Rajasthani History
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Prithviraj Raso Set Of 4
पृथ्वीराज रासो
महाकवि चन्द बरदाई कृत
रासो साहित्य में महाकवि चन्द बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना है। उसके लिये यह कहना उचित ही होगा कि उसका स्वरूप समय-समय पर परिवर्द्धित होता रहा है, जिससे भाषा के आधार पर उसके रचनाकाल का निर्णय करने में अनेक उलझने उत्पन्न होती है। इतना होते हुए भी काव्य की दृष्टि से वह बहुत ही प्रौढ़ रचना है। ऐसे महत्त्वपूर्ण महाकाव्य का अनुवाद और संपादन का कार्य कविराव मोहनसिंह जैसे विद्वत व्यक्तित्व वाला व्यक्ति ही कर सकता था। कविराव मोहनसिंह ने न केवल ग्रंथ का संपादन किया बल्कि शब्दार्थ तथा हिन्दी अनुवाद कर ग्रंथ को आम पाठकों तक चार खण्डों में सुलभ कराया। Prithviraj Chauhan, Rajput (Prithviraj Raso Chand Bardai)
इस पुस्तक को पढ़ने में चौहान जाति को अपने पूर्वजों के कृत्यों पर गौरव का अनुभव होगा, अन्य लोगों को भी चौहान जाति को जानने का मौका मिलेगा।
in fact उल्लेखनीय है कि आज भी गजनी शहर में बादशाह गौरी की कब्र के साथ सम्राट पृथ्वीराज तथा कवि चंद बरदाई की समाधियाँ मौजूद है, जो उस ऐतिहासिक घटना की मूक गवाह हैं।
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Prithviraj Vijay Mahakavyam
महाकवि श्रीजयानक रचित : पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम् (हिन्दी) : संस्कृत भाषा में विरचित जीवनीपरक ऐतिहासिक महाकाव्यों की श्रृंखला में काश्मीर निवासी महाकवि श्री जयानक द्वारा प्रणीत पृथ्वीराजविजय महाकाव्यम् शीर्षक ग्रन्थ अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। भूर्जपत्र पर लिखित इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि की पहली खोज डॉ. जी. बूह्लर द्वारा सन् 1876 में की गई थी, जब वे संस्कृत की प्राचीन पाण्डुलिपियों का पता लगाने के लिए काश्मीर गये थे। उन्होंने तत्सम्बद्ध सम्पूर्ण सामग्री ‘डेक्कन कॉलेज, पुना’ को सुपुर्द कर दी, जिनका विवरण उस कॉलेज की सन् 1875-76 की 150वीं संख्या पर उल्लिखित है। डॉ. बूह्लर ने अपनी शोधयात्रा का विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करते समय इस बात पर हार्दिक दुःख प्रकट किया है कि संस्कृत के अमर ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों की वर्तमान दुर्दशा निस्संदेह हमारे लिए दुर्भाग्य की सूचक है।
डॉ. बूह्लर की समग्र रिपोर्ट का गम्भीर अध्ययन करने के पश्चात् स्वर्गीय पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने और पूर्वतः म.म.पं. गौरीशंकर ओझा ने तदनंतर ‘पृथ्वीराजविजय महाकाव्य’ का सुसम्पादित संस्करण वि. संवत् 1995 में वैदिक यंत्रालय, अजमेर से प्रकाशित कराया, जिसमें जोनराज विरचित ‘विवरणोपेत टीका’ भी जोड़ दी गई थी। इस प्रकार यह ग्रंथ साहित्यप्रेमीयों और इतिहासविदों के समक्ष प्रथम बार आ सका, जो इस समय पर लुप्तप्राय सा हो चुका है। उसे पुनः प्रकाशित करने के उद्देश्य से ही हमने पुनर्मुद्रण का यह उपक्रम किया है।
‘पृथ्वीराज विजय महाकाव्य’ प्रथमवार हिन्दी भावानुवाद के साथ प्रकाशित किया जा रहा है। इस महाग्रन्थ का प्रामाणिक अनुवाद किया है, संस्कृत के ख्यातिप्राप्त अनुवादक एवं अधिकारी विद्वान प्रो. पं. मदनमोहन शर्मा (शाण्डिल्य) ने, जिससे यह ग्रन्थ अध्येताओं के लिए और अधिक उपयोगी हो गया है। डॉ. ओझा ने पुस्तक के ‘आमुख’ में ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित किये हैं, जिनसे इस महाकाव्य की महत्ता और उपयोगिता प्रकट होती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthan ka Itihas
