Govindram Hasanand Prakashan
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Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Munivar Gurudutt Vidyarthi
महान विद्वान् तथा विचारक मुनिवर पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी लाला जी के सहपाठी और अंतरंग मित्र थे। उनके निधन के तुरंत पश्चात् लालाजी ने उनकी विस्तृत जीवनी लिखी जो 1890 में छपी, स्वयं यह उनकी प्रथम कृति थी।
पंडित गुरुदत्त की इस प्रमाणिक अंग्रेजी जीवनी का अनुवाद स्वयं डॉ भवानीलाल भारतीय ने गुरुदत्त निर्वाण शताब्दी के अवसर पर किया था। यही दुर्लभ ग्रंथ पुनः प्रकाशित किया जा रहा है।
इस कृति का महत्व इसलिए भी है कि इसका लेखक कथानायक के जीवन तथा कृतित्व से भली भांति परिचित था। यही कारण है कि वह पंडित गुरुदत्त के जीवन प्रसंगों को तटस्थ होकर चित्रित कर सके तथा उनके बौद्धिक, दार्शनिक तथा लेखकीय गुणों का सम्यक् उद्घाटन कर सके।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rajrishi Manu aur unki Manusmiri
राजर्षि मनु और उनकी मनुस्मृति
राजर्षि मनु भारतीय सास्ंकृतिक गगन में हमारे दीपस्तम्भ हैं। भारतीय समाज का ढाँचा उन्हीं के अमर बीजमन्त्रों पर टिका हुआ है। उनकी विचारधारा गुण-कर्म-योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्व पर आधारित है।
विषय के विषेषज्ञ अनेक वैदिक विद्वानों के लेख इसमें ऐसे संकलित हैं जैसे किसी हार में मोतियाँ पिरोई होती हैं। इन विद्वानों के मनु और मनुस्मृति-सम्बन्धी चिन्तन से पाठक लाभान्वित हो सकेंगे।
यह पुस्तक मनु और मनुस्मृति-विषयक भ्रान्तियों को दूर करने में सहायक सिद्ध होगी तथा उन भ्रान्तियों के विस्तार को रोकेगी।
एक ही स्थान पर, एक विषय पर, अनेक विचारकों के विचार एकत्र मिलना कठिन होता है। सबको सब पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पातीं, अतः अध्ययन-मनन में पाठकों को सुविधा-लाभ होगा।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigveda Complete (4 Volumes)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigveda Complete (4 Volumes)
ग्रन्थ का नाम – ऋग्वेद संहिता
भाष्यकार – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी एवम् आर्य मुनि जी
वेद परमात्मा प्रदत्त ज्ञान राशि है। समस्त आर्ष ग्रन्थ इस बात की घोषणा करते हैं कि वेद अपौरुषेय वाक् है जो सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा ऋषियों के हृदय में प्रकाशित होता हैं। महाभारत इतिहास ग्रन्थ में वेदव्यास जी लिखते हैं –
“अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।।’’ – शान्तिपर्व अ. 224/55
अर्थात् परमात्मा प्रदत्त यह वेदवाणी नित्य हैं, इसी वेदमयी दिव्यवाक् के कारण सारा जगत् अपने कार्यों में प्रवृत्त है। यह प्राचीनकाल से विश्व के मार्गदर्शक रहे हैं, इसलिए महर्षि मनु ने – “वेदश्चक्षुः सनातनम्” कहा है।
वेदों में ऋग्वेद का विषय वस्तु ज्ञान है। महर्षि दयानन्द जी का उपदेश है कि ऋग्वेद में प्रकृति से ब्रह्माण्ड पर्यन्त तत्वों का मूल ज्ञान निहित है तथा महर्षि अपनी बनाई भाष्यभूमिका में यह भी लिखते हैं कि वेदों का मुख्य तात्पर्य परमेश्वर को ही प्राप्त कराना है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 85 अनुवाक्, 1028 सूक्तों के सहित 10521 मंत्र हैं। मंत्रों को ऋचाएँ भी कहा जाता है।
