History
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English Books, MANAS PUBLICATIONS, इतिहास
Kashmir Is Free
About the Book: Kashmir is Free Just imagine the unimaginable. India walks out of Kashmir and makes Kashmir FREE. Huh?! How is that possible? Why should that happen? And how could that seemingly impossible situation be brought about? And wait … what happens to the regions of Jammu and Ladakh… and how will they react? And what happens to the Kashmir Valley once it achieves its long-cherished goal of independence? KASHMIR IS FREE is that fictional, what-if peep into a not-too-distant future when Kashmir attains freedom from India. Spread over 48 chapters, this astoundingly realistic and edge-of-the-seat politico-bureaucratic thriller will grip you by the throat and
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Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, इतिहास
KASHMIR Jeet Ya Haar
यह पुस्तक 1947 से 1991 के इस घटनाचक्र और नीतियों का वृत्त है जिनके कारण भारतीय सेना की 1947, 1965 और 1971 की महान् विजय को राजनैतिक और कूटनीतिक पराजय में बदल दिया गया। कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर से निकालने और खत्म करने का जो काम विदेशी औरंगज़ेब नहीं कर सका था, वह स्वतन्त्र भारत के स्वदेशी शासनकाल में सम्पन्न हुआ।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Kashmir Ka Rista Ghav (PB)
-10%Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Kashmir Ka Rista Ghav (PB)
भारत में मुसलमानों की दशा और दिशा का यह समाजशास्त्रीय अध्ययन है, जिसमें समुदाय के भीतर के शोषक और शोषित की शिनाख्त करने की कोशिश की गई है। समुदाय के भीतर एक बहुत ही कम जनसंख्यक ए.टी.एम.समूह है, जो शेष डी.एम. समूह कारक्तपान कर रहा है। वह समूह भारत के देशी मुसलमानों पर बहुत ही सख्ती सेमजहब की चादर तानकर उनकी प्रगति के सभी स्वाभाविक रास्तों को तो अवरुद्ध करता ही है, लेकिन कल्याणकारी राज्य केअंतर्गत मिलने वाले सभी विशेष अवसरों को भी चाट रहा है। अशरफ/ए.टी.एम.बनाम अलजाफ/अरजाल/पसमांदा यानी डी.एम. के भीतरी संबंधों और संघर्ष को समझने, उसके परिणामों को समझने के लिए केस स्टडी के तौर पर कश्मीर घाटी को लिया गया है। कश्मीर में ए.टी.एम, बनाम डी.एम. के संघर्ष का शायद यह पहला समाजशास्त्रीय अध्ययन है। कश्मीर में सांकेतिक रूप से इसकी शुरुआत बशीर अहमद डाबला ने की थी । यह अध्ययन देशी मुसलमानों में अपनी जड़ें तलाश करने की प्रवृत्ति विकसित करेगा।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kashmir Nirantar Yuddh Ke Saye Mein
भारत-पाक संबंधों में कश्मीर एक ऐसा विषय है, जिसकी सभी चर्चा करते हैं और उसके समाधान के लिए सुझाव भी देते हैं-बिना उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के विशेष ज्ञान के।
प्रस्तुत पुस्तक ‘ कश्मीर : निरंतर युद्ध के साए में’ जम्मू-कश्मीर को आधार बनाकर लिखी गई है, जो स्वाधीनता-प्राप्ति के बाद सदैव अशांति की आग में झुलसता रहा है। इस पुस्तक के लेखक ले. जनरल केके नंदा ने अपने सैन्य सेवाकाल में कश्मीर की राजनीतिक, सामाजिक तथा सामरिक स्थितियों का सूक्ष्म निरीक्षण किया। लेखक ने इसमें समकालीन घटनाओं का विश्लेषण किया है, जम्मू-कश्मीर की सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों को आँकने और भारत एवं पाकिस्तान दोनों की विवशताओं को समझने का प्रयास किया है। पुस्तक के अंत में इस जटिल समस्या को सुलझाने के लिए अनेक सुझाव भी दिए गए हैं।
पुस्तक की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें सन् 1947 – 48 एवं ‘6 5 से लेकर 1989 तथा मई-जून 1999 के करगिल युद्ध तक के भारत-पाक के सभी युद्धों का विश्लेषणात्मक, विस्तृत एवं सजीव वर्णन किया गया है।
