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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanatan Jeevan Shaili (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanatan Jeevan Shaili (PB)
“1967 में मेडिकल कॉलेज में मेरे द्वितीय वर्ष के दौरान सनातन में मेरी रुचि जर्मन
सार्शनिक आर्थर शोपेनहावर की एक पंक्ति से शुरू हुई। मैंने शिवमूर्ति को देखा और जन पाया, इसका जिक्र मेरी इसी किताब में है ।पश्चिमी विचारों के प्रभाव में मैं भी मूर्तिपूजा को एक रूढ़िवादी मानसिकता मानता था।
मुझे लगा कि हजारों साल से चली आ रही ये मान्यताएँ जिन्हें लोगों ने अंधविश्वास कहकर खारिज कर दिया है, निरर्थक तो नहीं हो सकतीं, जैसे
मंगलवार को बाल न कटवाना, हनुमान की नाराजगी से डरना या शनिदेव के कोप से बचने के लिए शनिवार को लोहा न खरीदना ।मैं यह सब सोचने लगा । ऐसा लगता है कि ये रीति-रिवाज नाइयों और लोहारों को एक दिन की छुट्टी देने के लिए बनाए गए थे। मार्च महीने में जब घर में शीतला माता की पूजा के लिए बासी भोजन की व्यवस्था देखी तो लगा कि समाज को यह संदेश दिया जा रहा था कि गरमियाँ शुरू होते ही बासी भोजन खाना बंद कर दें।फिर तो मैं सनातन की यात्रा पर निकल पड़ा। मैंने अंधविश्वास कहे ही जाने वाली मान्यताओं पर लोगों से अपने विचार साझा किए और चर्चाओं में शामिल हुआ, लोगों से सकारात्मक
प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे विचार सौ प्रतिशत सही हैं, लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि चिकित्सा ज्ञान में मेरी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि ने निश्चित रूप से मुझे सनातन प्रथाओं को समझने में सक्षम बनाया है।
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Hindi Books, Kapot Prakashan, Sandeep Deo Books, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sandeep Deo Hindi Collection Book
-15%Hindi Books, Kapot Prakashan, Sandeep Deo Books, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSandeep Deo Hindi Collection Book
- Kahani Communisto Ki: Khand 1 (1917-1964)
- Hamare Shri Guruji – Hindi (PB)
- Sajish Ki Kahani Tathyo Ki Zubani (Hindi, Sandeep Deo)
- Swami Ramdev Ek Yogi Ek Yodha
- Shri Guruji : Prerak Vichar (Hindi)
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Sandhya Yog Brahm-Shakshatkar
इस ग्रन्थ में यह प्रमाणित किया है कि योग की पूर्ण और प्रामाणिक पद्धति ही ‘अष्टांग योग‘ है, जिसमें आठों अंगो का यथावत् अनुष्ठान करने से महर्षि पातंजलि की प्रतिज्ञानुसार उपासक के अन्तःकरण की अपवित्रता नष्ट होने पर ज्ञान की दीप्ति लगातार बढ़ती ही चली जाती है। जब तक ‘आत्मसाक्षात्कार‘ नहीं हो जाता है। योग में ‘ज्ञान‘ व ‘कर्म‘ दोनों को मिलाकर चलने से उक्त फल प्राप्त होता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रत्येक मन्त्रगत रहस्य को रंगीन चित्रों के द्वारा व्याख्या सहित दर्षाया गया है, पाठकगण इस बात को स्मरण रखें कि जब साधारण लौकिक ज्ञान के स्नातक केा बी.ए. तक का प्रमाणपत्र लेने में 14 वर्ष लग जाते हैं, तब इस आन्तरिक-गुहा-रहस्यपूर्ण सूक्ष्मतम आध्यात्मिक विद्या की प्राप्ति व इसमें निष्णात बनने में 20 वर्ष लगकर भी यदि कुषलता मिल जाये तो इसे मंहगा नहीं अपितु सस्ता ही समझना चाहिये।
संसार में पदार्थों का मूल्यांकन केवल रुपये पैसे से ही नहीं होता यह ‘आध्यात्मिक जीवन‘ तो ‘अमूल्य‘ है, वह सदा अमूल्य रहा है। इसी दृष्टि को समक्ष रखते हुए यदि आस्तिक जन ‘सन्ध्या योग‘ का अध्ययन करेंगे तो इसे अमूल्य ही पायेंगे। प्रस्तुत ग्रन्थ अति मंहगे समय में प्रकाषित हुआ है, फिर भी इसका मूल्य यथासाध्य न्यूनतम रखने का प्रयत्न किया गया है।SKU: n/a -
Vani Prakashan, इतिहास
Sangam Ki Reti Par Chalees Din
The capability of reading and other personal skills get improves on reading this book Sangam Ki Reti Par Chalees Din by Dhananjai Chopra.This book is available in HINDI with high quality printing.Books from Culture category surely gives you the best reading experience.
