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Religious & Spiritual Literature, Voice of India, ध्यान, योग व तंत्र, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Meditations: Yogas, Gods, Religions
Religious & Spiritual Literature, Voice of India, ध्यान, योग व तंत्र, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Meditations: Yogas, Gods, Religions
The exploration of consciousness is an ancient and unique specialization of Hindu spirituality which sees consciousness as the very ground and being of the entire universe. Consciousness is the keyword for the Hindu mind and meditation is the main methodology to develop it. There is a new interest in spirituality today, evidenced by the popularity of Yoga and meditation worldwide but it appears as yet to be immature or naive. While one can find meditation camps, techniques and training methods, these seldom turn out people of deep insight. The reason is that true intelligence is always something that cannot be planned, orchestrated or mass-produced. On the other hand, many spiritual people, particularly of a devotional nature, are notably lacking in intellectual sophistication and sometimes miss out on common sense. They can be duped by claims of sainthood or spiritual realization, which are easy to make and difficult to verify. They are prone to uncritically accept anything that calls itself religion or mysticism. Without some positive development of the intellect, spiritual growth appears limited or one-sided, or at least mute. It easily gets lost, deceived, or confused. We need a new order of spiritual thinkers – spiritual intellectuals if you will – who have the sophistication of thought but coming from a place of consciousness within, and who speak directly, not relying on the intellectual establishment. In this context, the works of Ram Swarup are notably refreshing and revitalizing to the spirit. He is a good model of the type of higher thinker that we need in the world today. He demonstrates a remarkable combination of sharp intellectual clarity with deep spiritual insight and sensitivity
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Meena Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांMeena Samaj ki Kuldeviyan
मीणा समाज की कुलदेवियां : मानव आदिकाल से ही शक्ति की उपासना करता आया है। शक्ति का आदि स्वरूप देवी है। यह आद्याशक्ति सनातन शक्ति प्रकृति है, समस्त जगत की उत्पत्ति उसी से हुई, वही विश्व की जननी है। प्रत्येक सम्प्रदाय में देवी की उपासना परम्परा रही है। भारतीय संस्कृति में देवी की महिमा प्रतिष्ठापित है तथा समाज में देवी पूजा की जड़े बहुत गहरी हैं। प्रत्येक कुल की अधिष्टात्री देवी को कुलदेवी के रूप में पूजने की यहाँ परम्परा रही है। इसी कारण हर कुल की अपनी कुलदेवी स्थापित है और वह उस कुल की वंश वृद्धि और समृद्धि की प्रदाता मानी जाती है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रयास करके मीणा समाज की 51 कुलदेवियों के सम्बद्ध में जानकारी व परिचय दिया है, जो उत्कृष्ट अन्वेषण के आधार पर आधारित है। मीणा समाज के लिए और उनके गोत्रों की पृथक-पृथक कुलदेवियों सम्बन्धी यह विवरण उपयोगी और पठनीय हैै। इससे मीणा समाज के लोग अवश्य लाभान्वित होंगे।
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Meera Bai : Pramanik Jivani evam Mool Padawali
मीरा बाई : प्रामाणिक जीवनी एवं मूल पदावली : भक्तिमती मीरांबाई के प्रकाशित पदों में से कितने ही पदों की प्रामाणिकता को लेकर उहापोह बनी हुई थी। श्रीसिंहल ने भाषा और स्रोत की प्रामाणिकता के आधार पर मीरांबाई द्वारा रचित मूल पदों का संकलन और सम्पादन करके प्रथम बार सन् 2008 में ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ के नाम से सटीक छपवाया, जिसमें एक भी पद मौखिक परम्परा का नहीं है; सभी पद लिखित स्रोतों पर आधारित है। प्राचीनतम दो पद विक्रम संवत् 1631 के हैं। गुरुग्रंथ-साहब से विक्रम संवत् 1661 का पद लिया गया है। विक्रम संवत् 1642, 1695, 1701, 1713, 1727 आदि में लिखित ग्रंथों से 128 पद संकलित किए गए है। इस प्रकार, इस संकलन में मीराबाई द्वारा रचित 312 पदों के मूल रूप, संभावित रूप और वर्तमान में प्रचलित पाठ तथा अनेक पदों के उपलब्ध पाठांतर देकर उनकी टीका भी की गई है। टीका में व्याख्या और टिप्पणी भाग अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें अनेक सांशयिक ज्ञानों, वाक्यों, पंक्तियों का सप्रमाण, सविस्तार विवेचन है। ग्रंथ में मीराबाई की जीवनी से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों एवं साहित्यिक संदर्भों का विश्लेषण कर तर्कपूर्ण आंकलन प्रस्तुत किया गया है। जीवनी भाग में कई नए प्रामाणिक व इतिहासपुष्ट तथ्यों का उद्घाटन है। ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ का विद्वत समाज ने दिल खोलकर स्वागत किया। परिमाणतः पुस्तक 3-4 महिने में ही खत्म हो गई। सभी का सुझाव था कि पुस्तक पद्यात्मक न होकर शोधग्रंथ है। अतः इसका नाम शोधग्रंथ परक होना चाहिए। इसीलिए अब यह ग्रंथ ‘मीरांबाई: प्रामाणिक जीवनी एवम् मूल पदावली’ के नाम से प्रकाशित हो रहा है। मुझे विश्वास है कि श्रीसिंहल द्वारा अत्यंत परिश्रमपूर्वक निर्मित प्रस्तुत शोधपरक ग्रंथ साक्षात् भक्तिस्वरूपा मीराबाई की श्रीकृष्णार्पित प्रामाणिक जीवनी और उनके मूल पदों से संबंधित मतांतरों का निराकरण कर सकेगा।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Meera Padawali
सगुण भक्ति-धारा के कृष्ण-भक्तों में मीराबाई का श्रेष्ठ स्थान है। वे श्रीकृष्ण को ईश्वर-तुल्य पूज्य ही नहीं, वरन् अपने पति-तुल्य मानती थीं। कहते हैं कि उन्होंने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण का वरण कर लिया था। माता-पिता ने यद्यपि उनका लौकिक विवाह भी किया, लेकिन उन्होंने पारलौकिक प्रेम को प्रश्रय दिया तथा पति का घर-बार त्यागकर जोगन बन गईं और गली-गली अपने इष्ट, अपने आराध्य, अपने वर श्रीकृष्ण को ढूँढ़ने लगीं। उन्होंने वृंदावन की गली-गली, घर-घर, बाग-बाग और पत्तों-पत्तों में गिरधर गोपाल को ढूँढ़ा, अंततः जब वे नहीं मिले तो द्वारिका चली गईं। मीराबाई ने अनेक लोकप्रिय पदों की रचना की। हालाँकि काव्य-रचना उनका उद्देश्य नहीं था। लेकिन अपने आराध्य के प्रति निकले उनके शब्द ही भजन बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए। उनके पद राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी रेडियो एवं टेलीविजन पर जे सुने जा सकते हैं। प्रेम-भक्ति में मग्न होकर गाए उनके पद-गीत यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनके भक्ति-रस में रचे-बसे पदों को संकलित किया गया है। आशा है, सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से मीराबाई के भक्ति-सागर में गोते लगाएँगे।
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Meera Sudha Sindhu
मीरा सुधा सिन्धु : 16 विभागों में मीरा-पदों का विभाजन कर प्रत्येक विभाग की भूमिका तथा शब्दार्थ-भावार्थ सहित मीरा के पदों का सबसे बड़ा संग्रह, परम मीरा-भक्त स्वामी आनन्द स्वरूपजी ने सन् 1957 में ‘मीराँ-सुधा-सिन्धु’ ग्रन्थ का प्रकाशन ‘श्री मीराँ प्रकाशन समिति’, भीलवाड़ा द्वारा करवाया था। मीरा जैसी अनन्य कृष्णभक्त एवं साधिका की भक्ति में निहित अध्यात्म, दर्शन, भक्तिशास्त्र और दिव्यप्रेम के भावों को परम मीरा भक्त स्वामी आनन्दस्वरूपजी के अतिरिक्त केवल आचार्य रजनीश ही सही ढ़ंग से व्याख्यायित कर पाये हैं। संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण में दो-नये अध्याय जोड़े गये हैं :- (1) स्वामी आनन्द स्वरूपजी का जीवनवृत, तथा (2) ‘मीराँ-सुधा-सिन्धु’ ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय। चूँकि स्वामीजी द्वारा लिखित-सम्पादित मूल ग्रन्थ अब बाजार में उपलब्ध नहीं है, जबकि मीरा के अध्येताओं तथा शोधार्थियों के लिए तो यह ग्रन्थ मीरा को जानने का प्रवेश द्वार है, अतः सुधी पाठकों एवं अध्येताओं के हित में मीरा स्मृति संस्थान, चित्तौड़गढ़ ने राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर के सहयोग से इस ग्रन्थ के पुनः प्रकाशन का निर्णय किया है। हमें विश्वास है कि दो खण्डों में प्रकाशित यह ग्रन्थ अध्येताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
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Vani Prakashan, अन्य कथा साहित्य, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सही आख्यान (True narrative)
Meera Vs Meera
Vani Prakashan, अन्य कथा साहित्य, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सही आख्यान (True narrative)Meera Vs Meera
Meera Vs Meera
Introduction
Meera Vs Meera is a translation of a well-received book Pachrang Chola Paher Sakhi ri in Hindi published by Vani Prakashan, New Delhi in 2015. For centuries, the masses regarded Meera’s poetry as a medium of expression of their feelings and emotions. Meera’s poetry, though interpreted in multiple
ways has dwarfed, weakened and gulfed her persona. The religious discourses and narratives festered with her religious aspect, whereas European historians during the colonial period in India focussed on elements of love, romance and mystery in Meera’s life.
