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Vani Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Atharvved Ka Madhu
अथर्ववेद की मधु अभीप्सा गहरी है। यह सम्पूर्ण विश्व को मधुमय बनाना चाहती है। सारी दुनिया में मधु अभिलाषा का ऐसा ग्रन्थ नहीं है। कवि अथर्वा वनस्पतियों में भी माधुर्य देखते हैं। कहते हैं, “हमारे सामने ऊपर चढ़ने वाली एकलता है। इसका नाम मधुक है। यह मधुरता के साथ पैदा हुई है। हम इसे मधुरता के साथ खोदते हैं। कहते हैं कि आप स्वभाव से ही मधुरता सम्पन्न हैं। हमें भी मधुर बनायें।” स्वभाव की मधुरता वाणी में भी प्रकट होती है। प्रार्थना है कि हमारी जिह्वा के मूल व अग्र भाग में मधुरता रहे। आप हमारे मन, शरीर व कर्म में विद्यमान रहें। हम माधुर्य सम्पन्न बने रहें। यहाँ तक प्रत्यक्ष स्वयं के लिए मधुप्यास है। आगे कहते हैं, “हमारा निकट जाना मधुर हो। दूर की यात्रा मधुर हो। वाणी में मधु हो। हमको सबकी प्रीति मिले।” जीवन की प्रत्येक गतिविधि में मधुरता की कामना अथर्ववेद का सन्देश है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Athashri Vedavyasa Katha (HB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Athashri Vedavyasa Katha (HB)
Athashri Vedavyasa Katha “अथ श्री वेदव्यास कथा” Book In Hindi – Omprakash Pandey
महर्षि व्यास भारतीय वाङ्मय के शिखर प्रणेता हैं। उनकी प्रसिद्धि कृष्ण द्वैपायन, वेदव्यास और महर्षि पाराशर के रूप में भी है। उन्होंने चारों वेदों का वर्गीकरण, महाभारत जैसी शतसाहस्री संहिता, अष्टादश पुराणों और वेदांत के ब्रह्मसूत्रों का भी प्रणयन किया। उन्होंने कुरुवंश को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। पांडवों और कुरुओं, दोनों को ही समय-समय पर सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। द्वापर दुविधा का युग था। अपने युग के दिग्भ्रमित समाज को उन्होंने वासुदेव कृष्ण के साथ सही दिशा देने का भगीरथ प्रयत्न किया। कुरुक्षेत्र के रणस्थल पर श्रीकृष्ण के श्रीमुख से उपदिष्ट गीता का तत्वज्ञान महाभारत के अंतर्गत होने के कारण ही अभी तक हमें उपलब्ध है। इसका श्रेय भी द्वैपायन व्यास को ही है। दशावतार की अवधारणा भी वेदव्यास के प्रयत्न से ही सुरक्षित है। भगवान् श्रीकृष्ण की संपूर्ण जीवन-कथा और विचारराशि को व्यास ने ही श्रीमद्भागवत के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने का भगीरथ प्रयत्न किया है। श्रीकृष्ण यदि अपने युग के निर्माता हैं, तो व्यास भी उनके समानांतर ही युगद्रष्टा हैं। द्वापर की यह सबसे बड़ी उपलब्ध है, जो उसे वासुदेव कृष्ण और कृष्ण द्वैपायन के रूप में दो कृष्ण प्राहृश्वत हुए। महाभारत और पुराणों में भगवान् श्रीकृष्ण की कथा तो विस्तार से मिल जाती है, लेकिन व्यासजी ने अपने विषय में कुछ भी नहीं कहा। व्यासजी के जीवन-विषय में जनसामान्य की अजस्र जिज्ञासा आज भी है, जिसे ध्यान में रखकर ही उपलब्ध साक्ष्यों और सूत्रों को सँजोकर इस ‘अथश्री वेदव्यास कथा’ का प्रणयन किया गया है।
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Govindram Hasanand Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, अन्य कथेतर साहित्य
Athato Dharm Jigyasaa
