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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
RATN KANGAN TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की रत्न-कंगन तथा अन्य कहानियाँ की शीर्षक-कथा रत्न-कंगन एकतरफ़ा प्रेम का मार्मिक आख्यान है, जिस पर 1965 में सोवियत संघ में एक फ़िल्म भी बनी थी। इस अभिशप्त कहानी के केंद्र में एक राजसी महिला से एकतरफ़ा प्रेम में पड़ गया एक साधारण क्लर्क है। जानी-पहचानी सामाजिक स्थिति, जिसमें क्लर्क हास्यास्पद है और राजसी परिवार के हर सदस्य को उसका उपहास उड़ाने का अधिकार है, देखते-देखते उदात्त प्रेम पर लंबे चिंतन के आख्यान में बदल जाती है। अपनी अनेक कहानियों में कुप्रीन ने प्रेम के इस सामाजिक पक्ष – आर्थिक ऊँच-नीच – को बड़ी संवेदनशीलता से छुआ है और हालाँकि लगभग हमेशा ही उनके कथानक में समाज की, बलवान की जीत होती है, यह जीत हमेशा के लिए प्रश्नांकित होने से नहीं बचती। पाठकों के लिए यह तथ्य रोचक होगा कि 1954 में जब युवा लेखक निर्मल वर्मा ने इन कहानियों का अनुवाद किया था, तो उनका अपना देश भी स्वतंत्रता के बाद एक संक्रमण-काल के सम्मुख नियति की पहचान कर रहा था।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Reminiscence of Ram Rajya in Mordern Law
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Reminiscence of Ram Rajya in Mordern Law
The purpose of writing the present book is to find out and indicate the righteous conduct or law in Ram Rajya during the period of Shri Ram in modern jurisprudence. A number of statutory provisions, opinions of sociologists, judgments of Supreme Court of India and passages from the articles of western jurists referred to in the present book go a long way to establish the fact that whatever the modern world possesses at present is the off-shoot of ‘Ram Rajya’, at play not only in this country but all over the world. Culture, civilisation and equal treatment in Ram Rajya were superb and were at its highest pinnacle. Deceits or lies seems to not existed in civilized society. Truth was the foundation of Ram Rajya. To exemplify, when a Brahmin beggar hurt the dog, he fearlessly appeared and confessed his guilt fearlessly before King Ram leaving it open to Shri Ram to award any punishment he deserves, includes death penalty. Study of life history of Rama by Balmiki, Raghuvansh by Kalidas, Ramayan by Kamban, Ramcharit Manas by Tulsidas and bunch of other authors indicates that law or righteousness was propped up by conduct & fairness. When Sita, the paragon of virtue, says that there are three formidably dangerous evils towards the observance of Dharma or righteous conduct i.e. uttering a falsehood (speaking a lie), desiring to possess the wife of another man (molestation, rape and concubine, etc.) and hurting someone without offending anyone is not righteous in any manner, it does not seem to have relation with the religion as understood today. It was purely undesirable human conduct in tune with today’s principle that no one should be punished without commission of crime and without providing an opportunity to defend for the crime committed.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Report Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिReport Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
