Vani Prakashan Books
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dusri Duniya
बोलना, निर्मल वर्मा के वहाँ कथन (स्टेटमेंट) नहीं है। वक्ता का ज़ोर बावजूद इसके कि उसमें ‘सच’ और ‘झूठ’ और ‘पाप’ जैसे मूल्याविष्ट प्रत्यय बार-बार आते हैं, बोले हुए की ‘टुथ-वैल्यू’ पर उतना नहीं, जितना खुद को ‘उच्चरित’ करने पर है…दरअसल उनके पात्र भाषा से तदात्म हस्तियाँ हैं। भाषा के जल में उठती हुई लहरें। भाषा में उत्पन्न नये अर्थ…वे साँचे हैं जो अब नहीं हैं लेकिन जिनके कभी होने का पता हमें उस भाषा से चलता है जो इन साँचों में ढली है, जो हमारे सामने है…यह भाषा अपने ‘टैक्सचर’ की पर्याप्त प्रांजलता के बावजूद अपने ‘स्ट्रक्चर’ में अत्यन्त अर्थगर्भी और जटिल है: लगभग एक कूट की भाँति… निर्मल वर्मा का हर पात्र कथा के एकान्त में एक ‘देह’ है: एक गुप्तचर की तरह अपने कोड (केट) में विचित्र सन्देश देती हुई; ‘अपने अतीत, अपनी यातनाओं के बारे में’ निर्मल वर्मा स्वयं किसी तरह की तर्कणा या परिपृच्छा से उसे पुकार कर या झिंझोड़ कर उसका एकान्त भंग नहीं करते। वे इस कूटबद्ध देह (वाक्य) के लिए एक अवकाश रचते हैं अपनी कथा के माध्यम से; ऐसा ‘घना सन्नाटा’ जहाँ इस देह के ‘विचित्र सन्देश’ ग्रहण किए जा सकें, जहाँ उसकी ‘गुप्त गवाही का गवाह’ हुआ जा सके…उनके यहाँ मनुष्य का सत्व भाषा में रूपायित है। – मदन सोनी
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Vani Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
DWIKHANDIT
जब हम एक लेखक की ‘आत्मकथा’ पढ़ते हैं, तो वह उन्हीं शब्दों के माध्यम से अपनी कहानी कहता है जो उसने अपनी कविताओं, उपन्यासों में प्रयोग किये थे किन्तु जब एक चित्रकार या संगीतकार अपने जीवन के बारे में कुछ कहता है तो उसे अपनी ‘सृजन भाषा’ से नीचे उतर कर एक ऐसी भाषा का आश्रय लेना पड़ता है, जो एक दूसरी दुनिया में बोली जाती है, उससे बहुत अलग और दूर, जिसमें उसकी ‘कालात्मा’ अपने को व्यक्त करती है । वह एक ऐसी दुनिया है, जहाँ वह है भी और नहीं भी, उसे अपनी नहीं अनुवाद की भाषा में बात कहनी पड़ती है । हम शब्दों की खिड़की से एक ऐसी दुनिया की झलक पाते हैं , जो ‘शब्दातीत’ है -जो बिम्बों, सुरों, रंगों के भीतर संचारित होती है । हम पहली बार उनके भीतर उस ‘मौन’ को मूर्तिमान होते देखते हैं, जो लेखक अपने शब्दों के बीच खाली छोड़ जाता है । हुसेन की आत्मकथा की यह अनोखी और अद्भूत विशेषता है, कि वह अनुवाद की बैसाखी से नहीं सीधे चित्रकला की शर्तों पर, बिम्बों के माध्यम से अपनी भाषा को रूपान्तरित करती है । ऐसा वह इसलिए कर पाती है, क्योंकि उसमें चित्रकार हुसेन उस ‘दूसरे ‘ से अपना अलगाव और दूरी बनाये रखते हैं, जिसका नाम मकबूल है, जिसकी जीवन-कथा वह बाँचते हैं, जिसने जन्म लेते ही अपनी माँ को खो दिया, जो इन्दौर के गली-कूचों में अपना बचपन गुजारता है, बम्बई के चौराहों पर फिल्मी सितारों के होर्डिग बनाता है, कितनी बार प्रेम में डूबता है, उबरता है, उबार कर जो बाहर उजाले में लाता है उनकी तस्वीरें बनाता है । धूल धूसरित असंख्य ब्योरे, जिनके भीतर के एक लड़के की झोली, बेडौल, नि श्छल छवि धीरे धीरे ‘एम. एफ. हुसेन, की प्रतिमा में परिणत होती है ।
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Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Ek Chithda Sukh
