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Hindi Books, Penguin, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Savarkar: A Contested Legacy from A Forgotten Past
-10%Hindi Books, Penguin, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSavarkar: A Contested Legacy from A Forgotten Past
As the intellectual fountainhead of the ideology of Hindutva, which is in political ascendancy in India today, Vinayak Damodar Savarkar is undoubtedly one of the most contentious political thinkers and leaders of the twentieth century. From the heady days of revolution and generating international support for the cause of India’s freedom as a law student in London, Savarkar found himself arrested, unfairly tried for sedition, transported and incarcerated at the Cellular Jail, in the Andamans, for over a decade, where he underwent unimaginable torture.
Decades after his death, Savarkar continues to uniquely influence India’s political scenario. An optimistic advocate of Hindu-Muslim unity in his treatise on the 1857 War of Independence, what was it that transformed him into a proponent of ‘Hindutva’? What was it that transformed him in the Cellular Jail to a proponent of ‘Hindutva’, which viewed Muslims with suspicion?
This two-volume biography series, exploring a vast range of original archival documents from across India and outside it, in English and several Indian languages, historian Vikram Sampath brings to light the life and works of Vinayak Damodar Savarkar, one of the most contentious political thinkers and leaders of the twentieth century.
Comprehensive, definitive and absolutely unputdownable, this two-volume biography opens a window to previously unknown untold life of Vinayak Damodar Savarkar.
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English Books, Rupa Publications India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Saving India from Indira: The Untold Story of Emergency
-15%English Books, Rupa Publications India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Saving India from Indira: The Untold Story of Emergency
‘Goyal was not merely witness to history but an active participant in its making.’ —Arun Jaitley During the nearly seventy-two years since Independence, India has deviated from democratic life only once—during the twenty-one months of Indira Gandhi’s Emergency. Saving India from Indira describes the events leading up to, and during the darkest days of, democratic India, as they actually unfolded. Recounted by J.P. Goyal, a key lawyer for Raj Narain in the famous election case against Mrs Gandhi that led to the imposition of the so-called National Emergency on 25 June 1975 at the behest of then prime minister Indira Gandhi, this no-holdsbarred account of a crucial insider describes the twists and turns in this case in the Allahabad High Court and the Supreme Court of India. It gives a blow-by-blow account of the battle that Goyal, along with a battery of lawyers, waged in the Supreme Court to defend the Constitution of India against the amendments that could alter its basic structure. This gripping narrative includes an account of Goyal’s meetings with political leaders in jail, including Jayaprakash Narayan and Raj Narain, and reveals many hitherto unknown facts that Goyal was privy to. Saving India from Indira is a sharp memoir of one of those few who fought against the misdeeds of the dark era and recorded events for posterity.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Senapati Tatya Tope
