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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Khoonti Par Tanga Vasant
मन की भावुकता की गाड़ी पर जब मेरी श्लथ वैचारिकता अपने बचे हुए शब्दों के साथ सैर के लिए निकलती है तो उसी का परिणाम होती है मेरी कविताएँ। वस्तुतः इन कविताओं में से प्रत्येक मेरे जीवन के अकाव्यात्मक सत्य का काव्यात्मक वक्तव्य है।
वस्तुतः इनका प्रयोजन और इनकी उत्पत्ति का कारण भिन्न है, इनके जन्म के समय की स्थितियाँ भी एकदम बदली हुईं। मेरे स्वतंत्र मूड की कविताएँ यदि अवकाश के क्षणों का ‘उत्पाद’ हैं तो खबरदार कविताएँ व्यस्त क्षणों का ‘उत्पाद’। वे यदि ‘हैपेनिंग’ है तो ये ‘डूइंग’, वे यदि अनायास हैं तो सायास।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Kitni Maayen Hain Meri
माँ एक सुखद अनुभूति व कोमल भाव है, जहाँ समस्त प्रेम शुरू होते हैं और परिणति को प्राप्त होते हैं। इस भाव को शब्दों में बाँध पाना असंभव सा है। इस संकलन के केंद्र में माँ है—सृष्टि की अद्वितीय कृति! मातृत्व एक विशेष अनुभव है और माँ एक अनोखी कहानी, जिसके आदि-अंत का कोई छोर नहीं। माँ की गहराई, माँ की व्यापकता को मापना सरल नहीं है, क्योंकि माँ शब्द में ही संपूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है। भारतीय संस्कृति में जननी एवं जन्मभूमि दोनों को ही माँ का स्थान दिया गया है। इन दोनों के बिना देह-रचना संभव नहीं। इनको समकक्ष रखते हुए भगवान् श्रीराम के मुख से निकला—‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
‘कितनी माँएँ हैं मेरी’ कहानी संकलन माँ के बहुआयामी रूप को साकार करने का एक प्रयास है। माँ, सौतेली माँ, बिनब्याही माँ और धाय माँ की परंपरागत परिधि से आगे बढ़कर आज के युग में माँ के कई नए रूप— फोस्टर मदर, अडॉप्टेड मदर, सरोगेट मदर, सिंगल मदर, गे मदर…आकार ले चुके हैं।
संकलन की लगभग सभी माँएँ लेखिका के संपर्क में आई हैं और उसके अनुभव का हिस्सा रही हैं। परिस्थितियों की उठा-पटक के बीच उलझे घटनाक्रम में माँ किस प्रकार अस्तित्वमान रहती है, यही बात इस संकलन की कहानियों का प्राणतत्त्व है।
विभिन्न कालखंडों और विभिन्न स्थानों से जुड़ी कुल 12 कहानियों में माँ आपके सम्मुख है। माँ के विविध रूपों को मूर्त करने की यह कोशिश कितनी सफल हुई है, इसका निर्णय पाठक के हाथों में है।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Konark
उड़िया भाषा की प्रतिभासम्पन्न लेखिका प्रतिभा राय के उड़िया उपन्यास ‘शिलापद्म’ को ‘ओड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार’-1986 प्रदान किया गया था। उसी उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर ‘कोणार्क’ के रूप में प्रस्तुत है। यह कोई इतिहास नहीं है, यहाँ इतिहास-दृष्टि भी प्रमुख नहीं है-साहित्य दृष्टि ही इसके प्राणों में है। इस कृति में केवल पत्थरों पर तराशी गईं कलाकृतियों का मार्मिक चित्रण नहीं है। उड़िया जाति की कलाप्रियता और कलात्मक ऊँचाइयों की ओर संकेत करते हुए लेखिका ने उस कोणार्क मंदिर को चित्रित किया है जो आज भारतीय कला-कौशल, कारीगरी एवं आदर्शों का एक भग्न स्तूप है। शिल्पी कमल महाराणा और वधू चंद्रभागा के त्याग, निष्ठा, उत्सर्ग, प्रेम-प्रणय-विरह की अमरगाथा को बड़े सुन्दर ढंग से इस प्रशंसित और पुरस्कृत उपन्यास में प्रस्तुत किया गया है।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Kshatriya Jati ki Suchi
