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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chhatrapati Shivaji : Vidhata Hindvi Swarajya ka
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणChhatrapati Shivaji : Vidhata Hindvi Swarajya ka
छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अलौकिक है। उसमें अदम्य साहस और नेतृत्व के विरले गुण अभिव्यक्त होते हैं। वर्तमान समय में यह महान् व्यक्तित्व और भी सामयिक हो चला है। शिवाजी के स्वराज्य की संकल्पना के मूल तत्त्व यदि आज लागू किए जाएँ तो भारत निस्संदेह विश्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच सकता है।
‘छत्रपति शिवाजी : विधाता हिंदवी स्वराज्य का’ लिखने का मुख्य उद्देश्य महान् शिवाजी के जीवन-मूल्यों को युवा पीढ़ी से परिचित करवाना और वरिष्ठजनों के लिए उस स्वर्णिम कालखंड की स्मृति ताजा करना है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य एवं साहस से परिपूर्ण तेजस्वी जीवन का विहंगम दिग्दर्शन कराती सबके लिए पठनीय कृति।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Chhatrapati Shivaji Maharaj
वह एक महान् नायक थे और एकमात्र ऐसे व्यक्ति, जिनमें एक नए राज्य को खड़ा करने का विशाल हृदय था…
—मुगल बादशाह औरंगजेब
महान् योद्धा और कुशल प्रशासक, छत्रपति शिवाजी महाराज, जो महान् मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे और उन्होंने ही अपने लोगों के मन में मराठा अस्मिता की भावना को जाग्रत् किया।
ऐसे समय में जब मुगल साम्राज्य अपनी बुलंदियों को छू रहा था, तब शिवाजी ही एकमात्र ऐसे थे, जिन्होंने बादशाह औरंगजेब की ताकत को चुनौती देने का साहस दिखाया। उन्होंने अपनी साधारण सी 2,000 सैनिकों की सेना को धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 1,00,000 की क्षमता तक पहुँचाया। अनुशासित सैन्य प्रणाली, सुगठित प्रशासनिक संरचना और पूर्णतया परंपरागत समाज की सहायता से मराठा सेना जल्दी ही ऐसी विलक्षण सैन्य शक्ति बन गई जो भारत में मुगलों को टक्कर दे सकती थी।
आदिलशाही सल्तनत और औरंगजेब जैसे खतरनाक शासकों के साथ हुई ऐतिहासिक लड़ाइयों का वर्णन करने के साथ यह पुस्तक छत्रपति शिवाजी महाराज के विजय और शौर्य की कहानियाँ बताती हैं, जिनसे हर भारतीय पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रेरणा लेता रहेगा।SKU: n/a -
Vani Prakashan, रामायण/रामकथा
Chhattisgarh ke LokJeevan Mein Ram
संत तुलसीदास के राम एक थे, दुष्टता का पर्याय रावण एक था। उस समय की रामायण बहुत सरल थी और आज की रामायण? वर्तमान की रामायण उस रामायण से कहीं ज्यादा कठिन है, यही बात कवि की इस “ इतने राम कहा से लाऊँ” में दिखाई देता है। और यह सच है कि ‘ राम कि एक अवधी निश्चित थी, अपने दिवस अनिश्चित हैं। छत्तीसगढ़ के निवासियों में राम-राम, जय राम, सीताराम का अभिवादन सुनकर स्पष्ट हो जाता है कि राम कहना हमारी जिह्वा का स्वभाव है और स्वभाव इसलिए है क्योंकि राम छत्तीसगढ़ कि आत्मा में बसे हुए हैं।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य
Chhuachhoot Mukta Samras Bharat
-10%Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्यChhuachhoot Mukta Samras Bharat
भारत प्राचीन काल में विश्वगुरु रहा है, क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने विश्व कल्याण हेतु ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उद्घोष किया। किंतु लंबे समय तक भारत विदेशी आक्रांताओं द्वारा शोषित और शासित रहा। इसी कालखंड में उन्होंने भारत की शिक्षा, संस्कृति, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। जो जाति व्यवस्था कर्म आधारित थी, वह धीरे-धीरे जन्म आधारित हो गई। कुछ जातियों को अमानवीय स्थिति में डालकर अस्पृश्य घोषित कर दिया। स्वतंत्रता के बाद कानून बनाकर अस्पृश्यता, यानी छुआछूत को दंडनीय अपराध घोषित किया गया, तो कुछ राहत मिली। इसके पूर्व भी हमारे संतों व समाज-सुधारकों ने इस जाति-पाँति आधारित भेदभाव का खंडन और विरोध किया था।
