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Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharishi Dayanand Sarswati Ka Jeevan Charitra
Arsh Sahitya Prachar Trust, Hindi Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणMaharishi Dayanand Sarswati Ka Jeevan Charitra
आर्य समाज के संस्थापक,आधुनिक भारत के महान चिन्तक एवं समाज सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का जीवन चरित्र | 19 वीं शताब्दी में ऋषि जीवन का महत्व, भारतीय इतिहास का काल-विभाजन, ऋषि दयानंद के अविर्भाव का परिस्तिथि, भौतिक तथा आरंभिक अशांति के परिणाम, शांतिदूत के आगमन के चिन्ह |
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Prabhat Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Mahatma
ये कहानियाँ मेरे उपन्यासों के अंतराल की उत्पाद हैं; पर ये उपन्यास नहीं हैं—न आकार में और न प्रकार में। यद्यपि आज यह बात भी उठ रही है कि कहानी कोई विधा ही नहीं है। जो कुछ है वह उपन्यास ही है। आकार की लघुता में भी वह उपन्यास है—और विशालता में तो है ही। दोनों में कथा-शिल्प एक है।
मेरा ‘पात्र’ जिन ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर ले चलता है वहाँ मैं अकेला नहीं होता। एक तो मेरा विवेक मेरे साथ होता है और दूसरे, मेरी कल्पना मेरे साथ होती है। विवेक रेखांकन करता है और कल्पना रंग भरती है। रेखांकन के बाहर उसका रंग नहीं जाता। विवेक कल्पना का नियंत्रण है, ‘पकड़’ है। जब कल्पना रेखांकन के बाहर जाने लगती है या वायवी होने लगती है तब विवेक कहता है, ‘ठहरो, कुछ सोच-विचार करो।’…और बाहर जाने की अपनी प्रकृति के बावजूद वह यथार्थ के दायरे में ही रहती है। तब वे चित्र बनते हैं, जिनके कुछ नमूने इस संग्रह में हैं।SKU: n/a -
Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Maihar Ke Angana
अवध की संस्कृति, सभ्यता और परम्परा हमारी धरोहर है। अवध उत्तर प्रदेश के 25 जनपदों का एक भू-भाग है, जिसे प्राचीन काल में कोशल के नाम से जाना जाता था। कोशल की राजधानी अयोध्या थी। ‘अवध’ का नाम अयोध्या से पड़ा और मेरा परम सौभाग्य है कि मेरा जन्म अवध की पावन भूमि अयोध्या में हुआ। जहाँ की विशेषता कला और संस्कृति का संगम अनन्त भण्डार विश्वविख्यात है। भारत की लोक कलाएँ विश्व की सबसे प्राचीन धरोहरों में से एक बहुरंगी, विविध और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। यहाँ की अनेक जातियों और जनजातियों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही पारम्परिक कलाओं को लोक कला के नाम से जाना जाता है। अवध में आलेखित चित्र मांगल्य के प्रतीक होते हैं। हमारे अवध की संस्कृति मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी हैं। यहाँ की संस्कृति में लोक कला बसती है, यहाँ के त्योहार लोक कला के बिना अधूरे हैं। एक वर्ष में बारह महीनों के अलग-अलग त्योहार होते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का प्रारम्भ चैत्र मास से शुरू होता है। अवध में इस माह में नव वर्ष का उत्सव मनाते हैं। इसी माह में वासन्ती नवरात्रि में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी का जन्म उत्सव मनाते हैं।
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Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Main Aryaputra Hoon (HB)
Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनMain Aryaputra Hoon (HB)
‘‘हे आर्य! कोई बाहरी आक्रमणकारी जब किसी अन्य देश में प्रवेश करता है तो बाहर से भीतर आता है या भीतर से बाहर जाता है?’’