रिपोर्ट मरदुम शुमारी राज मारवाड़ 1891 ई. (Marwar Census Report 1891) :
रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह, अधीक्षक जनगणना राज मारवाड़ और उनके इतिहासकार के रूप में विख्यात सहयोगी मुंशी देवीप्रसाद के निर्देशन में संकलित ‘रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891’ मारवाड़ में निवास करने वाली 462 जातियों का ज्ञान कोश है। मारवाड़ की यही जातियाँ समूचे राजस्थान के गाँव-गाँव में निवास करती है। अतः इसे राजस्थान की जातियों का ज्ञान कोश कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 में उपलब्ध सामग्री का आधार विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा भेजे गये आंकड़े, जाति पंचों से साक्षात्कार, प्रचलित परम्पराएं तथा भाटों की बहियां रही। समग्र रूप से प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री को अद्वितीय कहा जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक जाति की उत्पत्ति, उस जाति के व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक सभी रीति रिवाजों और संस्कारों के साथ ही व्यवसाय आदि के गहराई से किये गये वर्णन के कारण यह ग्रन्थ इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, संस्कृति प्रेमियों और अर्थशास्त्रियों के लिये समान रूप से उपयोगी बना रहेगा। हिन्दी भाषा के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी की 19वीं शताब्दी की अवस्था के दर्शन होते हैं। रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 पश्चिमी राजस्थान की जातियों के इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों, व्यवसायों तथा मरुस्थलीय जन जीवन के विविध आयामों का प्रमाणिक सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय इतिहास है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigveda Complete (4 Volumes)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigveda Complete (4 Volumes)
ग्रन्थ का नाम – ऋग्वेद संहिता
भाष्यकार – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी एवम् आर्य मुनि जी
वेद परमात्मा प्रदत्त ज्ञान राशि है। समस्त आर्ष ग्रन्थ इस बात की घोषणा करते हैं कि वेद अपौरुषेय वाक् है जो सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा ऋषियों के हृदय में प्रकाशित होता हैं। महाभारत इतिहास ग्रन्थ में वेदव्यास जी लिखते हैं –
“अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।।’’ – शान्तिपर्व अ. 224/55
अर्थात् परमात्मा प्रदत्त यह वेदवाणी नित्य हैं, इसी वेदमयी दिव्यवाक् के कारण सारा जगत् अपने कार्यों में प्रवृत्त है। यह प्राचीनकाल से विश्व के मार्गदर्शक रहे हैं, इसलिए महर्षि मनु ने – “वेदश्चक्षुः सनातनम्” कहा है।
वेदों में ऋग्वेद का विषय वस्तु ज्ञान है। महर्षि दयानन्द जी का उपदेश है कि ऋग्वेद में प्रकृति से ब्रह्माण्ड पर्यन्त तत्वों का मूल ज्ञान निहित है तथा महर्षि अपनी बनाई भाष्यभूमिका में यह भी लिखते हैं कि वेदों का मुख्य तात्पर्य परमेश्वर को ही प्राप्त कराना है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 85 अनुवाक्, 1028 सूक्तों के सहित 10521 मंत्र हैं। मंत्रों को ऋचाएँ भी कहा जाता है।
