Author – Dr. P. Jayaraman
ISBN – 9789350727317
Lang. – Hindi
Pages – 174
Binding – Hardcover
Weight | .450 kg |
---|---|
Dimensions | 9.75 × 6.50 × 1.57 in |
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नरेन्द्र कोहली
वेद कहते हैं कि अनस्तित्व में से अस्तित्व का जन्म नहीं होता। जो नहीं है, वह हो नहीं सकता। किसी का जन्म नहीं होता। कुछ उत्पन्न नहीं होता। स्रष्टा और सृष्टि दो समानान्तर रेखाएँ हैं, जिनका न कहीं आदि है न अन्त। वे दोनों रेखाएँ समानान्तर चलती हैं। ईश्वर नित्य क्रियाशील विधाता है। जिसकी शक्ति से प्रलयपयोधि में नित्यशः एक के बाद एक ब्रह्माण्ड का सृजन होता रहता है। वे कुछ काल तक गतिमान रहते हैं और उसके पश्चात् विनष्ट कर दिए जाते हैं। सूर्य चन्द्रमसौ धाता यथापूर्वम् अकल्पयत्। इस सूर्य और इस चन्द्रमा को भी पिछले चन्द्रमा के समान निर्मित किया गया।…तो यह जन्म लेने से पहले, इस शरीर को धारण करने से पहले भी तो कुन्ती कुछ रही होगी, कोई रही होगी। कौन थी वह ?…
उपन्यासकार यह बताना चाहता है कि महाभारत की कथा भारतीय संस्कृति की अमूल्य थाती है। यह मनुष्य के उस अनवरत युध्द की कथा है, जो उसे अपने बाहरी और भीतरी शत्रुओं के साथ निरन्तर करना पड़ता है । इस संसार में चारों ओर लोभ, मोह, सत्ता और स्वार्थ की शक्तियाँ संघर्षरत हैं । लोभ, त्रास और स्वार्थ के विरुध्द मनुष्य के इस सात्विक युध्द को महाभारत में अत्यन्त विस्तार से प्रस्तुत किया गया है । ‘हिडिम्बा’ पाठकों के समक्ष प्रश्न उत्पन्न करती है कि हिडिम्बा कैसी पात्र है ? क्यों एक भाई के हत्यारे के साथ शादी करने को तैयार हो जाती है ? क्यों कुंती अपने बड़े बेटे के विवाह से पहले भीम के विवाह पर राजी हो जाती है । क्यों हिडिम्बा हस्तिनापुर न जाकर जंगल में रहना ही स्वीकार करती है ? इस उपन्यास में ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिससे पाठक रूबरू होंगे।
नरेन्द्र कोहली
इस उपन्यास का नाम कुछ पौराणिक-सा लगता है किन्तु यह तनिक भी पौराणिक नहीं है। यह नरेन्द्र कोहली का पहला उपन्यास है, जो समकालीन है और विदेशी धरती पर लिखा गया है। विदेशी धरती ही नहीं, इसमें अनेक महाद्वीपों के लोगों के परस्पर गुँथे होने और एक नया संसार गढ़ने की कथा है। परिणामतः उनके हृदय में और परस्पर सम्बन्धों में अनेक विरोध भी हैं और अनेक विडम्बनाएँ भी। जहाँ इतिहास है, वहाँ उस ऐतिहासिक काल की कड़वाहट भी है, जिसे न आप भूल सकते हैं, न उसके कारणों को दूर कर सकते हैं। जहाँ वर्तमान है, वहाँ अपने मूल देश के प्रति प्रेम भी है और छिद्रान्वेषण भी। न स्वयं को अपने देश से असम्पृक्त कर सकते हैं और न उसको उसकी त्रुटियों के साथ स्वीकार कर सकते हैं। न देश के अपने हो पाये, न पराये। न उसे स्वीकार कर पाये, न अस्वीकार। इसके चरित्र व्यक्ति नहीं हैं, वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो अभी स्थिर नहीं हो पायी हैं। वे परिवर्तन की चक्की में पिस रहे हैं और अपने वास्तविक रूप को जानने का प्रयत्न कर रहे हैं। अपने देश को स्मरण भी करते हैं और उसे भूल भी जाना चाहते हैं। जिनके प्रति प्रेम है, उन्हें भूलना चाहते हैं; और जिन्हें प्रेम नहीं करते, उन्हें अपनाना चाहते हैं। उनसे मिलना भी चाहते हैं और उनसे दूर भी रहना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह परिवर्तन और नये निर्माण की कथा है। कहा नहीं जा सकता कि वह नया निर्माण कैसा होगा।
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