जयपुर राज्य का इतिहास (सचित्र) : जयपुर राजस्थान का अग्रणी राज्य था। लगभग एक हजार वर्षों तक भारत की राजनीति में इसका दखल रहा। इस वंश के प्रद्युम्नदेव (पजून) ने पृथ्वीराज का साथ दिया तो पृथ्वीराज बाबर के विरूद्ध राणा सांगा के साथ थे। मुगल साम्राज्य के निर्माण में मानसिंह जी का योगदान तो विश्व विश्रुत है। इस वंश की उपलब्धियाँ केवल सैन्य जगत तक ही सीमित नहीं थी वरन् विज्ञान और कला के क्षेत्र में भी जयपुर के राजाओं और राजनेताओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सवाई जयसिंह खगोलविद् थे, ज्योतिष यन्त्रालयों का निर्माण करवाया, उनके पौत्र म. प्रतापसिंह कवि व गायक थे, तो म. रामसिंह द्वितीय प्रसिद्ध छायाकार। जयपुर की पांडित्य परम्परा पर तो एक अलग पुस्तक लिखी जा सकती है। स्वतंत्रता के पश्चात् जयपुर राज्य का विलय राजस्थान राज्य में हुआ और सवाई जयसिंह की राजधानी, राजस्थान की राजधानी बनी। आज इसकी गणना विश्व के सुन्दर नगरों में होती है। यह पुस्तक आंबेर में कछवाहों के आगमन से लेकर राजधानी के जयपुर आने और भारतीय गणराज्य में इसके विलय होने तक का दस्तावेज है, जिसे श्रीमति चन्द्रमणि जी ने रोचक भाषा में प्रस्तुत किया है।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, सही आख्यान (True narrative)
Islam Aur Communism (PB)
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, सही आख्यान (True narrative)Islam Aur Communism (PB)
हिन्दू रक्षा-शिक्षा के लिए एक अनिवार्य पुस्तक। तीन अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों की चेतावनी जैसे विश्लेषण-विवरण की हिन्दी में सारभूत प्रस्तुति।
इस्लाम के अनुसार अच्छा मुसलमान वह है जो प्रोफेट के सुन्ना का पालन करता है। यही एकमात्र निर्धारक है। यदि इस्लाम को जानना है तो सदैव मुहम्मद की ओर देखें, न कि किसी नेता, विद्वान या मौलाना को। तभी आपको सत्य मिलेगा। वरना धोखे खाने की ही पूरी संभावना है।… इस्लाम द्वारा दूसरों के साथ सह-अस्तित्व की सारी बातें सदैव अस्थाई होती हैं।… इसलिए पहले इस्लामी सिद्धांत व इतिहास जान कर ही सच्चाई समझे। यह अब कठिन नहीं रहा। तभी जरूरी है कि इस्लाम के सिद्धांत और व्यवहार के इतिहास को पूरी तरह जानने की व्यवस्था करना अनिवार्य कर्तव्य है। Islam denies coexistence
इस्लाम के साथ सामंजस्य का मतलब है उस की ओर से आती रहने वाली क्रमशः अंतहीन माँगें (डॉ. अंबेदकर ने कहा था, ‘मुसलमानों की माँगे हनुमान जी की पूँछ की तरह बढ़ती जाती हैं’) पूरी करते जाना। प्रोफेट मुहम्मद अपनी माँगों में कभी नहीं रुके,जब तक कि उन की 100% माँगें पूरी नहीं हो गईं। वही मुसलमानों के आदर्श हैं। इसलिए काफिरों के लिए कोई आसानी का रास्ता नहीं।
उन्हें समझ लेना होगा कि इस्लाम उस एक चीज – जिहाद – को कभी नहीं छोड़ेगा, जिस से उसे आज तक सारी सफलता मिली! इस्लाम की सारी सफलता राजनीतिक समर्पण की माँग, दोहरेपन और हिंसा पर आधारित है। बेचारा काफिर जो बदलना चाहता है वह यही चीज है – हिंसा, दबाव, हुज्जत, और राजनीति। जबकि काफिर से समर्पण की माँग करना और हिंसा करना, यही इस्लाम की सफलता का गुर रहा है। अतः हिंसा, दबाव, हुज्जत, और माँगें कभी नहीं रुकने वाली, क्योंकि वह 1400 वर्षों से काम कर रही हैं। आज तो वह पहले किसी भी समय से अधिक काम कर रही हैं! भारत में ही किसी भी हिन्दू नेता का भाषण सुन लीजिए।
यह पुस्तक राजनीतिक इस्लाम और कम्युनिज्म के स्वरूपों पर, भिन्न-भिन्न देशों के तीन बड़े विद्वानों के प्रमाणिक
