History
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English Books, Garuda Prakashan, इतिहास
Vasudhaiv Kutumbakam
Vasudhaiv Kutumbakam, the world is one family, is the compilation of the poems composed by India’s leading light of academics Prof Pritam B Sharma, an eminent academician, innovator, and an institution builder who during his 51 years long professional career has traversed the world of learning in science and technology and has connected himself with sensitivity to society and the humanity.
Beginning with the spiritual power of Mother India and its age old Himalayan Spirit of oneness of humanity, Prof Sharma expresses his mind to capture the realms of life, that covers his profound appreciation of countries and places he visited. The poems that flow from the heart of Prof Sharma, invoke the Himalayan Spirit of Vasudhaiv Kutumbakam that nurtures goodness and showers its divine bliss on the entire humanity. It is this Himalayan spirit that celebrates the ‘Diversity of Oneness’ and at the same time invokes a sense of ‘Oneness of Diversity’. The poems are a read must for all those who live to make this world a place to live in harmony and peaceful coexistence.
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Ve andhere din
‘अंधेरे वे दिन….’ तसलीमा के उन अँधेरे दिनों की कथा बयान करते हैं जब उन्हें दीर्घ दो महीने, घुप्प अँधियारे में आत्मगोपन करके रहना पड़ा, वह भी अपने देश में। यह उपन्यास मूलतः तथ्यपरक हैं। बांग्लादेश में प्रकाशित ‘आजकेर कागज’ ‘भोरेर कागज’ ‘इत्तफाक’ संवाद’ ‘बांग्ला बाजार’ ‘इन्क़लाब’ ‘दिनकाल’ ‘संग्राम’ वगैरह दैनिक अखबारों से उन दिनों की ख़बरों से ली गई हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ve Pandrah Din
उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया।
माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो” ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’ उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी’ हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे।
फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में।
स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ve Pandrah Din(PB)
उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया।
माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो” ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’ उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी’ हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे।
फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में।
स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Vedant: Bhavishya Ka Dharma
“उनतालीस वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।वे केवल संत ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, प्रखर विचारक, रचनाधर्मी लेखक और करुणा से ओतप्रोत मानवताप्रेमी भी थे।
अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, “नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पड़े झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से ।”
और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। गांधीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानंद के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के भी प्रमुख प्रेरणास्नोत बने ।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वेदांत भविष्य का धर्म’ में स्वामीजी ने भारतीय अध्यात्म के दो आधारभूत ग्रंथों ‘रामायण’ और “महाभारत’ के माध्यम से भारत के समाज का आध्यात्मिक, सामाजिक और मानसिक दृश्य खींचा है, जो भारतीय जनमानस के भावों का दिग्दर्शन कराता है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veer Kunwar Singh Ki PremKatha
