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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Hindu Rights Forum, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Muhammad Ka Jeevan (PB)
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Hindu Rights Forum, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Muhammad Ka Jeevan (PB)
यह पुस्तक सर विलियम मूर कृत अंग्रेजी पुस्तक The life of Mahomet का हिंदी अनुवाद है। यह पुस्तक पहली बार 1861 में चार खंडों में प्रकाशित हुई थी। यह मोहम्मद के जीवन पर एक प्रमाणिक शोध ग्रंथ है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Muhnot Nainsi Ki Khyat (Set of Vol.2)
मुँहणोत नैणसी की ख्यात (हिन्दी अनुवाद) :
राजस्थान के इतिहास का सर्वाधिक विश्वसनीय स्त्रोत ‘मुँहणोत नैणसी री ख्यात’ है। जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह के देश दीवान नैणसी द्वारा 17वीं शताब्दी में लिखित मूल ख्यात राजस्थानी गद्य में लिखी गई। उस काल की भाषा अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध मारवाड़ी होने के कारण किसी अन्य भाषा के प्रभाव से मुक्त थी, अतः वर्तमान शोधकर्ताओं के लिए दुरूह थी। बाबू रामनारायण दूगड़ जैसे उच्चकोटि के विद्वान ने इसका हिंदी अनुवाद कर भावी शोधार्थियों के लिए इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का उपयोग सुलभ कर दिया है। राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा संपादित किये जाने से इस हिंदी अनुवाद का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया है। ओझाजी ने नैणसी की त्रुटियों को अपने गहन-गंभीर ऐतिहासिक अध्ययन के आधार पर पाद-टिप्पणियों में शुद्ध किया है, जो शोधकर्ताओं के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। नैणसी ने अपनी ख्यात में राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़ कच्छ, बघेलखंड, बुंदेलखंड और मध्य भारत के इतिहास को अपने ग्रंथ के कलेवर में समाहित करने का प्रयास किया है। प्रस्तुत ग्रंथ में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ राज्यों के सिसोदियों (गुहिलोतों), रामपुरा के चंद्रावतों (सिसोदियों की एक शाखा), खेड़ के गुहिलों, जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़ के राठौड़ों, जयपुर के कच्छवाहों, सिरोही के देवड़ा चौहानों, बूंदी के हाड़ों तथा बागड़िया, सोनगरा, सांचोरा, बोड़ा, ताँपलिया, खीची, चीबा, मोहिल आदि चौहानों की भिन्न-भिन्न शाखाओं यादवों और उनकी सरवैया, जाड़ेचा आदि कच्छ और काठियावाड़ की शाखाओं, गुजरात के चावड़ों तथा सोलंकियों, गुजरात और बघेलखंड के बघेलों (सोलंकियों की एक शाखा), काठियावाड़ और राजपूताना के झालों, दहियों, गौड़ों, कायमखानियों आदि का विस्तृत इतिहास लिखा है। ‘नैणसी री ख्यात’ प्राचीनतम ख्यात तो है ही, साथ ही इसका महत्त्व ओझाजी के इस कथन से आंका जा सकता है कि यदि कर्नल जेम्स टॉड को नैणसी की ख्यात उपलब्ध होती तो निश्चय ही उसका ग्रंथ और अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय बन जाता। ‘नैणसी री ख्यात’ के महत्त्व को स्वीकार करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार मुंशी देवी प्रसाद ने उसे राजपूताना का अबुल फजल कहा है, तो कालिकारंजन कानूनगो ने नैणसी को अबुल फजल से अधिक श्रेष्ठ इतिहासकार बताया है। ‘नैणसी री ख्यात’ का यह हिंदी अनुवाद राजस्थान की परंपराओं और इतिहास में रुचि रखने वाले सामान्य जिज्ञासुओं के साथ ही इतिहास के गहन-गंभीर अध्येताओं तथा शोधार्थियों के लिए सहेजकर रखने योग्य सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Mujrim Hazir
