Author – Dr. P. Jayaraman
ISBN – 9789352294879
Lang. – Hindi
Pages – 346
Binding – Hardcover
Weight | .700 kg |
---|---|
Dimensions | 9.75 × 6.50 × 1.57 in |
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ISBN – 9789352294879
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अवध प्रांत के सीमांकन को लेकर भिन्न विचारधाराएँ हैं,कुछ विद्वान इसके एक भौगोलिक क्षेत्र के रूप में डेकते है तो दूसरी और भाषाविदों के आनुसार यह वह क्षेत्र है जहां अवधि भाषा बोली जाती है। इस प्रांत को ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखा जाए तो अलग-अलग कालखंड में इसकी सीमाएं एवं राजधानी परिवर्तित होती रही है। दूसरी ओर इस प्रांत में स्तिथ हरदोई जिले को कुछ लोग अवध में रखते हैं तो कुछ अलग मानते हैं फिलहाल वर्तमान प्रशासनिक ढांचे के अनुसार यह ज़िला अवध का ही भाग है। इस गज़ेटियर में हरदोई से जुड़ी वो सब बाते और मान्यताएं मिलेंगी जो फले से चली आ रही हैं।
मीरां की कविता को सदियों तक लोक ने अपने सुख-दुःख और भावनाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम की तरह बरता इसलिए यह धीरे-धीरे ऐसी हो गयी कि सभी को उसमें अपने लिए जगह और गुंजाइश नजर आने लगी और इससे साँचों-खाँचों में काट-बाँट कर अपनी-अपनी मीरांएँ गढ़ने का सिलसिला शुरू हो गया। धार्मिक आख्यानकार केवल उसकी भक्ति पर ठहर गये, जबकि उपनिवेशकालीन इतिहासकारों ने उसके जीवन को अपने हिसाब से प्रेम, रोमांस और रहस्य का आख्यान बना दिया। वामपन्थियों ने केवल उसकी सत्ता से नाराजगी और विद्रोह को देखा, तो स्त्री विमर्शकारों ने अपने को केवल उसके साहस और स्वेच्छाचार तक सीमित कर लिया। इस उठापटक और अपनी-अपनी मीरां गढ़ने की कवायद में मीरां का वह स्त्री अनुभव और संघर्ष अनदेखा रह गया जो उसकी कविता में बहुत मुखर है और जिसके संकेत उससे सम्बन्धित आख्यानों, लोक स्मृतियों और इतिहास में भी मौजूद हैं। ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ में मीरां के छवि निर्माण की प्रक्रियाओं को समझने के साथ विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध उसके स्त्री अनुभव और संघर्ष के संकेतों की पहचान और विस्तार का प्रयास है। मीरां इतिहास, आख्यान, लोक और कविता में से किसी एक में नहीं है-वह इन सभी में है, इसलिए उसकी खोज और पहचान में यहाँ इन सभी ने गवाही दी है। मीरां का स्वर हाशिए का नहीं, उसके अपने जीवन्त और गतिशील समाज का सामान्य स्वर है। यह वह समाज है जो मीरां को होने के लिए जगह तो देता ही है, उसको सदियों तक अपनी स्मृति और सिर-माथे पर भी रखता है।
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