आशा है, जम्मू-कश्मीर के विषय में यह प्रयास आम आदमी का ध्यान इस जटिल व नाजुक विषय की ओर आकर्षित करेगा और सत्ताधारियों को इसे शीघ्रातिशीघ्र सुलझाने के लिए प्रेरित करेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Kashmir Paheli: Samasya Aur Samadhan (Hindi Translation of The Kashmir Conundrum)
-13%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Kashmir Paheli: Samasya Aur Samadhan (Hindi Translation of The Kashmir Conundrum)
कश्मीर विषय को आधुनिक विश्व के सबसे लंबे चलनेवाले और सबसे कठिन संघर्षों में से एक माना गया है। भारत ने इसकी कीमत चार युद्ध, बहुमूल्य संसाधनों और हजारों जानें देकर चुकाई, लेकिन समाधान तब भी नहीं हुआ।
‘कश्मीर पहेली : समस्या और समाधान’ में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एन.सी. विज, जो खुद जम्मू व कश्मीर से आते हैं, इसकी पूरी तस्वीर बताते हैं। जम्मू व कश्मीर और इसके नागरिकों से शुरुआत करके उन्होंने घुसपैठ तथा रियासत के विलय पर बात की है। इसके बाद भारत व पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध, वर्ष 2019 का पुलवामा हमला, बालाकोट पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक तथा इसे सुलझाने के लिए कुछ फॉर्मूले देने का प्रयास किया है और राज्य का विशिष्ट दर्जा समाप्त करने पर हुए विवाद की भी चर्चा की है। ऐसा करते हुए वे अपने उन अनुभवों का उपयोग करते हैं, जो इससे निपटते हुए कारगिल युद्ध के दौरान बतौर डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिटरी ऑपरेशंस; वर्ष 2001 में संसद् पर हमला और इसके बाद ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान उप-सेना प्रमुख और पाकिस्तान-प्रायोजित घुसपैठ के चरम पर रहने के समय तत्कालीन सेनाध्यक्ष रहते हुए मिले।
भारतीय सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष द्वारा कश्मीर समस्या के विविध पहलुओं पर विहंगम दृष्टि डालती पुस्तक, जिन्होंने एक अशांत क्षेत्र में शांति की तलाश और स्थापना का महती कार्य किया।
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Akshaya Prakashan, English Books, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Kashmir the land of Rishis
-11%Akshaya Prakashan, English Books, Religious & Spiritual Literature, इतिहासKashmir the land of Rishis
Kashmir is called the Garden of Rishis (Reshiver). Kashyapa Rishi, considered the founder of Kashmir mandala, is one of the Saptrishis mentioned in the Rig Veda. He is considered to be the Prajapati or progenitor of mankind. The pristine nature of Kashmir nurtured a host of sages or rishis in its bosom like Bharat Muni, Utpaladeva, Panini and many others who carry the credit of making Kashmir the land of Vedic knowledge and the ancient centre of learning. The rishi tradition in Kashmir has been very powerful and continued to be inherited by the Hindus of the valley until the advent of Islam in the 14th century.
Rajatarangini, the celebrated history of ancient Kashmir brought down up to CE 1149, gives excellent account of the impact of Rishi teachings on the people of the land, the foremost of which was non-violence and peaceful coexistence. Rishi teachings and their lives were the role model for the people of ancient Kashmir to be tied down to the unwritten constitution of nature which means that their teachings had gone into the blood and become part of entire social structure. The fact is that the teachings of those rishis can be called the foundation on which the huge edifice of Kashmiriyat was raised.