इस पुस्तक की रचना का मूल मकसद रणबाँकुरे वीर कुँवर सिंह जी के कृतित्व को आम जनमानस तक पहुँचाना है। जाति-धर्म से परे होकर बाबू साहब ने जिस प्रकार सबके साथ आत्मीयता निभाई, उसको दिग्दर्शित करते हुए इस पुस्तक की रचना की गई है। उपलब्ध तथ्यों, लोककथाओं, लोकगीतों सहित अनेक माध्यमों को आधार बनाकर यह पुस्तक तैयार की गई है। बाबू साहब की देशभक्ति के साथ-साथ प्रजा के प्रति उनके अगाध स्नेह, प्रेम और दायित्व को केंद्रित कर इसकी रचना की गई है। इस पुस्तक को पढ़ने में पाठकों की रुचि बनी रहे, इसलिए कथानकों को संवाद के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। इसे संगृहीत अंशों का एक संकलन भी कहा जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक इतिहास के साथ-साथ फिक्शन स्टोरी भी कही जा सकती है।
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Suruchi Prakashan, इतिहास
Veer Matayen
यह सर्वथा सही कहा गया है कि माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैंI भारत को स्वतंत्रता असंख्य वीरों, क्रांतिकारियों तथा देश-प्रेमिओं के त्याग व बलिदान से प्राप्त हुईI धन्य हैं वे मातायें जिन्होंने ऐसे वीर पुत्रों को जन्म दियाI इन क्रांतिकारियों ने अपना जीवन मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से स्वतंत्र कराने के लिए न्यौछावर कर दिया और वे वीर सपूत अपनी माताओं के सामने ही फाँसी पर ख़ुशी-ख़ुशी झूल गयेI उन माताओं ने कैसे कष्ट और वेदनाएँ सही होंगी, इसका विवेचन इस पुस्तक में व्यक्त किया गया हैI
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veer Nariyan
सैनिक हमारे लोकतंत्र के ऐसे स्तंभ हैं, जो देश के लिए अपने जीवन को स्वेच्छा से बलिदान कर देते हैं। उनका हम पर यह ऋण है कि हम वीर नारियों को सशक्त बनाएँ और उन्हें वह सब दें, जिसकी वे वास्तव में हकदार हैं और भविष्य की चुनौतियों से निपटने में उनकी मदद करें। यों तो बताने के लिए वीर नारियों की ऐसी हजारों कहानियाँ हैं, लेकिन इस पुस्तक में कुछ कहानियों को पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश की है। कुछ ऐसी कहानियाँ, जो संघर्ष की आँच में तपकर सफल हुई वीर नारियों को प्रतिबिंबित करती हैं।
प्रत्येक महिला की यात्रा हृदयविदारक, लेकिन अनेक तरीकों से प्रेरक थी। इस पुस्तक को लिखना और सिरे तक पहुँचाना एक लंबी और थका देनेवाली प्रक्रिया रही है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में लेखिका नें जीवनभर के लिए कुछ साथी बनाए हैं। कई-कई दिन साथ बिताने के कारण एक-दूसरे से दिल की बातें करने लगे थे, जिसमें हलका-फुलका हँसी-मजाक भी शामिल था तो गंभीर चिंताएँ भी; लेकिन अब हम जानते हैं कि अच्छे-बुरे वक्त में हम साथ हैं। हमारी रक्षा पृष्ठभूमि ने हमें एक-दूसरे से जोडक़र रखा है, यह एक सुंदर सूत्र है, जिसने इस रिश्ते को अत्यंत खास बनाया है। इनमें से कुछ महिलाएँ बहिर्मुखी थीं तो कुछ अंतर्मुखी, कुछ आज भी भय में जी रही हैं, लेकिन फिर भी ये सभी नारियाँ हम सभी के लिए अपने आप में एक प्रेरणा हैं।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Veer Satsai
वीर सतसई (सूर्यमल्ल मिश्रण कृत) : सूर्यमल्ल मिश्रण जी के वीर सतसई ग्रन्थ को राजस्थान में स्वाधीनता के लिए वीरता की उद्घोषणा करने वाला अपूर्व ग्रन्थ माना जाता है। इस ग्रन्थ के पहले ही दोहे में वे ”समे पल्टी सीस“ का घोष करते हुए अंग्रेजी दासता के विरुद्ध विद्रोह के लिए उन्मुख होते हुए प्रतीत होते हैं। यह सम्पूर्ण कृति वीरता का पोषण करने तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए मरने मिटने की प्रेरणा का संचार करती है। यह राजपूती शौर्य के चित्रण तथा काव्य शास्त्र की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है।
