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Vibhajan Ki Trasadi


आजादी का जश्न अभी क्षितिज तक भी न चढ़ सका था कि मुल्क के दो फाड़ होने का बिगुल बज गया और सांप्रदायिक सद्भाव तार-तार हो गया, जिसके साथ ही दोनों तरफ की बेकसूर आवाम के खून का एक दरिया बह निकला। लाखों लोग मारे गए। करोड़ों बेघर हुए। लगभग एक लाख महिलाओं, युवतियों का अपहरण हुआ। यही बँटवारा इस पुस्तक का मुख्य मुद्दा है, जो लेखक की कड़ी मेहनत और बरसों की शोध का नतीजा है। बँटवारे में मरनेवालों का सरकारी आँकड़ा केवल छह लाख दर्ज है, लेकिन इस संदर्भ में अगर तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी मोसले पर गौर करें तो वह गैरसरकारी आँकड़ा दस लाख दरशाता है, यानी कि बँटवारे में छह लाख नहीं, बल्कि दस लाख लोग मारे गए। गौरतलब है कि न पहले और न ही बाद में, इतना बड़ा खून-खराबा और बर्बरता दुनिया के किसी भी देश में नहीं हुई।
अब एक बड़ा सवाल उठता है कि देश का विभाजन आखिर सुनिश्चित कैसे हुआ? क्या जिन्ना का द्विराष्ट्रवाद इसके लिए जिम्मेदार था या फिर अंग्रेजों की कुटिल नीति? क्या गांधी और कांग्रेस के खून में बुनियादी रूप से मुसलिम तुष्टीकरण का बीज विद्यमान था, जिसने अंततः बँटवारे का एक खूनी वटवृक्ष तैयार किया और जिसकी तपिश आज भी ठंडी नहीं हो पाई है।
विभाजन की त्रासदी और विभीषिका का वर्णन करती पुस्तक, जो पाठक को उद्वेलित कर देगी।

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Munish Tripathi

मुनीश त्रिपाठी
जन्म : दिबियापुर कस्बे, औरैया  (उ.प्र.) में।
शिक्षा : भौतिक शास्त्र, इतिहास व जनसंचार में परास्नातक करने के पश्चात् पत्रकारिता। पिछले 15 बरसों में देश के कई प्रतिष्ठित और राष्ट्रीय न्यूज चैनलों के लिए काम किया।
कृतित्व : उत्तर प्रदेश के कई मुख्य जनपदों में अनेक घोटालों को उजागर किया। लेखक ने अपनी पुस्तक के जरिए दशकों पहले हुए विभाजन के नासूर को खोदकर उसके स्याह उजाले में हवा के रुख के साथ बहती भारतीय सियासत को आईना दिखाने की कोशिश की है। भीड़ में चलकर भी अपनी अलग आवाज देश के नीति-नियंताओं तक पहुँचाने का प्रयास है यह पुस्तक ‘विभाजन की त्रासदी’।

Weight 0.450 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in
  •  Munish Tripathi
  •  9789384343996
  •  Hindi
  •  Prabhat Prakashan
  •  200

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