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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Mazzini Charitra
नहीं-नहीं, राष्ट्र कभी मरते नहीं । ईश्वर पीड़ितों का रक्षक है । उसने मनुष्य को स्वाधीनता में साँस लेने के लिए उत्पन्न किया है । यदि तुम ठान लो तो समझो, देश स्वतंत्र हो ही गया । इससे अधिक प्रोत्साहक राष्ट्रमंत्र अन्य कौन सा है? एक बार मनुष्य ने ठान लिया कि मैं स्वाधीनता, स्वदेश और मानवता का परम भक्त हूँ फिर उसे स्वाधीनता, स्वदेश और मानवता के लिए लड़ना ही होगा, निरंतर आजीवन लड़ना होगा ।”
” मेरी इटली की जनसंख्या दो करोड़ है । यदि इन दो करोड़ लोगों ने मन में निश्चय किया तो विदेशियों के वे पचहत्तर हजार सिपाही उन्हें दबा थोड़े सकते हैं! दो करोड़ लोग और उनका सहायक ईश्वर! ऐसी स्थिति में इटली पलक झपकते ही विदेशी सत्ता को चूर-चूर कर देगी । ”— जोसेफ मैझिनी
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Meena Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांMeena Samaj ki Kuldeviyan
मीणा समाज की कुलदेवियां : मानव आदिकाल से ही शक्ति की उपासना करता आया है। शक्ति का आदि स्वरूप देवी है। यह आद्याशक्ति सनातन शक्ति प्रकृति है, समस्त जगत की उत्पत्ति उसी से हुई, वही विश्व की जननी है। प्रत्येक सम्प्रदाय में देवी की उपासना परम्परा रही है। भारतीय संस्कृति में देवी की महिमा प्रतिष्ठापित है तथा समाज में देवी पूजा की जड़े बहुत गहरी हैं। प्रत्येक कुल की अधिष्टात्री देवी को कुलदेवी के रूप में पूजने की यहाँ परम्परा रही है। इसी कारण हर कुल की अपनी कुलदेवी स्थापित है और वह उस कुल की वंश वृद्धि और समृद्धि की प्रदाता मानी जाती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रयास करके मीणा समाज की 51 कुलदेवियों के सम्बद्ध में जानकारी व परिचय दिया है, जो उत्कृष्ट अन्वेषण के आधार पर आधारित है। मीणा समाज के लिए और उनके गोत्रों की पृथक-पृथक कुलदेवियों सम्बन्धी यह विवरण उपयोगी और पठनीय हैै। इससे मीणा समाज के लोग अवश्य लाभान्वित होंगे।
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Meera Bai : Pramanik Jivani evam Mool Padawali
मीरा बाई : प्रामाणिक जीवनी एवं मूल पदावली : भक्तिमती मीरांबाई के प्रकाशित पदों में से कितने ही पदों की प्रामाणिकता को लेकर उहापोह बनी हुई थी। श्रीसिंहल ने भाषा और स्रोत की प्रामाणिकता के आधार पर मीरांबाई द्वारा रचित मूल पदों का संकलन और सम्पादन करके प्रथम बार सन् 2008 में ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ के नाम से सटीक छपवाया, जिसमें एक भी पद मौखिक परम्परा का नहीं है; सभी पद लिखित स्रोतों पर आधारित है। प्राचीनतम दो पद विक्रम संवत् 1631 के हैं। गुरुग्रंथ-साहब से विक्रम संवत् 1661 का पद लिया गया है। विक्रम संवत् 1642, 1695, 1701, 1713, 1727 आदि में लिखित ग्रंथों से 128 पद संकलित किए गए है। इस प्रकार, इस संकलन में मीराबाई द्वारा रचित 312 पदों के मूल रूप, संभावित रूप और वर्तमान में प्रचलित पाठ तथा अनेक पदों के उपलब्ध पाठांतर देकर उनकी टीका भी की गई है। टीका में व्याख्या और टिप्पणी भाग अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें अनेक सांशयिक ज्ञानों, वाक्यों, पंक्तियों का सप्रमाण, सविस्तार विवेचन है। ग्रंथ में मीराबाई की जीवनी से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों एवं साहित्यिक संदर्भों का विश्लेषण कर तर्कपूर्ण आंकलन प्रस्तुत किया गया है। जीवनी भाग में कई नए प्रामाणिक व इतिहासपुष्ट तथ्यों का उद्घाटन है। ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ का विद्वत समाज ने दिल खोलकर स्वागत किया। परिमाणतः पुस्तक 3-4 महिने में ही खत्म हो गई। सभी का सुझाव था कि पुस्तक पद्यात्मक न होकर शोधग्रंथ है। अतः इसका नाम शोधग्रंथ परक होना चाहिए। इसीलिए अब यह ग्रंथ ‘मीरांबाई: प्रामाणिक जीवनी एवम् मूल पदावली’ के नाम से प्रकाशित हो रहा है। मुझे विश्वास है कि श्रीसिंहल द्वारा अत्यंत परिश्रमपूर्वक निर्मित प्रस्तुत शोधपरक ग्रंथ साक्षात् भक्तिस्वरूपा मीराबाई की श्रीकृष्णार्पित प्रामाणिक जीवनी और उनके मूल पदों से संबंधित मतांतरों का निराकरण कर सकेगा।