आधुनिक संदर्भ में जाति-पाँति, रंग, भाषा, क्षेत्र, लिंग आदि पर आधारित सभी प्रकार की विषमताओं को समाप्त कर एक समरस समाज के निर्माण की नितांत आवश्यकता है। सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशी समतामूलक समरस समाज ही स्वस्थ और सुखी समाज हो सकता है। सशक्त व अखंड राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता अनिवार्य है। चूँकि सबके साथ से ही सबका विकास एवं सबका विश्वास संभव है। देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आरंभ से ही इस चुनौती को स्वीकार कर समरस व जातिविहीन समाज के निर्माण का संकल्प लिया था। समरसता हेतु चल रहे इस महायज्ञ में एक आहुति के रूप में यह पुस्तक ‘छुआछूत मुक्त समरस भारत’ प्रस्तुत है।
• जाति का सबसे बुरा पक्ष है कि वह प्रतियोगिता को दबाती है और वास्तव में प्रतियोगिता का अभाव ही राजनीतिक अवनति और विदेशी जातियों द्वारा उसके पराभूत होते रहने का कारण सिद्ध हुआ है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
China Mitra Ya ?
-15%Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)China Mitra Ya ?
दले हुए रणनीतिक सिद्धांत के मद्देनजर चीन भारत को अमेरिका के एक हथियार के रूप में देखता है। वह पिछले कई दशकों से भारत को घेरे में लेने और उसे दक्षिण एशिया में उलझाकर रखने की सोची-समझी नीति अपना रहा है। पाकिस्तान को जितनी चीन की ओर से हथियारों और अन्य साधनों की मदद मिली है उतनी पश्चिम के किसी देश से नहीं मिली। उत्तर में चीन ने तिब्बत का सैन्यकरण कर लिया है। उधर पूर्व में उसने बँगलादेश के साथ एक सैन्य समझौता कर लिया है। पूर्व में ही और आगे बढ़ें तो एक ओर जहाँ हम म्याँमार को लोकतंत्र का हवाला देकर झिड़क रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चीन उसे अपना आश्रित बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ चुका है।
और यहाँ हम अपनी आँखें बंद किए बैठे हैं। साथ ही ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का राग और तेजी से अलाप रहे हैं।
—इसी पुस्तक से
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री अरुण शौरी की यह पुस्तक चीन द्वारा हासिल की जानेवाली शक्तियों, उसकी रणनीतियों और भारत के संदर्भ में उनके परिणामों की समीक्षा तो करती ही है, भारत-चीन संबंधों के अतीत, वर्तमान व भविष्य की भी पड़ताल करती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथा
Chitrakoot Mein Ram-Bharat Milap
चित्रकूट में राम-भरत मिलाप’ रामकथा के महत्त्वपूर्ण प्रसंग का नाट्यरूप में प्रणयन है।
यह घटना जहाँ भ्रातृप्रेम और त्याग का अद्वितीय आदर्श है, वहीं उससे राजधर्म के महान् सिद्धांत प्रस्फुटित हुए हैं।
वर्तमान परिवेश में लेखक ने रामायण की इस घटना को सामान्य जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है।
एक ओर इस कृति का स्वागत जहाँ भारतीय जनमानस द्वारा किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर राजशासकों द्वारा भी।
आशा है कि इस कृति का व्यापक रूप से पठन-पाठन तथा मंचन होगा।SKU: n/a -
Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Chitramay ShriDurgaSaptshati 2304