ऋग्वेद पर स्कन्द, नारायण, सायण, हरदत्त आदि विद्वानों नें भाष्य किया है। लेकिन अधिकांश भाष्य कर्मकांड परक और ऐतिहासिक परक हैं, जिससे वेदों का गूढार्थ प्रकट नहीं होता है। विडंबना है कि आचार्य सायण अपनी ऋग्भाष्य भूमिका में वेदों में इतिहास होने का प्रबल खंडन करके नैरुक्त पक्ष की स्थापना करते हैं लेकिन अपने वेदभाष्य में वे नैरुक्त पक्ष को दर्शानें मे असफल रहे और अधिकतर ऐतिहासिक अर्थ ही करते रहे। किन्तु महर्षि दयानन्द जी ने वैदिक शब्दों को यौगिक मानकर नैरुक्त पक्ष से अर्थ किए हैं, जिससे वेदों का नित्यत्व स्थापित होता है। स्वामी जी ने ऋग्वेद के मंडल 7 और सूक्त 61 तक भाष्य किया था। ये भाष्य वेदांगों, ब्राह्मणग्रंथों के प्रमाणों से युक्त होने से प्राचीन आर्षशैली पर आधारित हैं। सायणादि द्वारा वेद भाष्य करने में निरूक्तादि की उपेक्षा करके अर्थ करने के कारण उनके किए भाष्य में अंधविश्वास, पशुवध, मांसाहारादि दोष परिलक्षित होते हैं वहीं ऋषि दयानन्द द्वारा वेद भाष्य में निरूक्त, छंद, आदि का ध्यान रखा गया है जिसके कारण उनका भाष्य इन सब दोषों से मुक्त और सृष्टि के उच्चतम आध्यात्मिक विज्ञान से युक्त है। जहां अन्य वेदभाष्य विग्रहवादी बहुदेवों की उपासना की शिक्षा से युक्त हैं वही स्वामी जी का भाष्य एक निराकार सत्ता की उपासना की स्थापना करता है। इस प्रकार अनेको विशेषताओं से युक्त होने के कारण ऋषि दयानन्द कृत वेदभाष्य में अनेक गुणों का परिलक्षण होता है।
प्रस्तुत् वेदभाष्य 7 मंडल और 61 सूक्त तक महर्षि दयानन्दकृत है, जिसकी विशेषताएँ वर्णित की जा चुकी हैं तथा शेष भाग 10 मंडल तक सम्पूर्ण आर्यमुनि जी कृत हैं। आर्यमुनि जी ने वेदार्थ में स्वामी दयानन्द जी की वेदभाष्य शैली का ही अनुसरण किया है। अतः यह वेदभाष्य दर्शन, धर्म, नीति, लौकिक ज्ञान-विज्ञान आदि मानवहितों से युक्त है और दोष-रूपी अंधविश्वास, बहुदेववाद, हिंसादि की कल्पनाओं से परे है। ये भाष्य चार खंडों में प्रकाशित हैं, जिसकी छपाई आकर्षक और सुन्दर है। इसमें अन्त में परिशिष्ट रूप में सम्पूर्ण वेद मंत्रों की अनुक्रमणिका भी दी गई हैं जिससे कोई भी मंत्र आसानी से खोजा जा सकता है।
वेदों के अध्ययन द्वारा ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म की लहरों में स्वयं को डुबोने के लिए, इस वेदभाष्य को अवश्य प्राप्त करके चिंतन एवम् मनन सहित स्वाध्याय करें और अपने जीवन को दिव्य बनावें।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigvedadibhashyabhumika
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigvedadibhashyabhumika
चारों वेदों के भाष्य की भूमिका, स्वामी दयानन्द सरस्वती चारों वेदों का जो भाष्य रचना चाहते थे, उस भाष्य के आधारभूत 35 विषयों का इस भूमिका में निरूपण किया है। इसलिए ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका को अच्छी प्रकार से पढ़े बिना स्वामी दयानन्द सरस्वती का वेद-भाष्य यथावत् समझ में नहीं आ सकता। -पं. युधिष्ठर मीमांसक
वेद की उत्पत्ति, रचना, प्रामाण्य-अप्रामाण्य, वेदोक्त धर्म आदि अनेक विषयों पर इस ग्रन्थ में स्पष्ट विचार किया गया है। पूर्व के वेदभाष्यकारों के अनेक अनार्ष मतों का विवेचन करके सप्रमाण वैदिक आर्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। वेद के सिद्धान्तों को समझने के लिए यह ग्रन्थ अपूर्व है।
-श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्यायमहर्षि ने इस भूमिका में पहले इस प्रष्न का उत्तर दिया है कि वेद क्या हैं और वेदोत्पत्ति का अत्यन्त सूक्ष्म विषय, सारगर्भित रीति से, निरूपण करने के पष्चात् वेदमन्त्रों के प्रमाणों से वेदों के विषयों को दर्षाते हुए, वेदों के सच्चे महत्व का बोधन कराया है। वेदों को वे सूर्यवत् स्वतःप्रमाण और शेष समस्त ग्रन्थों को परतःप्रमाण ठहराते हैं। -पं. लेखराम
महर्षि दयानन्द ने अपनी योगदृष्टि द्वारा वैदिक तत्त्वों को साक्षात् कर वेदभाष्यों के रचने का संकल्प किया। जिन नियमों और सिद्धान्तों के आधार पर महर्षि वेदभाष्य करना चाहते थे, उनका विस्तृत वर्णन ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका ग्रन्थ में किया गया है। -प्रो. विष्वनाथ विद्यालंकार
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Govindram Hasanand Prakashan, Others
