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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Dilli Chalo
माँ भारत के सपूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस का दिव्य व्यतित्व एक दीपक नहीं, बल्कि एक सूरज बनकर हम सबके जीवन को प्रकाशमान कर रहा है। उन्होंने कम उम्र में ही अपनी प्रतिभा व अस्तित्व को देश पर न्योछावर करने का प्रण कर लिया था। अनेक अत्याचार और बाधाओं के बावजूद उन्होंने अपने आप को कमजोर नहीं पड़ने दिया, बल्कि अपनी अद्भुत जिजीविषा का परिचय देकर अपनी अप्रतिम संगठन शति का परिचय दिया। सुभाषचंद्र बोस के जीवन का केवल एक लक्ष्य था—आजादी। उन्होंने हर एक भारतीय से कहा, ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’’ सुभाषचंद्र बोस बड़े-से-बड़े जोखिम से टकर लेते थे, योंकि वे इस बात को जानते थे कि बिना जोखिम की सफलता ऐसी विजय की तरह है, जिसमें गौरव न हो।
सुभाषचंद्र बोस के अचल विश्वास और कार्यों ने संपूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया था। उस समय सुभाषचंद्र बोस का अस्तित्व ही ब्रिटिशों के लिए खतरे की घंटी बन गया था। उन्हें ज्ञात हो गया था कि सुभाषचंद्र बोस अब भारत में उनके साम्राज्य को अधिक दिनों तक न रहने देंगे; और हुआ भी यही। सुभाषचंद्र बोस ने अपना संपूर्ण जीवन भारतमाता के चरणों में समर्पित कर दिया।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रेरणाप्रद जीवन, उनकी दूरदर्शिता, संगठनात्मक कौशल व कूटनीति को छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करती है यह पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dillipati Prithviraj Chauhan Evam Unka Yug
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणDillipati Prithviraj Chauhan Evam Unka Yug
दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान और उनका युग :
राजपूत युग के अधिकांश राजवंशों का गहराई से अध्ययन करने का प्रयत्न निरन्तर किया जाता रहा है। चौहान इतिहास अपेक्षाकृत अधिक विद्वानों के आकर्षण का केन्द्र रहा तथा दशरथ शर्मा आर.बी. सिंह लल्लूभाई भीमभाई देसाई आदि ने चौहान इतिहास का गहन अध्ययन कर विश्वसनीय सामग्री उपलब्ध की। गत डेढ़ दशक से चौहान इतिहास के क्षेत्र में एक नया नाम निरन्तर सामने आ रहा है और वह प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक बी.आर. चौहान का है। ‘दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान और उनका युग’ में लेखक ने अनेक नये पक्षों का प्रमाणिक सामग्री के आधार पर विवेचन विश्लेषण किया है। प्रस्तुत ग्रंथ न केवल कलेवर में ही पूर्ववर्ती चौहान इतिहास से सम्बन्धित ग्रंथों से विस्तृत है अपितु नवीन तथ्यों को उजागर करने की दृष्टि से भी यह पूर्ववर्ती ग्रंथों से सर्वथा भिन्न है। निःसन्देह राजपूत काल के अत्यन्त ही प्राचीन राजवंश के इतिहास का यह एक अनुपम ग्रन्थ है जो शोधपूर्ण विश्लेषण तथा नवीन-अछूते विषयों के विवरण के कारण महत्वपूर्ण है। लेखक ने चौहान इतिहास से सम्बन्धित अनेक समस्याओं को प्रामाणिक साधनों के बल पर सुलझाने का प्रयास किया है। समग्र रूप से ‘दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान और उनका युग’ न केवल ‘अंकारमय युग’ (700 से 1200ई.) को प्रकाशमय बनाने वाला ही सिद्ध होगा बल्कि इसे उस युग के चौहान राजवंश का ज्ञानकोश कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ‘दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान और उनका युग’ की सरल, बोधगम्य भाषा, स्पष्ट व्याख्याओं तथा शोधपूर्ण दृष्टिकोण के कारण यह ग्रन्थ इतिहास के गम्भीर अध्येताओं और चौहान इतिहास के सामान्य जिज्ञासुओं के लिए समान रूप से रुचिकर एवं सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), सही आख्यान (True narrative)
Divya Garbha Sanskar Vigyan