‘‘यह कैसा प्रश्न हुआ, आर्या! स्वाभाविक रूप से बाहर से भीतर
आता है।’’
‘‘और इसी स्वाभाविक तर्क के आधार पर ही मैं भी एक प्रश्न पूछना चाहूँगी। अगर यह मान लिया जाए कि हम आर्य बाहर से आए थे तो पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सर्वप्रथम सिंधु के तट पर बसना चाहिए था और फिर पूरब दिशा की ओर बढ़ना चाहिए था। लेकिन वेद और पुरातत्त्व के प्रमाण कहते हैं कि हम आर्य पहले सरस्वती के तट पर बसे थे, फिर सिंधु की ओर बढ़े। यही नहीं, सरस्वती काल से भी पहले हम आर्यों का इतिहास विश्व की प्राचीनतम नगरी शिव की काशी और मनु की अयोध्या से संबंधित रहा है। और ये दोनों नगर भारत भूखंड के भीतर सरस्वती नदी की पूरब दिशा में हैं अर्थात् हम आर्य पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बढ़े थे।…तो फिर ये कैसे बाहरी (?) आर्य थे जो भीतर से बाहर (!!) की ओर बढ़े थे।…झूठ के पाँव नहीं होते हैं आर्य, ये झूठे इतिहासकार आपके प्रामाणिक प्रश्नों के उत्तर क्या ही देंगे, जब ये मेरे इस सरल तर्क और सामान्य तथ्य पर बात नहीं कर सकते।’’
‘‘असाधारण तर्क आर्या!’’SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Main Chanakya Bol Raha Hoon
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रMain Chanakya Bol Raha Hoon
विशाल साम्राज्य खड़ा करनेवाले चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु तथा विश्व-प्रसिद्ध आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य बचपन में अन्य बालकों से भिन्न एक असाधारण बालक थे। उनके पिता चणक एक शिक्षक थे, इसलिए चाणक्य भी अपने पिता का अनुसरण करके शिक्षक बनना चाहते थे। उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशास्त्र की शिक्षा ग्रहण की। इसके पूर्व उन्होंने बचपन में ही वेद, पुराण इत्यादि वैदिक साहित्य का अध्ययन कर लिया था। उनका ग्रंथ ‘चाणक्य नीति’ साहित्य की अमूल्य निधि है।
आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन में जो कहा, वह इतिहास बन गया। उनके कथन उदाहरण बन गए। उनके कथन उस काल में जितने महत्त्वपूर्ण थे, आज भी वे उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका एक-एक कथन अनुभवों की कसौटी पर कसा खरे सोने जैसा है।
2,300 वर्ष पहले लिखे गए चाणक्य के ये शब्द आज भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं। अगर उनकी राजनीति के सिद्धांतों का थोड़ा भी पालन किया जाए तो कोई भी राष्ट्र महान्, अग्रदूत और अनुकरणीय बन सकता है।
आचार्य चाणक्य के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, कूटनीतिक तथा सभी प्रासंगिक विषयों के प्रेरणाप्रद सूत्र वाक्यों का प्रामाणिक संकलन।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Main Hoon Bharatiya
यह पुस्तक एक पुरातत्त्वविद् की आत्मकथा है, जिन्हें अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण में कार्य करने का अवसर मिला। यह पुस्तक एक प्रेरणादायी सामग्री के रूप में सामने आती है, जिसमें यह वर्णन है कि किस प्रकार उन्होंने मार्क्सवादी इतिहासकारों की संगठित ताकत का मुकाबला उनके ही गढ़ में किया, कैसे एक अकेले व्यक्ति ने साम्राज्य से भिड़ंत की। भारतीय पुरातत्त्व विभाग किस प्रकार अपने आपको प्रस्तुत करे, इस संबंध में उनके सुझाव सामान्य जन में नई सोच पैदा करते हैं और भविष्य में इस विभाग की योजना बनानेवालों को दिशा-निर्देश देते हैं। वे इस बात पर बल देते हैं कि इस विभाग की अपार संभावनाओं को एक के बाद एक आनेवाली सरकारों ने भयंकर रूप से अनदेखा किया है।
किसी सक्रिय पुरातत्त्वविद् की पहली प्रकाशित डायरी होने के कारण यह इस विषय की बारीकियों पर रोचक अंतर्दृष्टि देती है और स्पष्ट रूप से बताती है कि एक पुरातत्त्वविद् को किस प्रकार धार्मिक तथा क्षेत्रीय पक्षपातों से ऊपर उठना चाहिए।
भारतीयता और राष्ट्रवाद का बोध जाग्रत् करनेवाली पठनीय कृति।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Main Subhash Bol Raha Hoon