The Marxist critics and neo-feminist activists highlighted Meera’s narratives related to her courage and self-determination, which she exhibited during her times. In this process the human aspects of Meera were completely side-lined which is far more evident from her poetry.
Meera vs Meera is the first book I picked up in the freezing early weeks of this year to keep myself mentally warm and agile. I walked through the twilight struck alleys of history and explored Meera – the famous bhakti poet, folk saint, feminist poet, and empowered feudal woman. The list of adages attributed to her are endless.
Meera Vs Meera is a delightful translation of a critically acclaimed book Pachrang Chola Pahar Sakhi Ri by Prof. Madhav Hada. The book tries to explore and mirror with greater accuracy while adding a more human side to the myriad images of Meera that exist not only in the public memory of the people of Rajasthan specifically and India at large but also the ones that are reflected in historical accounts, folk narratives and even the popular forms of media.
Pradeep Trikha has taken up the daunting challenge of translating the already well-written and thoroughly researched book into English to enable the kaleidoscopic ensemble of Meera reach the English readership, thus enlarging its purview to almost a global level. As rightly said by the literary and cultural theorist George Steiner, “Without translation, we would be living in provinces bordering on silence.”
A reading of the first few pages itself, gives the reader a glimpse of the gravity of translation and the insurmountable obstacles that Prof. Trikha must have faced. The translation flows uninhibited which creates a fine deception of words flowing effortlessly out of the translator’s pen. Yet, to a keen and watchful reader, the hindrances are obvious. To render the vernacular and folk flavour in another language as culturally different as it could be is a road with endless impasses.
The book tries to recreate the ever-elusive human side of the historical character of Meera that has been canonised, romanticised, popularised over the centuries depending upon the type of lens that the creator used. The book puts forth a whole new aspect of Meera – the person through a well-researched and balanced use of historical sources, regional evidence, religious discourses, folk narratives and Meera’s poetry. The translation carefully presents the nuances of the persona of Meera through eloquent descriptions with an intelligent blend of the use of appropriate vernacular vocabulary. Prof. Trikha has been successful in maintaining the cultural ethos of the times by choosing the right regional words presented in italics with their translation in parenthesis that are able to put across the meaning skilfully. The choice of these words also reflects the vital linguistic decisions that he must have taken to preserve the original flavour of the book without letting his personality being reflected in the book. Being a writer, critic, and poet himself, it must have been a tightrope walk not to let his voice take over.
The immense literary and critical value of the translation cannot be denied, given the fact that Meera’s human side had always been overlooked in an attempt to portray her on the antipodes of a scale ranging from being saintly devoted to a lovelorn woman. The translation will add a whole new human facet to the existing prismatic images of Meera, a perspective that had been conspicuously missing in the existing accounts.