धर्म के यथार्थ स्वरूप का दार्शनिक विवेचन-साधारण तौर पर लोगों के बीच धर्म या तो विवाद का विषय रहा है या फिर परंपरा का, जबकि यह चिंतन व विचार-विमर्श का विषय होना चाहिए। समाज में धर्म के विषय में फैली भ्रांतियों और असमंजस की स्थिति का निराकरण एवं इसके यथार्थ स्वरूप का उद्घाटन आवश्यक है। जिसकी चर्चा इस पुस्तक में तथ्य परक एवं तार्किक ढंग से की गई है।
इस पुस्तक में भौतिक तथ्यों एवं आंकड़ों का उल्लेख करके विषय को अधिक रोचक एवं प्रामाणिक बनाया गया है। धर्म ईश्वरोक्त है अर्थात् ईश्वर के द्वारा मनुष्य मात्र के लिए निर्धारित आचरण संबंधी निर्देश ही धर्म कहलाता है। प्रस्तुत पुस्तक में इस सिद्धांत का सफलता पूर्वक प्रतिपादन किया गया है।
‘धर्म का स्वरूप‘ इस पुस्तक का मुख्य अध्याय है। जिसके अंतर्गत धर्म के सूक्ष्म तत्व की विस्तृत व्याख्या की गई है। विशेष तौर पर अहिंसा, सत्य और विद्या जैसे विषयों की व्याख्या काफी रोचक और ज्ञानवर्धक है। धर्म के नाम से प्रचलित छः मुख्य संप्रदाय यह समूह (ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, नास्तिक, बौद्ध, यहूदी) का संक्षेप विवरण ‘धर्माभास‘ नामक अध्याय में दिया गया है।
ताकि पाठकों को इनके बारे में साधारण तथ्य मालूम हो सकें। यह पुस्तक बुद्धिजीवी और तार्किक पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। निःसंदेह इस उच्चकोटि की पुस्तक रचना के लिए लेखक को मेरा साधुवाद और इसकी सफलता हेतु बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
– डॉ. वागीष आचार्य, गुरुकुल एटाSKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
AULESYA TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की ‘ओलेस्या तथा अन्य कहानियाँ’ पुस्तक की कथा जंगल में रहने वाली एक समाज-बहिष्कृत सुंदर लड़की और उसकी दादी की है,जिन्हें गाँव वाले डायनें समझते हैं। कथानक उस अल्प- परिचित, अलप-उद्घघाटित विषय का है, जिस पर आज भी बहुत कम सहीतियक रचनाएँ सारे यूरोप- अमेरिका में मिलती हैं। कुप्रीन, और चेखव की ही परंपरा में,रूसी साहित्य के उस स्वर्ण-काल के लेखक हैं जिनके पास समाज के हर तबके के पात्र के लिए के अचूक अंतर्दृष्टि थी।
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English Books, Garuda Prakashan, इतिहास
Aurangzeb’s Iconoclasm: Illustrations from Primary Source
-10%English Books, Garuda Prakashan, इतिहासAurangzeb’s Iconoclasm: Illustrations from Primary Source
Based on Emperor Aurangzeb’s Court Bulletins (Akhbarat) from Rajasthan State Archives, Bikaner and credible Persian works, this book “Aurangzeb’s Iconoclasm” features paintings, court orders and other such material to bring out the nature of reign that Aurangzeb had unleashed. Many of these paintings, reproduced masterfully in miniature style from original documents kept in the state archives. They are now part of permanent exhibition at Chhatrapati Shivaji Maharaj Museum of Indian History in Pune, set up by the author, Francois Gautier.
Clearly answers the question on the destruction of the Kashi Vishwanath temple, on Aurangzeb’s orders, the site of the current Gyanvapi Masjid.
