Author: SHARATCHANDRA CHATTOPADHYAYA
Format: Hardcover
ISBN :9789388434058
Language : Hindi
Pages: 118
Weight | .450 kg |
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Dimensions | 7.50 × 5.57 × 1.57 in |
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
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‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ का यह चौथा खण्ड है – ‘धर्म’! पाण्डवों को राज्य के रूप में खाण्डवप्रस्थ मिला है, जहाँ न कृषि है, न व्यापार। सम्पूर्ण क्षेत्र में अराजकता फैली हुई है। अपराधियों और महाशक्तियों की वाहिनियाँ अपने षड्यन्त्रों में लगी हुई हैं…और उनका कवच है खाण्डव-वन, जिसकी रक्षा स्वयं इन्द्र कर रहा है। युधिष्ठिर के सम्मुख धर्म-संकट है। वह नृशंस नहीं होना चाहता; किन्तु आनृशंसता से प्रजा की रक्षा नहीं हो सकती। पाण्डवों के पास इतने साधन भी नहीं हैं कि वे इन्द्र-रक्षित खाण्डव-वन को नष्ट कर, उसमें छिपे अपराधियों को दण्डित कर सकें। उधर अर्जुन के सम्मुख अपना धर्म-संकट है। उसे राज-धर्म का पालन करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ती है और बारह वर्षों का ब्रह्मचर्य पूर्ण वनवास स्वीकार करना पड़ता है। किन्तु इन्हीं बारह वर्षों में अर्जुन ने उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा से विवाह किये। न उसने ब्रह्मचर्य का पालन किया, न वह पूर्णतः वनवासी ही रहा। क्या उसने अपने धर्म का निर्वाह किया? धर्म को कृष्ण से अधिक और कौन जानता है? …अर्जुन और कृष्ण ने अग्नि के साथ मिलकर, खाण्डव-वन को नष्ट कर डाला। क्या यह धर्म था? इस हिंसा की अनुमति युधिष्ठिर ने कैसे दे दी? और फिर राजसूय यज्ञ! क्या आवश्यकता थी, उस राजसूय यज्ञ की? जरासन्ध जैसा पराक्रमी राजा भीम के हाथों कैसे मारा गया; और उसका पुत्र क्यों खड़ा देखता रहा? अन्त में हस्तिनापुर में होने वाली द्यूत-सभा। धर्मराज होकर युधिष्ठिर ने द्यूत क्यों खेला? अपने भाइयों और पत्नी को द्यूत में हारकर किस धर्म का निर्वाह कर रहा था धर्मराज? द्रौपदी की रक्षा किसने की? कृष्ण उस सभा में किस रूप में उपस्थित थे? – ऐसे ही अनेक प्रश्नों के मध्य से होकर गुजरती है ‘धर्म’ की कथा। यह उपन्यास न केवल इन समस्याओं की गुत्थियाँ सुलझाता है बल्कि उस युग का, उस युग के चरित्रों का तथा उनके धर्म का विश्लेषण भी करता है। हम आश्वस्त हैं कि इस उपन्यास को पढ़कर ‘महाभारत’ ही नहीं, धर्म के प्रति भी आपका दृष्टिकोण कुछ अधिक विशद होकर रहेगा।…और फिर भी एक यह समकालीन मौलिक उपन्यास है, जिसमें आपके समसामयिक समाज की धड़कनें पूरी तरह से विद्यमान हैं।
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Jaane-Maane Itihaskar : Karyavidhi, Disha Aur Unke Chhal (Hindi, Arun Shauri)
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Sairandhri
0 out of 5(0)नरेन्द्र कोहली
पाण्डवों का अज्ञातवास महाभारत कथा का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और मार्मिक स्थल है । कहा जाये कि यह एक वर्ष ही उनकी असली परीक्षा का काल था । जब उन्हें अपना नैसर्गिक रूप त्याग कर अलग और हीनतर रूप धारण करने पड़ते हैं । सवाल उठता है दुर्योधन की गिध्द-दृष्टि से पाण्डव कैसे बचे रह सकें ? अपने अज्ञातवास के लिए पाण्डवों ने विराट नगर को ही क्यों चुना ? पाण्डवों के शत्रुओं में प्रछन्न मित्र कहाँ थे ? और मित्रों में प्रछन्न शत्रु कहाँ पनप रहे थे ? बदली हुई भूमिकाओं से तालमेल बैठाना पाण्डवों के लिए कितना सुकर या दुष्कर था ? अनेक प्रश्न हैं जो इस प्रसंग में उठते हैं । लेकिन पाण्डवों से भी ज्यादा मार्मिक है द्रौपदी का रूपान्तरण । पाण्डवों को तो किसी-न किसी रूप में भेष बदलने का वरदान मिला हुआ था या उनमें यह गुण स्वाभाविक रूप से मौजूद था। अर्जुन को अगर उर्वशी का श्राप था तो युधिष्ठिर को द्यूत प्रिय होने के नाते कंक बनने में सुविधा थी । भीम वैसे ही भोजन भट्ट और मल्ल विद्या में पारंगत थे। समस्या तो द्रौपदी की थी, जो न केवल सुन्दरी होने के नाते सबके आकर्षण का केंद्र थी बल्कि जिसने कभी सेवा-टहल का काम नहीं किया था। सुदेष्णा जैसी रानियाँ तो उसकी सेवा-टहल करने के योग्य थीं । ऐसी स्थिति में उस एक वर्ष को सैरंध्री बनकर काटना द्रौपदी के लिए कैसी अग्नि परीक्षा रही होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है । द्रौपदी के सौन्दर्य को लेकर सुदेष्णा का भय और विराट की आशंका या फिर वृहन्नला और द्रौपदी की अपनी-अपनी व्यथाएँ । उपन्यासकार नरेन्द्र कोहली ने इस उपन्यास में की । इसके साथ-साथ अनेक प्रश्नों को छुआ है, इन सबको नरेन्द्र कोहली ने अपनी सुपरिचित शैली में बड़ी सफलता से चित्रित किया है ।
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