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Hindi Books, Prabhat Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sarvagunakar Shrimant Shankardev
भारतभूमि संतों, महात्माओं एवं सिद्ध पुरुषों की लीलाभूमि रही है। उन्होंने दिव्य ईश्वरीय चेतना का साक्षात्कार कर सृष्टि के कल्याण के निमित्त सदाचरण एवं मानवीय आदर्शों का उपदेश दिया। भारतीय संस्कृति का निर्माण ऐसे ही दिव्य पुरुषों के उच्चादर्शों एवं आप्त वचनों का फल है। ऐसे आध्यात्मिक सिद्धपुरुषों का उद्भव प्रत्येक देशकाल में होता रहा है। भारतभूमि के असम प्रांत में 15वीं सदी में जनमे श्रीमंत शंकरदेव ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपनी सुकीर्ति से पूरे पूर्वोत्तर के सांस्कृतिक परिदृश्य में अपने एक शरणिया नामधर्म के द्वारा अभूतपूर्व आलोडऩ एवं जनजागरण पैदा किया।
घोर निराशाजनक परिदृश्य में असम में श्रीमंत शंकरदेव का आविर्भाव हुआ। पूरा देश उस समय भक्ति आंदोलन की उदार एवं पावन रसधारा से आप्लावित हो रहा था। संपूर्ण भारतवर्ष एक सांस्कृतिक प्राणवत्ता की धड़कन से स्पंदित था। श्रीमंत शंकरदेव ने अपनी सुदीर्घ साधना, विराट प्रतिभा एवं प्रगाढ़ जनसंपर्क से युगीन संकट की प्रकृति एवं दिशा को समझ लिया। समाधान सूत्र के रूप में उन्होंने वैष्णववाद की परंपरागत अवधारणाओं में नवीन तत्त्वों एवं मान्यताओं का अभिनिवेश किया।
श्रीमंत शंकरदेव मात्र एक आध्यात्मिक गुरु ही नहीं थे, वरन एक श्रेष्ठ कवि, साहित्यकार, चित्रकार, नाटय व्यक्तित्व, उद्यमकर्ता, संगठक और सच्चे अर्थों में एक जननायक थे।”
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Aryan Books International, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Sati: Evangelicals, Baptist Missionaries, and the Changing Colonial Discourse
-10%Aryan Books International, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासSati: Evangelicals, Baptist Missionaries, and the Changing Colonial Discourse
Meenakshi is a meticulous professional historian, she quotes all the relevant sources, with descriptions of Sati from the ancient through the medieval to the modern period. She adds the full text of the relevant British and Republican laws and of Lord Wiliam Bentinck’s Minute on Sati (1829), that led to the prohibition on Sati. This book makes the whole array of primary sources readily accessible, so from now on, it will be an indispensible reference for all debates on Sati.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Satrangi Sanskriti
सतरंगी संस्कृति (राजस्थानी निबंध संग्रै)
accordingly ‘सतरंगी संस्कृति’ सिरैनाम वाळो ओ निबंध संग्रै सुधी समालोचक संग्राम सिंह सोढा रै ऊंडै अनुभव, गहन चिंतन, सतत स्वाध्याय अर सोझीवान दीठ सूं गूंथीज्योड़ो इसो गुण – गजरो जिणमें न्यारी-न्यारी भांत रा 13 निकेवळा सुमनां री सोरम सुधी – पाठक रै अंतस में आणंद उपजावै। आपरी मायड़ भाषा सं अणहद हेत राखणियां कवि, निबंधकार अर समालोचक श्री सोढा बडी खामचाई सूं भाषा, साहित्य, संस्कृति, लोक, परंपरा, विकास, वैभव अर अणगिण उदाहरणां सूं आपरी बात नै पुख्ताऊ अंजाम देवै। Satrangi Sanskriti
