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English Books, Harper Collins, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Ninety Days (PB)
-10%English Books, Harper Collins, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Ninety Days (PB)
About the Book: Ninety Days: The True Story of the Hunt for Rajiv Gandhis Assassins At 10.20 p.m. on 21 May 1991, a young woman bowed before Rajiv Gandhi at an election rally in Sriperumbudur, 42 km north of Chennai. And then there was an explosion. This book is the definitive account of one of the most controversial crimes in contemporary India. It unravels the complex plot hatched by the LTTE (Liberation Tigers of Tamil Eelam) to ensure that Rajiv Gandhi did not return to power in the 1991 general elections. Ninety Days provides a blow-by-blow account of how the Special Investigation Team of the CBI
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Rajkamal Prakashan
Nirala Rachanavali (Vol. 1-8)
निराला आरम्भ से ही विद्रोही कवि के रूप में हिन्दी में दिखाई पड़े। गतानुगतिकता के प्रति तीव्र विद्रोह उनकी कविताओं में आदि से अन्त तक बना रहा। व्यक्तित्व की जैसी निर्बाध अभिव्यक्ति इनकी रचनाओं में हुई है वैसी अन्य छायावादी कवियों में नहीं हुई।…सर्वत्र व्यक्तित्व की अत्यन्त पुरुष अभिव्यक्ति ही निराला की कविताओं का प्रधान आकर्षण है। फिर भी विरोधाभास यह है कि निराला में अपने व्यक्तित्व को सबसे अलग करके अभिव्यक्त करने की चेतना सबसे कम है।…यह ध्यान देने की बात है कि निराला जी के आरम्भिक प्रयोग छन्छ के बन्धन से मुक्ति पाने का प्रयास है।
छन्द के बन्धनों के प्रति विद्रोह करके उन्होंने उस मध्ययुगीन मनोवृत्ति पर ही पहला आघात किया था जो छन्द और कविता को प्राय: समानार्थक समझने लगी थी।…परन्तु निराली जी ने जब छन्दों के प्रति विद्रोह किया तो उनका उद्देश्य छन्द की अनुपयोगिता बताना नहीं था। वे केवल कविता में भावों की—व्यक्तिगत अनुभूति के भावों की—स्वछन्द अभिव्यक्ति को महत्त्व देना चाहते थे। जिसे वे मुक्तछन्द कहते थे उसमें भी एक प्रकार की झंकार और एक प्रकार का ताल विद्यमान है। परिमल की जिन रचनाओं में वस्तु-व्यंजना की ओर कवि का ध्यान है उनमें उनका व्यक्तित्व स्पष्ट नहीं हुआ किन्तु ‘तुम और मैं’, ‘जूही की कली’—जैसी कविताओं में उनकी कल्पना उनके आवेगों के साथ होड़ करती है।
यही कारण है कि ये कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुई हैं। बड़े कथात्मक प्रयोगों में निराला जी को अधिक सफलता मिली। वे पन्त की तरह अत्यधिक वैयक्तिकतावादी कवि नहीं हैं। बड़े आख्यानों—जैसे काव्य-विषय में उन्हें वस्तु-व्यंजना का भी अवसर मिला है और कल्पना के पंख पसारने का भी मौका मिल जाता है। इसीलिए उनमें निराला अधिक सफल हुए हैं। ‘तुलसीदास’, ‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘सरोज-स्मृति’, जैसी कविताएँ उनकी सर्वोत्तम कृतियाँ हैं। इनमें भाषा का अद्भुत प्रवाह पाटक को निरन्तर व्यस्त बनाए रहता है। कल्पना यहाँ आवेगों के सामने फीकी लगती है। —हजारी प्रसाद द्विवेदी परिमल, गीतिका, अनामिका और तुलसीदास नामक काव्यकृतियों को संजोय हुए रचनावली का यह खंड महाकवि की पूर्ववर्ती काव्य-साधना का सजीव साक्ष्य प्रस्तुत करता है। विचार-समृद्ध भावोद्रेक और सहज उदात्त स्वर निराला-काव्य की विशिष्ट पहचान है और अपनी काव्य-साधना के माध्यम से उन्होंने वस्तुओं एवं घटनाओं के भीतर पैठकर असाधारण रूप से भावात्मक सत्य का सन्धान किया है।
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English Books, MyMirror Publishing House Pvt. Ltd, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Nirantar Safar
-10%English Books, MyMirror Publishing House Pvt. Ltd, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासNirantar Safar