राजस्थान का इतिहास : राजस्थान की प्राकृतिक स्थिति में विविधता होते हुए भी एकसूत्रता दिखायी देती है। पर्वत-श्रेणी का सिलसिला, नदियों का बहाव तथा मरुस्थल का फैलाव इसके एक कोने से दूसरे कोने तक प्रसारित होने से समूचे प्रदेश को एकसूत्र में बाँधता है। प्राचीनकाल के राष्ट्रीय संगठन के तत्त्व तथा मध्यकालीन युग का स्वातन्त्र्य-प्रेम राजस्थान के जनजीवन के मुख्य अंग इसीलिए बन पाये कि यहाँ भाषा, धर्म, आचार-विचार के बन्धन दृढ़ रहे और जनजीवन को संकीर्ण दृष्टि से ऊपर उठाने में सफल हुए। सबसे बड़ी विशेषता भौगोलिक और राजनीतिक सम्बन्ध में यह है कि भौगोलिक स्थिति राजनीतिक सीमाओं के निर्माण में बड़ी सहायक रही है।
पृथ्वीराज चौहान में एक वीर, साहसी और विलक्षण शासक के गुण थे। अपने राज्यकाल के आरम्भ से लेकर अन्त तक वह युद्ध लड़ता रहा जो उसके एक अच्छे सैनिक और सेनाध्यक्ष होने को प्रमाणित करता है। सिवाय तराइन के दूसरे युद्ध के वह सभी युद्धों में विजयश्री का भागी बना जो कम गौरव की बात नहीं है। तराइन के दूसरे युद्ध में वह पराजित हुआ परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि युद्धस्थल में वह बड़े लम्बे समय तक लड़ता रहा। बन्दी बन जाने पर भी उसने आत्म-सम्मान को ध्यान में रखते हुए आश्रित शासक बनने की अपेक्षा मृत्यु को प्राथमिकता दी।
आज भी महाराणा प्रताप के वीर कार्यों की कथाएँ और गीत प्रत्येक राजपूत के हृदय में उत्तेजना पैदा करते हैं। महाराणा का नाम न केवल राजपूताने में अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यन्त आदर और श्रद्धा से लिया जाता है। जब तक महाराणा का उज्ज्वल और अमर नाम लोगों को सुनाई पड़ता रहेगा तब तक वह स्वतन्त्रता और देशाभिमान का पाठ पढ़ाता रहेगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Lok Geet
राजस्थान के लोक गीत : राजस्थान के लोक गीत अपने सौन्दर्य में निराले हैं परन्तु आधुनिक तथाकथित सभ्यता और शिक्षा के प्रवाह में पड़कर दिनोंदिन विस्मृति के गर्भ में विलीन होते जा रहे हैं। उनके उद्धार और रक्षण के लिये यदि हम लोग अभी से प्रयत्नशील न हुए, तो अपनी इस अमूल्य निधि से हम शीघ्र ही हाथ धो बैठेंगे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर राजस्थानी लोक गीतों का संग्रह किया गया है। लगभग 1000 सुन्दर–सुन्दर गीतों में 230 गीत इस संकलन में रखे गये हैं। अभी तक राजस्थानी गीतों का कोई ऐसा संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ, जिसमें चुने हुए गीत पर्याप्त संख्या में हो और जो आधुनिक ढंग से टीका–टिप्पणियाँ तथा भावार्थ आदि सहित संपादित हो। आशा है यह संकलन इस कमी को बहुत कुछ पूरी कर सकेगा।
संकलन को तैयार करते समय इस बात पर ध्यान नहीं रखा गया है कि केवल सर्वश्रेष्ठ गीत ही दिये जायँ किन्तु ध्यान यह रखा गया है कि यथासंभव अधिकाधिक विषयों के गीत दिये जायँ। इसी प्रकार इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि केवल लोक गीत न देकर अन्यान्य लोक गीतों के भी कुछ नमूने दिये जायँ। फिर भी संकलन के अधिकांश गीत लोक गीत ही हैं।
इस कार्य ने राजस्थानी महिला-समाज का महान् उपकार किया है। नारी-हृदय के भाव इन गीतों में अपने वास्तविक रूप में व्यक्त हुए है और गार्हस्थ जीवन एवं उसके सुख–दुःख, प्रेम-कलह, आमोद-प्रमोद, आचार-विचार के अनेकों मनोरम चित्र इनमें उतारे गये हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Prachin Abhilekh
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajasthan ke Prachin Abhilekh