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Meera Sudha Sindhu
मीरा सुधा सिन्धु : 16 विभागों में मीरा-पदों का विभाजन कर प्रत्येक विभाग की भूमिका तथा शब्दार्थ-भावार्थ सहित मीरा के पदों का सबसे बड़ा संग्रह, परम मीरा-भक्त स्वामी आनन्द स्वरूपजी ने सन् 1957 में ‘मीराँ-सुधा-सिन्धु’ ग्रन्थ का प्रकाशन ‘श्री मीराँ प्रकाशन समिति’, भीलवाड़ा द्वारा करवाया था। मीरा जैसी अनन्य कृष्णभक्त एवं साधिका की भक्ति में निहित अध्यात्म, दर्शन, भक्तिशास्त्र और दिव्यप्रेम के भावों को परम मीरा भक्त स्वामी आनन्दस्वरूपजी के अतिरिक्त केवल आचार्य रजनीश ही सही ढ़ंग से व्याख्यायित कर पाये हैं। संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण में दो-नये अध्याय जोड़े गये हैं :- (1) स्वामी आनन्द स्वरूपजी का जीवनवृत, तथा (2) ‘मीराँ-सुधा-सिन्धु’ ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय। चूँकि स्वामीजी द्वारा लिखित-सम्पादित मूल ग्रन्थ अब बाजार में उपलब्ध नहीं है, जबकि मीरा के अध्येताओं तथा शोधार्थियों के लिए तो यह ग्रन्थ मीरा को जानने का प्रवेश द्वार है, अतः सुधी पाठकों एवं अध्येताओं के हित में मीरा स्मृति संस्थान, चित्तौड़गढ़ ने राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर के सहयोग से इस ग्रन्थ के पुनः प्रकाशन का निर्णय किया है। हमें विश्वास है कि दो खण्डों में प्रकाशित यह ग्रन्थ अध्येताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
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English Books, Suggested Books, Vitasta Publishing, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
MENSTRUATION ACROSS CULTURES : THE SABARIMALA CONFUSION – A HISTORICAL PERSPECTIVE
-11%English Books, Suggested Books, Vitasta Publishing, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)MENSTRUATION ACROSS CULTURES : THE SABARIMALA CONFUSION – A HISTORICAL PERSPECTIVE
Menstruation across Cultures attempts to provide a detailed review of menstruation notions prevalent in India and in cultures from across the world. The world cultures covered in the book include Indic traditions like Hinduism, Buddhism, Jainism and Sikhism; ancient civilisations like Greece, Rome, Mesopotamia and Egypt; and Abrahamic religions of Judaism, Christianity, and Islam. Two themes of special focus in the book are: Impurity and Sacrality. While they are often understood as being opposed to each other, the book examines how they are treated as two sides of the same coin, when it comes to menstruation. This is especially true in Indic traditions and pre-Christian polytheistic traditions like Greco-Roman, Mesopotamian and Egyptian. Impurity and Sacrality complement each other to form a comprehensive worldview in these cultures. The book also examines how the understanding of impurity in Abrahamic religions differs from those of polytheistic cultures. As part of the examination of the sacrality attached to menstruation, a special focus has also been given to the deities of menstruation in polytheistic cultures and to what Ayurveda and Yoga say about this essential function in a woman’s physiology. Finally, a comparative study of menstrual notions prevalent in modernity is presented, along with a Do and Don’t dossier.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mer Kshatriya Jati ka Itihas
