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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue
“The BJP believes in the unity of the Hindustan Peninsula and the equality of all its people. It stands for “Justice for all and appeasement of none”. It welcomes diversity so long as it does not destroy our overall unity. It invites the people of India, Pakistan and Bangladesh to get over the trauma of the last fifty years, and draw on the historic experience of preceding centuries to weave a new and happier pattern of life in the Hindustan Peninsula. After all the hullabaloo about riots, most of the Hindus and Muslims are living in peace and amity most of the time. India and Pakistan, with all their hostility, have never fought for more than two weeks at a time. (Iran and Iraq bled each other for eight long years!) Even in the year of Partition, the best singers in Har Mandir, Amritsar, were Muslims. The men, who built the ‘samadhi’ of Dr. Hedgewar, the founder of RSS, in Nagpur, were Muslims. With all our diversities, we in the Hindustan Peninsula are One People, whatever the number of states. We can, and must, live in peace and amity.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
K.R. Malkani Hindu-Muslim Samvad (Hindi Translation of K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहासK.R. Malkani Hindu-Muslim Samvad (Hindi Translation of K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue)
“भारत विविधता का स्वागत करता है परंतु वहीं तक, जहाँ तक एकता होती हो। हम भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के लोग पिछले 50 वर्षों के घावों को भरने में एक-दूसरे की मदद करें और गत शताब्दियों के ऐतिहासिक अनुभव के आधार पर हिंदुस्तान में जीवन का नया व प्रसन्नतादायक साँचा तैयार करें।
दंगों के बारे में इतना शोर-शराबा मचा रहने के बावजूद अधिकांश समय मुसलमान व हिंदू शांति व सद्भाव के साथ रह रहे हैं। भारत व पाकिस्तान की तनातनी के बावजूद इनकी आपसी लड़ाई एक बार में 2 सप्ताह ज्यादा नहीं चली। (ईरान व इराक एक-दूसरे का 8 वर्षों की दीर्घावधि तक खून बहाते रहे।) यहाँ तक कि विभाजन के समय भी हरमंदिर साहब, अमृतसर में सर्वोत्तम गायक मुसलमान थे। जिन लोगों ने नागपुर में रा.स्व. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की समाधि बनाई, वे मुसलमान थे। अपनी सब विविधताओं के बावजूद हम सब हिंदुस्तान प्रायद्वीप के लोग एकजन हैं।
यहाँ इस बात के साथ कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रायद्वीप में कितने राज्य हैं। हम शांति और सद्भाव से रह सकते हैं, अतः इसी तरह से रहना चाहिए । —इसी पुस्तक से”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Kaaljayee Bharatiya Gyan
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Kaaljayee Bharatiya Gyan