राजस्थान के प्राचीन अभिलेख डा श्रीकृृष्ण जुगनु मेवाड़ प्रदेश अपने अंक में प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बीज को अक्षुण्ण रखे हुए हैं । यहां आदिम समुदायों सहित लोकजन और अभिजात्य तीनों ही स्तर के समाजों के दर्शन होते हैं । पारियात्र अथवा अरावली की पहाडि़यों ने इसे कुदरतन रक्षित और पोषित किया है तो आगंूचा, दरीबा और जावर जैसी खदानों ने इसे आर्थिक रूप से समृद्धि प्रदान की है । इस दृष्टि से यह देश में प्राचीनतम समृऋि प्रदाता क्षेत्र रहा है । इस पर्वतमाला से निकली नदियांे ने यहां कृषि कार्य को सबल किया । यहां गणों से लेकर अनेक राजवंशों ने अपने शासक का सूत्र संचालित किया । अश्वमेध, एकषष्टिरात्र जैसे वैदिक सत्र-यज्ञ यहां हुए और शासकों ने जलाशयों के निर्माण के साथ जल-संसाधन के सुदीर्घ संरक्षण की परम्परा का प्रवर्तन किया ।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthan Ki Aitihasik Prashastiyan Aur Tamrapatra
राजस्थान की ऐतिहासिक प्रशस्तियाँ और ताम्रपत्र : इतिहास सृजन में पुरातात्त्विक महत्व की सामग्री में अभिलेखों का विशिष्ट महत्व है। पुरा अभिलेख से सामान्य आशय है कि किसी पुरानी वस्तु पर उत्कीर्ण लेख। ये पाषाण से लेकर किसी भी पात्र या धातुपत्र पर उत्कीर्ण होते है। स्थायित्व इनका गुण है, जैसा कि अशोक के दूसरे अभिलेख में कहा गया है- चिलथितिका च होतलीत्। प्रामाणिक ऐतिहासिक स्त्रोत के रूप में प्रशस्तियों और शिलालेखों, पट्ठों-परवानों, राजाज्ञाओं का महत्व प्राचीनकाल से ही सर्वविदित रहा है। ये वे स्रोत हैं जो किसी काल, देश-प्रदेश के निर्धारण से लेकर भाषा और उसकी लिपि तथा क्षेत्र विशेष में प्रचलित शब्दों और परम्पराओं, रीतियों-नीतियों पर भी प्रकाश डालते हैं। इन स्रोतों को लिखित साक्ष्य के रूप में स्वीकारा गया है। ये स्रोत बहुधा प्रामाणिक सिद्ध होते हैं और किंवदन्तियों की अपेक्षा खरे उतरते हैं। राजस्थान के इतिहास लेखन में इनका योगदान सर्वविदित है किन्तु यह भी सच है कि अधिकांश संस्कृत और अन्य भाषायी प्रशस्तियों का अनुवाद नहीं हुआ और तामपत्रों का सारांशा सामने नहीं आया। आज भी अधिकांश शोधार्थियों की निर्भरता मूलस्रोत की अपेक्षा द्वितीय स्तरीय स्रोत पर ही रहीं है। पूर्व में इतिहासकारों ने जिस किसी साक्ष्य को प्रस्तुत किया, उसे ही साक्ष्य या सन्दर्भ मानकर उद्धृत कर दिया जाता है । कई बार शोधार्थी सन्दभों के प्रयोजन से साक्ष्यों के लिए भटकते रहतें हैं। प्रस्तुत पुस्तक उक्त अभाव की पूर्ति की दिशा में एक सशक्त पहल है। इसमें मेवाड़ की पूर्वमध्यकालीन, मध्यकालीन प्रशस्तियों के प्रामाणिक मूल पाठ के साथ ही उनका अनुवाद दिया गया है। इसी में नवज्ञात अनेक अभिलेखों और ताम्रपत्रों के मूलपाठ तथा उनके सारांश को सम्मिलित किया गया है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajputane Ka Prachin Itihas
राजपूताने का प्राचीन इतिहास : सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का ‘राजपूताने का इतिहास’ राजस्थान के इतिहास की दृष्टि से एक अनुपम ग्रन्थ है। इसमें ओझाजी ने राजपूताना नाम, उसका भूगोल, राजपूत शब्द की व्याख्या तो की ही है, प्राचीन भारतीय राजवशों से राजपूताना के सम्बन्धों का विवेचन कर ग्रन्थ के महत्त्व को द्विगुणित कर दिया हैं। मराठों, अंगे्रजों आदि से सम्बन्धों का विस्तृत विवेचन भी प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्यमान हैं। ग्रन्थ का परिशिष्ट इसलिए अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है कि इसमें क्षत्रियों के नामों के साथ लगे हुए ‘सिंह’ शब्द का युगयुगीन विवेचन प्रस्तुत किया गया है। पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का अत्यन्त प्रसिद्ध आलेख ‘क्षत्रियों के गौत्र’ भी परिशिष्ट में समाहित हैं। वर्तमान