Meera is feudal, a rebel, a devotee, a poet and many more. She led human and eventful life. She never felt alienated or free from womanly passions and was creation of the society she lived in. Meera believed ‘Soney Kaat na lagey’. (Gold never rusts…). In Meera Vs Meera an attempt is to conserve the ‘real self’ of Meera, left over by the multiple interpretations over and through the centuries.The Marxist critics and neo-feminist activists highlighted Meera’s narratives related to her courage and self-determination, which she exhibited during her times. In this process the human aspects of Meera were completely side-lined which is far more evident from her poetry. Meera is feudal, a rebel, a devotee, a poet and many more. She led human and eventful life. She never felt alienated or free from womanly passions and was creation of the society she lived in. Meera believed ‘Soney Kaat na lagey’. (Gold never rusts…). In Meera Vs Meera an attempt is to conserve the ‘real self’ of Meera, left over by the multiple interpretations over and through the centuriesSKU: n/a -
Garuda Prakashan, Yoga and Pranayam, ध्यान, योग व तंत्र
Meeting with the Masters
At a young age, Finnish film director, adventurer, and author Taavi ‘Rishi’ Kassila started to look for a spiritual master. He was seeking someone who could introduce him to the deepest mysteries of life. On the journey to find his teacher, he learned the art of meditation from an Indian yogi and met the world-famous spiritual teacher J. Krishnamurti. He hosted a television interview with the guru of the Beatles, Maharishi Mahesh Yogi. He interviewed the Nobel Peace Prize winner His Holiness the Dalai Lama at his administrative palace in the Himalayas, as well as the Meditation Master Jeshe Lama. Kassila sought out many famous spiritual masters, including Sai Baba, and Mother Meera of Germany. He was also able to interview Annamalayi Swami, an enlightened disciple of the famous Ramana Maharshi. He met and interviewed remarkable scientists, such as brain researcher Matti Bergström, a man who was able to pinpoint which part of the brain experiences God, and the professor of atomic physics K. V. Laurikainen, who explained how he found proof of God’s existence by studying the movements of light particles. Kassila met over thirty masters of their fields and finally, he found what he was looking for – his own master – the South Indian saint, Amma, Mata Amritanandamayi. He traveled to South India to make a film about her. Now, in this rare book, Amma’s and her father’s interviews are published for the first time. This amazing and unique story takes the reader on an exciting spiritual journey to the inner landscape of the greatest thinkers and spiritual teachers of our time.
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Vishwavidyalaya Prakashan, अन्य कथा साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Meghadoot : Kalidas
कवि कालिदास की काव्य-कृतियों में मेघदूत काव्य को विशेष महत्त्व प्राप्त है। इसमें करुण-रस का अनुपम सौन्दर्य है। मन्दाक्रान्ता छन्द में लिखे गये इस काव्य को दो खण्डों में विभाजित किया गया है—पूर्वमेघ और उत्तरमेघ। पूर्वमेघ में काव्य-सौन्दर्य के साथ ही भारत का भौगोलिक-सौन्दर्य भी प्रकाशित है। प्रकृति का मनोरम चित्र, कवि की सूक्ष्म दृष्टि, भावुकता और कल्पना का संयोग पूर्वमेघ की विशेषता है। उत्तरमेघ का कथ्य अत्यत मर्मस्र्पशी है।
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Hindi Books, Vani Prakashan, इतिहास
Mein Hindu Kyon Hoon (PB)