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Garuda Prakashan, Hindi Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sangh Parivar ki Rajneeti: Ek Hindu Aalochana
-10%Garuda Prakashan, Hindi Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSangh Parivar ki Rajneeti: Ek Hindu Aalochana
यह हिन्दू दृष्टि से संघ-परिवार की राजनीति की एक आलोचना है।
उस पर बनी-बनाई, अच्छी-बुरी मान्यताओं से हट कर यह उन बुनियादी मुद्दों पर आधारित है, जिन से हिन्दू समाज का हित प्रभावित होता है । इस में स्वतंत्र विद्वानों, लेखकों, तथा संघ के पुराने स्वयंसेवकों के विचार शामिल हैं । साथ ही, गत दो दशक में समय-समय पर लेखक के अपने अवलोकन भी संकलित हैं । इस तरह, यह पुस्तक गत आठ दशकों में संघ परिवार की राजनीति की एक परख है । इस पड़ताल की कसौटी कोई मतवाद नहीं, वरन हिन्दू समाज का हित है।
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
SANKARMAN KI PEERA
किसी भी गतिशील समाज में संक्रमण एक प्रक्रिया का नाम है, एक अपरिहार्य कालस्थिति का द्योतक। इसमें जिस तीव्रता से उलट-फेर होते हैं, उनसे अक्सर समाज की स्वस्थ परम्पराओं को भी नुकसान पहुँचता है। जीवन के प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में ऐसा बहुत कुछ घटित होता हुआ दिखायी देता है, जिससे किसी भी देश के ऐतिहासिक सामरस्य में ‘सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अराजकता व्याप्त हो जाती है; भ्रांति को हम क्रान्ति समझ लेते हैं, समस्याएँ और भी उलझ जाती हैं, उनके कोई हल नहीं निकलते है।’ प्रो. दुबे की यह कृति एक दुर्लभ रचनात्मक धीरज के साथ भारतीय समाज के वर्तमान संक्रमण-काल का एक ऐसा अध्ययन है, जिससे प्रत्येक सजग पाठक को गुजरना चाहिए।
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Vishwavidyalaya Prakashan, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोश
Sankshipt Hindi Shabdakosh
‘संक्षिप्त हिन्दी शब्दकोश’ संक्षिप्त होते हुए भी बहुत उपयोगी है। शब्दों की संख्या बड़े कोशों से कम है, परन्तु इससे कोश की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आती। शब्दकोश की सभी अपेक्षाओं को यह पूरा करता है। प्रख्यात कोशकार डॉ० हरदेव बाहरी के ‘हिन्दी शब्दकोश’ का प्रस्तुत संक्षिप्त संस्करण इसी उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है। इसमें वे सभी हज़ारों शब्द अकारादि क्रम में प्राप्त हो जाएंगे जिनका प्रतिदिन जीवन में उपयोग होता है। इनके सभी प्रचलित अर्थ सरल भाषा में तथा उनसे बचने वाले मुहावरे इत्यादि भी दिए गए हैं। अन्त में अनेक उपयोगी परिशिष्ट हैं जिनकी निरन्तर आवश्यकता पड़ती रहती है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskratik Rajasthan
सांस्कृतिक राजस्थान
रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत की कहानियों में जिस प्रकार राजस्थान की आत्मा का असली चित्र उभर कर सामने आता है उसी प्रकार उनके निबन्धों में राजस्थानी संस्कृति के हृदयस्पर्शी शब्द चित्र समाहित है। accordingly ‘सांस्कृतिक राजस्थान’ अनुभव के ठोस सत्य के आधार पर लिखी गई पुस्तक है, जैसा कि स्वयं लेखिका ने स्पष्ट किया है “जो कुछ लिखा है उसका बहुत कुछ हिस्सा मेरा देखा हुआ है। मैं उसमें से गुजरी हूँ। बहुत बड़ा हिस्सा वह है जो मेरे परिजनों के अपने अनुभव है, बाकी का हिस्सा वह है जो हमें बचपन में शिक्षा के आधार पर सिखाया गया, समझाया गया।” Sanskratik Rajasthan Laxmi Kumari (Cultural Rajasthan)