क्षत्रिय जाति की सूची : ‘क्षत्रिय जाति की सूची’ में समस्त क्षत्रियों की एकता और संगठन के लिए एक प्रशस्त एवं सर्वतो-भद्र सभागार के अनुरूप है, जिसका सृजन आधुनिक युग के प्रभात में लगभग एक शताब्दी पूर्व हुआ था। इस पुस्तक में भारत के प्राचीन इतिहास, पुराणों में वर्णित सभी क्षत्रिय-कुलों के वर्णन के अतिरिक्त मध्य-युग में राजस्थान के क्षत्रिय-कुलों की शाखाओं का भी वर्णन हुआ है। आधुनिक युग में इस प्रकार की यह प्रथम पुस्तक है, जिससे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप क्षत्रियों को संगठित होने में बहुत महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी। इस दृष्टि से इस पुस्तक के रचयिता ठाकुर बहादुर सिंह, बीदासर, का यह संग्रह उनकी दूरदर्शिता एवं जाति-प्रेम का परिचय देता है। भारत के प्राचीन क्षत्रियों को आधुनिक क्षत्रिय समाज से जोड़ने के लिए यह संग्रह एक सुदृढ एवं time tested सेतुबन्ध का कार्य भी करता है और इस प्रकार हमें भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध एवं महावीर के धर्म-सम्मत जीवन-व्यवहार और सम्राट अशोक, विक्रमादित्य, भोज और हर्षवर्द्धन के प्रजा-हितैषी कार्यों से प्रोत्साहित होने की प्रेरणा देता है। आशा है क्षत्रिय-समाज अपने संगठित बल से ऋषियों द्वारा स्थापित अपने कर्तव्यों के निर्वाह-स्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनैतिक और प्रशासनिक कुशलता और जन-कल्याण की भावनाओं के प्रति क्रियाशील एवं सजग रहकर अन्य समाजों से मैत्री तथा सुहृदयता के सम्बन्ध सुदृढ़ करते हुए अपने बहुमुखी कर्तव्यों के प्रति तन-मन-धन से ससंकल्प उन्मुख होगा।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Kshatriya Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांKshatriya Samaj ki Kuldeviyan
क्षत्रिय समाज की कुलदेवियाँ : ईश्वर के प्रति प्रेम अथवा भक्ति के स्वरूप का भाषा के द्वारा बखान करना बड़ा कठिन मार्ग है। उपासना एवं पूजा ऐसे ही तत्त्व की हो सकती है, जिसे परम रूप में पूर्ण समझा जा सके। ईश्वर विनम्र है, यही कारण है कि भक्त अपने को सर्वथा ईश्वर की दया के ऊपर छोड़ देता है।
नारद सूत्र में भक्ति के विभिन्न प्रकार मिलते हैं। सच्ची भक्ति निःस्वार्थ आचरण के द्वारा प्रकट होती है। भक्त की श्रद्धा एवं विश्वास भक्ति का मूल आधार कहा जा सकता है। इसी रूप में कुलदेवियों की परम्परागत पूजा-अर्चना अलग-अलग वंशधरों में पूजीत हो रही है, जो कुल की रक्षा करने का दायित्व ग्रहण करती है। प्रस्तुत पुस्तक में क्षत्रिय वंश की कुलदेवियों पर प्रकाश डाला गया है। देवी से प्राप्त ज्ञान अर्जन, उनके प्रति रीति-रिवाज एवं परम्पराओं का बोध कराने में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Kul Devi Shri Tanot (Aawad) Mata Ka Itihas