ऋग्वेद पर स्कन्द, नारायण, सायण, हरदत्त आदि विद्वानों नें भाष्य किया है। लेकिन अधिकांश भाष्य कर्मकांड परक और ऐतिहासिक परक हैं, जिससे वेदों का गूढार्थ प्रकट नहीं होता है। विडंबना है कि आचार्य सायण अपनी ऋग्भाष्य भूमिका में वेदों में इतिहास होने का प्रबल खंडन करके नैरुक्त पक्ष की स्थापना करते हैं लेकिन अपने वेदभाष्य में वे नैरुक्त पक्ष को दर्शानें मे असफल रहे और अधिकतर ऐतिहासिक अर्थ ही करते रहे। किन्तु महर्षि दयानन्द जी ने वैदिक शब्दों को यौगिक मानकर नैरुक्त पक्ष से अर्थ किए हैं, जिससे वेदों का नित्यत्व स्थापित होता है। स्वामी जी ने ऋग्वेद के मंडल 7 और सूक्त 61 तक भाष्य किया था। ये भाष्य वेदांगों, ब्राह्मणग्रंथों के प्रमाणों से युक्त होने से प्राचीन आर्षशैली पर आधारित हैं। सायणादि द्वारा वेद भाष्य करने में निरूक्तादि की उपेक्षा करके अर्थ करने के कारण उनके किए भाष्य में अंधविश्वास, पशुवध, मांसाहारादि दोष परिलक्षित होते हैं वहीं ऋषि दयानन्द द्वारा वेद भाष्य में निरूक्त, छंद, आदि का ध्यान रखा गया है जिसके कारण उनका भाष्य इन सब दोषों से मुक्त और सृष्टि के उच्चतम आध्यात्मिक विज्ञान से युक्त है। जहां अन्य वेदभाष्य विग्रहवादी बहुदेवों की उपासना की शिक्षा से युक्त हैं वही स्वामी जी का भाष्य एक निराकार सत्ता की उपासना की स्थापना करता है। इस प्रकार अनेको विशेषताओं से युक्त होने के कारण ऋषि दयानन्द कृत वेदभाष्य में अनेक गुणों का परिलक्षण होता है।
प्रस्तुत् वेदभाष्य 7 मंडल और 61 सूक्त तक महर्षि दयानन्दकृत है, जिसकी विशेषताएँ वर्णित की जा चुकी हैं तथा शेष भाग 10 मंडल तक सम्पूर्ण आर्यमुनि जी कृत हैं। आर्यमुनि जी ने वेदार्थ में स्वामी दयानन्द जी की वेदभाष्य शैली का ही अनुसरण किया है। अतः यह वेदभाष्य दर्शन, धर्म, नीति, लौकिक ज्ञान-विज्ञान आदि मानवहितों से युक्त है और दोष-रूपी अंधविश्वास, बहुदेववाद, हिंसादि की कल्पनाओं से परे है। ये भाष्य चार खंडों में प्रकाशित हैं, जिसकी छपाई आकर्षक और सुन्दर है। इसमें अन्त में परिशिष्ट रूप में सम्पूर्ण वेद मंत्रों की अनुक्रमणिका भी दी गई हैं जिससे कोई भी मंत्र आसानी से खोजा जा सकता है।
वेदों के अध्ययन द्वारा ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म की लहरों में स्वयं को डुबोने के लिए, इस वेदभाष्य को अवश्य प्राप्त करके चिंतन एवम् मनन सहित स्वाध्याय करें और अपने जीवन को दिव्य बनावें।
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Chaukhamba Prakashan, English Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigveda Samhita (Set Of 4 Vol)
-10%Chaukhamba Prakashan, English Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigveda Samhita (Set Of 4 Vol)
Ravi Prakash Arya
Dr. Ravi Prakash Arya is World renowned Vedic Scholar, Philologist, and Historian. He is a prolific speaker and writer. He is widely travelled scholar who has delivered more than 150 popular and academic talks on various topics of Vedas, Indian History, Linguistics, Philosophy, Culture and Scientific Indian heritage in various countries of the world. He has delivered more than a dozen Radio and TV Talks in Bharata, Canada, USA, Trinidad, Surinam and British Guyana. He has participated in more than 50 National and International Conferences and Seminars in