“प्रस्तुत पुस्तक में हमारे प्राचीन वाङ्मय, यथा—वेदों, पुराणों, ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, आरण्यकों, रामायण, महाभारत एवं प्राचीन सनातन हिंदू ग्रंथों में उन्नत आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भ विवेचित हैं। इनमें ब्रह्मांड की श्याम ऊर्जा, ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वैज्ञानिक विमर्श, सौरमंडल रहस्य, गुरुत्वाकर्षण का प्राचीन वैदिक व अन्य शास्त्रों का संदर्भ ज्ञान, प्रकाश की गति का वैदिक विमर्श, ग्रहण का वैज्ञानिक विवेचन आदि की शास्त्रोक्त व्याख्या की गई है। वेदों में लोकतंत्र, गणराज्य एवं राष्ट्र की प्राचीन संकल्पना, राष्ट्राध्यक्ष के चुनाव का वैदिक विमर्श, राजपद व उसकी मर्यादाएँ, राजा या शासनाध्यक्ष की वैदिक शपथ, प्राचीन बहुस्थानिक व्यवसाय के संदर्भ, उद्योग, व्यापार व वाणिज्य लोक वित्त के प्राचीन संदर्भ आदि की भी व्याख्या प्रस्तुत पुस्तक में की गई है।
पुस्तक में उन्नत शब्द विज्ञान, उन्नत भौतिकीय, रासायनिक व गणितीय ज्ञान के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है। वैदिक सूर्योपासना के वैश्विक प्रसार और अमेरिकी पुरावशेषों पर भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है। वेदों में सार्वभौम राष्ट्र व शासन-पद्धतियों की अवधारणा, राष्ट्र, राज्य व राजशास्त्रों के वैदिक विवेचनों की भी समीक्षा की गई है। कुल मिलाकर यह यशस्वी कृति भारतवर्ष के समृद्ध, समुन्नत, सर्वमान्य ज्ञान-परंपरा का एक वृहद् व व्यावहारिक विश्वकोश है, जिसका अध्ययन करना हमें नई ऊर्जा, उत्साह और आत्मविश्वास से समादृत करेगा।”
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Kaam Kala Ke Bhed | काम-कला के भेद
वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षामः, सोमनाथ, धर्मपुत्र और सोना और खून जैसी लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिन्दी के लोकप्रिय साहित्यकार होने के साथ आयुर्वेद के ‘आचार्य’ थे। उपन्यास और कहानियों के अतिरिक्त उन्होंने स्वास्थ्य और यौन संबंधों पर भी अनेक पुस्तकें लिखीं। उनका मानना था कि यौन संबंधी सुख ही दांपत्य की धुरी है। इसीलिए इस पुस्तक में उन्होंने यौन-संबंधों के विविध पहलुओं पर विशद जानकारी दी है, और साथ ही अलग-अलग देशों में व्याप्त धारणाओं, कुंठाओं पर भी प्रकाश डाला है। स्त्री और पुरुष की शारीरिक संरचनाओं और सहवास की सही विधि पर पाठक को विस्तृत और स्पष्ट जानकारी मिलेगी इस पुस्तक में। साथ ही यौन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए अनेक उपाय और उपचार दिए हैं। हर युवा के लिए एक अत्यंत उपयोगी पुस्तक!
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Kahani Jammu-Kashmir Ki (Hindi Translation of Kashmir Narratives: Myths Vs Realities of J&K)
-11%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Kahani Jammu-Kashmir Ki (Hindi Translation of Kashmir Narratives: Myths Vs Realities of J&K)
“कश्मीर-जम्मू और कश्मीर है’ से ‘मकबूल शेरवानी ने कश्मीर को बचाया’, ‘डोगराओं ने कश्मीरियों पर अत्याचार किया’, ‘विलय के दस्तावेज पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए गए’ से लेकर ‘कश्मीरी अलग हैं और एक विशेष सुलूक के हकदार हैं’, बहुत से आख्यान—झूठे और विश्वास करने लायक, दोनों कई दशकों से जम्मू-कश्मीर के बारे में राजनीतिक और अकादमिक बातचीत के केंद्र बिंदु रहे हैं।
इस काम में ऐसे आख्यानों पर जानबूझ कर एक नजर डाली गई है, क्योंकि ये हमारे इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधि से संबंधित हैं और जम्मू-कश्मीर के लोगों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। किंतु कई समीक्षक आज भी भुलावे और भ्रमित मनस्थिति में हैं।
