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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Patan (PB)
उपन्यास “पतन’ एक कहानी के साथ- साथ भारत की राजनीति में घटनेवाली बड़ी घटनाओं को सही समय और काल के साथ व प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है। देश के राजनीतिक पटल पर बदलते दृश्यों को लेकर लेखक के रूप में मेरी एक राय हो सकती है, एक दृष्टिकोण हो सकता है, किंतु घटनाओं के तथ्य, काल, चाल और चरित्र को हू-ब-हू प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। फिर चाहे वह 1975 की इमरजेंसी के भीतर का सच हो, जनता पार्टी की सतबेझडी हाँड़ी का फूटकर बिखरना उसकी स्वाभाविक परिणति हो, इंदिरा गांधी के द्वारा जनता पार्टी को तोड़ने का सफल षड़्यंत्र हो, मंडल आयोग के कारण पूरे देश के उपद्रव हों, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा हो, नरसिम्हा राव का हवाला हो, अटल बिहारी की सरकार का बहुमत साबित न कर पाने के कारण तेरह दिन में और फिर तेरह महीने में सत्ता से बेदखल होना हो या छह साल के सफल नेतृत्व के बाद भी अटल सरकार को जनता के द्वारा नकारकर आर्थिक घोटालों के कारण चर्चा में रहे सोनिया गांधी के नेतृत्ववाली मनमोहन सरकार की स्वीकार्यता के दस वर्ष हों। उपन्यास पतन में स्वतंत्र भारत में नेहरू- काल के बाद के इतिहास की नकारात्मकता और सकारात्मकता को उल्लेखित किया गया है।
‘पतन’ में एकात्म मानवतावाद, साम्यवाद, समाजवाद और नक्सलवाद को गहन चिंतन और वार्त्ताओं के माध्यम से खँगालने का भी सफल प्रयास किया गया है।
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Vani Prakashan, उपन्यास
PATAN KA PRABHUTVA
‘पाटन का प्रभुत्व’ प्रख्यात साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की महत्वाकांक्षी उपन्यास माला ‘गुजरात गाथा’ का प्रथम पुष्प है और इतिहास प्रसिद्ध गुर्जर साम्राज्य के अन्तिम गौरवपूर्ण अध्याय को गल्प रूप में उभारता है। गुर्जर साम्राज्य के संस्थापक मूलराज सोलंकी (942-997 ई.) ने अपने यशस्वी कार्यों से अनहिलवाड़ पाटन का नाम समूचे देश में गुँजा दिया था। उन्हीं की पाँचवीं पीढ़ी में कर्णदेव (1072-1094) सत्तासीन हुआ। उसने अपनी स्वतन्त्र राजनगरी कर्णावती स्थापित की। उसका विवाह चन्द्रपुर की जैन राजकुमारी मीनल से हुआ और उससे जयदेव नाम का एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ, जिसे आगे चल कर सिद्धराज के विरुद से विभूषित होकर कीर्तिपताका फहरानी थी। ‘पाटन का प्रभुत्व’ के प्रथम दृश्य का उद्घाटन 1092 के उस कालखण्ड में होता है जब कर्णदेव असाध्य बीमारी से ग्रस्त होकर शैया पर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा है और शासन का दायित्व राजरानी मीनलदेवी की ओर से उसका जैन परामर्शदाता और महामंत्री मुंजाल मेहता वहन कर रहा है। यह समय गुर्जर साम्राज्य के लिए अत्यन्त संवेदनशील है। एक ओर आसपास के असन्तुष्ट और महत्वाकांक्षी जैन श्रावकों के हौसले बढ़े हुए हैं। वे आनन्दसरि को आगे करके अपने ही धर्म की राजमहिषी और महामन्त्री पर दबाव बनाने की फ़िराक में हैं। दूसरी ओर कर्णदेव के सौतेले भाई क्षेमराज का पुत्र देवप्रसाद आसपास के राजपूत छत्रपों का अगुआ बन कर शासनपीठ पर अधिकार जमाना चाह रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों में महामन्त्री मुंजाल की विश्वसनीयता. दूरदर्शिता और विवेक बुद्धि से, कर्णदेव के निधन के तत्काल बाद, युवराज जयसिंह देव का राज्याभिषेक होता है और सत्तापीठ पर छाये आशंका के बादल छंट जाते हैं। यही जयसिंह देव आगे चलकर ताम्रचड़ाध्वज सिद्धराज के विरुद से गुर्जर साम्राज्य को नवजीवन देते हैं। मात्र दो वर्ष के कालखण्ड में सिमटा होने के बावजूद यह उपन्यास सत्ता के संघर्ष और उससे जुड़े दाँव-पेंचों को इतने रोमांचक ढंग से प्रस्तुत करता है कि पाठक अन्तिम पृष्ठ की अन्तिम पंक्ति से पहले छोड़ने का नाम नहीं लेता।