India and Abroad. He is doing a pioneering work for preserving and propagating the universal and scientific Vedic heritage of India under the auspices of Indian Foundation for Vedic science’. He has so far produced around 60 research papers and 27 books running into 36 volumes on the various aspects of Vedas, Indian History and Culture. He is also editing for the last seven years a quarterly Research Journal ‘Vedic Science’ dealing with the scientific interpretation of Vedas and Allied literature and ancient Indian traditions. This Journal is circulated around 30 countries of the world. He is also the editor of annual ‘World Vedic Calendar’ circulated around 10 countries of the world.SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigvedadibhashyabhumika
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigvedadibhashyabhumika
चारों वेदों के भाष्य की भूमिका, स्वामी दयानन्द सरस्वती चारों वेदों का जो भाष्य रचना चाहते थे, उस भाष्य के आधारभूत 35 विषयों का इस भूमिका में निरूपण किया है। इसलिए ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका को अच्छी प्रकार से पढ़े बिना स्वामी दयानन्द सरस्वती का वेद-भाष्य यथावत् समझ में नहीं आ सकता। -पं. युधिष्ठर मीमांसक
वेद की उत्पत्ति, रचना, प्रामाण्य-अप्रामाण्य, वेदोक्त धर्म आदि अनेक विषयों पर इस ग्रन्थ में स्पष्ट विचार किया गया है। पूर्व के वेदभाष्यकारों के अनेक अनार्ष मतों का विवेचन करके सप्रमाण वैदिक आर्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। वेद के सिद्धान्तों को समझने के लिए यह ग्रन्थ अपूर्व है।
-श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्यायमहर्षि ने इस भूमिका में पहले इस प्रष्न का उत्तर दिया है कि वेद क्या हैं और वेदोत्पत्ति का अत्यन्त सूक्ष्म विषय, सारगर्भित रीति से, निरूपण करने के पष्चात् वेदमन्त्रों के प्रमाणों से वेदों के विषयों को दर्षाते हुए, वेदों के सच्चे महत्व का बोधन कराया है। वेदों को वे सूर्यवत् स्वतःप्रमाण और शेष समस्त ग्रन्थों को परतःप्रमाण ठहराते हैं। -पं. लेखराम
महर्षि दयानन्द ने अपनी योगदृष्टि द्वारा वैदिक तत्त्वों को साक्षात् कर वेदभाष्यों के रचने का संकल्प किया। जिन नियमों और सिद्धान्तों के आधार पर महर्षि वेदभाष्य करना चाहते थे, उनका विस्तृत वर्णन ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका ग्रन्थ में किया गया है। -प्रो. विष्वनाथ विद्यालंकार
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Govindram Hasanand Prakashan, Others
Rog tatha unki Homoeopathik Chikitsa
डॉ सत्यव्रत सिद्धांतालंकार का मानना है की होम्योपैथी का आधार रोग के ‘नाम‘ न होकर रोग के ‘लक्षण‘ है। इसीलिए होम्योपैथिक चिकित्सा की पुस्तक में रोगों के लक्षण पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।
इस दृष्टि से इस ग्रंथ की अन्य ग्रंथों से विशेषता यह है कि इसमें जहां रोगों का नाम दिया गया है, वहां उनकी औषधियों का उल्लेख करते हुए उस-उस रोग में दी जाने वाली अन्य औषधियों की आपसी तुलना भी साथ-साथ की गई है।
एक ही रोग के भिन्न-भिन्न लक्षण होते हैं, इन लक्षणों की भिन्नता के कारण होम्योपैथिक औषधि भी भिन्न-भिन्न होती है। यही कारण है की इस ग्रंथ में सिर्फ रोग तथा उसकी औषधि ही नहीं दी गई है, अपितु पहले रोग का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