निबंध-संग्रै री विषै सामग्री इण बात री साख भरै कै रचनाकार आपरै लोक अर साहित्य री वाचिक परंपरा सूं गैरो जुड़ाव राखै। निबंधकार आपरी हरेक थापना नैं किणी न किणी, लोकप्रसिद्ध कैबत या दूहै सूं प्रमाणित करै। श्री सोढा आछी तरियां जाणै कै राजस्थानी साहित्यकारां उत्कृष्ट रै अभिनंदन अर निकृष्ट रै निंदण री आखड़ी पाळी है। इण साहित्य रौ प्रयोजन अकदम साफ रैयो है कै जको स्वतंत्रता से पुजारी है, स्वाभिमानी है, नीति- न्याय रो पखधर है, अनीति अर अन्याय रो विरोधी धरम रो रखवाळो है, उणरी सोभा सवाई हुणी चाईजै।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Satrangini
‘सतरंगिनी’ में एक गीत है और उनचास कविताएं। इन्हें बच्चनजी ने सात रंगों के शीर्षकों में विभाजित किया है। प्रत्येक रंग की कविताएं अपनी विशिष्टता लिये हुए हैं और इनमें से कई कविताएं आज लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच चुकी हैं। बच्चनजी ने ‘सतरंगिनी’ की भूमिका में अपने पाठकों से अनुरोध किया है कि वे उनकी मनोभूमि को अच्छी तरह समझने और इन कविताओं का पूरा आनंद लेने के लिए ‘सतरंगिनी’ से पहले प्रकाशित उनकी रचनाओं, ‘निशा निमंत्रण’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अन्तर’, ‘मधुबाला’, ‘मधुशाला’ और ‘मधुकलश’ को भी अवश्य पढ़ें।
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Osho Media International, ओशो साहित्य
SATYA KA DARSHAN
प्रेम है दान स्वयं का आपको पता है ईश्वर के संबंध में? आप जानते हैं? पहचानते हैं? है भी या नहीं है, दोनों बातें आपको पता नहीं हैं। लेकिन बचपन से हम कुछ सुन रहे हैं। और उस सुने को हमने स्वीकार कर लिया है। और उस स्वीकृति पर ही हमारी खोज की मृत्यु हो गई, हत्या हो गई। जो आदमी स्वीकार कर लेता है, वह आदमी अंधा हो गया। ओशो
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य
Satyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
-5%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्यSatyarth Prakash (By Pt. Bhagvatdutt)
सन् 1925 में श्री गोविन्दराम जी ने अनेक विषेषताओं से युक्त सत्यार्थ प्रकाष का प्रथम संस्करण ऋषि जन्म शताब्दी के अवसर पर कलकत्ता से प्रकाषित किया था।
उसके पष्चात सन् 1962 में पं. भगवद्दत्त जी रिसर्च स्कॉलर ने उपयोगी शब्द सूचियों, प्रमाण सूचियों परिषिष्ठों आदि अनेक विषेषताओं के साथ सत्यार्थ प्रकाष का सम्पादन किया।
पं. भगवद्दत्त जी द्वारा सम्पादित इस सत्यार्थ प्रकाष में पाठकों की सुविधा, जिज्ञासा की शांति एवम् शोध में लगे व्यक्तियों के लिए अनेक विषिष्टताएं उपलब्ध हैं।
इस संस्करण में ऋषि की मूल प्रति से भी मिलान का यथासम्भव प्रयास किया है, तथा अनेक अषुद्धियों को भी सुधारा गया है। सभी पैराग्राफों पर क्रमांक देना इसकी एक अनूठी विषेषता है।
इन सब विषेषताओं के लिए पं. भगवद्दत्त जी, पं. जयदेव विद्यालंकार, पं. रामचन्द्र देहलवी, पं. वीरसेन वेदश्रमी, स्वामी जगदीष्वरानन्द तथा पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी के प्रति हम आभार प्रकट करते हैं।
पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने कहा था कि ‘‘मैंने सत्यार्थ प्रकाष को 18 बार पढ़ा है, जितनी बार भी मैंने इसे पढ़ा, मुझे प्रत्येक बार नया-नया ज्ञान प्रकाष मिला है
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Savarkar Samagra (Set of Ten Vols.)
-17%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSavarkar Samagra (Set of Ten Vols.)
