History
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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास
JINNAH HELPED HINDUS AND OTHER REFLECTIONS
The cocktail of subjects touched upon in Jinnah helped Hindus and Other Reflections may surprise some readers by their diversity. From a young boy questioning why with a galaxy of freedom fighters, we have Gandhi’s portrait on all our currency notes, especially when money was his last concern to how Jinnah actually helped Hindus. Why Germany’s Chancellor Angela Merkel, who welcomed Muslim migrants with open arms, is today offering them 3000 Euros as a return package? Many of the essays ask truly relevant questions. According to the author the Babri Masjid should be called Babri maqbarah since it is not a masjid. How acute is the threat of Islamisation of Europe? What is the future of minorities in Pakistan? Why did Jinnah call the Aligarh Muslim University the ‘arsenal of Pakistan’? Prafull Goradia also analyses why Indians still prefer sarkari jobs over others and what the causes of the failure of State Capitalism are. In the essay ‘Cricket in Need of a Revolution’ the author is critical of the fact that India has only one competitive international cricket team. Almost the same players play Test matches, One-dayers as well as twenty-20s. Why? We overstrain these players and might even be risking the quality of their game. Every reader will find something of interest in this collection of essays.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Jodhpur Rajya Ki Khajana Bahi
जोधपुर राज्य की खजाना बही
महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय Jodhpur Rajya Khajaana Bahi
मारवाड़ के पुरालेखीय स्रोतों में ‘जोधपुर राज्य की खजाना बही’ का विशेष महत्त्व रहा है। खजाना बही में मुख्य रूप से राजकोष से विभिन्न मदों पर खर्च हुई राशि का विवरण समाहित है। in fact बही में जोधपुर राजपरिवार के साथ ही दूसरे विभिन्न राज्यों, प्रशासनिक अधिकारियों, ठिकानेदारों, सरदारों, सेवकों के अलावा सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजन एवं मान्यताओं, दूसरे राज्यों के साथ आपसी सम्बन्धों, न्याय प्रणाली के साथ ही विभिन्न कपड़ों, आभूषणों, सीख दस्तूर, नजराना दस्तूर, कारज दस्तूर, पडला व बत्तीसी दस्तूर का सविस्तार विवरण दिया गया मिलता है। Jodhpur Rajya Khajaana Bahi
जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) से सम्बन्धित यह खजाना बही वि.सं. 1940 से till वि.सं. 1951 तक की है। इस खजाना बही में महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) के 11 वर्षों के प्रशासनिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजघराने से जुड़े विभिन्न पक्षों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं।
जोधपुर के महाराजा तखतसिंह के पश्चात् महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) during वि.सं. 1929 की फाल्गुन सुदि 3 (ई.स. 1873 की 1 मार्च) को जोधपुर के उत्तराधिकारी बने थे। वे बड़े गुणी, दानी, शान्त, सरल और प्रजा प्रिय शासक थे। इनके छोटे भाई महाराज प्रतापसिंह बड़े विवेकशील और न्यायप्रिय थे। इन्होंने शिक्षा के कई द्वार खोले और समाज सुधार के क्षेत्र में अपनी महत्ती भूमिका निभाई। महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) के समय में ये मुसाहिबआला (प्रधानमंत्री) थे। वि.सं. 1930 (ई.स. 1873) में महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) ने सर्वप्रथम राज्य के कुशल प्रबन्ध और प्रजा के सुभीते के लिये ‘खास महकमा’ कायम किया और मुंशी फैजुल्ला खाँ को अपना मंत्री बनाया था।