आकलनों की एक प्रस्तुति है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति को समझने में भी यह सहायक हो सकती है।SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Islam vis-a-vis Hindu Temples
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Islam vis-a-vis Hindu Temples
Islam has been tormenting Hindu society for more than thirteen hundred years. It has inflicted no end of grievous injuries on the Hindu homeland, Hindu population, and the Hindu heritage. It is high time Hindus should understand the system of belief from which Muslim behavior pattern evolves. Hindus have so far failed to study Islam from the orthodox sources. In fact, they have been more than willing to buy the fairy takes which the salesman of Islam have fabricated, particularly about the Prophet, the Pious Caliphs, and the Sufis.
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Islamic Radicalisation In India: Origin And Challenges Book in English by Arun Anand
-15%Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Prabhat Prakashan, इतिहासIslamic Radicalisation In India: Origin And Challenges Book in English by Arun Anand
Two sets of developments have become quite visible over the last fewyears. While scores of activists belonging to Hindu organisations havebeen killed by radical Islamists; there Is also a growing clamour within a sectionof Indian Muslims to assert their religious identity aggressively and display itexplicitly.
There are some crucial aspects of radicalisation of Muslims in India thatneed to be understood. First, unlike the western world, radicalisation in India ishappening not only in urban areas but also in far flung as well as remote ruralareas. The population in rural India needs to be watched and monitored moreclosely in this regard. Second, radicalisation in India has been ‘legitimised’ in thename of ‘protecting minority rights’ by many political parties for garneringMuslim votes. Their regressive stand on issues like hijab and silence on thekilling of Hindu activists by radical Islamists further perpetuates radicalisation.Third, as a society we are refusing to learn lessons from the past. Radicalisationof Muslims led to partition of India in 1947. It is time not to be like that pigeonwho closes eyes thinking the cat doesn’t exist and ends getting eaten up.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Israel War Diary Book In Hind
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Israel War Diary Book In Hind
इजराइल वॉर डायरी’ पुस्तक में इजराइल और हमास युद्ध के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। यह पुस्तक युद्ध क्षेत्र से एक रिपोर्टर की आँखों देखी सच्ची कहानी है। 7 अक्तूबर, 2023 को हमास ने इजराइल पर आतंकी हमला किया, जिसके बाद इजराइल और हमास के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई। इजराइल और हमास के बीच यह युद्ध आज भी जारी है और इसका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। जब युद्ध की शुरुआत हुई तो विशाल पांडेय भारत से इजराइल पहुँचने वाले पहले भारतीय पत्रकार थे। विशाल ने गाजा बॉर्डर से लगातार 18 दिन तक ग्राउंड रिपोर्टिंग की और अपनी आँखों से युद्धभूमि में जो कुछ देखा और महसूस किया, उसे शब्दों के माध्यम से इस पुस्तक में अंकित किया है। गाजा बॉर्डर से लेकर यरूशलम और फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक तक की एक-एक तसवीर और जानकारी को इस पुस्तक में जगह दी गई है।
