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Shivaji-Guru Samarth Ramdas


मुगल शासनकाल में समर्थ गुरु रामदास मुगलों के अत्याचार, अनाचार और अराजकता से आहत थे। जब वे चौबीस वर्ष के थे, तब भारत भ्रमण के लिए निकले; उस समय पूरा उत्तर भारत औरंगजेब के अत्याचारों से त्रस्त था। उन्हें यह एहसास हुआ कि ‘धर्म-संघटन और लोक-संघटन’ होगा तब ही राष्ट्र परतंत्रता से मुकाबला कर सकता है। धर्म-संघटन के लिए ईश्वर संकीर्तन और उसपर श्रद्धा अटूट रखनी होगी; और लोकसंघटन करके लोकशक्ति जाग्रत् करनी होगी।
रामदास स्वामी भारत भ्रमण करके महाराष्ट्र पहुँचे तो उन्हें सुखद समाचार मिला। शहाजी राजा तथा जीजाबाई के सुपुत्र शिवाजी ने महाराष्ट्र में दो-चार किले मुसलिमों से जीतकर स्वराज्य का शुभारंभ किया था।
रामदास स्वामी योद्धा संन्यासी थे। श्री समर्थ रामदास स्वामी प्रभु श्रीराम के परम भक्त थे। उन्होंने राम-राज्य की कल्पना मन में ठान ली थी। शिवाजी महाराज के रूप में वह कल्पना सत्य हो रही थी। लोक जागृति करने का महान् कार्य करते समय उन्होंने राष्ट्रधर्म, हिंदूधर्म और स्वराज्य की भावना लोगों में जाग्रत् की। उन्होंने ग्यारह सौ मठों की स्थापना की। चौदह सौ महंतों को दीक्षा दी। 1632 से 1644 तक वे भारत भ्रमण कर रहे थे। वे हिमालय से कन्याकुमारी तथा लंका तक गए।
समर्थ गुरु रामदास के त्यागमय, प्रेरणाप्रद, तपस्वी जीवन का दिग्दर्शन कराता पठनीय उपन्यास, हमारी सुप्त सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत् करने में समर्थ होगा।

Rs.315.00 Rs.350.00

  •  Shubhangi Bhadbhade
  •  9789384344634
  •  Hindi
  •  Prabhat Prakashan
  •  1
  •  2018
  •  216
  •  Hard Cover
Weight 0.350 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in

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