Nonfiction Books
Showing 649–672 of 1463 results
-
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jalianwala Kand Ka Sach
जलियाँवाला बाग में हुआ नर-संहार इतिहास का अटूट अंग है। उस दिन हजारों निःशस्त्र भारतीयों का नृशंस रक्तपात हुआ। उसके बाद मार्शल लॉ आरोपित हुआ। यदि जलियाँवाला बाग कांड फाँसी के सदृश था तो उसके बाद का अध्याय कालापानी से कम नहीं था। वह कुकांड भारत के आधुनिक इतिहास का एक ऐसा प्रकरण है, जिसे सरलता से भुलाया नहीं जा सकता, भूलना भी नहीं चाहिए। कालापानी की तरह इसकी याद भी हमारी एक दुखनेवाली नस को निरंतर दबाती है। जलियाँवाला बाग नर-संहार तो एक विरला ही दुःख है।
यद्यपि इस विषय पर अंग्रेजी में थोड़ा-बहुत लिखा गया है; परंतु हिंदी व प्रांतीय भाषाओं के लेखकों का ध्यान इस कांड से संबद्ध प्रकरणों अथवा उनके विवेचन की ओर शायद ही गया हो। किंतु हिंदी में पहली बार यह काम किया गया है। अंग्रेजों ने इस नर-संहार की घटना पर परदा डालने के जी-तोड़ प्रयत्न किए। और इसमें वे पूर्णतया असफल भी नहीं रहे। कालांतर में जो थोड़ा-बहुत लिखा गया, वह अंग्रेजी कलम से था। कई तथ्यों का पता स्वतंत्रता के दशकों पश्चात् लगा।
उन्हीं तथ्यों को इस पुस्तक में समग्रता के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। पाठकगण इसमें दी गई अनेक उत्पीड़क एवं रोमांचकारी घटनाओं तथा विवरणों को चाव से पढ़कर उनमें निहित मर्म को विचारोत्पादक पाएँगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Jambudweepe Bharatkhande: Sanatan Pravah Ka Mul Sthan (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनJambudweepe Bharatkhande: Sanatan Pravah Ka Mul Sthan (PB)
“भारतीय चिंतन में कल्प की अवधारणा का समय के साथ-साथ व्योम, यानी देश के हिसाब से भी विचार किया गया है। पृथ्वी के द्वारा सूर्य का परिभ्रमण करने से संवत्सर काल बनता है। इसी प्रकार जब सूर्य अपनी आकाशगंगा का चक्कर लगाता है तो उसका एक चक्र पूरा होने के समयखंड को मन्वंतर कहा जाता है।
इस प्रकार आकाशगंगा भी इस ब्रह्मांड में किसी ध्रुवतारे या सप्तर्षि या अन्य तारे का चक्कर लगाती है, उसके एक चक्कर की गणना को ही कल्प कहा गया। हमारा सौरमंडल आकाशगंगा के बाहरी इलाके में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं। —इसी पुस्तक से
भारतीय जीवन में देश और काल है। काल के साथ गति है और गति के संग जीवनदर्शन जुड़ा है। यह बात ही भारत को विशिष्ट बनाती है। कालचक्र, युगचक्र, ऋतुचक्र, धर्मचक्र, भाग्यचक्र और कर्मचक्र के विधान भारतीय सांस्कृतिक चेतना में समाए हुए हैं।
सनातन के माहात्म्य, भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता और भारतीय जीवन-मूल्यों की पुनर्स्थापना करती विचारोत्तेजक पठनीय कृति।”
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jammu Kashmir Ke Jannayak Maharaja Hari Singh
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJammu Kashmir Ke Jannayak Maharaja Hari Singh
जमू-कश्मीर के अंतिम शासक और उत्तर भारत की प्राकृतिक सीमाओं को पुनः स्थापित करने का सफल प्रयास करनेवाले महाराजा गुलाब सिंह के वंशज महाराजा हरि सिंह पर शायद यह अपनी प्रकार की पहली पुस्तक है, जिसमें उनका समग्र मूल्यांकन किया गया है। महाराजा हरि सिंह पर कुछ पक्ष यह आरोप लगाते हैं कि वे अपनी रियासत को आजाद रखना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने 15 अगस्त, 1947 से पहले रियासत को भारत की प्रस्तावित संघीय सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनने दिया; जबकि जमीनी सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। इस पुस्तक में पर्याप्त प्रमाण एकत्रित किए गए हैं कि महाराजा हरि सिंह काफी पहले से ही रियासत को भारत की सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा बनाने का प्रयास करते रहे। पुस्तक में उन सभी उपलब्ध तथ्यों की नए सिरे से व्याख्या की गई है, ताकि महाराजा हरि सिंह की भूमिका को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जा सके। महाराजा हरि सिंह पर पूर्व धारणाओं से हटकर लिखी गई यह पहली पुस्तक है, जो जम्मू-कश्मीर के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jammu-Kashmir Sach to Yahi Hai