दुर्गासप्तशती हिन्दू-धर्म का सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसमें भगवती की कृपा के सुन्दर इतिहास के साथ अनेक गूढ़ रहस्य भरे हैं। सकाम भक्त इस ग्रन्थ का श्रद्धापूर्वक पाठ कर के कामनासिद्धि तथा निष्काम भक्त दुर्लभ मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस पुस्तक में पाठ करने की प्रामाणिक विधि, कवच, अर्गला, कीलक, वैदिक, तान्त्रिक रात्रिसूक्त, देव्यथर्वशीर्ष, नवार्णविधि, मूल पाठ, दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, श्री दुर्गामानसपूजा, तीनों रहस्य, क्षमा-प्रार्थना, सिद्धिकुञ्जिकास्तोत्र, पाठ के विभिन्न प्रयोग तथा आरती दी गयी है।
इस संस्करण में हिन्दी अनुवाद तथा पाठ-विधि सहित दुर्गा सप्तशती का प्रकाशन किया गया है। यह पुस्तक रंगीन अक्षरों में चित्रों के साथ है।
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Gita Press, Hindi Books, रामायण/रामकथा
Chitramay ShriRamCharitManas 2295
श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के द्वारा प्रणीत श्रीरामचरितमानस हिन्दी साहित्य की सर्वोत्कृष्ट रचना है। आदर्श राजधर्म, आदर्श गृहस्थ-जीवन, आदर्श पारिवारिक जीवन आदि मानव-धर्म के सर्वोत्कृष्ट आदर्शों का यह अनुपम आगार है। सर्वोच्य भक्ति, ज्ञान, त्याग, वैराग्य तथा भगवान की आदर्श मानव-लीला तथा गुण, प्रभाव को व्यक्त करनेवाला ऐसा ग्रंथरत्न संसार की किसी भाषा में मिलना असम्भव है। आशिर्वादात्माक ग्रन्थ होने के कारण सभी लोग मंत्रवत् आदर करते हैं। इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से एवं इसके उपदेशों के अनुरूप आचरण करने से मानवमात्र के कल्याण के साथ भगवत्प्रेम की सहज ही प्राप्ति सम्भव है। श्रीरामचरितमानस के सभी संस्करणों में पाठ-विधि के साथ नवान्ह और मासपरायण के विश्रामस्थान, गोस्वामी जी की संक्षिप्त जीवनी, श्रीरामशलाका प्रश्नावली तथा अंत में रामायण जी की आरती दी गयी है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chittor ki Maharani Padmini ki Aitihasikata
चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की ऐतिहासिकता : अपनी मातृभूमि और संतति की रक्षा, अपनी आन तथा अस्मिता को अक्षुण्ण रखने की टेक और अपने कुल के सत और गौरव पर प्रहार का सामना करने के लिए कटिबद्ध हो जाना मनुष्य मात्र का स्वभाव है, नैसर्गिक गुण है। कुछ समुदाय व कुल इसको इतना अधिक महत्त्व देते हैं कि प्राणों का बलिदान करने में भी नहीं हिचकते। उनका यह बलिदान लगभग सभी संस्कृतियों में सराहा जाता है और उसका गौरव-गान किया जाता है। ऐसी मार्मिक घटनाओं पर राजनैतिक इतिहासकार वाद-विवाद, छिद्रान्वेषण करते ही रहते हैं पर ऐसी सभी बाधाओं को पार कर चित्तौड़ की पद्मिनी और उसके परिवार का ऐसा ही बलिदान अपने गढ़ से निकलकर जनश्रुति और लोक कलाओं के माध्यम से काल प्रवाह के साथ मेवाड़ और राजपूताने से होता हुआ समस्त भारत में फैल गया। आज तो यह गाथा मानव संस्कृति की धरोहर का एक अंग बन गई है। पद्मिनी की प्रसिद्धि चारों ओर फैली। सूफी कवि जायसी ने अवधी बोली में पद्मावत लिखा, अवधी से इसका अनुवाद दक्खिनी हिन्दी में हुआ, साथ ही इस गाथा पर आधारित रचनाएँ दक्षिण में भी होने लगी। 17वीं शती में तो द्विलिपिय रचनाएं आने लगीं, विशेषकर राजपूत मनसबदारों के लिए ऐसी पुस्तकें फारसी और देवनागरी दोनों लिपियों में लिखी जाती थी। आंबेर के राजाओं के संग्रह में ऐसी पुस्तकें उपलब्ध हैं। 16वीं से 19वीं शती तक प्रतिकृतियाँ तैयार होती रहीं और चित्रकार पद्मिनी की गाथा अंकित करते रहे। जोगी-गायक इसका गायन करते रहे, न तो कवियों व लेखकों की लेखनी रूकी और न ही चित्रकारों की तूलिका।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Chittorgarh ka Itihas