मेर क्षत्रिय जाति का इतिहास :
मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी जाति धर्म आदि तय हो जाते हैं। उस समय ना तो वह अपनी जाति के बारे में जानता है और ना ही अपने धर्म के बारे में। मनुष्यों के द्वारा ही धर्म और जातियों को बनाया गया।
हिन्दू धर्म में कर्म को प्रधानता दी गई है। यदि आप पुश्तैनी कर्म को छोड़कर अन्य कर्म अपनाते है तो उसी क्षण आपकी जाति बदल जायेगी। यह कर्म ही तो है जो नये-नये समाज का निर्माण करते आये है। वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र आदि का निर्माण कर्म के आधार पर ही तो हुआ है एवं इस कार्य प्रधान हिन्दू धर्म में किसी जाति के निर्माण में किसी दूसरी जाति या व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। यह तो अमूक जाति के महापुरुषों के कर्मों की देन है और आज उन्हीं महापुरुषों के वंशज वर्तमान जाति में निवास करते हैं।
भारत देश में हिन्दू धर्म की प्रधानता है। हिन्दू धर्म में पहले तो कर्म के आधार पर वर्ण और जातियाँ तय होती थी लेकिन अब हिन्दू धर्म का विभाजन दलित और स्वर्ण के रूप में उभर कर सामने आया है। आज़ादी के बाद नये वर्गों सामान्य वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियाँ आदि का निर्माण हिन्दू धर्म के लिए घातक साबित हुआ है।
कोई भी जाति दलित नहीं है, उनके कर्म ही उनको दलित बनाते हैं। कोई भी जाति स्वर्ण नहीं है, उनके कर्म ही उनको पूजनीय बनाते हैं। इस देश में कोई दलित नहीं कोई स्वर्ण नहीं है। राजनीति ने हिन्दू समाज को बिखेर दिया है। जातियों का जब मैनें अध्ययन किया तो चैकाने वाले तथ्य सामने आये।
मीणा जाति मध्यप्रदेश के श्योपुर एवं आस-पास के जिलों में अन्य पिछड़ा वर्ग में है एवं राजस्थान की तरह अनुसूचित जनजाति में नहीं। उनके साथ ऐसा कोई भेद भाव नहीं किया जाता है। इतिहास की नज़र से देखा जाए तो मीणा जाति ने हाड़ाओं से पहले हाड़ौती व कछवाहों से पहले ढुँढाढ़ पर राज्य किया था।
कोली (शाक्य, महावर) जाति राजस्थान राज्य में अनुसूचित जाति में आती है लेकिन गुजरात राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में गुजरात के कोली समाज ने योगदान दिया था। मांधाता कोली का गुजरात में राज्य हुआ करता था। उत्तराखण्ड में कोली राजपूत होते हैं। भगवान बुद्ध स्वयं क्षत्रिय राज्य कोली वंश के राजकुमार थे।
गुर्जर जाति कश्मीर में अनुसूचित जनजाति में शामिल है जबकि राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग में है। इतिहास में गुर्जर जाति को प्रतिहार राजवंश से जोड़कर देखा जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग ब्राह्मण होते हैं, जो सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कोटा के ग्रामीण अंचल में वैष्णव बाबाजी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है। राजपूत सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कई क्षेत्रों के राजपूत जैसे सोंधिया (मालवा), रावत (मेवाड़-मारवाड़) राजपूत अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है।
ऐसी ही कई सैकड़ों जातियाँ हैं, जो एक क्षेत्र में कथित दलित समुदाय का हिस्सा है तो अन्य क्षेत्रें में कथित स्वर्ण समाज के रूप में देखी गई हैं।
अगर इस बात को समझ लिया जाए तो दलित-स्वर्ण के झगड़े हमेशा के लिए समाप्त हो सकते हैं। कर्म से व्यक्ति दलित या स्वर्ण हो सकता है लेकिन जाति से कोई भी दलित या स्वर्ण नहीं हो सकता हैं।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Meri Shreshtha Kavitayen
