Author – Dr. Neetu Singh
ISBN – 9789352295715
Lang. – Hindi
Pages – 338
Binding – Hardcover
Faizabad : Sanskritik Gazetteer – 1
Dr. Neetu Singh
Rs.995.00
Weight | .800 kg |
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Dimensions | 8.57 × 5.51 × 1.57 in |
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Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Rang Parampara
0 out of 5(0)अत्यन्त समृद्ध नाट्य-परंपरा और सक्रिय आधुनिक नाट्य स्थिति के बावजूद न सिर्फ़ हिन्दी बल्कि भारत की किसी भी भाषा में समकक्ष रंगालोचना विकसित नहीं हो पायी है। नये रंगविचार की रोशनी में अपनी रंग परम्परा को खोजने और उसके पुनराविष्कार के अनेक प्रयत्न रंगमंच पर हुए हैं और उन्हें अपनी परम्परा में अवस्थित कर आलोचनात्मक दृष्टि से समझने की कोशिश कम ही हो पायी है। वरिष्ठ साहित्यकार नेमिचन्द्र जैन पिछली लगभग अर्द्धशती से हिन्दी और समूचे भारतीय रंगमंच के सजग और प्रबुद्ध दर्शक और समीक्षक रहे हैं। हिन्दी में तो उन्हें रंग समीक्षा का स्थपति ही माना जाता है। उनमें परम्परा, उसके पुनराविष्कार और उसके रंगविस्तार की गहरी समझ और उसकी बुनियादी उलझनों की सच्ची पकड़ है। उन्होंने आलोचना की एक रंगभाषा खोजी और स्थापित की है। उसी रंगभाषा और उसमें समाहित एक गतिशील और आधुनिक रंगदृष्टि से उन्होंने हमारी रंग परम्परा का गहन विश्लेषण किया है। दृष्टि का ऐसा खुलापन, समझ का ऐसा चौकन्ना सयानापन और समग्रता का ऐसा आग्रह हिन्दी में ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ है। अगर पिछले पचास वर्ष के भारतीय रंगमंच को, उसकी बेचैनी और जिजीविषा को, उसकी सीमाओं और सम्भावनाओं को, उसकी शक्ति और विफलता को समझना हो तो यह पुस्तक एक अनिवार्य सन्दर्भ है। सबके लिए, फिर वह दर्शक हो, या रंगकर्मी, नाटककार या समीक्षक।
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Sharmishtha
0 out of 5(0)अणुशक्ति की प्रखर लेखनी से हम सब उनकी कुछ प्रकाशित कहानियों और कविताओं के चलते परिचित हैं। पहली पुस्तक कृति के रूप में किसी युवा लेखक का सीधा उपन्यास प्रकाश में आये तो यह साहस और प्रशंसा का विषय है क्योंकि उपन्यास विधा ऐसी विधा है जिसे साधना या तो अभ्यास के साथ आता है, या यह विधा साधने की प्रतिभा आप में प्रकृति प्रदत्त होती है। अणुशक्ति ने दूसरा साहस किया है पौराणिक-मिथकीय पात्र चुनकर। वह भी ऐसा पात्र जिसके आस-पास प्रकाशित पात्र पहले से हैं जिन पर कथा, कविताएँ रचे जा चुके हैं। ‘शर्मिष्ठा’ इन चमकते सौर मण्डल के सदस्यों ययाति, पुरुरवा, देवयानी और शुक्राचार्य के बीच एक संकोची चन्द्र रही है। इसे अपने जीवनीपरक उपन्यास के माध्यम से प्रकाश में लाने का सार्थक प्रयास किया है अणुशक्ति ने। शुक्राचार्य की पुत्री, घमण्डी, महत्वाकांक्षी और ईर्ष्यालु देवयानी के समक्ष असुरराज वृषपर्वा की पुत्री राजकुमारी शर्मिष्ठा सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी अपने निश्छल व्यक्तित्व के चलते राजकीय जीवन और स्वतन्त्रता हार जाती है और देवयानी की दासी बनकर रहती