The advent of the Islamic faith in Kashmir through the Muslim missionaries of Iran and Central Asia is a unique phenomenon in the history of mankind. Firstly, the entire basis of the religion brought from Arabia was in no way similar to those that had flourished in Kashmir for centuries. Secondly, the tribal culture which had shaped the religious construct of the Muhammadans was fully alien to the culture of the people in ancient Kashmir. Thirdly, and very significantly, the Iranian or Central Asian missionaries who brought the Islamic faith to Kashmir were the progeny of proselytised ancestors of Aryan stock and not of Semitic stock. Psychologists and anthropologists tell us that a society entirely converting to a new faith, for whatever reasons, generally panders to extremism in the new faith just because either it wants to convince the conqueror of its faithfulness to the new civilization or vies with the conqueror to prove that he is a better adherent to the new faith brought to him. This is exemplified by the animus and hatred which today’s Iran nurses against the Israelis.
This is a book in which, the author has inserted photographs of numerous temples, shrines (asthapans), viharas, stupas, ponds, water bodies, hillocks, structures etc. most of these in dilapidated condition owing to the vagaries of weather and eccentricities of human nature. The author has visited most of these places personally and described how arduous journeys he had to undertake to get their photographs and make a small note culled out from books of history or from the stories collected from the local elders who have inherited the stories from their elders. Being a retired military officer, he thankfully acknowledges the logistic support he received from his friends in the services and which helped him immensely in writing this account.SKU: n/a -
Hindi Books, MANAS PUBLICATIONS, इतिहास
Kashmiri Khilafat and Hindu Narsahar
पुस्तक ‘कश्मीरी खिलाफत और हिन्दू नरसंहार’, जम्मू-कश्मीर राज्य में 1339 से 1819, इस्लामिक शासन काल में हुए वृहद स्तर पर हिन्दू नरसंहार को रेखांकित करते हुए उसकी समीक्षा करती है। क्यूं, कैसे और कब-कब इस प्रक्रिया को मध्ययुग में 5 सदियों तक बार-बार दोहराया गया। नरसंहार के सभी आयामों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया। किस प्रकार इस्लामिक साम्राज्यवाद का दिल्ली सल्तनत काल का स्वरूप कश्मीरी सल्तनत काल से समानता रखता था। कैसे राजनीतिक इस्लाम का बर्बर एवं क्रूर रूप कश्मीरी हिन्दुओं को पीढ़ी-दर-पीढ़ी भयाकुल कर रहा था। कैसे हिन्दू नरसंहार धर्मान्तरण, हत्या, बलात्कार, दासत्व, जजिया कर, धर्मस्थल-विखण्डन, धर्मग्रंथ अग्निसात करने जैसे अनेक क्रियाओं द्वारा सम्पन्न हो रहा था। पुस्तक मध्ययुगीन हिन्दू नरसंहार और आधुनिक स्वतन्त्रा भारत में राजनैतिक इस्लाम के अलगाववादी चरित्रा से जनित हिन्दू नरसंहार का नवस्वरूप वर्णित करने का प्रयास करती है।पुस्तक कश्मीर के प्राचीन इतिहास के संक्षिप्त विवरण, इस्लाम के आगमन के कारण से लेकर अभी चल रही हिंसक इस्लामिक अलगाववादी प्रक्रिया को समझाने का प्रयास करती है। पुस्तक कश्मीर पर शीतयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों की नकारात्मक नीति पर प्रकाश डालती है। हिन्दू नरसंहार के विभिन्न रूपों का वर्णन करने के साथ-साथ कश्मीर में ‘दारुल-इस्लाम’ की स्थापना के कुचक्र की प्रक्रिया को भी समझाने का प्रयास करती है। धारा-370 का प्रयोग किस प्रकार हिन्दू नरसंहार एवं इस्लामिक अलगाववाद के लिए किया गया?
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Akshaya Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
KASHMIRI PANDITS through Fire and Brimstone
-10%Akshaya Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)KASHMIRI PANDITS through Fire and Brimstone
On 15 August 1947 India attained independence but the Hindus of the State of Jammu and Kashmir, particularly those in the valley lost it for two reasons. One was the Pakistan sponsored tribal attack on 22 October 1947, and the second was the incorporation of a clause of Special Status for J&K in the Indian Constitution. Incorporation of this clause was tantamount to writing the death warrant of the minuscule Kashmiri Hindu (Pandit) religious minority of the valley. New Delhi snatched J&K from the hands of a benign secular ruler and gave into the hands of a rabid despot, who, through dubious maneuvering and machinations established his dynastic rule over J&K with the patronage of the contemporary Sultans of Delhi.