कालजयी रचना ‘मधुशाला’ के रचयिता हरिवंशराय बच्चन हिन्दी के सबसे लोकप्रिय कवि हैं जिनकी गिनती बीसवीं सदी के अग्रगण्य कवियों में सबसे ऊपर है। इस संकलन को स्वयं बच्चन जी ने तैयार किया था। इसमें उन्होंने अपनी सभी काव्य रचनाओं में जो उनकी नज़र में श्रेष्ठ थीं-उन्हें इसमें सम्मिलित किया। अलग-अलग समय, परिस्थिति और जीवन के पड़ाव के विभिन्न रंगों को दर्शाती ये कविताएं कवि की सम्पूर्ण काव्य-यात्रा से परिचित कराती हैं।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Mewar ki Gaurav Gathayen
मेवाड़ की गौरव गाथाएँ : ‘मेवाड़’ शक्ति, शौर्य, पराक्रम एवं बलिदान के इतिहास का वह एक नाम है, जिसकी परम पावन माटी का कण–कण अपने में निहित पवित्रता का आभास कराता है और जन–जन अपने माथे पर गौरव–तिलक लगाने के लिए स्वतः प्रेरित होता है। स्मरण रहे कि हर युग में यहाँ का व्यक्ति मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण हेतु सदैव तत्पर रहा है। एक से बढ़कर एक बलिदानियों के कई स्वर्णिम पृष्ठ मेवाड़ के इतिहास से जुड़े है। पद्मावती का अद्भुत जौहर, पन्ना–कृष्णा का अमर त्याग, गोरा–बादल जैसे युवा व बाल योद्धाओं का युद्ध कौशल, भामाशाह का महादान तो अमरचन्द बड़वा का बलिदान आज सम्पूर्ण जगत के लिऐ प्रेरणा–स्रोत बना हुआ है।
पुस्तक के लखन एवं प्रकाशन का यही उद्देश्य है कि मेवाड़ की यह थाती जन–जन तक पहुँचे और विरोचित मूल्य का प्रकाश सर्वत्र बिखरे। साथ ही यह लिखते हुए भी हर्ष का अनुभव हो रहा है कि श्री तरुण देश–प्रदेश के सुनाम इतिहासकार के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार भी हैं, अतः प्रस्तुत गौरव गाथाओं में इतिहास के साथ–साथ साहित्य की अनुभूति का आनन्द भी मिलेगा। इसी आशा एवं विश्वास के साथ…SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mewar Thikana Dastavejo Ka Sarvekshan
मेवाड़ ठिकाना दस्तावेजों का सर्वेक्षण
संसार के सारे दीप बुझ जाते है, किन्तु साहस द्वारा इतिहास के भाल पर लिखी गई लिपि की ज्योति कभी मन्द नहीं होती। पुरालेखीय स्त्रोत इतिहास लेखन में विश्वसनीय माने जाते है क्योंकि इसका निर्माण करने वाले व्यक्ति घटनाओं के समकालीन एवं प्रत्यक्षदर्शी रहे होते है। accordingly इस पुस्तक में मुख्यतः मेवाड़ के ठिकानों से प्राप्त पुरालेखीय सामग्री को आधार बनाकर 16वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक के मेवाड़ के इतिहास के विभिन्न पक्षों का लेखन किया गया है। ठिकाना दस्तावेज किसी भी दृष्टि से अभिलेखागार में सुरक्षित सामग्री से कम नहीं है। also इस सामग्री का इतिहास लेखन में उपयोग करके इतिहास लेखन को प्रामाणिक बनाना आवश्यक है। इस ग्रन्थ में राजनैतिक इतिहास के साथ सामाजिक, धार्मिक, प्रशासनिक, सामन्त व उनके विशेषाधिकार, मेवाड़ की भूमि व्यवस्था व आपसी सम्बंधों को बतलाया गया है। Mewar Thikana Dastavej Sarvekshan
इस ग्रन्थ के माध्यम से इतिहासकारों का ध्यान ठिकाना दस्तावेज़ों की ओर आकृष्ट करने का प्रयास किया गया है। यदि समय रहते इनका उपयोग कर लेखन में सम्मिलित नहीं किया गया तो पुरामहत्त्व की सामग्री नष्ट हो जायेगी। पूर्व जागीरदारों के वंशज इसके महत्त्व से अपरिचित जान पड़ते हैं। so इसलिए इसे सुरक्षित एवं संरक्षित करने का प्रयास भी नहीं कर रहे। सरकार को इन्हें संकलित कर सुरक्षित करने का प्रयास किया जाना चाहिए, जिससे शोधार्थियों द्वारा इसका उपयोग किया जा सके तथा नये विषयों की जानकारी इतिहास में सम्मिलित कर उसे पुष्ट करने में मदद मिले। यही इस ग्रन्थ की उपलब्धि होगी।
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Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
MIS TEEN WALA