जिन दिनों श्रीमती रंजना चितले वीर तात्या टोपे के संदर्भ तलाश रही थीं, तब यह प्रश्न मेरे मन में बार-बार आया कि इन्होंने शोधात्मक लेखन के लिए तात्या टोपे को ही क्यों चुना? जब मैंने रंजनाजी के परिवार के बारे में जाना तो मुझे पता चला कि इनके परिवार का तात्या टोपे और तात्या टोपे की जीवनधारा से पीढि़यों का नाता है। रंजनाजी के पूर्वज तेलंगाना के मूल निवासी थे। अन्य लोगों के साथ इनके पूर्वजों को
भी छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू पदपादशाही के सशक्तीकरण के काम में लगाया था। उन्हें सात पीढ़ी पहले पाँच गाँव की जागीर देकर पीलूखेड़ी में बसाया गया था। पारिवारिक वृत्तांत के अनुसार 1857 की क्रांति के अमर नायक नाना साहब पेशवा ने अपने जीवन की अंतिम साँस इसी स्थान पर ली थी। वहाँ उनकी समाधि बनी है। इसी परिवार ने अंतिम समय में उनकी देखभाल की थी। सिपाही बहादुर सरकार के क्रांतिकारी आंदोलन में इस परिवार ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और 1857 की क्रांति के सेनानियों को पीलूखेड़ी के शास्त्री परिवार से रोटियाँ बनकर जाती थीं। इसी शास्त्री परिवार में जन्मी हैं रंजना, जो विवाह के बाद चितले हो गईं। मुझे लगता है, ऐसी ही प्रज्ञा स्मृति से रंजनाजी वीर तात्या टोपे के व्यक्तित्व अन्वेषण में लग गईं। इस पुस्तक में उन्होंने वे तथ्य जुटाए हैं, जो तात्या टोपे से संबंधित अन्य विवरणों में या तो मिलते नहीं या सर्वदा उपेक्षित रहे।
—डॉ. सुरेश मिश्र
इतिहासकार एवं लेखकSKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sentinel of The Himalayas: Colonel Chewang Rinchen
“This book entails how a child of the mountain becomes the timeless sentinel, gaurding the frontiers all his life and becoming an eternal name of summits etched with Indian Army’s spirit. With all our combined ability and might, we have endeavored to articulate the remarkable life journey of Colonel Chhewang Rinchen, MVC, and Bar, SM, the distinguished veteran of the Indian Army who faced four wars with pride since India’s independence. Through meticulous research and heartfelt storytelling, we have portrayed Colonel Rinchen’s selfless deeds through anecdotes not only as fearless warrior but also as compassionate leader who consistently prioritized the well-being of their fellow soldiers and community.
His exceptional courage and unwavering piousness towards his duty were exemplified by his dual Mahar Vir Chakra and numerous other honours. Apparently, it also solidifies his place as one of India’s most celebrated military heroes. The narrative is a tribute to Colonel Rinchen’s enduring legacy—a testament to his indomitable spirit, glorious sacrifices, and persistent commitment to serve the nation. After three and a half years of dedicated effort, we are proud to share the inspirational story with you all, hoping it will serve as a beacon of courage and integrity for generations to come.”
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Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Setu Bhanjan