I started my autobiography Apprenticed to a Himalayan Master with the words ‘Let the journey begin’. The last chap¬ter was titled ‘The journey continues’. So, completing the autobiography was not the end of the journey and now we begin another journey together into new vistas. A unique and, in many instances, an unbelievably strange journey. You may dismiss it as fiction or due to my unusually fertile imagination or just plain lies or conclude that I have finally gone bonkers. Be that as it may, if you find the jour¬ney interesting and contributing in some way to opening up your mind to newer ways of perception or even bringing up a thought like ‘yeah, perhaps there are more unknown vistas to which consciousness can expand than the so-called rational brain can think of’, I have done my job. Bear in mind friends, that the truth is sometimes stranger than fiction and some yogis have even called the solid world we swear by an illusion, a construct of the mind. There is no strict chronological order though. Each chapter is complete by itself and can be read independently. So dear reader, Sangacchadvam – Let’s walk together once more. Sri M
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Nirbandh : Mahasamar – 8
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताNirbandh : Mahasamar – 8
नरेन्द्र कोहली
निर्बन्ध, महासमर का आठवाँ खण्ड है। इसकी कथा द्रोण पर्व से आरम्भ होकर शान्ति पर्व तक चलती है। कथा का अधिकांश भाग तो युद्धक्षेत्र में से होकर ही अपनी यात्रा करता है। किन्तु यह युद्ध केवल शस्त्रों का युद्ध नहीं है। यह टकराहट मूल्यों और सिद्धान्तों की भी है और प्रकृति और प्रवृत्तियों की भी। घटनाएँ और परिस्थितियाँ अपना महत्त्व रखती हैं। वे व्यक्ति के जीवन की दिशा और दशा निर्धारित अवश्य करती हैं; किन्तु यदि घटनाओं का रूप कुछ और होता तो क्या मनुष्यों के सम्बन्ध कुछ और हो जाते? उनकी प्रकृति बदल जाती? कर्ण को पहले ही पता लग जाता कि यह कुन्ती का पुत्र है तो क्या वह पाण्डवों का मित्र हो जाता? कृतवर्मा और दुर्योधन तो श्रीकृष्ण के समधी थे, वे उनके मित्र क्यों नहीं हो पाये? बलराम श्रीकृष्ण के भाई होकर भी उनके पक्ष से क्यों नहीं लड़ पाये? अन्तिम समय तक वे दुर्योधन की रक्षा का प्रबन्ध ही नहीं, पाण्डवों की पराजय के लिए प्रयत्न क्यों करते रहे? ऐसे ही अनेक प्रश्नों से जूझता है यह उपन्यास। इस उपन्यास शृख़ला का पहला खण्ड था बन्धन और अन्तिम खण्ड है आनुषंगिक। बन्धन भीष्म से आरम्भ हुआ था और एक प्रकार से निर्बन्ध भीष्म पर ही जाकर समाप्त होता है। किन्तु अलग-अलग प्रसंगों में एकाधिक पात्र नायक का महत्त्व अंगीकार करते दिखाई देते हैं। शान्ति पर्व के अन्त में भीष्म तो बन्धनमुक्त हुए ही हैं, पाण्डवों के बन्धन भी एक प्रकार से टूट गये हैं। उनके सारे बाहरी शत्रु मारे गये हैं। अपने सम्बन्धियों और प्रिय जनों से भी अधिकांश को भी जीवनमुक्त होते उन्होंने देखा है। पाण्डवों के लिए भी माया का बन्धन टूट गया है। वे खुली आँखों से इस जीवन और सृष्टि का वास्तविक रूप देख सकते हैं। अब वे उस मोड़ पर आ खड़े हुए हैं, जहाँ वे स्वर्गारोहण भी कर सकते हैं और संसारारोहण भी। प्रत्येक चिन्तनशील मनुष्य के जीवन में एक वह स्थल आता है; जब उसका बाहरी महाभारत समाप्त हो जाता है और वह उच्चतर प्रश्नों के आमने-सामने आ खड़ा होता है। पाठक को उसी मोड़ तक ले आया है ‘महासमर’ का यह खण्ड ‘निर्बन्ध’।
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Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Nirvasan