इस पुस्तक में आप यह पढ़ेंगे कि कैसे इजराइल और हमास के युद्ध की शुरुआत होती है। हमास आखिरकार इजराइल पर इतना बड़ा हमला कैसे कर पाया ? इजराइल और फिलिस्तीन की लड़ाई कितनी पुरानी है? मध्य पूर्व के देशों पर इस युद्ध का कितना असर पड़ रहा है ? इजराइल और हमास युद्ध के बीच भारत का स्टैंड क्या है ? इजराइल में आतंकी हमलों के पीड़ित लोगों की गवाहियाँ हैं तो फिलिस्तीन के लोगों का भी पक्ष आप यहाँ पढ़ पाएँगे।
इसके अलावा एक रिपोर्टर जब घर से युद्ध के मैदान के लिए रवाना होता है, उसकी क्या चुनौतियाँ होती हैं और किन हालात में वो रिपोर्टिंग करता है, यह सब आपको इस पुस्तक में मिलेगा।
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Govindram Hasanand Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Italy ke Mahatma Guisep Mejini ka Jivan Charit
Govindram Hasanand Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणItaly ke Mahatma Guisep Mejini ka Jivan Charit
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि लाला लाजपतराय को देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा इटली को स्वाधीनता दिलाने वाले और अपनी मातृभूमि को यूरोप की तत्कालीन साम्राज्यवादी शक्तियों के पंजे से छुड़ाने वाले महापुरुषों-गैरीबाल्डी तथा मेजिनी से मिली थी।
यह जीवन-वृतांत इटली के पूजनीय माने जाने वाले महात्मा ग्वीसेप मेजिनी का है, जिन्होंने सैकड़ों वर्षों से चली आ रही दासता के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तथा अपने देशवासियों को स्वतंत्रता प्राप्त करने का मार्ग दिखाया।
अपने देशवासियों को इन महापुरुषों की जीवनगाथा तथा कार्यों से परिचित कराने वाले प्रथम लेखक लालाजी ही थे। तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को इस बात की आशंका थी कि स्वदेश की आजादी के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले इन वीरों की गाथाएं कहीं भारतवासियों में भी आजादी की तड़प पैदा ना कर दे, इसलिए लालाजी द्वारा लगभग 100 वर्ष पहले लिखें गए इन जीवन चरितों को गौरी सरकार ने जप्त कर लिया था।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
ITIHAAS SMRITI AKANKSHA
इतिहास, स्मृति, आकांक्षा निर्मल वर्मा का चिन्तक पक्ष उभारती है। क्या मनुष्य इतिहास के बाहर किसी और समय में रह सकता है? रहना भी चाहे तो क्या वह स्वतन्त्र है? स्वतन्त्र हो तो भी क्या यह वांछनीय होगा? क्या यह मनुष्य की उस छवि और अवधारणा का ही अन्त नहीं होगा, जिसे वह इतिहास के चौखटे में जड़ता आया है? इतिहास बोध क्या है? क्या वह प्रकृति की काल चेतना को खण्डित करके ही पाया जा सकता है? लेकिन उस काल चेतना से स्खलित होकर मनुष्य क्या अपनी नियति का निर्माता हो सकता है? जिसे हम मनुष्य की चेतना का विकास कहते हैं, वहीं से मनुष्य की आत्म विस्मृति का अन्धकार भी शुरू होता है। यदि मनुष्य की पहचान उस क्षण से होती है जब उसने प्रकृति के काल बोध को खण्डित करते हुए इतिहास में अपनी जगह बनायी थी तो क्या उस प्रकृति के नियमों को नहीं माना जा सकता जिसका काल बोध अब भी उसके भीतर है।…आज जब ऐतिहासिक विचारधाराओं के संकट पर सब ओर इतना गहन और मूल स्तर पर पुनर्परीक्षण हो रहा है तब निर्मल वर्मा के यह व्याख्यान एक अतिरिक्त महत्त्व और प्रासंगिकता लेकर सामने आते हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Itihas ke 50 Viral Sach