नेताजी सुभाष चंद्र बोस महान् देशभक्त थे। ब्रिटिश दासता से मुक्ति और पूर्ण स्वातंत्र्य उनका लक्ष्य था। बर्लिन रेडियो से एक प्रसारण में उन्होंने कहा था, “अपने जीवन की अंतिम साँस तक मैं मातृभूमि की सेवा करता रहूँगा और उसके लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने से न झिझकूँगा। मेरे लिए भारत का हित सर्वप्रिय है, चाहे मैं संसार के किसी भी भाग में हूँ।”
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ के द्वारा स्वतंत्रता-सेनानियों में आजादी का महामंत्र फूँकनेवाले नेताजी सुभाष को भारतीय संस्कृति में अटूट विश्वास था। वे कहते थे कि मैं उन लोगों में से नहीं हूँ, जो आधुनिकता के जोश में अपने अतीत के गौरव को भूल जाते हैं। हमारे पास विश्व को देने के लिए दर्शन, साहित्य, कला और विज्ञान में बहुत कुछ है और सारा संसार हमारी ओर टकटकी लगाए देख रहा है।
ऐसे अमर बलिदानी, राष्ट्रभक्त और क्रांतिकारी विचारक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की चिंतनधारा से अपने देश की होनहार छात्र-युवा पीढ़ी को परिचित-प्रेरित कराने के शुभ संकल्प के साथ यह संकलन प्रस्तुत है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियां
Main Vidhyalay Bol Raha Hoon
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियांMain Vidhyalay Bol Raha Hoon
मैं विद्यालय बोल रहा हूँ :
प्रस्तुत लेखनी मेरे जीवन की उस यात्रा का वर्णन है, जिसका कर्ता भी मैं (विद्यालय) हूँ और कारक भी मैं (विद्यालय) ही हूँ। मैं, शिक्षक, विद्यार्थी, भवन एवं अभिभावक नामक चार महत्त्वपूर्ण स्तम्भों के सामंजस्य की कहानी भी हूँ तो वर्तमान दौर में लड़खड़ाते उसी सामंजस्य की दुहाई भी हूँ। इस यात्रा में मेरे सुंदर से उपवन का विश्लेषण भी है एवं बंजर होती भूमि का अन्वेषण भी है। मेरे विविध आयामों का प्रस्तुतिकरण भी है तो भीतर छिपी असीमित संभावनाओं का प्रकटीकरण भी है। बदलते वक्त में व्यापक हो रहे मेरे परिवेश का प्रकट स्वरूप भी है तो बदलाव की संकीर्णताओं से मेरे भीतर उपजे आवेश का भयावह रूप भी है। मुझमे छिपी संस्कारों की सुहास का प्रतिफल भी है तो मेरे भीतर पनप रही व्यसन जैसी कुरीतियों का दावानल भी है। अविद्या से मिलने वाले भौतिक संसाधनों के महत्व का गहन चिंतन भी है तो विद्या के अभाव में लुप्त हो रहे मानवीय मूल्यों का मानस मंथन भी है। मेरे अस्तित्व की खोज ही इस लेखन का मूल है जो मुझे और मेरे चारों स्तम्भों को मेरे अस्तित्व का बोध कराती है।SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Govindram Hasanand Prakashan, इतिहास
Major (80%) Role of Arya Samaj in Freedom Strugle of Bharat
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Govindram Hasanand Prakashan, इतिहासMajor (80%) Role of Arya Samaj in Freedom Strugle of Bharat
Major (80%) Role was played by the members of Arya Samaj movement for the independence of Bharatvarsh from the British rule.This book is dedicated to those brave soldiers of Arya Samaj, who followed the foot prints of founder of Arya Samaj Maharishi Dayanand Saraswati.These men and women members of Arya Samaj of that time, sacrificed their lives, their livelihood, suffered the tortures of various jails including Cellular jail ( Kala Pani jail) in Andman island instead of comforts of their family homes. They did not worry about the welfare of their loved ones after they had gone.No country can achieve anything like independence, without the massive support of their citizens. Indian National Congress party, All-India Muslim League and others made for the remaining 20%. But minorities (20%) seem to take full credit of Independence of Bharat with no mention of majority (80%) participants of Arya Samaj movement. How unfair?We have collected all the available facts, available till now to prove the majority role played by Arya Samaj.We sincerely request the present Government of Bharat to give long over due recognition of this true fact and oblige members of the Arya Samaj movement.Is it too much to ask for? -Narendra Kumar