The book in hand is a sordid saga of the atrocities, discrimination, blackmail and repression unleashed by fanatical and fundamentalist Kashmir Valley leadership moving about wearing a mask of “secular democracy” for seven long decades, of course with the sadistic patronage of New Delhi. Few communities in the world have suffered what the Kashmiri Hindus suffered viz. discrimination, suppression, ethnic cleansing, genocide and exile. They are refugees in their own country. And what is more, 73 years have gone by and no state or central government, no human rights organization, no NGO and no international organization ever demanded an impartial inquiry into this huge human tragedy that has resulted in the genocide of nearly two thousand people and the extirpation of the entire community of about five hundred thousand souls from their five thousand years old homes and hearths in Kashmir, The contents of this volume will make one understand what religious bigotry and persecution mean. The authors have been an eye witness to the entire saga, nay, they have been part of this sordid narrative and a such nothing can be more authentic than what they have recorded.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kautilya ke Arthshastra ka Rajnitik evam Sanskritik Adhyayan
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKautilya ke Arthshastra ka Rajnitik evam Sanskritik Adhyayan
कौटिल्य के अर्थशास्त्र का राजनितिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन : सन् 1905 में तन्जौर के एक ब्राह्मण ने ‘अर्थशास्त्र’ की एक हस्तलिखित पाण्डुलिपि मैसूर रियासत के प्राच्य पुस्तकालयाध्यक्ष श्री आर. शामशास्त्री को भेंट की और तब शामशास्त्री जी के विशेष प्रयत्नों से सन् 1909 में इस ग्रन्थ का प्रकाशन सम्भव हुआ। बीसवीं सदी के दूसरे दशक में ‘अर्थशास्त्र’ का आंग्ल विद्वानों द्वारा अनुवाद किया गया और फिर इसका अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। वहाँ इस ग्रन्थ को बेहद रुचि के साथ पढ़ा गया। विदेशों में प्रतिष्ठित होने के बाद ही भारतीय विद्वानों का ध्यान ‘अर्थशास्त्र’ की तरफ गया। फलस्वरूप टी. गणपति शास्त्री, प्राणनाथ विद्यालंकार, रामतेज शास्त्री, उदयवीर शास्त्री, आर.पी. कांग्ले, वाचस्पति गैरोला एवं श्रीभारतीय योगी आदि सहित अनेक विद्वानों द्वारा ‘अर्थशास्त्र’ का अनुवाद किया गया। ऐतिहासिक दृष्टि से कौटिल्य ई.पू. चैथी सदी के आचार्य थे। विश्वप्रसिद्ध तक्षशिला विश्ववि़द्यालय के शिक्षक कौटिल्य की गणना समकालीन भारत के महानतम आचार्यों में की जाती थी, उन्हें समाज, धर्म, दर्शन, राजनीति, अर्थ आदि के साथ ही शस्त्र विद्या का असाधारण ज्ञान था। उनका प्रमुख एवं प्रिय कार्य अध्यापन था, किन्तु परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में भाग लेने के लिए बाध्य किया और अपनी प्रतिभा के बल पर वे तत्कालीन भारतीय राजनीति की धुरी सिद्ध हुए।
कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ समस्त विश्व का एक अद्भुत ग्रन्थ है। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ की विषय सामग्री में पूर्व प्रचलित ज्ञान की सभी धाराओं का समावेश करके इसे एकांगी होने से बचाकर बहुआयामी बनाया है। इसीलिए शताब्दियों तक शासकों ने अर्थशास्त्र का उपयोग एक शासन संहिता के रूप में करके अपने साम्राज्यों को अक्षुण्ण बनाए रखा। वर्तमान की शासकीय समस्याओं का समाधान भी अर्थशास्त्र के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। प्राचीन भारत का यह एक ऐसा विलक्षण ग्रन्थ है, जो सदैव भारतीयों को गौरवान्वित करता रहेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Kavi Gang Rachanawali (PB)