मंटो फ़रिश्ता नहीं, इन्सान है। इसीलिए उसके चरित्र गुनाह करते हैं। दंगे करते हैं। न उसे किसी चरित्र से प्यार है न हमदर्दी। मंटो न पैगंबर है न उपदेशक। उसका जन्म ही कहानी कहने के लिए हुआ था। इसलिए फ़्साद की बेरहम कहानियाँ लिखते हुए भी उस का कलम पर पूरी तरह काबू रहता था। मंटो की खूबी यह भी थी की वो चुटकी बजते लिखी जाने वाली कहानियाँ भी आज उर्दू-हिन्दी अफ़साने का एक महत्व्व्पूर्ण हिस्सा बन चुकी है। यह पुस्तक पाठक को मंटो के विभिन्न रंगो से रू-ब-रु करती है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Mission Kashmir
असम के बाद वर्ष 2003 में ले.जन. एस.के. सिन्हा जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल नुयक्त हुए। अपने छह वर्ष के कार्यकाल के दौरान कश्मीर समस्या के समाधान हेतु उन्होंने अपनी क्षमता और व्यापक अनुभव के बल पर क्या कुछ किया, प्रस्तुत पुस्तक में इसका विस्तृत वर्णन है।
आतंकवाद के चलते जम्मू एवं कश्मीर में भारत की अखंडता और प्रभुसत्ता की रक्षा करना चुनौतीपूर्ण कार्य था, अभी भी है। अपने कार्यकाल के दौरान किस तरह लेखक ने इन चुनौतियों का सामना किया, वहाँ के लोगों को विश्वास में लिया, यह एक लंबी कहानी है। उन्होनें यहाँ की राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। राज्य के कई मुख्यमंत्रियों से उनका आमना-सामना हुआ। लेखक ने इनके साथ अपने संबंधों, सहयोग और विरोधाभासों का खुलकर उल्लेख किया है।
धार्मिक, ऐतिहासिक, सैन्य, आर्थिक और जातीय—कश्मीर समस्या के इन विभिन्न आयामों के बीच वहाँ एक सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करना बेहद टेढ़ी खीर था। ऐसी स्थिति में उन्होंने कश्मीर में विद्रोह, आतंकवाद और छद्म युद्ध के दुष्चक्र को समझा और जाना कि धार्मिक कट्टरता ही यहाँ उग्रवाद की मुख्य जड़ है। उन्होंने लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का सार्थक प्रयास किया। उनके प्रयास से ही यहाँ कश्मीरियत को बल मिला। कश्मीर समस्या की वास्तविक सच्चाई और राज्य के सुरक्षा परिदृश्यों की जानकारी देती विचारप्रधान पुस्तक यह स्थापित करती है कि निस्संदेह कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और हमेशा रहेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Mr. M.K. Gandhi ki Champaran Diary
महात्मा गांधी को तब मिस्टर एम.के. गांधी या मिस्टर गांधी ही कहा जाता था। गांधी का चम्पारण पहुँचना एक युगांतरकारी घटना साबित हुई, पर यह प्रयोग कई मायनों में विलक्षण था। गांधी की स्वीकार्यता को बताने के साथ ही अन्याय सहनेवाले जीवंत समाज में प्रतिरोध की शक्ति के उभरने तथा खुद गांधी द्वारा अपनी पूरी ईमानदारी, निष्ठा, दम व समझ के साथ स्थानीय लोगों तथा समस्याओं से एक रिश्ता जोड़ने एवं उन हजारों-लाखों द्वारा झट से गांधी पर भरोसा करके उनको अपनाने की अद्भुत दास्तान भी है। यह अहिंसात्मक ढंग से जनता की भागीदारी और सत्य पर आधारित आंदोलन की अन्याय विरोधी शक्ति को रेखांकित करनेवाला पहला प्रयोग है।
गांधी पूरब से आए यानी कलकत्ते से और आखिर में पश्चिम अर्थात् अहमदाबाद निकल गए। कुल मिलाकर साढ़े नौ महीने चम्पारण में रहे। बाद में किसी भी आंदोलन में और किसी भी जगह पर उन्होंने इतना समय नहीं लगाया। जब अंग्रेजी सत्ता और निलहा जमात उनको चम्पारण जाने से रोक रहा था तथा टिकने नहीं दे रहा था, तब वे सबकी छाती पर मूँग दलते हुए वहीं बैठे रहे एवं अपने बाकी कामों की परवाह भी नहीं की।
नील के किसानों के शोषण के विरुद्ध शुरू हुए प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक चम्पारण आंदोलन की रोमांचक कहानी। रोज-रोज के सच्चे विवरणों के माध्यम से चम्पारण सत्याग्रह की पूरी कहानी।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Mrignayani
मानसिंह ने नाहर का बारीकी के साथ निरीक्षण किया। नाहर ने केवल एक तीर खाया था। राजा ने पूछा ‘नाहर की गरदन पर किसका तीर बैठा?’
निन्नी ने सिर झुका लिया। लाखी ने तुरंत सामने होकर उत्तर दिया, ‘निन्नी—मृगनयनी का।’
राजा ने दूसरा प्रश्न किया, ‘अरने के माथे पर बरछी किसकी खोंसी हुई है?’