तसलीमा नसरीन की ‘निर्वासन’ एक स्त्री का दिल दहला देने वाला ऐसा सच्चा बयान है जिसमें वह खुद को अपने घर बंग्लादेश, फिर कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) और बाद में भारत से ही निर्वासित कर दिए जाने पर, दिल में वापसी की उम्मीद लिए पश्चिमी दुनिया के देशों में एक यायावर की तरह भटकते हुए अपना जीवन बिताने के लिए मजबूर कर दिए जाने की कहानी कहती है। इसमें उन दिनों में लेखिका के दर्द, घुटन और कशमकश के साथ धर्म, राजनीति और साहित्य की दुनिया की आपसी मिली भगत का कच्चा चिट्ठा सामने आता है। कई तथाकथित संभ्रान्त चेहरे बेनकाब होते हैं। बंग्लादेश में जन्मी लेखिका तसलीमा नसरीन, जो मत प्रकाश करने के अधिकार के पक्ष में पूरे विश्व में एक आन्दोलन का नाम हैं और जो अपने लेखन की शुरुआत से ही मानवतावाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे मुद्दे उठाने के कारण धार्मिक कट्टरपंथियों का विरोध झेलती रही हैं, की आत्मकथा के तीसरे खण्ड -‘द्विखण्डतो’ पर केवल इस आशंका से की इससे एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों की धार्मिक भावनाएँ आहत हो सकती हैं, पश्चिम बंगाल की सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया। पूरे एक साल नौ महीने छब्बीस दिन निषिद्ध रहने के बाद, हाईकोर्ट के फैसले पर यह पुस्तक इस प्रतिबन्ध से मुक्त हो सकी। पश्चिम बंगाल और बंग्लादेश में अलग-अलग नामों से प्रकाशित इस पुस्तक के विरोध में उनके समकालीन लेखकों ने कुल इक्कीस करोड़ रुपए का दावा पेश किया। पर यह सब कुछ तसलीमा को सच बोलने और नारी के पक्ष में खड़ा होने के अपने फैसले से डिगा नहीं सका। ‘निर्वासन’ भी इसी की एक बानगी है।
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Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
On Hinduism: Reviews and Reflections
There are two major groups of religions in the world today. First are the conversion-based monotheistic creeds of Christianity and Islam. Second are the pluralistic dharmic traditions of India, of which Hinduism is the oldest and the largest. Chinese Taoism and Japanese Shinto have an affinity with dharmic traditions. So also the indigenous religious traditions of pre-Christian Europeans, pre-Islamic West Asians, Native Americans, Africans, Australians, and Pacific Islanders which are re-awakening, particularly in Europe and the Americas and Africa. As the world has now moved out of colonial domination by monotheistic creeds, a new respect for dharmic traditions is arising everywhere. At the same time, dharmic traditions are beginning to speak against the missionary aggression of Christianity and Islam. But the missionary aggression continues unabated. In fact, aggression has become more determined and mobilized larger resources in money as well as manpower than ever before. It is this scenario that makes the work of Ram Swarup (1920-1998) so significant. He has understood the current world situation, the dangers to Hinduism, the value of Hinduism for the future of humanity, and a practical way to both overcome the dangers and promote opportunities for the good of all. He outlines a Hindu approach to the problems of the world that offers deep and lasting solutions that go beyond the limitations of Western religions or Western science, following the development of consciousness as the real thrust in civilization.
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Yash Publication, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Operation Bastar : Prem aur Jung
हम चारदिवारी के अंदर सुख की जिंदगी जीते हैं, लेकिन सुख देने वाले कोई और नहीं हमारे देश के रक्षक पुलिसकर्मी और सुरक्षाबल के लोग हैं, जो दिन-रात अपनी जान हथेली पर लेकर हमारी सुरक्षा का दायित्व उठाते हैं।इस उपन्यास में बस्तर (नक्सलवादी क्षेत्र) में कार्यरत सैन्य सेवा की दुविधाएं ,परेशानियां, जद्दोजहद और उनकी कर्तव्यनिष्ठा का जीवंत चित्रण है। पढ़ने की लालसा हर पृष्ठ की साथ बढ़ती ही जाती है।बस्तर एक ऐसी जगह है जहां बाहर से बहुत कम लोगों का आना जाना होता है, ऐसे में आप जब इस उपन्यास को पढ़ेंगे, तो वहां से संबंधित बहुत सारी जानकारियों से अवगत होंगे।