बिमल मित्र सुप्रसिद्ध सफल उपन्यासकार हैं और ‘मुजरिम हाजिर’ में उनकी औपन्यासिक कला ने यह चरम उत्कर्ष पाया है कि यह उपन्यास सहज़ ही एक महान महाकाव्य की श्रेणी में आ जाता है। बांग्ला के सर्वाधिकार लोकप्रिय उपन्यासकार बिमल मित्र का यह उपन्यास ‘आसामी हाजिर’ नाम से बंगला में दो वर्ष तक धारावाहिक प्रकाशित होता रहा है। इसके बाद इसका रंगमंच रूपांतर भी कई वर्षों तक लगातार प्रदर्शित होता रहा है। बिमल मित्र ने इसमें चरित्रनायक सदानंद के माध्यम से हमें सामाजिक जीवन के रंध्र-रंध्र मैं फैली दुर्नीति, दुराचार, ग्लानि और अन्याय को आंखों में अंगुली गडाकर दिखाया है। लेकिन उनकी दृष्टि केवल अंधकार की ओर नहीं रही है, उनके ‘सक्रिय भलेमानुस’ सदानंद ने ‘दिव्य प्रेम की पावन जोत’ भी हाथ में ले रखी है और इस तरह उपन्यासकार ने प्रखर प्रकाश की ओर भी देखा है। सदानंद की चरित्रगाथा में उन्होंने स्तर-स्तर मे विन्यस्त सामाजिक संकट को अद्भुत कौशल से उभारा है, विश्व स्तर के किसी भी उपन्यासकार के लिए चुनौती है। ‘मुजरिम हाजिर’ में जिस विशाल जगत की सृष्टि उन्होंने की है, उसकी प्रत्येक घटना, प्रत्येक चरित्र ऐसा विशाल योग्य और हृदयग्राही है कि पाठक इस जगत में अनजाने शामिल हो जाता है- यह जगत उसका ही जगत बन जाता है। प्रस्तुत उपन्यास पर आधारित धारावाहिक टीवी पर भी प्रकाशित हो चुका है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mukandas Khichi
मुकनदास खीची : मारवाड़ के वीर शिरोमणि मुकनदासजी खीची के बारे में लोगों को अभी तक अधिक जानकारी नहीं है। इस पुस्तक के माध्यम से मुकनदास खीची की कीरत कथा उजागर करना हमारा उद्देश्य है, साथ ही आज की पीढ़ी जिस तेजी के साथ अपनी भाषा, इतिहास, रीति-रिवाज, अदब-कायदा व संस्कृति से परे होती जा रही है, उनको भी मुकनदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित कराना भी है।
मुकनदास खीची को इतिहास में जो स्थान मिलना चाहिए था नहीं मिला, उन्हें इतिहास से गौण कर दिया गया। पांडवों का एक वर्ष का अज्ञातवास कितना कठिन था जबकि मुकनदास खीची के सात वर्ष बालक महाराजा अजीतसिंह की जोगी के भेष में सुरक्षा, पल-पल की नजर रखना कितना कठिन कार्य था। वहीं दुर्गादास राठौड़ युद्ध करना, कूटनीति, राजपूतों को संगठित करना और महाराजा को खोया राज्य पुन: दिलाना के लिए प्रयासों में लगे रहे, तो दूसरी तरफ मुकनदास पर महाराजा को औरंगजेब की नजरों से बचाने का महत्वपूर्ण दायित्व था। अगर मुकनदास अपने कार्य में तनिक भी असफल हो जाते तो क्या दुर्गादास राठौड़ का उक्त कार्य सफल होता, ये दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं सब पहलुओं पर विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए मुकनदास के बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर किया है, जो समस्त खीची बंधुओं, शोधार्थियों, इतिहास के अध्येताओं, एवं सामान्य पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Mukt Gagan Mein
यशस्वी साहित्यकार विष्णु प्रभाकर की बहुप्रतीक्षित आत्मकथा…साथ ही पूरी एक सदी के साहित्यिक जीवन तथा समाज और देश का चारों ओर दृष्टि डालता आईना और दस्तावेज़। विष्णु प्रभाकर अपने सुदीर्घ जीवन में साहित्य के अतिरिक्त सामाजिक नवोदय तथा स्वतंत्रता-संग्राम से भी पूरी अंतरंगता से जुड़े रहे-रंगमंच, रेडियो तथा दूरदर्शन सभी में वे आरंभ से ही सक्रिय रहे। शरत्चन्द्र चटर्जी के जीवन पर लिखी उनकी बहुप्रशंसित कृति ‘आवारा मसीहा’ की तरह यह भी अपने ढंग की विशिष्ट रचना है। यह आत्मकथा तीन खंडों में प्रकाशित है : पंखहीन (प्रथम खंड), मुक्त गगन में (द्वितीय खंड), और पंछी उड़ गया (तृतीय खंड)
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
Muktibodh : Vimarsh Aur Punah Path
प्रस्तुत पुस्तक में मुक्तिबोध को वर्तमान के आलोक में देखने परखने की एक कोशिश की गयी है। इसी क्रम में पुस्तक में मुक्तिबोध के लेखन के विविध पक्षों पर आलेख शामिल किये गये हैं। हर रचनाकार अपनी रचना में अपने समय और उसकी विडम्बनाओं को उकेरने की कोशिश करता है। इसका आशय यह भी होता है कि इन विडम्बनाओं को दूर किया जाना चाहिए। एक समय का सच आखिरकार ‘अतीत का वह सच’ बन जाता है जिसको वर्तमान ख़ारिज कर चुका होता है। काश रचनाकार की रचनाएँ भी ‘अतीत का सच’ बन पातीं। सही अर्थों में यह किसी भी रचनाकार का असल मन्तव्य भी होता है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्ष के साक्षी रहे। इसीलिए संघर्ष उनकी रचनाओं का प्रत्यक्ष है। काश ‘सामूहिक मुक्ति’ का मुक्तिबोध का सपना साकार हो पाता। यह पुस्तक एक तरह से उन सपनों की पड़ताल है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, कहानियां