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Hindi Books, Rajpal and Sons, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Manas Ka Hans
मानस का हंस” लेखक अमृतलाल नागर का प्रतिष्ठित बृहद उपन्यास है। इसमें पहली बार व्यापक कैनवास पर “रामचरितमानस” के लोकप्रिय लेखक गोस्वामी तुलसीदास के जीवन को आधार बनाकर कथा रची गई है, जो विलक्षण के रूप से प्रेरक, ज्ञानवर्धक और पठनीय है। इस उपन्यास में तुलसीदास का जो स्वरूप चित्रित किया गया है, वह एक सहज मानव का रूप है। यही कारण है कि “मानस का हंस” हिन्दी उपन्यासों में ‘क्लासिक’ का सम्मान पा चुका है और हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि माना जाता है। नागर जी ने इसे गहरे अध्ययन और मंथन के पश्चात अपने विशिष्ट लखनवी अन्दाज़ में लिखा है। बृहद होने पर भी यह उपन्यास अपनी रोचकता में अप्रतिम है।
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Gita Press, रामायण/रामकथा
Manas Piyush (Set of 7 Volumes)
माहात्मा श्री अंजनी नन्दन जी शरण के द्वारा सम्पादित “मानस-पीयूष” श्रीरामचरितमानस की सबसे बृहत् टीका है। यह महान ग्रन्थ ख्यातिलब्ध रामायणियों, उत्कृष्ट विचारकों, तपोनिष्ठ महात्माओं एवं आधुनिक मानसविज्ञो की व्याख्याओं का एक साथ अनुपम संग्रह है। आज तक के समस्त टीकाकारों के इतने विशद तथा सुसंगत भावों का ऐसा संग्रह अत्यंत दुर्लभ है। भक्तों के लिये तो यह एकमात्र विश्रामस्थान तथा संसार- सागर से पार होने के लिये सुन्दर सेतु है। विभिन्न दृष्टियों से यह ग्रन्थ विश्व के समस्त जिज्ञासुओं, भक्तों, विद्वानों तथा सर्वसामान्य के लिये असीम ज्ञान का भण्डार एवं संग्रह तथा स्वाध्याय का विषय है। आफसेट की सुन्दर छपाई, मजबूत जिल्द तथा आकर्षक लेमिनेटेड आवरण में उपलब्ध।
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Akshaya Prakashan, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
MANDUKYA UPANISD and PRASNA UPANISAD
MANDUKYA, though it is the smallest UPANISD – it consists of only twelve short passages – it encompasses the entire range of human consciousness. It describes beautifully all the states of consciousness along with the discipline – Sadhna to raise our consciousness from the lowest to the highest, culminating in full attainment of the Self-Atman or Brahman.
The main subject discussed in the Prasna Upnisad that of Prasna (The Primal Energy) in the form of four questions. The fifth question is about Pranava. In it we get the indication about the Sadhana spiritual discipline to realise the ultimate Truth. The last question is about the Goal, about the Being whom we have to discover in ourselves.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Manik Raitang ki Bansuri
‘मानिक रायतंग की बाँसुरी’ डॉ. सुनीता की बच्चों और किशोर पाठकों के लिए लिखी गई बत्तीस अनूठी और भावनात्मक कहानियों का संग्रह है, जिनमें लोकजीवन की सुगंध है तो साथ ही दादी-नानी की कहानियों सरीखा अद्भुत रस और आकर्षण भी। डॉ. सुनीता बच्चों की जानी-मानी कथाकार हैं, जिनकी बाल कहानियाँ अपनी सादगी और सरलता के कारण सीधे बच्चों के दिलों में उतर जाती हैं। वे जिस भी कथानक को उठाती हैं, उसे मन के भावों में पिरोकर इतनी शिद्दत से लिखती हैं कि हमारा मन भी कहानी के पात्रों के साथ ही कभी हँसता तो कभी उदास हो जाता है और कभी मस्ती में भरकर खुशी और उल्लास के गीत भी गाता है।