राजनेता और प्रखर अध्येता शशि थरूर की मूलतः अंग्रेज़ी में लिखी पुस्तक का यह एक प्रभावी अनुवाद है. इस पुस्तक में शशि हिंदू धर्म की बहलतवादी व्याख्या करते हुए इसके बरक़्स हिंदुत्व की अवधारणा की पड़ताल करते है. हमारे समय में हिंदू धर्म के सिलसिले में होने वाली बहसों में एक विचारोत्तेजक हस्तक्षेप करनी वाले पुस्तक, धर्म और राजनीति के अंतरसंबंध में रूचि रखने वालों के लिए एक अनिवार्य पुस्तक
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English Books, Suggested Books, Vitasta Publishing, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
MENSTRUATION ACROSS CULTURES : THE SABARIMALA CONFUSION – A HISTORICAL PERSPECTIVE
-11%English Books, Suggested Books, Vitasta Publishing, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)MENSTRUATION ACROSS CULTURES : THE SABARIMALA CONFUSION – A HISTORICAL PERSPECTIVE
Menstruation across Cultures attempts to provide a detailed review of menstruation notions prevalent in India and in cultures from across the world. The world cultures covered in the book include Indic traditions like Hinduism, Buddhism, Jainism and Sikhism; ancient civilisations like Greece, Rome, Mesopotamia and Egypt; and Abrahamic religions of Judaism, Christianity, and Islam. Two themes of special focus in the book are: Impurity and Sacrality. While they are often understood as being opposed to each other, the book examines how they are treated as two sides of the same coin, when it comes to menstruation. This is especially true in Indic traditions and pre-Christian polytheistic traditions like Greco-Roman, Mesopotamian and Egyptian. Impurity and Sacrality complement each other to form a comprehensive worldview in these cultures. The book also examines how the understanding of impurity in Abrahamic religions differs from those of polytheistic cultures. As part of the examination of the sacrality attached to menstruation, a special focus has also been given to the deities of menstruation in polytheistic cultures and to what Ayurveda and Yoga say about this essential function in a woman’s physiology. Finally, a comparative study of menstrual notions prevalent in modernity is presented, along with a Do and Don’t dossier.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mer Kshatriya Jati ka Itihas
मेर क्षत्रिय जाति का इतिहास :
मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी जाति धर्म आदि तय हो जाते हैं। उस समय ना तो वह अपनी जाति के बारे में जानता है और ना ही अपने धर्म के बारे में। मनुष्यों के द्वारा ही धर्म और जातियों को बनाया गया।
हिन्दू धर्म में कर्म को प्रधानता दी गई है। यदि आप पुश्तैनी कर्म को छोड़कर अन्य कर्म अपनाते है तो उसी क्षण आपकी जाति बदल जायेगी। यह कर्म ही तो है जो नये-नये समाज का निर्माण करते आये है। वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र आदि का निर्माण कर्म के आधार पर ही तो हुआ है एवं इस कार्य प्रधान हिन्दू धर्म में किसी जाति के निर्माण में किसी दूसरी जाति या व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। यह तो अमूक जाति के महापुरुषों के कर्मों की देन है और आज उन्हीं महापुरुषों के वंशज वर्तमान जाति में निवास करते हैं।
भारत देश में हिन्दू धर्म की प्रधानता है। हिन्दू धर्म में पहले तो कर्म के आधार पर वर्ण और जातियाँ तय होती थी लेकिन अब हिन्दू धर्म का विभाजन दलित और स्वर्ण के रूप में उभर कर सामने आया है। आज़ादी के बाद नये वर्गों सामान्य वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियाँ आदि का निर्माण हिन्दू धर्म के लिए घातक साबित हुआ है।
कोई भी जाति दलित नहीं है, उनके कर्म ही उनको दलित बनाते हैं। कोई भी जाति स्वर्ण नहीं है, उनके कर्म ही उनको पूजनीय बनाते हैं। इस देश में कोई दलित नहीं कोई स्वर्ण नहीं है। राजनीति ने हिन्दू समाज को बिखेर दिया है। जातियों का जब मैनें अध्ययन किया तो चैकाने वाले तथ्य सामने आये।