कवि गंग रचनावली : भक्ति कालीन हिंदी कवियों में कवि गंग का स्थान अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। उनके कवित्तर शताब्दियों पश्चात् आज भी जन-कंठों में स्थायी आसन जमाये हुए हैं। यह प्रसिद्ध है कि अकबर कालीन इस कवि के एक कवित्त से प्रभावित होकर रहीम खानखाना ने उस काल में कवि को 36 लाख रुपये प्रदान किए थे। अकबर के दरबार में जिस प्रकार राजा बीरबल हास्य विनोद के प्रतीक माने जाते हैं, उसी प्रकार शृंगार के क्षेत्र में कोई अनोखी सूझ व्यक्त करनी हो, तो कवि गंग का आश्रय ले लिया जाता है। जैसे नीति के दोहों के बीच ‘कहे कबीर सुनो भई साधो’ का प्रचलन है, वैसे ही कवित्त और सवैयों के बीच ‘कहे कवि गंग’ अथवा ‘गंग कहै सुन शाह अकबर’ की प्रसिद्धि है। निर्भिक उक्तियों के लिए कवि गंग अद्वितीय माने जाते हैं।
प्रारंभ में कवि गंग के कवित्त लोगों में प्रचलित थे कि यदि उन्हें जनकवि कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ‘कवि गंग रचनावली’ इस प्रसिद्ध कवि की समस्त ज्ञात रचनाओं को अपने कलेवर में संजोये हुए हैं। संपादक बटे कृष्ण ने यत्नपूर्वक प्रामाणिक गंग-रचनाओं को एकत्र कर सराहनीय कार्य किया है। इसलिए हिंदी साहित्य के गंभीर अध्येताओं के साथ ही यह ग्रन्थ सामान्य कवि रसिकों के लिए भी रुचिकर तथा सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा।
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Hindi Books, Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Keral Ki Sanskritik Virasat
केरल की संस्कृति पिछले सदियों में विकसित हुई है, जो भारत और विदेशों के अन्य हिस्सों से प्रभावित है।यह अपनी प्राचीनता और मलयाली लोगों द्वारा संघटनात्मक निरंतरता द्वारा परिभाषित की जाती है। शास्त्रीय पुरातनता से भारत और विदेशों के विभिन्न हिस्सों से पलायन कर आये लोगो के कारण आधुनिक केरल समाज ने आकार लिया है।
केरल की गैर-प्रागैतिहासिक सांस्कृति का संबंध तीसरी शताब्दी के आसपास, एक विशिष्ट रूप से ऐतिहासिक क्षेत्र से है, जिसे थंबीजोम कहा जाता है, जो एक आम तमिल संस्कृति वाला क्षेत्र है, जहां चेरा, चोल और पंड्या राजवंशो का उत्थान हुआ। उस समय, केरल में पाया जाने वाला संगीत, नृत्य, भाषा (पहली द्रविड़ भाषा – “द्रविड़ भाषा” तत्कालीन तमिल) और संगम (1,500-2, 000 साल पहले रचा गया तमिल साहित्य का एक विशाल कोष) थंबीजोम (आज का तमिलनाडु) के बाकी हिस्सों के समान ही था। केरल की संस्कृति द्रविड़ लोकाचार के संस्कृतकरण, धार्मिक आंदोलनों के पुनरुत्थान और जातिगत भेदभाव के खिलाफ सुधार आंदोलनों के माध्यम से विकसित हुई|केरल एक ऐसी संस्कृति को दर्शाता है जो सभ्य जीवन शैली के विभिन्न संकायों के आवास, उच्चारण और आत्मसात के माध्यम से विकसित हुई है।
केरल के सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले कलारूपों में लोककलाओं, अनुष्ठान कलाओं और मंदिर कलाओं से लेकर आधुनिक कलारूपों तक की भूमिका उल्लेखनीय है। केरलीय कलाओं को सामान्यतः दो वर्गों में बाँट सकते हैं – एक दृश्य कला और दूसरी श्रव्य कला। दृश्य कला के अंतर्गत रंगकलाएँ, अनुष्ठान कलाएँ, चित्रकला और सिनेमा आते हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Khalistan Shadyantra Ki Inside Story
This Book is HindI Version of The Khalistan Conspiracy: A Former RAW Officer Unravels the Path to 1984
Khalistan Shadyantra Ki Inside Story
आखिर 1 अकबर रोड ग्रुप पंजाब/खालिस्तान समस्या का क्या अंतिम समाधान चाहता था? अकाली दल के उदार नेताओं से बातचीत कर समझौते तक पहुँचने की संभावना को मई 1984 के आखिर तक क्यों अधर में रखा गया, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुछ ही दिन रह गए थे? आखिर कैसे, जिस रॉ के लिए सिख उग्रवाद और खालिस्तान 1979 के आखिर तक कोई मुद्दा नहीं था, वही 1980 के अंत में अचानक उससे निपटने में शामिल हो गया? आखिर क्यों स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरावाले को पकड़ने के लिए सुझाए गए कम नुकसानदेह उपायों को ठुकरा दिया गया?