फिर उसके सामान्य लक्षणों पर दी जाने वाली मुख्य औषधि तथा उस औषधि के साथ-साथ उसके समान लक्षणों वाली अन्य औषधियों का उल्लेख करते हुए उनकी आपसी तुलना साथ-साथ दी गई है। ताकि एक औषधि को दूसरी से भिन्न किया जा सके।
इस ग्रंथ को लिखते हुए लेखक ने सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सकों की पुस्तकों को आधार बनाया है। इसीलिए होम्योपैथिक चिकित्सा की दृष्टि से इस ग्रंथ की एक-एक पंक्ति प्रामाणिक है।
जिस होम्योपैथ ने, जिस रोग में, जिन लक्षणों पर, जिस औषधि का, जिस शक्ति में, निर्देश दिया है, उसका उल्लेख हर जगह किया गया है। यह लेखक की 36-37 वर्षों की साधना का फल है, इसीलिए यह जिन-जिन के हाथों में पहुंचेगा वह इसका लाभ उठा सकेंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथा
Rom-Rom Mein Ram (HB)
लगभग पांच सौ साल पहले अयोध्या में रामजी का मंदिर तोड़ दिया गया था। उस जगह पर एक ढांचा बनाकर उसे मस्जिद का नाम दिया गया। हमारे देवताओं की मूर्तियां टुकड़े-टुकड़े करके उसके फर्श और सीढ़ियों में गाड़ दी गईं। पराजित हिंदू जाति इसको रोक नहीं सकी, पर मंदिर टूटने की पीड़ा एक बुरे सपने की तरह पूरे समाज के मन में जलती रही। इस पीड़ा में 74 संघर्ष हो गए। लाखों लोगों ने प्राण दे दिए। कोर्ट में भी 70 सालों तक मामला उलझा रहा।
अब सपना नहीं सत्य है कि मंदिर बन गया है। यह भव्य है। एक हजार साल से अधिक आयु का है। इसमें जन्मस्थान पर रामजी विराजेंगे। आगे राम राज्य की ओर बढ़ना है। समाज के जीवन में और राज्य की संस्थाओं में मर्यादा, शील और पराक्रम लाना है। सभी धर्माधारित जीवन जीएँ। सबको रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और रोजगार मिले। भारत परम वैभव को प्राप्त करे। इस सबका समय आ रहा है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Saagar Swar
‘‘आदमी सागर की सतह तक तो पहुंच गया है लेकिन अभी तक मानव मस्तिष्क की गहरी सतह तक नहीं पहुंच पाया है और न ही उसे पूरी तरह से समझ पाया है। शायद आज तक लोगों के बीच जो आपसी रिश्ते कायम हैं, वह इसलिए कि हम एक-दूसरे के अंदर के मन की बात को नहीं जान पाते। वर्षों साथ रहने के बाद भी शायद दो लोग एक-दूसरे को पूरी तरह से जान नहीं पाते। इसी बात को सोचते-सोचते मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि यदि कोई ऐसी मशीन बन जाए जिससे सबके मस्तिष्क पारदर्शी हो जाएं, तो क्या होगा? मुझे जवाब मिला कि शायद मानव सभ्यता ढह जाएगी। यहीं से शुरू हुई मेरे उपन्यास की शुरुआत…’’-प्रतिभा राय जब एक संवेदनशील नारी का विवाह एक ऐसे वैज्ञानिक से होता है जो हर मनुष्य को केवल एक मशीन ही समझता है, हृदय की भावनाएँ उसके लिए कोई मायने नहीं रखतीं तब नारी के कोमल मन पर क्या बीतती है, इसी पृष्ठभूमि पर लिखा गया है यह उपन्यास। वैज्ञानिक ‘ब्रेनोविश्जॅन’ का अन्वेषण करता है जिससे कि हरेक व्यक्ति के दिमाग में जो बात चल रही है, उसको सब देख सकते हैं। इससे उसकी पत्नी के साथ रिश्ते और खुद पर उसका क्या असर होता है? जानिए इस उपन्यास में।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Saanjh ke Deep
साँझ के दीप : वृद्धावस्था मानव जीवन का अंतिम सत्य है, जीवन का यह पड़ाव अनेक सीखों-अनुभवों-उपदेशों से युक्त एक चलती-फिरती पाठशाला है। वह परिवार सचमुच भाग्यशाली हैं, जिन पर वृद्धों की छत्र-छाया है, लेकिन वर्तमान में क्या यही सत्य है।