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Rajpal and Sons
Path Ka Geet
एशिया के पहले नोबेल पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार, चित्रकार, चिंतक एवं दार्शनिक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की यह कृति उनकी चुनी हुई कविताओं का उन्हीं के द्वारा प्रस्तुत गद्य रूपांतरण है। इसके काव्य-माधुर्य को संजोये रखते हुए इन भावभीनी रचनाओं की हिन्दी में प्रस्तुति इस पुस्तक के माध्यम से हो रही है। इन कविताओं में सुकोमल प्रकृति के अर्थपूर्ण संकेत, मुक्ति के लिये मन की अकुलाहट, सीमित से असीम में एकाकार होने की अदम्य चाह और निराशा के पलों में आशा का संचार, सभी कुछ रवीन्द्रनाथ टैगोर की कलम से व्यक्त हुआ है। ये रचनाएं प्रेरणादायी हैं और काव्य-सुख के साथ बोध-कथा का प्रकाश भी देती हैं। इनमें जीवन की जय-यात्रा का संगीत है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Pather Panchali
सत्यजित राय की विश्वप्रसिद्ध फिल्म, पथेर पांचाली, लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। यह उपन्यास बंगाल के निश्चिन्दिपुर गाँव में रहने वाले अपू और उसकी बड़ी बहन दुर्गा की कहानी है। अपू और दुर्गा गरीबी की कड़वी सच्चाई से अनजान अपने बचपन की अल्हड़ शैतानियों में मस्त अपना जीवन बिताते हैं। इस उम्मीद से कि शायद अधिक आमदनी हो पाए उनके पिता काशी चले जाते हैं। पीछे परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि अपू को समय उसे पहले ही अपने परिवार की देख-भाल का बोझ उठाना पड़ता है। लड़कपन से जवानी तक का यह उपन्यास पथेर पांचाली सबसे पहले एक पत्रिका में धारावाहिक रूप में, और 1929 में पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। 1944 में पुस्तक के नये संस्करण के लिए सत्यजित राय को इसकी तस्वीरें बनाने की जि़म्मेदारी सौंपी गई और तभी उन्होंने तय कर लिया कि वह इस पर फिल्म अवश्य बनाएंगे। पथेर पांचाली पर बनी सत्यजित राय की फिल्म को देश-विदेश में अनेक सम्मान मिले। आधुनिक बंगला साहित्य के जाने-माने लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय का जन्म 12 सितम्बर 1894 में बंगाल के 24 परगना क्षेत्र मंे हुआ। उन्होंने अपने जीवन में कई उपन्यास लिखे जिनमें पथेर पांचाली और उसी कड़ी की अगली कृति अपराजितो सबसे लोकप्रिय हैं। उनके उपन्यास इच्छामति के लिए मरणोपरान्त उन्हें 1951 में ‘रबीन्द्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
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Vani Prakashan, अन्य कथा साहित्य, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Patna Khoya Hua Shahar
अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले बुद्ध ने पाटलिपुत्र की महानता की भविष्यवाणी की थी। कालान्तर में पाटलिपुत्र मगध, नन्द, मौर्य, शुंग, गुप्त और पाल साम्राज्यों की राजधानी बनी। पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात प्राचीन पटना की स्थापना 490 ईसा पूर्व में मगध सम्राट अजातशत्रु ने की थी। गंगा किनारे बसा पटना दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में से एक है जिनका एक क्रमबद्ध इतिहास रहा है। मौर्य काल में पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया था। