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Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Sankshipt Shiv-Puran, Deluxe Edition (Code1468)
पाठकों के आग्रह को देखते हुए पूर्व प्रकाशित शिवपुराण को अब मोटे एवं अच्छे क्वालिटी के कागज पर बड़े टाइप, आकर्षक लेमिनेटेड चित्रावरण, उपासना योग्य सुन्दर रंगीन चित्र आदि अनेक विशेषताओं से युक्त कर के प्रकाशित किया गया है। भगवान् शिव के कल्याणकारी स्वरूप एवं विस्तृत लीलाओं का परिचायक यह पुराण अनेक रहस्यमय कथाओं, उपासना-पद्धति एवं तत्त्वज्ञान का असीम सागर है।
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Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Sankshipt Skand Puran
यह पुराण कलेवर की दृष्टि से सबसे बड़ा है तथा इसमें लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के अनन्त उपदेश भरे हैं। इसमें धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्ति के सुन्दर विवेचन के साथ अनेकों साधु-महात्माओं के सुन्दर चरित्र पिरोये गये हैं। आज भी इसमें वर्णित आचारों, पद्धतियों के दर्शन हिन्दू समाज के घर-घर में किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें भगवान् शिव की महिमा, सती-चरित्र, शिव-पार्वती विवाह, कार्तिकेय जन्म, तारकासुर वध आदि का मनोहर वर्णन है। सचित्र, सजिल्द।
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Gita Press, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Sankshipt Yog Vasishtha
योगवासिष्ठ के इस संक्षिप्त रूपान्तर में जगत् की असत्ता और परमात्मसत्ता का विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से प्रतिपादन है। पुरुषार्थ एवं तत्त्व-ज्ञान के निरूपण के साथ-साथ इसमें शास्त्रोक्त सदाचार, त्याग-वैराग्ययुक्त सत्कर्म और आदर्श व्यवहार आदि पर भी सूक्ष्म विवेचन है।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Religious & Spiritual Literature, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanskar Chandrika
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Religious & Spiritual Literature, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanskar Chandrika
संस्कार विधि की वैज्ञानिक व्याख्या-संस्कार विधि महर्षि दयानंद की व्यवहारिक विचारधारा अर्थात् क्रियात्मक पक्ष है। इस सूत्र को लेकर हमने इस ग्रंथ में संस्कार विधि की व्याख्या की है।
इस व्याख्या-ग्रंथ का लक्ष्य संस्कार विधि की आत्मा को समझने का प्रयत्न करना है। इसलिए इसे संस्कार विधि की वैज्ञानिक व्याख्या कहा है। हमने प्रत्येक संस्कार को दो भागो में बाँटा है।
विवेचनात्मक भाग तथा मंत्र-अर्थ सहित विधि भाग। विवेचनात्मक भाग में उस संस्कार के संबंध में वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टि से विचार किया गया है। विधि भाग में संस्कार की विधि को भिन्न-भिन्न शीर्षक देकर स्पष्ट तथा सरल रूप में लिखा गया है, ताकि संस्कार कराते हुए कोई कठिनाई न आए। आईए संस्कार विधि की इस वैज्ञानिक, व्यवहारिक व्याख्या का रसास्वादन करें।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskratik Rajasthan
सांस्कृतिक राजस्थान
रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत की कहानियों में जिस प्रकार राजस्थान की आत्मा का असली चित्र उभर कर सामने आता है उसी प्रकार उनके निबन्धों में राजस्थानी संस्कृति के हृदयस्पर्शी शब्द चित्र समाहित है। accordingly ‘सांस्कृतिक राजस्थान’ अनुभव के ठोस सत्य के आधार पर लिखी गई पुस्तक है, जैसा कि स्वयं लेखिका ने स्पष्ट किया है “जो कुछ लिखा है उसका बहुत कुछ हिस्सा मेरा देखा हुआ है। मैं उसमें से गुजरी हूँ। बहुत बड़ा हिस्सा वह है जो मेरे परिजनों के अपने अनुभव है, बाकी का हिस्सा वह है जो हमें बचपन में शिक्षा के आधार पर सिखाया गया, समझाया गया।” Sanskratik Rajasthan Laxmi Kumari (Cultural Rajasthan)