कमल जी ने बहुत ही सहज, सरल और रोचक भाषा में कहानी लिखी है। लेखक क्योंकि स्वयं पैरा मिलिट्री में अफसर हैं ,इसलिए अनुभव की प्रामाणिकता का कयास लगाया जा सकता है। बस्तर की माटी की खुशबू, पुलिस का कठिन जीवन, जान हथेली पर लेकर जंगल जंगल कई दिन लगातार पेट्रोलिंग करना आपको रोमांचित कर देगा।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Operation Blue Star Ka Sach (PB)
ऑपरेशन ब्लू स्टार संसार की अत्यंत विवादग्रस्त एवं चर्चा का ज्वलंत विषय बननेवाली सैन्य काररवाइयों में से एक है, जो निश्चित ही समकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ समझी जाएगी।
यह पुस्तक उस सैन्यअधिकारी की ओर से प्रस्तुत किया गया विवरण है, जिसने इस काररवाई का नेतृत्व किया था। इसमें दिल को छूनेवाले, मर्मांतक, छोटे-छोटे अनेक सूक्ष्म विवरण पेश किए गए हैं। इस पुस्तक में कुछ भी छिपाया नहीं गया है, न उन नाकामयाबियों के बारे में, जिनका सेना को मुँह देखना पड़ा; न सेना की कमियों को; न उन अतिवादियों की शिद्दत तथा दृढता, जिन्हें बाहर निकालने का काम सेना को सौंपा गया था।
अनेक काल्पनिक कहानियों, आलोचनाओं तथा अर्ध-सच्चाइयों का जोरदार खंडन करते हुए इसमें हिम्मत से बहुत सारे ऐसे सवालों के जवाब दिए गए हैं, जो सिर्फ सिखों को ही नहीं, सारे भारतीयों को परेशान करते हैं।
लेखक—जो काररवाई को योजनाबद्ध करने तथा इसे व्यावहारिक रूप देने के प्रत्येक पड़ाव पर इसमें शामिल रहा—शायद यही एक ऐसा व्यक्ति है, जो सचमुच यह जानता है कि 5 जून, 1984 की अनहोनी भरी रात को ठीक-ठीक क्या घटा। यही इस पुस्तक में वर्णित है। संपूर्ण सच, सच्चाई के अलावा और कुछ भी नहीं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Operation Khatma (PB)
सन् 1990 के दशक में जम्मू और कश्मीर में ‘आजादी’ और ‘जेहादी’ तत्वों के बीच प्रधानता की लड़ाई चल रही थी, जिसमें आम नागरिक झुलस रहा था। ‘आजादी’ समर्थक जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जे.के.एल.एफ.) को ‘जेहादी’ हिजबुल मुजाहिदीन (एच.एम.) से गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। दोनों आतंकी संगठन पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली थे। जे.के.एल.एफ. और एच.एम. की प्रतिस्पर्धा में सनसनीखेज मोड़ तब आया जब जे.के.एल.एफ. ने 1996 में श्रीनगर स्थित पाक हजरत बल दरगाह पर कब्ज़ा कर लिया। राज्य सरकार आतंकवादियों से लगातार मुँह की खा रही थी, पर इस बार उसने उन्हें आड़े हाथों लेने का फैसला किया। जम्मू और कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने पहली बार आतंकियों को खत्म करने का बीड़ा उठाया। आतंकी पाक दरगाह में थे, इसलिए ऑपरेशन बेहद संवेदनशील था। कैसे हुई यह सर्जिकल स्ट्राइक? कैसे आतंकवाद की कमर तोड़ी गई, जिससे कश्मीर में दस साल बाद संसद् और विधानसभा के चुनाव हो पाए। ‘ऑपरेशन खात्मा’ आतंकवाद पर लिखा ग्राफिक फर्स्ट हैंड थ्रिलर है, जो एक साहसिक कदम से परिचित कराता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Operation Yoddha (PB)
अर्जुन एक होनहार लड़का है, जो सेना में जाने के सपने देखता है। लेकिन आई.आई.टी. प्रवेश परीक्षा में अचानक ही मिली सफलता उसे दुविधा में डाल देती है। हमेशा साथ निभानेवाला उसका परिवार उसे इस उलझन से निकालता है और उसके सपनों को पूरा करने में मदद करता है।
नेशनल डिफेंस एकेडमी में उसकी दोस्ती तीन अन्य प्रशिक्षुओं से होती है और ये दोस्ती जीवन भर के लिए हो जाती है। आखिरकार, उसे भारतीय सेना की सबसे गुप्त और घातक टीम ‘टीम-ए’ का हिस्सा बनने का मौका दिया जाता है।
अर्जुन अपना जीवन देश के प्रति समर्पित कर देता है और कई प्राणघातक अभियानों को पूरा करता है। लेकिन एक खतरनाक आतंकवादी हमला अर्जुन को उन सारी बातों पर सवाल करने के लिए मजबूर कर देता है, जिन्हें उसने सीखा और जिन्हें वह पसंद करता था। अपने देशवासियों के कदमों से उसे घोर निराशा होती है और वह अपना वतन छोड़ने का फैसला करता है।
लेकिन इससे पहले कि वह अपना सामान बाँधता और देश को अलविदा कहता, 200 से अधिक यात्रियों वाले एक विमान को एक अज्ञात गिरोह हाईजैक कर लेता है। सिर्फ वही उन्हें बचा सकता है। पर क्या कड़वाहट से भर चुका अर्जुन अपनी और अपनी टीम के लोगों की जान एक बार फिर जोखिम में डालेगा?