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Awadh Ki Tharu Janjati : Sanskar Evam Kala
‘आदिवासी थारू जनजाति’ भारत-नेपाल सीमा के दोनों तरफ़ तराई क्षेत्र में घने जंगलों के बीच निवास करती है जो कि भारत की प्रमुख जनजातियों में से उत्तर भारत की एक प्रमुख जनजाति है। उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के तीन ज़िलों लखीमपुर खीरी, बहराइच व गोण्डा में थारू जनजाति निवास करती है। जहाँ अवध क्षेत्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का जन्म स्थान पावन धाम प्राचीन धार्मिक धर्म नगरी है और मेरा परम सौभाग्य है कि मेरा जन्म अवध के अयोध्या में हुआ है। वहीं अवध क्षेत्र की एक विशेषता रही है। थारू जनजाति का आवासित होना उनकी समृद्धि, संस्कृति व लोक परम्परा से युक्त उनका इतिहास गौरवशाली होना इनकी कला और संस्कृति का हमारी लोक संस्कृति के साथ घनिष्ठ सम्पर्क है। थारू जनजाति की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, लोक कला अपने आप में लालित्यपूर्ण विधा है। इसका प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक विस्तार है लेकिन कतिपय कारणों से यह अभी तक समृद्ध कला प्रकाश में नहीं आयी है। इनकी संस्कृति, सभ्यता अभी तक पूरे अवध और उसके बाहर भी प्रकाश में नहीं आयी है और ना ही प्रचार-प्रसार हुआ है। मेरा लक्ष्य है कि थारू जनजाति की लोक कला संस्कृति और लोक जीवन पद्धति जो कि हमारे अवध का एक गौरवशाली अंग है, इस पुस्तक के माध्यम से जन सामान्य में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। थारू जनजाति एक जनजाति ही नहीं एक लोक परम्परा है, इसको एक जाति के रूप में जब हम देखते हैं, तो पाते हैं कि इन्होंने हमारी एक विरासत को सँभाल कर रखा है जो अभी तक बची हुई और सुरक्षित है। इस संस्कृति, कला और परम्परा को नयी पीढ़ी तक पहुँचाने, सुरक्षित रखने के उद्देश्य से यह सर्वेक्षण का कार्य किया गया है।
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Vani Prakashan, इतिहास
Awadh Sanskriti Vishwakosh – 1
प्राचीन अवध के अन्तर्गत इन आठ राज्यों का उल्लेख प्राप्त होता है-1. वत्स 2. कौशाम्बी 3. कोसल-साकेत 4. श्रावस्ती 5. कान्यकुब्ज 6. अन्तर्वेद 7. भारशिव (बैसवारा) 8. शर्की (जौनपुर)। यही रामराज्य की वास्तविक परिधि थी। यद्यपि कवियों ने रामराज्य को देश-देशान्तर तक व्याप्त दिखाया है, किन्तु वह मंगलाशा मात्र है। गोस्वामी जी ने लिखा है- “सप्तद्वीप सागर मेखला” किन्तु यह कथन एक प्रकार की कवि प्रौढ़ोक्ति है। अकबर ने पूरे मुगल राज्य को 1590 ई. में कुल 12 सूबों में बाँटा था। सूबाए औध में 5 सरकारें थीं-लखनऊ, फैजाबाद, खैराबाद, बहराइच, गोरखपुर। बाद में गोरखपुर अलग कमिश्नरी से जुड़ गया। मध्यकाल में अयोध्या पर समय-समय पर कई वंशों ने राज्य किया, जिनमें मुख्य हैं-1. खिलजी वंश 2. तुगलक वंश 3. मुगल वंश 4. सोलंकी राजा 5. कान्यकुब्ज नरेश 6. परिहार वंश 7. लोदी वंश 8. गहरवार वंश 9. नवाबी शासन। अंग्रेजी शासन में अवध के भीतर सुल्तानपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, टाँडा और मानिकपुर को सम्मिलित कर लिया गया और गोरखपुर को पृथक कर दिया गया। बाद में अयोध्या पर शाकद्वीपीय राजाओं का अधिकार रहा। लाला सीताराम ने ‘अयोध्या का इतिहास’ में इन सबका विस्तृत विवरण दिया है। इस विशाल क्षेत्र का भौगोलिक परिवेश अत्यन्त बहुरंगी तथा सुरम्य है। इसकी अधिकांश भूमि वनों से ढकी है। भूवैज्ञानिक संरचना की दृष्टि से यह क्षेत्र कई हिस्सों में बँटा है। इस क्षेत्र का काफी भाग हिमालय की तराई (गाँजर) क्षेत्र में आता है। खीरी, बहराइच, गोण्डा, बलरामपुर, सीतापुर, श्रावस्ती जिले इसी गाँजर क्षेत्र के जिले हैं। उत्तर में यह हिमालय की एक समानान्तर श्रेणी है। दूसरा क्षेत्र गंगा यमुना का मैदान (दोआबा) कहलाता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)