लेखक भारत की बाह्य खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी हैं, जो आपस में जुड़ी कई घटनाओं की समीक्षा करते हैं—खालिस्तान आंदोलन, ऑपरेशन ब्लू स्टार, 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद हुई सिख-विरोधी हिंसा। 1984 से सात साल पहले से लेकर उसके एक दशक बाद के घटनाक्रम का जिक्र करती यह पुस्तक उन महत्त्वपूर्ण सवालों के जवाब देने का प्रयास करती है जो आज भी बरकरार हैं।
कहानी पंजाब से कनाडा, अमेरिका, यूरोप और दिल्ली तक घूमती है तथा राजनीतिक भ्रमजालों एवं अवसरवाद के बीच से सच को बाहर लाने की कोशिश करती है। हजारों बेकसूर लोगों की जिंदगी को निगल जानेवाली हृदय-विदारक हिंसा और सत्ताधारी दल की ओर से कथित तौर पर निभाई गई भूमिका की छानबीन करती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Khandit Bharat
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKhandit Bharat
आधुनिक भारत के मनीषी, तत्त्वज्ञानियों और चिंतकों में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद का प्रथम स्थान है। परदु:खकातरता, त्याग और सेवा- भाव उनके स्वाभाविक गुण थे। भारत की एकता और अखंडता बनाए रखना उनके लिए अत्यंत महत्त्व की बात थी। सन् 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलिम लीग ने जब देश के विभाजन का प्रस्ताव पारित किया तो यह गंभीर चिंता और चर्चा का विषय बन गया। अनेक प्रमुख व्यक्तियों ने इस पर अपने विचार एवं योजनाएँ प्रस्तुत कीं तथा अपने-अपने ढंग से इस समस्या के समाधान सुझाए। 1945 में इसी बात को ध्यान में रखकर राजेंद्र बाबू ने अंग्रेजी में पुस्तक लिखी-‘ इंडिया डिवाइडेड’; खंडित भारत उसी का हिंदी अनुवाद है। पाकिस्तान की माँग से संबद्ध उस समय तक प्रकाशित प्राय: संपूर्ण साहित्य के विस्तृत अध्ययन के बाद लिखी गई इस पुस्तक की मुख्य विशेषता है कि इसमें लेखक के विचार पाठकों पर आरोपित नहीं किए गए। तथ्यों, आँकड़ों, तालिकाओं, नक्शों और ग्राफों की सहायता से भारतीय प्रायदीप के विभाजन से संबंधित संपूर्ण सामग्री उपस्थित कर देश के बँटवारे के पक्ष-विपक्ष में इस प्रकार तर्क प्रस्तुत किए गए हैं कि पाकिस्तान की व्यवहार्यता अथवा अव्यवहार्यता के विषय में पाठक स्वयं अपनी राय बना सकें। विभाजन के समर्थकों एवं विरोधियों-दोनों के लिए ‘ खंडित भारत’ एक आदर्श ग्रंथ माना गया। यद्यपि देश को विभाजित हुए साठ वर्ष से ऊपर बीत चुके हैं, इतिहासकारों की दृष्टि में आज भी यह पुस्तक महत्वपूर्ण है और प्रत्येक भारतीय के लिए पठनीय है
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Khatu Shyam Ji ka Itihas
खाटु श्याम जी का इतिहास : राजस्थान में कई मन्दिर प्रसिद्ध हैं। नाथद्वारा में श्री नाथजी, जयपुर में गोविन्ददेवजी, मेहन्दीपुर के बालाजी, सालासर के बालाजी की जैसे सर्वत्र प्रसिद्धि हैं। उसी प्रकार शेखावाटी अंचल में खाटू श्यामजी की मान्यता व्यापक है। सीकर जिले में खाटू ग्राम सीकर से 48 कि.मी. रींगस से 16 कि.