Rog tatha unki Homoeopathik Chikitsa
डॉ सत्यव्रत सिद्धांतालंकार का मानना है की होम्योपैथी का आधार रोग के ‘नाम‘ न होकर रोग के ‘लक्षण‘ है। इसीलिए होम्योपैथिक चिकित्सा की पुस्तक में रोगों के लक्षण पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।
इस दृष्टि से इस ग्रंथ की अन्य ग्रंथों से विशेषता यह है कि इसमें जहां रोगों का नाम दिया गया है, वहां उनकी औषधियों का उल्लेख करते हुए उस-उस रोग में दी जाने वाली अन्य औषधियों की आपसी तुलना भी साथ-साथ की गई है।
एक ही रोग के भिन्न-भिन्न लक्षण होते हैं, इन लक्षणों की भिन्नता के कारण होम्योपैथिक औषधि भी भिन्न-भिन्न होती है। यही कारण है की इस ग्रंथ में सिर्फ रोग तथा उसकी औषधि ही नहीं दी गई है, अपितु पहले रोग का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
फिर उसके सामान्य लक्षणों पर दी जाने वाली मुख्य औषधि तथा उस औषधि के साथ-साथ उसके समान लक्षणों वाली अन्य औषधियों का उल्लेख करते हुए उनकी आपसी तुलना साथ-साथ दी गई है। ताकि एक औषधि को दूसरी से भिन्न किया जा सके।
इस ग्रंथ को लिखते हुए लेखक ने सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सकों की पुस्तकों को आधार बनाया है। इसीलिए होम्योपैथिक चिकित्सा की दृष्टि से इस ग्रंथ की एक-एक पंक्ति प्रामाणिक है।
जिस होम्योपैथ ने, जिस रोग में, जिन लक्षणों पर, जिस औषधि का, जिस शक्ति में, निर्देश दिया है, उसका उल्लेख हर जगह किया गया है। यह लेखक की 36-37 वर्षों की साधना का फल है, इसीलिए यह जिन-जिन के हाथों में पहुंचेगा वह इसका लाभ उठा सकेंगे।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Samveda (HB)
मन्त्र, शब्दार्थ, भावार्थ तथा मन्त्रानुक्रमणिका सहित प्रस्तुत। मन्त्र भाग स्वामी जगदीष्वरानन्दजी द्वारा सम्पादित मूल वेद संहिताओं से लिया गया है।
इस वेद में कुल 1875 मंत्रों का संग्रह है। उपासना को प्रधानता देने के कारण चारों वेदों में आकार की दृष्टि से लघुतम सामवेद का विशिष्ट महत्त्व है।
यह संसार विधि है और वेद परमात्मा द्वारा प्रदत्त उसका विधान है। हम इस संसार में कैसे रहें? हमारा अपने प्रति क्या कर्तव्य है? हमारा दूसरों-परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति क्या कर्तव्य है? हमारा ईश्वर के साथ क्या सम्बन्ध है? हम परमात्मा की उपासना क्यों करें, कैसे करें, कहाँ करें-आदि सभी बातों का समाधान हमें वेद से प्राप्त होगा। इन सब बातों को जानने के लिए वेद का पठन-पाठन अत्यावश्यक है।
जीवन का चरम और परम लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है। सामवेद बहुत विस्तार के साथ इसी लक्ष्य की ओर इंगित करता है। सामवेद में संकेतरूप में योग के सभी अंगों-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि-सभी का विवेचन है। योगाभ्यास कहाँ करे़ं? क्यों करें, कैसे करें-आदि सभी तथ्यों का विवेचन है।
सामवेद का यह भाष्य महर्षि दयानन्द की शैली, संस्कृत और आर्य भाषा-हिन्दी में उनकी विचारसरणी पर किया गया है। पाठक देखेंगे कि मन्त्र-मन्त्र में, पद्य-पद्य में जिस प्रकार ऋषि दयानन्द के भावों को प्रतिष्ठित किया गया है।
-स्वामी दीक्षानन्द सरस्वतीSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Sandhya Yog Brahm-Shakshatkar
इस ग्रन्थ में यह प्रमाणित किया है कि योग की पूर्ण और प्रामाणिक पद्धति ही ‘अष्टांग योग‘ है, जिसमें आठों अंगो का यथावत् अनुष्ठान करने से महर्षि पातंजलि की प्रतिज्ञानुसार उपासक के अन्तःकरण की अपवित्रता नष्ट होने पर ज्ञान की दीप्ति लगातार बढ़ती ही चली जाती है। जब तक ‘आत्मसाक्षात्कार‘ नहीं हो जाता है। योग में ‘ज्ञान‘ व ‘कर्म‘ दोनों को मिलाकर चलने से उक्त फल प्राप्त होता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रत्येक मन्त्रगत रहस्य को रंगीन चित्रों के द्वारा व्याख्या सहित दर्षाया गया है, पाठकगण इस बात को स्मरण रखें कि जब साधारण लौकिक ज्ञान के स्नातक केा बी.ए. तक का प्रमाणपत्र लेने में 14 वर्ष लग जाते हैं, तब इस आन्तरिक-गुहा-रहस्यपूर्ण सूक्ष्मतम आध्यात्मिक विद्या की प्राप्ति व इसमें निष्णात बनने में 20 वर्ष लगकर भी यदि कुषलता मिल जाये तो इसे मंहगा नहीं अपितु सस्ता ही समझना चाहिये।