AYODHYA KA ITIHAS (Rai Bahadur Lala Sitaram)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)AYODHYA KA ITIHAS (Rai Bahadur Lala Sitaram)
लाला सीताराम ने 1932 में अयोध्या का इतिहास लिखा था। इनके पूर्वज राम के अनन्य भक्त थे। इसलिए जौनपुर छोड़ अयोध्या नगरी में बस गए थे। लाला सीताराम ने अयोध्या में अपने घर के एक कमरे में रामायण मंदिर भी बना रखा था। यहाँ रहते हुए उन्होंने ‘अयोध्या का इतिहास’ लिखना प्रारंभ किया। वेद से लेकर पुराणों में अयोध्या का उल्लेख तो मिलता है लेकिन अयोध्या के इतिहास पर कोई समग्र दृष्टि डालती पुस्तक का अभाव लगातार उन्हें यह इतिहास लिखने के लिए प्रेरित करता रहा। लाला सीताराम ने गहन शोध कर वेद काल से लेकर ब्रिटिश काल के अयोध्या पर प्रकाश डाला है। अयोध्या न सिर्फ हिंदुओं का एक पवित्रतम तीर्थ है वरन् जैन, बौद्ध और सिख के लिए भी उतना ही पावन और श्रद्धा का केंद्र है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ayodhya Ka Sach
इस संकलन में प्रस्तुत लेख सन् १९८६ से २००३ तक लिखे गए हैं। इन लेखों में अयोध्या आंदोलन के विभिन्न चरणों एवं रूपों का विहंगम चित्र प्रस्तुत किया गया है। लेखक स्वयं इस विवाह के ऐतिहासिक पक्ष से जुड़ी बहस में सहभागी रहा है। इन लेखों को पढ़ने से प्रकट होगा कि लेखक ने अयोध्या प्रश्न को एक स्थानीय मंदिर-मसजिद के रूप में देखने की बजाय विदेशी आक्रमणकारियों की मजहबी असहिष्णुता एवं विस्तारवाद की मध्य युगीन विचारधारा की विध्वंस लीला के लक्षण और प्रतीक के रूप में देखता है।
लेखका का मानना है कि इस विध्वंस लीला के लिए भारतीय मुसलमानों की वर्तमान पीढ़ी को कदापि उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता; किंतु यह भी उतना ही सच है कि जब तक उनकी वर्तमान पीढ़ी मजहबी असहिष्णुता और विस्तारवाद, हिंसा और विध्वंस की उस मध्य युगीन विचारधारा से संबंध-विच्छेद करके अपनी इसलाम पूर्व की ऐतिहासिक परंपरा को शिरोधार्य नहीं करती तब तक खंडित भारत में राष्ट्रीयता और पंथनिरपेक्षता का पौधा लहलहा नहीं सकता। इसलिए लेखक की दृष्टि में अयोध्या आंदोलन अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक समाजों में वर्चस्व का युद्ध न होकर राष्ट्रीयता और पंथनिरपेक्षता के सनातन भारतीय आदर्श के साथ भारतीय मुसलमानों को जोड़ने का एक रचनात्मक राष्ट्रीय आंदोलन है।SKU: n/a -
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ayodhya Revisited
This work of monumental research is atreatise on Ayodhyã with utmostauthenticity and absolute accuracy. Basedon original sources and scientificinvestigation it propounds a new thesis,which demolishes many popularperceptions. It exonerates the intrepidwarrior Babur from the charge ofdemolishing a temple on the birth-site ofRãma and constructing the mosque whichhas been a source of contention anddissension for long. It further shows howinscriptions in the mosque were factitiousand Mir Baqi of inscriptions is a fictitiousperson different from Baqi Tashkindi/Shegawal of the Baburnama.The book produces incontrovertibleevidence which indubitably proves thatthere existed a Rãma temple on the Rãmajanmabhùmi.The exact birthplace ofRãma was earmarked by a rectangularBedi measuring 18 ft. 9 inches in lengthand 15ft. in width, and was located in theinner portion of the disputed shrine. Thedemolition of the temple and theconstruction of the mosque did not takeplace in 1528 A.D. but in c. 1660 A.D.when Fedai Khan was the Governor ofAurangzeb at Ayodhyã. It is a historicalfact that until the British takeover ofAwadh administration in 1858 both theHindus and Muslims used to perform pujaand offer Namaz respectively inside it.All Mughal