भारतीय सेना के जाँबाज वीरों के पराक्रम, समर्पण और राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत प्रेरणाप्रद पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Over The Top (PB)
Over The Top “ओवर द टॉप” : OTT ka Mayajaal Book in Hindi – Anant Vijay
ओवर द टॉप (ओ.टी.टी.) प्लेटफॉर्म हमारे देश के लिए मनोरंजन का अपेक्षाकृत नया माध्यम है। इस माध्यम को हमारे देश में आरंभ हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। देश में इंटरनेट का बढ़ता घनत्व और डाटा सस्ता होने के कारण इस प्लेटफॉर्म की व्याप्ति बढ़ी है। कोरोना महामारी के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन ने भी इस माध्यम को लोकप्रिय बनाया।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों और ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म के प्रतिनिधियों के बीच ओ.टी.टी. के कंटेंट को लेकर विचारों का आदान-प्रदान होता रहा है। ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई जानेवाली सामग्री के विनियमन को लेकर जो त्रिस्तरीय व्यवस्था बनाई गई थी, उसके परिणाम संतोषजनक नहीं दिखाई दे रहे हैं। न तो अश्लीलता रुक रही है और न ही विवादित प्रसंग।
ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई जानेवाली सामग्री में गालियों की भरमार, यौनिकता और नग्नता का प्रदर्शन, जबरदस्त हिंसा और खून- खराबा, अल्पसंख्यकों की स्तिथि को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ, कई बार सैनिकों की छवि खराब करने जैसे प्रसंग भी सामने आते रहे हैं।
अभिव्यक्त की रचनात्मक स्वतंत्रता और यथार्थ की आड़ में नग्नता एवं गाली-गलौज दिखाने का चलन कम नहीं हुआ। संसदीय समिति ने ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म पर दिखाई जानेवाली अश्लीलता पर चिंता प्रकट की थी। समिति के अधिकांश सदस्यों का मानना था कि इनमें दिखाई जानेवाली सामग्री भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है।
ओ.टी.टी. के सभी पक्षों पर विश्लेषणात्मक विवरण देती विचारप्रधान पुस्तक।
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Vani Prakashan
Pachrang Chola Pahar Sakhi Ri
मीरां की कविता को सदियों तक लोक ने अपने सुख-दुःख और भावनाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम की तरह बरता इसलिए यह धीरे-धीरे ऐसी हो गयी कि सभी को उसमें अपने लिए जगह और गुंजाइश नजर आने लगी और इससे साँचों-खाँचों में काट-बाँट कर अपनी-अपनी मीरांएँ गढ़ने का सिलसिला शुरू हो गया। धार्मिक आख्यानकार केवल उसकी भक्ति पर ठहर गये, जबकि उपनिवेशकालीन इतिहासकारों ने उसके जीवन को अपने हिसाब से प्रेम, रोमांस और रहस्य का आख्यान बना दिया। वामपन्थियों ने केवल उसकी सत्ता से नाराजगी और विद्रोह को देखा, तो स्त्री विमर्शकारों ने अपने को केवल उसके साहस और स्वेच्छाचार तक सीमित कर लिया। इस उठापटक और अपनी-अपनी मीरां गढ़ने की कवायद में मीरां का वह स्त्री अनुभव और संघर्ष अनदेखा रह गया जो उसकी कविता में बहुत मुखर है और जिसके संकेत उससे सम्बन्धित आख्यानों, लोक स्मृतियों और इतिहास में भी मौजूद हैं। ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ में मीरां के छवि निर्माण की प्रक्रियाओं को समझने के साथ विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध उसके स्त्री अनुभव और संघर्ष के संकेतों की पहचान और विस्तार का प्रयास है। मीरां इतिहास, आख्यान, लोक और कविता में से किसी एक में नहीं है-वह इन सभी में है, इसलिए उसकी खोज और पहचान में यहाँ इन सभी ने गवाही दी है। मीरां का स्वर हाशिए का नहीं, उसके अपने जीवन्त और गतिशील समाज का सामान्य स्वर है। यह वह समाज है जो मीरां को होने के लिए जगह तो देता ही है, उसको सदियों तक अपनी स्मृति और सिर-माथे पर भी रखता है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Painter Ki Prem Kahani