‘सावरकर’ शब्द साहस, शौर्य, पराक्रम और राष्ट्रभक्ति का पर्याय है। क्रांतिकारी इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित स्वातंत्र्यवीर सावरकर का समूचा व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों से संपन्न था । मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता व अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्ट करने का आग्रह करनेवाले महान् द्रष्टा; ‘ गीता ‘ के कर्मयोग सिद्धांत को अपने जीवन में आचरित करनेवाले अद्भुत कर्मचोगी; अनादि- अनंत परमात्मा का प्राणमय प्रस्कुरण स्वयं के अंदर सदैव अनुभव करते हुए अंदमान जेल की यातनाओं को धैर्यपूर्वक सहनेवाले महान् दार्शनिक, अपने तेजस्वी विचारों से सहस्रों श्रोताओं को झकझोर देने और उन्हें सम्मोहित करनेवाले अद्भुत वक्ता तथा कविता, उपन्यास, कहानी, चरित्र, आत्मकथा, इतिहास, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में उच्च कोटि के साहित्य की रचना करनेवाले प्रतिभाशाली साहित्यकार थे स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ।
स्वतंत्रता-संग्राम एवं समाज-सुधार जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कार्य करनेवाला व्यक्ति उच्च कोटि का साहित्यकार भी हो, यह अपवाद है- और इस अपवाद के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वीर सावरकर ।
भारतीय वाड्मय में उनके साहित्य का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है; किंतु वह अधिकांश मराठी में उपलब्ध होने के कारण इस महान् साहित्यकार के अप्रतिम योगदान के बारे में अन्य भारतीय भाषाओं के पाठक अधिक परिचित नहीं हैं ।
वीर सावरकर के चिर प्रतीक्षित समग्र साहित्य का प्रकाशन हिंदी जगत् के लिए गौरव की बात है ।SKU: n/a -
Hindi Books, Penguin, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Savarkar: A Contested Legacy from A Forgotten Past
-10%Hindi Books, Penguin, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणSavarkar: A Contested Legacy from A Forgotten Past
As the intellectual fountainhead of the ideology of Hindutva, which is in political ascendancy in India today, Vinayak Damodar Savarkar is undoubtedly one of the most contentious political thinkers and leaders of the twentieth century. From the heady days of revolution and generating international support for the cause of India’s freedom as a law student in London, Savarkar found himself arrested, unfairly tried for sedition, transported and incarcerated at the Cellular Jail, in the Andamans, for over a decade, where he underwent unimaginable torture.
Decades after his death, Savarkar continues to uniquely influence India’s political scenario. An optimistic advocate of Hindu-Muslim unity in his treatise on the 1857 War of Independence, what was it that transformed him into a proponent of ‘Hindutva’? What was it that transformed him in the Cellular Jail to a proponent of ‘Hindutva’, which viewed Muslims with suspicion?
This two-volume biography series, exploring a vast range of original archival documents from across India and outside it, in English and several Indian languages, historian Vikram Sampath brings to light the life and works of Vinayak Damodar Savarkar, one of the most contentious political thinkers and leaders of the twentieth century.
Comprehensive, definitive and absolutely unputdownable, this two-volume biography opens a window to previously unknown untold life of Vinayak Damodar Savarkar.
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English Books, Rupa Publications India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Saving India from Indira: The Untold Story of Emergency
-15%English Books, Rupa Publications India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Saving India from Indira: The Untold Story of Emergency