मीणा जाति मध्यप्रदेश के श्योपुर एवं आस-पास के जिलों में अन्य पिछड़ा वर्ग में है एवं राजस्थान की तरह अनुसूचित जनजाति में नहीं। उनके साथ ऐसा कोई भेद भाव नहीं किया जाता है। इतिहास की नज़र से देखा जाए तो मीणा जाति ने हाड़ाओं से पहले हाड़ौती व कछवाहों से पहले ढुँढाढ़ पर राज्य किया था।
कोली (शाक्य, महावर) जाति राजस्थान राज्य में अनुसूचित जाति में आती है लेकिन गुजरात राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में गुजरात के कोली समाज ने योगदान दिया था। मांधाता कोली का गुजरात में राज्य हुआ करता था। उत्तराखण्ड में कोली राजपूत होते हैं। भगवान बुद्ध स्वयं क्षत्रिय राज्य कोली वंश के राजकुमार थे।
गुर्जर जाति कश्मीर में अनुसूचित जनजाति में शामिल है जबकि राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग में है। इतिहास में गुर्जर जाति को प्रतिहार राजवंश से जोड़कर देखा जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग ब्राह्मण होते हैं, जो सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कोटा के ग्रामीण अंचल में वैष्णव बाबाजी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है। राजपूत सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कई क्षेत्रों के राजपूत जैसे सोंधिया (मालवा), रावत (मेवाड़-मारवाड़) राजपूत अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है।
ऐसी ही कई सैकड़ों जातियाँ हैं, जो एक क्षेत्र में कथित दलित समुदाय का हिस्सा है तो अन्य क्षेत्रें में कथित स्वर्ण समाज के रूप में देखी गई हैं।
अगर इस बात को समझ लिया जाए तो दलित-स्वर्ण के झगड़े हमेशा के लिए समाप्त हो सकते हैं। कर्म से व्यक्ति दलित या स्वर्ण हो सकता है लेकिन जाति से कोई भी दलित या स्वर्ण नहीं हो सकता हैं।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Mera Desh Badal Raha Hai
आज बड़ी संख्या में भारतीय युवा क्षमतावान, समर्पित, दृढ-संकल्पित, आदर्शवादी और कड़ी मेहनत करनेवाले हैं। उनमें अद्भुत शक्ति, सामर्थ्य और क्षमता है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का युवाओं को प्रबुद्ध बनाने के प्रति विशेष आग्रह था। यद्यपि डॉ. कलाम का पूरा ध्यान बच्चों और किशोरों पर ही केंद्रित रहा, लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर वयस्कों के लिए भी खूब काम किया। उन्होंने सभी लोगों को अपनी कमियाँ और कमजोरियाँ पहचानकर उनसे पार पाने का मार्ग दिखाते हुए जीवन में सफल होने के लिए अगले उचित कदम उठाने के लिए आह्वान किया। डॉ. कलाम के प्रेरक विचारों ने समाज में एक नई चेतना, नए उत्साह और नई स्फूर्ति का संचार किया। भारत सशक्त-सबल-समर्थ बने और विश्व में अप्रतिम स्थान बनाए, ऐसी दृष्टि उन्होंने समाज को दी।
डॉ. कलाम के 25 भाषणों के माध्यम से यह पुस्तक जीवन के विविध पहलुओं के लिए अच्छी शिक्षक है, जैसे एक परिपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक आदर्श रिश्ते कैसे बनाएँ, जीवन के विविध पहलुओं में संतुलन कैसे कायम करें और कैसे एक संतुष्ट, सफल और उत्साहपूर्ण जीवन जिएँ, ताकि स्वस्थ समाज, समर्थ राष्ट्र का निर्माण हो सके।SKU: n/a -
Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
MERE BACHPAN KE DIN
जिन्दगी की मोहर के तौर पर तस्लीमा नसरीन की यह किताब वैसी ही है जैसा एक अछूत का स्पर्श, और उससे भी कुछ ज्यादा। शोषण और धिक्कार के सामाजिक यथार्थ की सैरबीन के आरपार यह जाति व्यवस्था की झूठी योग्यता परखती है और छद्म मैरिट तन्त्र को चुनौती देती हुई महान मेधा के साथ दुनिया में दाखिल होती है। यह विनीत और संकोची है, लगभग नश्वर, विस्मय और जादू से भरे हुए एक नन्हे से बच्चे की नाज़ुक आँखें हैं, जो अपने परिवार के लिए रोजी कमाने की कोशिश कर रहा है जबकि इस उम्र में उसे खेलकूद के मैदान में या स्कूल में होना चाहिए था। ‘बेचैन’ यथा नाम तथा गुण, सदा के बेचैन हैं जैसा कि हिन्दी में इस मुहावरे का मतलब होता है, लेकिन उनकी इस अद्भुत ‘आत्म-पहचान’ में एक आत्मविश्वास और निरुद्विग्नता है जो सिर्फ महान साहित्य की बारीकी और संवेदना से अनुभूत और अभिव्यक्त हो सकती है। आप उसमें संघर्ष का एक पूरा इतिहास पायेंगे, रोजमर्रा की जिन्दगी के पारदर्शी प्रसंगों और यथास्थिति में जीने की इच्छा को नकारने की पूरी चेतना पायेंगे–पूर्व निश्चित साँचों को नकारते हुए, अपराध भाव या मानसिक दासता भाव के बिना यथार्थ को देखते और स्वीकारते हुए।