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासKul Devi Shri Tanot (Aawad) Mata Ka Itihas
कुल देवी श्री तनोट (आवड़) माता का इतिहास
राजपूत युग के प्रारम्भ के साथ ही वि.सं. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन मामड़ियाजी चारण के घर भगवती श्रीतनोट (आवड़) माता का जन्म हुआ, also जो इतिहास में बावन नामों से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने जन्म से लेकर ज्योतिर्लीन होने तक अनेक परचे दिये, जिसके कारण उनकी प्रसिद्ध सम्पूर्ण भारत वर्ष में हुई। श्रीआवड़ादि सातों बहिनों व भाई मेहरख जी (खेतरपाल जी) के परचों व परवाड़ों पर लेखक ने बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला है। भगवती श्रीतनोट (आवड़) माता का विराट व्यक्तिव था, जिसके कारण वे राजपूतों, चारणों एवं हिन्दुओं के ज्यादातर जातियों की कुल देवी या आराध्य देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। उनके द्वारा हाकरा दरियाव का शोषण करना, सूरज को अपनी लोवड़ी की ओट में सोलह प्रहर तक रोकना, बावन देत्यों (हूणों) का संहार करना, भाटियों के राज्य को स्थायित्व देने में मदद करना आदि उनके प्रमुख परचे है।
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kumbh : Aitihasik Vangmaya
‘कुम्भ’ से सम्बन्धित आख्यानों, कथाओं, मिथकों, रूपकों-प्रतीकों को समेटते हुए महाभारत एवं पुराणों में उल्लेखों-वर्णनों की विवेचना के पश्चात् प्रयाग के कुम्भ की विशेषता को रेखांकित करते हुए, उज्जैन, नासिक एवं हरिद्वार से अलग इसकी पृथक् पहचान स्थापित की है। ब्रह्मा के यज्ञ से लेकर भारद्वाज-आश्रम पर संगम के साथ ही ‘सरस्वती नदी/धारा का वैज्ञानिक सच भी रेखांकित किया है। तत्पश्चात भारतीय इतिहास के प्राचीन, मध्ययुगीन एवं आधुनिक कालों में ‘कुम्भ’ के विवरणों, दस्तावेजों के पुष्ट प्रमाण पर उसका ऐतिहासिक वर्णन किया है। अखाड़ों, उनके ‘शाही स्नान’ और ‘पेशवाई’ को भी ऐतिहासिक तिथियों द्वारा प्रमाण सहित वर्णित किया है। ‘संगम’, ‘प्रयाग’, ‘कुम्भ’ के आयोजन के उल्लेख में हिन्दू पुनर्जागरण में शंकराचार्य का महत्त्व और सांस्कृतिक एकता को दर्शाया है। इस पुस्तक का महत्त्व इसलिए भी है कि पूर्व में लिखी सम्बन्धित पुस्तकों का ‘क्रिटीक’ भी सम्मिलित है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Kumbh : Manthan Ka Mahaparva
कुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं—लघु भारत एक स्थान पर आकर जुटता है और हम सगर्व कहते हैं कि महाकुंभ विश्व का सबसे विशाल पर्व है। कुंभ की ऐतिहासिक परंपरा में देश व समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए ऋषियों, महर्षियों के विचार सदैव आदरणीय और उपयोगी रहे हैं। आर्यावर्त के पुराने नक्शे में शामिल देश भी तब महाकुंभों में एकत्र होकर समाज के जरूरी नीति-नियमों को, तत्कालीन शासकों को जानने के लिए ऋषियों की ओर देखते थे और उसके पालन के लिए प्रेरित होते थे। हर बारह वर्ष बाद देश के विभिन्न स्थलों पर शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम को तय कर समाज संचालित करते थे। ये नियम सनातन परंपरा को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ समय की माँग के अनुसार भी बनते थे।
