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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Swatantrata ke Pujari Maharana Pratap
स्वतंत्रता के पुजारी महाराणा प्रताप : मेवाड़ भारतीय स्वतंत्रता का सदैव प्रहरी बना रहा। महाराणा संग्रामसिंह मेवाड़ का शासक हिन्दुवां सूरज और भारतदृभूमि का अंतिम हिन्दू सम्राट था। जिसने झण्डे के नीचे दो बार भारतीय नरेशों ने विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया था। इस पुस्तक का नायक उसी महाराणा संग्रामसिंह का पौत्र, महाराणा उदयसिंह का पुत्र महाराणा प्रतापसिंह है। स्वाभिमानी स्वतंत्रताकामी महाराणा प्रतापसिंह दीर्घकालीन भारतीय वीर परम्परा के इतिहास पुरुषों में राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पित करने वाले वीर पुरुष एवं महान व्यक्तित्व थे। महाराणा प्रताप ने तत्कालीन मुगल सत्ता के प्रबलतम शासक अकबर से लोहा लिया और अपनी मातृभूमि की रक्षा, भारतीय स्वाभिमान भारतीय स्वातंत्र्य गौरव और आदर्श हिन्दू शासन व्यवस्था की रक्षा के लिए आजीवन जूझने का प्रण लिया और जीवन पर्यन्त उसका निर्वहन किया। महाराणा प्रतापसिंह के युद्ध कौशल, वीरता, प्रशासनिक दक्षता, शौर्य, स्वातंत्र्य प्रेम विपत्ति सहने की शक्ति, महाराणा के साथी सहयोगी योद्धा, मेवाड़ की आर्थिक स्थिति तथा महाराणा उदयसिंह और महाराणा अमरसिंह के कार्य-कलापों के अनेकानेक छुए-अनछुए पक्षों पर पहली बार विद्वान लेखक ने प्रकाश डाला है। इसके अलावा फारसी ग्रंथों व प्रतापसिंह के समसामयिक और परवर्ती राजस्थानी ग्रन्थों पर विचार कर प्रतापसिंह को लेकर भ्रांत धारणाओं का निवारण कर कतिपय अचर्चित प्रसंगों और महाराणा के सहयोगी योद्धाओं को खोज कर उन्हें भी उजाकर किया है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
It is always interesting to know something about the people with whom we have to deal and to learn their ways, manners, and customs is an amusing task. The want of a book containing descriptions of the various tribes and castes of Marwar was long felt. No attempt has hitherto been made to undertake the work on account of a great many difficulties that attended its achievement. But the census of Marwar for 1891, the charge of which was entrusted to the undersigned, made the way clear and easy. The Darbar sanctioned the publication of such a work, and the census tours made throughout the country for the purpose of inspecting the preliminary arrangements of the districts afforded suitable opportunities for the collection of the required material. The census Supervisors and Inspectors, as well as the Pargana Hakims, were provided with a set of questions dealing with the chief points to enable them to collect information regarding the ways and other social circumstances of the people, but a good many facts were investigated through personal inquiries from trustworthy representatives of various communities. Many valuable references were also obtained from the Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. Tod. the Punjab Census Report of 1881 by Mr. Danziel Ibbetson, the Hindu tribes, and castes by the Revd. M. A. Sherring, the Races of the North-Western Provinces by Sir Henry Elliot, the Memoir of Central India by Sir John Malcolm, the Indian castes by John Wilson, also the Gazetteers of Rajputana and several other publications, to the authors of all of which the undersigned owes a good deal of obligation.