ये कहानियाँ इतिहास नहीं हैं, बावजूद इसके इन कहानियों को ऐतिहासिक दस्तावेज कहा जा सकता है, क्योंकि इनका आधार हमारे देश के इतिहास का सत्य है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के सत्तर साल बाद भी जम्मू-कश्मीर की सरकारें कानून की आड़ में राज्य के उपेक्षितों पर जिस तरह अत्याचार व अनाचार करती रही हैं, वह दिल दहलानेवाला है। ये कहानियाँ जम्मू-कश्मीर में सत्तर सालों की सरकारी मनमानी का कच्चा चिट्ठा पाठक के सामने प्रस्तुत करती हैं।
पिछली चार पीढि़यों के दर्द की गाथा है ‘सच तो यही है’। कहानियों की दुनिया में पहली बार इस विषय पर, सत्य घटनाओं को आधार बनाकर कहानियाँ बुनने का प्रयास किया गया है। कहानियाँ पठनीय तो हैं ही, हर मन को उद्वेलित करने वाली भी हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jammu-Kashmir Se Sakshatkar
जम्मू-कश्मीर समस्या को लेकर पिछले छः दशकों में अनेक भाषाओं में ढेरों साहित्य लिखा गया है। इन ग्रंथों में कश्मीर समस्या का विश्लेषण अलग-अलग दृष्टिकोणों से किया गया। विदेशी विद्वानों के लिए यह समस्या विशुद्ध रूप से वैधानिक व तकनीकी है, जब कि भारत के लिए कश्मीर समस्या नहीं है, बल्कि विदेशी साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा छोड़ा गया वह घाव है, जो अभी तक भरने का नाम नहीं ले रहा। जिन लोगों के हाथ में मरहम-पट्टी का काम था, उनकी लगाई गई मरहम ने घाव को खराब करने का काम किया, न कि ठीक करने का।
दुर्भाग्य से अभी तक कश्मीर को लेकर जो लिखा गया है, वह अकादमिक अध्ययन ज्यादा है, स्थानीय लोगों की संवेदनाओं का परिचायक कम। विदेशी विद्वानों द्वारा लिखे ग्रंथों की स्थिति वही है, जो संस्कृत न जानने वाले किसी विद्वान द्वारा वेदों पर विश्लेषणात्मक ग्रंथ लिखना और बाद में उसे सर्वाधिक प्रामाणिक घोषित करना। यह प्रयास इन दोनों कोटियों से भिन्न है।
इसमें प्रख्यात समाजधर्मी श्री इंद्रेश कुमार द्वारा कश्मीर समस्या को लेकर अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों और विचार गोष्ठियों में जो विचार व्यक्त किए, उनका संकलन है। लगभग दो दशक तक जम्मू, लद्दाख और कश्मीर में रहने के कारण लेखक की सभी वर्गों के लोगों—डोगरों, लद्दाखियों, शिया समाज, कश्मीरी पंडितों, कश्मीरी मुसलमानों, गुज्जरों, बकरवालों से सजीव संवाद रचना हुई। इस कालखंड में पूरा क्षेत्र, विशेषकर कश्मीर घाटी का क्षेत्र पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। अभिव्यक्ति का अवसर मिला। कश्मीर की त्रासदी को उन्होंने दूर से नहीं देखा, बल्कि नज़दीक से अनुभव किया है। इस पूरे प्रकरण में उनकी भूमिका द्रष्टा की नहीं, बल्कि भोक्ता की रही है। इस पूरी समस्या में एक पक्ष जम्मू, लद्दाख और कश्मीर के लोगों का भी है, जिसे अभी तक विद्वानों द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा है। इस पक्ष का पक्ष रखने की बलवती इच्छा इस ग्रंथ की पृष्ठभूमि मानी जा सकती है। आतंकवाद से लड़ते हुए जिन राष्ट्रवादियों ने शहादत दे दी, उसका चलते-चलते मीडिया में कहीं उल्लेख हो गया तो अलग बात है, अन्यथा उन्हें भुला दिया गया। सरकार की दृष्टि में इस क्षेत्र के लोगों की यह लड़ाई है ही अप्रासंगिक!