आज मानव समाज के सामने जो समस्याएँ चुनौती बनकर खड़ी हैं, उनमें आतंकवाद, भ्रष्टाचार, हिंसा और देशद्रोह के समान मानव को जर्जर कर देनेवाली समस्या है पर्यावरण प्रदूषण। प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है, कभी-कभी तो श्वास लेना भी कठिन जान पड़ता है। कुंभ का सबसे बड़ा संदेश पर्यावरण का संरक्षण करना है।
ज्ञान, भक्ति, आस्था, श्रद्धा के साथ-साथ जनमानस में सामाजिक-नैतिक चेतना जाग्रत् करनेवाले सांस्कृतिक अनुष्ठान ‘कुंभ’ पर एक संपूर्ण सांगोपांग विमर्श है। यह पुस्तक।SKU: n/a -
English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Kurma Purana English
The Purana is a distinct branch of learning. It is treated as one of the Vidyas like the Samkhya and the Vedanta, it has its distinct theory of cosmology. The major Puranas are considered to be eighteen in numbers, known by Maha Puranas are considered to be eighteen in numbers, known by maha-Puranas. One of the important Puranas among the eighteen Maha-Purana is kurma Mahapurana, in which the narrator is Lord Visnu himself, in the form of a Kurama (tortoise).
Kurma Purana is divided into two sections, viz., Purava-Bhaga and Uttara-Bhaga. There are various stories in this Purana, full of great learning. Initially, the origin of Prajapatis, the duties of our Varna’s, and ht source of the livelihood of each of the varnas have been described. Similarly, the characteristics of Dharma, Artha, Kama, and Moksa have also been spelled out.
The characteristics of the great devotees, their conduct, their diet, etc. and the characteristics of the castes and stages of life have also been added in this Purana. Thereafter, the primordial creation, the seven coverings of the Anda (cosmic egg), and the origin of Hiranyagarbha have been related in this Purana.
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Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon
प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Lagan
कहानी के चरित नायक देवसिंह का असली नाम नंदलाल था। यह बड़ा शक्तिशाली पुरुष था। अस्सी वर्ष की अवस्था में इसको दमरू नामक लोधी ने देखा है, जो सुल्तानपुरा में (चिरगाँव से डेढ़ मील उत्तर) रहता है। इसकी आयु इस समय नब्बे वर्ष की है। वह नंदलाल के बल की बहुत-सी आँखोंदेखी घटनाएँ बतलाता है। नंदलाल का भीषण पराक्रम, जिसका कहानी में वर्णन किया है, सच्ची घटना है। किंवदंती के रूप में अब भी आसपास के देहात में वह प्रसिद्ध है। कुछ घटनाएँ कल्पनामूलक हैं।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Lalitaditya
राजा ने यथाशक्ति नम्रता के साथ कहा-‘ हम कश्मीर नरेश, भारत सम्राट् ललितादित्य हैं । तुक्खर देश की ओर जा रहे हैं । ‘
साधु के मुख पर आश्चर्य की एक रेखा तक नहीं खिंची । उसी समता, तटस्थता के साथ बोला-‘ जानते हो, पूर्वजन्म में क्या थे?’