संसार में पदार्थों का मूल्यांकन केवल रुपये पैसे से ही नहीं होता यह ‘आध्यात्मिक जीवन‘ तो ‘अमूल्य‘ है, वह सदा अमूल्य रहा है। इसी दृष्टि को समक्ष रखते हुए यदि आस्तिक जन ‘सन्ध्या योग‘ का अध्ययन करेंगे तो इसे अमूल्य ही पायेंगे। प्रस्तुत ग्रन्थ अति मंहगे समय में प्रकाषित हुआ है, फिर भी इसका मूल्य यथासाध्य न्यूनतम रखने का प्रयत्न किया गया है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Religious & Spiritual Literature, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanskar Chandrika
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Religious & Spiritual Literature, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanskar Chandrika
संस्कार विधि की वैज्ञानिक व्याख्या-संस्कार विधि महर्षि दयानंद की व्यवहारिक विचारधारा अर्थात् क्रियात्मक पक्ष है। इस सूत्र को लेकर हमने इस ग्रंथ में संस्कार विधि की व्याख्या की है।
इस व्याख्या-ग्रंथ का लक्ष्य संस्कार विधि की आत्मा को समझने का प्रयत्न करना है। इसलिए इसे संस्कार विधि की वैज्ञानिक व्याख्या कहा है। हमने प्रत्येक संस्कार को दो भागो में बाँटा है।
विवेचनात्मक भाग तथा मंत्र-अर्थ सहित विधि भाग। विवेचनात्मक भाग में उस संस्कार के संबंध में वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टि से विचार किया गया है। विधि भाग में संस्कार की विधि को भिन्न-भिन्न शीर्षक देकर स्पष्ट तथा सरल रूप में लिखा गया है, ताकि संस्कार कराते हुए कोई कठिनाई न आए। आईए संस्कार विधि की इस वैज्ञानिक, व्यवहारिक व्याख्या का रसास्वादन करें।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Satyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
-5%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्यSatyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
सन् 1925 में श्री गोविन्दराम जी ने अनेक विषेषताओं से युक्त सत्यार्थ प्रकाष का प्रथम संस्करण ऋषि जन्म शताब्दी के अवसर पर कलकत्ता से प्रकाषित किया था।
उसके पष्चात सन् 1962 में पं. भगवद्दत्त जी रिसर्च स्कॉलर ने उपयोगी शब्द सूचियों, प्रमाण सूचियों परिषिष्ठों आदि अनेक विषेषताओं के साथ सत्यार्थ प्रकाष का सम्पादन किया।
पं. भगवद्दत्त जी द्वारा सम्पादित इस सत्यार्थ प्रकाष में पाठकों की सुविधा, जिज्ञासा की शांति एवम् शोध में लगे व्यक्तियों के लिए अनेक विषिष्टताएं उपलब्ध हैं।
इस संस्करण में ऋषि की मूल प्रति से भी मिलान का यथासम्भव प्रयास किया है, तथा अनेक अषुद्धियों को भी सुधारा गया है। सभी पैराग्राफों पर क्रमांक देना इसकी एक अनूठी विषेषता है।
इन सब विषेषताओं के लिए पं. भगवद्दत्त जी, पं. जयदेव विद्यालंकार, पं. रामचन्द्र देहलवी, पं. वीरसेन वेदश्रमी, स्वामी जगदीष्वरानन्द तथा पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी के प्रति हम आभार प्रकट करते हैं।
पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने कहा था कि ‘‘मैंने सत्यार्थ प्रकाष को 18 बार पढ़ा है, जितनी बार भी मैंने इसे पढ़ा, मुझे प्रत्येक बार नया-नया ज्ञान प्रकाष मिला है
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Shadadarshnam
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिShadadarshnam
मैं कौन हूं? कहाँ से आया हूं? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? आनंद की प्रप्ति कैसे हो सकती है? परमात्मा की उपलब्धि कैसे हो सकती है?