जम्मू-कश्मीर की विषम-विपरीत परिस्थितियों का तथ्यपरक एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन और विश्लेषण का निकष है यह पुस्तक जो वहाँ की सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर विहंगम दृष्टि देगी।SKU: n/a -
Vitasta Publishing, इतिहास
JANGAM
Jangam (Movement) is the poignant tale of ordinary people who embarked on a great, unknown journey in the midst of WWII but whose bids for survival were thwarted as they battled Nature. Hardly any account of this massive calamity has been registered in India’s literature, says Debendranath Acharya in the late 1970s, in the preface to his Sahitya Akademi award-winning Assamese novel. During this migration an estimated 450,000-500,000 Burmese Indians walked to north-east India, fleeing from the Japanese advance and also from escalating ethnic violence in the Burmese theatre of war. ‘Corpses lay everywhere, and there were no jackals and vultures to pick them clean… All other forms of animal life seem to have abjured this pathway, save for scores of beautiful butterflies that cover the bodies in a sea of colour’, say contemporary foreign accounts of this exodus. Jangam is the only sustained fictional treatment of this long march.
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Janiye Sangh Ko
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिकसांस्कृतिक राष्ट्रवादी संगठन है। देश में जब भी आपदा आई है, इस संगठन ने उल्लेखनीय कार्य किया है। जीवन के हर क्षेत्र में इस संगठन की उपस्थिति ध्यानाकर्षण करनेवाली है। इसी कारण सबको ऐसे विलक्षण संगठन को जाननेसमझने की आकांक्षा रहती है।
इस विश्वव्यापी संगठन की शुरुआत सन् 1925 में विजयादशमी के दिन हुई और इसको साकार किया डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने, जिनका बोया बीज आज एक विशाल वटवृक्ष बन गया है। शिक्षा, सेवा, चिकित्सा, विज्ञान, विद्यार्थी, मजदूर, अधिवक्ता, राजनीति आदि समाज के प्रमुख क्षेत्रों में इसकी सार्थक उपस्थिति है।
संघ की ऊर्जा का मूल स्रोत हैं ‘दैनिक शाखा’। प्रस्तुत पुस्तक में बड़े ही संक्षेप में यह बताया गया है कि संघ का सूत्रपात कब हुआ, इसका स्वरूप कैसा है, शाखा क्या है, भगवा ध्वज का क्या महत्त्व है, प्रचारक कौन बनते हैं, इसके विभिन्न शिविरों की संकल्पना क्या है, संघ की प्रार्थना का महत्त्व और उसका अर्थ क्या है आदि। संघ के सरसंघचालकों से संबंधित रोचक व तथ्यात्मक जानकारी भी इस पुस्तक में दी गई है।
दैनंदिन जीवन में राष्ट्रवाद, देशभक्ति, आदर्श जीवनमूल्य और समर्पित भाव से ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मूलमंत्र को अभिसिंचित कर राष्ट्रनिर्माण के लिए प्रतिबद्ध संगठन की व्यावहारिक हैंडबुक है यह पुस्तक जो आमजन में संघ को लेकर प्रचारित भ्रांतियों को दूर करने में सहायक होगी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jati Bhaskar