तुमने कभी उसे देखा है? -किसे? -दुख को…मैंने भी नहीं देखा, लेकिन जब तुम्हारी कज़िन यहाँ आती है, मैं उसे छिप कर देखती हूँ। वह यहाँ आकर अकेली बैठ जाती है। पता नहीं, क्या सोचती है और तब मुझे लगता है, शायद यह दुख है! निर्मल वर्मा ने इस उपन्यास में ‘दुख का मन’ परखना चाहा है- ऐसा दुख, जो ज़िन्दगी के चमत्कार और मृत्यु के रहस्य को उघाड़ता है…मध्यवर्गीय जीवन-स्थितियों के बीच उन्होंने बिट्टी, इरा, नित्ती भाई और डैरी के रूप में ऐसे पात्रों का सृजन किया है, जो अपनी-अपनी ज़िन्दगी के मर्मान्तक सूनेपन में जीते हुए पाठक की चेतना को बहुत गहरे तक झकझोरते हैं। पारस्परिक सम्बन्धों के बावजूद सबकी अपनी-अपनी दूरियाँ हैं, जिन्हें निर्मल वर्मा की क़लम के कलात्मक रचाव ने दिल्ली के पथ-चौराहों समेत प्रस्तुत किया है। शीर्षस्थ कथाकार निर्मल वर्मा की अविस्मरणीय कृति, जो रचनात्मक स्तर पर स्थूल यथार्थ की सीमाओं का अतिक्रमण करके जीवन-सत्य की नयी सम्भावनाओं को उजागर करती है।
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Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
EMOKE : EK GATHA
एमेके: एक गाथा चेकोस्लोवाकिया के सर्वाधिक विवादास्पद लेखक जोसेफ़ श्कवोरस्की का विश्व-विख्यात उपन्यास है, जिस पर 1998 में एक टेलिविजन फ़िल्म भी बन चुकी है। उपन्यास के केंद्र में छुट्टी मनाने गये कुछ पर्यटकों की दास्तान है। एमेके एक आकर्षक जिप्सी युवती, जिसका ध्यान सब अपनी ओर खींचना चाहते हैं, लेकिन वह दूसरी दुनिया की, अध्यात्म की बातें करती रहती है। धीरे-धीरे एक मीठा-सा त्रिकोण बनना शुरू होता है कि तभी एक व्यक्ति की शत्रुता से सब तहस-नहस हो जाता है। कहानी मीठे त्रिकोण से मीठे प्रतिशोध का फ़ासला बड़ी सुंदरता से तय करती है। आश्चर्य नहीं कि इस उपन्यास के विश्व की बीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। हिन्दी में इसका निर्मल वर्मा द्वारा अनुवाद पहली बार सन् 1973 में प्रकाशित हुआ था।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Suggested Books, Vani Prakashan, सही आख्यान (True narrative)
FATWE ULEMA AUR UNKI DUNIYA
-10%Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Suggested Books, Vani Prakashan, सही आख्यान (True narrative)FATWE ULEMA AUR UNKI DUNIYA
एक मुसलमान का किसी भारत जैसे गैर-मुस्लिम देश के प्रति क्या रुख होना चाहिए? काफिरों के प्रति उसका व्यवहार कैसा होना चाहिए? क्या उसे, जो कुछ गैर-मुस्लिम करते हैं उससे उलट करना चाहिए? क्या उसे वही करना चाहिए जिससे वे हतोत्साहित हों? क्या जिहाद को काफिरों के खिलाफ कयानत तक चलने वाला सिलसिला बताया गया है? क्या मुसलमान को विज्ञान की उन नयी खोजों को स्वीकार कर लेना चाहिए जो कुरान और हदीस की मान्यताओं के विरुद्ध जाती हैं और पुरानी खोजों का खण्डन करती हैं-जैसे कि पृथ्वी गोल है, यह पृथ्वी के इर्द-गिर्द चक्कर काटती है। कहा जाता है कि इस्लाम की संहिता मुकम्मिल है, और इसे बताने और लागू करने का काम फतवों के माध्यम से होता है। इस तरह से फतवों की पुस्तकें कानून की रिपोर्टों के समकक्ष होती हैं और ये शरियत का सक्रिय रूप होती हैं। ये मुसलमान समुदाय के उन उच्चतम और सर्वाधिक प्रभावशाली उलेमा द्वारा रचित कृतियाँ हैं, जो उसे रूप एवं दिशा प्रदान करते हैं।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Garh Kundaar
मानवती के .हाथ में अग्निदत्त ने कमान दी और तीर अपने हाथ में लिया । दोनों के हाथ काँप रहे थे । अग्निदत्त का कंधा मानवती के कंधे से सटा हुआ था । सहसा मानवती की आँखों से आँसुओ की धारा बह निकली ।
मानवती ने कहा – ” क्या होगा, अंत में क्या होगा, अग्निदत्त?”