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था। मौर्यों के वक़्त से ही विदेशी पर्यटक पटना आते रहे। मध्यकाल में विदेशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई। यह वह वक़्त था जब पटना की शोहरत देश की सरहदों को लाँघ विदेशों तक पहुँच गयी थी। यह मुग़ल काल का स्वर्णिम युग था। पटना उत्पादन और व्यापार के केन्द्र के रूप में देश में ही नहीं विदेशों में भी जाना जाने लगा। 17वीं सदी में पटना की शोहरत हिन्दुस्तान के ऐसे शहर के रूप में हो गयी थी, जिसके व्यापारिक सम्बन्ध यूरोप, एशिया और अफ्रीका जैसे महादेशों के साथ थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी और ब्रिटिश इण्डिया में पटना और उसके आसपास के इलाकों में शोरा, अफीम, पॉटरी, चावल, सूती और रेशमी कपड़े, दरी और कालीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था। पटना के दीघा फार्म में तैयार उत्पादों की जबरदस्त माँग लन्दन के आभिजात्य लोगों के बीच थी। विदेशी पर्यटक और यात्री कौतूहल के साथ पटना आते। उनके संस्मरणों में तत्कालीन पटना सजीव हो उठता है। इस पुस्तक में उनके संस्मरण और कई अन्य रोचक जानकारियाँ मिलेंगी।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Patna Mein 1857 Ki Bagawat
विलियम टेलर ने सन् 1857 में पटना विद्रोह को दबाने में अहम भूमिका निभाई थी, किंतु उसकी अनेक गतिविधियाँ ऊपर के पदाधिकारियों को पसंद नहीं आईं। अति उत्साह में उसके द्वारा उठाए गए कदमों की काफी आलोचना हुई। बिना पुख्ता सबूत के लोगों को फाँसी देना, धोखे से वहाबी पंथ के तीनों मौलवियों को गिरफ्तार करना, उद्योग विद्यालय खोलने के लिए जमींदारों से जबरदस्ती चंदा वसूल करना, पटना के प्रतिष्ठित बैंकर लुत्फ अली खाँ के साथ बदसलूकी से पेश आना, मेजर आयर को आरा की तरफ कूच करने से मना करना, बगावत की आशंका से सारे यूरोपीयनों को पटना बुला लेना इत्यादि अनेक कदम टेलर ने उठाए, जिससे ऊपर के पदाधिकारी, खासकर लेफ्टिनेंट गवर्नर हैलिडे बहुत नाराज हुए। परिणामस्वरूप 5 अगस्त, 1857 को विलियम टेलर को पदमुक्त कर दिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक ‘पटना में 1857 की बगावत’ विलियम टेलर द्वारा अपने आपको दोषमुक्त साबित करने के लिए लिखी गई थी। इसमें उसने बताया है कि कितनी विषम परिस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर उसने अंग्रेज कौम का भला किया और एक सच्चे अंग्रेज का फर्ज निभाया।
पटना में स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन का जीवंत एवं प्रामाणिक इतिहास।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Paul Ki Tirth Yatra
ऐसी क्या खासियत है पति पत्नी के रिश्ते में जो दोनों के जीवन में इंद्रधनुषी रंगों की बहार तो बिखेरती है , लेकिन भारतीय मूल की नीना और उसके डेनिस पति , पॉल ,डेनमार्क में अपना सुखी जीवन व्यतीत कर रहे होते है . जब अचानक ……ऐसी ही परतो , यादो और साथ सहे सुख दुःख के ताने बाने को बुनता यह दिल को छु लेने वाला उपन्यास बहुत लम्बे समय तक पाठको के मन में मीठी टीस छोड़ता है .
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Pauranik Granthon Mein Nari Shakti Ki Kahaniyan (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Pauranik Granthon Mein Nari Shakti Ki Kahaniyan (PB)
क्या आप जानते थे कि असुरों को पराजित करने के लिए त्रिदेव सदैव देवियों की सहायता लेते थे?
क्या आप जानते थे कि इस संसार का पहला क्लोन एक स्त्री ने बनाया था?