‘पेन्टर की प्रेम कहानी’ आर.के. नारायण के चहेते काल्पनिक शहर ‘मालगुडी’ पर आधारित है। यह कहानी पेन्टर रमन की है, जो विभिन्न प्रकार के विज्ञापन साइन बोर्ड पेन्ट कर अपना गुज़ारा करता है और एक दिन उसकी ज़िंदगी में आती है डेज़ी, जो परिवार नियोजन क्लिनिक चलाती है और रमन से परिवार नियोजन को प्रोत्साहन देने वाला साइन बोर्ड बनाने के लिए कहती है। रमन एक तरफ तो डेज़ी के सौन्दर्य के मायाजाल में अपने को फंसता पाता है और दूसरी तरफ उसके काम करने के स्वतंत्र स्वभाव से कुछ हिचकिचाता भी है। डेज़ी और रमन एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं तब भी एक दूसरे की तरफ़ आकर्षित हैं। आर.के. नारायण भारत के पहले ऐसे लेखक थे जिनके अंग्रेज़ी लेखन को विश्व-भर में प्रसिद्धि मिली। अपनी रचनाओं के लिए रोचक कथानक चुनने और फिर उसे शालीन हास्य मंर पिरोने के कारण वे पुस्तक-प्रेमियों के पसंदीदा लेखक बन गए हैं।
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Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
लेखक – डॉ. बी. आर. आंबेड़कर
आजकल भारत में मुख्य मुद्दा सवर्ण-दलित का है। इसमें कुछ बामसेफी, भीमसेना, सांभाजी ब्रिग्रेड़ वाले हिन्दू विरोधी गतिविधियों में भाग लेते है। इनका साथ मुस्लिम और ईसाई मिशनरी देते हैं। आजकल प्रचलित एक नेशनल दस्तक चैनल भी दलित-मुस्लिमों द्वारा सम्यक रुप से प्रसारित किया जाता है। नेशनल दस्तक से अतिरिक्त अन्य मंचों पर भी जैसे कि सोशल नेटवर्किंग साईटों, पत्र एवं पत्रिकाओं में भी दोनों मिलकर आपस में हिन्दु समाज के विरोध में अपने लेखों का सम्पादन करते है। वैदिक संस्कृति को आपस में मिलकर नष्ट करना चाहते हैं। यहां दलितों को सोचना चाहिए कि मुस्लिम उनकें साथ इसलिये नहीं है कि वे दलितों का उत्थान चाहते हैं बल्कि इसलिए है कि सवर्ण दलितों में फूट हो और हम लोग उसका फायदा उठाकर इससे लाभ उठायें।
दलित समाज जिन अम्बेड़कर जी को मानता है, वे स्वयं मुस्लिम कट्टरता और मुस्लिम धर्म ग्रन्थों के बहुत विरोध में थे। डॉ. अम्बेडकर किसी के मुस्लिम हो जाने पर मात्र मतपरिवर्तन नहीं मानते थे बल्कि वे इसे संस्कृति और सभ्यता परिवर्तन भी मानते थे। उनका कथन था कि विदेशी मत को अपनाने से व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता को नष्ट कर देता है और जिस विदेशी मत को उसने ग्रहण किया है उसी देश की राष्ट्रीयता का अनुयायी बन जाता है। यहीं कारण है कि डॉ. अम्बेडकर जी ने मतान्तरण में किसी विदेशी मुस्लिम और ईसाई मत न ग्रहण करके मात्र बौद्धमत अपनाया था।
ड़ॉ. अम्बेड़कर इस्लाम तुष्टिकरण के भी खिलाफ थे, उन्होनें कांग्रेस आदि के मुस्लिम तुष्टिकरण से अनेकों बार असंन्तुष्टि दर्शाई है किन्तु उनके आजकल के अनुयायी स्वयं मुस्लिम तुष्टिकरण के पक्ष में है। ड़ॉ. अम्बेड़कर नें तुष्टिकरण पर कुछ प्रश्न किये थे जो आज भी प्रासंगिक है –
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता ही एकमात्र भारत की राजनीतिक अभियोत्थान हेतु आवश्यक थी?