राजस्थान के प्राचीन राजवंशों के इतिहास के साथ ही प्रस्तुत ग्रन्थ में ओझाजी ने प्राचीन भारतीय राजवंशों-मौर्य, गुप्त,हर्ष आदि तथा मध्यकालीन सुल्तानों व मराठों व अंगे्रजों से राजस्थान के सम्बन्धों का विवेचन कर भावी शोधकर्ताओं का मार्ग प्रशस्त कर दिया है; अपने विवरण में ओझाजी ने नाग, यौधेय, तंवर, दहिया, डोडिया, गोड़ आदि राजवंशों का विवरण प्रस्तुत कर ग्रन्थ के महत्त्व में श्रीवृद्धि कर दी। प्रस्तुत ग्रन्थ राजस्थान के इतिहास का एक अद्वितीय ग्रन्थ है जो गहन गंभीर अध्येताओं तथा इतिहास के सामान्य जिज्ञासुओं के लिए समान रूप से सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Report Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिReport Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
रिपोर्ट मरदुम शुमारी राज मारवाड़ 1891 ई. (Marwar Census Report 1891) :
रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह, अधीक्षक जनगणना राज मारवाड़ और उनके इतिहासकार के रूप में विख्यात सहयोगी मुंशी देवीप्रसाद के निर्देशन में संकलित ‘रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891’ मारवाड़ में निवास करने वाली 462 जातियों का ज्ञान कोश है। मारवाड़ की यही जातियाँ समूचे राजस्थान के गाँव-गाँव में निवास करती है। अतः इसे राजस्थान की जातियों का ज्ञान कोश कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 में उपलब्ध सामग्री का आधार विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा भेजे गये आंकड़े, जाति पंचों से साक्षात्कार, प्रचलित परम्पराएं तथा भाटों की बहियां रही। समग्र रूप से प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री को अद्वितीय कहा जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक जाति की उत्पत्ति, उस जाति के व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक सभी रीति रिवाजों और संस्कारों के साथ ही व्यवसाय आदि के गहराई से किये गये वर्णन के कारण यह ग्रन्थ इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, संस्कृति प्रेमियों और अर्थशास्त्रियों के लिये समान रूप से उपयोगी बना रहेगा। हिन्दी भाषा के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी की 19वीं शताब्दी की अवस्था के दर्शन होते हैं। रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 पश्चिमी राजस्थान की जातियों के इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों, व्यवसायों तथा मरुस्थलीय जन जीवन के विविध आयामों का प्रमाणिक सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय इतिहास है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Saanjh ke Deep
साँझ के दीप : वृद्धावस्था मानव जीवन का अंतिम सत्य है, जीवन का यह पड़ाव अनेक सीखों-अनुभवों-उपदेशों से युक्त एक चलती-फिरती पाठशाला है। वह परिवार सचमुच भाग्यशाली हैं, जिन पर वृद्धों की छत्र-छाया है, लेकिन वर्तमान में क्या यही सत्य है।
कड़वी सच्चाई तो यही है कि परिवार-समाज की यह महत्वपूर्ण इकाई आज हाशिए पर रहने को मजबूर हो चुकी है। यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसे अनेकों दृष्टांत देखने को मिल ही जाते हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर देने वाले होते हैं।