भारतीय पौराणिक कथाओं में स्त्रियों की संख्या भले ही बहुत कम होगी, लेकिन प्राचीन ग्रंथों और महाकाव्यों में शक्ति और रहस्य की उनकी कहानियाँ बहुत अधिक हैं। उन्होंने राक्षसों का वध किया और अपनी आक्रामकता से अपने भक्तों की रक्षा की। इस संग्रह में पार्वती से लेकर अशोक सुंदरी तक और भामती से लेकर मंदोदरी तक, मोहक और निर्भयी स्त्रियों का वर्णन है, जो हर बार देवताओं के लिए युद्ध का नेतृत्व करती हैं, जो अपने परिवारों का आधार और अपने प्रारब्ध की निर्माता थीं।
भारत की चहेती और सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली लेखिका सुधा मूर्ति आपको उन कहानियों के माध्यम से सशक्त बनाने वाली यात्रा पर ले जा रही हैं जिन्हें भुला दिया गया है, जिनमें उन उल्लेखनीय स्त्रियों की एक बड़ी संख्या है, जो आपको आपके जीवन में महिलाओं के गहरे प्रभाव की याद दिलाती हैं।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Pawan Putra
देश में महाबली हनुमान के मंदिर बिखरे पड़े हैं और सभी भारतीय ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ भी करते हैं परन्तु कितने हैं जो उनके जीवन तथा इतिहास से ज़रा भी परिचित हैं? यह उपन्यास उनके जीवन को बहुत विस्तार से प्रस्तुत करता है और इसमें वह सब कुछ उपलब्ध है जो हनुमानजी के सम्बन्ध में किसी भी धर्मग्रन्थ में लिखा गया है। अपने विषय का अकेला आदि से अन्त तक पठनीय उपन्यास।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Peetambara
यह उपन्यास मीरा के जीवन के विविध रूपों और आयामों को अत्यन्त रोचकता से चित्रित करता है। कृष्णदीवानी मीरा पर आधारित यह उपन्यास प्रचलित भ्रान्तियों का निवारण करने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण तथ्यों का विवरण प्रस्तुत करता है। उपन्यास में जो कुछ लिखा गया है वह इतिहास ही है जिसमें चरित्रों एवं घटनाओं को यथासम्भव सही परिप्रेक्ष्य में रखा गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Pehla Sanatan Hindu (PB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Pehla Sanatan Hindu (PB)
Pehla Sanatan Hindu “”पहला सनातन हिंदू”” Book in Hindi- Ratneshwar
हम कौन हैं ? हमारे पूर्वज कौन थे ? हमनेकब, कैसे और किसकी प्रार्थना शुरूकी ? पहला सनातन हिंदू कौन है ? ये कुछसहज सवाल हमारे मन में उठते रहते हैं । हालके दिनों में गल्फ ऑफ खंभात (गुजरात) कीगहराइयों में हिमयुग के समय की बत्तीसहजार साल पुरानी कुछ सभ्यता-सामग्री केऐसे अवशेष मिले, जिससे हमें अपने प्रश्नों केजवाब मिलते दिखने लगे। विज्ञानियों-पुराविदों के नबीन शोध और खोज को केंद्र मेंरखकर महायुग उपन्यास-त्रयी लिखी गई है।“पहला सनातन हिंदू” तीन उपन्यासों कीश्रृंखला का तीसरा उपन्यास है।
उन दिनों संसार में साभ्यतिक-सांस्कृतिक विकास के साथ कई नवीन प्रयोगहुए । संसार में इन्हीं लोगों ने पहली बार पत्थरोंका घर, नौका, हिमवाहन के साथ विविधआग्नेय-अस्त्रों का निर्माण किया । पहली बारईश्वर की अवधारणा के साथ प्रार्थना शुरू हुई ।पहले प्रेम के साथ संसार का पहला ग्रंथ उन्हींदिनों लिखा गया। परिवार की अवधारणा केसाथ संसार के पहले राज्य की स्थापना हुईऔर संसार को पहला सम्राट मिला ।
परग्रहियों ने होमोसेपियंस के डी.एन.ए.का पुनर्लेखन किया। कुछ विज्ञानियों औरपुराविदों ने क्रोनोवाइजर सिद्धांत के आधार परसमुद्र की गहराइयों से जीरो पॉइंट फील्ड मेंसंरक्षित ध्वनियों को संगृहीत कर उन्हें फिल्टरकिया। कड़ी मेहनत के बाद उनकी भाषा कोडिकोड किया गया और उसे इंडस अल्ट्राकंप्यूटर पर चित्रित किया गया। उनकीआवाजों से ही बत्तीस हजार साल पहले कीपूरी कहानी सामने आई।
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Voice of India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Perversion of India’s political parlance
Voice of India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Perversion of India’s political parlance
As one surveys India’s political parlance, the first feature one notices is that while certain people and parties are described as Leftist, certain others are designated as Rightist. The second feature which invites attention is that these contradistinctive labels – Leftist and Rightist – have never been apportioned among people and parties concerned by an impartial tribunal like, say, the Election Commission. What has happened is that certain people and parties have appropriated one label – Leftist – for themselves, and reserved the other label – Rightist – for their opponents, without permission from