जाति भास्कर : हमारे देश में वर्ण, जाति, गोत्र, अवटंक, शाखा-प्रशाखादि की मान्यताएं बहुत पुराने समय से रही हैं। प्रत्येक समुदाय में इस तरह की मान्यताएं विदेशी अध्येताओं के लिए बहुत रोचक विषय रही। वर्ण और जाति का विचार कब जागा, स्पष्ट कहा नहीं जा सकता, लेकिन 1847 में रौथ ने आर्य और आर्येतर समाजों के सम्बन्ध में जिस विचार को रखा तो वैदिक सन्दर्भों को टटोला जाने लगा और ज्ञात हुआ कि आर्यों के देवता इन्द्र दासों के विजेता रहे। इन्द्र ने दस्युओं का विनाश किया और आर्यवर्ण की सुरक्षा की। वर्ण की रक्षा का भाव बहुत बाद में गीता जैसे ग्रंथ में भी आता है। आरम्भ में आर्यों का समुदाय आधारित जीवन था और गण, सभा, समिति सहित विदथ जैसी सामुदायिक संस्थाएं होती थीं, जिनके माध्यम से यज्ञादि कार्यों पर विचार होता और पशुधन आदि की चिंता को अभिव्यक्त किया जाता था। प्रारम्भिक पुराणकाल में समाज में चतुर्वर्ग की व्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है। जातियों का वर्गीकरण कठिन है और फिर जातियों के उद्भव और विकास को पहचान पाना भी बड़ा जटिल है। आक्रमणों के बावजूद अविच्छिन्नता व टिके रहना भारतीयों का जातीय गुण रहा, पवित्रता व अपवित्रता जैसे भाव और उनका अनुकरण व्यवहार्य रहा, कुलों के अन्दर ही सर्वप्रकारेण व्यवहार रुचिकर रहा, पेशों का पक्ष और श्रम की बुनियाद अक्षुण्ण रही- ऐसे कई कारण हैं जिनके फलतः जातियों का अस्तित्व बना रहा। हालांकि विदेशी अध्येताओं ने जहाँ विदेशियों के सम्मिश्रण सम्बन्धी मत दिए हैं, वहीं भारतीयों ने अपने ढंग से यहाँ की जातिगत पहचान को स्थिरीकृत करने का प्रयास किया है। विश्वास सबके अपने-अपने हैं। न जाने कितनी सदियाँ गुजरी और अभी और गुजरेगी।
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Jayee Rajguru: Khurda Vidhroh ke Apratim Krantikari (PB)
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणJayee Rajguru: Khurda Vidhroh ke Apratim Krantikari (PB)
प्रखर देशभक्ति, अटूट विश्वास और अदम्य साहस उनके चरित्र की पहचान थी। वे कभी मृत्यु से नहीं डरे और अपने जीवन को उन्होंने मातृभूमि को भेंट कर दिया था। उनकी मृत्यु अमरता की ओर एक कदम था। वे कोई और नहीं, शहीद जयकृष्ण महापात्र उपाख्य जयी राजगुरु हैं, जो ओडिशा में खोर्र्धा राज्य के राजा के राजगुरु थे, जिन्होंने सन् 1804 में इतिहास को बदलने का साहस किया। यह उल्लेखनीय है कि खोर्र्धा भारत के अंतिम स्वतंत्र क्षेत्र ओडिशा का तटीय राज्य था, जो 1803 में अंग्रेजों के हाथों में आया था। तब तक शेष भारत पहले ही ब्रिटिश शासन के अधीन आ चुका था। संयोग से अगले वर्ष, यानी 1804 में ओडिशा के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, जो ओडिशा में ‘पाइक विद्रोह’ की शुरुआत थी। खोर्र्धा विद्रोह-1804 के नाम से ख्यात यह विद्रोह वास्तव में कई मायनों में एक जन-विद्रोह का रूप ले चुका था। भारतीय स्वतंत्रता के इस प्रारंभिक युद्ध के नायक जयकृष्ण महापात्र थे, जो कि शहीद जयी राजगुरु (1739-1806) के रूप में अधिक लोकप्रिय हुए। इस महान् जननेता और स्वतंत्रता सेनानी का जीवन निस्स्वार्थ बलिदान, अदम्य साहस और अप्रतिम देशभक्ति की गाथा है, जिसे सन् 1806 में अंग्रेजों द्वारा किए गए क्रूर कृत्य के साथ समाप्त कर दिया गया। उनका शानदार नेतृत्व, तीक्ष्ण कूटनीति और राज्य का सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जीवन के लिए उनका योगदान राष्ट्रीय इतिहास में प्रेरक है। यह दुर्भाग्य है कि राष्ट्र की स्मृति में उन्हें उचित स्थान प्राप्त नहीं हुआ है।