‘Goyal was not merely witness to history but an active participant in its making.’ —Arun Jaitley During the nearly seventy-two years since Independence, India has deviated from democratic life only once—during the twenty-one months of Indira Gandhi’s Emergency. Saving India from Indira describes the events leading up to, and during the darkest days of, democratic India, as they actually unfolded. Recounted by J.P. Goyal, a key lawyer for Raj Narain in the famous election case against Mrs Gandhi that led to the imposition of the so-called National Emergency on 25 June 1975 at the behest of then prime minister Indira Gandhi, this no-holdsbarred account of a crucial insider describes the twists and turns in this case in the Allahabad High Court and the Supreme Court of India. It gives a blow-by-blow account of the battle that Goyal, along with a battery of lawyers, waged in the Supreme Court to defend the Constitution of India against the amendments that could alter its basic structure. This gripping narrative includes an account of Goyal’s meetings with political leaders in jail, including Jayaprakash Narayan and Raj Narain, and reveals many hitherto unknown facts that Goyal was privy to. Saving India from Indira is a sharp memoir of one of those few who fought against the misdeeds of the dark era and recorded events for posterity.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, कहानियां
Seengawale Gadhe
“प्रेम जनमेजय से मिलकर, बात कर, कभी नहीं लगता कि ये व्यंग्य विधा की राह के पहुँचे हुए मुसाफिर हैं। ऐसा ही श्रीलाल शुक्लजी के साथ था। वे कभी बातचीत में व्यंग्य नामक हथियार का इस्तेमाल नहीं करते थे। ये ऐसे व्यंग्य-गुरु हैं, जो अपनी तिरछी नजर पर मृदुता, मस्ती और मितभाषिता का चश्मा लगाए रहते हैं।
कुछ लोगों का खयाल है कि व्यंग्य लेखक एक किस्म के कार्टूनकार होते हैं, जिन्हें सारी दुनिया आँकी-बाँकी दिखाई देती है। एकदम गलत धारणा है यह। जैसे कविता, कहानी, उपन्यास नाटक और निबंध, साहित्य की विधाएँ हैं, वैसे ही व्यंग्य तथा हास्य, व्यंग्य की विधाएँ हैं। कमजोर हाथों में पडक़र ये विद्रूप और फूहड़ हँसी-ठट्ठा का रूप लेती होंगी, लेकिन प्रेम जनमेजय उन इलाकों में जाते ही नहीं हैं। वे हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल की परंपरा में व्यंग्य विधा में संलग्न हैं। उनके लिए व्यंग्य एक गंभीर कार्य और चिंतन है, जिससे वे समाज की विसंगतियों और समय के अंतर्विरोधों पर रोशनी डाल सकें। परिवर्तन काल सुविधा के साथ-साथ सक्रांति काल भी लाता है।
प्रेम जनमेजय ने बहुत समझदारी और गहन अध्ययन से अपनी साहित्य-विधा चुनी है। व्यंग्य विधा पर चाहे जितना हमला किया जाए, सब जानते हैं कि बिना व्यंग्य-विनोद के कोई भी रचना पठनीय नहीं हो सकती। प्रेमजी में एक कथातत्त्व समानांतर चलता है। इसी कथा-जाल में वे धीरे से अपना काम कर जाते हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Senapati Tatya Tope
जिन दिनों श्रीमती रंजना चितले वीर तात्या टोपे के संदर्भ तलाश रही थीं, तब यह प्रश्न मेरे मन में बार-बार आया कि इन्होंने शोधात्मक लेखन के लिए तात्या टोपे को ही क्यों चुना? जब मैंने रंजनाजी के परिवार के बारे में जाना तो मुझे पता चला कि इनके परिवार का तात्या टोपे और तात्या टोपे की जीवनधारा से पीढि़यों का नाता है। रंजनाजी के पूर्वज तेलंगाना के मूल निवासी थे। अन्य लोगों के साथ इनके पूर्वजों को
भी छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू पदपादशाही के सशक्तीकरण के काम में लगाया था। उन्हें सात पीढ़ी पहले पाँच गाँव की जागीर देकर पीलूखेड़ी में बसाया गया था। पारिवारिक वृत्तांत के अनुसार 1857 की क्रांति के अमर नायक नाना साहब पेशवा ने अपने जीवन की अंतिम साँस इसी स्थान पर ली थी। वहाँ उनकी समाधि बनी है। इसी परिवार ने अंतिम समय में उनकी देखभाल की थी। सिपाही बहादुर सरकार के क्रांतिकारी आंदोलन में इस परिवार ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और 1857 की क्रांति के सेनानियों को पीलूखेड़ी के शास्त्री परिवार से रोटियाँ बनकर जाती थीं। इसी शास्त्री परिवार में जन्मी हैं रंजना, जो विवाह के बाद चितले हो गईं। मुझे लगता है, ऐसी ही प्रज्ञा स्मृति से रंजनाजी वीर तात्या टोपे के व्यक्तित्व अन्वेषण में लग गईं। इस पुस्तक में उन्होंने वे तथ्य जुटाए हैं, जो तात्या टोपे से संबंधित अन्य विवरणों में या तो मिलते नहीं या सर्वदा उपेक्षित रहे।
—डॉ. सुरेश मिश्र
इतिहासकार एवं लेखकSKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Shadadarshnam
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिShadadarshnam
मैं कौन हूं? कहाँ से आया हूं? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? आनंद की प्रप्ति कैसे हो सकती है? परमात्मा की उपलब्धि कैसे हो सकती है?