राजस्थानी साहित्य में जो विविध काव्य-रूप विकसित हुए उनमें संख्यापरक काव्य-रूपों का विशेष स्थान है। संख्यापरक रचनाओं में हजारा, सतसई, शतक, अष्टोत्तरी, बहोत्तरी, बावनी, छत्तीसी, बत्तीसी, पच्चीसी, चैबीसी, बीसी, अष्टक आदि नाम की सहस्त्राधिक कृतियाँ उपलब्ध होती हैं। सामान्यतः ये रचनाएँ मुक्तक होती है।
इन विविध संज्ञापरक रचनाओं में ‘सतसई’ का विशिष्ट स्थान है। ‘सतसई’ संज्ञक रचनाओं में सामान्यतः सात सौ अथवा इसके लगभग की संख्या में रचित दोहों का संग्रह कर दिया जाता है। वीर भावों को आधार बनाकर सर्वाधिक सतसइयाँ राजस्थानी में लिखी गई। वीररसावतार सूर्यमल्ल मिश्रण ने ‘वीर सतसई’ का निर्माण कर सतसई-परम्परा को नया मोड़ दिया। उन्होंने अपनी सतसई में किसी विशिष्ट सामन्त, राजा या ठाकुर को अपना आलम्बन नहीं बनाया। उनका आलम्बन बना सामान्य वीर पुरुष और सामान्य वीर नारी। वीर भावों की ऐसी सार्वजनिक सामान्यीकृत अभिव्यक्ति अन्यत्र दुर्लभ है।
सूर्यमल्ल मिश्रण जी की प्रतिभा और विद्वता का पता तो इस बात से ही चल जाता है कि मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने ‘रामरंजाट’ नामक खंड-काव्य की रचना कर दी थी। सूर्यमल्ल मिश्रण के प्रमुख ग्रन्थ ‘वंश भास्कर’ एवं ‘वीर सतसई’ सहित उनकी समस्त रचनाओं में चारण काव्य-परम्पराओं की स्पष्ट छाप अंकित है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Veer Savarkar(PB)
यदि भारत अपनी स्वाधीनता के 75वें वर्ष की ओर देखता है तो वह देश के विभाजन के 75वें वर्ष की ओर भी देखता है। यह संभवत: बीसवीं शताब्दी की विकटतम मानव त्रासदी थी, जिसने बड़े पैमाने पर अभूतपूर्व हिंसा देखी; और इस हिंसा की प्रणेता वे इच्छुक पार्टियाँ थीं, जिन्होंने अपने राजनीतिक एवं विचारधारात्मक कारणों से उसे भड़काया था। विभाजन की ओर प्रवृत्त करनेवाले वास्तविक कारणों का विश्लेषण करें तो उसका पाठ भारत की एकता एवं अखंडता में निहित है, जिसका प्रमाण वीर सावरकर द्वारा विभाजन को रोकने के लिए किए गए अथक प्रयासों में मिलता है। तार्किक रूप से भारत की राष्ट्रीय अखंडता के महानतम प्रतीक सावरकर को ओर से भारत की सुरक्षा के प्रति जो चेतावनियाँ दी गई थीं, वे विगत सात दशकों में सत्य सिद्ध हुई हैं।
“वीर सावरकर” पुस्तक सावरकर जैसे तपोनिष्ठ चिंतक एवं भारत की सुरक्षा के जनक के उस पक्ष को प्रस्तुत करती है, जिससे भारत के विभाजन को रोका जा सकता था।
इस पुस्तक में देश एवं उसकी नई पीढ़ी के समक्ष भारत विभाजन, जोकि तुष्टीकरण की राजनीति के कारण हुआ था, को सत्य कथा को प्रस्तुत करने एवं इतिहास को परिवर्तित करने की उर्वरा है। आज देश को एकजुट बनाए रखने के लिए सावरकरवादी दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Veer Vinod – Mewar Ka Itihas Set Of 4 Vol.
AUTHOR : महामहोपाध्याय कविराज श्यामलदास (MAHAMAHOPADHYAYA KAVIRAJA SHYAMALDAS)
वीर विनोद – मेवाड़ का इतिहास (भाग 1 से 4)
राजस्थान के इतिहास का एक विशालकाय और चिरस्मरणीय ग्रन्थ है। यह सन् 1886 ई. में मुद्रित हुआ था और अब एक दीर्घ अन्तराल के पश्चात् प्रथम बार इसका पुनर्मुद्रण किया जा रहा है। उर्दू-मिश्रित हिन्दी में लिखित एवं एक निराली स्पष्टोक्तिपूर्ण शैली में रचित इस ग्रन्थ ने हिन्दी के शुरू के भारतीय-इतिहास-साहित्य में बहुत उच्च स्थान प्राप्त कर लिया था। चार जिल्दों और 2716 पृष्ठों में मुद्रित यह ऐतिहासिक वृत्तान्त मेवाड़ को राजपूत वैभव, शौर्य एवं पराक्रम के केन्द्र के रूप में प्रदर्शित करता है। इसमें प्रमुख घटनाओं से उत्पन्न हलचलों का, उनकी चुनौतियों का तथा विभिन्न महाराणाओं के नेतृत्व में मेवाड़वासियों ने उनका जिस साहस और वीरता के साथ सामना किया, उसका सजीव वर्णन किया गया है। इसके प्रत्येक पृष्ठ पर अस्त्रों की घनघनाहट एवं राजपूत शौर्य के अभूतपूर्व कारनामे अंकित हैं।