आदि अनेक प्रश्न मनुष्य के मष्तिष्क में चक्कर काटते रहते हैं। तत्त्वदर्शियों के मत में मनुष्य को इन विषयों का तत्वज्ञान हो सकता है। इसी तत्वज्ञान को भारतीय मनीषियों-चिंतकों ने ‘दर्शन‘ की संज्ञा प्रदान की है।
तत्वज्ञान होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डालते। तत्वज्ञान मनुष्य को कर्म-बंधन से छुड़ा, प्रकृति और पुरुष का विवेक कराकर मानव-जीवन के चरम लक्ष्य-मोक्ष तक पहुँचा देता है।
भारतीय दर्शनों की विशेषता है उनका व्यवहारिक पक्ष, उनका आशावाद और नैतिक व्यवस्था में विश्वास, कर्म-सिद्धांत और मोक्षमार्ग का निर्देश।
प्रस्तुत पुस्तक में व्याख्या नहीं है, जिन्हें विस्तृत व्याख्या पढ़नी हो वे आचार्य उदयवीर शास्त्री जी के ग्रंथ पढ़ें। हाँ इस ग्रंथ को पढ़ने पर भी दर्शन के अनेक रहस्य समझ आएंगे।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Shatapatha Brahmana in three volumes
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिShatapatha Brahmana in three volumes
प्रस्तुत ग्रन्थ में वेदार्थ और कर्मकाण्ड का अत्यन्त प्रसिद्ध, अति प्राचीन ग्रन्थ, महर्षि याज्ञवल्क्य और शाण्डिल्य मुनि की कृति मूल ग्रन्थ में 14 काण्ड हैं। 100 अध्याय और 7625 कण्डिकायें हैं। शतपथ ब्राहाण की दो शाखायें प्रसिद्ध हैं- माध्यन्दिनीय शाखा और काण्व शाखा है। प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद
माध्यन्दिनीय शाखा का है।शतपथ ब्राहाण का अन्तिम काण्ड बृहदारण्यक उपनिषद् के नाम से विख्यात है, जो अध्यात्म की सर्वश्रेष्ठ रचना है। डॉ0 अलबेर्त वेबेर ने बड़े परिश्रम से माध्यन्दिनी शाखा के शतपथ ब्राहाण का स्वर-संयुक्त संस्करण बर्लिन से प्रकाषित, सन् 1849 में किया था, उसे ही हिन्दी अनुवाद के साथ दिया जा रहा है। स्वामी सत्यप्रकाष सरस्वती ने शतपथ ब्राहाण का सांस्कृतिक अध्ययन विस्तारपूर्वक अेग्रेजी में भी किया है।
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Govindram Hasanand Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shrimad Bhagavad Gita – श्रीमद्भगवद्गीता
Govindram Hasanand Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताShrimad Bhagavad Gita – श्रीमद्भगवद्गीता
‘श्रीमद्भगवद्गीता‘ का समर्पण भाष्य मौलिक विवेचना की दृष्टि से उल्लेखनीय है। यह विषुद्ध सिद्धान्तों पर आधारित है। इसमें कर्म सिद्धान्त पर बहुत ही चमत्कारिक और विद्वत्तापूर्ण ढंग से प्रकाष डाला गया है। गीता में कई स्थानों पर ऐसे श्लोक हैं जो मृतक श्राद्ध, अवतारवाद, वेद-निंदा आदि सिद्धान्तों के पोषक प्रतीत होते हैं।
इस पुस्तक में पं. बुद्धदेव जी ने ‘‘तदात्मानं सृजाम्यहं‘‘ का बड़ा सटीक, वैदिर्क िसद्धान्तों के अनुरुप और बिना खींच-तान किए अर्थ किया है कि ‘‘मुझसे योगी, विद्वान् परोपकारी, धर्मात्मा आप्त जन जन्म लेते हैं। सभी अध्यायों के समस्त प्रकरणों में स्थान-स्थान पर, गीता के श्लोकों का अर्थ वैदिक सिद्धान्तों के अनुरुप दिखाई देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता के उपलब्ध भाष्यों तथा इस समर्पण भाष्य में महान् मौलिक मत भेद हैं। जहां अन्य भाष्यों में श्री कृष्ण को भगवान्, परमात्मा के रूप में दर्षाया है। वहां इस भाष्य में उन्हीं कृष्ण को योगेष्वर एवं सच्चे हितसाधक सखा रूप में दर्षाया है। यही कारण है गीता के आर्य समाजीकरण का। यह उनके निरन्तर चिंतन और प्रज्ञा-वैषारद्य का द्योतक है।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shrimad Bhagawad Geeta Siddhant
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताShrimad Bhagawad Geeta Siddhant
भारतवर्ष में शताब्दियों से श्रीमद्भगवद्गीता का ऐसी महान् महिमा, श्रद्धा तथा सम्मान से पठन-पाठन क्यों है? बड़े-बड़े पाश्चात्य विद्वान् भी मुक्तकण्ड से क्यों प्रशंसा करते हैं?
इसका एकमात्र उत्तर यही है कि यह ग्रन्थ आर्यधर्म के मार्मिक तत्त्वों का भण्डार है। यह ग्रन्थ दार्शनिक विचारों का गूढ़-से-गूढ़ रहस्यों तथा विषयों का पुंज है। यह सर्वभौम नैतिक सिद्धान्तों का कोष है। साम्प्रदायिक भेदभावों से रहित एक निष्पक्ष ज्ञान विषयक गुटिका है।
स्वामी दर्शनानन्दजी ने गीता संबंधी समाधान प्रत्येक अध्याय के अन्त में ‘गीता प्रवचन’ नाम से वेद सम्मत विवेचन प्रस्तुत किए हैं। विचारशील सज्जन इनका लाभ उठाएँ। -स्वामी दर्शनानन्दSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shrimad Bhagawad Gita – श्रीमद्भगवद्गीता
Govindram Hasanand Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताShrimad Bhagawad Gita – श्रीमद्भगवद्गीता
धारावाहिक हिंदी में सचित्र, मूल तथा शब्दार्थ सहित-इस भाष्य की विशेषता यह है कि श्लोक बड़े अक्षरों में दिए गए हैं, उसके नीचे प्रत्येक संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ दिया गया है, और प्रत्येक अध्याय के पीछे सारे अध्याय का दार्शनिक विवेचन किया गया है।
गीता पर विभिन्न टीकाकारों का मत देने के साथ-साथ लेखक ने अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गीता की विचारधारा पर गहराई से विवेचन किया है। गीता को पढ़ते हुए पाठक के हृदय में अनेक प्रश्न उठते हैं। निष्काम कर्म क्या है? वर्ण व्यवस्था का वास्तविक रूप क्या है? अवतारवाद क्या है? सत-रज-तम क्या हैं? श्री कृष्ण का अपना विशाल रूप दर्शाने का क्या अभिप्राय है?