यह पुस्तक उन लोगों की मदद कर सकती है, जो हमारे देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में कुछ आख्यानों का मजमून खोजने के लिए घूम रहे हैं। आशा है कि जो पाठक इस पुस्तक को पढेंग़े, उनके पास इसमें निहित मुद्दों के बारे में अपना विचार बदलने के कारण होंगे; यदि कोई भी बदलाव, होगा तो, वह इस पुस्तक में प्रस्तुत किए जा रहे तर्क की कसौटी पर होगा।”SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Kaili, Kamini Aur Anita
अनीता ‘एक थी अनीता’ उपन्यास की नायिका है जिसके पैरों के सामने कोई रास्ता नहीं, लेकिन वह चल देती है-कोई आवाज़ है, जाने कहाँ से उठती है और उसे बुलाती है…कैली ‘रंग का पत्ता’ उपन्यास की नायिका है, एक गाँव की लड़की और कामिनी ‘दिल्ली की गलियाँ’ उपन्यास की नायिका है, एक पत्रकार। इनके हालात में कोई समानता नहीं, वे बरसों की जिन संकरी गलियों से गुज़रती हैं, वे भी एक दूसरी की पहचान में नहीं आ सकतीं। लेकिन एक चेतना है, जो इन तीनों के अन्तर में एक सी पनपती है…वक्त कब और कैसे एक करवट लेता है, यह तीन अलग-अलग वार्ताओं की अलग-अलग ज़मीन की बात है। लेकिन इन तीनों का एक साथ प्रकाशन, तीन अलग-अलग दिशाओं से उस एक व्यथा को समझ लेने जैसा है, जो एक ऊर्जा बन कर उनके प्राणों में धड़कती है…मशहूर कवयित्री और लेखिका अमृता प्रीतम (1919-2005) ने पंजाबी और हिन्दी में बहुत साहित्य-सृजन किया जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी फैलोशिप, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Kala Ka Jokhim
निर्मल वर्मा के निबन्ध-संग्रहों के सिलसिले में कला का जोखिम उनकी दूसरी पुस्तक है, जिसका पहला संस्करण लगभग बीस साल पहले आया था। स्वयं निर्मलजी इस पुस्तक को अपने पहले निबन्ध-संग्रह शब्द और स्मृति तथा बाद वाले ढलान से उतरते हुए शीर्षक संग्रह के बीच की कड़ी मानते हैं जो इन दोनों पुस्तकों में व्यक्त चिन्ताओं को आपस में जोड़ती है। निर्मल वर्मा के चिन्तक का मूल सरोकार ‘आधुनिक सभ्यता में कला के स्थान’ को लेकर रहा है। मूल्यों के स्तर पर कला, सभ्यता के यांत्रिक विकास में मनुष्य को साबुत, सजीव और संघर्षशील बनाये रखनेवाली भावात्मक ऊर्जा है, किन्तु इस युग का विशिष्ट अभिशाप यह है कि जहाँ कला एक तरफ मनुष्य के कार्य-कलाप से विलगित हो गयी, वहाँ दूसरी तरफ वह एक स्वायत्त सत्ता भी नहीं बन सकी है, जो स्वयं मनुष्य की खण्डित अवस्था को अपनी स्वतन्त्रा गरिमा से अनुप्राणित कर सके। साहित्य और विविध देश-कालगत सन्दर्भों से जुडे़ ये निबन्ध लेखक की इसी मूल पीड़ा से हमें अवगत कराते हैं। अपनी ही फेंकी हुई कमन्दों में जकड़ी जा रही सभ्यता में कला की स्वायत्तता का प्रश्न ही ‘कला का जोखिम’ है और साथ ही ज़्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि ‘वही आज रचनात्मक क्रान्ति की मूल चिन्ता का विषय’ बन गया है। इन निबन्धों के रूप में इस चिन्ता से जुड़ने का अर्थ एक विधेय सोच से जुड़ना है और कला एक ज़्यादा स्वाधीन इकाई के रूप में प्रतिष्ठित हो सके, उसके लिए पर्याप्त ताकत जुटाना भी।
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Prabhat Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kala Pani (PB)
काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। काला पानी की विभीषिका, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अत: उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखे वर्णन का-सा पठन-सुख देता है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का वर्णन है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे। काला पानी के कैदियों पर कैसे-कैसे नृशंस अत्याचार एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार किए जाते थे, उनका तथ वहाँ की नारकीय स्थितियों का इसमें त्रासद वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्र भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kale Pani Ki Kalank Katha
अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह में, जिसे लोकप्रिय रूप से काला पानी के नाम से जाना जाता है, 572 द्वीप हैं और उनमें से केवल 36 बसे हुए हैं। उत्तम सुंदरता के इन द्वीपों का प्रारंभिक इतिहास रहस्य में डूबा हुआ है। 18वीं शताब्दी के करीब इनपर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कब्जा कर लिया गया था। 1857 के बाद अंग्रेजों ने उनका उपयोग दंड-बस्ती के लिए किया। कारावासियों को आजीवन कारावास की सजा के लिए सेल्युलर जेल में रखा गया।
23 मार्च, 1942 के वास्तविक कब्जे से एक दशक पूर्व ही जापानियों ने द्वीपों पर कब्जे की पूरी तैयारी कर ली थी। उन्होंने द्वीपवासियों के मन में स्वतंत्रता की नई आशाएँ और इच्छाएँ जगाईं। शीघ्र ही द्वीपवासी कुछ कट्टर और भयावह जासूसी के मामलों की निराधार याचिका पर आतंक की चपेट में आ गए।
जापानियों ने सहयोगी सूचनाओं की आपूर्ति में स्थानीय लोगों पर संदेह करना आरंभ कर दिया। वे जासूसी के वास्तविक स्रोतों का पता लगाने में असफल रहे, जो मुख्य रूप से मेजर मैकार्थी के आदेश के तहत थे। अगस्त 1945 तक लोगों की मौन पीड़ा की प्रबलता जारी रही तथा नरसंहार बढ़ने लगे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यात्रा भी एक अनंतिम भारत सरकार स्थापित करने और अत्याचारों और यातनाओं की जाँच करने में विफल रही।
परमाणु हमलों ने जापान को उसके घुटनों पर ला दिया और 9 अक्तूबर, 1945 को पोर्ट ब्लेयर में समर्पण के साधन पर हस्ताक्षर किए गए। युद्ध-अपराध अदालतों के परिणामस्वरूप, 16 अभियुक्तों में से 6 को सिंगापुर में मृत्युदंड दिया गया और बाकी को 7 से 25 साल तक के लिए सजा सुनाई गई। द्वीप अब एक केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति का आनंद लेते हैं।SKU: n/a -
Garuda Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kalki Tu Kahan Hai: Life story of Swami Pranavanand Saraswati
-10%Garuda Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणKalki Tu Kahan Hai: Life story of Swami Pranavanand Saraswati
कल्कि तू कहाँ है: स्वामी प्रणवानंद की जीवन गाथा ‘मेजर जनरल जीडी बख्शी द्वारा लिखित पुस्तक स्वामी प्रणवानंद के जीवन के बारे में बात करती है। उन्होंने अपने जीवन के 12 साल जंगल में बिताए और कैसे उनके श्रम का भुगतान हुआ। एक पुस्तक जो जीवन के प्रति आपके विचारों को बदल देगी क्योंकि आप स्वामी प्रणवानंद के जीवन से बहुत कुछ सीखेंगे।
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Hindi Books, Sasta Sahitya Mandal, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kalp Barikchh (PB)