ग्रंथकार ने राजस्थानी इतिहास का वर्णन संपूर्ण विश्व के परिप्रेक्ष्य में किया है। इसमें यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा एशिया महाद्वीपों का सामान्य सर्वेक्षण किया गया है; भारत पर सिकन्दर के आक्रमण एवं मुसलमानों के आगमन को चित्रित किया गया है; भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर घटनेवाली उन घटनाओं का गंभीर विवेचन-विश्लेषण किया गया है, जिन्होंने मेवाड़ के जन-जीवन को प्रभावित किया तथा हिमालय की गोद में बसे हुए नेपाल-राज्य के इतिहास की भी सूक्ष्म छानबीन की गई है। राजस्थान के राजनीतिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली प्रचुर सामग्री बहुमूल्य अभिलेखों, राजकीय दस्तावेजों, अनेक फरमानों तथा आंकड़ों के रूप में इस ग्रंथ में संगृहीत है। भारतीय विद्वानों, अनुसंधानकर्ताओं, छात्रों एवं सामान्य पाठकों के द्वारा लम्बे अरसे से इस कृति के पुनर्मुद्रण की मांग की जा रही थी और स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् तो यह मांग और भी जोर पकड़ गई थी। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रस्तुत प्रयास किया गया है। कविराज श्यामलदास, जिन्होंने यह ग्रंथ लिखा है, मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह (1859-84) के दरबार को सुशोभित करने वाले राजकवि थे। उनके विशाल ज्ञान एवं पाण्डित्य से अभिभूत होकर उन्हें ‘महामहोपाध्याय’ तथा ‘कैसर-ए-हिन्द’ की सम्मानजनक उपाधियों से विभूषित किया गया था। ‘वीर विनोद’ उनकी प्रधान रचना है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veervar Rao Amar Singh Rathore
वीरवर राव अमर सिंह राठौड़ : राजस्थान के प्रख्यात वीरों में वीरवर राव अमरसिंह राठौड़ का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। राव अमरसिंह राठौड़ का नाम समूचे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है और इस प्रसिद्धि का कारण है उनका स्वाभिमान और आत्मसम्मान के लिए निर्भयता पूर्वक अपने प्राणों का उत्सर्ग करना। अमरसिंह राठौड़ ने मुगल सम्राट शाहजहाँ के भी दरबार में सलावत खां का काम तमाम किया। उनका यह अद्भुत शीर्ष व पराक्रम युक्त कार्य राजपूती आन, बान और शान का प्रतीक बन गया।
चाहे जो कारण रहा हो इतिहास के पन्नों में इस वीर के पराक्रम का ठीक से आंकलन नहीं हुआ पर यहाँ के कवियों, साहित्यकारों, लोक कलाकारों ने (खास कर कठपुतली के ख्याल के माध्यम से) इस वीर की साहसिक घटना को इतनी विशिष्टता से प्रदर्शित किया की अमरसिंह राठौड़ क्षत्रियत्व के प्रतीक और जन-जन के नायक बन गये। ऐसे उद्भट व स्वाभिमानी वीर का पराक्रम कभी विस्मृत नहीं हो सकता। यह स्वाभिमानी वीर जन-जन की श्रद्धा और प्रेरणा का आधार बनकर सदा के लिए अमर हो गया।
चार सौ वर्ष बीतने के बाद भी राव अमरसिंह राठौड़ की यशकीर्ति आज भी कायम है। निसंदेह शौर्य, स्वाभिमान, पराक्रम व आत्मसम्मान युक्त उनकी जीवन गाथा सदैव वीरत्व की अद्भुत स्फुरणा प्रदान करती रहेगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Vibhajan Ki Trasadi
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Vibhajan Ki Trasadi
आजादी का जश्न अभी क्षितिज तक भी न चढ़ सका था कि मुल्क के दो फाड़ होने का बिगुल बज गया और सांप्रदायिक सद्भाव तार-तार हो गया, जिसके साथ ही दोनों तरफ की बेकसूर आवाम के खून का एक दरिया बह निकला। लाखों लोग मारे गए। करोड़ों बेघर हुए। लगभग एक लाख महिलाओं, युवतियों का अपहरण हुआ। यही बँटवारा इस पुस्तक का मुख्य मुद्दा है, जो लेखक की कड़ी मेहनत और बरसों की शोध का नतीजा है। बँटवारे में मरनेवालों का सरकारी आँकड़ा केवल छह लाख दर्ज है, लेकिन इस संदर्भ में अगर तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी मोसले पर गौर करें तो वह गैरसरकारी आँकड़ा दस लाख दरशाता है, यानी कि बँटवारे में छह लाख नहीं, बल्कि दस लाख लोग मारे गए। गौरतलब है कि न पहले और न ही बाद में, इतना बड़ा खून-खराबा और बर्बरता दुनिया के किसी भी देश में नहीं हुई।
अब एक बड़ा सवाल उठता है कि देश का विभाजन आखिर सुनिश्चित कैसे हुआ? क्या जिन्ना का द्विराष्ट्रवाद इसके लिए जिम्मेदार था या फिर अंग्रेजों की कुटिल नीति? क्या गांधी और कांग्रेस के खून में बुनियादी रूप से मुसलिम तुष्टीकरण का बीज विद्यमान था, जिसने अंततः बँटवारे का एक खूनी वटवृक्ष तैयार किया और जिसकी तपिश आज भी ठंडी नहीं हो पाई है।