चित्तौड़गढ़ का इतिहास – श्री रामवल्लभ सोमानी कृत वीरभूमि चित्तौड़ पर आधारित :
चित्रकूटाचलं चर्चितं च चत्वार चच्चेति।
चारुचैत्यं चित्रांगणं चित्रयोधां चतुरंगणम्।।दुर्गों में सिरमौर चित्तौड़ की महिमा पृथ्वी के मनोरम मुकुट रूप में की गई है। चित्तौड़गढ़ चार ‘च’ के लिए भी चर्चित है। उसमें पहला सुंदर मंदिर, दूसरा चित्रांगन किला, तीसरा विचित्र लड़ाई करने वाले योद्धा और चैथा चतुरंग (चैसर या चतुरंगिनी सेना)। इसके नाम पर चित्तौड़ी आठम तिथि मनाई जाती है। इसमें आठ अहम चित्तौड़ी शब्द हैः- चित्तौड़ी गड़ (सुंदर, सुघड़ गढ़), चित्तौड़ी चड़ (चढ़ाई, फतह), चित्तौड़ी खड (पाषाण की खरल), चित्तौड़ी लड़ (निर्णायक लड़ाई), चित्तौड़ी जड़ (बातचीत की साख), चित्तौड़ी बड़ (बड़ाई, बड़प्पन), चित्तौड़ी भड़ (सहारा, इमदाद), चित्तौड़ी पड़ (शरणागति) एक दोहे में यह सब कहा गया हैः- चित्तौड़ी गड़ खड़ लड़, जड़ भड़पण अणमाप। महिमा वो ही जाणसी, जे चड़ छड़ पड़ तापत्र।।
यह दुर्ग अपने मानक गज और मुद्रा प्रमाण के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। चित्तौड़ी गज (24 अंगुल प्रमाण), चित्तौड़ी प्रत (ग्रंथों की प्रमाणित प्रति), चित्तौड़ी टकसाल (मुद्रापातन शाला), चित्तौड़ी सिक्का (सुंदर और खरे सिक्के)
चित्तौड़ के सिक्के आज भी खरे हैं। सदियों पुराने नगरी के पंचमार्क और चित्तौड़ के महाराणाओं के नाम वाले सिक्के आज भी अनेकों संग्रह में है, जिनमें महाराणा मोकल, कुंभा, रायमल, सांगा और बनवीर आदि के शासनकाल के दुर्लभ सिक्के शामिल हैं। महाराणा स्वरूपसिंह, सज्जनसिंह से लेकर आजादी मिलने तक ‘दोस्ती लंदन’ के जो सिक्के चलते थे, शुद्ध चांदी के थे और 17 आना यानी 100 प्रतिशत से अधिक मानक वाले थे। बहुत कम लोगों को पता होगा कि एक चित्तौड़ दुर्ग ही देशी रियासतों में ऐसा था, जिसके चित्र को सिक्के पर ढाला गया था। चित्तौड़ ऐसा दुर्ग हैं, जहां सौ से अधिक शिलालेख मिले हैं। एक से बढ़कर एक और एक पंक्ति से लेकर सौ-सौ श्लोक तक प्रमाण वाले दस्तावेज। दुनिया में सबसे अधिक ताम्रपत्र मेवाड़ में ही मिले हैं। चित्तौड़ के प्रशस्तिकार वेद शर्मा, अत्रि भट्ट, महेश दशोरा के बड़े नाम हैं। महेश से मेवाड़ महाराणाओं सहित मालवा के सुल्तानों ने भी प्रशस्तियां लिखवाईं। ये विश्वास महाराष्ट्र में देवगिरि तक बना रहा।
गुजरात के शत्रुंजय पर्वत पर जैन मंदिर के निर्माण और जीर्णोद्धार में चित्तौड़ के सूत्रधार और शिल्पियों का सहयोग रहा। मालवा, मारवाड़, गोड़वाड़ आदि में यहां के शिल्पियों के बनाए महल, बाग बगीचे, बावड़ियां व मंदिर अलग पहचान रखते हैं। वास्तु के सबसे अधिक ग्रंथ यहीं तैयार हुए, जिनमें समरांगन सूत्रधार, अपराजित पृच्छा से लेकर राज वल्लभ आदि दर्जनों ग्रंथ शामिल हैं।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Collection of Agni, Devi Bhaagwad puran
-5%Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिCollection of Agni, Devi Bhaagwad puran
- Abridged Agni Puran(Code1362)
- Shrimad Devi Bhaagwad Maha Puran Pratham Khand (Code 1897)
- Srimad Devi Bhagwat Mahapuran with Hindi translation (Volume-2) Dwitiya Khand Code-1898
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Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण/रामकथा
Collection of Ramayana , Mahabharat , Geeta
-5%Gita Press, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण/रामकथाCollection of Ramayana , Mahabharat , Geeta
रामायण/ गीता/ महाभारत
Collection of Ramayana , Mahabharat , Geeta1.Shrimad Valmikiya Ramayan- Vol.1 & 2 (Code 75 & 76)