सोशल मीडिया का दौर चरम पर है। जो फेसबुक, ट्विटर और ह्वाट्स एप कभी मित्रता और नेटवर्किंग बढ़ाने के साधन समझे जाते थे, वे अब राजनीतिक विचारधारा का टूल बन गए हैं। जिसका सबसे बुरा शिकार हो रहा है इतिहास, जिसकी मर्जी में जो आ रहा है, अपने राजनीतिक फायदे के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़कर उसे गलत मंशा से सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर शेयर कर रहा है। ऐसे में खासी दिक्कत उस आम आदमी के लिए हो गई है, जिसने यह इतिहास कभी किसी किताब में पढ़ा नहीं, लेकिन प्रतिष्ठित लोग उसे शेयर करें तो उसे सच मान लेता है, वहीं कोई दूसरा प्रतिष्ठित व्यक्ति उसे गलत साबित करता है तो ऐसे में सच क्या है? जरूरी था कि इस दिशा में प्रयास हों और ऐतिहासिक दावों की सच्चाई बताई जा सके। आमतौर पर टीवी के वायरल सच बताने वाले कार्यक्रमों में किसी-न-किसी इतिहासकार के बयान से ही उसे सच या झूठ मान लिया जाता है, जबकि हो सकता है कि वह इतिहासकार खुद किसी विचारधारा का पोषक हो। यह किताब सही संदभों के साथ ऐतिहासिक विवादों की तह में जाकर सच जानने का एक प्रयास है, भले ही छोटा सा है।
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Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, इतिहास
Itihas Ki Mrityu (PB)
‘इतिहास की मृत्यु’ श्री नरेंद्र पिपलानी द्वारा लिखी गई एक मौलिक विचारों से परिपूर्ण पुस्तक है, जिसमें विश्व की लगभग सभी भाषाओं के शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई हैं यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। प्राय: हम समझते हैं अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ती ग्रीक, लैटीन, फ्रेंच या अन्य भाषाओं से हुई होगी। लेकिन श्री नरेंद्र पिपलानी द्वारा लिखी गई पुस्तक इतिहास की मृत्यू को पढने से यह सिद्ध होता हैं कि विदेशी भाषाओं की भी अधिकतर शब्द भारत की संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुए हैं, लेकिन समय और स्थान के परिवर्तन के साथ-साथ अपना रूप-रंग बदल चुकें हैं, इसलिए यह शब्द हमें विदेशी प्रतीत होते हैं। वास्तविकता में यह शब्द भारत के प्राचीन लोगों के साथ दूसरे देशों में गए और इन्होंने अपना स्परूप बदल लिया। अधिक जानकारी के लिए ”इतिहास की मृत्यु” पुस्तक अवश्य पढें।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jaat Itihas
लेखक की मान्यता है कि काला सागर के समीप प्रथम मानव का उद्भव हुआ। प्राकृतिक प्रकोपों के कारण वहां से लोग इधर-उधर चले गए। एक समुदाय भारत की ओर भी आया, वह आर्यों के नाम से जाना गया। कालान्तर में, भारतीय आर्य वर्ण एवं जातियों में विभाजित हो गए। जाटों का प्रादुर्भाव भी इसी वर्गकरण का प्रतिफल था। जाटों ने संघबद्ध जीवन पद्धति को बनाए रखा और धार्मिक-सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त रहे। फलतः पुरोहित तथा राजा के गठबंधन से उनको संघर्ष करना पड़ा। संघर्ष में उनकी जीतें भी हुई और हारें भी। विवशतावश, वे पुनः एशिया और यूरोप के देशों की ओर गए और बड़े राज्यों का ध्वन्स करके अपने उपनिवेश स्थापित किए।
