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Rajasthan Ki Aitihasik Prashastiyan Aur Tamrapatra


राजस्थान की ऐतिहासिक प्रशस्तियाँ और ताम्रपत्र : इतिहास सृजन में पुरातात्त्विक महत्व की सामग्री में अभिलेखों का विशिष्ट महत्व है। पुरा अभिलेख से सामान्य आशय है कि किसी पुरानी वस्तु पर उत्कीर्ण लेख। ये पाषाण से लेकर किसी भी पात्र या धातुपत्र पर उत्कीर्ण होते है। स्थायित्व इनका गुण है, जैसा कि अशोक के दूसरे अभिलेख में कहा गया है- चिलथितिका च होतलीत्। प्रामाणिक ऐतिहासिक स्त्रोत के रूप में प्रशस्तियों और शिलालेखों, पट्ठों-परवानों, राजाज्ञाओं का महत्व प्राचीनकाल से ही सर्वविदित रहा है। ये वे स्रोत हैं जो किसी काल, देश-प्रदेश के निर्धारण से लेकर भाषा और उसकी लिपि तथा क्षेत्र विशेष में प्रचलित शब्दों और परम्पराओं, रीतियों-नीतियों पर भी प्रकाश डालते हैं। इन स्रोतों को लिखित साक्ष्य के रूप में स्वीकारा गया है। ये स्रोत बहुधा प्रामाणिक सिद्ध होते हैं और किंवदन्तियों की अपेक्षा खरे उतरते हैं। राजस्थान के इतिहास लेखन में इनका योगदान सर्वविदित है किन्तु यह भी सच है कि अधिकांश संस्कृत और अन्य भाषायी प्रशस्तियों का अनुवाद नहीं हुआ और तामपत्रों का सारांशा सामने नहीं आया। आज भी अधिकांश शोधार्थियों की निर्भरता मूलस्रोत की अपेक्षा द्वितीय स्तरीय स्रोत पर ही रहीं है। पूर्व में इतिहासकारों ने जिस किसी साक्ष्य को प्रस्तुत किया, उसे ही साक्ष्य या सन्दर्भ मानकर उद्धृत कर दिया जाता है । कई बार शोधार्थी सन्दभों के प्रयोजन से साक्ष्यों के लिए भटकते रहतें हैं। प्रस्तुत पुस्तक उक्त अभाव की पूर्ति की दिशा में एक सशक्त पहल है। इसमें मेवाड़ की पूर्वमध्यकालीन, मध्यकालीन प्रशस्तियों के प्रामाणिक मूल पाठ के साथ ही उनका अनुवाद दिया गया है। इसी में नवज्ञात अनेक अभिलेखों और ताम्रपत्रों के मूलपाठ तथा उनके सारांश को सम्मिलित किया गया है।

Rs.810.00 Rs.900.00

राजस्थान की ऐतिहासिक प्रशस्तियाँ और ताम्रपत्र
Author : Dr. Shri Krishna ‘Jugnu’
Language : Hindi
Edition : 2017
ISBN : 9789385593994
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR

Weight 0.780 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in

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