प्रस्तुत ग्रंथ की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता है लेखिका रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत का निष्पक्ष लेखन “बिना लाग-लपेट के पक्षपातहीन होकर सत्य के रूप में लिखा है और तथ्यों को तथ्य की भांति।” ठोस आधार और निष्पक्ष भाव से लिखे गये ‘सांस्कृतिक राजस्थान’ के हमारे त्यौहार, रजवाड़ी गीत, बात और बात कहने की कला, सांस्कृतिक धरोहर, हमारे आमोद-प्रमोद, लोकगीत मानव जीवन में अमृत के समान तथा राजस्थान की समन्वित संस्कृति, निबन्ध नवीन शोध जैसे प्रभावशाली है।
रानी लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत की ये पुस्तकें राजस्थान तथा राजस्थानी की कहानियाँ, कथाएँ, बातां, कला, संस्कृति व परम्परा को जानने का एक सुगम स्रोत हैं। राजस्थान में ‘बात’ (कहानी) कहने की अपनी शैली है। वह शैली अनूठी है और परम्पराओं से परिपूर्ण है।
भारत में राजस्थान रो जो महत्वपूर्ण स्थान है वस्यो ही स्थान भारतीय भासावां में राजस्थानी भाषा रो है। as well as राजस्थानी रा एक एक सबद रे लारे एक एक रणखेत बोले, पीढियां रो पराकरम झांके। राजस्थानी भासा राजस्थान री धरती अर इतिहास री तरै हीज सबळ नै क्षमतावान है। लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत री कहाणियां री अेक खास घसक आ क उणां मे राजस्थान रै कण कण री आतमा पलका मारै।
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English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskrit Non-Translatables
-10%English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskrit Non-Translatables
Sanskrit Non-Translatable is a path-breaking and audacious attempt at Sanskritizing the English language and enriching it with powerful Sanskrit words. It continues the original and innovative idea of non- translatability of Sanskrit, first introduced in the book, Being Different. For English readers, this should be the starting point of the movement to resist the digestion of Sanskrit into English, by introducing loanwords into their English vocabulary without translation.
The book presents a thorough mechanism of the Process of digestion and examines the loss of adhikara for Sanskrit because of translating its core ideas into English. The movement launched by this book will resist this and stop the Programs that to Sanskrit into a dead language by translation all its treasures to render it redundant Discuss fifty-four non-transaxle groins genres that are being commonly m translated. It empowers English speak with the knowledge and arguments to introduce these San. words into early speech with confidence. Every lover of India’ Sanskrit will benefit from the book and become a cultural amba door propagating it rough routine communication.