also खजाना बही में मुख्य रूप से दीवान की फड़द, टकसाल विभाग, खासा-खजाना पर रुक्का, कपड़े के कोठार की फड़द, महकमे खास की फड़द, जरजरखाना की फड़द, जवाहरखाना की फड़द, खासा खजाना की फड़द के अन्तर्गत विभिन्न विवरण संजोया गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jungnama(HB)
इतिहास साक्षी है कि भारत ने विदेशी आक्रांताओं से भारत का गौरव कभी भी ध्वस्त नहीं होने दिया, किंतु इस प्रयास में जाने कितने वीर सपूतों की बलि चढ़ानी पड़ी। राष्ट्र हेतु जिन वीरों ने अपना जीवन होम किया उनका स्मरण करना, उनकी कीर्तिगाथा को भावी पीढि़यों तक ले जाना राष्ट्र का कर्तव्य है। उन वीरों की शौर्यगाथा को सभी भारतीय भाषाओं ने और लोकभाषाओं ने स्वर दिया।
इसी गौरवशाली परंपरा में अवध के एक अनमोल रत्न चहलारी नरेश राजा बलभद्र सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जिस वीरता के साथ युद्ध किया, उसकी प्रशंसा विदेशी इतिहासकारों ने भी की है। उनकी कीर्ति का बखान इस ‘जंगनामा’ में किया गया है।
‘गदर के फूल’ के लेखक श्री अमृतलाल नागर को अवधी लोकभाषा में रचित ‘जंगनामा’ की यह हस्तलिखित पांडुलिपि मिली थी।
उनके यशस्वी पुत्र डॉ. शरद नागर ने पं. श्री उदय शंकर शास्त्री द्वारा संपादित, भारतीय साहित्य पत्रिका में प्रकाशित इस दुर्लभ पांडुलिपि के सरल भावांतर और संपादन का दायित्व डॉ. विद्या विंदु सिंह को दिया, जो इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है।
इसे प्रकाशित कराकर हुतात्मा पूर्वजों के ऋण से आंशिक निष्कृति का यह प्रयास किया जा रहा है। उस अभिनव अभिमन्यु की स्मृति जन-जन में राष्ट्र प्रेम की चेतना जगाती रहे, यही शुभकामना है।SKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
K.R. Malkani & The Motherland : Voices of the Nation
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणK.R. Malkani & The Motherland : Voices of the Nation
In its brief existence of about four years, between 1971 and 1975, ʻThe Motherlandʼ, edited by K.R. Malkani (1921-2003) achieved rare distinction and recognition in the world of journalism. It established itself as a fearless and uninhibited voice of the nation, relentlessly exposing the decay seeping into India’s body-politic by the early 1970s. In that respect ʻThe Motherland’sʼ advocacy of ʻIndia Firstʼ and its unalloyed articulation of India’s national interest remain unsurpassed. It was also its strident and uncompromising criticism of the Indira Congress and the Prime Minister’s ways, which eventually led Indira Gandhi to shut it down at the first given opportunity after she imposed the Emergency. ʻThe Motherlandʼ was, “The only paper in India to announce on 26th June the imposition of the Emergency, arrest of leaders and the wave of national shock.” This collection of K.R.Malkani’s columns in ʻThe Motherlandʼ offers an insight into Indian politics and society in the years just before Emergency was imposed by Indira Gandhi. It is a record of India’s political history a quarter century after independence and is a very useful reckoner for the general reader for understanding the years that led to the imposition of the Emergency.
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue
“The BJP believes in the unity of the Hindustan Peninsula and the equality of all its people. It stands for “Justice for all and appeasement of none”. It welcomes diversity so long as it does not destroy our overall unity. It invites the people of India, Pakistan and Bangladesh to get over the trauma of the last fifty years, and draw on the historic experience of preceding centuries to weave a new and happier pattern of life in the Hindustan Peninsula. After all the hullabaloo about riots, most of the Hindus