‘‘ऊपरी तौर पर देखें तो लगता है कि यह युद्ध सरकारों और आतंकियों का है किन्तु सत्य यह है कि यह युद्ध धरती और समुद्र का है और उसमें एक बड़ा और बलवान चरित्र रामसेतु भी है। किसी को दिखाई नहीं दे रहा किन्तु रामसेतु ही युद्ध कर रहा है; और उसका युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है।’’
भारत-श्रीलंका को जोड़ने वाले रामसेतु का विवरण रामायण में पाया जाता है। लेकिन क्या यह सेतु मात्र कल्पना है या यथार्थ-लम्बे समय से यह विवाद का विषय रहा है और-यही इस उपन्यास का केन्द्र भी है। जहाँ एक ओर यह आस्था का प्रतीक है तो वहीं दूसरी ओर भौतिक, वैज्ञानिक प्रमाणों की भी बात है। समय-समय पर अलग राजनैतिक दल अपने मतलब के लिए रामसेतु का प्रयोग करते आये हैं और इन राजनैतिक दाँवपेंचों के बीच उलझे इसके रहस्य को उजागर करने में कल्पित पात्र वरुणपुत्री भी रहस्यमयी भूमिका निभाती है। अपने लोकप्रिय उपन्यास वरुणपुत्री के बाद एक बार फिर लेखक नरेन्द्र कोहली इस उपन्यास में मिथक, फ़ैंटेसी, पौराणिक घटनाएँ, वैज्ञानिक तर्क का एक अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करते हैं।
पिछले छह दशकों से साहित्य जगत को समृद्ध करते आ रहे नरेन्द्र कोहली की गणना हिन्दी के प्रमुख साहित्यकारों में की जाती है। उपन्यास, कहानी, व्यंग्य, निबन्ध – अलग-अलग विधाओं में अब तक उनकी सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 2017 में ‘पद्मश्री’ और 2012 में ‘व्यास सम्मान’ से उन्हें अलंकृत किया गया है।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shabda Aur Smriti
रोमन खँडहरों या पुराने मुस्लिम मकबरों के बीच घूमते हुए एक अजीब गहरी उदासी घिर आती है जैसे कोई हिचकी, कोई साँस, कोई चीख़ इनके बीच फँसी रह गयी हो…जो न अतीत से छुटकारा पा सकती हो, न वर्तमान में जज़्ब हो पाती हो…किन्तु यह उदासी उनके लिए नहीं है, जो एक जमाने में जीवित थे और अब नहीं हैं…वह बहुत कुछ अपने लिए है, जो एक दिन खँडहरों को देखने के लिए नहीं बचेंगे…पुराने स्मारक और खँडहर हमें उस मृत्यु का बोध कराते हैं, जो हम अपने भीतर लेकर चलते हैं, बहता पानी उस जीवन का बोध कराता है, जो मृत्यु के बावजूद वर्तमान है, गतिशील है, अन्तहीन है… शब्द और स्मृति में निर्मल वर्मा ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रश्न ‘भारतीय अनुभव’ का नहीं, भारतीय ‘स्मृति’ का है और ‘स्मृति’ व्यक्ति और अतीत के बीच एक विशिष्ट जुड़ाव, एक सांस्कृतिक सम्बन्ध से जन्म लेती है। अतः स्मृति का प्रश्न इतिहास का नहीं, ‘संस्कृति का प्रश्न’ है।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Shadadarshnam
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिShadadarshnam
मैं कौन हूं? कहाँ से आया हूं? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? आनंद की प्रप्ति कैसे हो सकती है? परमात्मा की उपलब्धि कैसे हो सकती है?
आदि अनेक प्रश्न मनुष्य के मष्तिष्क में चक्कर काटते रहते हैं। तत्त्वदर्शियों के मत में मनुष्य को इन विषयों का तत्वज्ञान हो सकता है। इसी तत्वज्ञान को भारतीय मनीषियों-चिंतकों ने ‘दर्शन‘ की संज्ञा प्रदान की है।
तत्वज्ञान होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डालते। तत्वज्ञान मनुष्य को कर्म-बंधन से छुड़ा, प्रकृति और पुरुष का विवेक कराकर मानव-जीवन के चरम लक्ष्य-मोक्ष तक पहुँचा देता है।
भारतीय दर्शनों की विशेषता है उनका व्यवहारिक पक्ष, उनका आशावाद और नैतिक व्यवस्था में विश्वास, कर्म-सिद्धांत और मोक्षमार्ग का निर्देश।
प्रस्तुत पुस्तक में व्याख्या नहीं है, जिन्हें विस्तृत व्याख्या पढ़नी हो वे आचार्य उदयवीर शास्त्री जी के ग्रंथ पढ़ें। हाँ इस ग्रंथ को पढ़ने पर भी दर्शन के अनेक रहस्य समझ आएंगे।SKU: n/a -
Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Shaharnama Faizabad
