-10%
, ,

Rigveda Complete (4 Volumes)


ग्रन्थ का नाम – ऋग्वेद संहिता

भाष्यकार – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी एवम् आर्य मुनि जी

वेद परमात्मा प्रदत्त ज्ञान राशि है। समस्त आर्ष ग्रन्थ इस बात की घोषणा करते हैं कि वेद अपौरुषेय वाक् है जो सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा ऋषियों के हृदय में प्रकाशित होता हैं। महाभारत इतिहास ग्रन्थ में वेदव्यास जी लिखते हैं –

“अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा।

आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।।’’ – शान्तिपर्व अ. 224/55

अर्थात् परमात्मा प्रदत्त यह वेदवाणी नित्य हैं, इसी वेदमयी दिव्यवाक् के कारण सारा जगत् अपने कार्यों में प्रवृत्त है। यह प्राचीनकाल से विश्व के मार्गदर्शक रहे हैं, इसलिए महर्षि मनु ने – “वेदश्चक्षुः सनातनम्” कहा है।

वेदों में ऋग्वेद का विषय वस्तु ज्ञान है। महर्षि दयानन्द जी का उपदेश है कि ऋग्वेद में प्रकृति से ब्रह्माण्ड पर्यन्त तत्वों का मूल ज्ञान निहित है तथा महर्षि अपनी बनाई भाष्यभूमिका में यह भी लिखते हैं कि वेदों का मुख्य तात्पर्य परमेश्वर को ही प्राप्त कराना है।

ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 85 अनुवाक्, 1028 सूक्तों के सहित 10521 मंत्र हैं। मंत्रों को ऋचाएँ भी कहा जाता है।

ऋग्वेद पर स्कन्द, नारायण, सायण, हरदत्त आदि विद्वानों नें भाष्य किया है। लेकिन अधिकांश भाष्य कर्मकांड परक और ऐतिहासिक परक हैं, जिससे वेदों का गूढार्थ प्रकट नहीं होता है। विडंबना है कि आचार्य सायण अपनी ऋग्भाष्य भूमिका में वेदों में इतिहास होने का प्रबल खंडन करके नैरुक्त पक्ष की स्थापना करते हैं लेकिन अपने वेदभाष्य में वे नैरुक्त पक्ष को दर्शानें मे असफल रहे और अधिकतर ऐतिहासिक अर्थ ही करते रहे। किन्तु महर्षि दयानन्द जी ने वैदिक शब्दों को यौगिक मानकर नैरुक्त पक्ष से अर्थ किए हैं, जिससे वेदों का नित्यत्व स्थापित होता है। स्वामी जी ने ऋग्वेद के मंडल 7 और सूक्त 61 तक भाष्य किया था। ये भाष्य वेदांगों, ब्राह्मणग्रंथों के प्रमाणों से युक्त होने से प्राचीन आर्षशैली पर आधारित हैं। सायणादि द्वारा वेद भाष्य करने में निरूक्तादि की उपेक्षा करके अर्थ करने के कारण उनके किए भाष्य में अंधविश्वास, पशुवध, मांसाहारादि दोष परिलक्षित होते हैं वहीं ऋषि दयानन्द द्वारा वेद भाष्य में निरूक्त, छंद, आदि का ध्यान रखा गया है जिसके कारण उनका भाष्य इन सब दोषों से मुक्त और सृष्टि के उच्चतम आध्यात्मिक विज्ञान से युक्त है। जहां अन्य वेदभाष्य विग्रहवादी बहुदेवों की उपासना की शिक्षा से युक्त हैं वही स्वामी जी का भाष्य एक निराकार सत्ता की उपासना की स्थापना करता है। इस प्रकार अनेको विशेषताओं से युक्त होने के कारण ऋषि दयानन्द कृत वेदभाष्य में अनेक गुणों का परिलक्षण होता है।

प्रस्तुत् वेदभाष्य 7 मंडल और 61 सूक्त तक महर्षि दयानन्दकृत है, जिसकी विशेषताएँ वर्णित की जा चुकी हैं तथा शेष भाग 10 मंडल तक सम्पूर्ण आर्यमुनि जी कृत हैं। आर्यमुनि जी ने वेदार्थ में स्वामी दयानन्द जी की वेदभाष्य शैली का ही अनुसरण किया है। अतः यह वेदभाष्य दर्शन, धर्म, नीति, लौकिक ज्ञान-विज्ञान आदि मानवहितों से युक्त है और दोष-रूपी अंधविश्वास, बहुदेववाद, हिंसादि की कल्पनाओं से परे है। ये भाष्य चार खंडों में प्रकाशित हैं, जिसकी छपाई आकर्षक और सुन्दर है। इसमें अन्त में परिशिष्ट रूप में सम्पूर्ण वेद मंत्रों की अनुक्रमणिका भी दी गई हैं जिससे कोई भी मंत्र आसानी से खोजा जा सकता है।

वेदों के अध्ययन द्वारा ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म की लहरों में स्वयं को डुबोने के लिए, इस वेदभाष्य को अवश्य प्राप्त करके चिंतन एवम् मनन सहित स्वाध्याय करें और अपने जीवन को दिव्य बनावें।

Rs.3,240.00 Rs.3,600.00

AUTHOR : Swami Dayanand Sarswati
PUBLISHER : Govindram Hasanand
LANGUAGE : Hindi
ISBN : 9788170772262
BINDING : Hardback
EDITION : 2021
PAGES : 5256
WEIGHT : 5700 gm

Weight 6.200 kg
Dimensions 14 × 11 × 6.5 in

Based on 0 reviews

0.0 overall
0
0
0
0
0

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

There are no reviews yet.