Emperors from Babur toShah Jahan were magnanimous and liberalrulers and the Bairãgìs of Ayodhyã enjoyedpatronage of the first four Nawabs ofAwadh. However, during the long rule ofAurangzeb the country was engulfed in thefire of fanaticism. It has been shown in thisbook how an absolutely unfounded rumourin 1855 A.D. that the Hanumangarhitemple was constructed on the site of amosque created cleavage between the twocommunities, and the resultant festeringwounds have not healed despite bestefforts by saner elements of both thecommunities.The book exposes many eminenthistorians’ hypocrisy and their lack ofcertitude in writing history and it may besaid that their presentation of contrivedhistory on Ayodhya has caused irreparabledamage to the cause of harmonizingcommunal relations in the country. Incontrast, this text earnestly tries to takeaway the toxin from the polluted body ofIndian politics. For the first time a numberof unexplored documents have beenincorporated in this book as evidence, andit may be proclaimed with pride that thisbook contains much more information onAyodhya than available hitherto.Justice G.B. Patnaik, a former ChiefJustice of India, after going through themanuscript, has endorsed the author’sthesis in his Foreword. It is hoped that thebook will put a quietus to the long-standingdispute.
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ayodhya: Beyond Adduced Evidence
Ayodhya: Beyond Adduced Evidence is a sequel to the author’s earlier book Ayodhya Revisited. It highlights how the Rama Janma Bhumi at Ayodhya is an essential and integral part of Hinduism. On the basis of unimpeachable evidence it establishes the exact location of the Rama Janma Bhumi. It proves beyond any shade of doubt that a Rama temple built in the 12th century existed on the disputed site and that was demolished by Fedai Khan, the Governor of Aurangzeb in 1660 A.D.
Based on the law laid down in scriptures it demonstrates that the bhumi of the temple having a consecrated idol gets the status of a deity. From the in-depth analysis of scriptures and inscriptions it has been concluded that a temple converted into a mosque can be legitimately restored to its original character of a temple.
The question of the title of the disputed land has been discussed at length both in historical and legal perspectives and it has been found that the title vests in both the Rama Janma Bhumi and numerous deities who reside there forever. But it was unlawfully grabbed by the British authorities in 1858 and that wrong remains unrectified till today.
The historical fact that many Mughal monarchs, Awadh Nawabs and Muslim nobles liberally granted land at Ayodhya for the construction of temples and mutts to the Bairagi sadhus has been highlighted in the book.
So far the title of the mosque is concerned, it is found that almost all evidences claimed in favour of the mosque are fake and fabricated. Moreover, whatever the title it had, that extinguished in 1858 after Lord Canning confiscated the disputed land. Thereafter, the Muslims had the permissive possession of a part of the mosque for offering nemaz.
Besides, the gun of the claim of adverse possession is fired against a wrong target as it has been directed against the Hindus; whereas the ownership of the land lies with the Government.