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veer Shiromani Maharana Pratap Singh (Sachitra)
वीर शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह (सचित्र) : वीर पुरूषों के गौरवपूर्ण आदर्श चरित्रों से मनुष्य जाति एवं राष्ट्रों में एक संजीवनी शक्ति का संचार होता है। इसीलिए प्रत्येक देश अपने वीर पूर्वजों के चरित लिखकर उनका सम्मान करता है। राजस्थान में भी ऐसे कई अनुकरणीय, निःस्वार्थी और आदर्श वीर हुए हैं जिनमें वीर शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह सबसे अग्रगण्य है। महाराणा प्रतापसिंह का स्थान राजस्थान के इतिहास में ही नहीं भारतवर्ष के इतिहास में भी बहुत ऊँचा है। राजस्थान के इतिहास को इतना अधिक उज्जवल, आदर्श तथा महत्त्वपूर्ण बनाने का श्रेय उक्त महाराणा को ही है। वह स्वतंत्रता का पुजारी, अपने कुल-गौरव का रक्षक एवं आत्माभिमान और वीरता का अवतार था। प्रातः स्मरणीय हिन्दूपति महाराणा प्रताप का यह ऐतिहासिक चरित्र देश की भावी पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करेगा।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veervar Rao Amar Singh Rathore
वीरवर राव अमर सिंह राठौड़ : राजस्थान के प्रख्यात वीरों में वीरवर राव अमरसिंह राठौड़ का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। राव अमरसिंह राठौड़ का नाम समूचे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है और इस प्रसिद्धि का कारण है उनका स्वाभिमान और आत्मसम्मान के लिए निर्भयता पूर्वक अपने प्राणों का उत्सर्ग करना। अमरसिंह राठौड़ ने मुगल सम्राट शाहजहाँ के भी दरबार में सलावत खां का काम तमाम किया। उनका यह अद्भुत शीर्ष व पराक्रम युक्त कार्य राजपूती आन, बान और शान का प्रतीक बन गया।
चाहे जो कारण रहा हो इतिहास के पन्नों में इस वीर के पराक्रम का ठीक से आंकलन नहीं हुआ पर यहाँ के कवियों, साहित्यकारों, लोक कलाकारों ने (खास कर कठपुतली के ख्याल के माध्यम से) इस वीर की साहसिक घटना को इतनी विशिष्टता से प्रदर्शित किया की अमरसिंह राठौड़ क्षत्रियत्व के प्रतीक और जन-जन के नायक बन गये। ऐसे उद्भट व स्वाभिमानी वीर का पराक्रम कभी विस्मृत नहीं हो सकता। यह स्वाभिमानी वीर जन-जन की श्रद्धा और प्रेरणा का आधार बनकर सदा के लिए अमर हो गया।
चार सौ वर्ष बीतने के बाद भी राव अमरसिंह राठौड़ की यशकीर्ति आज भी कायम है। निसंदेह शौर्य, स्वाभिमान, पराक्रम व आत्मसम्मान युक्त उनकी जीवन गाथा सदैव वीरत्व की अद्भुत स्फुरणा प्रदान करती रहेगी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Vismrit Satya
विस्मृत सत्य : भारत में इतिहास लेखन एवं संरक्षण की देशज परंपरा का इतिहास : प्रारंभ में कई विद्वानों ने भारतीयों में इतिहास बोध की कमी बताई। लेकिन इस क्षेत्र में हुए अग्रिम शोध और विमर्श के पश्चात् वर्तमान में यह एक स्थापित तथ्य है कि भारतीयों में इतिहास बोध रहा है और यहां इतिहास संरक्षण की एक देशज परंपरा भी रही है। परन्तु आज भी इस परंपरा के वास्तविक स्वरूप और इसके परंपरागत वाहकों के बारे में आमजन से लेकर विद्वानों तक में पूर्ण स्पष्टता नहीं है। अतः इस बिन्दु पर विचार मंथन और तथ्य अन्वेषण इस पुस्तक का मूल स्वर है। यह पुस्तक भारत में इतिहास लेखन एवं संरक्षण की देशज पंरपरा के उद्भव और विकास को समझाने के साथ ही इस परंपरा के वाहकों के बारे में भी स्पष्ट समझ पैदा करती है। फलस्वरूप साहित्य व इतिहास ग्रंथों के साथ ही समाज में फैले कई भ्रम निर्मूल साबित होते हैं।
