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Satyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)


सन् 1925 में श्री गोविन्दराम जी ने अनेक विषेषताओं से युक्त सत्यार्थ प्रकाष का प्रथम संस्करण ऋषि जन्म शताब्दी के अवसर पर कलकत्ता से प्रकाषित किया था।

उसके पष्चात सन् 1962 में पं. भगवद्दत्त जी रिसर्च स्कॉलर ने उपयोगी शब्द सूचियों, प्रमाण सूचियों परिषिष्ठों आदि अनेक विषेषताओं के साथ सत्यार्थ प्रकाष का सम्पादन किया।

पं. भगवद्दत्त जी द्वारा सम्पादित इस सत्यार्थ प्रकाष में पाठकों की सुविधा, जिज्ञासा की शांति एवम् शोध में लगे व्यक्तियों के लिए अनेक विषिष्टताएं उपलब्ध हैं।

इस संस्करण में ऋषि की मूल प्रति से भी मिलान का यथासम्भव प्रयास किया है, तथा अनेक अषुद्धियों को भी सुधारा गया है। सभी पैराग्राफों पर क्रमांक देना इसकी एक अनूठी विषेषता है।

इन सब विषेषताओं के लिए पं. भगवद्दत्त जी, पं. जयदेव विद्यालंकार, पं. रामचन्द्र देहलवी, पं. वीरसेन वेदश्रमी, स्वामी जगदीष्वरानन्द तथा पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी के प्रति हम आभार प्रकट करते हैं।

पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने कहा था कि ‘‘मैंने सत्यार्थ प्रकाष को 18 बार पढ़ा है, जितनी बार भी मैंने इसे पढ़ा, मुझे प्रत्येक बार नया-नया ज्ञान प्रकाष मिला है

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महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२५-१८८३) आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उनका बचपन का नाम ‘मूलशंकर’ था। वे महान ईश्वर भक्त थे, उन्होंने मुंबई में एक समाज सुधारक संगठन – आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। वेदों की ओर लौटो यह उनका प्रमुख नारा था। स्वामी दयानंद जी ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें ऋषि कहा जाता है क्योंकि “ऋषयो मन्त्र दृष्टारः वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है। उन्होने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में ‘स्वराज्य’ का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया।

आज स्वामी दयानन्द के विचारों की समाज को नितान्त आवश्यकता है। स्वामी दयानन्द के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, महादेव गोविंद रानडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि। स्वामी दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने १८८६ में लाहौर में ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज’ की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने १९०१ में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की

Weight 0.900 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in

AUTHOR :Swami Dayanand Sarswati
PUBLISHER : Govindram Hasanand
LANGUAGE : Hindi
ISBN :NA
BINDING : Hardback
EDITION : 2019
PAGES : 685
WEIGHT : 900 gm

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