2.Shrimadbhagvadgita Sadhak Sanjeevani
3 SANKSHIPT MAHABHARAT (Vol-1 & 2)SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplate Ved Gujarati Set (8 Vol.)
સારના પ્રાચીનતમ જ્ઞાનનું ઉદ્ગમસ્થાનવેદો છે. વેદ એ ઈશ્વરીય જ્ઞાન-વિજ્ઞાન એ છે. એ જ્ઞાન-ગંગોત્રીનો પ્રવાહ સંસારના પટ પર અનેક વહેણોમાં પ્રવાહિત થયેલ છે, સર્વવિદ્વાનોએ બુદ્ધિની એરણ પર તર્કનાહથોડાથી ટીપીને પ્રતિપાદન કરેલ છે.
તેનું પર્વ અને પાશ્ચાત્ય વેદ એ ઈશ્વરોક્ત –પરમ સત્ય અને સર્વસત્ય વિદ્યાઓથી યુક્ત છે. સૃષ્ટિની આદિમાં ઋષિઓનાં હૃદયમાં પ્રેરણા દ્વારા જે સત્ય જ્ઞાનપ્રદાન કર્યું અને જેમણે તેનો આવિષ્કાર કર્યો, તે જ્ઞાનને વેદ કહે છે. તે વેદ સૃષ્ટિના આરંભથી લઈને ગુરુ-શિષ્ય પરંપરા દ્વારા ઉત્તરોત્તર સાંભળીને, કંઠસ્થ કરીને જાળવી રાખવામાં આવ્યા તેથી તેને “શ્રુતિ’ પણ કહે છે.
વેદ ચાર છે – તેમાં ઋગ્યેદ એ સંસારના પ્રાણી અને પદાર્થ સંબંધી, આત્મા અને પરમાત્મા સંબંધી-વિષયક જ્ઞાનકાંડ છે. યજુર્વેદ મનુષ્યોનાં કર્મસંબંધી કર્મકાંડ, સામવેદ ઉપાસના કાંડ અને અથર્વવેદવિજ્ઞાન કાંડ છે.
સામવેદ પરિચય : સામવેદની તેર વિભિન્ન શાખાઓનાં નામ ગ્રંથોમાં મળે છે. પરંતુ તેમાંથી વર્તમાનમાં
કૌથુમીય, રાણાયનીય અને જૈમિનીય એ ત્રણ શાખાઓ જ પ્રાપ્ત છે. કૌથુમીય અને રાણાયનીયમાં માત્ર પ્રપાઠકે = અધ્યાયો વગેરેની ભિન્નતા છે, પરન્તુ જૈમીની શાખામાં મંત્રોની શાખા અને પાઠમાં પણ ભિન્નતા જોવા મળે છે. સામવેદનું વર્ગીકરણ મુખ્ય આર્થિક અને ગાન એમ બે વિભાગમાં જોવા મળે છે, આર્થિકએ ઋચાઓ-મંત્રોનો સમૂહ છે, તેના પૂર્વાચિક અને ઉત્તરાચિકમુખ્ય બે ભાગ છે-વચ્ચે સંક્ષિપ્ત મહામાન્ય આર્થિક પણ છે.