इस पुस्तक में हिंदी के विद्वान लेखक और पुरातत्ववेत्ता डा. वासुदेवशरण अग्रवाल के कुछ चुने हुए लेखों का संग्रह है। इन लेखों में उन्होंने प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनेक छिपे पृष्ठों को खोला है और विविध रूपों में उस महान् संस्कृति के दर्शन पाठकों को कराए हैं। लेखक ने प्राचीन साहित्य का अध्ययन ही नहीं किया, उसमें बार-बार डुबकी लगाकर उसकी आत्मा के साथ साक्षात्कार भी किया है। यही कारण है कि वह उसका रसास्वादन इतने रोचक और सजीव ढंग से करा सके हैं। लेखक का यह दूसरा संग्रह ‘मण्डल’ से प्रकाशित हुआ है। प्रथम संग्रह ‘पृथ्वीपुत्र’ में उन्होंने जनपदीय लोक-जीवन के अध्ययन के लिए दिशा-निर्देश किया था।
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Rajkamal Prakashan
Kamayani
जयशंकर प्रसाद (1889-1937) का महाकाव्य कामायनी आधुनिक हिंदी साहित्य की सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृति मानी जाती है। इसमें मानवीय संवेदनाओं, विचारों और कर्म का आदान-प्रदान दर्शाया गया है। यह महाकाव्य एक वैदिक कथानक पर आधारित है जिसमें मनु (एक मनुष्य) प्रलय के बाद अपने को बिल्कुल भावनाहीन पाता है। फिर कैसे वह अलग-अलग भावनाओं, विचारों और कर्मों में उलझने लगता है। कई लोगों का मानना है कि कामायनी के अध्यायों का क्रम इस बात का संकेत देता है कि उम्र के साथ मनुष्य के व्यक्तित्व में कैसे परिवर्तन आता है। यह महाकाव्य छायावादी कविता का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है।
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Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Kanhaiya
श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के आधार पर लिखी गयी चित्रकथा के इस भाग में भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर माखन-लीला तक की नौ लीलाओं का सरल भाषा में सजीव चित्रण किया गया है। कथा की भाषा-शैली इतनी सरस और रोचक है कि बाल-बृद्ध सभी लोग श्रीकृष्ण-लीला के मधुर प्रसंगों का सहज ही आनन्द उठा सकते हैं। प्रत्येक कथा के दायें पृष्ठ पर सुन्दर आर्टपेपर पर लीला से सम्बन्धित आकर्षक चित्र भी दिये गये हैं।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Karma : Mahasamar – 3
नरेन्द्र कोहली
महासमर-3 (कर्म) की कथा युधिष्ठिर के युवराज अभिषेक के पश्चात की कथा है। इस युवराज अभिषेक के पीछे मथुरा की यादव शक्ति है। अपनी राजनीति में उलझ जाने के कारण जब यादव पाण्डवों की सहायता नहीं कर पाते, दूसरी ओर गुरु द्रोण का वरदहस्त भी पाण्डवों के सिर से हट जाता है तो दुर्योधन पाण्डवों को वारणावत में भस्म करने का षड्यन्त्र रच डालता है। वारणावत से जीवित बच कर पाण्डव पांचालों की राजधानी काम्पिल्य में पहुँचते हैं। पाण्डवों का वारणावत से काम्पिल्य पहुँचाने की योजना इस कथा खण्ड का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। उन्हें हिडिम्ब वन से किसने निकाला? उनके काम्पिल्य तक सुरक्षित पहुँचने की व्यवस्था किसने की? और उन्हें काम्पिल्य ही क्यों लाया गया? इस संदर्भ में विदुर, कृष्ण तथा महर्षि व्यास के नाम लिये जाते हैं। लेखक का विचार है कि इस संदर्भ में तीनों की ही अपनी-अपनी भूमिका है। हमारे पाठक के मन में सदा से एक प्रश्न काँटे के समान चुभता रहा है कि एक स्त्री के पाँच पुरुषों के साथ विवाह कर दिये जाने के पीछे क्या तर्क था? उसका औचित्य क्या था? लेखक ने अपनी विशिष्ट, तथ्यपरक, तर्कसंगत शैली में इन प्रश्नों के