‘मानिक रायतंग की बाँसुरी’ संग्रह की हर कहानी का अलग रंग, अलग अंदाज, अलग खुशबू है। बच्चे और किशोर पाठक ही नहीं, बड़े भी इन कहानियों से एक विशेष जुड़ाव महसूस करेंगे। वे इनमें बहुत कुछ ऐसा पाएँगे, जिनसे उनका जीवन महक उठेगा और उनमें औरों के लिए कुछ करने की प्रेरणा उत्पन्न होगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manu Ki Drishti Se Hindu Samaj
समाज को मनु की दृष्टि से देखना अपने आप में एक नया अनुभव है। लंबे समय तक भारतीय समाज को बाँधकर रखनेवाले मनु पर चतुर्दिक होनेवाले वैचारिक प्रहार यह सोचने पर विवश करते हैं कि मनु की समीक्षा इस युग में आवश्यक है। इस पुस्तक को लिखते हुए यह उद्देश्य बिलकुल भी नहीं है कि मनु कि व्यवस्था को पुनः लाने का प्रयास किया जाए। किंतु लेखिका का यह उद्देश्य अवश्य है कि मनु, और इसी बहाने से प्राचीन भारतीय दर्शन को देखने कि एक नई दृष्टि दी जाए। अल्पज्ञ, भारतीय भाषाओं तथा संस्कृति से अनभिज्ञ पाश्चात्य (तथाकथित) भारतविदों के पूर्वग्रहयुक्त ग्रंथों और उनकी टिप्पणियों के आधार पर भारतीय दर्शन के मूल्यांकन को प्रवृत्ति पहले ही बहुत हानि कर चुकी है। अब इससे हटकर इस सबको देखने की आवश्यकता है। मनु की दृष्टि को पूरा समझने के लिए बहुत कुछ वह भी समझना पड़ता है, जो उनसे अनकहा रह गया है । बीच के बिंदु भरने के लिए इस पुस्तक में उनके समकालीन, पूर्व तथा परवर्ती ग्रंथों से संदर्भ भी लिये गए हें, जैसे अर्थशास्त्र, महाभारत, रामायण, कुछ उपनिषद्, पुराण, वेद आदि। आशा है यह पुस्तक भारत के प्राचीन समाज तथा जीवन-मूल्यों को देखने की नई दृष्टि की संभावना प्रस्तुत करने के उद्देश्य को पूर्ण करेगी
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Prabhat Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti (HB)
मनुष्य ने जब समाज व राष्ट्र्र के अस्तित्व तथा महत्त्व कौ मान्यता दी, तो उसके कर्तव्यों और अधिकारों की व्याख्या निर्धारित करने तथा नियमों के अतिक्रमण करने पर दण्ड व्यवस्था करने की भी आवश्यकता उत्पन्न हुई । यही कारण है कि विभिन्न युगों में विभिन्न स्मृतियों की रचना हुई, जिनमें मनुस्मृति को विशेष महत्व प्राप्त है । मनुस्मृति में बारह अध्याय तथा दो हज़ार पांच सौ श्लोक हैं, जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति, संस्कार, नित्य और नैमित्तिक कर्म, आश्रमधर्म, वर्णधर्म, राजधर्म व प्रायश्चित्त आदि अनेक विषयों का उल्लेख है। ब्रिटिश शासकों ने भी मनुस्मृति को ही आधार बनाकर ‘ इण्डियन पेनल कोड ‘ बनाया तथा स्वतन्त्र भारत की विधानसभा ने भी संविधान बनाते समय इसी स्मृति को प्रमुख आधार माना । व्यक्ति के सर्वतोमुखी विकास तथा सामाजिक व्यवस्था को सुनिश्चित रूप देने व व्यक्ति की लौकिक उन्नति और पारलौकिक कल्याण का पथ प्रशस्त करने में मनुस्मृति शाश्वत महत्त्व का एक परम उपयोगी शास्त्र मथ है । वास्तव में मनुस्मृति भारतीय आचार-संहिता का विश्वकोश है, जो भारतीय समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
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Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Manusmriti Aur Adhunik Samaj
Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Manusmriti Aur Adhunik Samaj
‘मनुस्मृति’ सामाजिक व्यवस्था, विधि, न्याय एवं प्रशासन-तंत्र पर विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है, जो विद्वान् महर्षि मनु द्वारा संस्कृत की पद्यात्मक शैली (श्लोकों) में लिऌा गई है। इस ग्रंथ में मनु ने तत्कालीन समाज में प्रचलित कुरीतियों एवं मनुष्य के स्वभाव का अति सूक्ष्म परिवेक्षण कर मानव-समाज को सुव्यवस्थित, सुऌखी, स्वस्थ, संपन्न, वैभवशाली एवं सुरक्षित बनाने हेतु विविध नियमों का प्रावधान किया है, ताकि नारी व पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग, विद्वान् व अनपढ़, स्वस्थ व विकलांग, संपन्न व गरीब, सभी सऌमान एवं प्रतिष्ठा के साथ रह सकें तथा समाज और देश की चतुर्मुऌा उन्नति में अपना प्रशंसनीय योगदान करने में सफल हों।