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता तुष्टीकरण या समझौते के माध्यम से प्राप्त की जा सकती थी।
- यदि एकता तुष्टिकरण से प्राप्त की जाती, वे कौन सी नई सुविधाएं हैं जो मुस्लिमों को दी जानी चाहिए।
- यदि समझौता विकल्प है तो समझौते की शर्त हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का विभाजन है अथवा दो संविधान और सभाओं और सेवाओं में 50% भागेदारी?
- क्या दोनों सम्प्रदायों का एक मान्य संविधान हो सकता है?
- बगैर भौगोलिक एकता के हमेशा सीमा विवाद रहेंगे?
- क्या शान्ति से विभाजन नहीं हो सकता था?
इस प्रकार कई प्रश्न थे जो मुस्लिम तुष्टिकरण के सख्त विरोध में दृष्टिगोचर होते है। इन्हीं सब कथनों को लेते हुए, उन्होनें एक पुस्तक Thoughts on Pakistan लिखी थी, इसी पुस्तक का द्वितीय संस्करण Pakistan or Partition of India नाम से प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में डॉ. अम्बेड़कर के जो इस्लाम पर मन्तव्य थे, वे प्रत्येक हिन्दू और नवबौद्ध को अवश्य पढ़नें चाहिए –
१. हिन्दू काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं-”मुसलमानों के लिए हिन्दू काफ़िर हैं, और एक काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं है। वह निम्न कुल में जन्मा होता है, और उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती। इसलिए जिस देश में क़ाफिरों का शासनहो, वह मुसलमानों के लिए दार-उल-हर्ब है ऐसी सति में यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमान हिन्दू सरकार के शासन को स्वीकार नहीं करेंगे।” (पृ. ३०४)
२. मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वासहै। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।”
३. एक साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय मुसलमान में अन्तर देख पाना मुश्किल-”लीग को बनाने वाले साम्प्रदायिक मुसलमानों और राष्ट्रवादी मुसलमानों के अन्तर को समझना कठिन है। यह अत्यन्त संदिग्ध है कि राष्ट्रवादी मुसलमान किसी वास्तविक जातीय भावना, लक्ष्य तथा नीति से कांग्रेस के साथ रहते हैं, जिसके फलस्वरूप वे मुस्लिम लीग् से पृथक पहचाने जाते हैं। यह कहा जाता है कि वास्तव में अधिकांश कांग्रेसजनों की धारण है कि इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है, और कांग्रेस के अन्दर राष्ट्रवादी मुसलमानों की स्थिति साम्प्रदायिक मुसलमानों की सेना की एक चौकी की तरह है। यह धारणा असत्य प्रतीत नहीं होती। जब कोई व्यक्ति इस बात को याद करता है कि राष्ट्रवादी मुसलमानों के नेता स्वर्गीय डॉ. अंसारी ने साम्प्रदायिक निर्णय का विरोध करने से इंकार किया था, यद्यपिकांग्रेस और राष्ट्रवादी मुसलमानों द्वारा पारित प्रस्ताव का घोर विरोध होने पर भी मुसलमानों को पृथक निर्वाचन उपलब्ध हुआ।” (पृ. ४१४-४१५)
४. भारत में इस्लाम के बीज मुस्लिम आक्रांताओं ने बोए-”मुस्लिम आक्रांता निस्संदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परन्तु वे घृणा का वह गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगा कर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो यह वरदान माना जाता। वे ऐसे नकारात्मक परिणाम मात्र से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने इस्लाम का पौधा लगाते हुए एक सकारात्मक कार्य भी किया। इस पौधे का विकास भी उल्लेखनीय है। यह ग्रीष्म में रोपा गया कोई पौधा नहीं है। यह तो ओक (बांज) वृक्ष की तरह विशाल और सुदृढ़ है। उत्तरी भारत में इसका सर्वाधिक सघन विकास हुआ है। एक के बाद हुए दूसरे हमले ने इसे अन्यत्र कहीं को भी अपेक्षा अपनी ‘गाद’ से अधिक भरा है और उन्होंने निष्ठावान मालियों के तुल्य इसमें पानी देने का कार्य किया है। उत्तरी भारत में इसका विकास इतना सघन है कि हिन्दू और बौद्ध अवशेष झाड़ियों के समान होकर रह गए हैं; यहाँ तक कि सिखों की कुल्हाड़ी भी इस ओक (बांज) वृक्ष को काट कर नहीं गिरा सकी।” (पृ. ४९)