Mumal
राजस्थानी भासा री कहाणियां लिखण मै रानीजी रौ धीजै-पतीजै जैडौ धणियाप। आपरी कहाणियां रै बूतै माथै राजस्थानी भासा रै सबद-संसार, भाव-मीठास ने कैवण वाला बातपोंसा सूं सुणियोड़ी, ख्यातां-बातां में बाचियोड़ी अर नवी उपजी बातां ने रानीजी सरावण जोग नवै अटंग ढंग-ढालै लिखी। लिखण री गजब निकेवली आंट रै पांण आपरी कहाणियां रा पात्र साचलका लखावण लागै। लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत री कहाणियां री अेक खास घसक आ क उणां मे राजस्थान रै कण कण री आतमा पलका मारै। Mumal Laxmi Kumari Chundawat
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Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Munivar Gurudutt Vidyarthi
महान विद्वान् तथा विचारक मुनिवर पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी लाला जी के सहपाठी और अंतरंग मित्र थे। उनके निधन के तुरंत पश्चात् लालाजी ने उनकी विस्तृत जीवनी लिखी जो 1890 में छपी, स्वयं यह उनकी प्रथम कृति थी।
पंडित गुरुदत्त की इस प्रमाणिक अंग्रेजी जीवनी का अनुवाद स्वयं डॉ भवानीलाल भारतीय ने गुरुदत्त निर्वाण शताब्दी के अवसर पर किया था। यही दुर्लभ ग्रंथ पुनः प्रकाशित किया जा रहा है।
इस कृति का महत्व इसलिए भी है कि इसका लेखक कथानायक के जीवन तथा कृतित्व से भली भांति परिचित था। यही कारण है कि वह पंडित गुरुदत्त के जीवन प्रसंगों को तटस्थ होकर चित्रित कर सके तथा उनके बौद्धिक, दार्शनिक तथा लेखकीय गुणों का सम्यक् उद्घाटन कर सके।SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
अस्त्र-शस्त्र का उत्तर अस्त्र-शस्त्र से देना उचित है। लेकिन विचारों का उत्तर तो विचार ही हो सकता है। किसी विचार, किसी लेख-कविता या पुस्तक के उत्तर में तलवार निकालना मजबूती नहीं, कमजोरी की निशानी है। किन्तु अरब से लेकर यूरोप, एसिया, अफ्रीका तक, हर कहीं इस्लामी नेता और संगठन सरल, संयत, वैचारिक संघर्ष से बचते हैं। इसे सदैव हिंसा से दबाने की कोशिश करते हैं। सदियों से, बल्कि आरंभ से ही, इस में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वयं प्रोफेट मुहम्मद ने अपने विचारों पर किसी के प्रतिवाद, संदेह का यही उत्तर दिया था।
तब क्या इस्लाम कागजी शेर नहीं है? एक दुर्बल, भयभीत मतवाद, जो केवल धमकी, हिंसा, छल-कपट, अनुचित रूप से उठाई जा रही विशेष सुविधाओं, अनुचित-असमान नियमों के बल से चल रहा है। ऐसा मत-विश्वास कितने दिन चलता रह सकता है? यह एक बुनियादी प्रश्न है, जिस से भारत और वर्तमान विश्व की कई समस्याएं जुड़ी हुई हैं।
इस समस्या का समाधान सैनिक तरीके से नहीं, बल्कि शिक्षा में है। ध्यान दें, कुरान में असंख्य बार कई प्रसंगों में ‘प्रमाण’, ‘स्पष्ट प्रमाण’, की बातें की गई है। अतः मुसलमान किसी विचार-बिन्दु, विषय में प्रमाण, सबूत, एविडेंस के महत्व से परिचित हैं। केवल उन्हें प्रमाण वाली कसौटी को उन विचारों, कानूनों, विवरणों, दलीलों पर भी लागू करके देखने की जरूरत है जिन्हें वे स्वतः-प्रमाणिक मानते रहे हैं। जैसे, मूर्तिपूजकों को घृणित समझना; इस्लाम से पहले या बाहर के मानव-समाजों को मूर्ख मानना; जीने के बदले मरने को अधिक अच्छा मानकर ‘जन्नत’ पाने के लिए हर तरह के चित्र-विचित्र काम करना; जिहाद को सब से बड़ा कर्तव्य समझना; मनुष्य को गुलाम बनाकर बेचना-खरीदना; स्त्रियों को वस्तु-संपत्ति मात्र भोग रूप में देखना; आदि मान्यताओं को विवेक से देखने की जरूरत है। ये मान्यताएं कोई ईश्वरीय देन या ‘सर्वकालिक सत्य’ नहीं हैं – इस की परीक्षा की जानी और शिक्षा दी जानी चाहिए। (पुस्तक अंश)
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English Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Muslim League Attack On Sikhs And Hindus In The Punjab 1947 (PB)
English Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Muslim League Attack On Sikhs And Hindus In The Punjab 1947 (PB)
The volume in hand is a reprint of an old book compiled in 1947) by Sardar Gurbachan Singh Talib, Principal of the Lyallpur Khalsa College, Jullundur, and published in 1950 by the Shiromani Gurudwara Parbandhak Committee (SGPC). It records the story of 7-mil-lion Hindus and Sikhs who were uprooted from their homes in the West Punjab, the North-Western Frontier, Sind and parts of Kashmir. It tells the story of political parleys that preceded this event, their inevitable failure, and the barbarity that immediately followed -barbarity that had elements of pre-planning. The book records the atrocities of this period – the carnage, killings, abductions and forced conversions that took place particularly in 1946-47, forcing Hindus and Sikhs to leave their hearths and homes and start on the “biggest mass migration of humanity,” as the author describes it.
At the end of the book, the author gives an Appendix, 100 pages of about 50 eye-witness accounts of those atrocities. It contains statements of those who saw themselves attacked, their houses burnt, their kith and kin killed, their womenfolk abducted but who themselves survived to relate their account. The section also includes press reports and other first-hand accounts. For example, one report which appeared in The Statesman of April 15, 1947 narrates an event that took place in village Thoha Khalsa of Rawalpindi District. It is a story of tears and shame and also of great sacrifice and heroism. The story tells us how the Hindu-Sikh population of this tiny village was attacked by 3000-strong armed Muslims, how badly outweaponed and outnumbered, the besieged had to surrender, but how their women numbering 90 in order to “evade inglorious surrender” and save their honour jumped into a well “following the example of Indian women of by-gone days.” Only three of them were saved. “There was not enough water in the well to drown them all,” the report adds. The author also gives an 85-page long “list of atrocities,” date by date and region by region, that took place during the months from mid-December 1946 to the end of August 1947 And these represent only “a small fraction of what really happened,” and they have to be multiplied “a hundred-fold or more…to get the right proportions,” the author says.SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Muslim Separatism: Causes And Consequences
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Muslim Separatism: Causes And Consequences
The book discusses the pattern through which Islam has been breaking the Hindu society and its motherland, taking away Afghanistan, Pakistan, Bangladesh and following up the battle in Kashmir and Assam.
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English Books, Voice of India, इतिहास
Muslim Slave System in Medieval India
Slavery originated during the age of savagery and continued into ancient civilizations. Slavery was there in Babylon and elsewhere in Mesopotamia; it was widely prevalent in ancient Egypt, Greece and Rome, centuries before the coming of Christ. Ancient India also had slaves but they were so mildly treated that foreign visitors like Megasthenes, who were acquainted with their fate in other countries, failed to notice the existence of slavery in this country.
