महाकवि श्रीजयानक रचित : पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम् (हिन्दी)
Author : Gaurishankar Hirachand Ojha, Chandradhar Sharma Guleri, Madan Mohan
Language : Hindi
2nd Edition : 2022
ISBN : 9789391446192
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR
Prithviraj Vijay Mahakavyam
महाकवि श्रीजयानक रचित : पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम् (हिन्दी) : संस्कृत भाषा में विरचित जीवनीपरक ऐतिहासिक महाकाव्यों की श्रृंखला में काश्मीर निवासी महाकवि श्री जयानक द्वारा प्रणीत पृथ्वीराजविजय महाकाव्यम् शीर्षक ग्रन्थ अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। भूर्जपत्र पर लिखित इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि की पहली खोज डॉ. जी. बूह्लर द्वारा सन् 1876 में की गई थी, जब वे संस्कृत की प्राचीन पाण्डुलिपियों का पता लगाने के लिए काश्मीर गये थे। उन्होंने तत्सम्बद्ध सम्पूर्ण सामग्री ‘डेक्कन कॉलेज, पुना’ को सुपुर्द कर दी, जिनका विवरण उस कॉलेज की सन् 1875-76 की 150वीं संख्या पर उल्लिखित है। डॉ. बूह्लर ने अपनी शोधयात्रा का विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करते समय इस बात पर हार्दिक दुःख प्रकट किया है कि संस्कृत के अमर ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों की वर्तमान दुर्दशा निस्संदेह हमारे लिए दुर्भाग्य की सूचक है।
डॉ. बूह्लर की समग्र रिपोर्ट का गम्भीर अध्ययन करने के पश्चात् स्वर्गीय पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने और पूर्वतः म.म.पं. गौरीशंकर ओझा ने तदनंतर ‘पृथ्वीराजविजय महाकाव्य’ का सुसम्पादित संस्करण वि. संवत् 1995 में वैदिक यंत्रालय, अजमेर से प्रकाशित कराया, जिसमें जोनराज विरचित ‘विवरणोपेत टीका’ भी जोड़ दी गई थी। इस प्रकार यह ग्रंथ साहित्यप्रेमीयों और इतिहासविदों के समक्ष प्रथम बार आ सका, जो इस समय पर लुप्तप्राय सा हो चुका है। उसे पुनः प्रकाशित करने के उद्देश्य से ही हमने पुनर्मुद्रण का यह उपक्रम किया है।
‘पृथ्वीराज विजय महाकाव्य’ प्रथमवार हिन्दी भावानुवाद के साथ प्रकाशित किया जा रहा है। इस महाग्रन्थ का प्रामाणिक अनुवाद किया है, संस्कृत के ख्यातिप्राप्त अनुवादक एवं अधिकारी विद्वान प्रो. पं. मदनमोहन शर्मा (शाण्डिल्य) ने, जिससे यह ग्रन्थ अध्येताओं के लिए और अधिक उपयोगी हो गया है। डॉ. ओझा ने पुस्तक के ‘आमुख’ में ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित किये हैं, जिनसे इस महाकाव्य की महत्ता और उपयोगिता प्रकट होती है।
Rs.720.00 Rs.800.00
Weight | 0.510 kg |
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Dimensions | 8.7 × 5.57 × 1.57 in |
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