प्रस्तुत ग्रंथ की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता है लेखिका रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत का निष्पक्ष लेखन “बिना लाग-लपेट के पक्षपातहीन होकर सत्य के रूप में लिखा है और तथ्यों को तथ्य की भांति।” ठोस आधार और निष्पक्ष भाव से लिखे गये ‘सांस्कृतिक राजस्थान’ के हमारे त्यौहार, रजवाड़ी गीत, बात और बात कहने की कला, सांस्कृतिक धरोहर, हमारे आमोद-प्रमोद, लोकगीत मानव जीवन में अमृत के समान तथा राजस्थान की समन्वित संस्कृति, निबन्ध नवीन शोध जैसे प्रभावशाली है।
रानी लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत की ये पुस्तकें राजस्थान तथा राजस्थानी की कहानियाँ, कथाएँ, बातां, कला, संस्कृति व परम्परा को जानने का एक सुगम स्रोत हैं। राजस्थान में ‘बात’ (कहानी) कहने की अपनी शैली है। वह शैली अनूठी है और परम्पराओं से परिपूर्ण है।
भारत में राजस्थान रो जो महत्वपूर्ण स्थान है वस्यो ही स्थान भारतीय भासावां में राजस्थानी भाषा रो है। as well as राजस्थानी रा एक एक सबद रे लारे एक एक रणखेत बोले, पीढियां रो पराकरम झांके। राजस्थानी भासा राजस्थान री धरती अर इतिहास री तरै हीज सबळ नै क्षमतावान है। लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत री कहाणियां री अेक खास घसक आ क उणां मे राजस्थान रै कण कण री आतमा पलका मारै।
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English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskrit Non-Translatables
-10%English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskrit Non-Translatables
Sanskrit Non-Translatable is a path-breaking and audacious attempt at Sanskritizing the English language and enriching it with powerful Sanskrit words. It continues the original and innovative idea of non- translatability of Sanskrit, first introduced in the book, Being Different. For English readers, this should be the starting point of the movement to resist the digestion of Sanskrit into English, by introducing loanwords into their English vocabulary without translation.
The book presents a thorough mechanism of the Process of digestion and examines the loss of adhikara for Sanskrit because of translating its core ideas into English. The movement launched by this book will resist this and stop the Programs that to Sanskrit into a dead language by translation all its treasures to render it redundant Discuss fifty-four non-transaxle groins genres that are being commonly m translated. It empowers English speak with the knowledge and arguments to introduce these San. words into early speech with confidence. Every lover of India’ Sanskrit will benefit from the book and become a cultural amba door propagating it rough routine communication.
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Akshaya Prakashan, English Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskrit: An Introductory Analysis
-10%Akshaya Prakashan, English Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskrit: An Introductory Analysis
Unlike collection of essays on Indian language and cul ture this collection is ardently concentrated upon the most important language of the globe i.e. Sanskrit. In this collection eight essays are included.
The first essay is authored by Sir William Jones (1746-1794). He was an Anglo-Welsh philologist, a poise Judge on the Supreme Court of Judicature at Fort William in Bengal, and a scholar of ancient India, particularly known for his proposition of the existence of a relationship among European and Indo-Aryan languages, which he coined as Indo-European. In his essay he says that the Sanskrit language, whatever be its antiquity, is of a wonderful structure; more perfect than the Greek, more copious than the Latin and more exquisitely refined than either; yet learning to both of them a stronger affinity, both in the roots of verbs and in the forms of grammar, than could possibly have been produced by accident; so strong, indeed, that no philologer could examine them all three without believing them to have strong from some common source, which, perhaps, no longer exists.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Sanskriti Se Nikalati Rahen