५. मुसलमानों की राजनीतिक दाँव-पेंच में गुंडागर्दी-”तीसरी बात, मुसलमानों द्वारा राजनीति में अपराधियों के तौर-तरीके अपनाया जाना है। दंगे इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि गुंडागिर्दी उनकी राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है।” (पृ. २६७)
६. हत्यारे धार्मिक शहीद-”महत्व की बात यह है कि धर्मांध मुसलमानों द्वारा कितने प्रमुख हिन्दुओं की हत्या की गई। मूल प्रश्न है उन लोगों के दृष्टिकोण का, जिन्होंने यह कत्ल किये। जहाँ कानून लागू किया जा सका, वहाँ हत्यारों को कानून के अनुसार सज़ा मिली; तथापि प्रमुख मुसलमानों ने इन अपराधियों की कभी निंदा नहीं की। इसके वपिरीत उन्हें ‘गाजी’ बताकर उनका स्वागत किया गया और उनके क्षमादान के लिए आन्दोलन शुरू कर दिए गए। इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है लाहौर के बैरिस्टर मि. बरकत अली का, जिसने अब्दुल कयूम की ओर से अपील दायर की। वह तो यहाँ तक कह गया कि कयूम नाथूराम की हत्या का दोषी नहीं है, क्योंकि कुरान के कानून के अनुसार यह न्यायोचित है। मुसलमानों का यह दृष्टिकोण तो समझ में आता है, परन्तु जो बात समझ में नहीं आती, वह है श्री गांधी का दृष्टिकोण।”(पृ. १४७-१४८)
७. हिन्दू और मुसलमान दो विभिन्न प्रजातियां-”आध्याम्कि दृष्टि से हिन्दू और मुसलमान केवल ऐसे दो वर्ग या सम्प्रदाय नहीं हैं जैसे प्रोटेस्टेंट्स और कैथोलिक या शैव और वैष्णव, बल्कि वे तो दो अलग-अलग प्रजातियां हैं।” (पृ. १८५)
८. हिन्दू-मुस्लिम एकता असफल क्यों रही ?-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की विफलता का मुखय कारण इस अहसास का न होना है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच जो भिन्नताएं हैं, वे मात्र भिन्नताएं ही नहीं हैं, और उनके बीच मनमुटाव की भावना सिर्फ भौतिक कारणों से ही नहीं हैं इस विभिन्नता का स्रोत ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दुर्भावना है, और राजनीतिक दुर्भावना तो मात्र प्रतिबिंब है। ये सारी बातें असंतोष का दरिया बना लेती हैं जिसका पोषण उन तमाम बातों से होता है जो बढ़ते-बढ़ते सामान्य धाराओं को आप्लावित करता चला जाता हैं दूसरे स्रोत से पानी की कोई भी धारा, चाहे वह कितनी भी पवित्र क्यों न हो, जब स्वयं उसमें आ मिलती है तो उसका रंग बदलने के बजाय वह स्वयं उस जैसी हो जाती हैं दुर्भावना का यह अवसाद, जो धारा में जमा हो गया हैं, अब बहुत पक्का और गहरा बन गया है। जब तक ये दुर्भावनाएं विद्यमान रहती हैं, तब तक हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता की अपेक्षा करना अस्वाभाविक है।” (पृ. ३३६)
९. हिन्दू-मुस्लिम एकता असम्भव कार्य-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की निरर्थकता को प्रगट करने के लिए मैं इन शब्दों से और कोई शबदावली नहीं रख सकता। अब तक हिन्दू-मुस्लिम एकता कम-से-कम दिखती तो थी, भले ही वह मृग मरीचिका ही क्यों न हो। आज तो न वह दिखती हे, और न ही मन में है। यहाँ तक कि अब तो गाँधी जी ने भी इसकी आशा छोड़ दी है और शायद अब वह समझने लगे हैं कि यह एक असम्भव कार्य है।” (पृ. १७८)
(सभी उद्धरण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय, खंड १५-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, २००० से लिए गए हैं)
इस पुस्तक की आज के समय उपयोगिता देखते हुए, इसे हमारे मंच से भी उपलब्ध करवाया जा रहा है, जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति इसे पढ़े और विशेषकर नवबौद्ध समाज भी और समझे कि दलित-मुस्लिम एकता सब प्रकार से असम्भव है। इस पुस्तक को यदि विभिन्न नेता बिना पक्षपात के पढ़गें तो वे भी मुस्लिम तुष्टिकरण को गलत ही पायेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी भाषा में होने से सामान्य पाठक भी डॉ. अम्बेडकर के मुस्लिम तुष्टिकरण और इस्लाम पर विचारों से परिचित हो सकता है।
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