विरोधी परिस्थितियों के कारण वे फिर भारत की ओर आए और सिन्ध, पंजाब, मालवा, गुजरात और गंगा-यमुना के क्षेत्रों में बस गए। कालान्तर में उन्होंने हूणों को देश से बाहर भगाया और प्रायः प्रत्येक आक्रमणकारी का प्रतिरोध करके भारत की राजनीतिक स्थिति के निर्माण में योगदान दिया। जाटों ने, ईसापूर्व से लेकर ईसा की अठारहवीं शती तक विदेशी आक्रमणकारियों के साथ इतनी तलवार बजाई कि उसकी समता भारतीय इतिहास में नहीं मिलती। वे लेखनी से अपना इतिहास लिखने की ओर से उदासीन रहे, अतः उनकी राष्ट्रीय एवं ऐतिहासिक महत्त्व की भूमिका अंधकार में पड़ गई। यह इतिहास-ग्रंथ जाटों का ऐतिहासिक महत्त्व के राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक कार्यों पर प्रकाश डालता है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास
Jaati Ka Chakravyuh Aur Arakshan
आज़ादी की लड़ाई के दौरान ही यह मुद्दा बार-बार उठा कि आज़ाद भारत में अछूत कही जाने वाली जातियों की स्थिति क्या होगी? फुले-पेरियार-अंबेडकर के आंदोलनों ने जाति प्रश्न को प्रमुखता से उभारा तो गांधी का छुआछूत विरोधी आंदोलन इसका ही एक और आयाम था।
आज़ादी के बाद संविधान बना तो दलितों-आदिवासियों के समुचित प्रतिनिधित्व के लिए नौकरियों और संसद में आरक्षण की जो व्यवस्था की गई वह शुरू से ही वर्चस्वशाली जातियों के प्रतिनिधियों की आँखों की किरकिरी बनी रही। फिर नब्बे के दशक में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए मंडल आयोग की अनुशंसाओं के ख़िलाफ़ तो हिंसक आंदोलन भी हुए। अभी हाल में 2022 जब आरक्षण लागू हुआ तो इसे आरक्षण की मूल भावना के ख़िलाफ़ बताया गया।
सत्येंद्र प्रताप सिंह की यह किताब भारतीय समाज में जाति प्रश्न और आरक्षण से जुड़े सवालों को अकादमिक तरीके से ही नहीं बल्कि एक कार्यकर्ता के तेवर से भी उठाती है और सामाजिक-आर्थिक यथार्थ के बरअक्स समझने का प्रयास करती है। आम पाठकों और शोधार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी यह किताब हिन्दी क्षेत्र में आरक्षण के सवाल को बेहतर तरीके से समझने के लिए बेहद कारगर है। 13 मई, 1975 को गोरखपुर में जन्मे सत्येंद्र पी. एस. ने सेंट एंड्यूज कॉलेज गोरखपुर से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की उपाधि ली। 22 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय सत्येंद्र पिछले 14 वर्षों से बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में कार्यरत हैं। उनकी किताब मंडल कमीशनः राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी पहल काफी चर्चित रही है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagadguru Adya Shankaracharya (HB)
-20%Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJagadguru Adya Shankaracharya (HB)
शंकराचार्य एक ऐसे शास्त्राचार्य का नाम है, जो संस्कृति-रक्षा को युद्ध मानकर शास्त्रार्थ करता है और जिसका अस्त्र-शस्त्र सबकुछ शास्त्र तथा जिसका युद्ध मात्र शास्त्रार्थ है एवं जिसकी शति हजारो-हजार वर्षों की ऋषि-प्रति-ऋषि एवं तपस्या-प्रति-तपस्या सिद्ध ज्ञान-संपदा है। वह न तो खलीफाओं की तरह युद्ध करता है और न नियोजित बोधिसवों की तरह, न ही जैसा देश, वैसा वेश, वैसा धर्म का सिका चलानेवाले ईसाई पादरियों की तरह। वह शास्त्र के शस्त्र से शास्त्रार्थ का युद्ध लड़ना जानता है—धर्म के क्षेत्र में ज्ञान तथा न्याय के निर्धारित विधानों के सर्वथा अनुरूप। यह युद्ध षड्दर्शनों तथा षड्चक्रों के साधकों के साथ-साथ इन ब्रह्मवादी शैव-दर्शन के तंत्रोन्मुख कश्मीरी शैवों से भी होता है और वह सोलह वर्षों में सभी विवादों का समाधान ढूँढ़कर वैदिक संस्कृति को पुन: स्थापित करता है। शंकराचार्य जैसा आचार्य होना, एक योगसिद्ध-ज्ञानसिद्ध तथा ध्यानसिद्ध आचार्य होना और ऐसे आचार्य का एक सिद्ध जगद्गुरु हो जाने का भी कोई विशेष अर्थ होता है।