and Muslims are living in peace and amity most of the time. India and Pakistan, with all their hostility, have never fought for more than two weeks at a time. (Iran and Iraq bled each other for eight long years!) Even in the year of Partition, the best singers in Har Mandir, Amritsar, were Muslims. The men, who built the ‘samadhi’ of Dr. Hedgewar, the founder of RSS, in Nagpur, were Muslims. With all our diversities, we in the Hindustan Peninsula are One People, whatever the number of states. We can, and must, live in peace and amity.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
K.R. Malkani Hindu-Muslim Samvad (Hindi Translation of K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहासK.R. Malkani Hindu-Muslim Samvad (Hindi Translation of K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue)
“भारत विविधता का स्वागत करता है परंतु वहीं तक, जहाँ तक एकता होती हो। हम भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के लोग पिछले 50 वर्षों के घावों को भरने में एक-दूसरे की मदद करें और गत शताब्दियों के ऐतिहासिक अनुभव के आधार पर हिंदुस्तान में जीवन का नया व प्रसन्नतादायक साँचा तैयार करें।
दंगों के बारे में इतना शोर-शराबा मचा रहने के बावजूद अधिकांश समय मुसलमान व हिंदू शांति व सद्भाव के साथ रह रहे हैं। भारत व पाकिस्तान की तनातनी के बावजूद इनकी आपसी लड़ाई एक बार में 2 सप्ताह ज्यादा नहीं चली। (ईरान व इराक एक-दूसरे का 8 वर्षों की दीर्घावधि तक खून बहाते रहे।) यहाँ तक कि विभाजन के समय भी हरमंदिर साहब, अमृतसर में सर्वोत्तम गायक मुसलमान थे। जिन लोगों ने नागपुर में रा.स्व. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की समाधि बनाई, वे मुसलमान थे। अपनी सब विविधताओं के बावजूद हम सब हिंदुस्तान प्रायद्वीप के लोग एकजन हैं।
यहाँ इस बात के साथ कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रायद्वीप में कितने राज्य हैं। हम शांति और सद्भाव से रह सकते हैं, अतः इसी तरह से रहना चाहिए । —इसी पुस्तक से”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Kaaljayee Bharatiya Gyan
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Kaaljayee Bharatiya Gyan
“प्रस्तुत पुस्तक में हमारे प्राचीन वाङ्मय, यथा—वेदों, पुराणों, ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, आरण्यकों, रामायण, महाभारत एवं प्राचीन सनातन हिंदू ग्रंथों में उन्नत आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भ विवेचित हैं। इनमें ब्रह्मांड की श्याम ऊर्जा, ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वैज्ञानिक विमर्श, सौरमंडल रहस्य, गुरुत्वाकर्षण का प्राचीन वैदिक व अन्य शास्त्रों का संदर्भ ज्ञान, प्रकाश की गति का वैदिक विमर्श, ग्रहण का वैज्ञानिक विवेचन आदि की शास्त्रोक्त व्याख्या की गई है। वेदों में लोकतंत्र, गणराज्य एवं राष्ट्र की प्राचीन संकल्पना, राष्ट्राध्यक्ष के चुनाव का वैदिक विमर्श, राजपद व उसकी मर्यादाएँ, राजा या शासनाध्यक्ष की वैदिक शपथ, प्राचीन बहुस्थानिक व्यवसाय के संदर्भ, उद्योग, व्यापार व वाणिज्य लोक वित्त के प्राचीन संदर्भ आदि की भी व्याख्या प्रस्तुत पुस्तक में की गई है।
पुस्तक में उन्नत शब्द विज्ञान, उन्नत भौतिकीय, रासायनिक व गणितीय ज्ञान के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है। वैदिक सूर्योपासना के वैश्विक प्रसार और अमेरिकी पुरावशेषों पर भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है। वेदों में सार्वभौम राष्ट्र व शासन-पद्धतियों की अवधारणा, राष्ट्र, राज्य व राजशास्त्रों के वैदिक विवेचनों की भी समीक्षा की गई है। कुल मिलाकर यह यशस्वी कृति भारतवर्ष के समृद्ध, समुन्नत, सर्वमान्य ज्ञान-परंपरा का एक वृहद् व व्यावहारिक विश्वकोश है, जिसका अध्ययन करना हमें नई ऊर्जा, उत्साह और आत्मविश्वास से समादृत करेगा।”