The author has shown the striking similarities and stark contrasts in the situations of Somanatha and Ayodhya, and has deeply probed as to why Somanatha succeeded, whereas solution is still eluding Ayodhya. It has been proved that Rama’s worship has continued for more than 2000 years and his saga is India’s most pervasive and enduring instrument of acculturation. Besides, it has been shown in the book that Rama has been regarded as the embodiment of Dharma since Valmiki wrote the Ramayana.
The book is indispensable for any student, scholar and lawyer interested in knowing the history of and the title to the disputed land at Ayodhya.
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Contents
Preface —Pgs. xxi
Part – I
1. Why is Ayodhya so important? —Pgs. 1
2. Where is the Rama Janmabhumi located? —Pgs. 19
3. Did there exist a temple on the disputed land? —Pgs. 35
4. What happens after a temple is desecrated or an idol is defiled? —Pgs. 65
5. Can any temple be restored to its original character after desecration or defilement? —Pgs. 79
6. Is the Title vested in the Hindu Deity? —Pgs. 87
Part – II
7. How is Buchanan’s Inscription so crucial for the history of the disputed shrine? —Pgs. 145
8. Will the Title tilt in favour of Baburi mosque? —Pgs. 165
9. Who demolished the temple on the Rama Janma Bhumi and built the mosque thereon? —Pgs. 221
10. Is Sir Jadunath Sarkar’s list of the temples demolished by Aurangzeb complete? —Pgs. 247
11. Is there any similarity between the historical events at Somanatha and Ayodhya? —Pgs. 259
Part – III
12. Rama’s worship has continued for more than 2000 years —Pgs. 273
13. Rama’s Saga is India’s most pervasive and enduring instrument of acculturation —Pgs. 297
14. Rama’s references in Buddhist texts are, by and large, based on Valmiki’s Ramayana —Pgs. 315
15. Rama is the embodiment of Dharma —Pgs. 325
List of Appendices —Pgs. 341
Appendices —Pgs. 345
List of Illustrations —Pgs. 723
Index of proper names & books —Pgs. 725SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Azadi @ 75 : Krantikariyon Ki Shauryagatha
भारतीय स्वाधीनता संग्राम रूपी यज्ञ में अनेक वीरों ने अपनी आहुति दे दी। वे कठिनतम परिस्थितियों में भी अपनी अंतिम साँस तक लड़ते रहे, किंतु भारतीय इतिहास का यह दुर्भाग्य रहा कि हम कुछ ही वीरों की शौर्यगाथाओं को जनमानस में प्रचारित कर पाए। ‘आजादी ञ्च 75 क्रांतिकारियों की शौर्यगाथा’ पुस्तक संपूर्ण भारतवर्ष के सुने-अनसुने क्रांतिवीरों के जीवनचरित्र पर आधारित है, जो अपने महान् योगदान के बावजूद स्थानीय स्तर पर ही कहीं खोकर रह गए।
इसमें ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना से प्रेरित होकर उत्तर से लेकर दक्षिण एवं पूरब से लेकर पश्चिम तक क्रांति की अलख जगानेवाले क्रांतिकारियों को सम्मिलित किया गया है, ताकि भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक समन्वित एवं समायोजित इतिहास की पृष्ठभूमि जन-मानस तक पहुँच सके।