आदि अनेक प्रश्न मनुष्य के मष्तिष्क में चक्कर काटते रहते हैं। तत्त्वदर्शियों के मत में मनुष्य को इन विषयों का तत्वज्ञान हो सकता है। इसी तत्वज्ञान को भारतीय मनीषियों-चिंतकों ने ‘दर्शन‘ की संज्ञा प्रदान की है।
तत्वज्ञान होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डालते। तत्वज्ञान मनुष्य को कर्म-बंधन से छुड़ा, प्रकृति और पुरुष का विवेक कराकर मानव-जीवन के चरम लक्ष्य-मोक्ष तक पहुँचा देता है।
भारतीय दर्शनों की विशेषता है उनका व्यवहारिक पक्ष, उनका आशावाद और नैतिक व्यवस्था में विश्वास, कर्म-सिद्धांत और मोक्षमार्ग का निर्देश।
प्रस्तुत पुस्तक में व्याख्या नहीं है, जिन्हें विस्तृत व्याख्या पढ़नी हो वे आचार्य उदयवीर शास्त्री जी के ग्रंथ पढ़ें। हाँ इस ग्रंथ को पढ़ने पर भी दर्शन के अनेक रहस्य समझ आएंगे।SKU: n/a -
Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Shadi
वसन्त के दिन अपनी पूर्ववत् शानो-शौकत से बीत चले। प्रसन्नमुख एवं प्राणदायक वसन्त के सूर्य ने अपना मुँह उघाड़ कर लोगों को अपने आने की सूचना दी। आसमान में काले बादलों की गरज और बिजली की चमक से भी इसकी सूचना मिली। अनेक तरह की चिड़ियों ने अपने मधुर गानों से सब तरफ़ आनन्द और उल्लास फैलाया, जो कि रंग-बिरंगे परोंवाली अपनी पोशाकें पहने दूर-दूर से आकर कू-कू, चः-चः, चिक्-चिक् करती कानों को तृप्त कर रही थीं। बादाम के दरख्तों में फूले हुए सफ़ेद फूल कपास के फूलों से होड़ ले रहे थे कि कौन अधिक उज्वल है। ज़मीन में सब जगह हरियाली की नर्म मखमल बिछी हुई थी। अब खेती का काम शुरू हुआ, जिसमें कलखोजची अपने जोशो-खरोश को बड़ी उमंग से दिखला रहे थे।… मार्च के आरम्भ का यह दिन बहुत ही साफ़ और सुन्दर था। आसमान मानो चुने हुए कपासों के लम्बे-चौड़े खेतों पर से, एक खलिहान से दूसरे खलिहान तक फैला था; और कपास के सफ़ेद ढेरों की तरह सफ़ेद बादलों के झुरमुट में से कभी छिपता कभी प्रकट दिखाई पड़ता था। फूलों की खुशबू से सुगन्धित और चिड़ियों की चहचहाहट से गुंजायमान वह वातावरण दिल को सन्तुष्ट करनेवाला था। शादी के कमरे की खिड़की के बाहरवाले फूल हरे पत्तों से लदे, आँखों को बहुत सुन्दर मालूम हो रहे थे, जिनमें नयी कलियाँ सिर उठाये खड़ी थीं। जिनके ऊपर रात की ओस की बूंदें मोती की तरह चमकती हुई गुलाब की पंखुड़ियों पर गुलाबी दीखती थीं। खिड़की खुली हुई थी, फूल से भरा हुआ गुलदस्ता खिड़की के पास रखा हुआ था, मधुमक्खियाँ बारी-बारी। से बैठकर मधसंचय कर रही थीं। दूर किसी खेत में से। ट्रैक्टर की घरघराहट सुनाई दे रही थी!
