Vedic Books
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Sanskriti ka Sandesh
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Sanskriti ka Sandesh
जिस बिन्दु पर जीवन-यात्रा के अनेक मार्ग फूटते हैं, वहां से मैं किधर जाउं! कौनसा रास्ता सही है, ये प्रष्न प्रत्येक युवक और युवती के हदय में किसी न किसी समय उठते हैं।
वैदिक संस्कृति, भोगवाद तथा त्यागवाद पर समन्वयात्मक दृष्टि प्रस्तुत करते हुए सही पथ प्रदर्षित करती है, जिसे विद्वान लेखक ने सर्व-साधारण तक पहुंचाने के लिए यह अनुपन ग्रन्थ लिखा है।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Vangmay ka Itihas Set of 3
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Vangmay ka Itihas Set of 3
वैदिक वाड्मय का इतिहास 3 खण्ड में प्रकाषित किया गया है।
इसके प्रथम खण्ड में मुख्यतः वैदिक शाखाओं पर विचार किया गया है। विद्वान लेखक ने भाषा शास्त्र तथा भारत के प्राचीन इतिहास विषयक अपने मौलिक चिन्तन का सार भी प्रस्तुत किया है। पं. भगवद्दत्त जी की धारणाऐं और उपपत्तियां विद्वत् संसार में हड़कम्प मचा देने वाली थीं।
इसके द्वितीय खण्ड में लेखक ने ब्राहाण और आरण्यक साहित्य का विचार किया। उपलब्ध और अनुपलब्ध ब्राहाणों के विवरण के पष्चात् इन ग्रन्थों पर लिखे गये भाष्यों और भाष्यकारों की पूरी जानकारी दी गई है।
इस ग्रन्थ के तीसरे खण्ड में अनेक ऐसे भाष्यकारों की चर्चा हुई है जिनके अस्तित्व की जानकारी भी लोगों को नहीं थी।
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedon me Ishwar ka Swaroop
विद्वान् मनीषी व सुचिंतक श्री वेद प्रकाश जी द्वारा अपने ग्रंथ का नाम ‘वेदों में ईश्वर का स्वरूप‘ इसलिए रखा है की ब्रह्म को वेद की दृष्टि से जानने की जिनकी इच्छा है वह इसे पढ़कर तृप्त हों और ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को जान सकें।
इस क्रम में उन्होंने एक सौ ऐसे मंत्रों का चयन किया है, जिनमें ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव का स्पष्ट प्रतिपादन है।
आपने अपने इस संग्रह में महर्षि दयानंद के वेद भाष्य को ही आधार बनाकर, उन्हीं की चिंतन परंपरा को आगे बढ़ाया है। जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होने का यदि कोई उपाय है तो वह है उस आनंदघन पारब्रह्म को जानना, उसकी आज्ञा का पालन करना, उसको प्राप्त करना।
उस पारब्रह्म को जानने के लिए आईए हम अपनी ब्रह्म-विषयक जिज्ञासा को इस पुस्तक द्वारा शांत करें। -आचार्य नंदिता शास्त्री चतुर्वेदी, वाराणसीSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vishuddh Manusmriti – विशुद्ध मनुस्मृति
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVishuddh Manusmriti – विशुद्ध मनुस्मृति
स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है। मनुस्मृति के परवर्तीकाल में अनेक स्मृतियाँ प्रकाश में आयीं किन्तु मनुस्मृति के तेज के समक्ष वे अपना प्रभाव न जमा सकीं, जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक पूर्ववत् विद्यमान है। मनुस्मृति में एक ओर मानव-समाज के लिए श्रेष्ठतम सांसारिक कर्तव्यों का विधान है, तो साथ ही मानव को मुक्ति प्राप्त कराने वाले आध्यात्मिक उपदेशों का निरूपण भी है, इस प्रकार मनुस्मृति भौतिक एवं आध्यात्मिक आदेशों-उपदेशों का मिला-जुला अनूठा शास्त्र है।
इस प्रकार अनेकानेक विशेषताओं के कारण मनुस्मृति मानवमात्र के लिए उपयोगी एवं पठनीय है। किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज ऐसे उत्तम और प्रसिद्ध ग्रन्थ का पठन-पाठन लुप्त-प्रायः होने लगा है।