—श्रीदेब नंदा, अध्यक्ष, शहीद जयी राजगुरु न्यासSKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Jaysingh Gunvarnanam
जयसिंहगुणवर्णनम् (महाकवि रणछोड़भट्ट प्रणीतं) : महाराणा श्रीजयसिंह गुणवर्णनम् जिसका अन्य नाम जयप्रशस्ति अथवा जयसमन्द प्रशस्ति भी है, मूलतः मेवाड़ के गुहिल राजवंश और उसके गौरवशाली पक्षों का देवभाषा में काव्यब।। प्रतिनिधि ग्रन्थ है। यह महाराणा श्रीजयसिंह (विक्रम संवत् 1737-1755 तद्नुसार सन् 1680-1698ई.) के कृत्तित्व और व्यक्तित्व पर केन्द्रित है और इसमें तत्कालीन दिल्ली और दक्षिण अभियान के सन्दर्भ भी यत्किंचित् रूप में द्रष्टव्य है। इसमें मेवाड़ के भूगोल, युद्ध-यात्राओं सहित सांस्कृतिक परम्पराओं के अन्तर्गत दान-पुण्य, तीर्थाटन तथा स्नान, महल, उद्यान, सरोवर आदि के निर्माण कार्यों एवं उन पर हुए व्यय का प्रामाणिक विवरण भी उपलब्ध होता है। इसी प्रकार मेवाड़ के बाँसवाड़ा, देवलिया-प्रतापगढ़, डूँगरपुर, सिरोही, जैसलमेर, बूँदी आदि के साथ सम्बन्धों की सूचनाएँ भी मिलती हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में पाठ के निर्धारण में दोनों पाण्डुलिपियों का प्रयोग किया गया है और सावधानी से मिलान के साथ-साथ जहाँ पाठभेद लगा, वहाँ टिप्पणियाँ दी गई हैं। संस्कृत कहीं-कहीं त्रुटिपूर्ण लगीं और कहीं-कहीं पाठ भी त्रुटित मिला। इस कारण यथामति सुधारने और पाठ की पूर्ति का प्रयास भी किया गया है लेकिन मूलपाठ को यथावत् रखने का प्रयास प्राथमिकता से किया गया है। इसके आरम्भिक श्लोकों की पूर्ति राजप्रशस्ति के पाठ के आधार पर की गई है। इसी प्रकार ग्रन्थ के अन्त में माहात्म्य की पूर्ति के लिए भी राजप्रशस्ति का सहारा लिया गया है। यही नहीं, जहाँ कहीं पाठ खण्डित, त्रुटित मिला, उसकी पूर्ति के लिए राजप्रशस्ति सहित अमरकाव्यम्, जयावापी प्रशस्ति आदि की भी मदद ली गई है। दानादि विषयक श्लोकों के संशोधन के लिए हमने मत्स्यपुराण, हेमाद्रि कृत चतुर्व्वर्ग चिन्तामणि के दानखण्ड, बल्लालसेन के दानसागर, नीलकण्ठ दैवज्ञ के दानमयूख आदि को आधार बनाया है। यथास्थान इसकी सूचना भी दी गई है।
‘जयसिंह गुणवर्णनम्’ की रचना उसी प्रशस्तिकार रणछोड़ भट्ट ने की, जिसने राजप्रशस्ति की रचना की थी। यह ग्रन्थ सम्भवतः महाराणा के निधन, वर्ष विक्रम संवत् 1756 तक पूरा हो गया था। हालांकि उसने संवत् 1744 में जयसमन्द के उत्सर्ग और महाराणा के नौका विहार के बाद की कोई घटना नहीं लिखी है। इससे लगता है कि उक्त 12 वर्षों में कोई उल्लेखनीय प्रसंग सामने नहीं आया हो। एक प्रकार से यह ग्रन्थ रणछोड़ भट्ट का आत्म परिचय भी लिए हुए है। महाराणा राजसिंह के काल की तरह ही जयसिंह के शासनकाल में भी उसका सम्मान बना रहा। वैसे महाराणा अमरसिंह के विषय में उसने ‘अमरकाव्यम्’ अथवा ‘अमरकाव्यं वंशावलीग्रन्थ’ ग्रन्थ लिखा है लेकिन वह उसके प्रारम्भिक काल का ही परिचायक प्रतीत होता है। इस ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि अमरकाव्यम् उसने पहले लिख दिया था और उसको आगे लिखना चाहता था लेकिन उसका निधन हो जाने से अधूरा रह गया हो। अमरकाव्यम् के आरम्भ में ग्रन्थकार ने अमरसिंह के प्रति आशीष की याचना इस प्रकार की है-