પૂર્વાર્ચિકમાં રાણાયનીય શાખા અનુસાર છ પ્રપાઠક છે. તેને બે અને ત્રણ ભાગમાં પ્રપાઠકાઈ અને તેમાં દશતિ મંત્રોથી વિભક્ત કરેલ છે. કૌથુમ શાખામાં છ અધ્યાયમાં અનેકખંડો અથવાદશતિ =સક્ત અર્થાત્ મંત્રોનો સમૂહ આવેલ છે. દશતિથી દશ‘ત્ર-ઋચાઓ = મંત્રોનું ગ્રહણ થાય છે, પરન્તુ તેમાં અધિક અથવા ન્યૂન સંખ્યા પ – મળે છે.
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English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complete Bhavisya Mahapurana Set of 3
-15%English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplete Bhavisya Mahapurana Set of 3
Purāņas are the treasure house of knowledge. The Paurāņika literature is encyclopedic and it includes diverse topics such as cosmogony, cosmology, genealogies of gods & goddesses, kings sages, demigods, folk tales, pilgrimages, temples, medicine, astronomy, grammar, mineralogy, theology and philosophy.
The number of Purāṇas are eighteen. The Bhavisya Purāņa is the embodiment of knowledge of Present, Past and Future. It seems it has been written by sage Vyāsa at the end of all seventeen Purāņas.
Bhavisya Purāna is adorned with fourteen vidyās (knowledge) of the four Vedas, the six Angas of the Vedas, Dharmaśāstra, Mīmāṁsā, Tarka or Nyāya and other Purāņas. In addition to these fourteen vidyās, this Purāņa contains four other vidyās such asĀyurveda, Dhanurveda, Gandharvaveda and Arthaśāstra.
Bhavisya Purāņa has been divided into four parvas, 1. Brāhma Parva, 2. Madhyama Parva, 3. Pratisarga Parva, 4. Uttara Parva. Brāhma Parva deals with the stories of gods and goddesses, but on the whole the emphasis on this parva is praising and worshipping Sungod with merits of listening to his glory, performing his holy vratas (vows) and observing his fast. Madhyama Parva of the Bhavisya Purāņa is primarily a Tantra-related work. It has been divided into three parts. Third Pratisarga Parva of the Bhavișya Purāņa is a treasure of Indian history of Medieval period in which future incidents have been presented in past tense. The last parva of the Bhavisya Purāņa is Uttara Parva. This parva is the treasure of Karmakāņda and charities observing festivity.
The present edition of Bhavişya Purāņa is the first ever complete English translation of the original Sanskrit text in devanāgarī that also includes an exhaustive introduction, notes and an index of Sanskrit verses at the end of third volume of this book.
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Chaukhamba Prakashan, Gita Press, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complete Puran Set of 18
Chaukhamba Prakashan, Gita Press, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिComplete Puran Set of 18
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- Sankshipt Bramha Puran
- Sankshipt Padma Puran
- Shrivishnu Puran
- Sri Vayu Maha Purana (Mul Puran)
- Shrimad Bhagwat Mahapuran (set of 2 Volumes)
- Sankshipt Narad Puran
- Sankshipt Markandeya Puran
- Abridged Agni Puran(Code1362)
- Sri Bhavishya Mahapuranam (Set Of 3 Vols)
- Brahmavaivart Puran, Kewal Hindi
- Abridged Ling Mahapuran (Code1985)
- Abridged Varah Puran (Code1361
- Sankshipt Skand Puran
- Sri Vaman Puran
- Koorm Puran
- Matsya Puran
- Sankshipt Garud Puran
- Brahmanda Puranam (Set Of 2 Volumes)
+ 1 more Puran - ShriShiv Mahapuran (Set Of 2 Volume)
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English Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Complete Vedas Set of 9
The word ‘Veda’ means ‘knowledge’ and is derived from the Sanskrit root ‘vid’, means ‘to know’. It does not refer to one single literary work, but indicates a huge corpus of literature, which arose in the course of many centuries and has been handed down from one generation to another generation by verbal transmission. ‘Veda’ is also called ‘Shruti’ meaning what is heard, as opposed to the ‘Smriti’ composed by sages at a later stage recounting the content of the Vedic texts. This referes the purely oral-aural method which was (and is) used for it.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, कहानियां
Coronakaal Ki Sachchi Kahaniyan
चारों तरफ खौफ छा गया। कुछ लोग तो दुबककर कमरों में लिहाफ के अंदर घुस गए, कुछ निडर प्रकार के लोग मोबाइल कैमरे से छिपकर वीडियो बनाने का प्रयास करने लगे।
एंबुलेंस से बाहर उतरे लोग इधर-उधर के घरों का जायजा ले ही रहे थे कि पीछे से सायरन बजाती हुई पुलिस की एक जिप्सी भी आ धमकी। जिप्सी से भी उसी प्रकार के पारदर्शी आवरण में खाकी वर्दीधारी लोग उतरे और सामने के गेट की कॉल बैल दबाई।
‘अरे मिसेज दत्ता के घर?’, हर परिवार के लोग आपस में कानाफूसी करने लगे।
‘कौन बीमार हुआ होगा?’