कड़वी सच्चाई तो यही है कि परिवार-समाज की यह महत्वपूर्ण इकाई आज हाशिए पर रहने को मजबूर हो चुकी है। यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसे अनेकों दृष्टांत देखने को मिल ही जाते हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर देने वाले होते हैं।
प्रस्तुत कहानी संग्रह में सम्मिलित प्रत्येक कहानी एक नया संदेश देती हुई नजर आती है। जीवन की कड़वी सच्चाई को उजागर करती यह कहानियाँ कई बार उन बच्चों को प्रायश्चित करवाती नजर आती हैं, जिन्होंने वृद्ध माँ-बाप को जीवन के अंतिम मोड़ पर घर से बेघर कर दिया हो, तो कहीं पर अपने स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए दृढ़ वृद्धजन, कहीं पर अंतिम साँस ले रहे माँ-बाप की जुबाँ पर औलाद का नाम, कहीं पर जैसी करनी वैसी भरनी की कहावत को चरितार्थ किया गया है। कहीं समाज की दृष्टि में कम पढ़े-लिखे माँ-बाप, किन्तु उनकी सीख आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों से उत्तम दर्ज की दिखलाई पड़ती है, तो कहीं वृद्ध हो चुके पति-पत्नी के बीच के मनोविज्ञान को दर्शाया गया है।
कुछ कहानियों को पढ़ कर लगता है कि परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत भले ही हो जाएं, लेकिन अंतिम क्षण तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। ‘अप्प दीपो भवः’ के सिद्धान्त पर चल कर वह स्वयं के जीवन में तो प्रकाश भर ही रहे हैं, अपितु अन्य के जीवन को भी आलोढ़ित कर रहे हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Saat Chiranjeevi
एक सहज और स्वाभाविक प्रश्न है, क्या मनुष्य अमर हो सकता
है? इसका जवाब इतना आसान नहीं है, क्योंकि आज भी मनुष्य उन सीमाओं के पार नहीं पहुँच सका है, जो उसे अमर बना दें। हाँ, कभी-कभी कुछ विशेष व्यक्तियों के लिए प्रकृति ने अपने नियम जरूर बदले हैं। ऐसे ही विशेष महामानव हैं-सात चिरंजीवी। ये सात चिरंजीवी इसलिए कहलाए, क्योंकि सातों जीवन-मृत्यु के चक्र से ऊपर उठकर अमर हो गए। इन सात चिरंजीवियों में परशुराम, बलि, विभीषण, हनुमान, महर्षि वेदव्यास, कृपाचार्य और अश्वत्थामा हैं।
इन चिरंजीवियों में से कुछ के बारे में गलत धारणाएँ भी प्रचलित हैं, जैसे परशुराम का नाम सुनते ही हमारी आँखों के सामने एक ऐसे ऋषि की तसवीर उभरती है, जो बेहद क्रोधी स्वभाव के हैं। लेकिन उन्होंने अत्याचारी और अन्यायी राजाओं के खिलाफ ही शत्र उठाए। एक आदर्शवादी और न्यायप्रिय राजा के रूप में राम से मिलने के पश्चात् वे महेंद्र गिरि पर्वत पर तपस्या करने चले गए। परशुराम भगवान् विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। आज्ञाकारी पुत्र के रूप में वे अद्भुत हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Saath Ke Hemant
“पत्रकार-लेखक-समाजधर्मी हेमंत शर्मा शोख, शरारती, संजीदा, हँसमुख, मिलनसार हैं, साथ ही दायित्वपूर्ण लेखन के अप्रतिम उदाहरण भी । उनका लेखन उत्प्रेरक है, उद्देगजनक भी है और अनुरंजक भी। संवेदना और भाषा के इन अलग-अलग गुण-स्वभाव के लेखक हिंदी में हैं, मगर इन सबका एकत्र संयोग हमें हेमंत में ही दिखाई देता है। हेमंत की शरारत में जो गहरी आत्मीयता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। हेमंत का लेखन जादूगर के तमाशे की तरह है, जो लोगों को अपने काम के रास्ते जाते हुए से बिलमाकर रोक लेता है, बाँध लेता है, विस्मय में डाल देता है, अपने कौशल के लिए वाहवाही निकलवा लेता है।