राजा के भीतर विनय की बाढ़-सी आ गई । नम्रता के साथ उत्तर दिया-‘ मैं नहीं जानता, जान ही नहीं सकता । आप योगी हैं, अवश्य हैं । आप ही बतलाइए ।’
साधु ने कुछ क्षण ध्यान लगाने के बाद कहा-‘ तुम पूर्वजन्म में एक समृद्ध गृहस्थ के नौकर थे, जो खेती कराता था । तुम उसका हल जोतते थे । वह गाँव श्रीनगर से बहुत दूर है जहाँ तुम उस भूमि-स्वामी के खेतों में हल जोतकर अपना जीवन चलाते थे । जिन दिनों तुम हल चलाते, भूमि-स्वामी तुम्हारे लिए खेत पर रोटी औंर पानी भेजता था । एक दिन गरमी की ऋतु में बड़े-बड़े बैलों का भारी हल चलाते-चलाते थक गए । दिन- भर हल चलाया, परंतु न रोटी आई और न पानी मिला । आसपास कहीं भी पानी था ही नहीं । भूख और प्यास के मारे तुम्हारा गला सूख गया । तड़प रहे थे कि थोड़ी- सी दूरी पर रोटी-पानी लानेवाला दिखलाई पड़ा । प्रसन्न हो गए । वह एक मोटी रोटी लाया था और एक छोटा-सा घड़ा पानी का । तुमने खाने के लिए हाथ-मुँह धोया ही था कि कहीं से एक ब्राह्मण हाँफता- हाँफता तुम्हारे पास आकर बोला-‘ मत खाओ, मैं भूखों मरा जा रहा हूँ ‘ ।SKU: n/a -
Hindi Books, The Zest Media, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Laxman Rao Zidd Se Jeet (HB)
-10%Hindi Books, The Zest Media, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Laxman Rao Zidd Se Jeet (HB)
Laxman Rao – Zidd Se Jeet (Journey in a Tea Glass). A biography by Dibakar Yadav लक्ष्मण राव कोई सेलेब्रिटी नहीं हैं, सोशल मीडिया के बहुचर्चित इंफ्लुएंसर भी नहीं हैं। न तो इन्हें कोई पद्म श्री अवार्ड मिला है न ही कोई सामाजिक हीरो हैं। हमारे और आपके बीच से निकले आम इंसान होते हुए भी लक्ष्मण राव बेहद खास हैं। जीतने की ज़िद और अपने सपनों को जीने के लिए लक्ष्मण राव की जीवन यात्रा ही अपने आप में चमत्कृत कर देने वाली है। आम लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत लक्ष्मण राव की जीवन यात्रा और सफलता की प्रेरक जीवंत कथा ‘लक्ष्मण राव – ज़िद से जीत को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
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English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Life Law
Accordingly, In this Book I tried to mentioned Life Law. It means life and law or life law begins in Society while living, Life a Journey, an alphabet, which comes between B and D. B means Birth and D means Die. In between C is left. C means challenges in life. Life is a trip. The only Problem is that it does not come with a map. We have to search to reach our destination. Life is a miracle and every day we live is only a gift But it is a human Nature that we need everything permanent in a temporary life. Me, Dr. Aruna Tak believe in Lord and on Karma. But my education is in Law Karma is Natural Lord made and Law is Man Made.
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English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Linga Purana English Set of 2
-10%English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिLinga Purana English Set of 2
The Puranas in the Indian Religious context are considered to be the important set of the religious literature, after the Vedic literature totally became beyond the reach of the common man. The void thus created in the Indian religious thought was filled by the epics of the Ramayai3a of Valmiki as well as the Mahabharata. But besides these, the Puranas which were composed by the sage Vyasa and other sages gained the importance of their own. Some of them were devoted to Visnu, while others were devoted to Siva, Sakti as well as the other deities. Of these, Siva Purana and the Linga Purana are mainly the Saiva Puranas. In these Puranas, lord Siva is eulogised in different ways and both of them have their own importance.
The distinctive aspect of the Linga Purana is that thousand and eight names of Siva have been repeated twice in this Purana. In Chapter-65, the thousand and eight names have been spoken out by the sage Tandin, while in chapter-98 of the same Purana, the thousand and eight names of Siva were recited by lord Visnu himself in order to get cakra from lord Siva, at the behest of the gods. Besides these, there are many other topics in this Purai3a, which will be of great interest to the readers. This Purana is divided into two parts. The first part has a hundred and eight chapters, while the second part has fifty five chapters.
This is for the first time that an English translation of Linga Purana is being published along with complete Sanskrit text. The importance of the book is enhanced with an exhaustive introduction on the subject and an index of verses is provided at the end of the second volume for the benefit of the readers.
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