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Vivekanand Granthawali
विवेकानन्द ग्रन्थावली : यह शक्ति क्या है जो हमारे शरीर में व्यक्त होती है ? यह हम सब लोगों को प्रकट है कि वह चाहे जो शक्ति हो, वह परमाणुओं को जोड़ बटोर कर हमारे और तुम्हारे शरीर की रचना करने नहीं आता। मैंने यह नहीं देखा कि खाए कोई और तृप्ति हो मुझे। मैं ही अन्न खाकर उसे पचाता हूँ और उसके रस को लेकर रक्त, माँस, मज्जा और अस्थि रूप में उसे परिणत करता हूँ। यह कौन अदभुत शक्ति है ? भूत और भविष्य का भाव ही कितनों के कलेजे को हिला देता है। कितनों का तो केवल कल्पना मात्र जान पड़ते है। वर्तमान काल ही को ले लीजिए। वह कौन सी शक्ति है, जो हमारे भीतर काम कर रही है। हमें यह भी ज्ञात है कि सारे प्राचीन साहित्य में यह शक्ति, शक्ति की यह अभिव्यक्ति जो एक अत्यन्त उज्जवल व प्रकाशमय पदार्थ मानी गई थी, इसी शरीर के आकार प्रकार की थी और इस शरीर के पंचतत्व प्राप्त होने पर रह जाती थी। इसके पीछे धीरे-धीरे यह उच्च गति बदला करती थी। ऐसे लोग जो अपने साथ संसार में बहुत सी आकर्षण शक्ति लेकर आते है, जिनकी आत्मा सैकड़ों और सहस्त्रों में काम करती है, जिनके जीवन दूसरों में आध्यात्मिक अग्नि प्रज्वलित कर देते है, ऐसे लोगो का आश्रय हम सदा से देखते आ रहे है, वही धर्म था। उनमें संचालन शक्ति धर्म के लिए सबसे बड़ा संचालक बल है और उसका प्राप्त करना ही प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्व स्वत्व और स्वभाव है।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Yadavon ka Brihat Itihas (Vol. 1, 2)
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणYadavon ka Brihat Itihas (Vol. 1, 2)
यादवों का बृहत इतिहास : “भाग 1 में यादव वंश का उद्भव, हैहय वंश का विस्तार, सूर्य एवं चन्द्र वंशों का प्रसार, आर्यों का निवास स्थान, वैदिक एवं वैदिकोत्तर काल, त्रेता और द्वापर में यादव, श्रीकृष्ण और उनका युग, महाभारत युद्ध का काल, यादव और गणतन्त्र प्रणाली, यादवों का वृज्जि अथवा वज्जि गणराज्य, यादवों का कलिंग साम्राज्य, यादवों का कलचुरि राजवंश, कलचुरिओं का कर्नाटक राज्य, राष्ट्रकुटों (यादवों) का कन्नौज और बदायूं पर शासन, राष्ट्रकूट यादवों का दक्षिण भारत में शासन, सातवाहन यादव, पल्लव यादव : उनका उद्भव, आन्ध्रप्रदेश के पल्लव यादव, केरल के चेर (यादव) शासक, अय व मुषिक और कुलशेखर यादव, यादवों का ट्रावनकोर राज्य, यादवों की सामाजिक स्थिति, दक्षिण भारत में यादव, यादवों का पांड्य वंश, यादवों का होयसल वंश, यादवों की देवगिरी राज्य, यादवों का विजयनगर साम्राज्य, वडियार यादवों का मैसूर राज्य आदि शीर्षकों पर जानकारी प्रदान की गई है।