इन सब समस्याओं का हल इस पुस्तक को पढ़ने से अपने आप समझ आ जाता है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Swami Dayanand Sarswati Ka Vedic Darshan
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पुस्तक का नाम – स्वामी दयानन्द का वैदिक दर्शन
अनुवादक का नाम – ड़ॉ. स्वरुपचन्द्र दीपक
महर्षि दयानन्द जी एक युगपुरुष थे। सत्य, विद्या, योग, तप, ईश्वरभक्ति, देशभक्ति, प्रेम, सेवा, धर्म और दर्शन की दृष्टि से वे किसी से कम न थे। उनके दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती जी नें एक अंग्रेजी पुस्तक “ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ द फिलॉसफी ऑफ दयानन्द” लिखी थी। वह पुस्तक ज्ञान की दर्जनों विधाओं को आत्मसात् करती एक मूल्यवान् पुस्तक है। उसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शनशास्त्र के गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। इस पुस्तक का अथक परिश्रम से हिन्दी अनुवाद डॉ. रुपचन्द्र दीपक जी ने किया ताकि इस पुस्तक का लाभ जनसामान्य भी उठा सके।
प्रस्तुत पुस्तक स्वामी सत्यप्रकाश जी की पुस्तक का हिन्दी रुपान्तरण है। इस पुस्तक में जो-जो विषय सम्मलित किये गये हैं उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है –
इस पुस्तक में अध्यायों का 15 भागों में विभाजन किया गया है।
प्रथम अध्याय आप्त जीवन की पृष्ठभूमि के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है।
द्वितीय अध्याय वैदिक दर्शन के नाम से है। इसमें वेदमन्त्रों का अन्तःभाव प्रकट किया गया है। स्वामी दयानन्द प्रतिपादित एकेश्वरवाद की व्याख्या की गई है। एकतत्त्ववाद और त्रेतवाद में अन्तर स्पष्ट किया है। सृष्टि उत्पत्ति और मोक्ष के स्वरुप को इस अध्याय में समझाया गया है।
तृतीय अध्याय भारतीय षड्दर्शनों में समन्वय के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी का दर्शनों पर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।
चतुर्थ अध्याय दयानन्द की ज्ञानमीमांसा नाम से है। इसमें बौद्ध, जैन, रामानुज, शङ्कर आदि के दर्शनों की समीक्षा की गई है तथा उनकी स्वामी दयानन्द जी के दर्शन से तुलना की गई है।
पञ्चम अध्याय ईश्वर मीमांसा पर है। इसमें नास्तिकों की युक्तियों का खण्डन किया गया है।
षष्ठं अध्याय जीवात्मा के विषय पर है। इसमें जीवों के अनेकत्व का प्रतिपादन किया है तथा जीवधारियों की कृत्रिम उत्पत्ति के प्रयासों का खड़न किया गया है।
सप्तं अध्याय कार्य कारण सिद्धान्त पर आधारित है। कार्य-कारण सिद्धान्त की इसमें दार्शनिक मीमांसा की गई है।
अष्टम अध्याय में निमित्त और उपादान कारणों की समीक्षा की गई है तथा इस सम्बन्ध में स्वामी दयानन्द जी का मन्त्वय दर्शाया गया है।
नवम अध्याय मूल प्रकृति पर है। इस अध्याय में दर्शनों में प्रकृति और शंकराचार्य के मत में प्रकृति और स्वामी दयानन्द के मत में प्रकृति के उपादान, मूलकारणों पर समीक्षा की गई है।
दशम अध्याय में मन, चित्त, चेतना, योग आदि सूक्ष्म विषयों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
एकादश अध्याय में पुनर्जन्म मीमांसा की गई है। जिसके अन्तर्गत जैन-बौद्ध के पुनर्जन्म विषयक मान्यताओं की समीक्षा की गई है। स्वामी दयानन्द जी के पारलौकिक सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है।
द्वादश अध्याय में मोक्ष के स्वरुप और मोक्ष के पश्चात् पुनरावर्ती पर विचार प्रकट किया गया है।
त्रयोदश और चतुर्दश अध्याय में जीवन के प्रतिदृष्टिकोँण और आचार शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।
पञ्चदश अध्याय में स्वामी दयानन्द जी के मन्तव्य-अमन्तव्य को प्रस्तित किया गया है।
इस कृति के द्वारा वैदिक दार्शनिक सिद्धान्तों का पाठकों को पूर्ण रस प्राप्त करना चाहिए।
स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक । A Critical Study of the Philosophy of Dayanand ज्ञान की दर्जन विधाओं को आत्मसात करती एक मूल्यवान पुस्तक है। इसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शन शास्त्र गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। विद्वानों को इसके अनुवाद की दशको से अपेक्षा थी।
महर्षि दयानन्द के दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा लिखित उक्त पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई प्रथम मौलिक पुस्तक थी।
किसी लेखक को पढ़ने का पूर्ण रस तो उसकी मूल कृति में ही मिलता है।
उसकी सामग्री पाठकों को उनकी भाषा में मिल सके, अनुवादक का यही प्रयास रहा है।SKU: n/a -
English Books, Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
The Light of Truth
English Books, Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणThe Light of Truth
This English translation of Satyarth Prakash, which includes Sanskrit text, its transliteration and English translation, is a unique work of Swami Dayanand Saraswati. In a very short period of time its first edition was sold out last year. Vedic scholar Pt. Satyaprakash Beegoo of Mauritius put his great efforts and edited it again. Present edition is corrected accordingly.