सिर पर गंगा जैसी नदी को धारण करने वाले, पार्वती को अपने अंग में स्थान देने वाले, हरिण के प्रसंग में हाथ में परशु एवं क्षुरिका धारण करने वाले नटराज भगवान् एकलिंग श्रेष्ठ अमरसिंह को अपनी वाणी एवं मंगल प्रदान करते हुए रक्षा करें – शिरसि विधृतगंग शैलजातांगसंग करपरशुवरण्डाभिः कुरंगप्रसंग। अवतु स नटरंग स्वं गदः संददान प्रवरममरसिंहं मंगलान्येकलिंग।। (अमरकाव्यम् 1, 10)जयसिंहगुणवर्णनम् मूलतः महाराणा जयसिंह के जीवन चरित्र पर आधारित ग्रन्थ है। ओझा जयसमन्द की प्रतिष्ठा तिथि को लेकर आश्वस्त नहीं थे। इसी कारण लिखा कि इस तालाब की प्रशस्ति की रचना भी की गई थी, परन्तु वह खुदवाई नहीं गई, जिससे उक्त तालाब के विषय में अधिक हाल मालूम नहीं हो सका। हमें विश्वस्त रूप से उस प्रशस्ति की मूललिपि का पता लगा, परन्तु बहुत उद्योग करने पर भी वह मिल न सकी। (ओझा पृष्ठ 594)
इस ग्रन्थ के प्रकाश में आने से मेवाड़ और मुगल साम्राज्य सहित पड़ौसी तथा दूरस्थ कुमाऊँ, श्रीनगर जैसी रियासतों के साथ सम्बन्धों के विषय में जानकारी तो सामने आएगी ही, महाराणा जयसिंह के विषय में अनेक नई जानकारियाँ और सांस्कृतिक, धार्मिक तथा आर्थिक सूचनाएँ भी उजागर होंगी। यह युद्ध और शान्तिकालीन मेवाड़ की सूचनाओं के स्रोत के रूप में भी पहचाना जाएगा।
हमारा मानना है कि जयसिंह के विषय में पर्याप्त स्रोतों के अभाव में ऐसा सोचा और लिखा गया। प्रस्तुत स्रोत निश्चित ही ऐसी दृष्टि और स्थापनाओं का परिमार्जित करेगा।
इस ग्रन्थ को लुप्त सिद्ध किया गया है। हमने दो पाण्डुलिपियों के आधार पर पहली बार इसका सम्पादन और अनुवाद किया है। विद्वानों और अध्येताओं की सम्मति की सदैव प्रतीक्षा रहेगी।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास
JEET KA JADU
जीत एक सुखद और आनंददायक एहसास है। जीवन की सार्थकता जीतने में ही है। सृष्टि का वैज्ञानिक स्वरूप जीत के फॉर्मूले पर आधारित है। इसलिए जीत एक सहज, सत्य और स्वाभाविक प्रक्रिया है।
जीत के लिए न तो किसी आपाधापी की आवश्यकता है और न ही किसी झूठ के सहारे की। हमारा जन्म ही जीत की शुरुआत है।
हमारा जन्म जीतने के लिए ही हुआ है। कोई भी आदमी कभी हारता नहीं है, बस जीत का प्रतिशत कम या ज्यादा होता है।
जीत का लक्ष्य सच्चे आनंद को पाना है। हमारे द्वारा तय किया गया जीवन-लक्ष्य हमें सच्चे आनंद की ओर ले जाता है। इसलिए किसी मृग-मरीचिका में फँसे बगैर हमें सहज-सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। हमारा चल पड़ना ही जीत का उद्घोष है। कुछ करें या न करें, पर अपने लक्ष्य से यदि हम प्रेम कर लें तो जीत जाएँगे। जीवन की इस छोटी अवधि में हम सिर्फ प्रेम करें तो भी कम ही है, फिर घृणा के लिए समय कहाँ है? हम अपने कृत्यों के फल से कभी वंचित नहीं रह सकते। हमारे हर कर्म का फल निश्चित है।