भाग 2 में यादव और आभीर एवं अहीर : व्युत्पति एवं सम्बन्ध, यादव वंश की शाखाएं, श्री कृष्ण के पुत्रों के वंशज, गुजरात के यादव शासक (1472-1947 ई.), यादवों का गुप्तवंश, मौखरी/मौखरिया/महांखरियां वंश : उत्पत्ति एवं राजस्थान, उत्तर प्रदेश के मांखरिया, मौखरी सम्राट यशोवर्मन और उसके उत्तराधिकारी, यादवों का पाल राजवंश (625-1150 ई.), यादवों का सैहपुर अथवा सिंहपुर का राजवंश, यादवों का जाजम/जादौं/भाटी राजवंश, जैसलमेर राज्य की स्थापना, राज्य का उत्कर्ष और अन्त, यादवों के करौली और ब्रज जनपद राज्य, अहीरों का रेवाड़ी राज्य, यादव जो जाट हो गए, अहीरों का आवास और विस्तार, धार्मिक विश्वास और रीति रिवाज, विभिन्न राज्यों में प्रमुख यादवगण, समकालीन यादव और राजनीति, यादवों की संस्कृति एवं इतिहास को देन आदि शीर्षकों पर जानकारी प्रदान की गई है।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
क्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणक्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय, भारतीय काल गणना, भारतीय इतिहास, आर्यों की वर्ण व्यवस्था, सूर्य वंश, सोमवंश, चन्द्रवंश, महाभारत की युगीन जनपद, राजपूतों की उत्पत्ति, कछवाहा, राठौड़, गुहिलोत, चौहान, देवड़ा, प्रतिहार, कुमार (कमाष) जेठवा राजवंश, निंकुभ राजवंश, हुल राजवंश, चालुक्य (सोलंकी) राजवंश, तोमर राजवंश, तंवर, गोहिल, गुर्जर, कलचूरी, राष्ट्रकूट, परमार, चावड़ा, यादव, यौधय, मकवाना, शिलाहार, चन्देल, गौड़, कटोच, राजपूत, मुस्लिम राजपूत एवं अन्य राजवंश आदि के राजवंश, राज्य एवं खांपें और ठिकाने, भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन, ब्रिटिशकाल, स्वतंत्र भारत में राजपूत जाति का संगठन, आन्दोलन एवं योगदान, विभिन्न क्षेत्रों में राजपूतों को राजनैतिक योगदान एवं विश्वविख्यात व्यक्तित्व, राजपूतों के विवाह सम्बंध एवं गोत्र प्रवरादि संस्कार, लोकदेवता तंवर शिरोमणि बाबा रामदेव जी का वंशक्रम आदि और भी बहुत कुछ…
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणचित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
मेवाड़ के शीर्ष-पुरुषों की कीर्तिपूजा अपने शब्द-सुमनों से करने के उपरान्त और भक्त-शिरोमणि मीरां की श्रद्धांजलि समर्पित करने मे बाद भी, इन सबकी पंक्ति में प्रथम स्थान प्राप्त, मेवाड़ में इतिहास-लेखन-परम्परा प्रारम्भ करने वाले और अपनी कीर्ति में अपना, मेवाड़ में सबसे उत्तंग कीर्ति-स्तम्भ निर्मित कराने वाले, जो अब भारत की श्रेष्ठता का द्योतक बना हुआ है, महाराणा कुंभा से 100 वर्ष पहले होने वाली, अनेक प्रकार से अनुपम, जिनकी सौन्दर्य-सिद्धि के लिए समुद्रपार सिंहल द्वीप में उनका उद्गम उल्लिखित हुआ है और जिन्होंने चित्तौड़ में जौहर प्रणाली का प्रारम्भ करके उसकी ज्वालाओं से अपने पति का आत्मोसर्ग मार्ग आलोकित किया, उन राजरानी पद्मिनी की चारित मेरी लेखनी की परिधि से बाहर अब तक क्यों रहा, इसका कारण मुझसे अब तक नहीं बन पड़ा है, सिवाय इसके कि उनकी गाथा उनके समय में अब तक पद्मिनी की कोई क्रमबद्ध जीवनी नहीं है। मुनि जिनविजय जैसे अध्येता और उद्भट विद्वान को भी प्रश्न उठाना पड़ा है : “यह एक आश्चर्य सा लगता है, कि हेमरतन आदि राजस्थानी कवियों ने पद्मिनी के जीवन के अन्तिम रहस्य के बारे में कुछ नहीं लिखा?” इस अवधि में ही आता है साका और जौहर, जो राजस्थानी वीर परम्परा के ऐसे अंत रहे, जिसे भावी पंक्तिया प्रेरणा प्राप्त करती रहीं। इसकी परिपूर्ति करने का साहस मुझ जैसे मेवाड़ से दूर बैठकर अध्ययन और अभिव्यक्ति करने वाले अल्पज्ञ का नहीं हो सकता। फिर भी पद्मिनी चरित के अधूरे अंशों को शब्दों से ढकने का प्रयत्न मैंने इस पुस्तक में किया है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास
प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास | Pratapgarh Rajya ka Itihas
प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास मेवाड़ राज्य के सिसोदिया वंश से जुड़ा रहा है। उसके शासक उसी राजवंश की एक प्रमुख शाखा के रूप में अपनी परम्पराएँ विकसित करते चले हैं। इस राजवंश की स्थापना आज से प्रायः पाँच सौ वर्ष पूर्व की गई थी। महाराणा कुंभा के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल इस राज्य के संस्थापक शासक थे। बागड़, मालवा और मेवाड़ की सीमाओं से जुड़ा हुआ होने के कारण यह राज्य ‘कांठल’ के नाम से भी पुकारा जाता है। यहाँ के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में भीलों और मीणों की बस्तियों की अधिकता पाई जाती है। प्रतापगढ़ राज्य के इतिहास को पूर्णतः प्रकाश में लाने की दृष्टि से ही इस ग्रंथ की रचना की गई है। इसके विद्वान् लेखक ने इसे सात अध्यायों में विभक्त कर प्रथमतः उसका भौगोलिक विवरण दिया है जिससे उस राज्य के नाम, स्थान, क्षेत्रफल, सीमा, पर्वतश्रेणियों, नदियों, झीलों तथा वनप्रदेशों आदि की पूरी जानकारी मिल जाती है। प्रथम अध्याय का सम्पूर्ण सर्वेक्षण प्रतापगढ़ रियासत के इतिहास का सम्यक् बोध करने के पूर्व उसकी भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझने की दृष्टि से परम उपयोगी है।
ग्रंथ के दूसरे अध्याय में सिसोदियों के पूर्व के राजवंशों का क्रमागत परिचय दिया गया है जिनकी परम्परा रघुवंशी प्रतिहारों, परमार और सोलंकी राजाओं तथा मुसलमान शासकों की भी गणना की गई है। तृतीय अध्याय महारावत क्षेमकर्ण से विक्रमसिंह तक की राज्यघटनाओं का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत करता है तो चौथे अध्याय में महारावत तेजसिंह से प्रतापसिंह तक के शासनकाल की उपलब्धियाँ गिनाई गई हैं। ऐतिहासिक विवरण का यह क्रम महारावत पृथ्वीसिंह, सामंतसिंह, दलपतसिंह तथा महारावत सर रामसिंह तक चलता रहा है जिसमें उन शासकों के जीवन की मुख्य-मुख्य घटनाओं तथा उनकी राजवंशीय परम्पराओं आदि का भी विवरण सम्मिलित किया गया है। ग्रंथ के अंत में जोड़े गये, परिशिष्ट, अनुक्रमणिका एवं चित्रसूची के अध्ययन, अवलोकन तथा आकलन द्वारा प्रतापगढ़ राज्य की ऐतिहासिक सामग्री के उसे प्रपूरक भाग का भी प्रर्याप्त ज्ञान हो जाता है जो उस राज्य के निर्माण और विकास में सहायक सिद्ध हुई थी। कुल मिलाकर यह ग्रंथ प्रतापगढ़ राज्य का प्रामाणिक दस्तावेज है जिसे सही ढंग से खोज निकालने के लिए विद्वान लेखक को वर्षो तक अथक प्रयास करना पड़ा था। अपने क्षेत्र में इस ग्रंथ को लेखक की महान् उपलब्धि कहा जा सकता है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास
बांसवाड़ा राज्य का इतिहास | Banswara Rajya ka Itihas