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Rajpal and Sons, पाठ्य-पुस्तक, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोश
Sanskrit Swayam Shikshak | संस्कृत स्वयं-शिक्षक
-24%Rajpal and Sons, पाठ्य-पुस्तक, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोशSanskrit Swayam Shikshak | संस्कृत स्वयं-शिक्षक
Sanskrit Self Learner An easy guide to learning Sanskrit on your own without attending any classes or going to a teacher. * Written by the renowned Sanskrit scholar, Shripad Damodar Satvalekar, complete with self-testing exercises, the book has proved popular both with students as well as educational institutions. Bi-lingual
संस्कृत स्वयं शिक्षक किसी भी कक्षा में भाग लेने या शिक्षक के पास जाए बिना अपने दम पर संस्कृत सीखने के लिए एक आसान गाइड * प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान, श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा लिखित, आत्म-परीक्षण अभ्यासों के साथ, यह पुस्तक छात्रों और शैक्षिक संस्थानों के साथ लोकप्रिय साबित हुई है। द्वि-बहुभाषी”
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Akshaya Prakashan, English Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskrit: An Introductory Analysis
-10%Akshaya Prakashan, English Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskrit: An Introductory Analysis
Unlike collection of essays on Indian language and cul ture this collection is ardently concentrated upon the most important language of the globe i.e. Sanskrit. In this collection eight essays are included.
The first essay is authored by Sir William Jones (1746-1794). He was an Anglo-Welsh philologist, a poise Judge on the Supreme Court of Judicature at Fort William in Bengal, and a scholar of ancient India, particularly known for his proposition of the existence of a relationship among European and Indo-Aryan languages, which he coined as Indo-European. In his essay he says that the Sanskrit language, whatever be its antiquity, is of a wonderful structure; more perfect than the Greek, more copious than the Latin and more exquisitely refined than either; yet learning to both of them a stronger affinity, both in the roots of verbs and in the forms of grammar, than could possibly have been produced by accident; so strong, indeed, that no philologer could examine them all three without believing them to have strong from some common source, which, perhaps, no longer exists.
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Rajkamal Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskriti Ke Char Adhyay
संस्कृति के चार अध्याय
यह संभव है कि संसार में जो बड़ी-बड़ी ताकतें काम कर रही हैं, उन्हें हम पूरी तरह न समझ सकें, लेकिन, इतना तो हमें समझना ही चाहिए कि भारत क्या है और कैसे इस राष्ट्र ने अपने सामाजिक व्यक्तित्व का विकास किया गया है ! उसके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू कौन-से हैं और उसकी सुदृढ़ एकता कहाँ छिपी हुई है ! भारत के समस्त मन और विचारों पर उसी का एकाचिकर है ! भारत आज जो कुछ है, उसकी राचन में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है ! यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे ! और यदि भारत को हम नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम, सब-के-सब अधूरे रह जाएंगे और हम देश की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे, जो ठोस और प्रभावपूर्ण हों ! मेरा विकाह्र है कि ‘दिनकर’ की पुस्तक इन बातों को समझने में, एक हद तक, सहायक होगी ! इसलिए, मैं इसकी सराहना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसे पढ़कर अनेक लोग लाभान्वित होंगे !.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskritik Rashtravad Ke Agradoot Pt. Deendayal Upadhyaya
