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Phoolon Ki Boli


सिद्ध : ताँबे के चूर्ण को मल्‍ल‌िका की आँच यानी अपनो सखो माया की सहायता से किसी बड़ी आँच में पिघलाकर पलाश के पत्तों के रस से मिला दिया जाय और फिर मुचकुंद का संयोग किया जाय तो चोखा सोना बन जाएगा।
कामिनी : मुचकुंद का संयोग क्या और कैसा?
सिद्ध : बस, स्वर्ण-रसायन में इतनी ही पहेली और है, थोड़ी देर में बतलाता हूँ; परंतु सोचता हूँ पहले हीरे-मोती बना दूँ। अपना सारा स्वर्ण लाओ।
दोनों : बहुत अच्छा।
( दोनों जाती हैं और थोड़ी देर में अपना सब गहना लेकर आ जाती हैं।)
सिद्ध : (गहनों को देखकर) तुम्हारे गहनों में कोई हीरे तो नहीं जड़े हैं?
कामिनी : नहीं, सिद्धराज।
माया : नहीं, महाराज।
सिद्ध : कोई मोती?
कामिनी : बहुत थोड़े से।
माया : मेरे पास तो बिलकुल नहीं हैं।
सिद्ध : कुमुदिनी, तुम अपने मोती गिन लो।
-इस पुस्तक से
स्वर्ण-रसायन के मोह और लोभ में हमारे देश के कुछ लोग कितने अंधे हो जाते हैं और सोना बनवाने के फेर में किस तरह अपने को लुटवा डालते हैं, यह बहुधा सुनाई पड़ता रहता है। वर्माजी ने उज्जैन के नगरसेठ व्याडि तथा कुछ अन्य के स्वर्ण-मोह और एक ठग सिद्ध एवं उसके शिष्य की कथा को आधार बनाकर यह नाटक लिखा है। निश्‍चय ही यह कृति पाठकों का भरपूर मनोरंजन करेगी।

Rs.300.00

Vrindavan Lal Verma
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ‘ ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ‘, बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ‘ पद‍्म भूषण ‘ की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ‘ सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ‘ से भी सम्मानित किया गया तथा ‘ झाँसी की रानी ‘ पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ‘ झाँसी की रानी ‘ तथा ‘ मृगनयनी ‘ का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

Weight .300 kg
Dimensions 7.50 × 5.57 × 1.57 in

Author – Vrindavan Lal Verma
ISBN – 8173154384
Language – Hindi
pages – 160
Binding- Hardcover

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