समुचित उत्तर इस खण्ड में दिये हैं। पाण्डवों का हस्तिनापुर लौटना एक प्रकार का गृहआगमन भी है और मृत्यु के मुख में लौटना भी। किन्तु इस समय वे असहाय व भयभीत पाण्डव नहीं हैं और यादवों तथा पांचालों की सैन्य शक्ति उनके साथ है। यदि आज वे अपना अधिकार नहीं माँगेंगे तो कब माँगेंगे। पाण्डवों का सत्कार होता, किन्तु धृतराष्ट्र की योजना उन महावीर पाण्डवों को पुनः हस्तिनापुर से निष्कासित कर, खाण्डवप्रस्थ वन में फेंक देती है। भीष्म, विदुर, कृष्ण तथा व्यास के होते हुए भी पाण्डवों को हस्तिनापुर क्यों छोड़ना पड़ा?… ऐसे ही और सहज प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है यह उपन्यास।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Karma Hi Dharma Hai
जीवन का औचित्य ही है-अपना और दूसरों का कल्याण करना, खुद के सपनों को साकार करना, जरूरतमंदों के काम आना | अतः कर्म करें और कर्म से भागें नहीं | कर्म ही धर्म है | धर्म का अर्थ ही है-जो धारण करने योग्य हो और जिसे धारण करने से मानव तथा अन्य प्राणियों का कल्याण हो | अतः कर्म करने के पूर्व सोचें-समझें, विचोरें, तदुपरांत कर्म करें, ताकि किसी को हानि न पहुँचे | कर्म ही पूजा है, और पूजा का अर्थ है-अपने कर्तव्य के प्रति पूरी आस्था, निष्ठा एवं समर्पण का भाव रखना | कर्म हमारी पहचान है और कर्म ही हमें महान् बनाता है ।
एक चेतनशील प्राणी होने के नाते यह महत्त्वपूर्ण है कि हम क्या करें? और “क्या नहीं करें? को पहले सुनिश्चित करें | मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, सफलता-विफलता, पाप-प्रुण्य आदि का निर्धारण कर्म के आधार पर होता है। अतः फल-प्राप्ति की नहीं, कर्म की चिंता करें | कर्म करना आपके वश में है, परंतु फल आपके हाथ में नहीं है | कहने का आशय स्पष्ट है कि हम जैसा कर्म करते हैं और जिस नीयत से करते हैं, उसका प्रभाव उसी रूप में हमारे तन, मन और वाणी पर पड़ता है। प्रस्तुत पुस्तक में सुखी एवं दीर्घायु जीवन जीने के 90 सीक्रेट्स दिए गए हैं, जिनको अपनाकर पाठक अपने जीवन को सफल और सुखी बना सकते हैं |”SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature
Karmayog (PB)
कर्म शब्द ‘कृ’ धातु से निकला है; ‘कृ’ धातु का अर्थ है—करना। जो कुछ किया जाता है, वही कर्म है। इस शब्द का पारिभाषिक अर्थ ‘कर्मफल’ भी होता है। दार्शनिक दृष्टि से यदि देखा जाए, तो इसका अर्थ कभी-कभी वे फल होते हैं, जिनका कारण हमारे पूर्व कर्म रहते हैं। परंतु कर्मयोग में कर्म शब्द से हमारा मतलब केवल कार्य ही है। मानवजाति का चरम लक्ष्य ज्ञानलाभ है। प्राच्य दर्शनशास्त्र हमारे सम्मुख एकमात्र यही लक्ष्य रखता है। मनुष्य का अंतिम ध्येय सुख नहीं वरन् ज्ञान है; क्योंकि सुख और आनंद का तो एक न एक दिन अंत हो ही जाता है। अतः यह मान लेना कि सुख ही चरम लक्ष्य है, मनुष्य की भारी भूल है। संसार में सब दुःखों का मूल यही है कि मनुष्य अज्ञानवश यह समझ बैठता है कि सुख ही उसका चरम लक्ष्य है। पर कुछ समय के बाद मनुष्य को यह बोध होता है कि जिसकी ओर वह जा रहा है, वह सुख नहीं वरन् ज्ञान है, तथा सुख और दुःख दोनों ही महान् शिक्षक हैं, और जितनी शिक्षा उसे सुख से मिलती है, उतनी ही दुःख से भी। सुख और दुःख ज्यों-ज्यों आत्मा पर से होकर जाते रहते हैं, त्यों-त्यों वे उसके ऊपर अनेक प्रकार के चित्र अंकित करते जाते हैं।
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