Author – Dr. P. Jayaraman
ISBN – 9789350725801
Lang. – Hindi
Pages – 340
Binding – Hardcover
Weight | .850 kg |
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Dimensions | 9.75 × 6.50 × 1.57 in |
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Vani Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
SAMPOORNA CHANAKYA NEETI EVAM CHANAKYA SOOTRA
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0 out of 5(0)‘चाणक्य नीति’ आचार्य चाणक्य के विश्वविश्रुत ग्रन्थ ‘कौटिलीय अर्थशास्त्र’ का संक्षिप्त संस्करण है, जिसमें धर्म, समाज तथा राजनीति के गूढ़ तत्त्वों को अत्यन्त सरल शैली में प्रस्तुत किया गया है । इस ग्रन्थ का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धर्मशास्त्रों में निरूपित सभी करणीय-अकरणीय कर्मों की जानकारी प्राप्त करके सत्कर्मों का अनुष्ठान कर सकता है । एक पद्य में तो यह भी कहा गया है – येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रतिपद्यते । अर्थात इसे जानने वाला व्यक्ति राजनीति का पूर्ण विद्वान बन जाता है । संस्कृत भाषा में लिखा गया यह ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें लोकव्यवहार, धर्म तथा राजनीति से सम्बन्धित ऐसी अनेक शिक्षाप्रद व उपयोगी जानकारी का समावेश हैं, जिसे जानकर कोई भी व्यक्ति, जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है ।
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hardoi : Sanskritik Gazetteer-2
0 out of 5(0)अवध प्रांत के सीमांकन को लेकर भिन्न विचारधाराएँ हैं,कुछ विद्वान इसके एक भौगोलिक क्षेत्र के रूप में डेकते है तो दूसरी और भाषाविदों के आनुसार यह वह क्षेत्र है जहां अवधि भाषा बोली जाती है। इस प्रांत को ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखा जाए तो अलग-अलग कालखंड में इसकी सीमाएं एवं राजधानी परिवर्तित होती रही है। दूसरी ओर इस प्रांत में स्तिथ हरदोई जिले को कुछ लोग अवध में रखते हैं तो कुछ अलग मानते हैं फिलहाल वर्तमान प्रशासनिक ढांचे के अनुसार यह ज़िला अवध का ही भाग है। इस गज़ेटियर में हरदोई से जुड़ी वो सब बाते और मान्यताएं मिलेंगी जो फले से चली आ रही हैं।
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Vani Prakashan, इतिहास
Awadh Sanskriti Vishwakosh – 2
0 out of 5(0)हिन्दी भाषा और साहित्य के इतिहास में अवध का महत्वपूर्ण स्थान है। विद्वानों ने इसे ‘मध्य देश’ कहा है। लन्दन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रुपर्ट स्नेल ने किसी प्रसंग में ठीक ही कहा था कि काशी विद्या की नगरी है, किन्तु वहाँ लिखी-बोली जा रही खड़ीबोली हिन्दी पर जनपदीय बोलियों का बड़ा प्रभाव है। दिल्ली केन्द्रीय महानगर है, परन्तु वहाँ की हिन्दी पंजाबीपन से प्रेरित है। मानक हिन्दी का रूप तो गंगा-यमुना के मैदान अर्थात् अन्तर्वेद में प्राप्त होता है। यही कारण है कि हिन्दी के मानकीकरण का आन्दोलन आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के माध्यम से यहीं से शुरू हुआ। यह उल्लेखनीय है कि द्विवेदी जी बैसवारा के निवासी थे और ‘सरस्वती’ पत्रिका इलाहाबाद से प्रकाशित होती थी। इस क्षेत्र के साहित्यकारों ने रचनात्मक क्षेत्र में सदैव अपनी अग्रणी भूमिका निभायी है। मुल्ला दाऊद ने ‘चन्दायन’ महाकाव्य लिखकर सूफी काव्य धारा का प्रवर्तन किया। उसे जायसी ने पदमावत द्वारा शिखर पर पहुंचा दिया। तात्पर्य यह कि सूफी काव्य और महाकाव्य इसी क्षेत्र के प्रयोग हैं। सरहपाद के ‘दूहाकोश’, गोरखनाथ की ‘सबदी’ और विद्यापति की अवहट्ट भाषा में अवधी का गहरा पट है, जिससे यह सिद्ध होता है कि हिन्दी जगत की सबसे पुरानी काव्य भाषा है अवधी। गोस्वामी जी ने ‘रामचरितमानस’ जैसा महाकाव्य रचकर इसे विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित कर दिया। ‘मानस’ की परम्परा में। यहाँ दर्जनों रामकाव्य रचे गये हैं, जो हिन्दी की अमूल्य निधि हैं।
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Vani Prakashan, इतिहास
Awadh Sanskriti Vishwakosh – 1
0 out of 5(0)प्राचीन अवध के अन्तर्गत इन आठ राज्यों का उल्लेख प्राप्त होता है-1. वत्स 2. कौशाम्बी 3. कोसल-साकेत 4. श्रावस्ती 5. कान्यकुब्ज 6. अन्तर्वेद 7. भारशिव (बैसवारा) 8. शर्की (जौनपुर)। यही रामराज्य की वास्तविक परिधि थी। यद्यपि कवियों ने रामराज्य को देश-देशान्तर तक व्याप्त दिखाया है, किन्तु वह मंगलाशा मात्र है। गोस्वामी जी ने लिखा है- “सप्तद्वीप सागर मेखला” किन्तु यह कथन एक प्रकार की कवि प्रौढ़ोक्ति है। अकबर ने पूरे मुगल राज्य को 1590 ई. में कुल 12 सूबों में बाँटा था। सूबाए औध में 5 सरकारें थीं-लखनऊ, फैजाबाद, खैराबाद, बहराइच, गोरखपुर। बाद में गोरखपुर अलग कमिश्नरी से जुड़ गया। मध्यकाल में अयोध्या पर समय-समय पर कई वंशों ने राज्य किया, जिनमें मुख्य हैं-1. खिलजी वंश 2. तुगलक वंश 3. मुगल वंश 4. सोलंकी राजा 5. कान्यकुब्ज नरेश 6. परिहार वंश 7. लोदी वंश 8. गहरवार वंश 9. नवाबी शासन। अंग्रेजी शासन में अवध के भीतर सुल्तानपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, टाँडा और मानिकपुर को सम्मिलित कर लिया गया और गोरखपुर को पृथक कर दिया गया। बाद में अयोध्या पर शाकद्वीपीय राजाओं का अधिकार रहा। लाला सीताराम ने ‘अयोध्या का इतिहास’ में इन सबका विस्तृत विवरण दिया है। इस विशाल क्षेत्र का भौगोलिक परिवेश अत्यन्त बहुरंगी तथा सुरम्य है। इसकी अधिकांश भूमि वनों से ढकी है। भूवैज्ञानिक संरचना की दृष्टि से यह क्षेत्र कई हिस्सों में बँटा है। इस क्षेत्र का काफी भाग हिमालय की तराई (गाँजर) क्षेत्र में आता है। खीरी, बहराइच, गोण्डा, बलरामपुर, सीतापुर, श्रावस्ती जिले इसी गाँजर क्षेत्र के जिले हैं। उत्तर में यह हिमालय की एक समानान्तर श्रेणी है। दूसरा क्षेत्र गंगा यमुना का मैदान (दोआबा) कहलाता है।
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