” मेरा बलिदान?”
” और मेरा क्या होगा?
” तुम सुखी होओगी । कहीं की रानी ”
” धिक्कार है तुमको! तुमको तो ऐसा नहीं कहना चाहिए । ”
” आज मुझे आँखों के सामने अंधकार दिख रहा है । ‘
‘ मानवती की आँखों में कुछ भयानकतामय आकर्षण था । बोली – ” आवश्यकता पड़ने पर स्त्रियाँ सहज ही प्राण विसर्जन कर सकती हैं । ” अग्निदत्त ने उसके कान के पास कहा- ” संसार में रहेंगे तो हम -तुम दोनों एक -दूसरे के होकर रहेंगे और नहीं तो पहले अग्निदत्त तुम्हारी बिदा लेकर… । ”
दलित सिंहनी की तरह आँखें तरेरकर मानवती ने कहा- ” क्या? आगे ऐसी बात कभी मत कहना । इस सुविस्तृत संसार में हमारे-तुम्हारे दोनों के लिए बहुत स्थान है । ”
-इसी उपन्यास से वर्माजी का पहला उपन्यास, जिसने उन्हें श्रेष्ठ उपन्यासकारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया ।
हमारे यहाँ से प्रकाशित,वर्माजी की प्रमुख कृतियाँ,मृगनयनी झाँसी की रानी,अमरबेल विराटा की पद्यिनी,टूटे काँटे महारानी दुर्गावती,कचनार माधवजी सिंधिया,गढ़ कुंडार अपनी कहानीSKU: n/a -
Vani Prakashan, उपन्यास
Ghaban
ग़बन का कथानक मुख्यतः मध्य वर्ग में दिखावे की आदत के दुष्परिणामों पर आधारित है। सामाजिक रूढ़ियों की गर्द तथा स्त्रियों में गहनों की चाहत को एक दिलचस्प कथासूत्र में बाँधा गया है। साथ ही, यह लोकप्रिय उपन्यास स्वतंत्रता संघर्ष के विभिन्न पहलुओं पर भी रोशनी डालता है।
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Vani Prakashan, कहानियां
GIRIJA
गिरिजा देवी का संगीत रचना सुनते हुए मन की उसाँस किसी अँधेरेी गह्वर गुफ़ा से निकलकर एक बिम्ब विधान रचती है, यह एक कला का दूसरी कला के प्रति अपने गहन आभार का स्तुतिगान भी है। संगीत के असीम कुहासे और मौन को भेदता हुआ एक भित्ति चित्र। यतीन्द्र मिश्र की यह पुस्तक एक बार पुनः इस बात की पुष्टि करती है कि हर कला संगीत के सर्वोपरि शिखर पर पहुँचने का स्वप्न देखती है। कविता के भीतर से उठता हुआ संगीत का स्वप्न…किसी संगीतकार की कला को संगीत में बाँधना कुछ वैसा ही दुष्कर कार्य है, जितना बहते झरने की कलकल धारा को अपनी मुट्ठी में समो पाना। किन्तु जितनी बूँदें भी हाथ लगती हैं, उनमें समूचे ‘सम्पूर्ण’ का रोमांचित स्वर अनुगूँजित हो जाता है।
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Vani Prakashan, उपन्यास
GUJRAT KE NATH
प्रख्यात गुजराती साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की ऐतिहासिक उपन्यासमाला गुजरात गाथा’ का प्रस्तुत खण्ड, पिछले खण्ड के छूटे हुए कथासूत्र को पकड़ कर आगे बढ़ता है। इसमें 1096-1110 ई. के मध्य, दस वर्ष, का घटनाक्रम है। पाटन की शासनपीठ पर जयसिंह देव आसीन है। एक शासक के रूप में वह अभी कच्चा और अनुभवहीन है, किन्तु राजमाता मीनलदेवी और महामात्य मुंजाल के पुष्ट अनुभवों, शासन कौशल और दूरदर्शिता के सहारे गुर्जर सोलंकी साम्राज्य की पताका फहरा रही है। घरेलू स्तर पर सब शान्त है, महामात्य मुंजाल ने सारे सूत्र एकत्र बाँध दिये हैं। जयसिंह के सौतेले भाई देवप्रसाद का पुत्र त्रिभुवनपाल लाट प्रदेश का दंडनायक है। कर्णावती का शासन भार नागर मन्त्री दादाक के जिम्मे है और खंभात उदा मेहता के पास। सोरठ का भार सज्जन मन्त्री के पुत्र परशुराम पर है। यहाँ तक तो सब ठीक है, परन्तु बाहरी मोर्चा! एक ओर मालवा के अवंतिराज का दबाव और दूसरी ओर गुजरात के ही जूनागढ़ के दुर्द्धर्ष राजा दा’ नवघण और उसके षड्यंत्रकारी पुत्रों के कुचक्र। गुजरात के नाथ’ का चौदह वर्षों का समय इन्हीं समस्याओं से जूझते, अनेक उपकथाओं, अनेक चरित्रों से होकर बीतता है। गुजरात के नाथ’ का कथाफलक विस्तृत है और विस्तार की वजह से घटनाक्रम में अनेक मोड़ आते हैं, मानव-स्वभाव के अनेक रूपों से हमारा सामना होता है। इतिहास और कल्पना के धूपछाँही रंगों से चित्रित एक स्मरणीय कथाकृति!
