले विवेकानंद ने व्यक्तिगत इच्छाओं को तिलांजलि देकर दीन-दुःखी और दरिद्र-नारायण की सेवा का व्रत ले लिया। उन्होंने पाखंड और आडंबरों का खंडन कर धर्म की सर्वमान्य व्याख्या प्रस्तुत की। इतना ही नहीं, दीन-हीन और गुलाम भारत को विश्वगुरु के सिंहासन पर विराजमान किया। ऐसे प्रखर तेजस्वी, आध्यात्मिक शिखर पुरुष की जीवन-गाथा उनकी अपनी जुबानी प्रस्तुत की है प्रसिद्ध बँगला लेखक श्री शंकर ने। अद्भुत प्रवाह और संयोजन के कारण यह आत्मकथा पठनीय तो है ही, प्रेरक और अनुकरणीय भी है।
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