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Prabhat Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kala Pani (HB)
काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। काला पानी की विभीषिका, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अत: उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखे वर्णन का-सा पठन-सुख देता है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का वर्णन है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे। काला पानी के कैदियों पर कैसे-कैसे नृशंस अत्याचार एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार किए जाते थे, उनका तथ वहाँ की नारकीय स्थितियों का इसमें त्रासद वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्र भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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Prabhat Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kala Pani (PB)
काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। काला पानी की विभीषिका, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अत: उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखे वर्णन का-सा पठन-सुख देता है। इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का वर्णन है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे। काला पानी के कैदियों पर कैसे-कैसे नृशंस अत्याचार एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार किए जाते थे, उनका तथ वहाँ की नारकीय स्थितियों का इसमें त्रासद वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्र भी उकेरा गया है। उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kaljayi Yoddha Chhatrasal Bundela
Om Parkash Pahujaडॉ. ओम प्रकाश पाहूजा ने भारत के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रों से विभिन्न उपाधियाँ प्राप्त कीं—हिंदू महाविद्यालय, सोनीपत से स्नातक; होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर से स्नातकोत्तर तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के भौतिकी तथा खगोल-भौतिकी विभाग से विद्या-वाचस्पति की उपाधि।
सन् 1972 से 2007 तक राजधानी महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) के भौतिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग में अध्यापन कार्य करते रहे। इससे पूर्व हिंदू महाविद्यालय, सोनीपत में छह वर्षों तक भौतिकी के प्राध्यापक रहे।
अध्यापन तथा सामाजिक कार्य इनके जीवन का उद्देश्य है। इनका सामाजिक जीवन स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद तथा महर्षि अरविंद जैसे दिव्य पुरुषों तथा दार्शनिकों से प्रेरित है। अध्यापन काल में नाभिकीय-भौतिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा कंप्यूटर के मौलिक सिद्धांत आदि उनके रुचिकर विषय रहे हैं।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Kanharde Prabandh Mein Sanskriti Aur Samaj
कान्हड़दे प्रबंध में संस्कृति और समाज : कवि पद्मनाभ कृत ‘कान्हड़दे प्रबंध’ राजस्थानी भाषा एवं साहित्य का एक गौरव ग्रंथ है। प्रस्तुत प्रबंध-काव्य में कवि की काव्य-प्रतिभा तथा पांडित्य के दर्शन तो होते ही हैं, इसके अतिरिक्त इसमें अपने युग का जीवंत व मनोरम चित्रण भी हुआ है। वस्तुतः ‘कान्हड़दे प्रबंध’ कथानायक के स्वाभिमान तथा स्वदेश-प्रेम का एक बेजोड़ नमूना है। इसके रचनाकार ने मानवीय संबंधों व संवेदनाओं को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है। इसमें कवि पद्मनाभ ने काव्योचित स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए इतिहास और कल्पना के योग से एक सुन्दर प्रबंध की योजना करने में सफलता प्राप्त की है। यद्यपि इस प्रबंध काव्य पर साहित्यिक दृष्टि से अभी तक कोई शोध कार्य सम्पन्न नहीं हुआ है, तथापि कतिपय शोध पत्रिकाओं में इसकी भाषिक संरचना पर एकाध फुटकर लेख अवश्य प्रकाशित हुए हैं। यही कारण है कि मैंने ‘कान्हड़दे प्रबंध में संस्कृति और समाज’ विषय पर शोध कार्य करने का मानस बनाया और उसी का यह सुफल इस पुस्तक के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है।