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), सही आख्यान (True narrative)Divya Garbha Sanskar Vigyan
प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके घर भी झाँसी की रानी, महाराणा प्रताप, शिवाजी, स्वामी विवेकानंद, ध्रुव, प्रह्लाद, मीरा, श्रवण कुमार, अभिमन्यु आदि जैसी संतान हो, किंतु इसको साकार करने के पीछे जो वैज्ञानिक और वैदिक चिंतन था, उसके विषय में अधिकांश जन अनभिज्ञ हैं।
भारतीय ऋषियों ने अनेकानेक वर्षों तक शोध एवं आत्मज्ञान के आधार पर विभिन्न वैज्ञानिक एवं वैदिक चिंतनों को निश्चित सिद्धांतों के रूप में पिरोया, जिन्हें ‘संस्कार‘ कहते हैं । इन्हीं संस्कारों और परंपराओं का आधार है-गर्भ संस्कार । यह दिव्य (दैवीय) विज्ञान है।
प्रस्तुत ग्रंथ ‘दिव्य गर्भ संस्कार विज्ञान‘ नारी सशक्तिकरण और परिवार संस्था को सबल बनाने तथा प्रत्येक परिवार/व्यक्ति में दिव्य शक्तियों के आमंत्रण और आगमन का आधार है।
जब माता- पिता किसी दिव्य आत्मा का आह्वान करते हैं, तो उनको वही शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पात्रता भी स्वयं में विकसित करनी होती है। इसीलिए मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण के उद्घोष को साकारित कर भारत के विश्वगुरु के पुरातन वैभव और स्वर्णिम भविष्य की नींव इस ‘दिव्य गर्भ संस्कार विज्ञान‘ ग्रंथ के माध्यम से रखकर हम देवकऋण- ऋषिऋण-पितूऋण-भूतऋण-मनुष्य/लोक ऋण-राष्ट्रऋण से उऋण हो सकते हैं।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Do Chattanein
देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, बच्चनजी को उनके कविता-संग्रह ‘दो चट्टानें’ पर मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना अपनी विशिष्टता लिये हुए है। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चनजी को सम्मानित करने से साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है। इस सम्मान से वर्षों पहले से ही बच्चनजी हिन्दी के सुधी पाठकों के हृदय पर राज कर रहे थे-अपनी कविताओं के द्वारा।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Dr. Ambedkar Aur Rashtravad
भारत के संविधान निर्माता भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के विचारों को वामपंथियों एवं अल्पसंख्यक गठबंधन में शामिल लोगों ने सदैव तोड़-मरोड़कर पेश किया और देश में पाँच दशक से अधिक समय तक सत्ता में रही कांग्रेस ने निजी स्वार्थ के कारण बाबासाहब को सदैव दलितों एवं वंचितों के नेता के रूप में प्रस्तुत किया। मानो देश के विकास और उत्थान में उनका कोई योगदान ही न रहा हो। आज देश में दलित-मुसलिम गठजोड़ के बहाने ये अलगाववादी देश में अशांति फैलाना चाहते हैं। इन चीजों को भाँपते हुए डॉ. आंबेडकर ने सन् 1940 में देश के विभाजन की स्थिति में हिंदू एवं मुसलिम जनसंख्या के पूर्ण स्थानांतरण की बात की थी। उन्होंने देश को ऐसा संविधान दिया जो देश की अखंडता एवं एकता को आज भी सुरक्षित किए हुए है। उन्होंने संविधान में अनुच्छेद 370 का विरोध किया, पर नेहरू के मुसलिम-प्रेम के कारण इसे जोड़ा गया। नागरिकों के हितों की सुरक्षा हेतु संविधान में मूल आधारों की व्यवस्था की। अर्थशास्त्र के शोध छात्र के रूप में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया व वित्त आयोग का प्रारूप दिया। देश के कानून मंत्री के रूप में हिंदू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को संपत्ति में उत्तराधिकार और उनके सशक्तीकरण का पथ प्रशस्त किया।
बाबासाहब आंबेडकर के राष्ट्रवादी विचारों को लोगों तक पहुँचाने और राष्ट्र के विकास में उनके योगदान पर उत्कृष्ट कृति।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Dr. Hedgewar-Shri Guruji Prashnottari