प्रस्तुत कहानी संग्रह में सम्मिलित प्रत्येक कहानी एक नया संदेश देती हुई नजर आती है। जीवन की कड़वी सच्चाई को उजागर करती यह कहानियाँ कई बार उन बच्चों को प्रायश्चित करवाती नजर आती हैं, जिन्होंने वृद्ध माँ-बाप को जीवन के अंतिम मोड़ पर घर से बेघर कर दिया हो, तो कहीं पर अपने स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए दृढ़ वृद्धजन, कहीं पर अंतिम साँस ले रहे माँ-बाप की जुबाँ पर औलाद का नाम, कहीं पर जैसी करनी वैसी भरनी की कहावत को चरितार्थ किया गया है। कहीं समाज की दृष्टि में कम पढ़े-लिखे माँ-बाप, किन्तु उनकी सीख आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों से उत्तम दर्ज की दिखलाई पड़ती है, तो कहीं वृद्ध हो चुके पति-पत्नी के बीच के मनोविज्ञान को दर्शाया गया है।
कुछ कहानियों को पढ़ कर लगता है कि परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत भले ही हो जाएं, लेकिन अंतिम क्षण तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। ‘अप्प दीपो भवः’ के सिद्धान्त पर चल कर वह स्वयं के जीवन में तो प्रकाश भर ही रहे हैं, अपितु अन्य के जीवन को भी आलोढ़ित कर रहे हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sampurn Chanakya Neeti
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सम्पूर्ण चाणक्य नीति : चाणक्य – भारतीय इतिहास के एक युग पुरुष ! असंभव को संभव कर दिखाने वाले ऐसे शास्त्रविहीन योद्धा, जिन्होनें अपनी नीतियों के बल पर ही भारत के इतिहास को एक सुनहरा मोड़ दिया। समाज, राजनीति, धर्म और कर्म का खुला विवेचन किया है, चाणक्य ने इन नीतियों में, ये नीतियां जीवन की अंधेरी राहों में सूर्य किरणों सा मार्गदर्शन करती हैं। जीवन की अति गूढ़तम गुत्थिओं को सुलझाने वाली सुस्पष्ट नीतियों की अभूतयपूर्व प्रस्तुति।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Shri Karni Mata Ka Itihas
श्री करणी माता का इतिहास
प्रस्तुत पुस्तक में करणी माता से जुड़ी राजनीतिक एवं धार्मिक घटनाओं से अधिक उनकी मानवतावादी दृष्टिकोण, गौ रक्षा संस्कृति, मातृभूमि प्रेम, सर्वधर्म समभाव, नारी उत्थान एवं पर्यावरण संरक्षण आदि के क्षेत्र में उनका अतुलनीय योगदान, करणी माता से जुड़ी सभी घटनाओं के साथ-साथ इतिहास के पन्नों में छिपी उनकी शिक्षाओं एवं संदेशों आदि को नए रूप में प्रस्तुत किया। जिसके कारण करणी माता लोक देवी के रूप में प्रतिस्थापित हुई। Shri Karni Mata Itihas
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English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
third-gender-concubines-and-slaves
Third Gender, Concubines and Slaves
A Study In Historical Prospectives Through The Ages
Present book is a collection of seminar proceedings, organised by Department of History, Mahila P.G. Mahavidyala. There are very few works pertaining to Third Gender, Concubines and Slaves. The contributors have analysed and examined the position and contribution of these marginalised classes of society in India, whose presence is there, but stands negated. It is the need of the hour that these marginalised subalterns should be discussed, their position researched and their contribution recognised in the pages of history. Third Gender Concubines Slaves
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English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Thirty Decisive Battles of Jaipur