An altogether new dimension-religious sanction-was added to the institution of slavery with the rise of Christianity to power in the Roman Empire. Hitherto, slavery had been a creation of the crude in human nature the urge to dominate over others, to make use of others for private comfort and profit. Now it was ordained that the God of the Christians had bestowed the whole earth and all its wealth on the believers, that the infidels had no natural or human rights, and that the believers could do to the infidels whatever they chose-kill them, plunder them, reduce them to the status of slaves or non-citizens. In short, slavery became a divinely ordained institution.
With the advent of Islam, slavery became inalienable with religion and culture and was accorded a permanent place in society. It goes to the credit of Islam to create slave trade on a large scale, and run it for profit like any other business. Prophet Muhammad had not only accepted the prevailing Arab practice of making slaves but also set a precedent when he sold some Jewish women and children of Medina in exchange for horses and arms. War was prescribed on religious grounds, and became an integral part of Islam. The Quran expressly permitted the Muslims to acquire slaves through conquest.
From the day India became a target of Muslim invaders its people began to be enslaved in droves to be sold in foreign lands or employed in various capacities on menial and not-so-menial jobs within the country. Indeed, from the days of Muhammad bin Qasim in the eighth century to those of Ahmad Shah Abdali in the eighteenth, enslavement, distribution, and sale of Hindu prisoners was systematically practised by Muslim invaders and rulers of India.
Right from the fifteenth century Muslims would go on furnishing black slaves to European slave traders. At least 80Ck of all the black slaves that were ever exported from Black Africa, went through Muslim hands. A large part of the slaves transported to America had also been bought from Muslim slave – catchers.
The present study by Professor K.S. Lal documents for the first time the Muslim slave system as it obtained in medieval India under Muslim rule.
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Mutthi Bhar Yaaden
21 साल! कितनी रोमांचक उम्र है! यह उम्र है, जानी-पहचानी राह छोड़कर नये रास्ते खोजने की, जोखिम उठाकर अपनी किस्मत आज़माने की, अपने सपनों को सच करने की और प्यार में डूबने की… मुट्ठी भर यादें कहानी है एक ऐसे ही इक्कीस वर्षीय नौजवान की और रोचक बात यह है कि इसे रस्किन बॉन्ड ने तब लिखा जब वे साठ साल की उम्र के थे। कहानी है इक्कीस वर्ष के युवा की जो लेखक बनने का अपना सपना सच करना चाहता है। लेकिन उसके सामने ऐसे लुभावने आकर्षण आते रहते हैं और वह बार-बार लेखक बनने के अपने लक्ष्य से भटक जाता है। कहीं तो उसे मिलती है मैकडोर की महारानी, तो कहीं उसका सामना धोबी के चतुर लेकिन बेहद चेपू किस्म के लड़के से होता है, कहीं सर्कस से भागे हुए बाघ से मुलाकात होती है….आखिरकार क्या होता है पुस्तक के इक्कीस वर्षीय नायक के सपने का? ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित रस्किन बॉन्ड की अन्य लोकप्रिय पुस्तकें हैं – रूम ऑन द रूफ़, वे आवारा दिन, एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी, नाइट ट्रेन ऐट देओली, दिल्ली अब दूर नहीं, उड़ान, पैन्थर्स मून, अंधेरे में एक चेहरा, अजब-गज़ब मेरी दुनिया और रसिया।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Na Kehne Ki Kala(PB)
“लोगों को ‘न कहना एक ऐसी महत्त्वपूर्ण कला है, जो आप अपने आप विकसित कर सकते हैं। यह आपको व्यक्तिगत एवं पेशेवर जीवन में अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए सामर्थ्य देती है।