हेमंतजी अपने सक्रिय जीवन के साठ साल पूरे करने जा रहे हैं। बिना किसी सीढ़ी का सहारा लिये, बिना किसी के कंधे पर चढ़े उन्होंने जीवन में स्पृहणीय ऊँचाई प्राप्त की है। इसके पीछे उनकी अथक मेहनत, गहरी सूझ, अटल संकल्प और व्यावहारिक कुशलता का बेजोड़ सम्मिलन है। उन्होंने ख्याति और समृद्धि के ऊँचे शिखर पर आसन जमाया है। हेमंत की उपलब्धियाँ विलक्षण हैं। उनकी प्रतिभा विस्मथघजनक है। उनका व्यवहार विमुग्धकारी है।
मीडिया, कला-जगत्, राजनीति और विभिन्न भावभूमि की प्रमुख विभूतियों से उनके नितांत अनौपचारिक और गहरे संबंध हैं। यह कृति उनके ऐसे ही अपनों और आत्मीयों के उनके विषय में व्यक्त भावों का पठनीय संकलन है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sabhi Ke Liye Kanoon
आज हमारे पारिवारिक, सामाजिक एवं दिन-प्रतिदिन के जीवन में कानून की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई है। कानून एक ऐसा विषय है, जिसके संबंध में प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य जानकारियाँ होनी ही चाहिए। कानून के संबंध में विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ सभी नागरिकों की आवश्यकता बन गई है।
यह पुस्तक अपने पाठकों को सामान्य कानूनों की भरपूर जानकारी प्रदान करेगी। इसमें सरल व सुगम भाषा में तथ्यों को वर्णित किया गया है। इस पुस्तक को पढ़कर पाठकगण—अदालतों के प्रकार, एफ.आई.आर. दर्ज कराने के तरीके, जमानतों के तरीके, अपील के तरीके, सड़क दुर्घटना का मुआवजा, विवाह एवं तलाक, उपभोक्ता कानून, प्रोपर्टी ट्रांसफर, बीमा, टैक्स, चेक के अनादरण, श्रमिक कानून, दहेज, अपराधों के प्रकार और हमारे कानून का संक्षेप में इतिहास—आदि के संबंध में जानकारियाँ प्राप्त करेंगे। इसके माध्यम से पाठक भारतीय दंड संहिता की प्रमुख धाराओं के अंतर्गत शामिल अपराधों और उनकी सजाओं के बारे में भी जान सकेंगे। हमें विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को कानून संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण व उपयोगी जानकारियों से समृद्ध करेगी।SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
Sadhana Sutra
थोड़े से साहस की जरूरत है और आनंद के खजाने बहुत दूर नहीं हैं। थोड़े से साहस की जरूरत है और नर्क को आप ऐसे ही उतार कर रख सकते हैं, जैसे कि कोई आदमी धूल-धवांस से भर गया हो रास्ते की, राह की, और आ कर स्नान कर ले और धूल बह जाए। बस ऐसे ही ध्यान स्नान है। दुख धूल है। और जब धूल झड़ जाती है और स्नान की ताजगी आती है, तो भीतर से जो सुख, जो आनंद की झलक मिलने लगती है, वह आपका स्वभाव है।
ओशोSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, कहानियां, बाल साहित्य
Sahasik Kahaniyan
विश्वविख्यात लेखक रस्किन बॉण्ड द्वारा विरचित इस कहानी-संग्रह में वर्णित रहस्य एवं रोमांचपूर्ण किस्सों में पाठक को बाँधने की अद्भुत शक्ति है। इन कहानियों के पात्र अकसर खतरों को न्योता देते हैं, लेकिन वे आशावादी और दिलेर हैं, और यही कारण है कि उनके कारनामों में उनकी जिंदादिली नजर आती है।
यह कहानी-संग्रह दुःसाहसी एवं बेधड़क लोगों के कारनामों को बड़े ही रोचक ढंग से आपके सामने प्रस्तुत करता है। सभी पात्र एक-से-एक बढ़कर हैं—चाहे वह एक ‘कलाबाज’ पायलट एवं छतरी सैनिक हो, हलक में तलवार उतारने में माहिर कोई हो, शेर को वश में करनेवाली कोई निर्भीक महिला हो, कोई युवा गुब्बारेबाज हो, अल केपोन गैंग का कोई बंदूकची हो या वह औरत हो, जो मशहूर ‘होप डायमंड’ लेकर आई!