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSanskriti Se Nikalati Rahen
हमारा देश अनेक धर्मों एवं जातियों में विभक्त है और सैकड़ों पंथ अपने-अपने दृष्टिकोण से समाज को सुदृढ़ बनाने में प्रयासरत हैं। पर आज भी हमारा समाज अनेक कुरीतियों से ग्रस्त है और आएदिन मनुष्य लालचवश तंत्र-मंत्र एवं तांत्रिकों के चक्कर में फँसकर धन-हानि क्या, प्राण-हानि तक कर डालता है। बाह्य सुख-सुविधाएँ अधिक-से-अधिक प्राप्त करने की जैसे होड़ लगी हुई है। इन सबके बीच व्यक्ति अपने आपको, अपनी अंतश्चेतना को बिलकुल भुला बैठा है। वह एक यांत्रिक प्राणी बनकर केवल भौतिक साधनों की अंधी दौड़ में दौड़ लगा रहा है।
संस्कृति से निकलती राहेंहमारे प्राचीन वाङ्मय और धर्म-दर्शन से नि:सृत ज्ञान की अजस्र धारा में हमारा प्रवेश कराती है। यह हमारे मनीषियों, संत-महात्माओं और महापुरुषों के वचनों में उच्चारित हमारी गौरवपूर्ण संस्कृति से हमारा परिचय कराती हुई आत्मिक चेतना, जीवन-मूल्य और सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों का मार्ग प्रशस्त करती है।
भारतीय धर्म-दर्शन-संस्कृति की गौरवशाली परंपरा के आधार पर जीवन का सन्मार्ग प्रशस्त करनेवाली रोचक व ज्ञानवर्धक पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskritik Rashtravad Ke Agradoot Pt. Deendayal Upadhyaya
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSanskritik Rashtravad Ke Agradoot Pt. Deendayal Upadhyaya
“पं दीनदयाल उपाध्याय बीसवीं शताब्दी को अपने विलक्षण व्यक्तित्व, अपरिमेय कर्तृत्व एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण से प्रभावित करनेवाले युगद्रष्टा ऋषि, महर्षि एवं ब्रह्मर्षि थे। उपाध्यायजी के पुरुषार्थी जीवन की सबसे बड़ी पहचान है गत्यात्मकता। वे अपने जीवन में कभी कहीं रुके नहीं, झुके नहीं। यही कारण है कि समस्त प्रतिकूलताओं के बीच भी उन्होंने अपने लक्ष्य के दीप को सुरक्षित रखते हुए उदभासित किया। उन्होंने राष्ट्र-प्रेम को सर्वोच्च स्थान देने के साथ-साथ, शिक्षा, साहित्य, शोध, सेवा, संगठन, संस्कृति, साधना सभी के साथ जीवन-मूल्यों को तलाशा, उन्हें जीवन-शैली से जोड़ा।
इस पुस्तक में पंडितजी को एक ऐसे राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिन्होंने न केवल स्वयं भारत को भारत के दृष्टिकोण से जानने-समझने-देखने की दृष्टि विकसित की, अपितु दूसरों को भी वैसी ही संदृष्टि प्रदान की। भारत की चिति एवं प्रकृति के मौलिक एवं सूक्ष्म द्रष्टा थे ‘पं. दीनदयाल उपाध्यायजी, जिन्होंने सही अर्थों में व्यष्टि एवं समष्टि के चिरंतन सत्य एवं सदियों के अनुभव का साक्षात्कार कर, एक ऐसे उदबोध को प्रवृत्त किया, जिसका स्पंदन भारत की माटी में समाहित है।
यह कृति “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अग्रदूत : पं. दीनदयाल उपाध्याय ‘ पंडितजी के विचार पाथेय को जन-जन तक पहुँचाने में निमित्त बनेगी और भारतीय संस्कृति के बिंब, जन-संस्कृति के रूप में वैश्विक धरातल पर नई चेतना को स्फूर्त करेगी; ऐसा दृढ़ विश्वास है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Sanskritik Utthan Ka Marg
आज समाज में जीवन-मूल्य, नैतिकता, पारस्परिकता, परोपकार आदि लुप्तप्राय हो रहे हैं। समसामयिक विषयों पर लिखे गए ये लेख-घटनाएँ-प्रसंग ज्ञानवर्धक हैं। यह सामग्री पाठकों को संस्कारित करेगी और उनमें समाज के प्रति कर्तव्यभाव जाग्रत् करेगी, ऐसा विश्वास है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ का मूलमंत्र हृदयंगम कर अगर हर भारतीय अपना सकारात्मक योगदान करेगा तो निश्चित रूप से भारत पुनः शीर्ष पर पहुँच सकेगा, यह पुस्तक इसी संदेश को प्रसारित करने का उपक्रम है। समाज-जागृति की दिशा में यह सामग्री अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है और सामाजिक क्षेत्र में यह भावी पीढि़यों के लिए एक दर्पण का काम करेगी।