इस पुस्तक का आधार केवल जानकारियों का एकत्रीकरण व संग्रहण न होकर हमारे शूरवीरों के दर्शन व तत्कालीन परिस्थितियों में उनके द्वारा किए गए धार्मिक, सामाजिक व शैक्षिक आंदोलनों का वर्णन करना है, ताकि हमारी भावी पीढ़ी उनसे प्रेरित होकर वर्तमान मुद्दों का हल निकाल सके और इस प्रकार जाति व्यवस्था रहित, महिला समानता आदि उच्च मानवीय मूल्यों पर आधारित एक ‘नए भारत’ का सृजन कर सके। इसी से भारत को विश्वगुरु के रूप में पुनः प्रतिस्थापित किया जा सकेगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Baba Ramdev : Itihas evam Sahitya
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांBaba Ramdev : Itihas evam Sahitya
बाबा रामदेव : इतिहास एवं साहित्य : समृद्व और वैविध्यपूर्ण राजस्थानी लोक साहित्य में आये लोकोपकारी चरित्रों में बाबा रामदेव का स्थान सर्वोपरि है। अब तक इनके जीवन और साहित्य सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक ग्रंथ प्राप्त नहीं था। डॉ. सोनाराम बिश्नोई ने इस साहित्य का संग्रह सम्पादन कर, प्रथम बार इसका विवेचनात्मक समीक्षात्मक अध्ययन इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया है, जो नवीन और मौलिक है। यह शोध दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड के प्रथम अध्याय में बाबा रामदेवजी की वंश परम्परा का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय अध्याय में बाबा रामदेव जी के जन्म-स्थान, आविर्भाव कालीन परिस्थिति तथा उनके द्वारा सम्पादित विविध लौकिक-अलौकिक कार्यो का विवरण प्रस्तुत किया है। तृतीय अध्याय में बाबा रामदेव सम्बन्धी लोक साहित्य का परिचय दिया गया है। चतुर्थ अध्याय में इस लोक साहित्य का भक्ति, दर्शन, उपदेश, नीति, सामाजिक संस्कार और जीवनी आदि के आधार पर वर्गीकरण कर उसका विवेचन किया गया है। पंचम अध्याय में इस लोक साहित्य का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से मूल्यांकन किया गया है। इस मूल्यांकन द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक, महान अछूतोद्वारक बाबा रामदेवजी का चरित्र उभरकर सामने आया है। द्वितीय खण्ड लेखक के अनवरत श्रम और दुरूह प्रयास का परिणाम है। इसके परिशिष्ट-क में बाबा रामदेव और उनके भक्त कवियों द्वारा रचित बाणियां, परिशिष्ट-ख में आठ कवियों द्वारा रचित बाबा रामदेव सम्बन्धी प्राचीन छंद (हिन्दी व्याख्या सहित) और परिशिष्ट-ग में तीन लोक वार्ताएं मौलिक परम्परा और हस्तलिखित ग्रंथो के आधार पर संकलित-सम्पादित की गई है, जो इस शोध ग्रंथ की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
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Rajasthani Granthagar, उपन्यास
Bahurupi
हिन्दी में एक उक्ति है- “मैदा इक पकवान बहुत, बैठ कबीरा जीम”। मैं इसको साहित्य और कला के विभिन्न रूपों पर घटाकर देखता हूँ: देखने में ये सब अलग-अलग और स्वायत्त इकाइयाँ हैं लेकिन इस सब में प्रवाहित-स्पंदित कुछ समान प्राण-तत्त्व हैं:- जागृत संवेदनशीलता, चेतन कल्पनाशीलता तथा अभ्यास से सान चढ़ाया हुआ रचनात्मक-सृजनात्मक कौशल, जो इन सब में एक एकसूत्रता के बायस बनते हैं। यूँ देखें तो ये सब एक तराशे हुए हीरे के अलग-अलग रुख जैसे हैं।
सार यह है कि विशेषज्ञता के लिए, अपनी रुचि, रुझान और क्षमता के अनुरूप, भले ही हम इन परस्पर सम्बद्ध इकाइयों और अनुशासनों में से किसी एक या किन्हीं एक या दो को चुन लें लेकिन एक समृद्ध सांस्कृतिक व्यक्तित्व पाने के लिए यह जरूरी है कि हमें शेष इकाइयों का भी ‘संवेदनात्मक बोध’ (अभिव्यक्ति विलास गुप्ते की) हो।
इस प्रकार का संवेदनात्मक बोध रखने की मेरी अपनी कोशिश का प्रतिफलन इस संग्रह के लेखों में है। यह एक विविधा है, साहित्य और कला के कई रूपों-पक्षों का संप्रयोजन। इसी से नाम दिया है “बहुरूपी”।