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Hindi Books, Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
MERE BACHPAN KE DIN (PB)
जिन्दगी की मोहर के तौर पर तस्लीमा नसरीन की यह किताब वैसी ही है जैसा एक अछूत का स्पर्श, और उससे भी कुछ ज्यादा। शोषण और धिक्कार के सामाजिक यथार्थ की सैरबीन के आरपार यह जाति व्यवस्था की झूठी योग्यता परखती है और छद्म मैरिट तन्त्र को चुनौती देती हुई महान मेधा के साथ दुनिया में दाखिल होती है। यह विनीत और संकोची है, लगभग नश्वर, विस्मय और जादू से भरे हुए एक नन्हे से बच्चे की नाज़ुक आँखें हैं, जो अपने परिवार के लिए रोजी कमाने की कोशिश कर रहा है जबकि इस उम्र में उसे खेलकूद के मैदान में या स्कूल में होना चाहिए था। ‘बेचैन’ यथा नाम तथा गुण, सदा के बेचैन हैं जैसा कि हिन्दी में इस मुहावरे का मतलब होता है, लेकिन उनकी इस अद्भुत ‘आत्म-पहचान’ में एक आत्मविश्वास और निरुद्विग्नता है जो सिर्फ महान साहित्य की बारीकी और संवेदना से अनुभूत और अभिव्यक्त हो सकती है। आप उसमें संघर्ष का एक पूरा इतिहास पायेंगे, रोजमर्रा की जिन्दगी के पारदर्शी प्रसंगों और यथास्थिति में जीने की इच्छा को नकारने की पूरी चेतना पायेंगे–पूर्व निश्चित साँचों को नकारते हुए, अपराध भाव या मानसिक दासता भाव के बिना यथार्थ को देखते और स्वीकारते हुए।
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Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Mere Sapnon Ka Bharat
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का स्वप्न है कि वर्ष 2020 तक भारत एक विकसित राष्ट्र बने। प्रस्तुत पुस्तक में लेखकद्वय डॉ. कलाम व डॉ. सिवताणु पिल्लै ने इस स्वप्न को साकार करने की प्रक्रिया का बड़ी ही सूक्ष्मता और गहराई से विश्लेषण किया है। विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में छात्र, युवा, किसान, वैज्ञानिक, इंजीनियर, तकनीशियन, चिकित्सक, चिकित्सा कर्मी, शिक्षाविद्, उद्योगपति, सैन्य कर्मी, राजनेता, प्रशासक, अर्थशास्त्रा्, कलाकार और खिलाड़ियों की क्या-क्या भूमिका हो सकती है, इसके बारे में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
हाल के वर्षों में, जीवन-स्तर को बेहतर बनाने में प्रौद्योगिकी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रौद्योगिकी एक ऐसा इंजन है, जिसमें देश को विकास तथा संपन्नता की ओर ले जाने और राष्ट्रों के समूह में उसे आवश्यक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ उपलब्ध कराने की क्षमता है। इस प्रकार, भारत को एक विकसित देश में बदलने में प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
आज भारत के पास प्रक्षेपण यानों, मिसाइलों तथा वायुयानों के सिस्टम डिजाइन, सिस्टम इंजीनियरिंग, सिस्टम इंटीग्रेशन तथा सिस्टम मैनेजमेंट की योग्यता और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास की क्षमता है—इस पुस्तक में इन सभी पहलुओं पर अनुकरणीय प्रकाश डाला गया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Meri Ayodhya, Mera Raghuvansh
“हम दोनों भ्राता जब तक अपनी कुटी तक पहुँचते, तब तक अनर्थ घटित हो चुका था। हमारी कुटी रिक्त थी। भूमि पर धूलिकणों के मध्य अन्न एवं पात्र औंधे पड़े थे।
‘सीते!’ मैंने पुकारा, परंतु प्रत्युत्तर नहीं मिला।
‘सीते!’ मैंने पुन: पुकारा; पुन: प्रत्युत्तर में मुझे मौन ही प्राह्रश्वत हुआ।
तत्पश्चात मैं भयभीत कुटी के प्रांगण में आया, जहाँ विशाल वटवृक्ष अवस्थित था।
‘सीते! वृक्ष की आड़ में छिपकर मेरे साथ क्रीड़ा न करो। यह हास का समय नहीं है!’ फिर भी मुझे कोई उत्तर नहीं मिला।