‘कौन होना है? वही होगी, अकेले वही तो है इस घर में!’ लोग खौफ में थे। एक-दूसरे को फोन कॉल करके पूछ रहे थे किंतु बाहर निकलकर पुलिस से या एंबुलेंस वालों से पूछने की किसी को हिम्मत न हो पा रही थी। कोरोना का खौफ इस कदर था कि मानो अगर उन्होंने थोड़ा सा भी दरवाजा खोला तो झिर्री के रास्ते ही कोरोना उनके घर के अंदर भी घुस जाएगा।
—इसी कहानी संग्रह सेदेश, समाज और अपने इर्द-गिर्द घटनेवाली घटनाओं पर पैनी नजर रखनेवाले कथाकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कोरोनाकाल में घटित अनेक मार्मिक घटनाओं को अपनी कहानियों में पिरोकर कोरोना जैसी महामारी से उपजे हालातों के मध्य मानव, मानवता, मानव मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं का गहन विश्लेषण किया है। विपरीत परिस्थितियों, कठिनाइयों और संघर्षों के बीच ये कहानियाँ मन-मस्तिष्क को धैर्य, साहस और सुकून का बोध कराती हैं।
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Akshaya Prakashan, English Books, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)
Cultural Astronomy and Cosmic Order
-14%Akshaya Prakashan, English Books, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सही आख्यान (True narrative)Cultural Astronomy and Cosmic Order
This book presents an appraisal of cultural astronomy and cosmic order among sacred cities of India, illustrated with Khajuraho, Gaya, Vindhyachal, Varanasi, and Chitrakut. The book explains a fresh writ of integrity, harmony, cultural astronomical reflections, and is profusely illustrated with designs and figures of which Rana Singh is a master craftsman. – Prof. John McKim Malville, APSC, University of Colorado, Boulder, U.S.A. The book is helpful in our understanding of the visions of the cosmos underlying sacred cities of India. The book provides insights that will be useful in anthropology, archaeoastronomy, geography, and religious studies. -Padmashree’ Prof. Subhash Kak, Oklahoma State University, Stillwater, U.S.A. The author extends the study of sacred environments as embodied in geography, religious architecture, cityscapes, and ritual. This book opens valuable new areas of investigation and is destined to become a major work in the field.— Prof. Nicholas Campion, Director SCSCC, The University of Wales, Lampeter, U.K. From astronomy to mythology, Rana Singh explores the very essence of Indian worldview/ cosmology articulated in its material culture and provides further evidence defining the role of sky-watching within this ancient culture. – Prof. Stanislaw Iwaniszewski, National School of Anthropology & History, Mexico City. This ground-breaking work radically transforms our understanding of Indian ethnoastronomy and religious culture. Prof. Audrius Beinorius, Director, Centre of Oriental Studies, Vilnius University, Lithuania The book has expanded the horizon of geography interfaced with astronomy and landscape architecture, making a new path to cosmic understanding. Prof. R. B. Singh, Secretary-General IGU, University of Delhi, India. Prof. Rana P.B. Singh (b. 15-12-1950), MA, PhD, FJF & FIFSS (Japan), FAAI (Italy), FACLA (Korea), ‘Ganga- Ratna’, & ‘Koshal-Ratna’, has been Professor of Cultural Landscapes & Heritage Studies, and Head of the D
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