प्रस्तुत ग्रंथ को आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है। इन अध्यायों में कवि पद्मनाभ और कान्हड़दे का परिचय, कान्हड़दे प्रबंध के प्रबंध तत्वों का मूल्यांकन एवं उनके काव्य रूप की समीक्षा, आलोच्य काव्य-ग्रंथ की छंद एवं अलंकार- योजना की विवेचना, ‘कान्हड़दे प्रबंध’ का भाषा शास्त्रीय अनुशीलन, कान्हड़दे प्रबंध में वर्णित समाज के स्वरूप, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक-जीवन, सामाजिक संस्थाओं तथा सांस्कृतिक उपादानों के सम्यक विवेचन, रचना के उद्देश्य एवं जीवन-संदेश आदि समाहित है।
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रंथ प्रत्येक इतिहासकार, शोधार्थी एवं पाठकगणों हेतु उपयोगी साबित होगा।
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Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास
Kargil
पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में ‘कारगिल’ सबसे कठिन और ताज़ा युद्ध है। जब पाकिस्तान ने धोखे से, चोरी-छिपे, कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों के एक बड़े हिस्से पर अपनी चैकियां बना ली थीं, तब कैसे भारत की थलसेना के वीर जवानों और हमारी वायुसेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को वहाँ से खदेड़ा, पूरी तरह परास्त किया और फिर से सारी भूमि पर अपना तिरंगा फहराया। युद्धों के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व विजय है। इस पुस्तक का विशेष प्रकरण है, पाकिस्तान के डिक्टेटर परवेज़ मुशर्रफ की हाल ही में प्रकाशित हुई पुस्तक ‘इन द लाइन आफ फायर’ में किये गये झूठे दावों का मुँहतोड़ उत्तर, जो इस पुस्तक के लेखक जनरल वी.पी. मलिक ने दिया है, पूरे प्रमाणों के साथ। भारत -पाक संबंधों और काश्मीर की समस्या को समझने के लिए यह पुस्तक एक आवश्यक दस्तावेज़ है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kargil Ke Paramvir Captain Vikram Batra
‘मैं या तो जीत का भारतीय तिरंगा लहराकर लौटूँगा या उसमें लिपटा हुआ आऊँगा, पर इतना निश्चित है कि मैं आऊँगा जरूर।’
कैप्टन बत्रा ने अपने साथी को यह कहकर किनारे धकेल दिया कि तुम्हें अपने परिवार की देखभाल करनी है और अपने सीने पर गोलियाँ झेल गए। कैप्टन बत्रा 7 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में अपने देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। बेहद कठिन चुनौतियों और दुर्गम इलाके के बावजूद, विक्रम ने असाधारण व्यक्तिगत वीरता तथा नेतृत्व का परिचय देते हुए पॉइंट 5140 और 4875 पर फिर से कब्जा जमाया। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। विक्रम मात्र 24 वर्ष के थे।
‘कारगिल के परमवीर : कैप्टन विक्रम बत्रा’ में उनके पिताजी जी.एल. बत्रा ने अपने बेटे के जीवन की प्रेरणाप्रद घटनाओं का वर्णन किया है और उनकी यादों को फिर से ताजा किया है। उन्होंने आनेवाली पीढि़यों में जोश भरने और वर्दी धारण करनेवाले पुरुषों के कठोर जीवन का उल्लेख भी किया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kargil Ki Ankahi Kahani
कारगिल, 1999 पाकिस्तानी सैनिकों की पूरी-की-पूरी दो ब्रिगेड भारतीय इलाके में घुस आई और भारतीय सेना को कानो-कान खबर मिलने तक अपनी मोर्चाबंदी कर ली। भारतीय सेना के आला अफसरों ने चेतावनियों की अनदेखी की और खतरे के साथ ही घुसपैठियों की संख्या को तब तक कम बताते रहे जब तक कि बहुत देर नहीं हो गई। पैदल सैनिकों को आधे-अधूरे नक्शों, कपड़ों, हथियारों के साथ आगे धकेल दिया गया, जबकि उन्हें न तो यह जानकारी थी कि दुश्मनों की संख्या कितनी है या उनके हथियार कितनी ताकत रखते हैं! वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार, परमवीर चक्र विजेता, कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता श्री जी.एल. बत्रा के लिखे पूर्वकथन के साथ, यह कारगिल की सच्ची कहानी है। डायरी के प्रारूप में लिखी यह पुस्तक, पहली बार उन घटनाओं का सच्चा, विस्तृत तथा विशिष्ट वर्णन करती है, जिनके कारण आक्रमण किया गया; साथ ही घुसपैठियों के कब्जे से चोटियों को छुड़ाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में भारतीय वीरों की शूरवीरता को भी रेखांकित करती है।
मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति देनेवाले जाँबाज भारतीय सैनिकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है यह पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Karmayogi Banen
मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है, मनुष्य स्वयं साधक है एवं जो मार्ग साधक को साध्य तक पहुँचाता है, वही योग है। कर्मयोग मनुष्य का चित्त शुद्ध करता है, उपासना योग चित्त स्थिर करता है, राजयोग एवं ज्ञानयोग ज्ञान-प्राप्ति में सहायता करता है एवं भक्तियोग, जो कि इन सभी योगों का आधार है, इन योगों को पूरी निष्ठा एवं समर्पण से करने की प्रेरणा देता है।
भले ही प्रत्येक योग लक्ष्य-प्राप्ति के लिए आवश्यक है और उनका अपना महत्व है, परंतु इस साधना की शुरुआत किसी भी सामान्य व्यक्ति को कर्मयोग से करनी चाहिए। इसलिए इस पुस्तक का शीर्षक ‘कर्मयोगी बनें’ रखा गया है। हम इस पुस्तक के माध्यम से अपने आध्यात्मिक सफर को कर्मयोग से प्रारंभ करें और उपासना, ज्ञान व भक्तियोग को अपनी यात्रा में समाहित करते हुए अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हों।
प्रस्तुत पुस्तक वेदांत दर्शन पर केंद्रित है। इसको सामान्य बोलचाल की भाषा में लिखा गया है, साथ ही कई क्लिष्ट विषयों को आसानी से समझाने के लिए चित्रों का उपयोग किया गया है, जिससे पाठक न केवल इन योगों को समझ सकें बल्कि अपने जीवन में भी उतार सकें।
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Garuda Prakashan, Literature & Fiction, ऐतिहासिक उपन्यास
Kasheer: A Diabolical Betrayal of Kashmiri Hindus
-10%Garuda Prakashan, Literature & Fiction, ऐतिहासिक उपन्यासKasheer: A Diabolical Betrayal of Kashmiri Hindus
Thus comes the plainitive cry of Kailash Pandit. The reporting on Kashmir has whitewashed the human tragedy of Kashmiri Hindus. This book retells the tale in a fictionalized account which is all too real. It catches the facts of deception, betrayal, propaganda and political ambitions that have all but erased the memories of oppression of Kashmiri Hindus from the nation’s conscience. It extricates the truth of human tragedy and presents it with brutal honesty. Thus, Kailash Pandit’s question, trapped in his head, or Aarti Kaul’s unconceived womb become powerful metaphors of what happened to Kashmiri Hindus. It is time for Kailash Pandit to speak; this is his story. This is Kashmir’s story. This is Kasheer.
Originally written in Kannada, this book is translated into English by Hemanth Shanthigrama, who is a London-based technology professional.
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Hindi Books, Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
-10%Hindi Books, Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिKashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
काशी उस सभ्यता की सदा से परिपोषक रही है, जिसे हम भारतीय सभ्यता कहते हैं और जिसके बनाने में अनेक मत-मतान्तरों और विचारधाराओं का सहयोग रहा है। यही नहीं, धर्म, शिक्षा और व्यापार से वाराणसी का घना सम्बन्ध होने के कारण इस नगरी का इतिहास केवल राजनीतिक इतिहास न होकर एक ऐसी संस्कृति का इतिहास है जिसमें भारतीयता का पूरा दर्शन होता है। लेखक ने इतिहास और संस्कृति सम्बन्धी बिखरी हुई सामग्री को जोड़कर इस इतिहास का निखरा स्वरूप खड़ा किया है। रोचक सामग्री का भी प्रचुर उपयोग करके नगर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। लेखक की दृष्टि में इतिहास केवल शुष्क घटनाओं का निर्जीव ढाँचा नहीं है, उसमें हम समाज की प्रक्रियाओं तथा धाॢमक अभिव्यक्तियों का भी पूर्णरूप से दर्शन कर सकते हैं। अपने विषय की एकमात्र कृति तो यह है ही। तृतीय संस्करण में काशी के 18वीं-19वीं शताब्दी के अत्यन्त दुर्लभ चित्र सम्मिलित किये गये हैं।