इस संग्रह की विषय-वस्तु में शास्त्र और लोक, दोनों की उपस्थिति है। असल में दोनों को अलग करके देखने की दृष्टि ही गलत है। इस एकांगिकता का एक नुकसान तो हम शहरवालों को यह हुआ है कि अपनी सारी सहजता, अकृत्रिमता और नैसर्गिक रचनात्मकता के साथ, लोक हमारे लिए बेगाना हो गया है। इसका एक उदाहरण यह है कि मुहावरों और कहावतों के उस अकूत खजाने से, जिससे लोक सम्पन्न है, हम महरूम हो गए हैं।
दूसरा उदाहरण यह है कि हमारे लिए जल-संचयन का महत्त्व और तरीके तथा प्रकृति को समझने-पढ़ने की कला बेमानी हो गए हैं। इस संग्रह में कहावतों और पहेलियों तथा जल पर एक-एक लेख सम्मिलित है। यह दुःखद है कि कुछ तो शहरों की देखादेखी और कुछ कालगति के कारण हमारा लोक सिमटता-मिटता, भदूकरा होता जाता है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Banda Singh Bahadur
बंदा बहादुर ने अपना प्रारंभिक जीवन एक वैरागी के रूप में बिताया। यह लगभग सत्रह वर्ष चला। अधिकांश समय उन्होंने दक्षिण भारत में गोदावरी नदी पर स्थित नंदेड़ नामक नगर में अपने आश्रम में तपश्चर्या करते बिताया। उन्होंने हिंदू शास्त्रों तथा योग एवं प्राणायाम विद्याओं का गहन अध्ययन किया। कुछ लोग मानते हैं कि वे तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे।
गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें गले से लगाया, उन्हें अमृत छकाकर सिख बनाया, उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रखा और उन्हें पंजाब से मुगल राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी।
इसके बाद उन्होंने पंजाब में मुगलों के शहर, गढ़ और किले आक्रमण करके अपने अधीन करने का कार्यक्रम शुरू किया। बंदा ने ऐलान किया कि वे जमींदारों को हटाकर सभी जमीन खेतिहर गरीब किसानों में बाँटेंगे।
महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी के दिनों के बाद इतनी सदियाँ बीत जाने के बाद पहली बार उत्तर भारत में किसी गैर-मुसलमानी शक्ति ने एक बड़े और बेशकीमती भू-भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। अंततः मुगलों ने बंदा बहादुर को पकड़कर बेडि़यों में डाल लोहे के पिंजड़े में बंद कर दिया गया। हथकडि़यों और पाँव की साँकलों में बंदा को महीनों तक जेल में बंद रख, मुसलमान जल्लादों के हाथों जो अमानवीय यातनाएँ दी गईं, वे अनुमान और कल्पना से परे हैं।
वीर, क्रांतिकारी, हुतात्मा, धर्मपारायण, राष्ट्रनिष्ठ वीर बंदा सिंह बहादुर की जाँबाजी और पराक्रम का गौरवगान करती यह पुस्तक हर राष्ट्राभिमानी के लिए पढ़नी आवश्यक है।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Baneda Sangrahalaya ke Dastawej – Vol. 4
प्रो. के.एस. गुप्ता ने बनेड़ा दस्तावेजों के 1758 ई. से 1818 ई. तक तीन भाग पूर्व में प्रकाशित किए है, जिनका इतिहास जगत में अच्छा स्वागत हुआ है। इन दस्तावेजों के आधार पर प्रसिद्ध इतिहासवेत्ताओं की अनेक मान्यताओं का पुनर्वलोकन की आवश्यकता प्रतीत हुई।
विश्वास है कि दस्तावेजों का चतुर्थ भाग भी भारतीय इतिहास में नई मान्यतायें स्थापित करेगा। 1857 की क्रान्ति सम्बंधित दस्तावेजों में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं का दिग्दर्शन होता है। विशेषतः क्रान्ति की समाप्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने जिस अमानुषिकता का परिचय दिया उसका विवरण इस ग्रन्थ की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
मुझे विश्वास है कि मेवाड़ राजस्थान ही नहीं अपितु भारतीय इतिहास लेखन में ये दस्तावेज आधारभूत स्रोत के रूप में प्रतिष्ठापित होंगे।SKU: n/a