विभाजन की त्रासदी और विभीषिका का वर्णन करती पुस्तक, जो पाठक को उद्वेलित कर देगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Vibhajan Ki Vibheeshika
भारत का विभाजन विश्व के सबसे बड़े नरसंहार के रूप में हिंदुओं और सिखों की महिलाओं की छाती पर हुआ। इसमें 30 लाख से अधिक लोगों की नृशंस हत्या हुई। विभाजन के समय हिंदू और सिख पुरुषों को एक लाइन में खड़ा करके पाकिस्तानी सेना ने गोलियों से भून दिया।
एक लाख से अधिक महिलाओं का अपहरण व बलात्कार करके अधिकांश को मौत के घाट उतार दिया गया | उनकी संपत्ति को हड़प लिया अथवा उसे आग के हवाले कर दिया । विश्व में यह एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जब करोड़ों की जनसंख्या का विनिमय बिना किसी योजना एवं पूर्व प्रबंधों के अचानक कर दिया गया।
पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इन दंगों में 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए। विभाजन का यह काला अध्याय विस्थापित हुए, भगाए गए, मारे गए और भटककर मौत को गले लगानेवाली मनुष्यता के खून के छींटों से भरा हुआ है। यह इतिहास के चेहरे पर पुती वह कालिमा है, जिसे कभी साफ नहीं किया जा सकेगा। इसका दंश इस पीढ़ी ने झेला, पर उसका दर्द और मार वहाँ से विस्थापित हुए परिवार आज भी झेल रहे हैं।
विभाजन का दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि इसके लिए उत्तरदायी नेता अपने इस अमानवीय कुकृत्य के लिए कभी शर्मिंदा नहीं हुए, बल्कि विभीषिका को “रक्तहीन क्रांति’ कहकर स्वयं को गौरवान्वित करते रहे । इन्हीं खून के धब्बों की लोमहर्षक घटनाओं पर उकेरा गया है यह अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील उपन्यास–‘विभाजन की विभीषिका ।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास
Vibhajit Bharat (HB)
Ram Madhavराम माधव राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं और भू-राजनीतिक, सामरिक एवं सुरक्षा अध्ययन तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं। उन्होंने अनेक देशों की यात्राएँ की हैं और 20 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों तथा अन्य कार्यक्रमों में व्याख्यान दे चुके हैं। सन् 1990 से 2001 के बीच, एक दशक से भी ज्यादा समय तक वे सक्रिय पत्रकारिता कर चुके हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखते हैं। अंग्रेजी और तेलुगु में उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं—डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी की ‘ए बायोग्राफी’ (तेलुगु), कान्होजी आंग्रे की ‘द मराठा नेवल हीरो’ (तेलुगु), ‘विविसेक्टेड मदरलैंड’ (तेलुगु), ‘इंडिया-बँगलादेश बॉर्डर एग्रीमेंट 1974—ए रिव्यू’ (अंग्रेजी) और ‘कम्युनल वॉयलेंस बिल अगेंस्ट कम्युनल हार्मोनी’ (अंग्रेजी)।
वे दिल्ली स्थित सामरिक अध्ययन एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध अध्ययन के विचार केंद्र इंडिया फाउंडेशन के निदेशक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।
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Vibhajit Bharat (PB)
Ram Madhavराम माधव राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं और भू-राजनीतिक, सामरिक एवं सुरक्षा अध्ययन तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं। उन्होंने अनेक देशों की यात्राएँ की हैं और 20 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों तथा अन्य कार्यक्रमों में व्याख्यान दे चुके हैं। सन् 1990 से 2001 के बीच, एक दशक से भी ज्यादा समय तक वे सक्रिय पत्रकारिता कर चुके हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखते हैं। अंग्रेजी और तेलुगु में उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं—डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी की ‘ए बायोग्राफी’ (तेलुगु), कान्होजी आंग्रे की ‘द मराठा नेवल हीरो’ (तेलुगु), ‘विविसेक्टेड मदरलैंड’ (तेलुगु), ‘इंडिया-बँगलादेश बॉर्डर एग्रीमेंट 1974—ए रिव्यू’ (अंग्रेजी) और ‘कम्युनल वॉयलेंस बिल अगेंस्ट कम्युनल हार्मोनी’ (अंग्रेजी)।