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार अपने सामने बचपन से ही एक उच्चतम ध्येय रखकर काम करते रहे। संघ-कार्य का जैसे-जैसे विस्तार हुआ, समाज में देशभक्ति, आत्मविश्वास, एकता की भावना और राष्ट्रीय गौरव-बोध जैसे गुणों की वृद्धि हुई है। डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्र-निर्माण के लिए कटिबद्ध असंख्य जीवनदानी विभूतियों को प्रेरित किया, जिनकी साधना और तपस्या की नींव पर खड़ा संघ वैश्विक स्तर पर सेवा-संस्कृति-जागरण के महती कार्य कर रहा है।
संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ ने लगभग 33 वर्ष तक संघ प्रमुख के नाते न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ शाखाओं को फैलाया, बल्कि इस दौरान देश विभाजन, भारत की आजादी, गांधी-हत्या, भारत-पाकिस्तान के बीच तीन-तीन युद्ध (कश्मीर सहित) एवं चीन द्वारा भारत पर आक्रमण जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के भी वे साक्षी बने और उस इतिहास के निर्माण में लगातार हस्तक्षेप भी किया।
प्रस्तुत पुस्तक में दोनों सरसंघचालकों के जन्म से लेकर उनके महापरिनिर्वाण तक की समूची विकास-यात्रा रोचक प्रश्नोत्तर रूप में दी गई है, जो भारत के इतिहास को एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती हैSKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Draupadi Ki Aatmakatha
द्रौपदी का चरित्र अनोखा है। पूरी दुनिया के इतिहास में उस जैसी दूसरी कोई स्त्रा् नहीं हुई। महाभारत में द्रौपदी के साथ जितना अन्याय होता दिखता है, उतना अन्याय इस महाकथा में किसी अन्य स्त्रा् के साथ नहीं हुआ। द्रौपदी संपूर्ण नारी थी। वह कार्यकुशल थी और लोकव्यवहार के साथ घर-गृहस्थी में भी पारंगत। लेकिन द्रौपदी जैसी असाधारण नारी के बीच भी एक साधारण नारी छिपी थी, जिसमें प्रेम, ईर्ष्या, डाह जैसी समस्त नारी-सुलभ दुर्बलताएँ मौजूद थीं। द्रौपदी का अनंत संताप उसकी ताकत थी। संघर्षों में वह हमेशा अकेली रही। पाँच पतियों की पत्नी होकर भी अकेली। प्रतापी राजा द्रुपद की बेटी, धृष्टद्युम्न की बहन, फिर भी अकेली। पर द्रौपदी के तर्क, बुद्धिमत्ता, ज्ञान और पांडित्य के आगे महाभारत के सभी पात्र लाचार नजर आते हैं। जब भी वह सवाल करती है, पूरी सभा निरुत्तर होती है।
महाभारत आज भी उतना ही प्रासंगिक और उपयोगी है, वही समस्याएँ और चुनौतियाँ हमारे सामने हैं। राजसत्ता के भीतर होनेवाला षड्यंत्र हों या राजसत्ता का बेकाबू मद या फिर बिक चुकी शिक्षा व्यवस्था हो या फिर छल-कपट से मारे जाते अभिमन्यु। आज भी द्रौपदियों का अपमान हो रहा है। कर्ण नदी-नाले में रोज बह रहे हैं।
‘कृष्ण की आत्मकथा’ जैसी महती कृति के यशस्वी लेखक श्री मनु शर्मा ने महाभारत के पात्रों और घटनाओं की आज के संदर्भ में नई व्याख्या कर उपेक्षित द्रौपदी की पीड़ा और अडिगता को जीवंतता प्रदान की है। नारी की अस्मिता को सम्मान देनेवाली अत्यंत पठनीय कृति।SKU: n/a -
Gita Press, Hindi Books, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Durga Saptashati Code 1281
Gita Press, Hindi Books, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनDurga Saptashati Code 1281
सप्तशती के पाठमें विधिका ध्यान रखना तो उत्तम है ही, उसमें भी सबसे उत्तम बात है भगवती दुर्गामाताके चरणोंमें प्रेमपूर्ण भक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ जगदम्बाके स्मरणपूर्वक सप्तशतीका पाठ करनेवालेको उनकी कृपाका शीघ्र अनुभव हो सकता है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
DWITEEYA VISHWA YUDDHA
द्वितीय विश्वयुद्ध सन् 1939 से 1945 तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग 70 देशों की थल, जल, वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं और विश्व दो भागों में बँटा हुआ था—मित्र राष्ट्र और धरी राष्ट्र। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया। यह मानव इतिहास का सबसे घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में 5 से 7 करोड़ लोग मारे गए। द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत 1 सितंबर, 1939 को हुई मानी जाती है, जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया।