वह समय आ गया है, जब पुन: एक बार भारत को जगद्गुरु शंकराचार्य का मात्र दर्शन-चिंतन-मंथन वाला युग नहीं, वरन् भारत डॉट कॉम विश्वगुरुवाले नए युग का भी गौरवशाली जगद्गुरु पद प्राप्त होना चाहिए।
भारतीय धर्म-दर्शन-संस्कृति परंपराओं के ध्वजवाहक कोटि-कोटि हृदयों के आस्थापुंज जगद्गुरु शंकराचार्य के प्रेरणाप्रद-अनुकरणीय जीवन पर केंद्रित पठनीय उपन्यास।
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Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagadguru Shri Shankaracharya (HB)
-10%Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJagadguru Shri Shankaracharya (HB)
हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्यायSKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagadguru Shri Shankaracharya (PB)
Prabhat Prakashan, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJagadguru Shri Shankaracharya (PB)
हमारे राष्ट्र निर्माताओं में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है। कई विद्वानों ने तो उन्हें आधुनिक हिंदू धर्म का जनक ही कहा है। शंकराचार्य ने समस्त हिंदू-राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने एवं उसे संगठित करने का प्रयास किया। देश के चारों कोनों पर चार धामों के प्रति श्रद्धा केंद्रित करते हुए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की, मातृ-भू की मूर्ति जन-जन के हृदय पर अंकित कर दी। पंचायतन का पूजन प्रारंभ कर विभिन्न संप्रदायों को एक-दूसरे के आराध्य देवों के प्रति केवल सहिष्णुता का भाव ही नहीं तो सभी देवताओं के प्रति अपने इष्टदेव के माध्यम से वही श्रद्धा एवं आदर का भाव व्यक्त करने को प्रेरित किया, इसके अनुसार प्रत्येक पाँचों देवताओं—विष्णु, शुक्र, शक्ति, गणपति और सूर्य की पूजा करता है। अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने इष्टदेव को बीच में तथा चारों ओर अन्य चार देवताओं को रखकर पूजन करने की उसे छूट है। चार धामों के समान ही उन्होंने समाज को धर्म मार्ग पर नियंत्रित एवं अनुशासित रखने के लिए चार शंकराचार्यों की अध्यक्षता में भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित किए।
—दीनदयाल उपाध्यायSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jagdish Chandra Basu
जगदीश चंद्र बसु—दिलीप कुलकर्णी30 नवंबर, 1858 को बंगाल में जनमे 23 नवंबर, 1937 डॉ. (सर) जगदीश च्रंद बसु भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातत्त्व का गहरा ज्ञान था। ये पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकशिकी पर कार्य किया। साथ ही ये भारत के पहले वैज्ञानिक शोधकर्ता थे। इन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। ये विज्ञानकथाएँ भी लिखते थे और इन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है।
इन्होंने बेतार के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग करना शुरू किया। लेकिन अपनी खोजों से व्यावसायिक लाभ उठाने की जगह इन्होंने इन्हें सार्वजनिक रुप से प्रकाशित कर दिया ताकि अन्य शोधकर्त्ता इनपर आगे काम कर सकें। इसके बाद इन्होंने वनस्पति जीवविद्या में अनेक खोजें की। इन्होंने एक यंत्र क्रेस्कोग्राफ का अविष्कार किया और इससे विभिन्न उत्तेजकों के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया। इस तरह से इन्होंने सिद्ध किया कि वनस्पतियों और पशुओं के ऊतकों में काफी समानता है। ये पेटेंट प्रक्रिया के बहुत विरुद्ध थे और मित्रों के कहने पर इन्होंने एक पेटेंट के लिए आवेदन किया।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jaiprakash Tum Laut Aao