वे दिल्ली स्थित सामरिक अध्ययन एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध अध्ययन के विचार केंद्र इंडिया फाउंडेशन के निदेशक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।
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Harper Collins, Hindi Books, इतिहास
Vibhinnata
About the Book: Vibhinnata: An Indian Challenge to Western Universalism India is more than a nation state. It is also a unique civilization with philosophies and cosmologies that are markedly distinct from the dominant culture of our times-that of the West. In this book, thinker and philosopher Rajiv Malhotra addresses the challenge of a direct and honest engagement with differences, by reversing the gaze and looking at the West from the dharmic point of view. In doing so, he challenges many hitherto unexamined beliefs that both sides hold about themselves and each other, pointing out the integral unity that underpins dharmas metaphysics and contrasts this with Western
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Vichar Pravah Book in Hindi
डॉ. लोहिया समाजवादियों से कहते थे कि तुम निरंतर अपने में बदलाव करते रहो। नीति और सिद्धांत का खूँटा पकडे़ रहो, परंतु रणनीति बदलते रहो। आज समग्रता में डॉ. लोहिया को पढ़ने, जानने और समझने की आवश्यकता है। वे कहा करते थे कि जब किसान का एक हाथ हल की मूठ पर रहेगा और दूसरी आँख दिल्ली की सत्ता पर रहेगी, उस दिन परिवर्तन आएगा। राह सही रहे, परंतु राही बदलते रहें तो चिंता नहीं— दृष्टि और दिशा सही रहनी चाहिए। मैं भी गाँववाला हूँ। किसान हूँ। अपनी भाषा में और अपनी दृष्टि से कुछ लिखता हूँ और बोलता हूँ। डॉ. लोहिया कहा करते थे कि कभी भी दो महापुरुषों में तुलना मत करना। समय, परिस्थति और कारण एक नहीं होते हैं। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, प्रशासनिक और भौगोलिक परिस्थिति एक समान नहीं होती हैं। हर युग और समय में जो तत्कालीन और दीर्घकालीन परिस्थितियाँ होती हैं, उसी के अनुरूप काम करना पड़ता है। हर युग की अपनी समस्याएँ होती हैं, उनके निदान के उपाय खोजे जाते हैं। महापुरुषों की दृष्टि में समग्रता और व्यापकता के साथ-साथ करुणा होती है। वे समग्रता में चिंतन करते हैं और अपने तरीके से विश्लेषण करते हैं। भाषा और शब्दो में अंतर हो सकता है, परंतु भावना, चिंतन और दृष्टि में भेद नहीं होता है। समाजवादी विचारों से ओत-प्रोत आलेखों का संग्रह।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Vinashparva
यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता पाने के बाद जिन तथ्यों को लेखनीबद्ध करके देश की भावी पीढि़यों के लिए सहेजा जाना चाहिए था, वह कार्य आज भी अधूरा है। भारत की शिक्षा-व्यवस्था, भारत की स्वास्थ्य सेवाएँ और भारत के उद्योग, इन सबका हृस अंग्रेजी शासन में कैसे होता गया, इस पर विस्तार से कभी नहीं लिखा गया। अंग्रेजों की क्रूरता, बर्बरता, निर्ममता और भारतीयों पर किए हुए उनके अन्याय व अत्याचार के साथ ही अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट का तथ्यपूर्ण विवरण इस पुस्तक में संकलित हैं। साथ ही अंग्रेजों के आने के पहले भारत की स्थिति क्या थी, अंग्रेजों ने कैसे भारत की जमी-जमाई व्यवस्थाओं को छिन्न-भिन्न किया और उनके जाने के बाद भारत की स्थिति क्या रही इस पर विस्तार से प्रकाश डालनेवाली यह पुस्तक अपनी सहज-सरल प्रस्तुति तथा प्रवाहपूर्ण भाषा-शैली के चलते नई पीढ़ी को अपनी ओर अवश्य आकर्षित करेगी।
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Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Vindicated by Time