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Shaharnama Faizabad
शहरनामा फ़ैज़ाबाद’ कहीं न कहीं आधुनिक ढंग से इस पुराने शहर की परम्परा और संस्कृति को नये सन्दर्भों में देखने का एक रीडर या गाइड सरीखा है, जिसे हम ‘सांस्कृतिक-गज़ेटियर’ की तरह भी बरत सकते हैं। यह पुस्तक जो पूरी तरह इतिहास में प्रवेश करके वर्तमान तक लौटती है, इसमें तमाम ऐसे रास्ते और पगडण्डियाँ आसानी से देखी जा सकती हैं, जिनसे होकर हम अपनी सभ्यता में रचे-बसे पुराने शहर का कोई ऐतिहासिक पाठ बना सकते हैं। ऐसा पाठ, जो वर्तमान और अतीत के किसी निर्णायक बिन्दु पर आपकी जवाबदेही तय करता है। फ़ैज़ाबाद को यह गौरव हासिल रहा है कि इस शहर ने नवाबी संस्कृति के आगाज़ और यहीं से उसके प्रस्थान का बदलता हुआ दौर देखा है। यह वह शहर है, जहाँ अपने सारे गंगा-जमुनी प्रतीकों के साथ रहते हुए, हिन्दुओं की आस्था-नगरी व सप्तपुरियों में से एक अयोध्या भी स्थित है। यह फ़ैज़ाबाद ही है, जिसने 1857 ई. के पहले स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए बड़ी सार्थक ज़मीन उपलब्ध करायी है और बाद में आज़ादी की लड़ाई के दौर में क्रान्तिकारियों के रूप में हमें अधिसंख्य नायक दिये हैं।
‘शहरनामा फ़ैज़ाबाद’ को लेकर कुछ प्रमुख बिन्दुओं की ओर भी ध्यान देना आवश्यक है, जिसके आधार पर ही इस पूरे ग्रन्थ का निर्माण किया गया है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि फ़ैज़ाबाद शहर का जो ऐतिहासिक मूल्यांकन किया गया है, उसके लिए इतिहास-निर्धारण की तिथि वहाँ से ली गयी है, जब नवाब सआदत ख़ाँ ‘बुरहान-उल-मुल्क’, 1722 ई. में इस शहर की आधारशिला अवध की राजधानी के तौर पर रखते हैं। अतः इस पुस्तक में विवेचित सामग्री, उसी वर्ष से अपना अस्तित्व पाती है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shaheed-E-Watan Rajguru
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी शिवराम हरि राजगुरु का जन्म सन् 1908 में पुणे जिले के खेड़ा गाँव में हुआ था। उनके बाल्यकाल में ही पिता का निधन हो जाने के कारण बहुत छोटी उम्र में ही वे विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने वाराणसी आ गए थे। वहीं उन्होंने हिंदू धर्म-ग्रंथों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही, ‘लघुसिद्धांत कौमुदी’ जैसा क्लिष्ट ग्रंथ बहुत कम समय में कंठस्थ कर लिया था। राजगुरु को कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के वे बड़े प्रशंसक थे।
वाराणसी में राजगुरु का संपर्क अनेक क्रांतिकारियों से हुआ। वे चंद्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनके संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए। आजाद के संगठन के अंदर उन्हें ‘रघुनाथ’ के छद्म नाम से जाना जाता था। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। सांडर्स का वध करने में उन्होंने भगतसिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया, जबकि चंद्रशेखर आजाद ने छाया की भाँति उन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की।
23 मार्च, 1939 को भारत माँ के वीर सपूत राजगुरु भगतसिंह व सुखदेव के साथ लाहौर की सेंट्रल जेल में फाँसी पर झूलकर मातृभूमि पर बलिदान हो गए।SKU: n/a -
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Shakuni