मी. तथा दांता रामगढ़ से 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां भगवान श्री कृष्ण के ही स्वरूप श्याम जी का मन्दिर है, जिससे यह खाटू श्यामजी अथवा खाटू श्यामजी के नाम से प्रसिद्ध है। इस विग्रह और मन्दिर के सम्बन्ध में महाभारत की कथा का उल्लेख किया गया है कि श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण कर भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक का मस्तक मांग लिया था। फिर उसको एक पर्वत शिखर पर स्थित कर दिया, जहां से उसने सम्पूर्ण महाभारत के युद्ध का अवलोकन किया। तदन्तर भगवान श्री कृष्ण ने ही प्रसन्न होकर उसको वरदान दिया कि वह कलियुग में उन्हीं के ‘श्याम’ नाम से विख्यात और पूजित होगा। वही श्यामजी उक्त खाटू ग्राम में प्रतिष्ठित है और ‘खाटू श्यामजी’ नाम से विख्यात है। सुप्रसिद्ध पत्रकार, साहित्य मनीषी और संशोधक स्वर्गीय पं. झाबरमल्ल शर्मा ने शोध करके प्रथम बार खाटू श्यामजी का इतिहास लिखा तथा इसके साथ उनसे सम्बन्धित साहित्य का प्रकाशन भी किया है, जिससे पुस्तक की उपायदेता बढ़ गई है और श्याम भक्त इससे लाभान्वित होंगे।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Kranti Ka Bigul
“देश के लिए लड़ने वालों की सेवा करना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी। अब तुम जाओ। अँधेरे में ही निकल जाना तुम्हारे लिए ठीक होगा। आगे जो भी खबरें मिलें, वह बताते रहना। खुद न आना संभव हो तो किसी के द्वारा संदेश भिजवा देना। वैसे तुम्हारी बातों से तो यही लगता है कि 85 सैनिकों के विद्रोह से जो चिनगारी निकली है, वह धीरे धीरे ज्वाला बन गई है। मैं यह तो जानता हूँ कि क्रांति की तैयारी सालों से की जा रही थी। नाना साहब, अजीमुल्ला, रानी झाँसी, तात्या टोपे, कुँवर जगजीत सिंह, मौलवी अहमद उल्ला शाह और बहादुर शाह जफर जैसे नेता क्रांति की भूमिका तैयार करने में अपने-अपने स्तर से लगे हैं। देखते हैं, आगे क्या होता है। तुम सँभलकर जाना।”
1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे सिपाही विद्रोह और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रारंभ भी माना जाता है, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। मेरठ से शुरू हुई इस क्रांति की ज्वाला दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में लगातार फैलती रही। माधव छोटा था, लेकिन उसके अंदर भी देश सेवा का जज्बा था। मंगल पांडे से प्रेरित होकर वह किस तरह से इस क्रांति का हिस्सा बना, पढ़िए इस दिलचस्प उपन्यास में।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Krishna Janmabhoomi (PB)
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताKrishna Janmabhoomi (PB)
“The sole intention of the outcome of the book is do provide clearer view with regard to the position of the Krishna Janmasthan and Shahi Idgah Mosque. I have written this book so that Readers may arrive at a conclusion themselves with regard to status quo of the disputed site whether it is a Temple or a Mosque.
The book encompasses vividly the historical facts with regard to Krishna Janmabhoomi and Shahi Idgah mosque, legal position what is and what should be. It’s not only about the historical facts but then also about the Islamic law, Hindu Dharmshastras, culture & practices and above all a broader picture in the light of the Constitution of India.
Efforts have been made to keep this book as a complete package of historical, philosophical and legal treatise with a flow and language that even the layman could assimilate it.”
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