दक्षिणी राजस्थान के पहाड़ी भू-भाग में स्थित बांसवाड़ा राज्य का देश के मध्यकालीन इतिहास में उत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। तेरहवीं शताब्दी के मध्य मेवाड़ के अधिपति महाराणा सामंत सिंह ने वागड़ प्रदेश में गुहिलवंशी राज्य की स्थापना की थी। संवत् 1518 के आस-पास अनेक घटनाओं के परिणामस्वरूप बांसवाड़ा राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व बना किन्तु अनेक कारणों से उसकी ऐतिहासिक सामग्री की प्रामाणिक खोज नहीं की गई। आवागमन की असुविधाओं एवं राजनीतिक हलचलों के प्रभाववश इस राज्य का इतिहास अनेक वर्षों तक अंधकारग्रस्त रहा। इस राज्य के शासकों तथा निवासियों ने भी उसे प्रकाश में लाने का कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं किया। ‘वीर विनोद’ में उसका सामान्य उल्लेख अवश्य हुआ है किन्तु ज्ञात तथा अज्ञात सामग्री के यत्र-तत्र बिखरे हुए होने के कारण उसका क्रमबद्ध इतिहास नहीं लिखा गया।
प्रस्तुत ग्रंथ बांसवाड़ा राज्य के गौरवशाली इतिहास-लेखन की दिशा में एक मौलिक प्रयास है। इसके विद्वान् लेखक ने उस राज्य की भौगोलिक स्थिति का विस्तृत विवरण देने के पश्चात् सर्वप्रथम उस पर गुहिलवंश के अधिकार के पूर्व की परिस्थितियों का सामान्य लेखा-जोखा किया है। तदुपरांत सामंतसिंह के शासनकाल से लेकर आज तक के प्रमुख घटनाक्रमों के संदर्भ में महारावल जगमाल, समरसिंह, कुशलसिंह, उम्मेदसिंह, भवानीसिंह और महारावल सर पृथ्वीसिंह के शासनकाल की उपलब्धियों की प्रामाणिक सामग्री जुटाई गई है। ऐसा करते समय लेखक के पुरातत्व विज्ञान से सम्बन्धित शिलालेखों, ताम्रपत्रों, ऐतिहासिक ख्यातों, प्राचीन वंशावलियों, दानपत्रों, बहीखातों, प्राचीन राजकीय सनदों, फरमानों, बड़वे भाटों, राणीमंगों एवम् अन्य व्यक्तियों द्वारा लिखित दस्तावेजों का भी प्रचुर आधार लिया है। संस्कृत, हिन्दी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी आदि विभिन्न भाषाओं में लिखित पुस्तकें भी इस कार्य के सम्पादन में उसके लिए सहायक सिद्ध हुई हैं। ग्रंथ का परिशिष्ट मुख्यतः गुहिल से लगाकर वागड़ प्रदेश के शासकों की क्रमबद्ध वंशावली के साथ-साथ उन विक्रम संवतों से भी उपवृंहित है, जिनमें इस राज्य की प्रमुख घटनाएँ घटित हुई थीं। परिशिष्ट का अंतिम भाग तथा उसकी ‘अनुक्रमणिका’ लेखक के शोधपूर्ण अध्यवसाय तथा इतिहासप्रेम के द्योतक कहे जा सकते हैं। कुल मिलाकर यह ग्रंथ सभी दृष्टियों से संग्रहणीय, पठनीय एवं ऐतिहासिक तथ्यों के ‘विचारणीय संदर्भों से ओत-प्रोत’ है, जिसमें लेखक की शोधप्रज्ञा प्रदर्शित हुई है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास
बीकानेर राज्य का इतिहास (भाग – 1, 2) | Bikaner Rajya ka Itihas (vol. – 1, 2)
Rajasthani Granthagar, इतिहासबीकानेर राज्य का इतिहास (भाग – 1, 2) | Bikaner Rajya ka Itihas (vol. – 1, 2)
राजस्थान के इतिहास में बीकानेर राज्य का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है। बीकानेर राज्य के राठौड़ो की युद्धवीरता, दानवीरता, विद्याप्रेम, नीति-चातुर्य और सदाशयता प्रसिद्ध रही है। यहां के नरेशों का इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रहा है। राव बीका ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। राव बीका से पूर्व का इस प्रदेश का जो इतिहास रहा वह प्रारंभ में संक्षिप्त रूप से दिया गया है। इसके साथ दिया गया इस राज्य की भूगोल सम्बंधी वर्णन भी उल्लेखनीय है। बीकानेर राज्य के इतिहास लेखन में इसके विद्धान लेखक डाॅ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने शिलालेखों, ताम्रपत्रों, सिक्कों, ख्यातों, प्राचीन वंशावलियों, संस्कृत, फारसी, मराठी और अंग्रेजी पुस्तकों, शाही फरमानों तथा राजकीय पत्रों का भरपूर प्रयोग करके इसे वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है। स्थानीय स्त्रोता को अपने इतिहास लेखन में विशेष महत्व दिया है।