पाठकवृंद इस संकलन की रोमांचक कहानियों का आनंद उठाएँगे, क्योंकि इन कहानियों से आपका मनोरंजन तो होगा ही, जीवन के बारे में भी बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Sahitya, Shiksha Aur Sanskriti
साहित्य, शिक्षा और संस्कृति—ये तीनों व्यापक विषय हैं। इनमें जाति, धर्म और देश समाहित हैं। किसी भी देश की उन्नति और उसका गौरव इन्हीं पर निर्भर करता है। साहित्य सभ्यता का द्योतक है। साहित्य की ओट में ही काल विशेष की विशेषता छिपी रहती है, जिसे समय-समय पर साहित्यकार उद्घाटित करता है। शिक्षा जीवन में व्याप्त अंधकार को दूर कर हमारे जीवन और वातावरण में सामंजस्य स्थापित करती है। वह हमें आत्मनिर्भर बनाती है। शिक्षित समाज ही उन्नति-प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है।
भारतीय संस्कृति अपने आप में अनोखी है। यहाँ पर मानसिक स्वतंत्रता सदैव अबाधित रही है। हमारी आधुनिक संस्कृति पर अनेकानेक प्रकार के वादों का प्रभाव पड़ा है। बहुत सी बातों में विभिन्नता दिखाई देती है; परंतु यह सब होते हुए भी सारे भारत में एकसूत्रता विद्यमान है।
साहित्य, शिक्षा और संस्कृति में राजेंSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Samarth Guru Ramdas
भारत के सकल समाज के उद्धार में समर्थ गुरु रामदास का महत्त्वपूर्ण योगदान है। समर्थ गुरु ने युवावस्था में ही ख्याति अर्जित कर ली थी। गुरु रामदास ने ऐसे अनेक दुष्कर एवं असंभव लगनेवाले कार्य किए, जिन्हें संपन्न करने के कारण उन्हें ‘समर्थ गुरु’ कहा गया।
लंबे समय के बाद समर्थ गुरु की भेंट छत्रपति शिवाजी से हुई। दोनों ने मिलकर स्वराज की स्थापना का बीड़ा उठाया, जिसमें वे सफल रहे। समर्थ गुरु के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में छत्रपति शिवाजी मराठा साम्राज्य की स्थापना एवं उसकी नींव मजबूत करने में सफल रहे। बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता है, गुरु ही सच्चा मार्गदर्शक होता है और वह गुरु समर्थ रामदास जैसा हो तो निस्संदेह शिवा का ही जन्म होता है। वह शिवा जो राष्ट्र का गौरव है, रक्षक है, मार्ग-प्रदर्शक है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘समर्थ गुरु रामदास’ भारतीय जन-समुदाय के लिए अत्यंत पठनीय है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Samaya Sakshi Hai
मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की श्रृंखला में यह दूसरा उपन्यास है। ‘समय साक्षी है’ का कालखंड आजादी से पूर्व का है। उस समय स्वतंत्रता आंदोलन जोरों पर था। बनारस में ‘नहीं रखनी सरकार जालिम, नहीं रखनी’ ऐसे गीत गाते हुए देश प्रेमियों के दल-के-दल दशाश्वमेध घाट से जुलूस निकालते हुए टाउन हॉल के मैदान में सभा के रूप में परिवर्तित हो जाते थे।
आजादी की लड़ाई में उफान उस समय आया जब 9 अगस्त, 1942 को बापू ने देश की जनता को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। फिर क्या था—जनता सर पर कफन बाँधकर सड़कों पर उतर आई। गांधीजी गिरफ्तार कर लिये गए। दूसरे बड़े नेता भी रातोरात पकड़ लिये गए।
अजीब समाँ था—जेलें भरी जाने लगीं, अस्पतालों में बिस्तर खाली नहीं। गलियों में, सड़कों पर आबालवृद्धनारीनर सब पर आजादी पाने का जुनून सवार था। सरकारी भवनों से यूनियन जैक हटाकर तिरंगा फहराया गया। चारो तरफ अराजकता फैल गई थी। ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की हद पार हो गई। रेलें रोकी जाने लगीं, संचार माध्यम नष्ट किए जाने लगे, सरकारी संपत्ति की लूट मची और पुलिस थानों पर कब्जा कर लिया गया।
स्वातंत्र्य समर के दौरान अगणित पात्रों, घटनाओं, विभीषिकाओं का जीवंत दस्तावेज है यह उपन्यास। उस काल की घटनाओं की बारीकियों को प्रस्तुत करता है—‘समय साक्षी है’।SKU: n/a