लाखी बोली, ‘मृगनयनी की।’
‘वाह! धन्य हो!! तुम दोनों धन्य हो!!!’ मानसिंह के मुँह से निकला और उसने अपने गले से सोने का रत्नजडि़त हार निकालकर निन्नी के गले में डाल दिया।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Muhnot Nainsi Ki Khyat (Set of Vol.2)
मुँहणोत नैणसी की ख्यात (हिन्दी अनुवाद) :
राजस्थान के इतिहास का सर्वाधिक विश्वसनीय स्त्रोत ‘मुँहणोत नैणसी री ख्यात’ है। जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह के देश दीवान नैणसी द्वारा 17वीं शताब्दी में लिखित मूल ख्यात राजस्थानी गद्य में लिखी गई। उस काल की भाषा अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध मारवाड़ी होने के कारण किसी अन्य भाषा के प्रभाव से मुक्त थी, अतः वर्तमान शोधकर्ताओं के लिए दुरूह थी। बाबू रामनारायण दूगड़ जैसे उच्चकोटि के विद्वान ने इसका हिंदी अनुवाद कर भावी शोधार्थियों के लिए इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का उपयोग सुलभ कर दिया है। राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा संपादित किये जाने से इस हिंदी अनुवाद का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया है। ओझाजी ने नैणसी की त्रुटियों को अपने गहन-गंभीर ऐतिहासिक अध्ययन के आधार पर पाद-टिप्पणियों में शुद्ध किया है, जो शोधकर्ताओं के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। नैणसी ने अपनी ख्यात में राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़ कच्छ, बघेलखंड, बुंदेलखंड और मध्य भारत के इतिहास को अपने ग्रंथ के कलेवर में समाहित करने का प्रयास किया है। प्रस्तुत ग्रंथ में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ राज्यों के सिसोदियों (गुहिलोतों), रामपुरा के चंद्रावतों (सिसोदियों की एक शाखा), खेड़ के गुहिलों, जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़ के राठौड़ों, जयपुर के कच्छवाहों, सिरोही के देवड़ा चौहानों, बूंदी के हाड़ों तथा बागड़िया, सोनगरा, सांचोरा, बोड़ा, ताँपलिया, खीची, चीबा, मोहिल आदि चौहानों की भिन्न-भिन्न शाखाओं यादवों और उनकी सरवैया, जाड़ेचा आदि कच्छ और काठियावाड़ की शाखाओं, गुजरात के चावड़ों तथा सोलंकियों, गुजरात और बघेलखंड के बघेलों (सोलंकियों की एक शाखा), काठियावाड़ और राजपूताना के झालों, दहियों, गौड़ों, कायमखानियों आदि का विस्तृत इतिहास लिखा है। ‘नैणसी री ख्यात’ प्राचीनतम ख्यात तो है ही, साथ ही इसका महत्त्व ओझाजी के इस कथन से आंका जा सकता है कि यदि कर्नल जेम्स टॉड को नैणसी की ख्यात उपलब्ध होती तो निश्चय ही उसका ग्रंथ और अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय बन जाता। ‘नैणसी री ख्यात’ के महत्त्व को स्वीकार करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार मुंशी देवी प्रसाद ने उसे राजपूताना का अबुल फजल कहा है, तो कालिकारंजन कानूनगो ने नैणसी को अबुल फजल से अधिक श्रेष्ठ इतिहासकार बताया है। ‘नैणसी री ख्यात’ का यह हिंदी अनुवाद राजस्थान की परंपराओं और इतिहास में रुचि रखने वाले सामान्य जिज्ञासुओं के साथ ही इतिहास के गहन-गंभीर अध्येताओं तथा शोधार्थियों के लिए सहेजकर रखने योग्य सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Mujrim Hazir