महाभारत एक ऐसी महागाथा है, जो कई मायनों में अद्भुत है। इसका हरेक पात्र अपने आप में बेहद अहम है और उसका अपना दृष्टिकोण है। यही वजह है कि महाभारत की मूल कथा को आधार बनाकर कथाकारों ने श्रीकृष्ण से लेकर भीष्म, कुन्ती, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, कर्ण, द्रौपदी, गान्धारी, दुर्योधन, द्रोण, अश्वत्थामा आदि के चरित्र पर आधारित कथा व उपन्यास लिखे हैं। लेकिन इस महागाथा के एक बेहद अहम पात्र ‘शकुनि’ की न केवल अनदेखी की गयी है वरन् उसका चित्रण केवल और केवल खलनायक के रूप में ही किया गया है। हर खलनायक में एक नायक छुपा होता है, उसी प्रकार शकुनि के चरित्र का भी यदि सूक्ष्म अवलोकन किया जाये तो कई ऐसी बातें उभरकर आती हैं जो न केवल उसके चरित्र की नकारात्मकता को कम करती हैं, बल्कि कई बार तो उससे सहानुभूति भी होने लगती है। ये उपन्यास शकुनि को नायक के रूप में प्रस्तुत नहीं करता वरन् महाभारत की अहम घटनाओं को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखने का एक प्रयास है।
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Akshaya Prakashan, Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास
Shankar Sharan Hindi Collection Book
AUTHOR: Shankar Sharan
- Sangh Parivar ki Rajneeti: Ek Hindu Aalochana
- Bharat Mein Parchalit Secularvad
- Adhyatmika Akramana aur Ghara Vapasi
- Bharat par Karl Marx aur Marxvadi Itihas Lekhan
- Gandhi Ke Brahmacharya Prayog
- Islam Aur Communism (PB)
- Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
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Vani Prakashan, उपन्यास
Sharmishtha
अणुशक्ति की प्रखर लेखनी से हम सब उनकी कुछ प्रकाशित कहानियों और कविताओं के चलते परिचित हैं। पहली पुस्तक कृति के रूप में किसी युवा लेखक का सीधा उपन्यास प्रकाश में आये तो यह साहस और प्रशंसा का विषय है क्योंकि उपन्यास विधा ऐसी विधा है जिसे साधना या तो अभ्यास के साथ आता है, या यह विधा साधने की प्रतिभा आप में प्रकृति प्रदत्त होती है। अणुशक्ति ने दूसरा साहस किया है पौराणिक-मिथकीय पात्र चुनकर। वह भी ऐसा पात्र जिसके आस-पास प्रकाशित पात्र पहले से हैं जिन पर कथा, कविताएँ रचे जा चुके हैं। ‘शर्मिष्ठा’ इन चमकते सौर मण्डल के सदस्यों ययाति, पुरुरवा, देवयानी और शुक्राचार्य के बीच एक संकोची चन्द्र रही है। इसे अपने जीवनीपरक उपन्यास के माध्यम से प्रकाश में लाने का सार्थक प्रयास किया है अणुशक्ति ने। शुक्राचार्य की पुत्री, घमण्डी, महत्वाकांक्षी और ईर्ष्यालु देवयानी के समक्ष असुरराज वृषपर्वा की पुत्री राजकुमारी शर्मिष्ठा सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी अपने निश्छल व्यक्तित्व के चलते राजकीय जीवन और स्वतन्त्रता हार जाती है और देवयानी की दासी बनकर रहती है। फिर चाहे ययाति से उसे प्रेम और पुत्र प्राप्ति हो । हस्तिनापुर तो वही है न, जहाँ से कोई स्त्री आहत मर्म लिए नहीं लौटती। शर्मिष्ठा के जीवन-संघर्ष को बड़े सुन्दर ढंग से पिरोया गया है इस उपन्यास में। भाषा इतनी सारगर्भित है कि कितना बड़ा कालखण्ड, परिवेशों, कितने-कितने चरित्रों और घटनाओं को सहज ही इस उपन्यास के कलेवर में समेट लेती है। अणुशक्ति ने पौराणिक अतीत से एक पात्र शर्मिष्ठा को चुनकर एक रोचक और पठनीय उपन्यास रचा है.जिसका कथ्य गहरे कहीं समकालीन प्रवृत्तियों पर भी खरा उतरता है।
अणुशक्ति की प्रखर लेखनी से हम सब उनकी कुछ प्रकाशित कहानियों और कविताओं के चलते परिचित हैं। पहली पुस्तक कृति के रूप में किसी युवा लेखक का सीधा उपन्यास प्रकाश में आये तो यह साहस और प्रशंसा का विषय है क्योंकि उपन्यास विधा ऐसी विधा है जिसे साधना या तो अभ्यास के साथ आता है, या यह विधा साधने की प्रतिभा आप में प्रकृति प्रदत्त होती है। अणुशक्ति ने दूसरा साहस किया है पौराणिक-मिथकीय पात्र चुनकर। वह भी ऐसा पात्र जिसके आस-पास प्रकाशित पात्र पहले से हैं जिन पर कथा, कविताएँ रचे जा चुके हैं।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shastriji Ke Prerak Prasang