सन् 1944 और 1945 के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी नौसेना को शिकस्त दी और पश्चिमी प्रशांत के कई द्वीपों में अपना कब्जा बना लिया। अमेरिका ने जापान में दो परमाणु बम गिराए—हिरोशिमा और नागासाकी की मर्मांतक घटना को विश्व शायद ही कभी भूल पाए। इसके साथ ही 15 अगस्त, 1945 को एशिया में भी द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गया।
युद्धों से कभी किसी का भला नहीं हुआ। ये तो विनाश-सर्वनाश के कारण हैं। किसी भी सभ्य समाज में युद्धों का कोई स्थान नहीं है; और इन्हें किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। इस पुस्तक का उद्देश्य भी यही है कि विश्वयुद्धों की विभीषिका से सीख लेकर हम युद्धों से तौबा कर लें और ऐसी परिस्थितियाँ पैदा न होने दें, जो युद्धों का जन्म दें।
मानवीय संवेदना और मानवता को बचाए रखने का विनम्र प्रयास है यह पुस्तक।SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
Ek naya dwar
निरीक्षण, ऑब्जर्वेशन चाहिए। क्या हो रहा है, उसे देखने के लिए पूरी सजगता होनी चाहिए। पूरे होश, पूरी अटेंशन से जो देखता है…। विज्ञान में ही निरीक्षण जरूरी है, ऐसा नहीं; धर्म में तो और भी ज्यादा जरूरी है। क्योंकि विज्ञान तो पदार्थों की खोज करता है, धर्म तो आत्मा की। विज्ञान में निरीक्षण जरूरी है, लेकिन धर्म में तो निरीक्षण और भी अनिवार्य है। विज्ञान बाहर के पदार्थों का निरीक्षण करता है, धर्म स्वयं के भीतर जो चित्त है उसका। चित्त का निरीक्षण करें। जागें, और जागें, और जागें और देखें चित्त को। देखते-देखते यह क्रांति घटित होती है और चित्त परिवर्तित हो जाता है। ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: जीवन का क्या अर्थ है? सरलता का क्या अर्थ है? हमारा चित्त इतना जटिल क्यों हो गया है? चित्त को बदलने के उपाय कार्य के साथ चित्त की सजगता के उपाय
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Ekadashopnishad
धारावाहिक हिंदी में, मूल तथा शब्दार्थ सहित (ग्यारह उपनिषदों की सरल व्याख्या)-आर्य संस्कृति के प्राण उपनिषद हैं। उपनिषदों के अनेक अनुवाद हुए हैं, परंतु प्रस्तुत अनुवाद सब अनुवाद से विशेषता रखता है।
इस अनुवाद में हिंदी को प्रधानता दी गई है। कोई पाठक यदि केवल हिंदी भाग पढ़ जाए तो भी उसे सरलता से उपनिषद्-ज्ञान स्पष्ट हो जाएगा। पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यही है की अनुवाद में विषय को खोलकर रख दिया गया है।
साधारण पढ़े-लिखे लोगों तथा संस्कृत के अगाध पंडितों, दोनों के लिए यह नवीन ढंग का ग्रंथ है। यही इस अनुवाद की मौलिकता है। पुस्तक को रोचक बनाने के लिए स्थान-स्थान पर चित्र भी दिए गए हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Emergency ka Kahar aur Censor ka Zahar (HB)
-20%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रEmergency ka Kahar aur Censor ka Zahar (HB)
इस पुस्तक के पृष्ठों में आपातस्थिति के अँधेरे में किए गए काले कारनामों और करतूतों का विवरण दिया गया है। हमारे देश के इतिहास में आपातकाल एक ऐसा कालखंड है, जिसकी कालिख काल की धार से भी धुलकर साफ नहीं हुई है। इस दौरान विपक्ष के प्रायः सभी प्रमुख नेताओं और हजारों नागरिकों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया था। इनमें करीब 250 पत्रकार भी थे। लोगों को अनेक ज्यादतियों और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा था। अखबारों के समाचारों पर कठोर सेंसर लगा दिया गया था। यह इमरजेंसी का ब्रह्मास्त्र साबित हुआ। जो काम अंग्रेजों ने नहीं किया था, वह इंदिरा गांधी की सरकार ने कर दिखाया।