एक हद तक यह आपकी उत्पादकता एवं आपके रिश्तों को भी सुधारती है। इसके साथ ही यह आप को आत्मविश्वास तथा आत्मिक शांति देती है, जिससे आप उद्वेलित नहीं हो पाते।
‘न कहने की कला आपको स्वतंत्रता देती है। पर यह कला विकसित करना बहुत ही मुश्किल भरा है। अधिकांश लोगों के लिए वर्षों के अभ्यास के विपरीत, इसे पूर्ववत् करने की आवश्यकता होती है। हममें से कुछ के लिए ‘न बोलना सीखना हमारे अभिभावकों, शिक्षकों, बॉस, सहयोगियों और परिवार के सदस्यों का प्रतिवाद करने जैसा है।
‘न कहने की कला तलवार की धार पर चलने की कला है। यह पुस्तक आप में वह विवेक और कौशल विकसित करेगी, ताकि आप अपनी क्षमता और पहुँच के बाहर के कार्यों को शालीनतापूर्वक मना कर सकें। आपके व्यक्तित्व को नए आयाम देनेवाली अत्यंत महत्त्वपूर्ण पठनीय पुस्तक।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Naagraj Ki Duniya
आर.के. नारायण शायद ऐसे पहले भारतीय अंग्रेज़ी लेखक हैं जिनके लेखन ने न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पाठकों में भी अपनी जगह बनाई। उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों के लिए न केवल रोचक विषयों को चुना, बल्कि उन्हें अपने चुटीले संवादों से इतना चटपटा भी बना दिया कि जिसने भी उन्हें एक बार पढ़ा उसमें नारायण की रचनाओं को पढ़ने की प्यास और बढ़ गई। नारायण ने अपनी कल्पनाओं में मालगुडी नाम का एक शहर बसाया और फिर उसके इर्द-गिर्द अनेकों कहानियां बुन डालीं। ‘नागराज की दुनिया’ भी मालगुडी की ही पृष्ठभूमि में रचा एक अनूठा उपन्यास है। नागराज का अपनी पत्नी के साथ खूब मज़े से जीवन कट रहा है। उनके पास रहने को एक बड़ा-सा घर है और करने को सिर्फ मनपसंद काम। बरामदे में बैठकर सड़क की रौनक देखना, पत्नी के साथ गप-शप करते हुए कॉफी पीना और अपनी किताब की योजना बनाना नागराज की दिनचर्या के हिस्से हैं पर उसकी शांत ज़िंदगी में तब उथल-पुथल मच जाती है जब उसका भतीजा टिम वहां रहने आ जाता है…।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Naari : Mahabhara Mahakavya Ke Alok Mein
नारी : महाभारत महाकाव्य के आलोक में : महाभारत महाकाव्य मानव जीवन के विविध पक्षों को समाविष्ट करता है। प्रस्तुत पुस्तक में सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में नारी के अवदान को महाभारत के आलोक में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। नारी ने अपनी प्रतिभा तथा क्षमता से जीवन को गौरवान्वित किया है। परिवार, समाज तथा राष्ट्र के प्रति व्यक्ति के कर्त्तव्यों को दिशानिर्देश दिया है। जननी, पत्नी, पुत्री तथा भगिनी के रूप में उसने पुत्र, पति, पिता तथा भ्राता आदि को विकट परिस्थिति में सम्बल प्रदान किया है। उसका मार्गदर्शन प्रेरणास्पद है। नारी के अवदान के बिना समाज तथा राष्ट्र की प्रगति तथा उन्नति अकल्पनीय है। अपार ऊर्जा से सम्पन्न नारी ने बाधाओं को पार करने में अपनी प्रतिभा को उजागर किया है। उसका बहुआयामी चरित्र प्रशंसनीय तथा वन्दनीय है।
पारिवारिक तथा सामाजिक परिप्रेक्ष्य में नारी का चिन्तनमनन दिशा-बोध से संयुक्त है। कला तथा संस्कृति को जीवन्त रखने में उसका अनुदान प्रशंसनीय है । राजनीतिक तथा सामरिक पटल पर उसकी ऊर्जा, साहस तथा धैर्य अविस्मरणीय हैं, जीवित-जागृत राष्ट्र की वह प्रतीक है। उसके हाथों में प्रत्यक्ष रूप से शासनाधिकार न होने पर भी उसने राजनीतिक पटल पर अपनी अमिट छाप अंकित की है।
महाभारत महासमर पर दृष्टिपात किया जाये तो यह स्पष्ट है कि नारी का अपमान करना क्षम्य नहीं है। द्रौपदी के अपमान की गूंज महाभारत के सभी पर्यों में सुनायी पड़ती है। कौरवपाण्डव महासमर में भूमि-स्वामित्व का प्रश्न दोनों पक्षों को विचलित करता रहा। कटु वचन, प्रतिशोध का भाव, जातिगत द्वेष की अग्नि तथा कुल-कलह महाभारत युद्ध के आधार बने । महासमर में कौरव पक्ष नि:शेष हो गया। महाभारत महासमर में जन-धन की अपार क्षति हुई, निष्कर्ष रहा – न युद्धे तात कल्याणं न धर्मार्थो कुतः सुखम् ।
प्रस्तुत पुस्तक महाभारत महाकाव्य के अध्ययन विषयक लेखिकाओं के गहन अध्ययन तथा नवीन व्याख्या की परिचायक है । बहुआयामी दृष्टिकोण से महाभारत की व्याख्या का प्रयास सराहनीय है।
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