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
Kashmir : Itihas Aur Parampara
‘नीलमत पुराण’ में कहा गया है कि कश्मीर स्वाध्याय एवं ध्यान में मग्न रहनेवाले और निरन्तर यज्ञ करनेवालों की भूमि रही है। यह हिमालय-पर्वतमाला की गोद में बसा एक सुरम्य प्रदेश है। लेकिन अपनी दुर्गम भौगोलिकता के कारण यह बाह्य-जगत् की पहुँच से दूर रहा है।
प्राचीन काल में कश्मीर प्रदेश गन्धार जनपद के अन्तर्गत आता था। सातवीं शताब्दी ई. के प्रारम्भ में यहाँ नाग जाति के कर्कोटक राजवंश का उदय हुआ; जिसके संस्थापक दुर्लभवर्द्धन के समय से कश्मीर का व्यवस्थित इतिहास मिलता है। उनके पौत्र ललितादित्य ने गुप्तोत्तर काल में एक साम्राज्य खड़ा किया; और प्रसिद्ध मार्तण्ड-मन्दिर का निर्माण भी कराया।
1339 ई. तक कश्मीर एक स्वशासित हिन्दू राज्य था। परन्तु मध्यकालीन हिन्दू राजाओं की दुर्बलता और उनके सामन्तों के षड्यन्त्रों के कारण वहाँ का वातावरण अराजक हो गया, जिसका लाभ उठाते हुए 1339 ई. में शाहमीर नामक एक मुसलमान ने कश्मीर के सिंहासन पर कब्जा कर लिया।
कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ में ललितादित्य से कहलवाया है कि ”इस देश को सुशासित तथा प्रगतिशील बनाये रखने के लिए अन्तर्कलह से बचना आवश्यक है।” इसके कारण कश्मीर ने भारी कीमत चुकाई है। ‘नीलमत पुराण’ साक्षी है कि महर्षि कश्यप के समय से ही कश्मीर के स्थानीय लोगों ने विस्थापन की गहरी पीड़ा को महसूस किया है और आधुनिक काल में कश्मीरी हिन्दुओं को विस्थापन ने जितने दर्द दिये हैं, वह तो अकथनीय है।
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
Kashmir : Itihas Aur Parampara (PB)
‘नीलमत पुराण’ में कहा गया है कि कश्मीर स्वाध्याय एवं ध्यान में मग्न रहनेवाले और निरन्तर यज्ञ करनेवालों की भूमि रही है। यह हिमालय-पर्वतमाला की गोद में बसा एक सुरम्य प्रदेश है। लेकिन अपनी दुर्गम भौगोलिकता के कारण यह बाह्य-जगत् की पहुँच से दूर रहा है।
प्राचीन काल में कश्मीर प्रदेश गन्धार जनपद के अन्तर्गत आता था। सातवीं शताब्दी ई. के प्रारम्भ में यहाँ नाग जाति के कर्कोटक राजवंश का उदय हुआ; जिसके संस्थापक दुर्लभवर्द्धन के समय से कश्मीर का व्यवस्थित इतिहास मिलता है। उनके पौत्र ललितादित्य ने गुप्तोत्तर काल में एक साम्राज्य खड़ा किया; और प्रसिद्ध मार्तण्ड-मन्दिर का निर्माण भी कराया।
1339 ई. तक कश्मीर एक स्वशासित हिन्दू राज्य था। परन्तु मध्यकालीन हिन्दू राजाओं की दुर्बलता और उनके सामन्तों के षड्यन्त्रों के कारण वहाँ का वातावरण अराजक हो गया, जिसका लाभ उठाते हुए 1339 ई. में शाहमीर नामक एक मुसलमान ने कश्मीर के सिंहासन पर कब्जा कर लिया।
कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ में ललितादित्य से कहलवाया है कि ”इस देश को सुशासित तथा प्रगतिशील बनाये रखने के लिए अन्तर्कलह से बचना आवश्यक है।” इसके कारण कश्मीर ने भारी कीमत चुकाई है। ‘नीलमत पुराण’ साक्षी है कि महर्षि कश्यप के समय से ही कश्मीर के स्थानीय लोगों ने विस्थापन की गहरी पीड़ा को महसूस किया है और आधुनिक काल में कश्मीरी हिन्दुओं को विस्थापन ने जितने दर्द दिये हैं, वह तो अकथनीय है।
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Kashmir : Sahitya Aur Sanskriti
कश्मीर का प्राकृतिक सौन्दर्य जितना विश्वविख्यात है, उतना ही उसकी साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत भी मूल्यवान और सर्वविदित है।
ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ घाटियों के बीच में भास्वरित होती झीलें, झाड़ियों से भरे जंगल फूलों से घिरी पगडण्डियाँ केसर-पुष्पों से महकते खेत, कल-कल करते झरने, बर्फ से आच्छादित पर्वतमालाएँ आदि कश्मीर की अनुपम खूबसूरती को स्वतः ही बयाँ करते हैं।
प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ कश्मीर की सांस्कृतिक साहित्यिक धरोहर भी कम अनूठी और गौरवशाली नहीं है। इस धरती को धर्म-दर्शन और विद्या-बुद्धि की पुण्य-स्थली माना जाता है। शारदापीठ भी कहा जाता है और रेश्यवार (ऋषियों की बगीचों) के नाम से भी अभिहित किया जाता है। इस भूखण्ड ने भारतीय ज्ञानपरम्परा को बड़े-बड़े मनीषी विद्वान और कालजयी महापुरुष दिये हैं जिनका अवदान सदा स्मरणीय रहेगा। महान रसशास्त्री और शैवाचार्य अभिनव गुप्त, कवि-इतिहासकार (राजतरंगिणीकार) कल्हण काव्यशास्त्री मम्मट आनन्दवर्धन, वामन, आचार्य क्षेमेन्द्र आदि के नाम इस सन्दर्भ में बड़े गर्व के साथ लिये जा सकते हैं।
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Kashmir Aur Hyderabad
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‘लौह पुरुष’ के नाम से विख्यात सरदार पटेल को भारत के गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर के संवेदनशील मामले को सुलझाने में कई गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका मानना था कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से पहले ही इस मामले को भारत के हित में सुलझाया जा सकता था।
हैदराबाद रियासत के संबंध में सरदार पटले समझौते के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर ही वह 20 नवंबर, 1947 को निजाम द्वारा बाह्य मामले तथा रक्षा एवं संचार मामले भारत सरकार को सौंपे जाने की बात पर सहमत हुए। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निजाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर अंततः वहाँ सैनिक अभियान का नेतृत्व करने के लिए सरदार पटेल ने जनरल जे.एन. चौधरी को नियुक्त करते हुए शीघ्रातिशीघ्र काररवाई पूरी करने का निर्देश दिया। अंततः 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सैनिक हैदराबाद पहुँच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक में कश्मीर और हैदराबाद के भारत में विलय की राह में आई कठिनाइयों और उन्हें दूर करने में सरदार पटेल की अदम्य इच्छाशक्ति पर प्रामाणिक ढंग से प्रकाश डाला गया है।SKU: n/a -
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Kashmir Files
“कर्नल सुनील कोटनाला के सभी कौशल इस उपन्यास में समाहित हैं। यह एक सामयिक कृति है, जो कश्मीर में होनेवाली घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है— जो दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक है और जहाँ विचारधारा, धर्म एवं जातीयता के बीच लगातार टकराव है।
अतीत में भारतीय सेना को बिना स्पष्ट जनादेश, खुफिया कवर या राजनीतिक समर्थन के आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन में झोंक दिया गया। यह कहना पर्याप्त है कि हम हमेशा गले तक गंदगी में डूबे हुए थे। सबसे बढक़र, हमारे मानवाधिकार कार्यकर्ता उन्हीं भारत-विरोधी अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहे थे, जो हमारे सैनिकों को प्रताड़ित कर रहे थे, मार रहे थे और अपंग कर रहे थे। पिछले कुछ वर्षों में सिर के ऊपर से बहुत सारा पानी बह गया है और कानून-व्यवस्था की स्थिति के रूप में शुरू हुआ कश्मीर अब जिहाद के लिए युद्ध का मैदान बन गया है।
भारतीय सैनिक प्रणम्य हैं जिन्होंने वीरता से लड़ाई लड़ी है। सशस्त्र बलों ने यह सब सरकार या अपने हमवतन—इस देश के लोगों के खिलाफ शिकायत के बिना किया है, जो उनके लिए बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन कभी नहीं किया।
वैसे यह एक उपन्यास है—फिर भी, यकीन है कि इसका स्कूल और विश्वविद्यालय की कक्षाओं में पाठन कराया जाएगा। इसमें मनोरंजन है, यह रोमांचित भी करता है। सुनील दैनिक क्रूरताओं का चित्रण करते हैं, जो युद्धक्षेत्रों की विशेषता है।”
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