मनुस्मृति किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। यह वास्तव में मानव-धर्म की पुस्तक है तथा समाज की तत्कालीन स्थिति से परिचित कराती है। समाज की सुव्यवस्था हेतु मनुष्यों के लिए जो नियम अथवा अध्यादेश उपयुत समझे, मनु ने इस मानव-धर्म ग्रंथ में उनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इसमें मानवाधिकारों के संरक्षण पर अनेक श्लोक हैं। मनुस्मृति में व्यतियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुसार उनके कर्म निर्धारित किए गए हैं तथा कर्मानुसार ही प्रत्येक व्यति के अधिकारों, कर्तव्यों, उारदायित्वों एवं आचरणों के बारे में स्पष्ट मत व अध्यादेश अंकित हैं।
सरल-सुबोध भाषा में समर्थ-सशत-समरस समाज का मार्ग प्रशस्त करनेवाला ज्ञान-संपन्न ग्रंथ।
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Hindi Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti ka Punarmulyankan
यह सर्वविदित और सिद्ध तथ्य है कि प्राचीन संस्कृत साहित्य के अनेक ग्रन्थों में समय-समय पर प्रक्षेप होते रहे हैं। मनुस्मृति, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत, निरुक्त, चरक-संहिता, पुराण आदि इसके प्रमाणसिद्ध उदाहरण हैं। प्राचीन ग्रन्थों में प्रक्षेप होने के अनेक कारण रहे हैं। उनमें से एक कारण यह भी है कि उस ग्रन्थ-विशेष की परम्परा के अर्वाचीन व्यक्ति अपने स्वतन्त्र ग्रन्थ न लिखकर उस परम्परा के प्रचलित प्रसिद्ध ग्रन्थ में ही परिवर्तन-परिवर्धन, निष्कासन-प्रक्षेपण करते रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में मनु और मनुस्मृति विषयक पूर्व स्थापित उन एकांगी, समीक्षाओं, भ्रमों और भ्रान्तियों पर विचार करके उनका पुनर्मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि प्रमाणाधारित पुनर्मूल्यांकन तटस्थ पाठकों को स्वीकार्य प्रतीत होंगे और पूर्वाग्रह-गृहीत पाठकों को भी इसके निर्णय पुनर्विचार के लिए बाध्य करेंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Marwad ke Thikanon ka Itihas
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिMarwad ke Thikanon ka Itihas
मारवाड़ के ठिकानों का इतिहास (ठिकाना रोहिट के विशेष संदर्भ में, 1706-1950 ई.) :
राजस्थान के गौरवमय इतिहास में राठौड़ वंश का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिनकी साहित्य, इतिहास और संस्कृति के विभिन्न सौपानों में भूमिका बड़ी ही महत्त्वपूर्ण रही। इतिहास के आलोक में देखने पर ज्ञात होता है कि मण्डोर के राव रणमल के सुयोग्य आत्मज एवं जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के अनुज चांपा से राठौड़ों की चांपावत शाखा का प्रादुर्भाव हुआ था।
मारवाड़ के इतिहास में चांपावत राठौड़ों की विशेष भूमिका रहने के फलस्वरूप यहाँ के उमरावों में उन्हें शीर्ष स्थान प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। जोधपुर की स्थापना के पीछे 200 वर्ष का संघर्षमय इतिहास रहा। राव रणमल के समय राठौड़ों के इतिहास ने एक नई करवट ली। मारवाड़ के राठौड़ों की बढ़ती हुई शक्ति और वर्चस्व के फलस्वरूप मेवाड़ के महाराणा कुंभा को चित्तौड़ की बागडोर संभालने में सफलता मिली। चांपाजी ने कापरड़ा में अपना ठिकाना स्थापित कर अपने वंशजों के उज्ज्वल भविष्य की नींव डाली। कापरड़ा गांव में आज भी उनकी छतरी विद्यमान है जो उनकी गौरवगाथाओं की याद दिलाती है।
चांपाजी के वंशजों का खूब वंश विस्तार हुआ, जिससे कई ठिकानों का निर्माण भी हुआ, जिनमें रोहिट ठिकाना भी प्रमुख रूप से है। रोहिट के चांपावत राठौड़ों ने जहाँ राज्य की ओर से लड़े जाने वाले युद्धों में रणकुशलता का परिचय दिया वहीं ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया।