इसके प्रति लोगों में अश्रद्धा की भावना घर करती जा रही है। इसका कारण है-‘मनुस्मृति में प्रक्षेपों की भरमार होना‘। प्रक्षेपों के कारण मनुस्मृति का उज्ज्वल रूप गन्दा एवं विकृत हो गया है। परस्परविरुद्ध, प्रसंगविरोध एवं पक्षपातपूर्ण बातों से मनुस्मृति का वास्तविक स्वरूप और उसकी गरिमा विलुप्त हो गये हैं। एक महान तत्त्वद्रष्टा ऋषि के अनुपम शास्त्र को स्वार्थी प्रक्षेपकर्ताओं ने विविध प्रक्षेपों से दूषित करके न केवल इस शास्त्र के साथ अपितु महर्षि मनु के साथ भी अन्याय किया है।
प्रस्तुत संस्कारण का भाष्य पर्याप्त अनुसंधान के बाद किया गया है तथा प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को निकाल दिया गया है।
इसकी विषेषताएँ हैं-प्रक्षिप्त श्लोकों के अनुसंधान के मानदण्डों का निर्धारण और उनपर समीक्षा, विभिन्न शास्त्रों के प्रमाणों से पुष्ट अनुषीलन समीक्षा, मनु के वचनों से मनु के भावों की व्याख्या, मनु की मान्यता के अनुकूल और प्रसंगसम्मत अर्थ, भूमिका-भाग में मनुस्मृति का नया मूल्याकंन, महर्षि दयानन्द के अर्थ और भावार्थ, प्रथम बार हिन्दी-पदार्थ टीका प्रस्तुत, सभी अनुक्रमणिकाओं एवं सूचियों से युक्त, मनुस्मृति के प्रकरणों का उल्लेख।सम्पूर्ण श्लोकों के इस संस्करण में प्रक्षिप्त माने गये श्लोकों को उनके आरम्भ में ‘एस्टरिस्क‘(तारांकन) सितारे के चिन्ह के साथ प्रकाषित किया है। बिना चिन्ह वाले श्लोक मौलिक हैं।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
चारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिचारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
सभी वेदों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। वेद संतप्त मानवों को अपूर्व शांति प्रदान करते हैं। आधि-व्याधि और वासनाओं से विक्षुब्ध मानव-हृदय वेद-मंत्रों का उच्चारण करते हुए आनंदसागर में निमग्न हो जाता है।
वेद क्या हैं-वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है और संपूर्ण विश्व के द्वारा वरणीय है। वेद ज्ञान-विज्ञान के अक्षय कोष हैं। वेद संपूर्ण वैदिक वाङ्मय का प्राण हैं। वेदों में तेज, ओज, और वर्चस्व की राशि है। वेदों में दिग्दिगंत को पावन करने वाले दिव्य उपदेश हैं, मानवता को झकझोरनेवाले अनुपम आदेश और संदेश हैं। वेद में आधिभौतिक उन्नति की चरम सीमा है, आधिदैविक अभ्युदय की पराकाष्ठा है और आध्यात्मिक आरोहण का सवोत्तम रूप है।
हम वेद क्यों पढ़ें-वेद उत्तम मनुष्य बनने और उत्तम संतान पैदा करने का आदेश देते हैं। ऋग्वेद में कहा है-‘मनुर्भव जनया दैव्यं जनम‘। वेद के स्वाध्याय से मनुष्य के मन और मस्तिष्क में यह बात भली-भाँति बैठ जाती है कि यह संसार परमात्मा द्वारा रचा गया है, जो अद्वितीय है। उससे बड़ा तो क्या उसके बराबर भी कोई नहीं है। वह परमात्मा न्यायकारी है। मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है-यह विचार मनुष्य को पुण्यात्मा, सदाचारी, दयालु, परोपकारी, न्यायकारी, पर-दुःखकातर, निर्भय और मानवता के गुणों से सुभूषित बना देता है।
वेद हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। हमारा अपने प्रति क्या कर्तव्य है, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, परमात्मा के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है-इस सबका ज्ञान हमें वेद से ही प्राप्त होगा। वर्णाश्रम धर्मों का प्रतिपादन भी वेद में सुंदररूप में प्रस्तुत किया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन सभी वर्गों के तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास-इन सभी आश्रमवासियों के कर्तव्यकर्मों का सदुपदेश वेद में विद्यमान है, जिन पर आचरण करने से मनुष्य का जीवन उदात्त भावनाओं से पूर्ण, नियमित, संयमित और संतुलित बन जाता है। मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाने के लिए वेद का अध्ययन अनिवार्य है। मनुष्य और कुछ पढ़े या न पढ़े, वेद तो उसे पढ़ना ही चाहिए।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना आर्यों का परमधर्म बतलाया है। हम उनके इसी आदेश का पालन करते हुए वेदों का प्रकाशन किया गया है ताकि वेदों का प्रचार और प्रसार होता रहे।