or prior consultation with the latter. The third feature which one discovers very soon is that people and parties who call themselves Leftist, also claim to be progressive, revolutionary, socialist, secularist, and democratic. At the same time, they accuse the ‘Rightists’ of being reactionary, revivalist, capitalist, and fascist. The fourth feature of the Indian political scene needs a somewhat deeper look because it goes beyond the merely political and borders on the philosophical. The Leftists claim that they are committed to a scientific interpretation of the world-process including economic, social, political, and cultural developments, and that, therefore, their plans and programmes are not only pertinent but also profitable for the modern age. Simultaneously, they accuse that the ‘Rightists’ are addicted to an obscurantist view of the same world-process and, therefore, to such outmoded forms of economy, polity, and culture as are bound to be injurious at this stage of human history. One cannot help concluding that the dictionaries are not al all helpful in deciphering the Leftist language. The source of that language has to be sought elsewhere. There is no truth whatsoever in the Leftist claim that India’s prevailing political parlance took shape in the course of India’s fight for freedom against British imperialism.
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Hindi Books, Others, Prabhat Prakashan
Phalit Sarovar
प्रत्येक व्यक्ति को अपने भविष्य में घटित होनेवाली शुभाशुभ घटनाओं को जानने की जिज्ञासा रहती है । यही कारण है कि आजकल शिक्षित युवकों में भी ज्योतिष के अध्ययन के प्रति रुचि जाग्रत् होती जा रही है ।
विद्वान् लेखक की पहली पुस्तक ‘ आधुनिक ज्योतिष ‘ बड़े-बड़े ज्योतिर्विदों के लिए भी वैज्ञानिक आधार सिद्ध हो चुकी है । प्रस्तुत है, ज्योतिष के फलित पक्ष पर लिखी गई उनकी एक और प्रामाणिक रचना, जिसमें उन्होंने राशियों, ग्रहों एवं भावों की शुभाशुभता, भावात् भावम् के सिद्धांत, सुदर्शन पद्धति, ग्रह दृष्टि भेद आदि अनेक जटिल प्रकरणों के अतिरिक्त ज्योतिष के एक सौ इक्कीस महत्त्वपूर्ण फलित सूत्रो को भी अनेक व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों द्वारा सिद्ध किया है तथा साथ ही विभिन्न लग्नों की कुंडलियों में राशियों, भावों तथा ग्रहों के फल का भावेश, स्थिति एवं दृष्टि के आधार पर विवेचन करते हुए प्रत्येक भाव से संबंधित अनेक विशिष्ट योग भी प्रस्तुत किए हैं, जिससे पुस्तक की उपयोगिता कई गुना बढ़ गई है ।
प्रस्तुत पुस्तक में प्रयास किया गया है कि पाठक निश्चित सिद्धांतों के आधार पर स्वयं अपनी जन्मकुंडली का अध्ययन कर अपनी जिज्ञासा शांत कर सकें ।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Pheriwala Rachnakar
आत्मकथा ईमानदारी माँगती है, जिसे यहाँ बखूबी निभाया गया है। जहाँ-जहाँ इस लेखक में कमजोरियाँ नजर आईं, पूरी ईमानदारी से उसने स्वीकार किया। लेखकीय जीवन के वे राज भी बयाँ हुए हैं, जिन्हें एक उम्र तक कलम की नोक तले दबाकर रखा गया। ‘कृष्ण की आत्मकथा’ का यह रचनाकार अपनी आत्मकथा में भी उन्हीं योगेश्वर के आशीर्वाद की प्रतिध्वनि सुनता नजर आया है, वरना अपनी आँखों से उस युग की तस्वीर कैसे देख सकता था, जिसे कृष्ण ने भोगा था। उस संत्रास का कैसे अनुभव कर सकता था, जिसे उस युग ने झेला था। उस मथुरा को कैसे समझ पाता, जो भगवान् कृष्ण के अस्तित्व की रक्षा के लिए नट की डोर के तनाव पर सिर्फ एक पैर से चली। उस दुखी ब्रज के प्रेमोन्माद को कैसे महसूस करता, जो कृष्ण के वियोग में विरहाग्नि बिखेर रही थी।
जिंदगी के इस महाभारत में लेखक जयी हुआ या पराजित, इसका उत्तर सिर्फ समय के पास है। मगर यह आत्मकथा इस बात की गवाह है कि यह लड़ाई उन्होंने पूरी शिद्दत, ईमानदारी और पराक्रम से लड़ी।
मनु शर्मा की यह आत्मकथा फेरीवाला रचनाकार कृष्ण तथा अन्य चरित्रों की आत्मकथाओं की तरह पाठकों के हृदय में स्थान बनाएगी। पूरी शिद्दत और आत्मीयता के साथ पढ़ी जाएगी, इसमें कोई संशय नहीं है। आत्मकथाओं की शृंखला में एक और पठनीय आत्मकथा।मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Phoolon Ki Boli
सिद्ध : ताँबे के चूर्ण को मल्लिका की आँच यानी अपनो सखो माया की सहायता से किसी बड़ी आँच में पिघलाकर पलाश के पत्तों के रस से मिला दिया जाय और फिर मुचकुंद का संयोग किया जाय तो चोखा सोना बन जाएगा।
कामिनी : मुचकुंद का संयोग क्या और कैसा?