बिमल मित्र सुप्रसिद्ध सफल उपन्यासकार हैं और ‘मुजरिम हाजिर’ में उनकी औपन्यासिक कला ने यह चरम उत्कर्ष पाया है कि यह उपन्यास सहज़ ही एक महान महाकाव्य की श्रेणी में आ जाता है। बांग्ला के सर्वाधिकार लोकप्रिय उपन्यासकार बिमल मित्र का यह उपन्यास ‘आसामी हाजिर’ नाम से बंगला में दो वर्ष तक धारावाहिक प्रकाशित होता रहा है। इसके बाद इसका रंगमंच रूपांतर भी कई वर्षों तक लगातार प्रदर्शित होता रहा है। बिमल मित्र ने इसमें चरित्रनायक सदानंद के माध्यम से हमें सामाजिक जीवन के रंध्र-रंध्र मैं फैली दुर्नीति, दुराचार, ग्लानि और अन्याय को आंखों में अंगुली गडाकर दिखाया है। लेकिन उनकी दृष्टि केवल अंधकार की ओर नहीं रही है, उनके ‘सक्रिय भलेमानुस’ सदानंद ने ‘दिव्य प्रेम की पावन जोत’ भी हाथ में ले रखी है और इस तरह उपन्यासकार ने प्रखर प्रकाश की ओर भी देखा है। सदानंद की चरित्रगाथा में उन्होंने स्तर-स्तर मे विन्यस्त सामाजिक संकट को अद्भुत कौशल से उभारा है, विश्व स्तर के किसी भी उपन्यासकार के लिए चुनौती है। ‘मुजरिम हाजिर’ में जिस विशाल जगत की सृष्टि उन्होंने की है, उसकी प्रत्येक घटना, प्रत्येक चरित्र ऐसा विशाल योग्य और हृदयग्राही है कि पाठक इस जगत में अनजाने शामिल हो जाता है- यह जगत उसका ही जगत बन जाता है। प्रस्तुत उपन्यास पर आधारित धारावाहिक टीवी पर भी प्रकाशित हो चुका है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mukandas Khichi
मुकनदास खीची : मारवाड़ के वीर शिरोमणि मुकनदासजी खीची के बारे में लोगों को अभी तक अधिक जानकारी नहीं है। इस पुस्तक के माध्यम से मुकनदास खीची की कीरत कथा उजागर करना हमारा उद्देश्य है, साथ ही आज की पीढ़ी जिस तेजी के साथ अपनी भाषा, इतिहास, रीति-रिवाज, अदब-कायदा व संस्कृति से परे होती जा रही है, उनको भी मुकनदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित कराना भी है।
मुकनदास खीची को इतिहास में जो स्थान मिलना चाहिए था नहीं मिला, उन्हें इतिहास से गौण कर दिया गया। पांडवों का एक वर्ष का अज्ञातवास कितना कठिन था जबकि मुकनदास खीची के सात वर्ष बालक महाराजा अजीतसिंह की जोगी के भेष में सुरक्षा, पल-पल की नजर रखना कितना कठिन कार्य था। वहीं दुर्गादास राठौड़ युद्ध करना, कूटनीति, राजपूतों को संगठित करना और महाराजा को खोया राज्य पुन: दिलाना के लिए प्रयासों में लगे रहे, तो दूसरी तरफ मुकनदास पर महाराजा को औरंगजेब की नजरों से बचाने का महत्वपूर्ण दायित्व था। अगर मुकनदास अपने कार्य में तनिक भी असफल हो जाते तो क्या दुर्गादास राठौड़ का उक्त कार्य सफल होता, ये दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं सब पहलुओं पर विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए मुकनदास के बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर किया है, जो समस्त खीची बंधुओं, शोधार्थियों, इतिहास के अध्येताओं, एवं सामान्य पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
Muktibodh : Vimarsh Aur Punah Path
प्रस्तुत पुस्तक में मुक्तिबोध को वर्तमान के आलोक में देखने परखने की एक कोशिश की गयी है। इसी क्रम में पुस्तक में मुक्तिबोध के लेखन के विविध पक्षों पर आलेख शामिल किये गये हैं। हर रचनाकार अपनी रचना में अपने समय और उसकी विडम्बनाओं को उकेरने की कोशिश करता है। इसका आशय यह भी होता है कि इन विडम्बनाओं को दूर किया जाना चाहिए। एक समय का सच आखिरकार ‘अतीत का वह सच’ बन जाता है जिसको वर्तमान ख़ारिज कर चुका होता है। काश रचनाकार की रचनाएँ भी ‘अतीत का सच’ बन पातीं। सही अर्थों में यह किसी भी रचनाकार का असल मन्तव्य भी होता है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्ष के साक्षी रहे। इसीलिए संघर्ष उनकी रचनाओं का प्रत्यक्ष है। काश ‘सामूहिक मुक्ति’ का मुक्तिबोध का सपना साकार हो पाता। यह पुस्तक एक तरह से उन सपनों की पड़ताल है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Naari : Mahabhara Mahakavya Ke Alok Mein