आज की प्रजातंत्रीय व्यवस्था में व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता परम आवश्यक है। ये लेख इस दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। इस पुस्तक में महापुरुषों के जीवन से जुड़ी जिन घटनाओं का उल्लेख है, वे पाठक के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में अपना विशेष महत्त्व रखती हैं। इसकी विषयवस्तु पाठकों में अध्ययन के प्रति उत्कंठा पैदा करेगी। इन लेखों का प्रकाशन लोगों में पठन के प्रति रुचि जाग्रत् करेगा और उन्हें सुसंस्कृत बनाएगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांSant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
संत जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन : सन्त जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन द्वारा अनुप्राणित विश्नोई धर्म के सिद्धान्तों को विश्व-स्तर पर प्रायोजित करने हेतु यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। लेखक ने सन्त जाम्भोजी के आध्यात्मिक तात्विक, नैतिक एवं सांसारिक आदर्शों को प्रस्तुत करने हेतु पुस्तक में सन्त जाम्भोजी का परिचय, विश्नोई धर्म के 29 नियम, विश्नोई धर्म की धार्मिक एवं नैतिक मान्यता, विश्नोई धर्म के दार्शनिक विचार एवं अहिंसा सम्मिलित की है तथा विश्नोई धर्म की वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख कर इसे सम्पूर्ण किया है। सन्त जाम्भोजी व विश्नोई धर्म के जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो प्रत्येक पुस्तकालय के लिए सग्रहणीय है।
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Prabhat Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Ravidas Ratnawali
संत रविदास का जन्म वाराणसी के निकट मंडूर नामक गाँव में संवत् 1433 को माघ पूर्णिमा के दिन माना जाता है। उनके विभिन्न नाम हैं—रविदास, रैदास, रादास, रुद्रदास, सईदास, रयिदास, रोहीदास, रोहिदास, रूहदास, रमादास, रामदास, हरिदास। इनमें से रविदास तथा रैदास दो नाम तो ऐसे हैं, जो दोनों ही उनकी रचनाओं में उपलब्ध होते हैं।
बचपन से ही उनकी रुचि प्रभु-भक्ति और साधु-संतों की ओर हो गई थी। बड़ा होने पर उन्होंने चर्मकार का अपना पैतृक काम अपना लिया। जूता गाँठते हुए वे प्रभु भजन में लीन हो जाते। जो कुछ कमाते, उसे साधु-संतों पर खर्च कर देते।
रविदास ने उस समय के प्रसिद्ध भक्त गुरु रामानंद से दीक्षा ली। उन्होंने ऊँच-नीच के मत का खंडन किया। वे अत्यंत विनीत और उदार विचारों के थे। उनकी भक्ति उच्च दर्जे की थी। वे कठौती में ही गंगाजी के दर्शन कर लिया करते थे।
‘संत रैदास की वाणी’ में 87 पद तथा 3 साखियों का संकलन ‘रैदास’ के नाम से हुआ है, जिनमें से लगभग सभी में ‘रैदास’ नाम की छाप भी मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक में संत रविदास के आध्यात्मिक जीवन, उनकी रचनाओं, उनके जप-तप और समाज-उद्धार के लिए किए गए कार्यों का सीधी-सरल भाषा में विवेचन किया गया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Santon Ke Prerak Prasang
हमारा देश संत-महात्माओं एवं ऋषि-मुनियों का देश है। उनकी सांसारिक पदार्थों में आसक्ति नहीं होती। वे सिर्फ जीने भर के लिए जरूरी चीजों का सीमित मात्रा में उपभोग करते हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ से संत का कोई प्रयोजन नहीं है। ऐसा सात्त्विक तपस्वी जीवन सबके लिए अनुकरणीय होता है।
संत का जीवन जीना साधारण मानव के बस की बात नहीं है। संत-जीवन में बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जो लोग आदर्श गृहस्थ धर्म को निभाते हैं, वे धन्य हैं। जो लोग मेहनत से, उचित साधनों से आजीविका अर्जित करते हैं, व्यवहार-कुशल हैं, परहितकारी हैं, खुद जीते हैं और दूसरों को जीने देते हैं, ऐसे मानव भी किसी संत से कम नहीं हैं।