विडंबना यह कि करीब साढ़े चार दशक बाद आज की पीढ़ी को यह भरोसा नहीं हो पा रहा है कि लोकतांत्रिक भारत में जनता की आजादी के विरुद्ध ऐसा भी तख्तापलट हुआ, जिसका विरोध-प्रतिरोध करने वालों को इसे ‘आजादी की दूसरी लड़ाई’ की संज्ञा देनी पड़ी।
आपातकाल का काला अध्याय एक ऐसा विषय है, जिसपर देश-विभाजन की तरह अनेक पुस्तकें आनी चाहिए। स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों की दृष्टि में यह स्वतंत्र भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। लोकशक्ति द्वारा लोकतंत्र को फिर पटरी पर ले आने की कहानी उन सबके लिए खास तौर पर पठनीय है, जिनका जन्म उस घटनाक्रम के बाद हुआ।
प्लेटो के विश्व प्रसिद्ध ‘रिपब्लिक’ ग्रंथ पर जो विशद विवेचन है उससे स्पष्ट है कि गणतंत्र को सबसे बड़ा खतरा भीतर से है, बाहर से नहीं। गणतंत्र सदैव अपने ही संक्रमण से पतित होता है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Emergency Ki Inside Story
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रEmergency Ki Inside Story
‘इन सबकी शुरुआत उड़ीसा में 1972 में हुए उप-चुनाव से हुई। लाखों रुपए खर्च कर नंदिनी को राज्य की विधानसभा के लिए चुना गया था। गांधीवादी जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के इस मुद्दे को प्रधानमंत्री के सामने उठाया। उन्होंने बचाव में कहा कि कांग्रेस के पास इतने भी पैसे नहीं कि वह पार्टी दफ्तर चला सके। जब उन्हें सही जवाब नहीं मिला, तब वे इस मुद्दे को देश के बीच ले गए। एक के बाद दूसरी घटना होती चली गई और जे.पी. ने ऐलान किया कि अब जंग जनता और सरकार के बीच है। जनता—जो सरकार से जवाबदेही चाहती थी और सरकार—जो बेदाग निकलने की इच्छुक नहीं थी।’
ख्यातिप्राप्त लेखक कुलदीप नैयर इमरजेंसी के पीछे की सच्ची कहानी बता रहे हैं। क्यों घोषित हुई इमरजेंसी और इसका मतलब क्या था, यह आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि तब प्रेरणा की शक्ति भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मिली थी और आज भी सबकी जबान पर भ्रष्टाचार का ही मुद्दा है। एक नई प्रस्तावना के साथ लेखक वर्तमान पाठकों को एक बार फिर तथ्य, मिथ्या और सत्य के साथ आसानी से समझ आनेवाली विश्लेषणात्मक शैली में परिचित करा रहे हैं। वह अनकही यातनाओं और मुख्य अधिकारियों के साथ ही उनके काम करने के तरीके से परदा उठाते हैं। भारत के लोकतंत्र में 19 महीने छाई रही अमावस पर रहस्योद्घाटन करनेवाली एक ऐसी पुस्तक, जिसे अवश्य पढ़ना चाहिए।SKU: n/a -
Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
EMOKE : EK GATHA
एमेके: एक गाथा चेकोस्लोवाकिया के सर्वाधिक विवादास्पद लेखक जोसेफ़ श्कवोरस्की का विश्व-विख्यात उपन्यास है, जिस पर 1998 में एक टेलिविजन फ़िल्म भी बन चुकी है। उपन्यास के केंद्र में छुट्टी मनाने गये कुछ पर्यटकों की दास्तान है। एमेके एक आकर्षक जिप्सी युवती, जिसका ध्यान सब अपनी ओर खींचना चाहते हैं, लेकिन वह दूसरी दुनिया की, अध्यात्म की बातें करती रहती है। धीरे-धीरे एक मीठा-सा त्रिकोण बनना शुरू होता है कि तभी एक व्यक्ति की शत्रुता से सब तहस-नहस हो जाता है। कहानी मीठे त्रिकोण से मीठे प्रतिशोध का फ़ासला बड़ी सुंदरता से तय करती है। आश्चर्य नहीं कि इस उपन्यास के विश्व की बीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। हिन्दी में इसका निर्मल वर्मा द्वारा अनुवाद पहली बार सन् 1973 में प्रकाशित हुआ था।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Evolution of Indian Judiciary