यह संस्करण कम्प्यूटर द्वारा मुद्रित, शुद्धतम् सामग्री, नयनाभिराम छपाई, आकर्षक आवरण, उत्तम कागज, मजबूत जिल्द, सुन्दर स्पष्ट टाईप, कुल 10400 पृष्ठों में, शब्दार्थ व मन्त्रानुक्रमणिका सहित आठ खण्डों में उपलब्ध है। ऋग्वेद-महर्षि दयानन्द तथा अन्य वैदिक विद्वानों द्वारा, यजुर्वेद-महर्षि दयानन्द, सामवेद-पं. रामनाथ वेदालंकार तथा अथर्ववेद-पं. क्षेमकरणदास त्रिवेदी का भाष्य है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, रामायण/रामकथा
बाल्मीकि रामायण- Valmiki Ramayana
स्वामी जगदीष्वरानन्द सरस्वती आर्य जगत् के सुप्रसिद्ध विद्वान्, निरन्तर साहित्य साधना में संलग्न, रामायण के समालोचक एवं मर्मज्ञ लेखक थे।
इस पुस्तक द्वारा आप अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की झांकी, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन का अध्ययन, प्राचीन राज्यव्यवस्था का स्वरुप देख सकते हैं।
यदि आप भ्रातृ-प्रेम नारी-गौरव आदर्ष सेवक, आदर्ष मित्र, आदर्ष राज्य, आदर्ष पुत्र के स्वरुपों का अवलोकन या आप रामायण का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहते हैं तो यह रामायण अवष्य पढ़ें।
यह ग्रन्थ सैकड़ों टिप्पणियों से समलंकृत सम्पूर्ण रामायण 7000 श्लोकों में पूर्ण हुआ है।
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Vani Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
संत वाणी-Sant Vani 1
कर्म-ज्ञान-भक्ति योग से आप्लावित भारतवर्ष के दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम तक उसकी भावात्मक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक एकात्मता उसकी सुदीर्घ वैचारिक धारा से स्वयंसिद्ध है। भारतीय एकात्म संस्कृति का निर्माण आध्यात्मिक चेतना की आधार-शिला पर हुआ है। इस तथ्य के अनेकानेक प्रमाण हैं। उनमें से एक है युगों से चली आनेवाली वैष्णव भक्ति-धारा। भारतीय निगमों, आगमों, भगवद्गीता पद्म पुराण, विष्णु पुराण, श्रीमद् भागवत आदि के द्वारा जो वैष्णव भक्ति चेतना उत्तर भारत में विकसित हुई वही ईसा पूर्व के संघकालीन तमिल साहित्य से होते हुए संघोत्तरकालीन महाकाव्य ‘शिलप्पधिकारम्’, ‘मणिमेखलै’ आदि में प्रतिष्ठित होकर परवर्ती परम भागवत वैष्णव संत भक्तों-आषवारों के ‘दिव्य प्रबन्धम्’ में आकर गहनतम प्रपत्तिपरक नारायण (विष्णु) भक्ति के रूप में व्यापक रूप से प्रचारित हुई। यह वैष्णव भक्ति-धारा परवर्ती आचार्यों के माध्यम से दक्षिण से वृन्दावन तक पहुँचकर समग्र भारत में परिव्याप्त हुई। यह भारत की आध्यात्मिक एकात्मता की संक्षिप्त रूपरेखा है। आज के भारत का राष्ट्रीय परिवेश भौतिक श्रीवृद्धि का प्रतिमान है। साथ ही वह नानाविघ बाह्यविभेद रेखाओं से विभिन्न भागों में बँटा हुआ भी है। किन्तु भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक एकात्म चेतना आज भी अक्षुण्ण है और हिमाचल से कन्याकुमारी तक की उसकी एकसूत्रता शाश्वत है। इस राष्ट्रीय आध्यात्मिक एकात्मता का प्रतिपादन ही इस ग्रन्थ का मूल मंत्र है।
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