सिद्ध : बस, स्वर्ण-रसायन में इतनी ही पहेली और है, थोड़ी देर में बतलाता हूँ; परंतु सोचता हूँ पहले हीरे-मोती बना दूँ। अपना सारा स्वर्ण लाओ।
दोनों : बहुत अच्छा।
( दोनों जाती हैं और थोड़ी देर में अपना सब गहना लेकर आ जाती हैं।)
सिद्ध : (गहनों को देखकर) तुम्हारे गहनों में कोई हीरे तो नहीं जड़े हैं?
कामिनी : नहीं, सिद्धराज।
माया : नहीं, महाराज।
सिद्ध : कोई मोती?
कामिनी : बहुत थोड़े से।
माया : मेरे पास तो बिलकुल नहीं हैं।
सिद्ध : कुमुदिनी, तुम अपने मोती गिन लो।
-इस पुस्तक से
स्वर्ण-रसायन के मोह और लोभ में हमारे देश के कुछ लोग कितने अंधे हो जाते हैं और सोना बनवाने के फेर में किस तरह अपने को लुटवा डालते हैं, यह बहुधा सुनाई पड़ता रहता है। वर्माजी ने उज्जैन के नगरसेठ व्याडि तथा कुछ अन्य के स्वर्ण-मोह और एक ठग सिद्ध एवं उसके शिष्य की कथा को आधार बनाकर यह नाटक लिखा है। निश्चय ही यह कृति पाठकों का भरपूर मनोरंजन करेगी।SKU: n/a -
Vani Prakashan, कहानियां
Pichhli Garmiyon Mein
निर्मल वर्मा बार-बार अपनी रचना-संवेदना के परिचित दायरों की ओर वापस लौटते हैं। हर बार चोट की एक नयी तीव्रता के साथ लौटते हैं और जितना ही लौटते हैं, उतना ही वह कुछ जो परिचित है और भी परिचित, आत्मीय और गहरा होता जाता है। अनुभव के ऊपर की फालतू परतें छिलती जाती हैं और रचना अपनी मूल संवेदना के निकट अधिक पारदर्शी होती जाती है। निर्मल वर्मा की रचना की पारदर्शी चमड़ी के नीचे आप उस अनुभव को धड़कते सुन सकते हैं, छू सकते हैं। यह अनुभव बड़ा निरीह और निष्कवच है। आपको लगता है कि यह अपनी कला की पतली झिल्ली के बाहर की बरसती आग और बजते शोर की जरब नहीं सह पाएगा। – मलयज
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Gita Press, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Pita Ki Seekh 0150
इस पुस्तक में बालकों को खान-पान एवं स्वास्थ्य-सम्बन्धी जानकारियों से परिचित कराया गया है। इस में हमारी स्वास्थ्य रक्षक सेना, सिगरेट-बीड़ी एवं तम्बाकूसे हानि, पाचन और परिपुष्टि, भोजन-व्यवस्था, पानी, स्वच्छ वायु, मानसिक और आत्मिक शुद्धि आदि दस विषयों पर बड़ा ही सुन्दर प्रकाश डाला गया है।
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