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English Books, Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
The Manusmriti English
-5%English Books, Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिThe Manusmriti English
Manusmriti is an ancient work on jurisprudence. Unfortunately, some misunderstandings and misconceptions are prevailing about Manu and his Manusmriti.Dr. Surendra Kumar ji an eminent Samskrita scholar has quoted many internal evidences from this book to prove that all these claims have no ground. They are false and malicious.He examined each and every Shlokas to detect the genuine from the interpolated ones. He has given convincing and logical proofs why such and such Shlokas are later additions to the body of the Manusmriti.An English translation of this book from the Ärsha Vedic point of view was not available. Arya UpadeshakaShri Pt. SatyapraksahBeegoo ji from Mauritius, voluntarily agreed to translate this into English, enhancing its value with transliteration of every Shloka, and providing the meaning of all the Samskrita words.
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Upanishad Ek Saral Parichaya
भारतीय चिन्तन में ही नहीं, मानव-चिन्तन में उपनिषदों का चिन्तन उल्लेखनीय स्थान रखता है। उपनिषदें भारतीयों और आर्यों के आध्यात्मिक चिन्तन की विश्वसनीय स्रोत हैं। आधुनिक विचारक भी उपनिषदों को भारत का सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक साहित्य स्वीकार करते हैं। मुक्तक उपनिषद् में 108 उपनिषदों का उल्लेख है।
मुख्य प्रामाणिक सर्वसम्मत 11 उपनिषदें कही जाती हैं। इन प्रसिद्ध उपनिषदों में सर्वाधिक विख्यात ‘ईशोपनिषद्‘ यजुर्वेद का अन्तिम 40वाँ अध्याय है। इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण का अन्तिम भाग ही बृहदारण्यक उपनिषद् है, इसमें अद्भुत वन-संस्कृति का नमूना देखने को मिलता है। ये प्रधान उपनिषदें हैं-(1) ईश, (2) केन, (3) कठ, (4) प्रश्न, (5) मुण्डक, (6) माण्डूक्य, (7) तैत्तिरीय, (8) ऐतरेय, (9) छान्दोग्य, (10) बृहदारण्यक (11) श्वेताश्वतर। आइए, ग्यारह उपनिषदों का सरल परिचय प्राप्त करें।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Upanishad Prakash
उपनिषदों पर अनेक विद्वानों ने भाष्य टीका-टिप्पणियाँ लिखी हैं, हम उन सभी विद्वानों का सम्मान करते हुए, स्वामी दर्षनानन्द जी के भाष्य को सर्वोत्तम मानते हैं। यद्यपि स्वामी दर्षनानन्द जी ने इन उपनिषदों का भाष्य उर्दू भाषा में किया था परन्तु बाद में वेद-दर्षन, उपनिषदादि के महान् मर्मज्ञ, अनेक भाषाओं के विद्वान् स्वामी वेदानन्द (दयानन्दतीर्थ) ने इसका हिन्दी भाषान्तर, स्थान-स्थान पर अनेक उपयोगी टिप्पणियाँ तथा उपनिशत्सार लिखकर सोने पर सुहागा लोकोक्ति को चरितार्थ कर दिया।
उपनिषदों के ज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य की आत्मिक, मानसिक और सामाजिक आवष्यकताएँ किस प्रकार पूर्ण हो सकती हैं। उपनिषदों में प्रतिपादित ज्ञान केवल एक बार सुनने से ही हृदय में नहीं बैठता। बार-बार श्रवण और बार-बार मनन करने से उसका रहस्य खुलता है। यहाँ प्रथम छः उपनिषदों का भाष्य प्रस्तुत है। निःसन्देह उपनिषदों के रहस्य इतने स्पष्ट किसी भी टीका में नहीं समझाये गये।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Upanishada Rahasya – उपनिषद रहस्य
उपनिषद् शब्द का एक अर्थ ‘रहस्य‘ भी है। उपनिषद् अथवा ब्रह्म-विद्या अत्यन्त गूढ़ होने के कारण साधारण विद्याओं की भाँति हस्तगत नहीं हो सकती, इन्हें ‘रहस्य‘ कहा जाता है। इन रहस्यों को उजागर करने वालों में महात्मा नारायण स्वामीजी का नाम उल्लेखनीय है।
उपनिषदों में ब्रह्म और आत्मा की बात इतनी अच्छी प्रकार से समझाई गई है कि सामान्य बुद्धि वाले भी उसका विषय समझ लेते हैं। महात्मा नारायण स्वामीजी ने अनेक स्थानों पर सरल, सुबोध तथा रोचक कथाएँ प्रस्तुत कर इन्हें उपयोगी बना दिया है।
वास्तव में उपनिषदों में विवेचित ब्रह्मविद्या का मूलाधार तो वेद ही हैं। इस सम्बन्ध में महर्षि दयानन्दजी कहते हैं-“वेदों में पराविद्या न होती, तो ‘केन‘ आदि उपनिषदें कहाँ से आतीं ?”