There are hundreds of ruling princes, thousands of Sardars, lacs of big and small Landlords and Zamindars and crores of Rajpoots in this community whose ancestors from times immemorial carved out the power and principalities in the country and niche in the hearts of the enemy. The Rajpoot is a best relative, a first-class ruler, a most faithful servant and above all a chivalrous enemy. The book, Thirty Decisive Battle of Jaipur is a classic example of Rajput’s Bravery and Sacrifice to save their honor and homes. Author has not only covered the battles but have highlighted History of Jaipur. A must read for every historian, and must read for every person who loves his country.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Udaipur Rajya ka Itihas (Set of Vol.2)
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिUdaipur Rajya ka Itihas (Set of Vol.2)
उदयपुर राज्य का इतिहास (भाग 1, 2) : प्राचीनता के साथ अनेक अन्य कारणों से मेवाड़ का इतिहास अद्वितीय है। जिस प्रशंसनीय वीरता, अनुकरणीय आतमोसर्ग, पवित्र त्याग और आदर्श स्वतंत्रता प्रेम का दर्शन मेवाड़ के इतिहास में होता है वैसा अन्यत्र नहीं। मेवाड़ का इतिहास स्वतंत्रता का इतिहास है। नाना प्रकार के कष्ष्ट और अनेक विपत्तियाँ सहन करते हुए भी मेवाड़ के महाराणाओं ने सांसारिक सुख, सम्पति और ऐश्वर्य का त्याग कर अपनी स्वतंत्रता और कुल-गौरव की रक्षा की । यही कारण है कि आज भी मेवाड़ के महाराणा हिन्दुआ सूरज कहलाते है। मेवाड़ के इतिहास-लेखन की दृष्ष्टि से कर्नल जेम्स टाॅड के ‘एनल्स एण्ड एण्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान’ तथा कविराजा श्यामदास जी दधवाड़िया के वीर विनोद के पश्चात् पं. गौरीशंकर हीराचंद जी ओझा कृत उदयपुर राज्य का इतिहास सर्वाधिक उल्लेखनीय प्रयतन है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Veer Satsai
वीर सतसई (सूर्यमल्ल मिश्रण कृत) : सूर्यमल्ल मिश्रण जी के वीर सतसई ग्रन्थ को राजस्थान में स्वाधीनता के लिए वीरता की उद्घोषणा करने वाला अपूर्व ग्रन्थ माना जाता है। इस ग्रन्थ के पहले ही दोहे में वे ”समे पल्टी सीस“ का घोष करते हुए अंग्रेजी दासता के विरुद्ध विद्रोह के लिए उन्मुख होते हुए प्रतीत होते हैं। यह सम्पूर्ण कृति वीरता का पोषण करने तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए मरने मिटने की प्रेरणा का संचार करती है। यह राजपूती शौर्य के चित्रण तथा काव्य शास्त्र की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है।
राजस्थानी साहित्य में जो विविध काव्य-रूप विकसित हुए उनमें संख्यापरक काव्य-रूपों का विशेष स्थान है। संख्यापरक रचनाओं में हजारा, सतसई, शतक, अष्टोत्तरी, बहोत्तरी, बावनी, छत्तीसी, बत्तीसी, पच्चीसी, चैबीसी, बीसी, अष्टक आदि नाम की सहस्त्राधिक कृतियाँ उपलब्ध होती हैं। सामान्यतः ये रचनाएँ मुक्तक होती है।
इन विविध संज्ञापरक रचनाओं में ‘सतसई’ का विशिष्ट स्थान है। ‘सतसई’ संज्ञक रचनाओं में सामान्यतः सात सौ अथवा इसके लगभग की संख्या में रचित दोहों का संग्रह कर दिया जाता है। वीर भावों को आधार बनाकर सर्वाधिक सतसइयाँ राजस्थानी में लिखी गई। वीररसावतार सूर्यमल्ल मिश्रण ने ‘वीर सतसई’ का निर्माण कर सतसई-परम्परा को नया मोड़ दिया। उन्होंने अपनी सतसई में किसी विशिष्ट सामन्त, राजा या ठाकुर को अपना आलम्बन नहीं बनाया। उनका आलम्बन बना सामान्य वीर पुरुष और सामान्य वीर नारी। वीर भावों की ऐसी सार्वजनिक सामान्यीकृत अभिव्यक्ति अन्यत्र दुर्लभ है।
सूर्यमल्ल मिश्रण जी की प्रतिभा और विद्वता का पता तो इस बात से ही चल जाता है कि मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने ‘रामरंजाट’ नामक खंड-काव्य की रचना कर दी थी। सूर्यमल्ल मिश्रण के प्रमुख ग्रन्थ ‘वंश भास्कर’ एवं ‘वीर सतसई’ सहित उनकी समस्त रचनाओं में चारण काव्य-परम्पराओं की स्पष्ट छाप अंकित है।
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Veer Vinod – Mewar Ka Itihas Set Of 4 Vol.