शहरनामा फ़ैज़ाबाद’ कहीं न कहीं आधुनिक ढंग से इस पुराने शहर की परम्परा और संस्कृति को नये सन्दर्भों में देखने का एक रीडर या गाइड सरीखा है, जिसे हम ‘सांस्कृतिक-गज़ेटियर’ की तरह भी बरत सकते हैं। यह पुस्तक जो पूरी तरह इतिहास में प्रवेश करके वर्तमान तक लौटती है, इसमें तमाम ऐसे रास्ते और पगडण्डियाँ आसानी से देखी जा सकती हैं, जिनसे होकर हम अपनी सभ्यता में रचे-बसे पुराने शहर का कोई ऐतिहासिक पाठ बना सकते हैं। ऐसा पाठ, जो वर्तमान और अतीत के किसी निर्णायक बिन्दु पर आपकी जवाबदेही तय करता है। फ़ैज़ाबाद को यह गौरव हासिल रहा है कि इस शहर ने नवाबी संस्कृति के आगाज़ और यहीं से उसके प्रस्थान का बदलता हुआ दौर देखा है। यह वह शहर है, जहाँ अपने सारे गंगा-जमुनी प्रतीकों के साथ रहते हुए, हिन्दुओं की आस्था-नगरी व सप्तपुरियों में से एक अयोध्या भी स्थित है। यह फ़ैज़ाबाद ही है, जिसने 1857 ई. के पहले स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए बड़ी सार्थक ज़मीन उपलब्ध करायी है और बाद में आज़ादी की लड़ाई के दौर में क्रान्तिकारियों के रूप में हमें अधिसंख्य नायक दिये हैं।
‘शहरनामा फ़ैज़ाबाद’ को लेकर कुछ प्रमुख बिन्दुओं की ओर भी ध्यान देना आवश्यक है, जिसके आधार पर ही इस पूरे ग्रन्थ का निर्माण किया गया है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि फ़ैज़ाबाद शहर का जो ऐतिहासिक मूल्यांकन किया गया है, उसके लिए इतिहास-निर्धारण की तिथि वहाँ से ली गयी है, जब नवाब सआदत ख़ाँ ‘बुरहान-उल-मुल्क’, 1722 ई. में इस शहर की आधारशिला अवध की राजधानी के तौर पर रखते हैं। अतः इस पुस्तक में विवेचित सामग्री, उसी वर्ष से अपना अस्तित्व पाती है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shaheed-E-Watan Rajguru
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी शिवराम हरि राजगुरु का जन्म सन् 1908 में पुणे जिले के खेड़ा गाँव में हुआ था। उनके बाल्यकाल में ही पिता का निधन हो जाने के कारण बहुत छोटी उम्र में ही वे विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने वाराणसी आ गए थे। वहीं उन्होंने हिंदू धर्म-ग्रंथों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही, ‘लघुसिद्धांत कौमुदी’ जैसा क्लिष्ट ग्रंथ बहुत कम समय में कंठस्थ कर लिया था। राजगुरु को कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के वे बड़े प्रशंसक थे।
वाराणसी में राजगुरु का संपर्क अनेक क्रांतिकारियों से हुआ। वे चंद्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनके संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए। आजाद के संगठन के अंदर उन्हें ‘रघुनाथ’ के छद्म नाम से जाना जाता था। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। सांडर्स का वध करने में उन्होंने भगतसिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया, जबकि चंद्रशेखर आजाद ने छाया की भाँति उन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की।
23 मार्च, 1939 को भारत माँ के वीर सपूत राजगुरु भगतसिंह व सुखदेव के साथ लाहौर की सेंट्रल जेल में फाँसी पर झूलकर मातृभूमि पर बलिदान हो गए।SKU: n/a -
Akshaya Prakashan, Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास
Shankar Sharan Hindi Collection Book
AUTHOR: Shankar Sharan
- Sangh Parivar ki Rajneeti: Ek Hindu Aalochana
- Bharat Mein Parchalit Secularvad
- Adhyatmika Akramana aur Ghara Vapasi
- Bharat par Karl Marx aur Marxvadi Itihas Lekhan
- Gandhi Ke Brahmacharya Prayog
- Islam Aur Communism (PB)
- Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
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Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
SHASTRI KE SAATH KYA HUA THA?
Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSHASTRI KE SAATH KYA HUA THA?