है। फिर चाहे ययाति से उसे प्रेम और पुत्र प्राप्ति हो । हस्तिनापुर तो वही है न, जहाँ से कोई स्त्री आहत मर्म लिए नहीं लौटती। शर्मिष्ठा के जीवन-संघर्ष को बड़े सुन्दर ढंग से पिरोया गया है इस उपन्यास में। भाषा इतनी सारगर्भित है कि कितना बड़ा कालखण्ड, परिवेशों, कितने-कितने चरित्रों और घटनाओं को सहज ही इस उपन्यास के कलेवर में समेट लेती है। अणुशक्ति ने पौराणिक अतीत से एक पात्र शर्मिष्ठा को चुनकर एक रोचक और पठनीय उपन्यास रचा है.जिसका कथ्य गहरे कहीं समकालीन प्रवृत्तियों पर भी खरा उतरता है।
अणुशक्ति की प्रखर लेखनी से हम सब उनकी कुछ प्रकाशित कहानियों और कविताओं के चलते परिचित हैं। पहली पुस्तक कृति के रूप में किसी युवा लेखक का सीधा उपन्यास प्रकाश में आये तो यह साहस और प्रशंसा का विषय है क्योंकि उपन्यास विधा ऐसी विधा है जिसे साधना या तो अभ्यास के साथ आता है, या यह विधा साधने की प्रतिभा आप में प्रकृति प्रदत्त होती है। अणुशक्ति ने दूसरा साहस किया है पौराणिक-मिथकीय पात्र चुनकर। वह भी ऐसा पात्र जिसके आस-पास प्रकाशित पात्र पहले से हैं जिन पर कथा, कविताएँ रचे जा चुके हैं।
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Vani Prakashan, इतिहास
Awadh Sanskriti Vishwakosh – 1
0 out of 5(0)प्राचीन अवध के अन्तर्गत इन आठ राज्यों का उल्लेख प्राप्त होता है-1. वत्स 2. कौशाम्बी 3. कोसल-साकेत 4. श्रावस्ती 5. कान्यकुब्ज 6. अन्तर्वेद 7. भारशिव (बैसवारा) 8. शर्की (जौनपुर)। यही रामराज्य की वास्तविक परिधि थी। यद्यपि कवियों ने रामराज्य को देश-देशान्तर तक व्याप्त दिखाया है, किन्तु वह मंगलाशा मात्र है। गोस्वामी जी ने लिखा है- “सप्तद्वीप सागर मेखला” किन्तु यह कथन एक प्रकार की कवि प्रौढ़ोक्ति है। अकबर ने पूरे मुगल राज्य को 1590 ई. में कुल 12 सूबों में बाँटा था। सूबाए औध में 5 सरकारें थीं-लखनऊ, फैजाबाद, खैराबाद, बहराइच, गोरखपुर। बाद में गोरखपुर अलग कमिश्नरी से जुड़ गया। मध्यकाल में अयोध्या पर समय-समय पर कई वंशों ने राज्य किया, जिनमें मुख्य हैं-1. खिलजी वंश 2. तुगलक वंश 3. मुगल वंश 4. सोलंकी राजा 5. कान्यकुब्ज नरेश 6. परिहार वंश 7. लोदी वंश 8. गहरवार वंश 9. नवाबी शासन। अंग्रेजी शासन में अवध के भीतर सुल्तानपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, टाँडा और मानिकपुर को सम्मिलित कर लिया गया और गोरखपुर को पृथक कर दिया गया। बाद में अयोध्या पर शाकद्वीपीय राजाओं का अधिकार रहा। लाला सीताराम ने ‘अयोध्या का इतिहास’ में इन सबका विस्तृत विवरण दिया है। इस विशाल क्षेत्र का भौगोलिक परिवेश अत्यन्त बहुरंगी तथा सुरम्य है। इसकी अधिकांश भूमि वनों से ढकी है। भूवैज्ञानिक संरचना की दृष्टि से यह क्षेत्र कई हिस्सों में बँटा है। इस क्षेत्र का काफी भाग हिमालय की तराई (गाँजर) क्षेत्र में आता है। खीरी, बहराइच, गोण्डा, बलरामपुर, सीतापुर, श्रावस्ती जिले इसी गाँजर क्षेत्र के जिले हैं। उत्तर में यह हिमालय की एक समानान्तर श्रेणी है। दूसरा क्षेत्र गंगा यमुना का मैदान (दोआबा) कहलाता है।
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