Judicial institutions evolved in India in the context of India’s social, economic and political conditions and because of the reception of legal concepts and institutions known to English and Scottish judges, lawyers and administrators. Modern Indian judiciary bears the hallmarks of its genesis and evolution during the British rule but it has progressively gone for beyond the colonial confines after the republican Constitution came into force. The theme of fundamental Rights and the role of the Supreme Court and the High Courts as vigilant custodians of fundamental rights are at the heart of India’s constitutional democracy. We owe a deep debt of gratitude to our apex judicature, the higher judiciary and the country’s bar in the evolution of the common law of the Constitution. It constitutes by common consent a remarkable chapter in our national life.
The Constitution of India is not the last word in human wisdom, but it was certainly a glorious achievement of national consensus and national commitment. The higher Indian judiciary can be said to have broadly fulfilled its constitutional ethos. There have been aberrations, notably during the Emergency and in some cases, of overstating and unduly enlarging the scope of judicial power. More seriously, there are grave and growing problems of inefficient case management, arrears, delays, corruption and incompetence. Those issues have to be addressed urgently, effectively and comprehensively if the Indian judiciary is to emerge as a fit instrument for Rule of Law for the teeming millions in the largest democracy in the world and if the Indian judiciary is to flourish in the twenty-first century holding its head high as an institution of freedom, liberty and balance, with a commitment to the constitutional goals and aspirations of We the People of India.SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Facebook Nirmata : Mark Zuckerberg
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणFacebook Nirmata : Mark Zuckerberg
इंटरनेट ने हमारी दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। अब हर सूचना, हर जानकारी हमारी उँगलियों पर है। ऐसे में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों ने मीलों दूर बैठे लोगों को आपस में इस प्रकार जोड़ दिया है, मानो वे उनके परिवार के ही सदस्य हों। ये सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें अपने दोस्तों, परिचितों व संबंधियों से संपर्क बनाए रखने तथा अपनी रोजमर्रा की खुशियाँ आपस में बाँटने का सबसे बड़ा स्थान हैं, जहाँ हर कोई अपने दिल की बात कह सकता है।
मार्क जुकरबर्ग एक ऐसा नाम, जो विश्व भर के अरबों लोगों के दिलों पर ही नहीं, बल्कि दिमाग पर भी इस कदर छाया हुआ है कि लोग उन्हें अपना मित्र, अपना भाई, अपना पुत्र, अपना आदर्श, अपना सपना और न जाने क्या-क्या समझने लगे हैं। वही मार्क, जिन पर विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय हार्वर्ड से ‘ड्रॉप आउट’, यानी छोड़ देने का ठप्पा लगा और वह भी सिर्फ इसलिए कि वे समाज के लिए कुछ करना चाहते थे और उसी का नतीजा है—फेसबुक।SKU: n/a -
Aryan Books International, English Books, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Flight of Deities and Rebirth of Temples – Episodes from Indian History
-10%Aryan Books International, English Books, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासFlight of Deities and Rebirth of Temples – Episodes from Indian History