जब ललिता शास्त्री ने अपने पति का पार्थिव शरीर देखा, तो ऐसा नहीं लगा कि वो कुछ घंटे पहले ही स्वर्ग सिधारे थे। उनका चेहरा सूजा हुआ था और नीला पढ़ गया था। शरीर बुरी तरह फूल गया था। पेट और गर्दन पर कटने के निशान थे। कपडे और चद्दर खून से सने हुए थे, लेकिन परिजनों के शक जताते ही किसी ने अचानक से आकर शास्त्री जी के चेहरे पर चन्दन का पीला लेप लगा दिया। यह सब करने के बाद भी शास्त्री जी की मृत्यु से जुड़े संदेहों को छुपाया नहीं जा सका। क्या उनकी मृत्यु प्राकृतिक थी या उन्हें जहर दिया गया था? आने वाले वक्त में अमेरिकी और सोवियत रूसी खुफिया विभाग के साथ कुछ भारतीय भी सवालों के घेरे में आए।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shastriji Ke Prerak Prasang
कथा-कहानियाँ सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य का मार्ग-दर्शन करती रही हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियाँ प्राचीन काल से हमारा मार्गदर्शन करती चली आ रही हैं।
प्रत्येक कहानी के लिए कथावस्तु का होना अनिवार्य है, क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहानी में केवल मनोरंजन ही नहीं होता, उसमें कोई उद्देश्य और संदेश भी निहित होता है।
जीवन में सादगी और सरलता का बहुत महत्त्व है। हमारी परंपरा में वर्णित है ‘सादा जीवन, उच्च विचार’। सादगी हमारे व्यक्तित्व को जो आभा प्रदान करती है, वह आडंबर या दिखावा नहीं। यह सादगी हमें आत्मविश्वास, शक्ति और आत्मबल देती है। इन्हीं जीवनमूल्य को समेटे, सादगी की महत्ता बताती प्रेरणाप्रद कहानियों का संकलन।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shatabdi Ke Dhalte Varshon Mein
प्रश्नाकुल अनुभव से जन्मे निर्मल वर्मा के ये निबन्ध पिछले चार दशकों के दौरान लिखे गये निबन्धों और लेखों का स्वयं उनके द्वारा किया गया चयन है। इनमें स्वयं अपने बारे में और साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता के बारे में रचनाकार के आत्ममंथन की प्रक्रिया ने रूपाकार ग्रहण किया है। एक ऐसी पीड़ित किन्तु अपरिहार्य प्रक्रिया जो ‘अन्य’ के सम्पर्क में आने पर ही शुरू होती है।…ये निबन्ध ‘अन्य’ से कायम किये गये उस नये रिश्ते की भी पहचान कराते हैं, जिसमें आत्मनिर्वासन की जगह आत्मबोध रहता है। समाज, संस्कृति और धर्म आदि शुद्ध साहित्यिक प्रश्नों के अलावा कुछ विशिष्ट रचनाकारों पर भी निर्मल वर्मा ने दृष्टि केन्द्रित की है। जीवन जगत के इतने कगारों को उनकी व्यापकता में छूते हुए ये निबन्ध अपने पाट की चौड़ाई से ही नहीं, मोती निकाल लाने की लालसा में गहरे डूबने के प्रयास से भी पाठक को आकर्षित और प्रभावित करते हैं। बीसवीं शताब्दी के वैचारिक उतार-चढ़ावों को पारदर्शी दृष्टि से अंकित करने वाले ये निबन्ध स्वयं निर्मल वर्मा की लम्बी चिन्तन-यात्रा के विभिन्न पड़ावों को पहली बार एक सम्पूर्ण संकलन में समेटने का प्रयास हैं।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Shatapatha Brahmana in three volumes
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिShatapatha Brahmana in three volumes
प्रस्तुत ग्रन्थ में वेदार्थ और कर्मकाण्ड का अत्यन्त प्रसिद्ध, अति प्राचीन ग्रन्थ, महर्षि याज्ञवल्क्य और शाण्डिल्य मुनि की कृति मूल ग्रन्थ में 14 काण्ड हैं। 100 अध्याय और 7625 कण्डिकायें हैं। शतपथ ब्राहाण की दो शाखायें प्रसिद्ध हैं- माध्यन्दिनीय शाखा और काण्व शाखा है। प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद
माध्यन्दिनीय शाखा का है।शतपथ ब्राहाण का अन्तिम काण्ड बृहदारण्यक उपनिषद् के नाम से विख्यात है, जो अध्यात्म की सर्वश्रेष्ठ रचना है। डॉ0 अलबेर्त वेबेर ने बड़े परिश्रम से माध्यन्दिनी शाखा के शतपथ ब्राहाण का स्वर-संयुक्त संस्करण बर्लिन से प्रकाषित, सन् 1849 में किया था, उसे ही हिन्दी अनुवाद के साथ दिया जा रहा है। स्वामी सत्यप्रकाष सरस्वती ने शतपथ ब्राहाण का सांस्कृतिक अध्ययन विस्तारपूर्वक अेग्रेजी में भी किया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Shaurya-Parakram ki Kahaniyan
एक महीने के पश्चात महाराणा फिर आगे बढ़े, 16 मार्च, 1527 को खानवा के मैदान में फिर बाबर से दो-दो हाथ हुए। बाबर का मनोबल गिरा हुआ था। बाबर की सेना तो स्वयं को हारा हुआ ही मान रही थी। समरकंद से वहाँ के ज्योतिषी की भविष्यवाणी आई थी कि बाबर को पराजय मिलेगी, वह शत्रु-सेना के द्वारा पकड़ा भी जा सकता है, क्योंकि उस समय मंगल ग्रह प्रबल था, जो बाबर के अनुकूल नहीं था। युद्ध जोरों पर था। दोनों ओर की सेना मारो, मारो, मारो-काटो चिल्ला रही थी। ‘अल्लाहू अकबर’ तथा ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष सुनाई पड़ रहे थे। महाराणा अपनी विजय गाथा दोहराने को तत्पर थे। उनकी एक आँख तो युवावस्था में ही चली गई थी। अनेक युद्ध लड़े, जिनमें एक हाथ और एक टाँग भी जाती रही। फिर भी महाराणा सांगा एक साहसी श्रेष्ठ वीर की भाँति युद्ध से कदम पीछे हटाने की कभी नहीं सोचते थे। उन्होंने लगभग बीसियों युद्ध लड़े और विजय प्राप्त की। खानवा का युद्ध शायद महाराणा का अंतिम युद्ध था।
—इसी पुस्तक से
भारतीय इतिहास साहस, शौर्य, पराक्रम और निडरता की गौरवगाथाओं से भरा पड़ा है। राष्ट्राभिमानी वीर सपूतों ने मातृभूमि और अपने परिवार-समाज की रक्षा हेतु अदम्य युद्धकौशल और पराक्रम का परिचय देकर शत्रु सेनाओं के दाँत खट्टे कर दिए और अपने ध्वज का मान रखा। इस पुस्तक में ऐसे ही बलशाली, पराक्रमी, निर्भीक सेनानायकों की कहानियाँ हैं, जो हमारे गौरव को जगाएँगी और देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित भी करेंगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sher-E-Garhwal
“यह पुस्तक पराधीन भारत में सन 1919-20 में हिमालय की दून घाटी में एक छोटे से छात्र-आंदोलन से प्रस्फुटित एक ऐसे ऐतिहासिक घटनाक्रम का आत्मकथात्मक स्वरूप है, जिसमें हमारे नायक को स्कूल से निकाल देने से लेकर उसके तत्कालीन ब्रिटिश गढ़वाल में भारत छोड़ो आंदोलन का नायक बनने तक के शानदार सफर के कई रोमांचकारी किस्से शामिल हैं।
कर्नल इबटसन पर जानलेवा हमला करने, तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर मैलकम हेली का बायकॉट करने, आधुनिक उत्तराखंड के ‘बारदोली’ कहे जानेवाले गुजड़ू में एक बड़ा किसान आंदोलन खड़ा करने के साथ-साथ लैंसडौन गढ़वाल को सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से स्वतंत्र करवाने के प्रयास और स्वाधीन भारत के पहले चुनाव आदि जैसे तमाम ऐतिहासिक घटनाक्रमों से जुड़े हुए कई सनसनीखेज वृत्तांतों को समेटे यह दस्तावेज, एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी की जीवन-यात्रा का ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानवीय जीवन और संवेदनाओं का स्वत:पूर्ण आख्यान है।
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