The Constitution of independent India adopted in January 1950 made things quite smooth for Christian missions. They surged forward with renewed vigor. Nationalist resistance to what had been viewed as an imperialist incubus during the Struggle for Freedom from British rule broke down when the very leaders who had frowned upon it started speaking in its favor. Voices that still remained ‘recalcitrant’ were sought to be silenced by being branded as those of ‘Hindu communalism’. Nehruvian Secularism had stolen a march under the smokescreen of Mahatma Gandhi’s Sarva-Dharma-Samabhava. The Christian missionary orchestra in India after independence has continued to rise from one crescendo to another with applause from the Nehruvian establishment manned by a brood of self-alienated Hindus spawned by missionary-macaulayite education. The only rift in the lute has been K.M. Panikkar’s Asia and Western Dominance published in 1953, the Report of the Christian Missionary Activities Committee Madhya Pradesh published in 1956, Om Prakash Tyagi’s Bill on Freedom of Religion introduced in the Lok Sabha in 1978, Arun Shourie’s Missionaries in India published in 1994, and the Maharashtra Freedom of Religion Bill introduced in the Maharashtra Legislative Assembly by Mangal Prabhat Lodha on 20 December 1996. Panikkar’s study was primarily aimed at providing a survey of Western imperialism in Asia from CE 1498 to 1945. Christian missions came into the picture simply because he found them arrayed always and everywhere alongside Western gunboats, diplomatic pressures, extraterritorial rights and plain gangsterism. Contemporary records consulted by him could not but cut to size the inflated images of Christian heroes such as Francis Xavier and Matteo Ricci. They were found to be not much more than minions employed by European kings scheming to carve out empires in the East. Their methods of trying to convert kings and commoners in Asia.
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Vishwa Guru Bharat
विश्वगुरु भारत
लेखक
महामहोपाध्याय
प्रो. अभिराज राजेन्द्रमिश्रप्राचीन भारत की भूमि! मानवता की आधारशिला! हे समादरणीय मातृभूमि! तेरी जय हो, जय हो।
जबकि नृशंस आक्रमणों को शताब्दियाँ अभी भी जनपथ की धूलिपतों के नीचे दफन नहीं हो पाई हैं, हे विश्वास की पितृभूमि! प्रेम, कवित्व एवं विज्ञान की वसुन्धरा! तेरी जय हो।
ईश्वर करे हम अपने पाश्चात्य के भविष्य में भी तुम्हारी अतीत की पुन: प्रतिष्ठा का अभिनन्दन करें!!
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VISHWA KA ITIHAS
इतिहास अतीत की घटनाओं का तथ्यात्मक वर्णन मात्र नहीं है, अपितु यह मानव केसुंदर भविष्य के निर्माण में भी अत्यंत सहायक है। इस प्रकार इतिहास हमारा पथ-प्रदर्शक है। ‘विश्व का इतिहास’ नामक इस पुस्तक में मानव सभ्यता केआरंभ से लेकर वर्तमान तक का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। जैसा कि हम जानते हैं, इतिहास एक वृहद् विषय है तथा इसका आंकलन विभिन्न पक्षों, यथा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक इत्यादि को दृष्टिगत रखकर किया जाता है। जब हम विश्व के इतिहास की बात करते हैं तो इसे लिखना एक चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि इसमें घटनाओं की महत्ता को देखते हुए उनका चयन करना होता है।
प्रस्तुत पुस्तक में मैंने विश्व की समस्त प्रमुख सभ्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। इसमें विश्व के इतिहास की प्रमुख घटनाओं और स्थितियों को विवेचनात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है तथा तथ्यों की प्रामाणिकता के साथ-साथ विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण पर विशेष बल दिया गया है।SKU: n/a