मारवाड़ के उमरावों में चांपावत राठौड़ों का विशिष्ट स्थान रहा था। गोपालदास चांपावत और उसके 8 पुत्रों ने अलग-अलग युद्ध अभियानों में अपने प्राणों की आहुतियां दी थीं। शिलालेखों की खोज कार्यों में कापरड़ा, रणसी, हरसोलाव, रोहट, पाली और आऊवा की शोध यात्राएं और वहाँ से असंख्य शिलालेख जो काल के गरत में समा चुके थे उन्हें प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया।
डाॅ. भगवानसिंह जी शेखावत द्वारा रोहिट ठिकाने पर किया गया शोध कार्य ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ठिकाने की इकाई को न सिर्फ इसमें स्पष्ट किया गया है बल्कि मारवाड़ में यहाँ के उमरावों की भूमिका को समझने के साथ ही ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला है, जिसमें सहायक सामग्री के रूप में रोहिट ठिकाने की बहियों का भरपूर उपयोग किया गया है। मैं इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशा करता हूँ कि ऐसे शोध कार्य लगोलग प्रकाश में आने से न सिर्फ मारवाड़ बल्कि राजस्थान के इतिहास में उमरावों की भूमिका को समझने में महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Marwar ka Puratatva aur Sthapatya
मारवाड़ का पुरातत्व और स्थापत्य : प्रस्तुत पुस्तक मारवाड़ का पुरातत्व और स्थापत्य सम्पदा में लेखक ने मारवाड़ की राजधानी जोधपुर एवं इसके आस-पास के क्षेत्र में फैली हुई स्थापत्य वैभव की कलात्मक सम्पदा उजागर किया है। अत्यन्त सुन्दर शैली में चित्रों के साथ प्राचीन मारवाड़ की स्थापत्य सम्पदाएं जिनमें मन्दिर, हवेलियाँ, विभिन्न प्रासादों एवं विशेषकर कुएँ, बावड़ियाँ, तालाबों और झालरों (सीढ़ीदार कुँए) जैसे प्राचीन स्मारकों को इस पुस्तक में संग्रहीत किया गया है।
इस पुस्तक की वैशिष्ट्या यह है कि इसमें मारवाड़ की स्थापत्य कला परम्परा के क्रमिक विकास को दर्शाते हुये सभी प्रकार के स्थापत्य पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक को शोध प्रविधियों का अनुसरण करते हुये चार भागों में बाँटा गया हैं, क्रमानुसार ऐतिहासिक भवन, ऐतिहासिक हवेलियाँ, मन्दिर स्थापत्य एवं जल स्रोत स्थापत्य। इन चारों मुख्य भागों में तद्सम्बन्धी विवेचन के साथ ही जोधपुर नगर के विकास के साथ स्थापत्य सम्पदाओं के निर्माण कार्य के क्रम का विस्तारशः वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
इस पुस्तक की भूमिका में लेखक ने सभी प्रकार की स्थापत्य श्रेणियों का विस्तार के साथ उल्लेख किया है तथा उसमें प्राचीन काल की परम्पराओं से लेकर वर्तमान तक के स्थापत्य व वास्तु के इतिहास सम्बन्धी विभिन्न बिन्दुओं को समझाने का सराहनीय प्रयास किया है। ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगरी जोधपुर में लेखक ने मारवाड़ की राजधानी की स्थापना से लेकर, वर्तमान काल तक हुये इस नगर के विस्तार एवं नगर के विभिन्न मोहल्लों, चैकों, गलियों के सांस्कृतिक स्वरूप को बड़े ही सुन्दर ढंग से लिपिबद्ध किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में न केवल वर्तमान दुर्ग अपितु प्राचीन मण्डोर के दुर्ग एवं वहाँ के देवलों से सम्बन्धित स्थापत्य व उनके अवशेषों को भी वर्णित किया है। मारवाड़ के पूर्व शासकों के स्मारकों का शोधपूर्ण लेखन स्थापत्य कला का वर्णन बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य है। जोधपुर नगर का परकोटा व ऐतिहासिक द्वारों का इतिहास भी इस पुस्तक में होने से यह पुस्तक मारवाड़ के स्थापत्य इतिहास का आधार ग्रन्थ प्रमाणित होगा। इसका प्रमुख कारण है कि लेखक ने स्थापत्य के सौन्दर्य को ही नहीं वरन् प्रत्येक स्थापत्य के क्रमबद्ध चरणों को भी स्पष्ट रूप से विवेचित किया है।
अतः समग्र रूप से देखा जाय तो यह पुस्तक मारवाड़ की स्थापत्य सम्पदा कला, साहित्य, संस्कृति व स्थापत्य का समन्वित इतिहास है। हमारी पुरा सम्पदा के संरक्षण में यह पुस्तक आदर्श मागदर्शन सिद्ध होगी। पुरा सम्पदा पर जिज्ञासुओं के लिये एक आदर्श ग्रन्थ होगा।SKU: n/a -