This work examines the medieval response to temple destruction and image desecration. While temples were destroyed on a considerable scale, also noteworthy were the repeated endeavours to reconstruct them. In each instance of rebirth, the temple retained its original name, even though there was a visible downsizing in its scale and grandeur. The Keshava temple at Mathura, the Vishwanath temple at Kashi, the Somnath temple in Saurashtra, the Rama mandir at Ayodhya were among the shrines continually restored, well after Hindus had lost all semblance of political power. The Bindu Madhava, the most important Vishnu temple in Varanasi, was demolished in 1669 and a mosque constructed in its place. The temple now bearing the name Bindu Madhava is a modest structure in the shadow of the mosque, but continues the traditions associated with the site. Intriguingly, mosques built on temple sites often retained the sacred names – Bijamandal mosque, Lat masjid, Atala masjid, Gyanvapi mosque, and not to forget, masjid-i- janamsthan.
Equally worthy of study was the fate of images enshrined in temples. Many were swiftly removed by anxious devotees, many more were hurriedly buried; some remained on the move for decades, till such time they could be escorted back to their abodes. In several cases, images were damaged in flight. Countless images were lost, as their places of burial were forgotten over time. That necessitated the consecration of new images in more peaceable circumstances. So there were temples of the tenth-eleventh centuries, which housed images instated in the sixteenth. In situations where neither temple nor image could be safeguarded, the memory endured, and a shrine was recreated after an interval of several centuries.
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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास
FROM EAST PAKISTAN TO BANGLADESH: RECOLLECTIONS OF 1971 LIBERATION WAR
-10%English Books, Vitasta Publishing, इतिहासFROM EAST PAKISTAN TO BANGLADESH: RECOLLECTIONS OF 1971 LIBERATION WAR
Whereas India and West Pakistan won their freedom from the British in 1947, East Pakistan got new colonial masters. So the story has to begin, as has been done in this book for the first time, from the personalities who created Pakistan, the military coups and assassinations that led to political instability, the ruling cliques that jostled for power and pelf, and the misdeeds which created fault-lines between the two wings of Pakistan. This was the backdrop to the genocide carried out by Pakistan’s army, which initially led to the resistance of East Pakistani troops and eventually necessitated India’s training and equipping of Mukti Bahini and joint operations with India’s armed forces. At the same time, dramatic events were also taking place on the world stage, in New York at the UN, in Washington, Dhaka and Islamabad which make for riveting reading. These developments had repercussions on international relations that were felt for decades, such as the unnatural axis between Washington, Beijing and Islamabad and the enduring ties between India and Bangladesh. Brig R P Singh, who was then a Captain in the Indian Army, was associated with the Bangladesh liberation struggle from start to the end. The book is a valuable addition to the literature on geopolitics as well as the subcontinent’s military history. The author provides an insightful, first-hand account of the challenges faced by the war-torn newly independent nation.
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