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Har Barish Mein
हिन्दी साहित्य के इतिहास में साठ का दशक, निर्मल वर्मा, चेकोस्लोवाकिया और यूरोप- लगभग अभिन्न हो गये हैं। इस दौरान निर्मल वर्मा ने यूरोप की धड़कन, उसके गौरव और शर्म के क्षणों को बहुत नजदीक से देखा-सुना। इस लिहाज से यह पुस्तक एक ऐसी नियतिपूर्ण घड़ी का दस्तावेज है, जब बीसवीं शती के अनेक काले-उजले पन्ने पहली बार खुले थे। दुब्चेक काल का प्राग-वसन्त, सोवियत-स्वप्न का मोह-भंग, पेरिस के बेरिकेडों पर उगती आकांक्षाएँ- ऐसी अभूतपूर्व घटनाएँ थीं, जिन्हें हमारी ढलती शताब्दी की छाया में निर्मल वर्मा ने पकड़ने की कोशिश की, किसी बने-बनाये आईने के माध्यम से नहीं बल्कि सम्पूर्णतया अपनी नंगी आँखों के सहारे। यह पुस्तक एक बहस की शुरुआत थी- वामपन्थी विचारधारा को प्रश्नांकित करने की शुरुआत। इस पुस्तक में युवा चिन्तक निर्मल वर्मा पहली बार ‘अलोकप्रिय’ होने के खतरे उठाते दिखाई दिये थे- लेकिन इसके बाद फिर कभी किसी ने उन पर यह आरोप नहीं लगाया कि वह ‘किसी भी बारिश’ में भीगने से कतराये थे।
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hardoi : Sanskritik Gazetteer-2
अवध प्रांत के सीमांकन को लेकर भिन्न विचारधाराएँ हैं,कुछ विद्वान इसके एक भौगोलिक क्षेत्र के रूप में डेकते है तो दूसरी और भाषाविदों के आनुसार यह वह क्षेत्र है जहां अवधि भाषा बोली जाती है। इस प्रांत को ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखा जाए तो अलग-अलग कालखंड में इसकी सीमाएं एवं राजधानी परिवर्तित होती रही है। दूसरी ओर इस प्रांत में स्तिथ हरदोई जिले को कुछ लोग अवध में रखते हैं तो कुछ अलग मानते हैं फिलहाल वर्तमान प्रशासनिक ढांचे के अनुसार यह ज़िला अवध का ही भाग है। इस गज़ेटियर में हरदोई से जुड़ी वो सब बाते और मान्यताएं मिलेंगी जो फले से चली आ रही हैं।
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Hidimba
उपन्यासकार यह बताना चाहता है कि महाभारत की कथा भारतीय संस्कृति की अमूल्य थाती है। यह मनुष्य के उस अनवरत युध्द की कथा है, जो उसे अपने बाहरी और भीतरी शत्रुओं के साथ निरन्तर करना पड़ता है । इस संसार में चारों ओर लोभ, मोह, सत्ता और स्वार्थ की शक्तियाँ संघर्षरत हैं । लोभ, त्रास और स्वार्थ के विरुध्द मनुष्य के इस सात्विक युध्द को महाभारत में अत्यन्त विस्तार से प्रस्तुत किया गया है । ‘हिडिम्बा’ पाठकों के समक्ष प्रश्न उत्पन्न करती है कि हिडिम्बा कैसी पात्र है ? क्यों एक भाई के हत्यारे के साथ शादी करने को तैयार हो जाती है ? क्यों कुंती अपने बड़े बेटे के विवाह से पहले भीम के विवाह पर राजी हो जाती है । क्यों हिडिम्बा हस्तिनापुर न जाकर जंगल में रहना ही स्वीकार करती है ? इस उपन्यास में ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिससे पाठक रूबरू होंगे।
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