AUTHOR : महामहोपाध्याय कविराज श्यामलदास (MAHAMAHOPADHYAYA KAVIRAJA SHYAMALDAS)
वीर विनोद – मेवाड़ का इतिहास (भाग 1 से 4)
राजस्थान के इतिहास का एक विशालकाय और चिरस्मरणीय ग्रन्थ है। यह सन् 1886 ई. में मुद्रित हुआ था और अब एक दीर्घ अन्तराल के पश्चात् प्रथम बार इसका पुनर्मुद्रण किया जा रहा है। उर्दू-मिश्रित हिन्दी में लिखित एवं एक निराली स्पष्टोक्तिपूर्ण शैली में रचित इस ग्रन्थ ने हिन्दी के शुरू के भारतीय-इतिहास-साहित्य में बहुत उच्च स्थान प्राप्त कर लिया था। चार जिल्दों और 2716 पृष्ठों में मुद्रित यह ऐतिहासिक वृत्तान्त मेवाड़ को राजपूत वैभव, शौर्य एवं पराक्रम के केन्द्र के रूप में प्रदर्शित करता है। इसमें प्रमुख घटनाओं से उत्पन्न हलचलों का, उनकी चुनौतियों का तथा विभिन्न महाराणाओं के नेतृत्व में मेवाड़वासियों ने उनका जिस साहस और वीरता के साथ सामना किया, उसका सजीव वर्णन किया गया है। इसके प्रत्येक पृष्ठ पर अस्त्रों की घनघनाहट एवं राजपूत शौर्य के अभूतपूर्व कारनामे अंकित हैं।
ग्रंथकार ने राजस्थानी इतिहास का वर्णन संपूर्ण विश्व के परिप्रेक्ष्य में किया है। इसमें यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा एशिया महाद्वीपों का सामान्य सर्वेक्षण किया गया है; भारत पर सिकन्दर के आक्रमण एवं मुसलमानों के आगमन को चित्रित किया गया है; भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर घटनेवाली उन घटनाओं का गंभीर विवेचन-विश्लेषण किया गया है, जिन्होंने मेवाड़ के जन-जीवन को प्रभावित किया तथा हिमालय की गोद में बसे हुए नेपाल-राज्य के इतिहास की भी सूक्ष्म छानबीन की गई है। राजस्थान के राजनीतिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली प्रचुर सामग्री बहुमूल्य अभिलेखों, राजकीय दस्तावेजों, अनेक फरमानों तथा आंकड़ों के रूप में इस ग्रंथ में संगृहीत है। भारतीय विद्वानों, अनुसंधानकर्ताओं, छात्रों एवं सामान्य पाठकों के द्वारा लम्बे अरसे से इस कृति के पुनर्मुद्रण की मांग की जा रही थी और स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् तो यह मांग और भी जोर पकड़ गई थी। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रस्तुत प्रयास किया गया है। कविराज श्यामलदास, जिन्होंने यह ग्रंथ लिखा है, मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह (1859-84) के दरबार को सुशोभित करने वाले राजकवि थे। उनके विशाल ज्ञान एवं पाण्डित्य से अभिभूत होकर उन्हें ‘महामहोपाध्याय’ तथा ‘कैसर-ए-हिन्द’ की सम्मानजनक उपाधियों से विभूषित किया गया था। ‘वीर विनोद’ उनकी प्रधान रचना है।SKU: n/a