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Marwar Ka Raniwas Aur Nari Jeevan
Marwar Ka Raniwas Aur Nari Jeevan
मारवाड़ की राजनीति में जोधपुर के राजा-महाराजाओं ने अपना द्वितीय योगदान दिया है। उन्होंने मारवाड़ की उन्नति व प्रगति के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, लेकिन उनके इन कार्यों के पीछे उन रानियों, महारानियों, पड़दायतों, पासवानों का बड़ा योगदान था, जो जनानी ड्योढी में निवास करती थीं। Marwar Raniwas Nari Jeevan
प्रस्तुत पुस्तक का उद्देश्य मारवाड़ में पहने जाने वाले वस्त्र व आभूषण जो इसकी वास्तविक संस्कृति के परिचायक हैं, के विविध पक्षों पर प्रकाश डालना है।
राजा-महाराजाओं ने न केवल राज्य के विकास व उन्नति के लिए कार्य किया, अपितु अपने राज्य में विभिन्न कलाकारों व शिल्पियों का भी पूरा प्रोत्साहन दिया।
accordingly पुस्तक में बताया गया है कि किस प्रकार राजवंश में सांस्कृतिक गतिविधियों के संचालन के केन्द्र रूप में जनाना महलों का महत्त्व था। राजपरिवार के लोगों के जीवन के समस्त संस्कार जीवनयापन की पद्धति एवं उनसे जुड़ी सामाजिक धार्मिक भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति इन जनाना महलों में होती थी। मारवाड़ का रनिवास पर्दे में होने के उपरान्त भी बहुत अधिक समृद्ध था।
मारवाड़ का रनिवास और नारी जीवन
किस प्रकार मारवाड़ नरेश अपने यहां विभिन्न कारखानों द्वारा इन कर्मचारियों को न केवल रोजगार देते थे, बल्कि उनके द्वारा किये गये कार्यों के प्रोत्साहन के लिए उचित इनाम व सम्मान भी देते थे। होनहार व उत्कृष्ट कारीगरों को मारवाड़ में बसने के लिए पूरा गाँव इनाम में देना यह मारवाड़ में कारीगरों के कला को सम्मान देने का बेहतरीन उदाहरण है। surely यहां के पुरालेखीय दस्तावेजों में मारवाड़ रनिवास की बहियाँ जो राजलोक की बहियाँ कहलाती हैं। वे 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्राप्त होती हैं। बहियों व तत्कालीन लघुचित्र शैलियों के माध्यम से वस्त्रों एवं आभूषण के बारे में विस्तृत जानकारिया° प्राप्त होती हैं। जनानी ड्योढी की राजमाता व पटरानी की व्यय व्यवस्था हेतु जागीरी निश्चित की जाती थी। इन जागीरों के गा°वों की आय एवं व्यय का सम्पूर्ण हिसाब-किताब रानियों, महारानियों के स्वयं के कामदार करते थे।
Marwar Ka Raniwas Aur Nari Jeevan
तत्कालीन समय के वस्त्र व आभूषण कितने प्रकार के होते थे, उनके बनावट, रंग, सजावट आदि के साथ उनके वस्त्रों व आभूषणों को किन व्यापारियों व सुनारों से खरीदा गया, इसका वर्णन भी हमें मिलता है। at this time उस समय के व्यापारियों, कारीगरों को किस प्रकार मेहनताना दिया जाता था, उनकी आर्थिक स्थिति कैसी थी, के साथ-साथ राज्य की ओर से उन्हें समय-समय पर दिये जाने वाले पारितोषिक की भी जानकारी मिलती है।
all in all यह शोध कार्य नये तथ्यों को उजागर करने के साथ-साथ इसकी रोचक सामग्री, जिसका विश्लेषण करने का मैंने प्रयास किया है, अन्य शोधार्थियों के लिये उपयोगी व रुचिकर होगी। वर्तमान समय में जब वस्त्र व आभूषणों के नित नये प्रकार देखने को मिल रहे हैं, ऐसे समय में बहियों में वर्णित वस्त्रों व आभूषणों की बनावट आज की आधुनिक फैशन व ज्वैलरी इंडस्ट्री के लिए बहुत उपयोगी होंगे।
राजस्थान का इतिहास यहाँ की महिलाओं और पुरुषों के वीरोचित गुणों, त्याग और बलिदान की गाथाओं के कारण जगत प्रसिद्ध है। यहाँ के वीरों राजा महाराजाओं ने मारवाड़ के विकास के लिये प्रत्येक क्षेत्र चाहे राजनैतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक प्रगति में अमूल्य योगदान दिया है। जनानी ड्योढ़ी में रहकर भी रानियों ने अपनी जागीर से मिले द्रव्य का सदुपयेाग करके अनेक प्रकार के जन- कल्याणकारी कार्य करवाये जैसे मन्दिर, कुएं, बावड़िया, झालरे, सराय जो आज भी उनकी उज्ज्वल कीर्ति को उजागर कर रही है।
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