जीत यानी जीवन की सफलता के गुरुमंत्र बताती अत्यंत प्रेरणाप्रद पठनीय कृति।SKU: n/a -
Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Jesus Christ: An artifice for aggression
The historicity of Jesus Christ as described in the gospels has been for a long time one of the principal dogmas of all Christian denominations. In India where the history of the search for the Jesus of history remains unknown even to the so-called educated elite, the missionaries continue to hawk this dogma without fear of contradiction. The scene in the modern West, however, has undergone a great change. What we witness over there is that this ‘solid historical figure’ has evaporated into thin air as a result of painstaking Biblical and Christological research undertaken over the last more than two hundred years, mostly by theologians belonging to the Protestant churches.
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jhansi Ki Rani Laxmibai (Hindi)
इस पुसतक में रानी लक्ष्मीबाई के महान् व्यक्तित्व के अनेक देखे-अनदेखे पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है और उनकी प्रसिद्धि पर नए कोण से दृष्टिकोण किया गया है। रानी लक्ष्मीबाई नारी सशक्तीकरण का अद्भुत उदाहरण थीं। उनके जीवन को समर्पित इस पुस्तक से आधुनिक भारतीय पारी को नैतिक और मानसिक बल मिलना चाहिए। इसमें समेटे गए रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के तमाम पहलुओं का यदि पूरी तरह नहीं तो कुछ हद तक अपने जीवन में उतारने की हमें कोशिश करनी चाहिए, जिससे कि हमारा जीवन भी सार्थक हो सके। रानी लक्ष्मीबाई का जीवनकाल यद्यपि छोटा रहा; लेकिन वह आज भी हमे प्रेरणा देता है और आगे आनेवाली पीढि़यों को भी प्रेरणा देता रहेगा। ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी’ को इस पुस्तक के माध्यम से विनम्र श्रद्धांजलि।
SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
JHONPADI WALE AUR ANYA KAHANIYAN
प्रमुख रोमानियाई कथाकार मिहाइल सादौवेन्यू द्वारा लिखित झोंपड़ी वाले तथा अन्य कहानियाँ बीसवीं सदी के आरंभ के रोमानियाई ग्रामीणों के जीवन पर आधारित है। इनमें यूरोप की उत्कट गरीबी का चित्रण है और ग्रामीणों के भोले-भाले स्वभाव का। कल-कारखानों के आने से पहले साधारण मनुष्य का जीवन भले कठिन था लेकिन कितना कलुष-रहित, इसका सटीक अंकन इन कथाओं में है। निर्मल वर्मा ने प्राग में रहते हुए इन रोमानियाई कहानियों का अनुवाद किया था। पहली बार ये साहित्य अकादमी के प्रकाशन से सन् 1966 में सामने आईं थीं।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Jihadi Aatankwad
कट्टरता और इस्लाम के नाम पर आज आतंक चारों ओर फैल रहा है, जिसमें हज़ारों निरपराध, असहाय, स्त्री-पुरुषों को गोलियों का शिकार होना पड़ रहा है और जिसे रोकने के लिए अनेक देशों के सम्मिलित प्रयास भी पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसी समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह पुस्तक सामयिक भी है और महत्त्वपूर्ण भी।
SKU: n/a