आइए ग्यारह उपनिषदों के माध्यम से मानवीय भारतीय चिन्तन की एक झाँकी लंें।
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English Books, Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vaidika Ethics
The sources of many core Vaidik values are documented for people’s knowledge and inspiration. The goal of VAIDIKA ETHICS is to constantly strive to live a life of moral responsibility even in the face of challenges and failures.
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedas Sanhita Set of 4
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedas Sanhita Set of 4
वेद चार हैं, ऋग्वेद ज्ञानकाण्ड है, यजुर्वेद कर्मकाण्ड, सामवेद उपासनाकाण्ड तथा अथर्ववेद विज्ञानकाण्ड है। ऋग्वेद मस्तिष्क का वेद है, यजुर्वेद हाथों का वेद है, सामवेद हृदय का वेद है और अथर्ववेद उदर=पेट का वेद है।
वेद में भी परमात्मा के आदेश, उपदेश और सन्देश हैं। महर्षि दयानन्द के शब्दों में ‘वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।‘ स्वयं वेद पढ़ो, उनपर आचरण करो।
हमने चारों वेदों को शुद्धतम छापने का संकल्प किया था। अपनी ओर से हमने पूर्ण प्रयत्न किया है। अब तक जितने भी संस्करण छपे हैं और जहाँ से भी छपे हैं, यह उनमें सर्वोत्कृष्ट हैं।
इस संस्करण की कुछ विशेषताएँ निम्न हैं-इन वेदों के ईक्ष्यवाचन प्रूफ रीडिंग में विषेष ध्यान रक्खा गया है। इतने शुद्ध, नयनाभिराम और सस्ते वेद अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होंगे। इसकी टाइप अन्य संस्करणों की अपेक्षा मोटी रक्खी गई है। कम्प्यूटर की कम्पोजिंग, उत्तम कागज, बढ़िया छपाई, टिकाऊ पक्की जिल्द, इसकी अन्य विशेषताएँ हैं। पाठगण ! इन्हे आप स्वयं क्रय कीजिए और अन्यों को प्रेरित कीजिए।
गुरुकुलों में अभ्यास के लिए, वेद पाठ के लिए, वेद परायण यज्ञों के लिए तथा वेद-मन्त्रों को कण्ठस्त करने के लिए इन चारों वेदों (मूल मात्र) के यह संस्करण अत्यन्त उपर्युक्त हैं।
सामवेद में स्वर-चिह्न मन्त्रों पर जो 1, 2, 3, आदि संख्या डली हुई हैं, ये संख्याएँ उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के चिह्न हैं। ऋग्वेद आदि अन्य वेदों में अनुदात्त का चिह्न पड़ी रेखा से और स्वरित का चिह्न खड़ी रेखा से दिखाया जाता है।
अनेक विशेषताओं से युक्त होने पर भी इसका मूल्य प्रचार-प्रसार की दृष्टि से रक्खा गया है। हम वेद का स्वाध्याय करें, वेद के अर्थों को जानें, वेद को जीवन में उतारकर अपने जीवन को सुजीवन बनाएँ।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan
Vedas Set of 4
मानवता की अपूर्व धरोहर चारों वेदों का सरल परिचय प्राप्त करें-पाठकों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि चारों वेदों में विवेचित विषयों तथा उनकी विषय वस्तु का सरल शैली में परिचय प्राप्त कराने के लिए हमारे विशेष अनुरोध पर प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् डॉ. भवानीलाल भारतीय जी ने चारों वेद संहिताओं का परिचयात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत चार पुस्तकों में किया है।
वैदिक संहिता साहित्य से परिचय प्राप्त करने में यह ग्रंथमाला अपूर्व सहायक सिद्ध होगी।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Sanskriti ka Sandesh
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Sanskriti ka Sandesh
जिस बिन्दु पर जीवन-यात्रा के अनेक मार्ग फूटते हैं, वहां से मैं किधर जाउं! कौनसा रास्ता सही है, ये प्रष्न प्रत्येक युवक और युवती के हदय में किसी न किसी समय उठते हैं।
वैदिक संस्कृति, भोगवाद तथा त्यागवाद पर समन्वयात्मक दृष्टि प्रस्तुत करते हुए सही पथ प्रदर्षित करती है, जिसे विद्वान लेखक ने सर्व-साधारण तक पहुंचाने के लिए यह अनुपन ग्रन्थ लिखा है।
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