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskritik Rashtravad Ke Agradoot Pt. Deendayal Upadhyaya
“पं दीनदयाल उपाध्याय बीसवीं शताब्दी को अपने विलक्षण व्यक्तित्व, अपरिमेय कर्तृत्व एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण से प्रभावित करनेवाले युगद्रष्टा ऋषि, महर्षि एवं ब्रह्मर्षि थे। उपाध्यायजी के पुरुषार्थी जीवन की सबसे बड़ी पहचान है गत्यात्मकता। वे अपने जीवन में कभी कहीं रुके नहीं, झुके नहीं। यही कारण है कि समस्त प्रतिकूलताओं के बीच भी उन्होंने अपने लक्ष्य के दीप को सुरक्षित रखते हुए उदभासित किया। उन्होंने राष्ट्र-प्रेम को सर्वोच्च स्थान देने के साथ-साथ, शिक्षा, साहित्य, शोध, सेवा, संगठन, संस्कृति, साधना सभी के साथ जीवन-मूल्यों को तलाशा, उन्हें जीवन-शैली से जोड़ा।
इस पुस्तक में पंडितजी को एक ऐसे राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिन्होंने न केवल स्वयं भारत को भारत के दृष्टिकोण से जानने-समझने-देखने की दृष्टि विकसित की, अपितु दूसरों को भी वैसी ही संदृष्टि प्रदान की। भारत की चिति एवं प्रकृति के मौलिक एवं सूक्ष्म द्रष्टा थे ‘पं. दीनदयाल उपाध्यायजी, जिन्होंने सही अर्थों में व्यष्टि एवं समष्टि के चिरंतन सत्य एवं सदियों के अनुभव का साक्षात्कार कर, एक ऐसे उदबोध को प्रवृत्त किया, जिसका स्पंदन भारत की माटी में समाहित है।
यह कृति “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अग्रदूत : पं. दीनदयाल उपाध्याय ‘ पंडितजी के विचार पाथेय को जन-जन तक पहुँचाने में निमित्त बनेगी और भारतीय संस्कृति के बिंब, जन-संस्कृति के रूप में वैश्विक धरातल पर नई चेतना को स्फूर्त करेगी; ऐसा दृढ़ विश्वास है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sanskritik Utthan Ka Marg
आज समाज में जीवन-मूल्य, नैतिकता, पारस्परिकता, परोपकार आदि लुप्तप्राय हो रहे हैं। समसामयिक विषयों पर लिखे गए ये लेख-घटनाएँ-प्रसंग ज्ञानवर्धक हैं। यह सामग्री पाठकों को संस्कारित करेगी और उनमें समाज के प्रति कर्तव्यभाव जाग्रत् करेगी, ऐसा विश्वास है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ का मूलमंत्र हृदयंगम कर अगर हर भारतीय अपना सकारात्मक योगदान करेगा तो निश्चित रूप से भारत पुनः शीर्ष पर पहुँच सकेगा, यह पुस्तक इसी संदेश को प्रसारित करने का उपक्रम है। समाज-जागृति की दिशा में यह सामग्री अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है और सामाजिक क्षेत्र में यह भावी पीढि़यों के लिए एक दर्पण का काम करेगी।
आज की प्रजातंत्रीय व्यवस्था में व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता परम आवश्यक है। ये लेख इस दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। इस पुस्तक में महापुरुषों के जीवन से जुड़ी जिन घटनाओं का उल्लेख है, वे पाठक के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में अपना विशेष महत्त्व रखती हैं। इसकी विषयवस्तु पाठकों में अध्ययन के प्रति उत्कंठा पैदा करेगी। इन लेखों का प्रकाशन लोगों में पठन के प्रति रुचि जाग्रत् करेगा और उन्हें सुसंस्कृत बनाएगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांSant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
संत जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन : सन्त जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन द्वारा अनुप्राणित विश्नोई धर्म के सिद्धान्तों को विश्व-स्तर पर प्रायोजित करने हेतु यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। लेखक ने सन्त जाम्भोजी के आध्यात्मिक तात्विक, नैतिक एवं सांसारिक आदर्शों को प्रस्तुत करने हेतु पुस्तक में सन्त जाम्भोजी का परिचय, विश्नोई धर्म के 29 नियम, विश्नोई धर्म की धार्मिक एवं नैतिक मान्यता, विश्नोई धर्म के दार्शनिक विचार एवं अहिंसा सम्मिलित की है तथा विश्नोई धर्म की वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख कर इसे सम्पूर्ण किया है। सन्त जाम्भोजी व विश्नोई धर्म के जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो प्रत्येक पुस्तकालय के लिए सग्रहणीय है।
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