प्रस्तुत पुस्तक का प्रत्येक दृष्टांत जीवन के बारे में स्पष्ट दृष्टि देता हुआ अमूल्य संदेश देता है। इस आपाधापी भरे युग में जो व्यक्ति सत्संगों का लाभ नहीं उठा पाते, उन्हें इस पुस्तक के द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
संतों के प्रेरणाप्रद जीवन का सार यदि हम जीवन में उतारें तो सुख-संतोष से परिपूर्ण होगा हमारा जीवन।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Saral Gita
‘गीता’ संसार का एक महानतम ग्रंथ है। इसे हिंदू धर्म के सीमित दायरे में बाँधकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि संसार की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है और संसार के करोड़ों-अरबों लोग इसमें बताए गए जीवन-दर्शन का अनुसरण कर सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं।
‘गीता’ एक ऐसा ग्रंथ है, जो विलक्षण रहस्यों से भरा हुआ है। इसे आप जितनी बार पढ़ेंगे उतनी ही बार आपको नए-नए अर्थ, नए-नए भाव और नए-नए तर्क निकलते प्रतीत होंगे।
भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद से उपजा यह ग्रंथ द्वापर युग से आज तक अनेक संत-महात्माओं का मार्गदर्शन करता आ रहा है। अनेक साधारण लोग इसकी शिक्षाओं पर चलकर महान् बने हैं। मीरा, सूर, चैतन्य से लेकर महात्मा गांधी तक भगवद्गीता से जीवन-शक्ति ग्रहण करते रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में गीता के उपदेशों को सरल व सुगम शब्दों में प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि यह बड़ों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी उपयोगी बन सके। इसमें ‘गीता’ के अठारह अध्याय और सात सौ श्लोकों के शब्दार्थ के स्थान पर भावार्थ को प्रमुखता दी गई है, ताकि जनसामान्य भी इनके भावों और शिक्षाओं को सहजता से ग्रहण कर सकें।
प्रस्तुत है कर्तव्य, न्याय, सदाचार, पारस्परिक संबंध, अध्यात्म, वैराग्य, मोह-विरक्ति एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करनेवाली सरल गीता।SKU: n/a -
Aryan Books International, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
SARASWATI BAH RAHI HAI : सरस्वती बह रही है
-10%Aryan Books International, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSARASWATI BAH RAHI HAI : सरस्वती बह रही है
सरस्वती बह रही है: भारतीय संस्कृति का निरंतर प्रवाह
यह पुस्तक प्राचीन भारत की दो प्रमुख परस्पर विरोधी मान्यताओं पर विचार करती है।
प्रथम-कुछ भारतीय और अधिकांश पाश्चात्य विद्वानों की मान्यता है कि ऋग्वैदिक सरस्वती नदी अफ़ग़ानिस्तान की हेलमण्ड नदी है। लेखक ने ऋग्वेद के पूरे साक्ष्यों का विश्लेषण किया और यह दिखाने का प्रयास किया है कि पूर्वोक्त मान्यता सर्वथा निराधार है। ये मान्यताएँ ऋग्वैदिक साक्ष्यों के विपरीत जाती हैं। दूसरी ओर ऋग्वेद की ही भौगोलिक सामग्रियाँ स्पष्ट करती हैं कि ऋग्वैदिक सरस्वती और दूसरी कोई नहीं, आज की सरस्वती-घग्गर नदी है और यह दोनों साथ मिल कर हरियाणा और पंजाब से होकर बहती थीं। यद्यपि अब यह सिरसा के पास सूख गयी हैं और इसका सूखा क्षेत्र कहीं कहीं तक़रीबन 8 किलोमीटर चैड़ा है। अन्ततः यह नदी अरब सागर में जाकर मिलती थी।
दूसरा-आर्यो ने भारतवर्ष पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप हड़प्पा सभ्यता का अस्तित्व मिट गया। लेखक का कहना है कि ऐसे किसी आक्रमण के होने के कोई संकेत नहीं मिलते। हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता एक ही सिक्के के दो पक्ष हैं। यदि आप 4500 वर्ष पूर्व के हड़प्पा के आवासों मे जाएँ तो यह देख कर आश्चर्यचकित न हों कि स्त्री अपनी माँग मे सिंदूर भर रही है। हरियाणा-राजस्थान के किसान पूर्व की भाँति आज भी अपने खेत जोतते हैं। योगासन, जो आज पाश्चात्य देशों ने भी अपनायें हैं, वह भी हड़प्पा वासियों की ही देन हैं और यदि आप नमस्ते से अभिवादन करना चाहते हैं तो हड़प्पावासी प्रसन्न होकर हाथ जोड़ नमस्ते करते मिल जाएँगे। अतः भारत की आत्मा सदैव जीवित रही है और जीवित रहेगी।SKU: n/a