बीकानेर के संस्थापक राव बीका से लेकर महाराजा प्रतापसिंह तक बीकानेर राज्य के नरेशों का प्रथम खण्ड में विस्तार से वर्णन किया गया है। बीकानेर राज्य के इतिहास के द्वितीय खण्ड में महाराजा सूरतसिंह से लेकर महाराजा गंगासिंह तक सविस्तार वर्णन किया है। अन्तिम अध्याय में बीकानेर राज्य के सरदारों और प्रतिष्ठित घरानों पर प्रकाश डाला है। पांच परिशिष्टों के अन्तर्गत दी गई ऐतिहासिक सामग्री से इस ग्रंथ का महत्व और बढ़ गया है। डाॅ. ओझा का इतिहास बोध और इतिहास दर्शन सभी इतिहासज्ञों को प्रभावित करने वाला है। अतः उनका यह इतिहास ग्रन्थ सभी शोधार्थियों और इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
राजपूत नारियां | Rajput Nariyan
राजपूत नारी की वीरता, साहस, त्याग, दृढ़संकल्प, कष्ट-साहिष्णुता, धर्म ओर पति-परायणता, शरणागत वत्सलता स्तुत्य रही है। अपने शील व स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीर माता, वीर पत्नी और वीर पुत्री के रूप में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, उस पर प्रस्तुत पुस्तक में संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। पौराणिक रामयणकालीन, महाभारत कालीन राजपूत रानी के आदर्श तत्कालीन युग के अनुरूप निर्धारित हुए। मध्यकाल जब आया तो उस काल की मांग के अनुरूप राजपूत नारी की चारित्रिक विशेषताओं के भिन्न मापदण्ड स्थापित हुए। यों तो हरयुग में राजपूत नारी में थोड़ा बहुत बदलाव आता रहा है। पर मूलभूत शाश्वत संस्कारों में विशेष अन्तर नहीं आया और प्राचीन मान्य आदर्शो से राजपूत नारी सदा संस्कारित होती रही है।
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राजपूतों की गौरव गाथा | Rajputon ki Gaurav Gatha
ये ठाकुर रघुबीरसिंहजी के बड़े पुत्र है। इनकी शिक्षा सेन्ट जेवियर स्कूल जयपुर तथा सादूल पब्लिक स्कूल बीकानेर में हुई है। ये डूँगर कॉलेज बीकानेर छात्र संघ के महासचिव रहे और ग्वालियर राजमाता सिंधिया से छात्रसंघ का उदघाटन करवाया। कॉलेज में महाराजा डूंगरसिंह की प्रतिमा लगाकर केन्द्रीय पर्यटन मंत्री महाराजा डॉ. करणसिंह कश्मीर से उसका अनावरण करवाया। इन्होंने बीकानेर में वीर दुर्गादास राठौड़ का स्मारक बनाया, जिसका प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर ने 05.04.1991 ई. को अनावरण किया। 1975ई. में ये राजस्थान सरकार के एक उपक्रम में अधिकारी लगे और इसी साल इन्होंने भगवान बुद्ध का गुरुदेव गोयनका जी द्वारा उपदेशित धर्म ग्रहण किया और 1986 में विपश्यनाध्यान के आचार्य बने। इन्होंने गोयनका जी और संघ के साथ भगवान बुद्ध के सभी तीर्थ किए एवं 2004ई. में बर्मा म्यान्मार देश की पूज्य गुरुदेव गोयनका जी के संघ के साथ 13 दिन की धर्म यात्रा की वहाँ World Buddhist Summit में भाग लिया इन्होंने निम्न पुस्तकें लिखी :-
1. बीदावत राठौड़ों का इतिहास 1987ई.
2. राजपूतों की गौरवगाथा
3. Dhamma Ashok
4. बीदावत राठौड़ का बृहत-इतिहासSKU: n/a