संविधान बनाने का काम हमने मुख्य रूप से देश के सर्वोच्च विधि-वेत्ताओं के सिर पर डाल दिया था। उनमें से बहुतेरों ने शायद ही कभी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। शायद यह सोचा गया कि संविधान बनाने का काम कानून के निष्णातों का है। यूँ देखा जाए तो हर महान् क्रांति के बाद नया संविधान क्रांतिकारियों ने स्वयं बनाया है। कानून के निष्णात लोग तो मात्र उसे योग्य परिभाषा देने में मदद करते रहे हैं, लेकिन हमारे यहाँ तो संविधान बनाने में मुख्य हाथ इन कानून-निष्णातों का ही रहा है। परिणाम यह हुआ कि स्वाधीनता आंदोलन के दरम्यान हमने जिन भावनाओं और आदर्शों की कल्पना की थी, संविधान को उनकी हवा तक का स्पर्श नहीं हुआ।’’
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Jaipur Riyasat Ka Aarthik Itihas
जयपुर रियासत का आर्थिक इतिहास
प्रस्तुत पुस्तक में जयपुर रियासत के राजनीतिक इतिहास के साथ-साथ आर्थिक इतिहास सम्बन्धी विविध पहलुओं, accordingly यथा – खालसा एवं जागीर भूमि का आर्थिक प्रबन्धन, कृषि उत्पादन, कृषि उत्पादों के व्यापार, विविध भू-राजस्व पद्धतियों, अधिकारियों का विवरण, व्यापारिक गतिविधियों, मुद्रा एवं ऋण व्यवस्था, सड़कों एवं रेलमार्गों के विकास, कृषकों एवं व्यापारियों से लिए जाने वाले विविध करों एवं लाग-बागों, जागीरदारों के साथ जयपुर दरबार के सम्बन्धों, जागीरदारों की श्रेणियों, विशेषाधिकारों, ‘राज्य’ के प्रति उनके उत्तरदायित्वों, ‘राज्य’ को दिए जाने वाले करों एवं अन्य सेवाओं, ग्राम पंचायतों इत्यादि के विषय में राष्ट्रीय अभिलेखागार (नई दिल्ली); राजस्थान राज्य अभिलेखागार (बीकानेर) एवं इसकी जयपुर शाखा (सचिवालय); केन्द्रीय पुस्तकालय (राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर) में संकलित प्राथमिक स्रोतों एवं इस विषय से सम्बन्धित इतिहासकारों द्वारा रचित पुस्तकों का अध्ययन कर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। Jaipur Riyasat Ka Aarthik Itihas
Jaipur Riyasat Ka Aarthik Itihas
also इस पुस्तक में 1858-1949 ई. की समयावधि में जयपुर रियासत की अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के प्रभावों को भी रेखांकित किया गया है, जिसका सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव रियासत के कृषकों पर पड़ा तथा उनका अत्यधिक शोषण किया जाने लगा। परिणाम स्वरूप कृषि एवं कुटीर उद्योगों के उत्पादन में गिरावट आने लगी तथा आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित हुई। कृषकों के निरन्तर शोषण से उत्पन्न आक्रोश 20वीं शताब्दी में कृषक आन्दोलनों के रूप में प्रकट हुए। लम्बे संघर्ष के पश्चात् भारत देश के स्वतंत्र होने के बाद ही किसानों को भूमि पर उनके वैधानिक अधिकार प्राप्त हो सके। इन सभी तथ्यों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत पुस्तक में करने का प्रयास किया गया है।
surely जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण परम्परा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए विश्व विख्यात रहा है। आशा है कि यह पुस्तक इस विषय में रुचि रखने वाले अध्यवसायियों एवं शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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