कथा-कहानियाँ सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य का मार्ग-दर्शन करती रही हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियाँ प्राचीन काल से हमारा मार्गदर्शन करती चली आ रही हैं।
प्रत्येक कहानी के लिए कथावस्तु का होना अनिवार्य है, क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहानी में केवल मनोरंजन ही नहीं होता, उसमें कोई उद्देश्य और संदेश भी निहित होता है।
जीवन में सादगी और सरलता का बहुत महत्त्व है। हमारी परंपरा में वर्णित है ‘सादा जीवन, उच्च विचार’। सादगी हमारे व्यक्तित्व को जो आभा प्रदान करती है, वह आडंबर या दिखावा नहीं। यह सादगी हमें आत्मविश्वास, शक्ति और आत्मबल देती है। इन्हीं जीवनमूल्य को समेटे, सादगी की महत्ता बताती प्रेरणाप्रद कहानियों का संकलन।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shatabdi Ke Dhalte Varshon Mein
प्रश्नाकुल अनुभव से जन्मे निर्मल वर्मा के ये निबन्ध पिछले चार दशकों के दौरान लिखे गये निबन्धों और लेखों का स्वयं उनके द्वारा किया गया चयन है। इनमें स्वयं अपने बारे में और साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता के बारे में रचनाकार के आत्ममंथन की प्रक्रिया ने रूपाकार ग्रहण किया है। एक ऐसी पीड़ित किन्तु अपरिहार्य प्रक्रिया जो ‘अन्य’ के सम्पर्क में आने पर ही शुरू होती है।…ये निबन्ध ‘अन्य’ से कायम किये गये उस नये रिश्ते की भी पहचान कराते हैं, जिसमें आत्मनिर्वासन की जगह आत्मबोध रहता है। समाज, संस्कृति और धर्म आदि शुद्ध साहित्यिक प्रश्नों के अलावा कुछ विशिष्ट रचनाकारों पर भी निर्मल वर्मा ने दृष्टि केन्द्रित की है। जीवन जगत के इतने कगारों को उनकी व्यापकता में छूते हुए ये निबन्ध अपने पाट की चौड़ाई से ही नहीं, मोती निकाल लाने की लालसा में गहरे डूबने के प्रयास से भी पाठक को आकर्षित और प्रभावित करते हैं। बीसवीं शताब्दी के वैचारिक उतार-चढ़ावों को पारदर्शी दृष्टि से अंकित करने वाले ये निबन्ध स्वयं निर्मल वर्मा की लम्बी चिन्तन-यात्रा के विभिन्न पड़ावों को पहली बार एक सम्पूर्ण संकलन में समेटने का प्रयास हैं।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Shatapatha Brahmana in three volumes
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिShatapatha Brahmana in three volumes
प्रस्तुत ग्रन्थ में वेदार्थ और कर्मकाण्ड का अत्यन्त प्रसिद्ध, अति प्राचीन ग्रन्थ, महर्षि याज्ञवल्क्य और शाण्डिल्य मुनि की कृति मूल ग्रन्थ में 14 काण्ड हैं। 100 अध्याय और 7625 कण्डिकायें हैं। शतपथ ब्राहाण की दो शाखायें प्रसिद्ध हैं- माध्यन्दिनीय शाखा और काण्व शाखा है। प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद
माध्यन्दिनीय शाखा का है।शतपथ ब्राहाण का अन्तिम काण्ड बृहदारण्यक उपनिषद् के नाम से विख्यात है, जो अध्यात्म की सर्वश्रेष्ठ रचना है। डॉ0 अलबेर्त वेबेर ने बड़े परिश्रम से माध्यन्दिनी शाखा के शतपथ ब्राहाण का स्वर-संयुक्त संस्करण बर्लिन से प्रकाषित, सन् 1849 में किया था, उसे ही हिन्दी अनुवाद के साथ दिया जा रहा है। स्वामी सत्यप्रकाष सरस्वती ने शतपथ ब्राहाण का सांस्कृतिक अध्ययन विस्तारपूर्वक अेग्रेजी में भी किया है।
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