नारी : महाभारत महाकाव्य के आलोक में : महाभारत महाकाव्य मानव जीवन के विविध पक्षों को समाविष्ट करता है। प्रस्तुत पुस्तक में सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में नारी के अवदान को महाभारत के आलोक में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। नारी ने अपनी प्रतिभा तथा क्षमता से जीवन को गौरवान्वित किया है। परिवार, समाज तथा राष्ट्र के प्रति व्यक्ति के कर्त्तव्यों को दिशानिर्देश दिया है। जननी, पत्नी, पुत्री तथा भगिनी के रूप में उसने पुत्र, पति, पिता तथा भ्राता आदि को विकट परिस्थिति में सम्बल प्रदान किया है। उसका मार्गदर्शन प्रेरणास्पद है। नारी के अवदान के बिना समाज तथा राष्ट्र की प्रगति तथा उन्नति अकल्पनीय है। अपार ऊर्जा से सम्पन्न नारी ने बाधाओं को पार करने में अपनी प्रतिभा को उजागर किया है। उसका बहुआयामी चरित्र प्रशंसनीय तथा वन्दनीय है।
पारिवारिक तथा सामाजिक परिप्रेक्ष्य में नारी का चिन्तनमनन दिशा-बोध से संयुक्त है। कला तथा संस्कृति को जीवन्त रखने में उसका अनुदान प्रशंसनीय है । राजनीतिक तथा सामरिक पटल पर उसकी ऊर्जा, साहस तथा धैर्य अविस्मरणीय हैं, जीवित-जागृत राष्ट्र की वह प्रतीक है। उसके हाथों में प्रत्यक्ष रूप से शासनाधिकार न होने पर भी उसने राजनीतिक पटल पर अपनी अमिट छाप अंकित की है।
महाभारत महासमर पर दृष्टिपात किया जाये तो यह स्पष्ट है कि नारी का अपमान करना क्षम्य नहीं है। द्रौपदी के अपमान की गूंज महाभारत के सभी पर्यों में सुनायी पड़ती है। कौरवपाण्डव महासमर में भूमि-स्वामित्व का प्रश्न दोनों पक्षों को विचलित करता रहा। कटु वचन, प्रतिशोध का भाव, जातिगत द्वेष की अग्नि तथा कुल-कलह महाभारत युद्ध के आधार बने । महासमर में कौरव पक्ष नि:शेष हो गया। महाभारत महासमर में जन-धन की अपार क्षति हुई, निष्कर्ष रहा – न युद्धे तात कल्याणं न धर्मार्थो कुतः सुखम् ।
प्रस्तुत पुस्तक महाभारत महाकाव्य के अध्ययन विषयक लेखिकाओं के गहन अध्ययन तथा नवीन व्याख्या की परिचायक है । बहुआयामी दृष्टिकोण से महाभारत की व्याख्या का प्रयास सराहनीय है।
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यात्रा-वृत्तांत साहित्य की बड़ी जीवंत विधा है, जिसमें पहाड़ों की गूँज, नदियों की कल-कल और पक्षियों की मीठी चह-चह की तरह जीवन और जीवन-रस छलछलाता नजर आता है। इनमें हमारा समय है तो मानव-आस्था की सुदीर्घ परंपरा भी।
यात्रा-वृत्तांत एक तरह से कालदेवता की अभ्यर्थना भी हैं, जो पल में हमें कल से आज और आज से कल तक हजारों वर्षों की यात्रा कराके एकदम ताजा एवं पुनर्नवा बना देते हैं। प्रस्तुत यात्रा पुस्तक में दर्शनीय तीर्थस्थलों की प्रामाणिक जानकारी दी गई है, जिससे वे सभी सुरम्य यात्रा-स्थल अपनी पूरी प्राकृतिक सुंदरता, भव्यता और ऐतिहासिक गौरव के साथ पाठक की स्मृति में बसने की ताकत रखते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे’ के यात्रा-वृत्तांतों की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये मन को बाँध लेते हैं। पाठक इन्हें पढ़ना शुरू करे तो पूरा पढ़े बिना रह नहीं सकता है। पाठक को लगता है, वह इन्हें पढ़ नहीं रहा, बल्कि चलचित्र की भाँति देख रहा है; लेखक के साथ-साथ यात्रा कर रहा है।
विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में पाठकों का अपार प्यार-दुलार पाने के बाद अब ये यात्रा-संस्मरण पुस्तक रूप में पुनः पाठकों के सामने उपस्थित हैं। पत्र-पत्रिकाओं के पाठकों से इतर पाठक-बंधु भी अब इनका रसास्वादन सहजता से कर सकेंगे। पाठकों के हृदय में उतरकर अपना स्थान बना लेनेवाले यात्रा-संस्मरणों की रोचक, पठनीय-मननीय पुस्तक।SKU: n/a -
Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Nahin, Kahin Kuchh Bhi Nahin…
TASLIMA NASRIN
तसलीमा नसरीन बांग्लादेश की लेखिका हैं। उनकी आत्मकथा का 6वां खंड ‘नहीं,कहीं कुछ भी नहीं..’ के रोप में पाठकों के सामने है जिसे उन्होने अपनी माँ को समर्पित किया है। जिसमे उनके जीवन के वो पल मौजूद है जो उनकी माँ को केंद्र में रख कर लिखे हैं।
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