अब मैं उसके पदचिन्हो को देखते हुए आगे बढऩे लगा। रथ के पहियों का चिह्नï मिलने के पश्चात् कोई अन्य चिह्नï नहीं मिला। मेरे धैर्य का सेतु टूट गया।
‘देवताओ, गंधर्वो! क्या आपने भी नहीं देखा?’ मैंने आकाश की ओर मुख करके भीषण गर्जना की। स्तब्ध पवनदेव ने अपना वेग मद्धिम कर दिया।
उस तनावपूर्व घड़ी में देवताओं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से गुरु बृहस्पति की ओर देखा। उन्होंने मंद-मंद मुसकराते हुए कहा, ‘प्रभु लीला कर रहे हैं।
आह! मेरा हृदय असंख्य शरों से बिंधा हुआ था। मैं लीला नहीं कर रहा था, वरन राम रूपी मानव काया में असहनीय वेदना का अनुभव कर रहा था।
मैंने पुन: लक्ष्मण से कहा, अवश्य देखा होगा, इन वृक्षों ने, इन लताओं ने, इन पक्षियों ने, इन मृगों ने…। यह कहते हुए मैंने कदंब, अर्जुन, ककुभ, तिलक, अशोक, ताल, जामुन, कनेर, कटहल, अनार आदि अनेक वृक्षों से पूछा, क्या तुमने मेरी भार्या सीता को कहीं देखा है? परंतु वे सभी मौन रहे।
—इसी पुस्तक से”SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Meri Jail Diary
“माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगत सिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगत सिंह ने आजादी, इनसाफ, खुददारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा व आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियां लिखीं, यह जेल डायरी उन्हीं का संकलन है। भगत सिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था।
भगत सिंह की फाँसी के बाद यह जेल डायरी भगत सिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह डायरी (भगत सिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगत सिंह के वास्तविक विचार क्या थे।
भगत सिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे। हर भारतीय के लिए पठनीय यह जेल डायरी उनके अपूर्व साहस, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की झलक मात्र है।”
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Meri Jeevan Yatra
रामेश्वरम में पैदा हुए एक बालक से लेकर भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बनने तक का डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन असाधारण संकल्प शक्ति, साहस, लगन और श्रेष्ठता की चाह की प्रेरणाप्रद कहानी है। छोटी कहानियों और पार्श्व चित्रों की इस शृंखला में डॉ. कलाम अपने अतीत के छोटे-बड़े महत्त्वपूर्ण पलों को याद करते हैं और पाठकों को बताते हैं कि उन पलों ने उन्हें किस तरह प्रेरित किया। उनके प्रारंभिक जीवन पर गहरी छाप छोड़ने वाले लोगों और तदनंतर संपर्क में आए व्यक्तियों के बारे में वे उत्साह और प्रेम के साथ बताते हैं। वे अपने पिता और ईश्वर के प्रति उनके गहरे प्रेम, माता और उनकी सहृदयता, दयालुता, उनके विचारों और दृष्टिकोणों को आकार देनेवाले अपने गुरुओं समेत सर्वाधिक निकट रहे लोगों के बारे में भी उन्होंने बड़ी आत्मीयता से बताया है। बंगाल की खाड़ी के पास स्थित छोटे से गाँव में बिताए बचपन के बारे में तथा वैज्ञानिक बनने, फिर देश का राष्ट्रपति बनने तक के सफर में आई बाधाओं, संघर्ष, उनपर विजय पाने आदि अनेक तेजस्वी बातें उन्होंने बताई हैं।
‘मेरी जीवन-यात्रा’ अतीत की यादों से भरी, बेहद निजी अनुभवों की ईमानदार कहानी है, जो जितनी असाधारण है, उतनी ही अधिक प्रेरक, आनंददायक और उत्साह से भर देनेवाली है।आभार
मेरी जीवन-यात्रा घटनाओं से भरे जीवन का विवरण है। मेरे मित्र हैरी शेरिडॉन करीब बाईस वर्षों से मेरे साथ रहे हैं और अनेक घटनाओं के भागीदार बने हैं। उन्होंने मेरे साथ सुख और दुःख, दोनों झेले हैं। शेरिडॉन हर तरह के उतार-चढ़ावों में मेरे साथ रहे हैं और जब कभी मुझे जरूरत पड़ी, उन्होंने मेरी पूरी-पूरी सहायता की। ईश्वर उन्हें और उनके परिवार को सदैव सुखी रखे। मैं सुदेषणाशोम घोष को भी धन्यवाद देना चाहूँगा, जो पुस्तक की परिकल्पना से लेकर उसे आकार देने तक मेरे साथ रहीं। पुस्तक प्रकाशित होने तक वे धैर्य के साथ निरंतर मुझसे जुड़ी रहीं। मैं उनके प्रयासों को नमन करता हूँ।SKU: n/a